अंकिता भार्गव की कहानी - वो कागज की कश्‍ती वो बारिश का पानी

SHARE:

वो कागज की किश्‍ती वो बारिश का पानी   मैं कालेज से घर पहुंचा। आज मुझे शाम तक घर में अकेले रहना था बच्‍चे अपनी मां के साथ नानी से मिलने...

image

वो कागज की किश्‍ती

वो बारिश का पानी

 

मैं कालेज से घर पहुंचा। आज मुझे शाम तक घर में अकेले रहना था बच्‍चे अपनी मां के साथ नानी से मिलने जो गए हुए थे। खाना खा कर जरा सुस्‍ताने ही रहा था कि डोर बैल की आवाज बज उठी। ‘अब इस समय कौन आ गया।‘ मैं मन ही मन आगंतुक पर झल्‍लाता हुआ दरवाजा खोलने चल दिया।

दरवाजे पर राज भाई खड़े थे जो कि मुझे देखते ही मुझ पर झपट पड़े। “क्‍यों भई बहुत बडे़ आदमी हो गए हो। कितनी देर से घंटी बजा रहा हूं दरवाजा ही नहीं खोल रहे। अगर पता होता तो पहले से अपाइंटमेंट ले कर मिलने आते।”

“क्‍या भाई साहब आप भी कैसी बातें करते हैं। भला आपका गट्‌टू भी इतना बड़ा हो सकता है कभी। असुविधा के लिए माफी चाहता हूं। बच्‍चे अपनी मां के साथ नानी के घर गए हैं और मेरी कब आंख लग गई मुझे पता ही नहीं चला।” मैंने आगंतुक का स्‍वागत कुछ चिरौरी वाले अंदाज में किया। आगंतुक मेरे बड़े भाई साहब के मित्र थे।

मैंने उन्‍हें बड़े आदर से घर के अंदर बिठाया और खुद उनके लिए चाय नाश्‍ते का प्रबंध करने लगा। इसके अलावा मेरे पास और कोई चारा भी तो नहीं था। “मैं यहां चाय पीने नहीं तुमसे एक जरूरी बात करने आया हूं।” चाय का प्‍याला पकड़ते हुए वो कुछ गंभीर अंदाज में बोले।

“हुकम कीजिए भाई साहब।” इन दिनों विश्‍वविद्यालय की परीक्षा चल रही थी और लोग अक्‍सर मेरे पास अपने बच्‍चों के नंबर बढाने की प्रार्थना ले कर आते रहते थे। शायद राज भाई साहब को भी मुझसे कोई ऐसा ही काम होगा।

“कभी काम से वक्‍त मिले तो अपने भाई साहब को भी संभाल लिया करो। कितना समय हो गया है तुम्‍हें उनसे मिले, कितना?” उन्‍होंने मेरी ओर एक नाराजगी भरी नजर डालते हुए प्रश्‍न किया। हालांकि उनकी यह शिकायत मेरे लिए अप्रत्‍याशित थी किन्‍तु साथ ही यह भी सच था कि मुझे अपने भाई साहब से मिले हुए काफी वक्‍त बीत गया था। क्‍या करूं समय ही नहीं मिलता। काम ही इतना है कि दम मारने की फुर्सत नहीं मिलती।

“तुम्‍हें तो अपने परिवार के अलावा कहीं ओर देखने की फुर्सत नहीं है और वहां देवेश है ने उन्‍हें अपने ही घर में नौकर बना कर रख छोड़ा है। उसे अपने माता- पिता की कोई कद्र ही नहीं रह गई है। पागल सा हो गया है मेरा राघव बेटे से मिल रहे अपमान से। अगर तुम्‍हारे अंदर थोड़ी सी भी इंसानियत बाकी है तो जा कर संभालो अपने भाई को, देखो क्‍या हाल हो गया है उसका।”

इसके बाद भी राज भाईसाहब जाने क्‍या क्‍या कहते रहे मगर मैं कुछ सुन नहीं पाया। मेरे मन में विचारों का झंझावात सा आ गया। ”अच्‍छा भई नरेन मैं चलता हुं। मैं शायद थोड़ा जज्‍बाती हो गया था। अगर कुछ गलत बात कह दी हो तो माफ कर देना।” राज भाईसाहब की आवाज सुन मुझे होश तब आया।

“नहीं, नहीं भाई साहब ऐसा मत कहिए। आपको पूरा पूरा हक है मुझे डांटने का। मैने कभी आपमें और भाईसाहब में कोई फर्क नहीं समझा।” मैंनें कहां

”यह तो तुम्‍हारा बड़्‌प्पन है बेटे, वरना आजकल तो लोग सगे मां बाप का कहा भी बर्दाश्‍त नहीं करते फिर मैं तो तुम्‍हारे भाई का दोस्‍त हूं। खैर वैसे तो यह तुम्‍हारा जाति मामला है मगर फिर भी अगर हो सके तो थोड़ा समय निकाल कर एक बार घर हो आओ। मुझे लगता है इस समय राघव को तुम्‍हारी जरूरत है।“

यह क्‍या कह गए राज भाई साहब। ऐसा कैसे हो सकता है। मेरे बड़े भाई साहब पागल कैसे हो सकते हैं। और उनका बेटा देवेश इतना नालायक कैसे हो गया कि अपने ही माता-पिता को उसने नौकर ही बना डाला। मेरी भाभी के दिए संस्‍कार इतने कमजोर तो नहीं हो सकते कि उनके अपने बेटे का ही खून यूं सफेद हो जाए। मुझे विश्‍वास नहीं हो रहा था। मगर राज भाई साहब झूठ क्‍यों बोलेंगे। आखिर वे भाई साहब के दोस्‍त हैं।

मेरे मन में एक शंका उठी कहीं अगर राज भाई साहब की बात सच हुई तो। मैं सिहर उठा। नहीं यह सच नहीं हो सकता। देवेश ऐसा कभी नहीं कर सकता। मन किया क्‍यों ना भाई साहब से इस बारे में खुद ही पूछ लूं। नहीं, शायद यह ठीक नहीं होगा। राघव भाई साहब उम्र में मुझसे बडे़ हैें और उनकी गृहस्‍थी में किसी भी तरह की दखलंदाजी ठीक नहीं होगी।

”क्‍या बात है। आज ऐसे चुपचाप से क्‍यों हो।“ मेरी पत्‍नी ने मुझसे पूछा तो मैने उसे राज भाईसाहब के आगमन और साथ ही उन्‍होंने जो कुछ भी बड़े भाईसाहब के विषय में कहा सब एक सांस में बता डाला। वह भी सुन कर हैरान रह गईं। “यह आप क्‍या कह रहे हैं। ऐसा कैसे हो सकता है। यदि ऐसा कुछ भी होता तो भाभी मुझे जरूर बताती। आप तो जानते हैं वो मुझसे अपने मन की हर बात कह लेतीं हैं।”

“हां कर लेती हैं भाभी तुमसे हर बात पर यह तो सोचो कि अपने बहू बेटे की शिकायत कैसे करेंगी तुमसे। उन्‍हें लाज नहीं आई होगी। मेरा मन कह रहा है लता कुछ राज भाई साहब की बातों में कुछ सच्‍चाई तो जरूर है। भाई साहब ज्‍यादा पढे लिखे नहीं हैं। मुझे लगता है देवेश ने इसी का फायदा उठा कर दुकान और घर अपने नाम पर करवा लिया होगा और अब उसे भाई साहब और भाभी बोझ लगने लगे हैं इसीलिए वह उनका का अपमान कर रहा है। मेरा मन तो कर रहा है कि सीधा जाऊं और देवेश के एक जोरदार थप्‍पड़ लगा दूं और भाई साहब और भाभी को हमेशा के लिए अपने साथ ले आऊं।”

“नहीं आप ऐसा कुछ नहीं करेंगे।” लता ने कहा तो मैं आश्‍चर्य से उसका मुंह देखता रह गया। मुझे लता से यह उम्‍मीद कत्‍तई नहीं थी। मैं तो आज तक यही सोचता आया था कि वह मेरे भाई-भाभी की दिल से इज्‍जत करती है। मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकता था कि लता उन्‍हें अपने साथ रखने से इस तरह सीधे शब्‍दों में मना कर देगी।

“यह तुम क्‍या कह रही हो। क्‍यों ना करूं मैं ऐसा।“ भावनाओं के अतिरेक से मेरा स्‍वर कुछ अधिक ही ऊंचा हो गया। बच्‍चे घबरा कर हमारे कमरे में चले आए। उन्‍हें शायद लग रहा था कि मैं उनकी मां से झगड़ रहा हूं। उन्‍हें इस तरह बेचैन हुआ देख लता उनके पास चली गई। बच्‍चों को समझा बुझा कर वह फिर मेरे पास चली आई। ”वो मेरे भाई भाभी हैं। मैं बहुत प्‍यार करता हूं उनसे। उन्‍हें इस तरह तकलीफ में नहीं देख सकता।” इस बार मेरे स्‍वर में हताशा थी।

“मै आपकी भावनाएं समझ रही हूं, पर आप भी समझने की कोशिश कीजिए कि हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिसे भाई साहब और भाभी की समस्‍याएं और बढ जाऐं। हर रिश्‍ते की एक हद होती है। हो सकता है उन लोगों को हमारा उनके घरेलू मामलों में दखल देना अच्‍छा ना लगे। फिर हमें ठीक से यह भी तो नहीं पता कि सच में भाई साहब के घर में कोई समस्‍या है भी या नहीं। यह भी तो हो सकता ह्रै कि यह केवल राज भाई साहब का वहम ही हो।”

“हो सकता है तुम ठीक कह रही हो लता पर मेरा मन घबरा रहा है तुम ही बताओ मैं क्‍या करूं।” एक पल को तो मुझे लगा जैसे मैं रो दूंगा।

“हम एक काम करते हैं, हम घर चलते हैं और चल कर देखते हैं कि सच क्‍या है।”

“ठीक है। चलो हम घर चल कर देखते हैं। यदि वहां कुछ भी गलत होता हुआ तो मै। देवेश के कान खेंचनें में देर नहीं करूंगा। और तुम मुझे रोकोगी भी नहीं।“

”अच्‍छा ठीक है मगर वादा कीजिए आप वहां कोई पूर्वाग्रह लेकर नहीं जाएंगे और निष्‍पक्ष होकर परिस्‍थ्‍तियों का आंकलन करेंगे।“

”मैं कोई वादा तो नहीं कर सकता पर हां, तुम्‍हारी बातों का ध्‍यान रखने की कोशिश जरूर करूंगा। चलने की तैयारी करो हम कल ही घर चल रहे हैं।“

काफी कोशिशों के बाद भी मेरा मन शांत नहीं हुआ और मैं रात भर सो ना सका। सुबह मेरी आंखें लाल देख कर लता ने मुझे गाड़ी नहीं चलाने दी और पूरे रास्‍ते खुद गाड़ी चला कर ले गई वह काफी अच्‍छी ड्राइवर थी अतः मैने भी कोंई एतराज नहीं किया। बच्‍चे भी अपने ताऊजी और ताईजी से मिलने के लिए काफी उत्‍साहित थे। होते भी क्‍यों नहीं आखिर वो दोनों इनके सभी नाज नखरे बड़े चाव से जो उठाते हैं।

बच्‍चे सारी दुनिया से बेखबर अपनी बातों में खोए थे और उनकी मां अपने किशोरवय बच्‍चों की बातें सुन मुस्‍कुरा रही थी। किन्‍तु मैं नहीं मुसकुरा पाया। मुझे देवेश का बचपन याद आ गया, वह भी कभी ऐसा ही मासूम हुआ करता था किन्‍तु आज उसे अपने स्‍वार्थ के आगे अपने माता पिता भी दिखाई नहीं दिए जिन्‍होंने उसे पालने और पढाने लिखाने में खुद को भी भुला दिया। मेरा दिमाग फिर से भन्‍नाने लगा। मैने कार की सीट पर सर टिका कर अपनी आंखें बंद कर लीं।

जब हम घर पहुंचे तब भाई साहब अपने नवासे के साथ गली में क्रिकेट खेल रहे थे। उन्‍हें देखते ही मेरे मन में भावनाओं का ऐसा ज्‍वार उठा कि मैं गाड़ी रूकते ही उनकी ओर लपका, वे भी मेरी ओर बढे ही थे कि उनका नवासा उनकी गोद में चढ़ गया शायद इतने सारे अजनबी लोगों को देख कर बच्‍चा डर गया था। तब तक परिवार के अन्‍य सदस्‍य भी बाहर चले आए। भाभी ने बहुत ही उत्‍साह से हमारा स्‍वागत किया।

मेरे बच्‍चों से मिल कर भाई साहब मेरी ओर बढे ही थे कि उसी समय उनकी छः माह की पोती ने अपने नन्‍हे नन्‍हें हाथ उनकी ओर फैला दिए। उसकी यह मासूम इच्‍छा भाई साहब भला कैसे ठुकरा देते, उन्‍होंने आगे बढ कर उसे अपनी बाहों में समेट लिया। उस पल मुझे ऐसा लगा मानो मैं नदी किनारे आकर भी प्‍यासा ही रह गया।

चाय नाश्‍ते के समय कुछ देर सब एक साथ बैठे फिर अपने अपने हमउम्र लोगों के साथ जोड़ी बनाली। लता भाभी के साथ तो मेरे बच्‍चे देवेश उसकी बहन और उसकी पत्‍नी के साथ। किन्‍तु मैं अकेला बैठा रह गया क्‍योंकि भाई साहब तब पोती को गोद में लेकर सुलाने की कोशिश कर रहे थे। मुझे उनकी ओर आश्‍चर्य से निहारते देख देवेश बोला, “देखा चाचा, पापा कितना लाड़ लड़ाते हैं गुडि़या को। हमें तो कभी ऐसे प्‍यार नहीं किया। और अब देखो गुडि़या को सारा दिन गोद में लिए रखते हैं।”

“हां चाचा भैया सही कह रहे हैं। पापा बहुत प्‍यार करते हैं इन दोनों से। पूरा बिगाड़ कर रख दिया है इन्‍हें।” भाई साहब की बेटी ने अपने बेटे को मेरी गोद में बैठाते हुए अपने भाई के सुर में सुर मिलाया।

“क्‍यों ना करूं इन्‍हें प्‍यार, ये दोनों मेरे लिए बेहद खास हैं। वो कहते हैं ना कि मूल से ब्‍याज ज्‍यादा प्‍यारा होता है। तुम्‍हारे दादा-दादी भी तो तुम्‍हें कितना प्‍यार करते थे। तब तो कोई समस्‍या नहीं थी, अब जलन हो रही है। तुम मेरी भावना तब समझोगे जब खुद दादा दादी बन जाओगे। क्‍यों नरेन्‍द्र मैं ठीक कह रहा हूं ना।” भाई साहब ने बच्‍ची को थपथपाते हुए मेरी ओर देखा। मैं भला उनकी बात का क्‍या जवाब देता, अभी तक इस भावना से अंजान जो था बस मुस्‍कुरा भर दिया।

शाम के समय भाई साहब बच्‍चों को पार्क में घुमाने ले जा रहे थे, मैं यह सोच कर कि शायद वहां वह मुझसे अपने मन की बात कर सकें उनके साथ हो लिया। मगर यहां भी मेरी आशा निराशा में बदल गई क्‍योंकि वे पूरा समय देवेश और उसकी पत्‍नी की तारीफ ही करते रहे।

हमारे सोने का इंतजाम भाभी ने ऊपर वाले कमरे में किया था। मैं खाना खा कर अपने कमरे में चला आया। लता अभी भी नीचे ही थी शायद भाभी से बातें कर रही थी। यदि कोई और दिन होता तो शायद मैं खीज ही पड़ता लता पर कि जाने वह इतनी देर तक भाभी से क्‍या बातें करती रहती है पर आज ऐसा कुछ नहीं था। आज मुझे लग रहा था कि शायद भाई साहब जो मुझसे नहीं कह पाए वह भाभी लता से कह दे।

लता आई और अपने बिस्‍तर पर लेट गई। मैं कुछ देर इंतजार करता रहा कि वह अपनी ओर से कुछ कहे मगर जब वह कुछ नहीं बोली तो मैंने ही बात आरंभ कर दी। मुझे भय था कि कहीं वह सो ना जाए। ”भाभी ने कुछ बताया।“

”किस बारे में?“

लता के इस प्रश्‍न ने मुझे चौंका दिया, मुझे उस पर खीज सी हो आई। ”तुम्‍हें नहीं पता मैं किस बारे में पूछ रहा हूं।“

”उफ्‍फ आप वहीं अटके पड़े हैं। आप बेकार ही राज भाई साहब की बात को तूल दे रहे हैं जबकि सब कुछ ठीक है। भाई साहब और भाभी बिल्‍कुल खुश हैं। मैं यह नहीं कहती कि राज भाई साहब गलत है मगर आप यह तो मानते है ना कि हर व्‍यक्‍ति का अपना अपना नजरिया होता है। और वह उसी के अनुसार ही सोचता है। हो सकता है राज भाई साहब को भाई साहब का कारोबार में देवेश की और भाभी का घर के काम काज में अपनी बहू का हाथ बंटाना उन पर अत्‍याचार लगती हो मगर यह तो उनका निजी मामला है ना।“

”एक बात और बताइए क्‍या अपने पोता पोती के साथ खेलना पागलपन है। भाई साहब को इतने सालों के बाद तो कुछ सुख मिला है। आर्थिक तंगी के चलते भाई साहब जो खुशियां अपने बच्‍चों को नहीं दे पाए वो सभी खुशियों के पल वे अपने बच्‍चों के बच्‍चों के साथ जी रहे हैं तो इसमें गलत क्‍या है। मुझे तो यह एक सुखी परिवार लग रहा है। “

सुबह मैं काफी देर तक सोता रहा। मैं अंगड़ाई लेता हुआ उठ बैठा तभी एक अजीब सा शोर मेरे कानों से टकराया। मैं छत की मुंडेरी से नीचे झांक कर देखा। वहां का नजारा कुछ अजीब ही था, भाई साहब अपने नवासे के साथ एक पानी से भरे टब में कागज की नाव चला रहे थे। बच्‍चा खुशी से चिल्‍ला रहा था और भाई साहब भी पूरे उत्‍साह से उसका साथ दे रहे थे। सभी घरवाले भी आंगन में खड़े हंस रहे थे। मेरे मन पर छाया कुहासा मानों पूरी तरह छंट गया। मुझे लता की बात समझ आ गई।

मैं भी इस दृश्‍य का मजा लेने लगा तभी बच्‍चे का ध्‍यान मेरी ओर चला गया और वह अपने छोटे छोटे हाथ हिला कर मुझे बुलाने लगा, “छोटे नानाजी हमारी नाव जा रही है। जल्‍दी से आ जाओ सैर पर चलें।” मैंने मुस्‍कुराते हुए बच्‍चे की ओर हाथ हिला कर नीचे आने का इशारा किया और सीढियों की ओर बढ गया।

हालांकि मैं बहुत बेसुरा हूं पर मेरे होंठों से प्रसिद्ध गजल गायक जगजीत सिंह की एक बहुत पुरानी गजल ‘वो कागज की कश्‍ती, वो बारिश का पानी․․․․․․․' फूट पड़ी, जिसे सुन कर सभी हंस पड़े। जाने मेरे गाने के अंदाज पर या फिर उस मौके पर जब मैंने यह गाई, ये तो पता नहीं मगर भाई साहब के घर का यह खुशनुमा माहौल मेरे दिल को सुकून अवश्‍य दे गया

 

लेखिका परिचय

नाम -- अंकिता भार्गव

पिता का नाम -- वीएलभार्गव

शिक्षा -- एम․ (लोक प्रशासन)

रूचियां -- अध्‍ययन एवं लेखन

विशेष -- अस्‍थि रोग ग्रस्‍त

(चित्र – भारती श्याम की कलाकृति)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: अंकिता भार्गव की कहानी - वो कागज की कश्‍ती वो बारिश का पानी
अंकिता भार्गव की कहानी - वो कागज की कश्‍ती वो बारिश का पानी
http://lh6.ggpht.com/-ECWWzU48XSY/VAXebqqW6JI/AAAAAAAAaUI/bYx5G84Seuk/image_thumb.png?imgmax=800
http://lh6.ggpht.com/-ECWWzU48XSY/VAXebqqW6JI/AAAAAAAAaUI/bYx5G84Seuk/s72-c/image_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2014/09/blog-post_2.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2014/09/blog-post_2.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content