सुरजीत सिंह वरवाल की कहानी - एक प्रेम ये भी

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एक प्रेम ये भी सुरजीत सिंह वरवाल सीमरजीत सिंह हिंदी विभाग के क्लास का ही नहीं, विश्वविद्यालय का रोंक स्टार था. विभाग में क्लास शुरू होने ...

एक प्रेम ये भी

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सुरजीत सिंह वरवाल

सीमरजीत सिंह हिंदी विभाग के क्लास का ही नहीं, विश्वविद्यालय का रोंक स्टार था. विभाग में क्लास शुरू होने से लेकर खत्म होने तक सबके मुहँ पर एक ही नाम रहता ...और वह था सीमर जीत. क्लास में नोट्स चाहिए ...सीमर को ढूंढ़ों, प्रोफेसर को बुलाना है ...सीमर को ढूंढ़ो, भूख लगी है ...सीमर को बोलो, महान आलोचक और कवि को बुलाना है तो सीमरजीत को बोलो, जेरोक्स करवानी है...सीमरजीत को ढूंढ़ों. सबके दुखों की दवा बस वही था.बहुत ही हसमुख, मिलनसार, और कूल माइन्डेड.

वैसे तो वह हमेशा ही खुश रहता था परन्तु आज वह ख़ुशी की उस चरम सीमा पर था जहाँ पहुँचने पर मन गद -गद तो होता है, पर हम अपनी वह अवस्था बयाँ करने में अपने को असमर्थ पाते हैं. सब कुछ शांत और रसमय होता है.कंठ रुद्ध हो जाता है. दिन भी तारामय लगने लगता है. भू-लोक स्वर्गलोक सा प्रतीत होने लगता है. काली अंधकारमय वस्तुएं भी हरी-पीली, लाल- नीली सी दिख पड़ती है. मन के अंदर एक विशिष्ट प्रकार का आनन्दोत्सव चल रहा होता है और प्यारी सी गुदगुदी हो रही होती है. यह अनुभूति प्राय: क्षण और व्यक्तिक होती है, लेकिन जब भी होती है जबरदस्त होती है जैसे क्षण में ही कई गुना खून बड़ गया हो.

सीमर की इस ख़ुशी का कारण उसकी क्लासमेट प्रीत थी. आज क्लास का आखिरी दिन था उसके बाद केवल इग्जाम होने थे. फिर सबसे ...नाता टूटने वाला था. प्रीत ने बड़ी हिम्मत करके ...आज सीमर से उसका मोबाइल नम्बर लिया था. उसकी वजह उसने बताई थी कि परीक्षा के दिनों में कुछ टॉपिक फ़ोन पर डिस्कस करेगी. प्रायः सीमर के लिए ये कोई नई बात नहीं थी अक्सर लड़के लड़कियां परीक्षा के दिनों में या उसके अलावा भी सीमर से फ़ोन पर डिस्कस करते थे. लेकिन प्रीत भी किसी से कम नहीं थी वह भी क्लास की टॉपर थी. बेशक सीमर तेज तर्रार था लेकिन फिर भी प्रीत से अपने को कम समझता था. दूसरा कारण यह था कि इतने साल एक ही छत के नीचे, एक ही क्लास में बैठने के बावजूद दोनों ने आपस में कभी कोई गहराई पूर्ण बात न की...केवल हाय, हेलो....

इधर कुछ दिनों से सीमर नोट कर रहा था कि प्रीत उसकी आँखों में देखकर स्माईल करती है, एक डो बार तो आँखों-आँखों से बात करने का प्रयास भी किया. सीमर की आँखे जैसे ही मिलती वह छुईमुई सा होता हुआ अपनी कन्नी काट लेता. प्रीत जब अपने मृग नयनों से देखती थी तो सीमर अपनी सुध-बुध खो देता था. विवेकानंद सर की क्लास में तो आँखों- आँखों में बातें होते हुए हंसता रहता था. सर भी उनकी आँखों ही आँखों की शरारत को बाज़ की आँख से पकड़ लेते थे.लेकिन जब प्रीत भी उसका साथ देती तो क्लास मानों प्रेम के सागर की लहरों की तरह उठने लगती थी. क्लास के ठहाकों का समन्वय कुछ इस तरह होता जैसे दो मनोवृत्तियों का समन्वय हो रहा हो. इन सब बातोँ के कारण सीमर को प्रीत के नम्बर लेने के पीछे किसी और ही मंगल की कामना थी...और ये अनुमान किसी हद तक ठीक भी था.

ऐसा नहीं था कि सीमर को ऐसे मंगल की कामना भी पहेली बार हो रही हो बल्कि वह इससे पहले भी कई बार ऐसे मंगल और सोम देख और भोग चूका था. यही हाल कुछ प्रीत का भी था. कहना ना होगा की दोनों ही पी एच डी करने से पहले ही इस दिशा में डाक्टरेट कर चूके थे.अर्थात दोनों ही सत्तर घाट का पानी पी चूके थे.परन्तु इस अवस्था में दोनों आत्मकेंद्रित थे और सारे बंधन तोड़ कर बंधन मुक्त हो चूके थे.

....सवाल उठता था कि जब दोनों इस कर्म में परांगत थे तो अब ये नैसिखियों सी बौखलाहट और गुदगुदी क्यों ?....इसका भी एक कारण था.

.....जब व्यक्ति किसी विशेष समय को जी लेता है तो उसे उस समय का अनुभव हो जाता है....उसके गुण-दोषों, उपयोगिता-अनुपयोगिता, सकारात्मक-नकारात्मक,और राग द्वेष को समझ जाता है. ये प्राणी भी प्रेम और प्रेम के खंडन के बाद के खाली समय और अकेलेपन के दक्ष को जी चूके थे जिससे उन्हें प्रेम और जीवन में एक साथी प्रेमी की अहमियत का भली भांति पता था. इस जोड़े ने अपने हट और बेवकूफी व नासमझी से पहले वाले साथियों को बेशक खो दिया हो लेकिन अब उन्होंने अपने जीवनानुभवों से यह सीख तो ले ही ली थी कि अपनी हठ और मूर्खता के कारण पथ में कांटे और सूल नहीं बोयेंगे. उन्हें अपने जीवन के लिए एक योग्य और अनुकूल साथी की तलाश भी काफी समय से थी. अपने जीवन रुपी रथ को चलाने के लिए प्रयत्नशील थे. वे अब एक दुसरे के पास आना चाहते थे.... मूर्खों और नासमझों की तरह दूर जाने के लिए नहीं. दोनों ने अपनी अंतरात्मा से, अपने जमीर से वादा किया कि अब फिर से वही गलतियाँ नहीं करेंगे जो पहले की थी. जिनसे बनते रिश्तों में तनाव आया और अपना अस्तित्व नहीं रख सके.... टूट गए. उन्हें अपने पुराने साथियों की खूबियां याद आती रहती और उन स्मृतियों में खोकर कुछ देर पुलकित होते और फिर रिश्तों की टूटन का अहसास होते ही फिर से निराशा के अंधकार में खो जाते.

.....जब प्रेम के रिश्ते टूटते है तो उनकी कांच की तरह आवाज़ नहीं होती बल्क़ि तन, मन और ह्रदय रो उठता है जैसे किसी शायर ने ठीक ही फरमान किया है..

‘......आसमान तो तारा टूटे ते रुग जा पावे

......सीसा टूटे खीड-खीड होवें

......पर जद दिल टूटे सजना

..... ऐन्दे टूट्या आवाज़ ना आवे.

अंतत: वहीं हुआ जिसकी आशंका थी’.

पानी में बगुले को मछलिया मिले तो वो झट से पकड़कर निगल लेना चाहता है उसी प्रकार दोनों प्रेमी एक दुसरे का शिकार हो जाना चाहते थे. घर पहुँचते ही दिन तो जैसे तैसे निकल गया... लेकिन रात काटनी मुश्किल हो गयी. उसी रात से मैस्जस और कोंल्स का सिलसिला शुरू हुआ. दोनों ही हाज़िर जवाब और वाक चतुर थे ही. दोनों में अपने से विपरीत लिंग के व्यक्ति को पटाने के गुण कूट-कूट कर भरे थे. पूरा विश्विद्यालय सीमर के फिलोसोफीकल अंदाज को लोहा मान चुकी थी. इसलिए भी सीमर अपनी सफलता के लिए उमीदों से भरा था.

तीन घंटे गुजरते- गुजरते वह प्रीत के दिमाग पर छा गया था. प्रीत ने जब लम्बी साँस खींचते हुए बोला उफ.... तुम्हारी बातें ....तुमसे तो कोई भी लड़की प्रभावित होकर अपना सब कुछ न्योछावर कर दे. मैं तो तुम्हारी बातोँ से ही इम्प्रेस हो गयी हूँ.

‘.... सीमर के लिए इतना ही सुनना था कि उसने झट से आई लव यू लिख कर प्रपोज कर दिया.’

... जवाब आया .... यार एक प्रोब्लम है.

.... वो क्या ?

.....मैं हा नहीं कर सकती .

....क्यों ?

....कयोंकि अभी कुछ दिन पहले मेरी एक फ्रेंड ने अपने बॉयफ्रेंड के दोस्त से मिलवाया था जो इस वक़्त उसके साथ रिलेशनशिप में है.

मानव जाति भी कितनी स्वार्थी है जब कुछ मिल जाये तो उससे और अधिक मिलने की चाहत उसे दरिद्र और राक्षस बना देती है....

..... अच्छा इसका मतलब ...!

नहीं... नहीं ... तुम गलत मत समझो दरअसल मैं उससे सेटीस्फाईड भी नहीं हूँ. मैं खुद भी उसे छोड़ना चाहती हूँ.

अवाक् और मुरझाया चेहरा करते हुए सीमर ने कहा ‘ ये तुम डिसाइड करो कि तुम्हें उसके साथ रहना है या नहीं. ... लेकिन हा याद रखना अगर मेरे साथ आना है तो उसे पूरी तरह से छोड़ देना, उसके और मेरे साथ डबल माइडड गेम मत खेलना.

.... प्रीत ये ठीक भी नहीं होगा क्योंकि इससे तीन जिन्दगियां बर्बाद होंगी.

..... आशा करता हूँ तुम अपना फाइनल उतर जो ढूंढोगी वो सही ढूंढोगी .

.....रात कट्टी... सुबह की विभोर आई

गुड मोर्निंग का मैसेज भी आया...इधर से भी रिप्लाई में हैव अ नाईस डे का मैसेज गया. धीरे धीरे चैट ने रात वाले महाकाल का रूप धारण कर लिया. बातोँ ही बातोँ में कुछ ऐसी बातें हो गयी सीमर अधीर हो उठा. बेचैन से होते हुए मोबाइल के की-पैड पर उँगलियाँ टिक सी गयी. काफी देर बाद मैसेज भेजा की बुधवार को पूछोगी ?

..... जिन्दगी तुम्हारी है और फैसला भी तुम्हें ही करना है.

... तुम्हारा जो भी जवाब हो दे देना

.....ज्यादा से ज्यादा ना ही तो होगी, कोई बात नहीं हम लवर्स नहीं तो फ्रेंडस बनकर रह लेंगे.

....दस मिनट के लम्बे इंतजार के बाद उधर से जवाब आया आई लव यू टू...

..... अब क्या था !

....जंग जीत लिया.

.... मुहँ पर लाली और नूर छा गया.

....खुशी के मारे नाचने और झूमने लगा’ अब तो एक एक पैसे को तरसने वाली सिम- कार्ड को रिचार्ज होने का सुख मिला. दोनों तरफ सयोगवश एक ही कम्पनी के नम्बर थे. बोनस एयर टाइम मिनट डलवाए गए.....टाक फ्री वाला प्लान लिया गया.

अब दिन क्या रात क्या, सुबह क्या शाम क्या.... सोते-जागते, खाते-पीते,उठते बैठते, टेक्सी बस स्टैंड कही भी कैसी भी परिस्थितयों में हाथ से कान तक और कान से होठों तक बस बातें ही बातें. जहाँ बात करना मना हो जैसे हॉस्पिटल्स या माँ बाप के पास वहाँ उँगलियों की शामत आ जाती थी. चैट पे चैट मैसेज पे मैसेज.... बातें भी बड़ी मज़ेदार.

आज क्या खाया, नहा लिया, आज कितने बजे उठी, क्या पहन रखा है ?....आई लव यू , मिस यू, आ जाओ मेरे पास , मैं तुम्हारे प्यार में मिलकर खो जाना चाहता हूँ..... डूब जाना चाहता हूँ जान.... हम ऐसी जगह चले जहाँ पर केवल हम-तुम हो आदि आदि.

दिन बीतते गए और परीक्षा की घड़ी सिर पर आ धमकी. आता तो दोनों को सब-कुछ था. दुर्भाग्यवश प्रीत लड़की होने के नाते परीक्षा का डर जाहिर करने का मौका न चुकती. लगता कैरिएर की सबसे ज्यादा परवाह करने के लिए ब्रह्मा ने उसकी सृष्टि की हो. एक डर दुसरे को भी डरा देता है. फिर क्या था अपना बेफिक्र और रॉक स्टार बंदा भी डरने लगा था.अब रोज मर्रा की बातों के विषय बदलकर टॉपिक हो गए थे. पंजाब सरकार ने नया क्या किया, कितना आयात किया कितना निर्यात हुआ, नरेंद्र मोदी ने क्या संधियाँ की, सार्क देशों में क्या डील हुई, मोदी सरकार ने क्या नई रणनीति तैयार की, विराट कोहली, बर्तोल्त, ब्रेखत, शेक्सपियर, युवा कवि सम्मेलन किसे मिला, साहित्य अकादमी से २०१३-१४ में कौन कौन छपे, भरतमुनि, इब्राहिम, अलकाजी, अमाल- अल्लाना,किस देश ने किस पर अटैक किया... आदि.... एक-एक दो- दो बजे तक लम्बा डिस्कशन चलने लगा. इसमें कोई शक नहीं था कि दोनों होनहार और पढ़ाकू थे. लेकिन दोनों के पड़ने लिखने में बहुत अंतर था.यही कारण था कि कोर्स से अधिक जानकारी होने पर भी सीमर अच्छे अंक नहीं ला पाता था.जबकि प्रीत टॉप करती थी. चूँकि अब दोनों मिल गए थे इसलिए उनकी भीषण तैयारी के घमासान में जो अमृत मंथन हुआ उससे इन दोनों को ही फायदा हुआ और इनकी रचनात्मकता में वृद्धि हुई. सीमर की टॉपिक पर पकड़ बेमिसाल थी तो प्रीत पॉइंट अच्छे बनाती थी . अब तो रोज ज्ञान अमृत का रस बरसने लगा. ऐसे अमृत बरसते- बरसते पांच बार एग्जाम का रस पान हो गया और अन्तिम रस पान बाकी था. समय भी चार दिन का पर्याप्त था. सब को पता था कि उस अंतिम पेपर में सीमर की बराबरी कोई नहीं कर सकता. चूँकि इसमें सीमर के पसंदीदा राइटर्स के बारे में ही प्रश्न आते थे जिसमे उसे महारथ हासिल था. इसी कारण सीमर ने इन सब पर एक्स्ट्रा में जरूरत से ज्यादा बुक्स पढ़ ली थी.

.....इन दिनों इनका इश्क भी परवान चढ़ने लगा और सपनों की पींगें हवा से बातें करने लगी. इन्होंने अपने प्रेम की तुलना ससी पुनु, हीर- राँझा, रोमियो- जूलियट,और मिर्ज़ा सहबा से कम नहीं की थी. सागर पीने, चाँद से खूबसूरत होने जैसी प्रमाणित बातें भी कर ली थी. इतना ही नहीं बात शादी तक की होने लगी थी....और तो और इतना ही नहीं इतने भीषण प्यार में अविस्मरणीय और आश्चर्यचकित करने वाले फैसले भी किये गए .

.....शादी के बाद मैं जॉब करुंगी .

....दिन भर पूरे घर के कपड़े, बर्तन, खाना, मैं नहीं करुंगी.

....जो मन चाहेगा पहनूंगी.

.....दोस्तों के साथ अकेले बाहर घूमने जाऊँगी, किसी प्रकार की रोंक टोक नहीं सुनूंगी, सास ससुर की कीच- पिच नहीं सुनूंगी.

....सम्भव हुआ तो अलग अलग रहेंगे, जब मन किया बुलाऊँगी....आदि .

यू तो सीमर की कोई शर्त नहीं थी, पर था ये भी गुरु. जोर का झटका उसने धीरे से दिया.

.....मैं तुम्हारी स्वतन्त्रता का समर्थन करता हूँ......पर सीमाएँ तोड़ने का नहीं.

.....मैं तुम्हारे आत्मविश्वास, आत्मसम्मान और उम्मीदों क स्वीकार कर सकता हूँ पर अतिक्रमण को नहीं

.....तुम्हे उन्नति करने और स्वतंत्रता का अहसास कराने के लिए आसमान में खुला छोड़ सकता हूँ .....ताकि तुम मनचाही उडान भरो..... लेकिन ये कबूल नहीं कर सकता उस उडान के सहयात्री परिंदों का भी वरण करो.

ये सब धर्म, संस्कृति, मर्यादा, और आत्मसम्मान तथा गौरव का सवाल है, जिसका तुम्हे भी ख्याल रखना होगा. कुछ वाक युद्ध के साथ दोनों एक दुसरे से सहमत हो गए

........पर कब तक ?

....जब तक समय इनके अंत: करण की कलई नहीं खोलता तब तक....या तब तक, जब ये अपने अपने अन्दर के बदलाव के भ्रम के सत्य को नहीं जान जाते.

पेपर में दो दिन का समय था. रात के दस बजने में अभी बड़ी सुई को छ सों बार चकर लगा कर बहरहा पर पहुँचना था. माँ के बार- बार कहने पर खाने पर टूट पड़ने की योजना बना रहा था कि तभी प्रीत ने अपनी प्रीत भरी तरंगें छोड़ी....फ़ोन बजा. बिना हेल्लो हाय की औपचारिकता के बिना ही एक ऑडर मिला.

....कॉल करो, मेरे फ़ोन में बैलेंस नहीं है.

....प्रीत मेरे पास भी बैलेंस नहीं है. आदी रात होने वाली है और दुकानें भी बंद हो गयी है.

जवाब आया....अच्छा ओके. अभी सोना मत मुझे कुछ पूछना हैं, इस पेपर में मुझे कुछ नहीं आता.

......मेरी फ्रेंड का बॉयफ्रेंड हैं मैंने अपनी फ्रेंड से बात की है वो अपनी बात कोंफेरेंस से करवा देगा. उसके मोबाइल में बहुत बैलेंस रहता है. मैं अभी उसको बोल देती हूँ..... दो तीन मिनट में उसका कॉल आएगा रसीव कर लेना, इतना कहकर फ़ोन काट दिया.

कॉल आने से पहले सीमर पेट में कुछ डाल लेना चाहता था. जैसे ही खाने को बेठा घंटी बज गयी....खाना छोड़ दिया.

....हेल्लो....हेल्लो.

.....उधर से आवाज आई....सीमर ?

....हाँ मैं सीमर ही बोल रहा हूँ.

मैं गज्जन सिंह हूँ.....प्रीत ने कांफोरेंस के लिए कहाँ था.

होल्ड करना.

....ओके .

कोंफेरेंस हुई.

एक घंटे की बात में सिलेबस और परीक्षा के बाहर एक शब्द भी न बोला गया. इस बीच शायद ही ऐसा टॉपिक होगा जो प्रीत ने ना पूछा हो, और शायद ही ऐसा प्रश्न रहा होगा जिसे सीमर ने विस्तारपूर्वक खोलकर प्रीत से चर्चा न की हो. काफी चर्चा और ज्ञानपूंज के बाद गुड नाईट बोल कर फ़ोन काट दिए गए.

शाम की चिडियों की कल्कलाहट में बैठा हुआ मोनो पूर्वदीप्ती में कुछ याद कर रहा हो, और प्रकृति जैसे उस पर खुलकर हस रही हो, छोटी सुई और बड़ी सुई टिक टिक करते हुए समय को बता रही थी, ये समय भी बड़ा अजीब होता है इसी के साथ आदमी और जीवन घटता बढ़ता जाता है और समय सब कुछ पीछे छोड़ जाता है. कल परीक्षा का समय था. और सीमर किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में बैठा था. प्रीत ने तीसरी बार कॉल की थी. अब की बार कॉल रिसीव किया गया. बातचीत पहले भी हो चुकी थी लेकिन प्रीत के पास आज शिकायतों को साम्राज्य था.

....क्या बात हैं....?

...क्यूँ मुहँ लटका रखा है ?

.....परेशानी क्या है तुम्हें ?

.....बताते क्यों नहीं ?

....सुबह से दो बार बात करने की कोशिश की लेकिन तुम्हारे मूढ़ का पता नहीं ?

....कुछ बताओगे भी या नहीं ?

....अच्छा मत बताओ ?

.....ज्यादा पूछ रही हूँ इसलिये भाव बढ़ रहे है.

कुछ देर सन्नाटे के बाद सीमर ने फ़ोन काट दिया. दस मिनट बाद फिर कॉल आई . इस बार सीमर ने भी ह्रदय को कठोर बना लिया था .

....हेल्लो बात नहीं करनी ?

....आगे से आवाज आयी.

....हूँ.... बोलो ...

...क्या हुआ ! बात क्यों नहीं कर रहे !

क्या बात करू, सुन सकोगी तो सुनो....तुमने रुल तोडा है प्रीत, क्या मैं वजह जान सकता हूँ क्यों मेरे साथ ये सब ?

....कौन सा रुल ? क्या कर दिया मैंने ?

....तुमने बोला था न कि अब तुम्हारे एक्स बॉयफ्रेंड से कोई मतलब नहीं हैं. फिर क्यों कोई किसी दुसरे के लिए घंटे भर से मोबाइल का बेलेंस फूंकता है....किसके लिए....किसी स्वार्थ के लिए.....तुम्हारे लिए.

....जान ऐसा कुछ भी नहीं हैं....बात बीच में काट कर सीमर बोला.

तुम्हें पता हैं ना मैं किसी का नाम तक तुम्हारे लब पर नहीं सुन सकता, फिर भी तुमने उससे मेरी बात करवाने से पहले एक बार भी नहीं सोचा की सीमर पर क्या गुजरेगी.

....तुम छोटी सी बात का पहाड़ बना रहे हो.

छोटी बात होगी तुम्हारे लिए. लेकिन मेरे लिए मेरे आत्मसम्मान और स्वाभिमान का प्रश्न हैं. अरे तुम्हे बात ही करनी थी तो एक रात रुक नहीं सकती थी . हम सुबह मिलने वाले थे ना, फिर इतना भी सब्र नहीं था. करना ही था तो घर के फ़ोन से नहीं कर सकती थी.

.... मेरे दिमाग की दही मत करो . खरीद नहीं लिया हैं तुमने मुझे.

....अगर तुम वाकई में कौड़ियों के भाव भी बिकती तो भी नहीं खरीदता मैं. मुझे तो विश्वास नहीं होता कि तुम मुझ से ऐसा धोखा कर सकती हो. मैं जानता हूँ उस बेचारे की कोई गलती नहीं हैं. उसे क्या पता मेरे अलावा एक और भी मैदान में हैं. वह तो अपने को तुम्हारे लिए अकेला समझ रहा होगा, मेरी तरह.

.....सॉरी...

बात सॉरी की नहीं...विश्वास की है. अगर मैं तुम्हारे साथ ऐसा करता तो तुम मुझे माफ़ करती ?

.....तो कर लो ना मेरे साथ ऐसा. मैं बुरा नहीं मानूंगी.

....ऊ..ऊ उच् च कितना मासूम चेहरा और कितनी शातिर. हर कोई तुम्हारी तरह नहीं होता प्रीत. आई ऍम श्यौर की तुमने उसे भी नहीं बताया होगा कि जिससे तुमने बात की है वो मेरा लवर है. तुमने यही बोला होगा.......मेरी क्लास का एक चुतिया भईया टाइप साला पढ़ाकू लड़का हैं. मुझे सिर्फ मतलब लेना है. जैसे तुमने मुझे बताया कि मेरी फ्रेंड का बॉय फ्रेंड कोंफेरेंस करवायेगा.

.....तुमने समझ क्या रखा है मुझे की मैं जब मर्जी जिस मर्जी का बिस्तर गरम करती फिरती हूँ.?

......चिल्लाने से सच्चाई दब नहीं सकती प्रीत. कोई कितना भी भडवा स्वभाव का हो वो भी कभी ये बर्दास्त नहीं करेगा कि उसके साथी के जीवन में कोई दूसरा भी हो. विश्वास न हो तो एक बार उसे बता कर देखो कि तुमने जिससे मेरी कोंफेरेंस करवाई वो मेरा लवर्स हैं, और फिर देखो वो तुम्हारे साथ क्या सलूक करता है.

....पहाड़ में गया गज्जन और तुम भी जाओ, दोनों ही महाचुतिया हो.

.... तुम्हारी सच्चाई ब्यां करने में मुझे दर्द हो रहा है, पर इसलिए कह रहा हूँ ताकि तुम अपने को सुधार लो वरना जिस से भी शादी करोगी उससे एक दो महीनों में तलाक हो जायेगा. कोई अपने बीबी के यारों को बर्दाश्त नहीं करता.

तुम्हारे जैसे भिखारी और तुच्छ सोच वाले से मेरी शादी नहीं होगी. मेरा बाप २५ लाख खर्च करेगा. मेरी शादी में तुमसे लाख गुना ज्यादा अच्छा घर और लड़का मिलेगा मुझे. कुछ देख कर तुम पर मरी थी. मुझे नहीं पता था तुम इतने शक्की इन्सान हो. अच्छा हुआ मेरी शादी से पहले तुमने जहर उगल दिया, जब तुम्हारा अभी ये हॉल है तो शादी के बाद तो तुम मुझे ताने मार- मार के ही मार डालते.

मैं अभी तक उस बेचारे को गलत समझता रहा. लेकिन गलती न उसकी हैं न तुम्हारी. मैं खाम-खाह तुम्हरें बीच में आ गया. प्रीत अब और कोई रास्ता नहीं बचता मैं या वो ?. मैं जानता हूँ वो बहुत अच्छा लड़का है और वो तुम्हें मुझसे ज्यादा खुश रखेगा. अगर तुम उसे भी चुनती हो तो मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा बल्कि ख़ुशी होगी की तुमने एक सही फैसला लिया. हम फिर भी बहुत अच्छे दोस्त बनकर रहेंगें.

मुझे न उससे कोई मतलब हैं और न तुमसे. मुझे किसी से कोई बात नहीं करनी. तुमने मेरी बहुत हेल्प की, मुझे पढ़ाया उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद. तुम्हारा ये उपकार मैं जिन्दगी भर नहीं भूलुंगी

....मैं जानता था तुम उसके लिए मुझे छोड़ सकती हो, पर मेरे लिए उसे नहीं. आखिर वह अब तक तुम्हारे अन्दर जिन्दा है और आज तुम्हारी आवाज़ में वही बोल रहा है.

....सीमर वो मेरा बहुत ख्याल रखता हैं. मैं कही दूर होती हूँ वो गाड़ी से लेने आ जाता हैं. मोबाइल रिचार्ज करवा देता है, पर मैं तुम्हें भी नहीं खोना चाहती.

....अच्छा...सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे, लेकिन डिअर ये २१ वी सदी है यहाँ तो न सांप मरता हैं और न लाठी टूटती हैं. तुम दोनों हाथों में एक- एक लड्डू नहीं रख सकती. तुम परेशान मत होना मैं इस सब के पीछे तुम्हें दोषी नहीं मानता. पर फिर भी तुम मुझे उसके बारे में बता सकती थी. हम दोस्त बने रहते लवर्स न बनते.

......मुझे तुम्हारी दोस्ती नहीं प्यार चाहिए.

.....दो लोगों का प्यार एक साथ ?

....तुम लवर्स हो वो बॉयफ्रेंड बस .

..... दोस्ती के बाद प्यार हो सकता है लेकिन प्यार के बाद दोस्ती कभी नहीं.

.....फ़ाइनल अब क्या करना है....जल्दी बताओ ?

बहुत सिर खा लिया तुमने मेरा....और बहुत तोल लिए तुम्हारे..........

तुम उसके साथ रिलेशनशिप में रहो. मैं एक अच्छे दोस्त की तरह हमेशा तुम्हारे साथ हूँ . कभी मेरी हेल्प की जरूरत पड़े तो बताना हमेशा की तरह जो और जितना होगा तुम्हारे लिए करूँगा.मेरे मन में तुम्हारे लिए मैल नहीं रहेगी. मैं अभी से जो हुआ उसे नियति की इच्छा मानकर तुम्हें अपने मन से माफ़ करने की कोशिश करूँगा. मुझे विश्वास हैं एक दिन समय ये घाव भी भर देगा और मैं तुम्हें माफ़ कर दूँगा .

...तो क्या तुम अब मेरे लवर्स बनकर नहीं रह सकते ?

.....रह सकता हूँ ! पर उसके लिए तुम्हें उसे छोड़ना होगा. मैं जानता हूँ कि ये काम तुम्हारे लिए फिलहाल सम्भव नहीं हैं. हो सकता है तुम्हें मेरे रिलेशन से बाहर जाने का दुःख हो पर विश्वास रखो मैं सही कर रहा हूँ. मेरे साथ तो धोखा हो गया लेकिन मैं उसके और तुम्हारे साथ- साथ अपने को भी धोखे से बाहर करके एक निश्छल जीवन दे रहा हूँ

मैं जानती हूँ वो मेरे साथ हमेशा नहीं रहने वाला....फ्रोड़ हैं. अगर मुझे तुम्हारी बेहद जरुरत होगी तो फिर तुम भी मेरा हाथ नहीं थामोगें.....अब...मैं.....जानती हूँ .

.... ऐसा नहीं हैं, मैं हमेशा साथ हूँ.

......अच्छा तो मेरा साथ मत छोड़ो.

......साथ मैंने नहीं तुमने छोड़ा है प्रीत.....उस दिन जिस दिन कोंफेरेंस पर बात हुई थी .

......दोबारा फ़ोन आया था गज्जन का.....

.....क्या.....?

फ़ोन कट गया.

.....शायद बेलेंस भी खतम हो गया था....और .......रिश्ता भी.....

टी. वी ऑन किया तो संयोगवश दोनों तरफ ‘शीशा’ मूवी का गाना धुन छेड़ रहा था.

....असी दर्द जुदाईया डा ला बेठे......

......असी लब्या यार गवा बेठे.......!

समाप्त

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सुरजीत सिंह वरवाल

डॉ हरी सिंह गौर केंद्रीय विश्विद्यालय, सागर

मध्य प्रदेश, भारत

 

ई मेल – singh.surjeet886@gmail.com

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फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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