इस्माइल खान की कहानी - अंधेरा

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5 - अन्धेरा रघु बिजली के हाईटेन्शन लाइन के टावर पर चढ़ गया है, जो उसके गाँव के करीब ही हैं। वह तो और ऊपर चला जाता, ठीक तारों के पास अगर मंगल...

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5 - अन्धेरा
रघु बिजली के हाईटेन्शन लाइन के टावर पर चढ़ गया है, जो उसके गाँव के करीब ही हैं। वह तो और ऊपर चला जाता, ठीक तारों के पास अगर मंगल उसे न देख लेता जो अपने जंगल से चराकर घर लौटा रहा था। उसने शोर मचाया तो सारा गाँव वहाँ जमा हो गया और रघु को नीचे उतारने के जतन में सब अपनी अपनी अक्ल का इस्तेमाल करने लगे। जब सारी कोशिशें बेकार हो गयीं तो नत्था के बिजली आफिस में काम करता था। जब किसी तरह उसने रघु को टावर से नीचे उतार लिया तो दो थप्पड़ उसे रसीद किये और बोला - अब ये हाईटेन्शन के तार भी काटेगा साले .........। डी.पी. से बिजली बन्द कर सर्विस लाइन के बहुत तार काट के बेच चुका। इसके वोल्टेज की खबर नहीं है तुझे, न यहाँ से इसका करन्ट बन्द किया जा सकता है। मरने चढ़ा था साला ..................। अपने साथ - साथ हम सब को भी परेशान करता। एक और धौल उसकी पीठ पर जमा लाईनमेन बोला-सम्भालों साले को नहीं तो ले जाता हूं थाने।
जाने दो, छोड़ो भी अब, तुम तो जानते हो भय्या ये पागल हो चुका है- किसी ने मामले को रफादफा करते हुए कहा। रघु मुजरिमों की तरह घुटनों में अपना सर घुसाऐ उकडु बैठा रहा। लाईनमेन की सारी मार ओर सारी जिल्लत को बर्दाश्त करते हुए, वह एक शब्द भी नहीं बोला। जब किसी ने उसका हाथ खींच कर उठाया फिर ढकेला गाँव की ओर तो उसकी मैली चीथड़े हुई कमीज की बाँह और फट गई चऱर................ से। वह अपना सफेद पायज़ामा जो मैल से काला नज़र आता था मिट्टी में लथेड़ता हुआ अपमानित गाँव की ओर चला गया।


दो साल से रघु का यह हाल हो गया है। पागलों की तरह गाँव में घूमता हैं, कोई खाना दे देता है तो खा लेता है वर्ना भूखा गाँव की देवी माता की ओटली पर सो जाता है जो घने पीपल से ढकी हुई है। इतना मैला कुचैला कि घनी छाँव में उसका अस्तित्व ही दिखाई न देता। यह माता की ओटली गाँव की चौपाल की तरह भी जहाँ गाँव की सारी अच्छी बुरी खबरें लोगों की जबान पर सवार हो पहुँचती थी।
दो साल पहले रघु एक गबरू जवान था। गाँव के ही तीन चार पट्ठों से दोस्ती कर रखी थी। दारू, गाँजे, चरस की लत सबको थी। उनमें रूसी इस काम में माहिर था कि नशे की चीजों का इंतजाम करता था। इसके लिये पैसों की जरूरत पूरी करने के लिए कुछ दिनों से इन्होंने बिजली के तार काट कर बेचने का काम शुरू किया था। गाँव छोटा था, जल्द ही रात को लोग घरों में दुबक जाते। गाँव के बाहर दो खम्बों पर बिजली का ट्रान्सफार्मर रखा था और डी.पी. स्वीच लगे थे, वहीं से फ्यूज की पेटी खोल बिजली बन्द कर देते फिर एक खम्बे से दूसरे, दूसरे से तीसरे और फिर कई मीटर तार काट कर बन्डल बनाते और शहर में ठिकाने लगा आते।

गाँव में बिजली की आँख मिचौली तो चलती ही रहती है। कई - कई घन्टे बिजली गुल रहती तो रघु और उसके दोस्तो की चोरी का पता ही न चलता। दूसरे तीसरे दिन चार मील जाकर कस्बे के बिजली आफिस में शिकायत दर्ज कराते और लाईनमेन बिजली दुरूस्त करने आता तब लाइन कटने की बात पता चलती। तब तक ये लोग माल ठिकाने लगा चुके होते। गाँव से बाहर छुई मिट्टी की खदान पर जब रात का सन्नाटा पसर जाता तो वहीं इनकी महफिल जमती। नशे में अक्ल उछाले मारने लगती तो सब दिल खोल कर रख देते। रघु नशे में अपनी नई नवेली बीबी कुसुम की खूबसूरती की तारीफें करने लगता, उसके जिस्म की लहरदार बनावट, उसके नखरे और रात की सारी अन्तरंग बातों का बखान करता तो उसके दोस्त कुछ देर के लिये उत्तेजित हो जाते, पर रूसी इसके आगे की सोचने लगता।
रूसी नशे में बकता-यार रघु कभी हमें भी भाभी से मिलाओ। मुँह दिखाई में गुरू यह सोने की चैन दूंगा और गले से ओम के लाकेट वाली चैन उतारने लगता। रघु का नशा गुस्से में बदल जाता और वह गालियाँ देने लगता, और रूसी को मारने खड़ा हो जाता। उसके दूसरे दोस्त बीच बचाव करते तब जा कर वह थोड़ा ठन्डा होता। पर उसे कुसुम की फिक्र सताने लगती क्योंकि वह अपनी पत्नि को हद से ज्यादा प्यार करता था।
दो साल पहले जब वह रात में बिजली के तारों की चोरी करता था तो दिन में इसी चौपाल पर घुन्ना बना बैठा रहता और उसकी करतूतों से जन्मी गाँव वालों की कई कष्ट कहानियाँ सुनता जो उसके कठोर हृदय पर बेअसर साबित होती।
साबू ने बेहद गरीबी के बावजूद अपने बेटे चन्दन से बहुत उम्मीदें बाँधी थी कि बारहवीं जमात में अच्छे नम्बरों से पास होगा तो उसे इन्जीनियर बनाएगा। पर एन गणित ओर साइन्स के पेपरों की रात पर रघु की काली करतूतों का साया पड़ गया। बोर्ड की परीक्षा क्या किसी के लिये रूकती हैं? आठ दिन नये तार खींचने में लग गये और तब तक साबू का काता पींजा कपास हो गया।
विधवा जानकी का जेठ की धूप में दिन - दिन भर मजूरी कर बेटी के लिये जोड़ गया पैसा, चाँदी की रकम ओर नकली रेशम की लाल साड़ी वह काली रात लील गई जिसे रघु ने हरामी औलाद की तरह पैदा किया था।
धन्ना की बहू ने इसी अन्धेरे में तूवर काठी के ढेर में हाथ डाला कि नाग बाबा ने उसके जीवन में ही अन्धेरा कर दिया। धन्ना के घर में अब रोटी पानी करने वाली ही न रही तो अब बाप बेटे जैसे तैसे टिक्कड़ सेंक कर मजदूरी पर जाने को मजबूर हो गये।
सुखनी प्रसव पीड़ा से छटपटा कर मर गई पर इस अन्धेरे में पास के कस्बे की डाक्टरनी नहीं आ सकी। यह सारे दुःख भरे किस्से काली रात में जन्मे प्रेत की तरह गाँव की हर गली, हर मोहल्ले, हर घर में मनहूसियत की कालिख की तरह छा गये थे और गाँव वालो के दिलों से निकलती आहों से बेखबर रघु अपनी शैतानियत में मगन था


फिर अचानक एक दिन रघु के घर के सामने भीड़ जमा थी। रघु पागलों की तरह चीख रहा था। अपनी छाती पीटते हुए जमीन पर लोट रहा था। काली रात के इस प्रेत ने आज रघु की सारी खुशियों को लील लिया था। माता की ओटली पर रघु की करतूतों की वजह से गाँव के बेगुनाहों की चीख पुकार और क्रन्दन से इतना गहरा अन्धेरा फैला कि उसने रघु के अस्तित्व को ही समाप्त कर दिया। बेगुनाहों पर जुल्म सितम से निकली आँहें शोले बनकर कैसे जीवन की सारी खुशियों को नष्ट कर देती है। रघु तो जीवन भर दूसरों की जिन्दगियों में अन्धेरा फैलाता रहा था, आज वह सारे अन्धेरे परत दर परत जमा होकर घने काले अंधेरे में बदल गये। मनुष्य को अपने किये गये पापों की तस्वीर इन्ही अंधेरों में दिखाई देती है। रघु ने पिछली रात फिर तार काटने की योजना बनाई थी। सारे साथी उसके साथ थे, सिर्फ रूसी को छोड़कर। आज रात रघु के द्वारा फैलाये अन्धकार में बलात्कार और हत्या के बाद कुसुम की बेजान लाश को उठाया गया तो उसकी भींचीं हुई मुटठी से मिला ओम वाला लाकेट। रघु ने एक जोर की चीख मारी पागलों की तरह बिलबिलाने लगा। आज वह काले दर्दनाक अंधेरों की परतें उसके जेहन में जम गई है जिसे अब कोई नहीं निकाल सकता। रघु अब पागल हो चुका है और रोशनी की तलाश में बिजली के खम्बों और टावरों पर चढ़ता फिरता है। क्या अब यह बिजली की रोशनी उसके अंदर पसरे स्याह अंधेरे को दूर कर सकेगी।

संपर्क - mikhan28@yahoo.com

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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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