वीरेन्द्र 'सरल' का व्यंग्य - स्वार्थ का वायरस

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देवताओं का दरबार लगा था। सभी देवता डरे-सहमे थे क्योंकि भगवान आज बेहद गुस्से में थे, उनका चेहरा तमतमाया हुआ था और उनकी आँखों से अंगारे बरस रह...


देवताओं का दरबार लगा था। सभी देवता डरे-सहमे थे क्योंकि भगवान आज बेहद गुस्से में थे, उनका चेहरा तमतमाया हुआ था और उनकी आँखों से अंगारे बरस रहे थे। हमेशा सौम्य और शांत रहकर मंद-मंद मुस्कुराते रहने वाले प्रभु का क्रोध किसी की समझ में नहीं आ रहा था। डर के मारे सभी देवता थर-थर काँप रहे थे। प्रभु के भय के कारण आज वे नगाड़ा बजाना और फूल बरसाना भी भूल गये थे, जिसे वे भगवान के हर बात पर बजाते और बरसाते रहते थे। सबसे ज्यादा ब्रह्मा जी की हालत खराब थी क्योंकि भगवान ने आज उन्हें ही तलब किया था। उनका चेहरा किसी सुपर डिटरर्जेन्ट से धुला जैसा एकदम सफेद पड़ गया था। वे सोच रहे थे कि पता नहीं आज क्या होने वाला है। ब्रह्मा जी उनसे नजर नहीं मिला पा रहे थे। उनका सिर झुका हुआ था और हाथ त्राहीमाम् की मुद्रा में जुड़े हुए थे। भगवान ने कहा-''क्यों ब्रह्मा जी, हमने आप को सृष्टि निर्माण का ठेका दिया है। इसका ये मतलब तो नहीं कि आप कुछ भी गलत-सलत बना दें। आजकल आप की काफी शिकायतें मिल रही है। क्या आप भी किसी स्वार्थी ठेकेदार की तरह घटिया साम्रगी से सृष्टि निर्माण कर रहे हैं। कहीं  इतने भूस्खलन हो रहे हैं जितना खाद्य पदार्थों में मिलावट। कहीं बादल ऐसे फट रहे हैं जितना नेताओं के ऊल-जूलूल बयान। यदि इन सबको छोड़ भी दें तो मनुष्य के निर्माण में भी आप घोर लापरवाही बरत रहे हैं। किसी की खोपड़ी से दिमाग वैसे ही गायब है जैसे घोटाले के बाद कार्यालय से फाइल। किसी के सीने से दिल वैसे ही गायब है जैसे सरकारी निर्माण कार्यो में गुणवत्ता। किसी के पेट से गर्भाशय वैसे ही गायब है जैसे हिरोइन के बदन से कपड़े और किसी कि किडनी वैसे ही लापता है जैसे पुलिस की पकड़ से रसूखदार अपराधी। एक गलती हो तो बताऊँ, यहाँ तो हजारों गलतियाँ हैं, आखिर मैं कहाँ तक बर्दाश्त करूँ। आज तो आपको जवाब देना ही पड़ेगा, आखिर ये सब आप किसके इशारे पर कर रहे हैं और किससे कमीशन ले रहे हैं या अपने गुनाहों को छिपाने के लिए किसको कमीशन दे रहे हैं


प्रभु की बातें सुनकर ब्रह्मा जी को काटो तो खून नहीं, वे हतप्रभ थे। उनकी आँखों में आँसू भर आए। उन्होंने कहा-''प्रभु आप ये क्या कह रहे हैं मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। आप देववाणी को छोडकर ये किस भाषा में गिटिर-पिटिर कर रहे हैं? कमीशन किस चिड़िया को कहते हैं, इसे जानना तो दूर इसका नाम आज पहली बार आपके मुँह से सुन रहा हूँ। अपने आप पर इतना गंभीर आरोप सहकर भी पता नहीं मैं कैसे जिन्दा हूँ, अपनी बात स्पष्ट करने की कृपा करें प्रभु वरना मुझे सचमुच अटैक आ जायेगा।
भगवान ने 'लो कर लो बात' वाले अंदाज में व्यंग्य से मुस्कुराते हुये कहा-'' अच्छा! मै जो कह रहा हूँ वह गिटिर-पिटिर है और आप जो अटैक कह रहे है वह क्या है? ये तो वही बात हुई कि सम्मान और पुरूस्कार पाने के लिए सत्ता प्रतिष्ठान के कदमों पर नाक रगड़ने वाले ही नये लोगों से कहे कि हमें सत्ता प्रतिष्ठान से दूर रहना चाहिए। खुद तो हिंग्लिश में बात कर रहे हैं और आपको मेरी बात समझ में नहीं आ रही है। मेरी बात बिल्कुल स्पष्ट ही है। आज आदमी के भीतर मानवीय मूल्य रहे नहीं, दया भाव का तो नामोनिशन नहीं है, आँखे अपने और अपनों के सिवाय किसी को देखती ही नहीं मतलब आप मनुष्य के भीतर दिल लगाना भूल जा रहे हैं। बहुत से लोग बिना अपने विवेक का उपयोग किये ढोंगियों के झांसे में आकर बरबाद हो रहे हैं मतलब साफ है खोपड़ी में दिमाग ही नहीं है। बहुत से लोग किसी के आगे-पीछे बस दुम ही हिलाए जा रहे हैं। सही-गलत का भेद नहीं कर पा रहे हैं। किसी की पोष्टमार्टम रिपोर्ट से पता चल रहा है कि उसकी एक किडनी ही गायब है। किसी जीव को यहाँ से किसी गर्भ में प्रवेश करके जन्म लेने के लिए भेजा जाता है तो पता चलता है कि जिसके गर्भ के भीतर उसके लिए स्थान नियत किया गया है वह गर्भाशय ही गायब है।


प्रभु के सामने जुबान चलाने की हिम्मत ब्रह्मा जी की नहीं हो रही थी मगर पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा था। इसलिए उन्होंने हिम्मत करते हुए दोनों हाथ जोड़कर पूर्ण विन्रमता से कहा-''प्रभु! बिना किसी ठोस सबूत के आप, मुझ पर इतना गंभीर आरोप और मेरे निर्माण पर  प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं, ये तो विधि सम्मत बातें नहीं हुई। हम कोई नेता तो हैं नहीं जो मर्यादाहीन होकर स्वर्ग की अस्मिता को ही दाँव पर लगा दें, प्रभु आप इन आरोपों पर एक बार पुनः विचार कर लें तो बड़ी कृपा होगी।''
प्रभु बोले-''अच्छा तो आपको इन आरोपों की पुष्टि के लिए सबूत चाहिए।'' फिर प्रभु ने एक देवता को इशारा किया। वह देवता तुरन्त आठ-दस आत्माओं को सामने ला खड़ा किया । सभी आत्माएं चुनाव जीतने वाले किसी नेता से चुनावी वादों की याद दिलाने गये और निराश होकर लौटे मतदाताओं की तरह सिर झुकाकर पंक्तिबद्ध खड़ी हो गईं।
उन आत्माओं को देखकर ब्रह्मा जी घोर आश्चर्य में पड़ गये। उन्हें याद आया अरे! इन्हें तो मैंने सुशिक्षित और कुलीन परिवारों में जन्म लेने के लिए पूरा पता बताकर भेजा था तो फिर ये यहाँ इस हालत में कैसे आ गईं, कहीं पता को भूल तो नहीं गई थीं। ब्रह्मा जी उन्हें प्रश्नवाचक नजरों से देखकर सोचने लगे, कहीं वहाँ परिवार नियोजन के कारण 'नो एन्ट्री' या हाऊसफुल का बोर्ड तो नहीं लगा था। ब्रह्मा जी तुरन्त अपनी फाइल चेक करने लगे। फाइल में ऐसी गलती बिलकुल नहीं दिखी, सबकुछ ठीक-ठाक है फिर गड़बड़ कहाँ हो गई। सब गर्भाशय रिश्वत के रूपये की तरह कहाँ गायब हो गये?


ब्रह्मा जी असहाय नजरों से प्रभु को देखने लगे। प्रभु ने ध्यान नहीं दिया और दूसरे देवता को इशारा किया। दूसरा देवता एक लहूलुहान कन्या भ्रूण को सामने लाकर खड़ा कर गया। उस आत्मा की दशा देख ब्रह्मा जी से रहा नहीं गया। वे रो पड़े और उस आत्मा से पूछ बैठे-''क्या हुआ बेटी, तुम्हारी ऐसी दशा किसने की, मैंने तो तुम्हारे लिए एक सुसभ्य परिवार की स्त्री के गर्भाशय को सुरक्षित किया था। क्या वहाँ भी गर्भाशय नहीं था?


कन्या भ्रूण की आत्मा ने कहा-''वहाँ गर्भाशय तो था, आपके कहे अनुसार मैंने वहाँ प्रवेश भी कर लिया था। मैं माँ के गर्भ में पलने-बढ़ने लगी थी। मुझे उस परिवार का वातावरण बड़ा अच्छा लगता था। मेरे होने वाले पिता रोज सुबह-शाम देवी माँ की आरती गाया करते थे। देवी माँ की पूजा-उपासना करते थे। सबको 'यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता' का सीख भी देते थे और बेटियों की प्रशंसा में कसीदे भी गढ़ते रहते थे। बेटी को लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती का अवतार बताते थे। सार्वजनिक मंचों पर सबको बेटी बचाओ का पाठ पढ़ाते थे। मैं यह सोचकर बड़ी खुश थी कि ऐसे परिवार में जन्म लेकर मैं धन्य हो जाऊँगी। खूब-पढ़ लिखकर माता-पिता और कुल का नाम रोशन करूँगी। पर पता नहीं एक दिन क्या हुआ, मेरे होने वाले पिता मेरी होने वाली माँ को डाँटने लगे। पता नहीं माँ किस बात के लिए ना-नुकुर करती रही। रात दिन रोती-सिसकती रही। एक दिन मेरी होने वाली माँ को जबरदस्ती एक अस्पताल में ले जाया गया। उसके बाद क्या हुआ मैं नहीं जानती, मेरा शरीर अपने आप गलने लगा और मैं जन्म लेने से पहले ही यहाँ लौट आई।'' इतना बताकर कन्याभ्रूण की आत्मा दहाड़े मार कर रो पड़ी।


ये सब सुनकर ब्रह्मा जी आवाक रह गये। दिल रोने लगा, कुछ कहना चाहते थे पर मुँह से बोल नहीं फूट पा रहे थे। बस कानों में एक गीत गूँज रहा था 'देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान'।


ब्रह्मा जी को निःस्तब्ध देख प्रभु ने कहा, क्या अब भी आपको कोई और सबूत चाहिए?  क्या मुझे इस गड़बड़ी की जाँच किसी जाँच कमीशन से कराना पड़ेगा? ब्रह्मा जी ने हाथ जोड़कर कहा-'' नहीं-नहीं प्रभु! मुझे और शर्मिन्दा न कीजिए। पर मुझे समझ में नहीं आ रहा है, मैं तो अपने होम प्रोडक्शन के सारे प्रोडेक्ट को कई बार ठोंक-बजाकर चेक करता हूँ तभी किसी मॉडल को मृत्युलोक के बाजार में लांच करता हूँ। विज्ञापन के जरिए अपने घटिया प्रोडेक्ट को आकर्षक रेपर में लपेटकर उपभोक्ताओं को बेच देने का हुनर मुझे नहीं आता। अब मैं स्वयं अपने इंजिनियरों से एक बार पूरा सिस्टम चेक कराता हूँ फिर आपको रिपोर्ट सौंपता हूँ कि आखिर मुझसे गलतियाँ कहाँ हो रही है, मेरे निर्माण में कहाँ कमी रह जाती है। मुझे कुछ समय दीजिए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि समय पर विस्तृत जानकारी आप तक पहुँचा दूँगा।''


इंजिनियर का नाम सुनकर भगवान का पारा महंगाई की तरह चढ़ गया। प्रभु बोले-''मेरे सामने किसी इंजीनियर का नाम मत लीजिए। मैं उनकी महानता जानता हूँ। वे ऐसे उत्तम निर्माण कराते हैं कि मुझे सर्वत्र 'तम' ही नजर आता है। लोकार्पण से पहले ही सरकारी भवनों से दरारें लुका-छिपी का खेल खेलने लगती है। भवन का ढाँचा ब्लडप्रेशर का मरीज हो जाता है जो जरा-सी आहट से थराथरा उठता है। साल-दो साल में ही पुल-पुलिया को लकवा मार जाता है, वे किसी काम की नहीं रहती, बाढ़ के पानी में बहकर अपना इतिश्री कर बैठती है। पहिली ही बारिश में चमचमाती सड़के चेचक और कुष्ठ के मरीजों की तरह नजर आने लगती है और----।''


ब्रह्मा जी ने प्रभु को रोकते हुए कहा-'' प्रभु गुस्सा थूक दीजिए और शांत रहिए। मैं मृत्यु लोक की नहीं, अपने देव लोक के इंजिनियरों की बात कर रहा हूँ जो मेरे साथ कंधा से कंधा मिलाकर मेरे निर्माण में मेरी सहायता करते हैं।''


प्रभु 'तब तो ठीक है' के अंदाज में जरा शांत हुए और 'उन पर जरा ध्यान रखना' के स्टाइल में ब्रह्माजी की ओर देखने लगे। इस तरह दरबार का निर्धारित समय समाप्त हुआ, दरबार समाप्त होते ही सारे देवता तुरन्त अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर अपने लोकों की ओर कूच कर गए।


ब्रह्मा जी भी अपने लोक में लौट आये थे पर उनके चेहरे पर चिन्ता की लकीरें स्पष्ट दिखलाई पड़ रही थी, पेशानी पर बल पड़े थे। उन्होंने तुरन्त अपने निर्माण सहयोगियों और विशेषज्ञों को तलब किया। सूचना मिलते ही सारे सहायक वहाँ उपस्थित हो गए और ब्रह्मा जी से उसकी परेशानी का कारण पूछने लगे। ब्रह्मा जी उन्हें देवताओं के दरबार में आज की कार्यवाही का विस्तृत ब्यौरा देने लगे। प्रभु के क्रोध के बारे में सुनकर सहायकों की धड़कने धरती पर भूकम्प के झटके समान बढ़ने लगी। अन्त में एक प्रमुख निर्माण सहायक ने कहा-'' अब क्या करे सर?''


ब्रह्मा जी ने कहा-''घबराने से काम नहीं चलेगा। पूरा सिस्टम एक बार ठीक से चेक करो, सृष्टि की एक-एक कलपुर्जे का सूक्ष्मता से निरीक्षण करो, पता लगाओ कि गड़बड़ी कहाँ हो रही है। अपनी सारी ताकत इस काम के लिए झोंक दो, सारे विशेषज्ञों को काम पर लगा दो।'' ओ के सर कहते हुए सारे सहायक वहाँ से निकल आए और कमर कसकर काम पर जुट गये।
सारे विशेषज्ञ और निर्माण सहायक रात-दिन काम पर जुटे रहे पर परिणाम सिफर ही रहा, कहीं कोई गड़बड़ी पकड़ में नहीं आई, सब कुछ ठीक-ठाक ही था। अब वे भी चिन्ता में पड़ गये। आपस में सबकी नजरे ऐसे मिली जैसे पूछ रही हों 'अब क्या करे?' वे तुरन्त ब्रह्मा जी की ओर दौड़ पड़े, पलक झपकते ही सबके सब ब्रह्मा जी के सामने थे।
प्रमुख सृष्टि निर्माण सहायक ने कहा-''सर! सिस्टम में तो कहीं कोई गड़बड़ी नजर नहीं आ रही है। हमने पूरा सिस्टम खंगाल डाला पर गड़बड़ी का कुछ भी कारण समझ में नहीं आया, अब क्या करें?''
ब्रह्मा जी सिर पकड़ कर बैठ गये फिर कुछ समय बाद बेचैनी से चहलकदमी करने लगे। चेहरे पर निराशा के बादल छा गये और आँखों में प्रभु के कोप का खौप मंडराने लगा। वे मन ही मन बुदबुदाने लगे 'हे भगवान! अब क्या होगा?' इस समस्या के निदान के लिए फिर से अपना सिर खपाने लगे। अचानक उनकी आँखों में चमक आ गई और वे खुशी से उछल पड़े।
ब्रह्मा जी ने निर्माण सहायक से कहा-''क्या तुम संजय को जानते हो?''
''कौन संजय सर! यहाँ तो लाखों संजय है, आप किस संजय की बात कर रहे हैं।''


''अरे! मैं महाभारत वाले उसी संजय की बात कर रहा हूँ जिसके पास दिव्यदृष्टि थी जो धृतराष्ट को महाभारत युद्ध का आँखों देखा हाल सुनाया करते थे। यदि उसकी आत्मा का पता चल गया तो समझो हमारा काम बन गया, हमारी जान बच गई। उसकी दिव्यदृष्टि से सृष्टि की कोई भी गड़बड़ी छिपी नहीं रह सकती। यह सुनकर सारे सहायक खुशी से वैसे ही उछल पड़े जैसे किसी घूसखोर को रिश्वत की मोटी रकम मिल गई हो।


एक निर्माण सहायक ने कहा-''सर! मगर यहाँ इतनी आत्माओं के बीच संजय की आत्मा का पता लगाना तो किसी भ्रष्ट नेता में ईमानदारी और किसी घूसखोर अधिकारी में कर्तव्यनिष्ठा ढूँढने से भी ज्यादा कठिन है।''
ब्रह्मा जी कुछ सोचकर बोले-''तुम्हारी बात बिल्कुल सही है। अच्छा तुम एक काम करो, धर्मराज जी को फोन करो, अभी वे ऑफिस में ही होंगे। उनसे कहना कि चित्रगुप्त से संजय की आत्मा का पता लगाकर मुझे सूचित करे।'' सहायक तुरन्त धर्मराज जी का नम्बर मिलाकर फोन डायल किया और ब्रह्मा जी का आदेश सुनाकर अपने काम पर लग गया।
कुछ समय बाद उसके मोबाइल का रिंगटोन बजा। फोन धर्मराज जी के कार्यालय से ही आया था। उसने धर्मराज जी से बातचीत की और खुशी से नाचने लगा क्योंकि संजय की आत्मा का पता चल चुका था। वह तुरन्त कुछ विशेषज्ञों को लेकर संजय की आत्मा को ससम्मान लाने के लिए दौड़ पड़ा।


वे स्वर्ग के सिविल लाइन की एक कालोनी के एक बंगले पर पहुँचे। उन्हें वहाँ एक बूढ़ा आदमी अखबार पढ़कर रोते हुए मिला। बाजू वाले एक सज्जन से पूछने पर पता चला कि वे  जब से यहाँ आये हैं तब से बस उसका यही काम है। अखबार और टी वी के समाचारों को पढ़ना-सुनना और दिन-रात रोते रहना। मुस्कुराते भी हैं तो रोते हुए, शायद इन्होंने रोने का ठेका लिया है य इन्हें रोने की ड्यूटी मिली है।
एक निर्माण सहायक ने उनसे कहा-''संजय सर! ब्रह्मा जी ने आपको याद किया है, हम आपको लेने आये हैं। हमारे साथ कुछ समय के लिए ब्रह्मा कार्यालय अर्थात 'सृष्टि एवं संसार विकास विभाग' चलें तो बड़ी कृपा होगी।


''क्या काम आ गया है भाई, इस अकिंचन को ब्रह्मा जी ने क्यों याद किया है''
''ये तो हमें पता नहीं, पर कह रहे थे कि संजय जी से मिलने का जी चाह रहा है, बहुत दिनों से उनसे मुलाकात नहीं हो पायी है।''
''ऐसी बात है तो फिर चलो, मुझे क्या आपत्ति है भाई।''
निर्माण सहायक और विशेषज्ञों की टीम ने संजय जी की आत्मा को ब्रह्मा जी के पास ले आए।
अभिवादन के बाद संजय की आत्मा ने कहा-''क्या बात है देव, आपने मुझे कैसे याद किया है?''


ब्रह्मा जी ने कहा-'' अब तो बस आपका ही आसरा रह गया है संजय! मैंने आपको एक विशेष प्रयोजन से यहाँ बुलवाया है। पता नहीं मेरे सृष्टि निर्माण में कहाँ कमी रह जाती है। मेरे तकनीशियन और इंजीनियर कुछ भी नहीं समझ पा रहे हैं पर गड़बड़ी बहुत हो रही है। प्रभु मुझ पर बहुत कुपित हैं। इस मुसीबत से अब आप ही मुझे उबार सकते हैं। आपके पास दिव्यदृष्टि है, आप उससे मेरी सृष्टि को देखकर बतायें कि मेरे निर्माण में क्या कमी रह जाती है। वैसे, अभी आपकी दिव्य दृष्टि ठीक से काम तो कर रही है न?''
संजय की आत्मा ने कहा-'' हाँ देव! आपकी कृपा है, यदि नेत्र शिविर में जाकर ऑपरेशन कराने का जोखिम उठाता तो शायद आपकी दी हुई यह नियामत हमेशा के लिए खो बैठता। डॉक्टरों की दवाइयों के असर से बहुत दिनों तक आंखों पर धुंधलापन छाया रहा पर अब ठीक है। आपके आदेश पालन करने की कोशिश करता हूँ , शायद कोई गड़बड़ी पकड़ में आ जाये। आप सबको समझा दें जब मैं ध्यानमग्न होकर बैठ जाऊँ तो कोई मुझे डिस्टर्ब न करें।'' इतना कहकर वे ध्यानमग्न हो गये।


वे बहुत समय तक ध्यानस्थ रहे। ध्यान समाप्त होने के बाद संजय फूट-फूटकर रो पड़े। वहाँ उपस्थित सारे लोग घबरा गये। निर्माण सहायक और विशेषज्ञ सोचने लगे कि कहीं इन्हें रोने का दौरा तो नहीं पड़ गया। ब्रह्मा जी ने पूछा-'' क्या बात है संजय आप इस तरह नानस्टॉप क्यों रोये जा रहे हैं?''


संजय ने कहा-'' देव! ये पूछो कि क्या नहीं हुआ? अब रोने के सिवाय हमारे पास बचा ही क्या है? आपकी और मेरी चिन्ता लगभग एक ही है। मनुष्य के दिल में एक खतरनाक वायरस का संक्रमण हुआ है। सारी गड़बड़ी का कारण यही वायरस है प्रभु।'' विस्मित होकर सारे लोग संजय का मुँह ताकने लगे। सब बहुत कौतूहल से संजय की बातें ध्यान से सुनने लगे।
संजय आगे बोला-'' इस खतरनाक वायरस का संक्रमण मनुष्य के हृदय में होता है, यह सबसे पहले हृदय की संवेदना बनाने वाली ग्रंथि पर हमला करता है। जिससे संवेदना ग्रंथि नष्ट हो जाती है और हृदय की संवेदनाएं सूखने लगती है तथा दिल पत्थर में तब्दील होने लगता है। फिर दिमाग का विवेक समाप्त हो जाता है और मनुष्य आँखों रहते अंधा हो जाता है, उसे दुनिया में अपने और अपनो के सिवाय और कुछ भी नहीं दिखता। यह बहुत तेजी से फैलने वाला वायरस है। आज हर मनुष्य के हृदय में इसका संक्रमण वैसे ही भयानक ढंग से हो गया है जैसे धर्म पर ढोंग और पाखंड का। यह वायरस इतना सूक्ष्म है कि इसे किसी भी अत्याधुनिक वैज्ञानिक यंत्रों की सहायता से भी नहीं देखा जा सकता। इस मनुष्यताघाती वायरस को 'स्वार्थ के वायरस' के नाम से जाना जाता है देव'' 
यह सुनकर सबके मुँह से समवेत स्वर में निकला 'बाप रे बाप!'
ब्रह्मा जी ने कहा-''संजय क्या इसे नष्ट करने का कोई उपाय है या यह लाइलाज है?''


संजय ने जवाब दिया-''देव! इसका इलाज स्वयं मनुष्य के हाथ में ही है, किसी दूसरे के हाथ में नहीं। यदि मनुष्य 'जियो और जीने दो' के मूल मंत्र को आत्मसात कर ले। पर दुःख कातरता का आभूषण धारण कर ले और 'सियाराम मय सब जग जानि' के भाव को अपने जीवन में चरितार्थ कर ले तो इस वायरस से स्वयं को बचाया जा सकता है। वरना--
स्वार्थ के वायरस की भयावहता जान कर ब्रह्मा जी सहित सृष्टि निर्माण के सारे सहायक और विशेषज्ञ चिन्ता के अथाह सागर में डूब गये कि अब प्रभु को क्या जवाब देंगे?


वीरेन्द्र 'सरल'
बोड़रा (मगरलोड़)
पोष्ट-भोथीडीह
व्हाया-मगरलोड़
जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)
saralvirendra@rediffmail.com

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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: वीरेन्द्र 'सरल' का व्यंग्य - स्वार्थ का वायरस
वीरेन्द्र 'सरल' का व्यंग्य - स्वार्थ का वायरस
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