गणतंत्र दिवस की कविताएँ

SHARE:

  जसबीर चावला लाल क़ालीन और पड़दादा ''''''''''''''''''''&#...

 

जसबीर चावला


लाल क़ालीन और पड़दादा
'''''''''''''''''''''''''''''''''

मैं शर्मिंदा हूँ आज अपने दादा के पड़दादा पर
मैंने नहीं खोजा उनका नाम
उनके निजी कारनामे
दिलचस्पी नहीं किसी पंडे की बही में
सत्रह सौ सत्तावन प्लासी युद्ध के दिन
तब कहाँ थे मेरे दादा

मीर जाफ़र ही भीतरघाती नहीं था
जगतसेठ भी क़तार में थे
रायदुर्लभ ओम/स्वरूप/मेहताबचंद हैं चंद नाम
अंग्रेज़ों के साथ खड़े थे लाव लश्कर के साथ
जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने देश भी संभाला
तब कहाँ थे मेरे दादा

कहाँ है दर्ज विरोध की आवाज
इतिहास के पन्ने कोरे अधूरे हैं
'राष्ट्रवादी' पडदादे संग संग मूत देते
मुट्ठी भर अंग्रेज़ बह जाते
शर्म आती है उनकी स्वार्थी चुप्पी पर
तब कहाँ थे मेरे दादा

आज मैं भी चुप्पा दादा हूँ
नहीं कर रहा दादागिरी
ईस्ट इंडिया कंपनी बन देश व्यापार राज कर रहा
बिछा रहे लाल क़ालीन दिल्ली के दादा
शायद शर्म से ग़ुस्साए पड़पोते पूँछें
तब कहाँ थे मेरे दादा

// //

000000000000000000000

राजीव आनंद

मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं

मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं
कि पैदा किए जाने का
दंड माँ-बाप को क्यों दिया जाए ?
अगर वे बचे हुए है तो !

उस घर को माँ-बाप के पनाह में
जहाँ बचपन बिता, जवानी पाया
क्यों यातना-घर बना दिया जाए ?
माँ-बाप के लिए

क्यों बेताब रहा जाए
माँ-बाप को जला देने के लिए
मरने से पहले
मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं ?

बूढ़ा असहाय बाप
घिघियाने के सिवा
आततायी बेटे के सामने
और कर भी क्या सकता है ?

जिस हाथों में उसी का लहू
ताकत बन कर दौड़ रहा
उस ताकत का इस्तेमाल आज
बाप को पिटने में क्यों किया जाए ?

मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं

माँ जो अब खाना बमुश्किल खाती है
दे नहीं सकती
उसे जिंदा जला देने की बार-बार
धमकी क्यों दिया जाए ?

मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं

बेटे की आवाज क्यों दहला देती है
माँ-बाप को क्यों नहीं लगती
उस की पहली आवाज सी
जिसे माँ-बाप ने ही सिखाया था उसे

मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं


राजीव आनंद
प्रोफेसर कॉलोनी, न्यू बरंगडा
गिरिडीह-815301
झारखंड
0000000000000000000000

राम शरण महर्जन


१ )    वक्त ही बताते
         **********
कठोर होता ये वक्त
प्यारा भी होता ये वक्त |
 
उमंगों से भरे तो जीवन
रिश्तों को निभाते जब सब
जन्मों से पाया ये निराला सुख
तब तो प्यारा होते ये वक्त |
 
अह्म से जब अन्धे होते
दुनियां डूब मरे सुख तो 'मेरे' को
रिश्ते-नाते क्या चीज है 'मेरे' को
और को दुःख, तड़प, सताना है 'मेरे' को
तब तो कठोर होता है वक्त
ज़िंदा जब थे सब का बद्दुआ लगे
मरा भी जब ये भटकते आत्मा रहे |
 
२ )  जीने की वो अंदाज
      *************
जन्मों का नाता जीवन की वो प्यार थी
प्राणों से बड़ा जीने की वो अंदाज थी |
 
वक्त की पहेली में खोने लगी वो जब से
हँसता-खिलता दुनिया मुर्झाने लगी तब से |
 
सुख क्या है, प्यार क्या है, भूलने लगी अब
सब कुछ होते भी वो सूनापन में जीते अब  |
 
कौन संभालें अह्म के खायी में गिरे उसको
इंसानियत भी छोटे पड़े जीने की अंदाज से |
 
जन्म बड़ा है जन्मों से बड़ा और कुछ है
तन बड़ा है तन से भी बड़ा और कुछ है |
 
३ ) ईश्वर के वरदान से बड़ी
     ***************
जन्म देने औरत माँ नहीं बन सकी
माँ का प्यार ईश्वर के वरदान से बड़ी |
 
दुनिया दारी में उलझते संस्कार ही भूली
सीरियल की औरत की दिमाग आजमायी |
 
गर्भ की सुख रक्त की नाता को दाग लगाती
नयी सिख आगे बढ़ने की ये क्या राह अपनायी |
 
मातृत्व, प्यार सामान होते अपने संतान पे
कहावत बने रहे जीने की ये आज का ढंग से |
 
अपने ही घर अपने ही हाथों बिखरते चले
अपनी ही संतान खून की प्यासे रिश्ते-नाते तोड़े |
 
सुख भी कैसा प्यास भी कैसा कोई न जानता
तन की सुन्दर मन की काली कब बनी कोई न जानता |
 
४ ) दौलत भी क्या चीज है
     ***************
जीवन अपनी अपने ही हाथों बरबाद की
बदला की तड़प में औरों की राहों में चली |
 
क्या कुछ न की अपनी सपना सजाने में
दौलत को चुनी छोड़ी सही-गलत परखने में |
 
दौलत भी क्या चीज है देखने वाले बातें करें
जीना भी क्या जीना है ज़िंदा लाशें सब ने कहे |
 
क्या सोचा हो क्या पाया ये अपनी ही कर्मों से
दिल को तोड़ने से सपनों में भी लगती हाय दुखियों की |
 
५ ) आत्मा की आवाज
     ************
बच्चों से मिले हो जाते बूढ़े भी बच्चे
दिल से पूछे तो उम्र भी वो भूल जाते |
 
खेल देखते खेलप्रेमी खो जाते खेल में
झूमने व हकीकत में होती बड़ी फ़ासले |
 
आत्मा की आवाज बुलंद होती सदा
बल की शक्ति से कभी दवा नहीं सकता |
 
काट न सका बातों को खून पीया जुबां को
पत्थर भी पिघले दर्द दिल की कहर से |
 
दिल धड़क रहे
*********
 
कोहरे ढकें
गाँव हुई अँधेरे
पथिक डरें
आगे-पीछे शून्य है
अपना रास्ता
मालूम नहीं कहाँ
स्वर भी नहीं
कौन सा खाई है ये
दैव ही जानें
दिल धड़क रहे
जीवन भी है
समय का खेल है
कोई न जानें
कब क्या क्या होता है
जड़ ना होते
सब बदलते है
संयम रहें
चले रहे रास्ते पे
डरना मत
कब चूमें मंजिल
दंग रहें आप से |
   0000000000000000

बलजीत सिंह


उल्फत

मैं
अब से पहले
कंदीर-ए-उजास की मानिंद
अपनी खामोशिओं से उपजे
शोर में जलती थी
अब
आँखें रचने लगी हैं
निराकार सपने
ख्वाबों के महीन धागे
अब टूटते नहीं
मानों बन गयी हूँ मैं
अपनी ही ख्वाहिशों का पर्याय
मेरे मन में कैद रिंद आवारगी
ले जाना चाहती हैं मुझे
बहुत दूर उथले बादलों में
जहाँ की बेपनाह ख़ामोशी
मेरी रूह की
इखलास-ए-इर्शना पहचानती है
मैं खोने लगी हूँ
शर्म्म-ए-संसार में
जहाँ मुझसे जन्मे शब्द
खोने लगते हैं
क्षणिक
चिरपरिचित उजास में
मगर
मेरी आवाज़ की मंजिल पर
मेरे अल्फाज़
शायद कभी दस्तक नहीं देंगें
इसलिए डरती हूँ
इस शहजोर ख्वाइश को
इस अजन एहसास को
शायद
तुम
कभी समझ न सको !


000000000000000000

वीरेन्द्र 'सरल'


मैं माटी हिन्दुस्तान की हूँ
मेरे रोम-रोम में है ईश्वर, मैं वाणी वेद-पुराण की हूँ।
इतिहास मेरा गौरवशाली, मैं माटी हिन्दुस्तान की हूँ।।
सागर है मेरे चरणों पर, मस्तक पर हिमालय की चोंटी।
संस्कार मिला है मुझे ऐसा, मैं बाँट के खाती हूँ रोटी।
मेरे कोख में रतनों की खानें, है गोद में नदियों का कलकल।
है हरियाली मेरे आँगन में, आँचल में हरे-भरे जंगल।
मैं जननी सूर, कबीरा और तुलसी, मीरा, रसखान की हूँ।
इतिहास मेरा गौरवशाली, मैं माटी हिन्दुस्तान की हूँ।।
कहते हैं अन्नपूर्णा मुझको, कण-कण मेरा उपजाऊ है।
मेहनत करने वाले मेरे, बेटे हलधर बलदाऊ है।
है धैर्य-शौर्य गहने मेरे और स्वाभिमान श्रृंगार मेरा।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक, है बहुत बड़ा परिवार मेरा।
प्रतिबिंब मैं त्याग-तपस्या की और कथा अमर बलिदान की हूँ।।
दौलत है ईमान मेरा और सद्साहित्य है समृद्धि।
लक्ष्मी है मेरे बाँहों में, है बाजुओं में रिद्धि-सिद्धि।
हर साँस में मेरा रामायण, शिक्षा में गीता ज्ञान की हूँ।।
इतिहास मेरा गौरवशाली मैं माटी हिन्दुस्तान की हूँ।

 

वीर जवान

देश पे मरने वालों की जहां, अमर चिताएं जलती है।
देशभक्ति की खूशबू लेकर वहां हवाएं चलती है।
समर भूमि में देशभक्त के खून जहां पर गिरते हैं।
उस पावन भू को महकाने फूल वहां पर खिलते हैं।
यही फूल जरूरत पड़ने पर बन जाते हैं अंगारे।
मातृभूमि की रक्षा करने फिर धरती पर है आते।
मतृभूमि की रक्षा करने, जो देते हैं जीवन दान।
मरते नहीं अमर होते हैं देश के ऐसे वीर जवान।

नक्सली हमले में देश के लिये मर मिटने वाले जवानों की शहादत को नमन और उन्हें अश्रूपरित श्रद्धाजंली।

 

कविता कवि की वाणी

कभी शोला हूँ, कभी शबनम हूँ, कभी आग कभी मैं पानी हूँ।
तलवार की ताकत है मुझमें, मैं कविता कवि की वाणी हूँ।।
सागर से गहरे भाव भरे, है मुझमें नभ की ऊँचाई।
बेअर्थ नहीं मेरे अर्थों की, है दूर क्षितिज तक लम्बाई।
कब सिमटी हूँ सीमाओं में, है दुनिया भर विस्तार मेरा।
संवेदनशील सृजनशिल्पी , है सच में पहरेदार मेरा।
फूलों की तरह कोमल हूँ मैं, लहरों की मस्त रवानी हूँ।
तलवार की ताकत है मुझमें, मैं कविता कवि की वाणी हूँ।।
हर जोर जुल्म के टक्कर में, हरदम आवाज उठाती हूँ।
भरती हूँ जोश शिराओं में, वीरों का बल बढ़ाती हूँ।
माँ की ममता मेरे भीतर, है करूणा की अश्रुधारा।
अन्याय कभी बर्दाश्त नहीं, मुझे न्याय सदा ही है प्यारा।
दुष्टों के लिए अंगार हूँ मैं, सज्जनों के लिए कल्याणी हूँ।
तलवार की ताकत है मुझमें, मैं कविता कवि की वाणी हूँ।।
इतिहास गवाही है मैंने, मुर्दों को जीवनदान दिया।
पथ दिखलाया पथभ्रष्टों को, जग को अच्छा इंसान दिया।
जो हार चुके थे जीवन से, उनको जीने की दी शक्ति।
कई हृदय शून्य पाषाणों को, मैंने ही दी प्रभु की भक्ति।
मैं हरिशचन्द्र सम सतवादी और कर्ण, दधीचि दानी हूँ।
तलवार की ताकत है मुझमें, मैं कविता कवि की वाणी हूँ।
मैं सदविचार संवेदना हूँ, केवल शब्दों का मेल नहीं।
नवयुग गढ़ना है लक्ष्य मेरा, मैं मनोरंजन य खेल नहीं।
कवि धर्म नहीं निभता जिनसे, दौलत के लिए जो लिखते हैं।
नफरत है मुझको उनसे जो, अन्याय के हाथों बिकते हैं।
मैं ही शिवा, राणाप्रताप और झांसी वाली रानी हूँ।
तलवार की ताकत है मुझमें, मैं कविता कवि की वाणी हूँ।

बेटियां

बेटी गंगा-सी पावन है, बेटी तुलसी है आंगन की।
बेटी धड़कन दिलों का है, बेटी सांसे है जीवन की।
बेटी सृष्टि की जननी है, बेटी श्रृंगार है जग का,
बेटी उल्लास है मन का, बेटी मधुमास मधुबन की।

बेटी करती नहीं मां-बाप से, अधिकार की बातें।
बेटी करती सभी से है, हमेशा प्यार की बातें।
बेटी बोती नहीं हैं बीज नफरत के किसी दिल में,
बेटी शबनम-सी है करती नहीं अंगार की बातें।

बेटी फूलों की डाली है, बेटी पूजा की थाली है।
बेटी लक्ष्मी है, सीता है, बेटी दुर्गा है, काली है।
बेटी है चांद-सी शीतल ,बेटी में तेज सूरज का,
बेटी के ही रौनक से तो होली है दीवाली है।

बेटी फूलों-सी कोमल है, उन्हें अपनी महक दे दो।
बेटी चंचल किरण-सी है, उन्हें अपनी चमक दे दो।
उन्हें मत कोख में मारो ,उन्हें दुनिया में आने दो,
बेटी महकायेगी जग को उन्हें जीने का हक दे दो।


हो यही भावना सबकी

बोये बीज शहीदों ने और हमको मिली फसल है।
मुफ्त में नहीं मिली आजादी बलिदानों का फल है।
कितने शीश कटे और कितनी बही खून की गंगा।
लाखों कुर्बानी के बदले हमको मिला तिरंगा।
आजादी के लिए लड़े जो, दी अपनी कुर्बानी।
नमन आज हम उन्हें करें जो, हुए अमर बलिदानी।
कुर्बानी की गीता पढ़कर, देशभक्ति हम सीखें।
आजादी के कल्पवृक्ष को, तन-मन-धन से सींचे।
आओ शपथ उठायें माटी, तेरा मान रखेंगे।
जान भले ही जाये पर जिन्दा, स्वाभिमान रखेंगे।
अमर तिरंगे झण्डे को हम, झुकने कभी ना देंगे।
आजादी की दिव्य ज्योति को, बुझने कभी ना देंगे।
गणतंत्र के पावन दिन पर, यही कामना सबकी।
प्रगति पथ पर देश बढ़े हो, यही भावना सबकी।

बेटी को भी पढ़ने दो

बेटी वेदों की ऋचाओं की पावन-सी कहानी है।
बेटी मानस के दोहें हैं,बेटी गुरूग्रंथ की वाणी है।
बेटी है नूर आंखों का, बेटी खूशबू है सांसों की,
बेटी बहते हुये दरिया के लहरों की रवानी है।

बेटी सरगम सुरों का है, मधुर संगीत है बेटी।
गुनगुनाये जो मन हर पल इक ऐसा गीत है बेटी।
निराशा के क्षणों में हौसला हरदम बढ़ाती है,
जिन्दगी के हर एक जंग में दिलाती जीत है बेटी।

सपने बुनने दो जीवन के रास्ते स्वयं गढ़ने दो।
मंजिलें तय करने दो, शिखर पर नाम करने दो।
जिगर में हौसला भर दे, उन्हें संस्कार ऐसा दो,
दे दो चाबी सफलता की, बेटियों को भी पढ़ने दो।

वीरेन्द्र'सरल'
बोड़रा ,मगरलोड़
पोष्ट-भोथीडीह
जिला-धमतरी छ ग

 

000000000000000000

पद्मा मिश्रा

आप सभी को गणतंत्र -दिवस की शुभ-कामनाएं
गणतंत्र हमारा ---
बलिदानो की तप्त धरा पर,शोभित है गणतंत्र हमारा,
संघर्षों के उच्च शिखरपर , फिर गूंजा 'जय-हिन्द'का नारा,
भारत माँ के चरणों पर अर्पित है सर्वस्व हमारा ,
राष्ट्र--ध्वजा के तीन रंग में,आदर्शों की पावन धारा ,
युवा सोच हो,सुदृढ़ इरादे,संकल्पों का वैभव सारा,
संघर्षों के उच्च शिखर पर , फिर गूंजा 'जय-हिन्द'का नारा,
अंधियारे को भेद खिलेगा,उम्मीदों का स्वप्निल सूरज,
नवल प्रगति की दिशा गढ़ेगा,जगमग होगा देश हमारा,
लोकतंत्र की धरती ने फिर नई सुबह को आज पुकारा,
संघर्षों के उच्च शिखर पर , फिर गूंजा 'जय-हिन्द'का नारा,
नव हरीतिमा से पुष्पित हो,जीवन का उल्लास ,सहारा ,
सदा सादगी ,सच्चाई में ,करुणा में विश्वास हमारा ,
आगे बढ़ते प्रगति -चक्र से गतिमय हो परिवेश हमारा ,
संघर्षों के उच्च शिखर पर , फिर गूंजा 'जय-हिन्द'का नारा,
 
ये चरण  शिखर की ओर चलें,
ये चरण शिखर की ओर चलें ,
चाहे कितनी घिरें आँधियाँ -
बाधाएं घनघोर पलें -
संग लेकर सपनों की थाती,
हम नए क्षितिज की ओर चलें,
ये चरण शिखर की ओर चलें ,
जग उठे उम्मीदों का सूरज ,
अभिलाषाओं की भोर तले ,
बढ़ चले कदम फिर रुकें नहीं ,
दृढ़ संकल्पों की ज्योति जले,
ये चरण शिखर की ओर चलें ,
हम नवयुग के जागृत प्रहरी,
संघर्षों में भी झुके नहीं,
साहस के आगे नतमस्तक
मुश्किल पथ पर भी थमे नहीं,
आँखों में जीत भरा सपना,
मंजिल की थामे डोर चले ,
ये कदम शिखर की ओर चलें,
भारत की माटी चंदन है !
चन्दन है भारत की माटी,
जहाँ सत्य-अहिंसा कण कण में,
जन -मन का सहगान बनी,
गांधी के पावन सपनों का ,
साकार रूप -प्रतिमान बनी,
उस माटी को शत बार नमन,
सतकर्मों की सुंदर थाती,
चन्दन है भारत की माटी,
जग में बिखरा अँधियारा तम ,
हमने सूरज बन दिशा गढ़ी
जो नानक-गौतम-ईसा के,
उपदेशों की पहचान बनी,
भारत है जीवित भास्कर सम,
यह सिखलाती श्रम की धरती ,
चन्दन है भारत की माटी,

निराला के प्रति,,,
तुम महाप्राण!,तुम विश्व वन्द्य!,
निर्झर बसंत के गान तुम्ही,
गर्वित तुमसे ही मुक्त छंद ,
जग  की करुणा के प्रिय गायक !,
भाषा के हित  अर्पित जीवन,
माँ वाणी के सम्मान तुम्ही,
तुम नील गगन के ''सूर्य-कांत''
छाया की माया में पलती ,
सपनों की भावभरी दुनियां,
गीतों में मधुर तरलता थी,
छंदों में बहती थी खुशियां,
हिंदी-गौरव,-अभिमान तुम्ही !
कोमल भावों के सरल बंध  !
था मुक्त ह्रदय,-संवेदनता,
''दुःख ही जीवन की कथा रही,''
शब्दों में मेह बरसता था,
पीड़ा भी छू न सकी जिसको,
अंतर में स्नेह बिहँसता था,
कविता के थे दिनमान तुम्ही,
तव अभिनन्दन ,हे सृजन -मान!,


 
0000000000000000000000000000

जय प्रकाश भाटिया

गरीब माँ ,
उसकी हाथों की लकीरे मिटती गई,
लोगों के झूठे बर्तन मांज मांज कर,
उसकी छाती पे धूल जमती रही,
लोगों के गंदे घर बुहार बुहार कर,
धोती रही घर घर जाकर मैले कपड़े ,
सर्दियों में होकर गीली ठिठुर ठिठुर कर,
कभी आराम नहीं किया --
जिस से चलता रहे उसका घर ,
पुराने चीथड़ों में भी करती रही गुज़ारा -
यह सोच सोच कर की मेरे बच्चे,
अच्छा पहने, अच्छा खाएं ,
और अच्छी तालीम पाएं--
समय गुजरता गया-- ,
बच्चे पढ़ लिख गए,
बड़े हुए, अपने पैरों पर खड़े हुए,
अच्छी नौकरी में लग गए,
ऐशो आराम की ज़िंदगी बिताने लगे,
पर वह गरीब माँ ,
उसकी हाथों की लकीरे मिट गई,
माँ के इस त्याग से ,
बच्चों की किस्मत की लकीरे भी बदल गई,
और यह क़्या --
उनके दिल भी बदल गये.... और
वह गरीब माँ-
आज भी घर घर जाकर
लोगों के झूठे बर्तन मांजती है,
अपना पेट पालने के लिए. - --
24/01/2015


00000000000000000000

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

अरे कोई तो बतलाओ...****(गीत)
       --------------------
किसने किया श्रृंगार प्रकृति का
     अरे, कोई तो बतलाओ !
  डाल-डाल पर फूल खिले हैं
ठण्डी  सिहरन  देती  वात                     
पात गा रहे गीत व कविता                    
कितने सुहाने दिन और रात
       मादकता मौसम में कैसी ,
       अरे ,कोई तो समझाओ ।

    खेत -खेत में बिखरा सोना
     कौन लुटाये बन दातार
    रसबन्ती, गुणबन्ती देखो
     धरा करे किसकी मनुहार
          रंग-महल सी बनी झोंपड़ी,
          कारण कैसा, समझाओ ।

     स्वागत में किसके ये मन
     खड़ा हुआ है बन के प्रहरी
     उजड़ा-उजड़ा सँवरा फिर से
     बात समझ ना आये गहरी
            मेरे मन की,तेरे मन की,
            गुत्थी अब तो सुलझाओ ।

      भ्रमरों का मधुरिम गुंजन
      और तितली का मँडराना
     चप्पा-चप्पा बरसे अमृत
     नहीं कोई भी बिसराना
            आया है 'ऋतुराज' आज अब,
             स्वागत में कुछ तो गाओ ।
>
        - विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
                   (गीतकार )
    कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,
    स. मा. (राज.)322201


00000000000000000000

मनोज कुमार श्रीवास्तव

मेरा देश आगे बढ़ रहा है,
विकास की सीढ़ी चढ़ रहा है,
हम अज्ञानता के दाग धो रहे हैं,
अब लोग डिजिटल हो रहे हैं,
सब मिलकर बताने वाले हैं,
अब अच्छे दिन आने वाले हैं।
हवा का रूख बता रही है,
जागरूकता तो आ रही है,
विचारों में की स्वच्छता हो रही  है,
कुविचारों की छंटाई हो रही है,
दकियानूसी विचार कतराने वाले हैं,
क्योंकि अच्छे दिन आने वाले हैं।
नवपीढ़ी का साथ निभाएं,
अधिकारों को कर्तव्य सिखाएं,
तो आओ हम सब जोर चलें,
नवभारत की ओर चलें,
सफलता थाल में सजाने वाले हैं,
अब 'अच्छे दिन' आने वाले है।

(मौलिक व अप्रकाशित)
देशभक्ति
क्या तुम्हारी आत्मा में आवाज है?
अपने दुष्कृत्यों पर तुम्हें लाज है?
क्या तुम्हें छोटों से स्नेह है?
क्या परमार्थ तुम्हारा ध्येय है?
क्या तुम्हारी वाणी नर्म है?
क्या मानवता तुम्हारा धर्म है?
क्या गरीबों से दुआएं लेते हो?
क्या असहायों को स्नेह देते हो?
अधिकारों के साथ कर्तव्य निभाते हो?
बड़े तो हो पर बड़प्पन दिखाते हो?
अन्याय देखकर तुम्हारा मन तुम्हें धिक्कारता है?
तुम्हारे अपराध को तुम्हारा हृदय स्वीकारता है?
अपने स्वार्थ की होली क्या तुमने कभी जलायी है?
क्या तुम्हारे विचारों में देश की भलाई है?
अगर इन बातों को सहज ही,
तुझमें स्वीकारने की शक्ति है,
तो मैं भी गर्व से कहता हूं,
ये तुम्हारी सच्ची देशभक्ति है।

मनोज कुमार श्रीवास्तव
शंकरनगर नवागढ़
जिला बेमेतरा
0000000000000000000

अंजली अग्रवाल

मेरी उड़ान
अब मैं भी स्‍कूल जाऊँगी......
अपने सपनों को पंख लगाऊँगी......
जिन्‍दगी को जिन्‍दगी बनाऊँगी......
तोड़ दूँगी में ये झूठी जंजीरों को.....
अब चली मैं उड़ने को......
क्‍या रोकेगा मुझे ये जमाना,
मैं वक्‍त को अपने साथ लेकर चली......
कह देना ऊपर वाले से..........
मैं अपनी तकदीर खुद लिखने चली....
हौसलों से भरी मेरी नाव को किनारे तक मैं लगाऊँगी......
पराया धन को अब किस्‍से कहानी मैं बनाऊँगी......
ढूँढ लिया है मैंने अपने आशियाने को......
चली मैं आसमान छूने को......
बुझी हुई आग थी मैं जिसे चिंगारी मिल गयी.....
अंधकार से भरी इस जिन्‍दगी को रोशनी मिल गयी.....
उठ गयी हूँ मैं ....
खुली आँखें से सपने देखने को....
अपनी कटी पतंग उड़ाने को.....
चली मैं आसमान छूने को......
अपने हौसलों की उडा़न भरने को......

 

00000000000000000000000000

देवेन्द्र सुथार 'बालकवि'


ऊँचा है मस्तक राजस्थान का

वे जौहर वाली धरती है स्वतंत्रता की दीवानी।
टूट गई पर झुकी नहीँ इसकी चट्टानेँ तूफानी॥
जब जब दुश्मन ने ललकारा चमक उठे बरछी भाले।
सर से कफन बाँध कर निकलेँ केसरिया बाने वाले॥

इसके प्राणोँ मेँ ज्वाला है युग व्यापी हुंकार की।
इस धरती का कण कण मानी धनी रही तलवार की॥
गोरा बादल समर भूमि मेँ प्रलय मेघ बन टूटे थे।
काँप उठी थी वसुन्धरा खिलजी के छक्के छूटे थे॥

उधर पद्दिमनी के जौहर ने पानी रखा मान का।
जिससे हिमगिरी सा ऊँचा है मस्तक राजस्थान का॥
राख हुई जलती ज्वाला मेँ कलियाँ जुही गुलाब की।
बिखर गये मोती सारे पर इज्जत मिटी न आब की॥

जब भी सरहद से दुश्मन ने पौरुष को ललकार दी।
तब इस धरती ने सोई तलवारोँ को झंकार दी॥
इसने साँगा को जन्म दिया जिसने दिल्ली तक दहला दी।
जिस दिन बाबर ने ललकारा धरती शोणित ने नहला दी॥

अस्सी घावोँ पर भी साँगा तुमने तलवार नहीँ छोडी।
इस वीर प्रसूता धरती के गौरव की आन नहीँ तोडी॥
कट गया पैर,कट गई भुजा घावोँ से रक्त बह रहा था।
फिर भी राजस्थानी नाहर घावोँ पर घाव सह रहा था॥

वह गंगा का पावन जल था अपनी गति मेँ निर्बाध रहा।
अस्सी घावोँ वाला साँगा अन्तिम क्षण तक आजाद रहा॥
पूछो खूनी चट्टानोँ से क्या कहती है हल्दीघाटी।
सचमुच वीरोँ का चन्दन है जिसकी बलिवेदी की माटी॥

सावन मेँ पर्वत की धारा चट्टानी सीना चीर बही।
उस तरफ प्रतापी पौरुष से मेवाड धरा की लाज रही॥
जिस दिन चेतक की टापोँ से रण का विप्लव आरंभ हुआ।
आजादी के उस दिन से ही दुर्जय नारा प्रारंभ हुआ॥

राणा प्रताप के हाथोँ मेँ जिस दिन अजेय भाला आया।
उस दिन स्वतंत्रता का दीपक जल प्राणोँ मेँ ज्वाला लाया॥
तोपेँ गोले बरसाती थीँ,होता था शोणित से तर्पण।
राणा प्रलयंकर शंकर से करते रण मेँ ताण्डव नर्तन॥

आखिर मेँ वह क्षण भी आया घिर गये वैरियोँ से राणा।
कोहराम मच गया सेना मेँ, दौडो मरमिटो घिरे राणा॥
बस उसी समय राजस्थानी धरती का मतवाला आया।
वह मूर्तिमन्त कुर्बानी सा ज्वाला बनकर झाला आया॥

अपने ही शोणित से रक्षा की थी उस दिन बलिदान ने।
जब जब जौहर का ज्वार जगा घुटने टेके तूफान ने॥
लिखे खून से इतिहासोँ के पन्ने राजस्थान ने।
हर हर महादेव का स्वर दुहराया हर चट्टान ने॥

-देवेन्द्र सुथार 'बालकवि'
गांधी चौक, आतमणावास, बागरा,जिला- जालौर,राजस्थान 343025

ई मेल-devendrasuthar196@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: गणतंत्र दिवस की कविताएँ
गणतंत्र दिवस की कविताएँ
http://lh5.ggpht.com/-HQ6OT2pc3xo/VMSQz7JNauI/AAAAAAAAdQs/vSurrtLgMmA/image_thumb.png?imgmax=800
http://lh5.ggpht.com/-HQ6OT2pc3xo/VMSQz7JNauI/AAAAAAAAdQs/vSurrtLgMmA/s72-c/image_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/01/blog-post_96.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/01/blog-post_96.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content