कामिनी कामायनी की कहानी - भाड़े का आदमी

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       ॥ भाड़े का आदमी ॥  “मंह मंह करता ,केवड़े की मदमाती खुशबू से ,कमरे और ओसारे की हवा मदहोश होकर नृत्यरत हो उठी थी ।इस हिरण्यमयी कस्तुरी स...

       ॥ भाड़े का आदमी ॥ 

“मंह मंह करता ,केवड़े की मदमाती खुशबू से ,कमरे और ओसारे की हवा मदहोश होकर नृत्यरत हो उठी थी ।इस हिरण्यमयी कस्तुरी सुगंध को भर पोख अपने नथुने में सहेजती हुई सी भैरवी ,अपने सिर के छोटे कटे बालों को ढकने के लिए साड़ी के आंचल का सहारा लेती हुई ,इस स्वार्गिक खुशबू के स्रोत को जानने की जिज्ञाशा में जैसे ही पीछे पलट कर देखा ,भीमशंकर तैयार होकर बाजार के लिए प्रस्थान करने वाले थे । पैरों में रिबोक के चमचमाते जूते ,बढ़िया क्रिचदार पैंट ,ब्रांडेड शर्ट आँख पर मैंगो का सनग्लास ,कलाई में गोल्डेन रिस्टवाच ,तीव्र परफ्यूम की शायद पूरा नहीं तो आधा शीशी अवश्य अपने पर उड़ेलकर ,ऐसे खड़ा था ,मानो कोई महान सम्राट अपना अस्त्र शस्त्र संभाले  विश्व विजय करने जा रहा हो ।  ‘ भौजी ,आपको भी कुछ मंगाना है ,बाजार से ?’निर्लज्जता भरे चेहरे पर ,उसके होठों से ये शब्द ऐसे फूटे थे मानो ,कह रहे हों ,आपलोगों की परवाह ही कौन करता है ,वो तो सामने पड़ गईं हैं  ,इसलिए पूछ भी लिया हूँ । मै तो रानी साहिब के करीब का आदमी हूँ । भैरवी हवा में घूमते हुए उन ख़ुशबुओं से नजात पाने के लिए ,साड़ी का पल्ला नाक पर रखते हुए ,बड़े नाटकीय ढंग से न में सिर हिलाते हुए ,आँगन से होते हुए पिछवाड़े की खुली हवा में सांस लेने चली गई थी । अचानक से वह मन भावन मादक सुखद खुशबू ,जहरीला बन कर उसकी सांस अवरुद्ध करने लगी थी ।

धान कटनी शुरू  हो गया था ,आँगन में और ,पछवरिया ओसारे पर मिट्टी के चरचुल्हिए बनाए गए थे । कनस्तर भर भर कर धान उबालने के लिए चूल्हे पर चढ़ाए जा रहे थे ,काम में जुटी मजदूर महिलाएं ,अपने कार्य कुशल हाथों से तड़ातड़ तड़ातड़ पास में रखे बड़े बड़े बांस के टोकरों में उबले धान के कनस्तर  पलटती जा रही थी ,जिन्हें अन्य पुरुष मजदूर छत पर ,खरिहान में ,आँगन में सुखाने के लिए , ताड़ खजूर के बने बड़े बड़े चटाईयों ,बोरों  पर डाल रहे थे । उसना चावल के लिए धान का उबालना जरूरी होता है । इस बार धान कम ही हुआ है ।चारों तरफ उजाड़ उजाड़ सा , बाढ़ ने भीषण तांडव मचा रखा था । मजदूर तो वैसे ही अब दूज के चाँद,दिखाई भी कहाँ देते हैं ? ,जो पहले यहाँ रहते थे ,उनके तेवर भी समय और राजनीति के कारण काफी बदल गए हैं ।

        भैरवी की कोठरी जो ऊपर वाले मंजिल पर है ,वहाँ से दक्षिण की खिड़की खोलने से ,पिछड़े लोगों की बस्ती ही नहीं पूरी क्रिया कलाप भी दिखाई देती है । कितना बदलाव आया है यहाँ , तकरीबन हर घर पक्का ,छत पर पानी  का काला टंकी ,सब के ,और टीवी का एंटीना ,कहीं कही टाटा स्काई का डिस्क भी । किसी के दीवार पर बड़े बड़े काले अक्षर में लिखा “वॉट एन आइडिया सर ज” “कपिला पशु आहार” वोट देकर श्रीजी का हाथ मजबूत करें ,वगैरह वगैरह ।

         घर घर टीवी ,,महानगरों की कमाई का असर यहाँ चारों ओर फूटानी में दिखाई देता है ,बात व्यवहार सब बदल गए  ,गहराई  रात तक पुरानी फिल्मों की गीतों को देशी गायकों के नकली कैसेट पर सुनते हुए लोग ,पुराने जमाने के सम्पन्न छतों वाली शान से अपने आप को भरमाए  रहते हैं । फुटपाथ के कपड़े और कैसेट्स ,इन बस्तियों की तस्वीर ही बादल कर रख दिया है ।सुबह सवेरे भजन कीर्तन की जगह  “छु लेने दो नाजुक होठों को’ गीत अभी भी बज रही थी कि बिजली चली गई ।और अचानक से बेहद तेज संगीत का थमना गाँव की रौनक को कुछ कम नहीं कर सका था । सुबह की ,सूरज की हल्की हल्की आंच पर अपना शरीर सेकने के लिए ,आराम की विभिन्न मुद्राओं में ,कोई अपने चटाई  पर लेटा बीड़ी पी रहा है , कोई साइकिल का पेंच कस रहा है , कहीं कहीं अपने रज़ाई ,कंबल सुखाने की कवायद चल रही है ,कहीं चार लोग सिर जोड़े गप्पबाजी में मग्न , कोई अपने भैंस और उसके पाड़े की डोर पकड़ कर धूप में खुट्टी पर बांधने में मग्न . किसी ने  चौकी को स्थायी रूप से ही नीचे दालान के किनारे रख छोड़ा था ,उठाने बैठने की जहमत कौन करे सोचकर । कहीं मुर्गियाँ अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ चरने निकली हैं , बच्चे ,कुछ स्वेटर पहने कुछ ऐसे ही बड़े मस्ती में दौड़ लगा रहे थे । कोई अपना कपड़ा भी वहीं बैठ कर धो रहा था ,चौकी पर ही ,पास के चापाकल से प्लेस्टिक के लाल बाल्टी में पानी भर कर ।

   बहुएँ  आँगन में ,अपने अपने घरों के छत पर ,रसोई का काम निबटा कर बैठने की चाह में आ खड़ी होतीं ,मगर तब तक धूप उन्हें चकमा देकर दूर पास के ताड़ के पेड़ों के पीछे  छुपती धीरे धीरे नीचे उतारने लगती ,मानो कह रही हों ,तुम्हें तो मेरी परवाह ही नहीं । मगर जिनके छत पर धूप है ,मंडली वहीं जम जाती ।

   तब यह गाँव काफी भरा भरा लगता था ,जब भैरवी ब्याह कर के आई थी । चारो तरफ झुंड ही झुंड ,नई नवेली बहू की गाड़ी घेर कर खड़ी ,बाद में सुना ,भैरवी ने ,कि शहर से आई डिस्को कनिया ,बिना घूँघट के आ रही है ,और इस अप्रत्याशित दृश्य को बच्चे से लेकर बूढ़े तक अपनी आँखों से देखकर ,अपनी स्मृति पटल पर रेखांकित करना चाहते थे ,इसी ख़्वाहिश में ,जैसे ही गोधुली बेला में ,गाड़ी की आवाज के साथ ,आनन्दातिरेक में बच्चों की समवेत स्वर गूंजीं,’ “कनिया आ गई ,कनिया आ गई”  महिलाओं का उत्साह सीमा तोड़ गया था ,बड़की काकी  लकड़ी के चूल्हे परआँगन के एक कोने में बैठी ,इतमीनान से  मछली तल रही थी ,कड़ाही उतार ,जलती आग छोड़ ,दौड़ी दरवाजे की ओर ,सागरवाली चाची अपने छोटे नाती को लोरी गाते  हुए कोठरी में सुला रही थी ,नाती ,बिस्तर पर पटकाया ,गला फाड़ फाड़ कर रोता रहा ,नानी के पाँव में तो पहिये लग गए थे ,लुढ़कते चले गए ।बिमला पीसी पीतल के बड़े से थाली में सांझ का दीपक जलाने की तैयारी कर रही थी ,बाती ,अगरबत्ती ,धूप ,तेल ,दियासलाई ,वैसे ही छोड़ कर उड़नछू होगई थी । 

       उस अपरिचित अंजान माहौल में ,गाड़ी में ,तुड़ी ,मुड़ी बैठी भैरवी के कान मेंअचानक  खूब तेज आवाज  बंदूक के गोली की तरह घुस गई थी “भाईजी ,माँ ने कहाहै ,गाड़ी को चादर से चारों ओर से ढँक देने के लिए”।बाद मे पता चला ,ननद थी ,। जबतक माँजी आती ,गाड़ी से उतार कर रस्म रिवाज निभाने ,तबतक उनकी डिस्को बहू लोकसमाज के व्यर्थ मनोरंजन का कारण न बन जाए । माँजी अपने हाथ में पीतल के लोटे में जल और गुड के साथ पधार भी चुकी थीं ,,मगर भीड़ थोड़ी निराश होकर छँटने भी लगी थी ,जो सोचा था ,नहीं मिला ,कनिया तो लाल साड़ी  में बीत्ते भर का घूँघट काढ़े ,सहमी सिकुड़ी सी बैठी थी । सहजों पीसी ने कहा था बाद में ,श हरी लड़की ,बिना पर्दा वाली ,गाड़ी से उतर कर  डिस्को नाच करेगी । अङ्ग्रेज़ी में गप्प करेगी ।आखिर ऐसा अफवाह उड़ा ही क्यों? बड़ी ननद ने बताया बाद में ,कि शादी के बाद  जब बराती को दुलहिन का मुंह दिखाया जा रहा था तब आपके सिर पर घूँघट के नाम पर बस माँगटीका ढंका था । याद आया ,बड़ी दीदी ने सलीके से सिर पर आंचल पिन से फंसा दिया था ,  और वही चिंनगारी  उड़ती हुई   ज्वाला बन कर यहाँ धधकने लगी थी ।   इतनी बडी सरकारी कोठी ,इतने बड़े अधिकारी की बेटी ,वह क्या निभाएगी भला इस गंवार गाँव की मर्यादा ।

,आज इतने साल बाद भी ,ससुराल के गाँव की सीमा पर आते ही भैरवी के सिर ग्रामीण मर्यादा का प्रतीक चिन्ह साड़ी  का पल्ला बीत्ता भर घूँघट बना डोलने लगता है । खैर ,अब तो ,गाँव मे, गाँव की बहुए ही कहाँ रखती है घूँघट ,न घूँघट ,न  मान मर्यादा ही ।सास को ,बात बात पर उसकी औकात बता कर ,अपने को पढे लिखे होने का गर्व दिखाते हुए ,आधुनिकता के तराजू पर अपने को तौलती है ,वे जिस दुनिया में जी रही है ,वही परम सत्य है । गाँव की लड़कियां अब घरेलू काम में कम,ब्यूटी पार्लर के  सम्मोहन में ज्यादा रहती है । आश्चर्य हुआ भैरवी को ,जिस गाँव में घर घर जांता चक्की पिसते हुए मधुर संगीत गाती  लड़कियां घर आँगन में असीम ऊर्जा का संचार कर देती थी ,कशीदे कारी ,पाकशास्त्र के बड़े बड़े पंडितों को भी मात कर देती थी ,, उनकी बेटियाँ ,स्कूल के रजिस्टर पर तो हैं ,स्कूल का कभी कभार मुंह भी देखा है ,मगर ,कौलेज कहाँ ,लेकिन सब की सब ,डिग्री धारी ,कुछ को बी,एड भी करवाया  गया है । शादी व्याह के लिए जरूरी था ,नौकरी भी सरकार लड़कियों को ही ज्यादा देने लगी है ।पवन जीअपनी रसूख और ऊपर तक पहुँच के सफ़ेद घोड़े बड़ी तेजी से  हाँके जा रहे हैं “हर साल कम से कम पाँच लड़कियों को तो हम बी एड में दाखिला करवा  ही देते हैं,हमारे गाँव की महिलाओं की साक्षरता दर इस इलाके में सबसे ज्यादा है”।

माया की दादी ,शायदबीमार थी ,अपने ओसारे पर चौकी पर लेटी ,बेतहासा खाँसे जा रही थी । आ’गे माया, माया गे ,कनी पानी दे ,अपनी अठारह वर्षीय पोती को बड़ी देर से आवाज लगा रही थी ,मोहित काका का आँगन ,उसके रसोई से बिलकुल सटा हुआ ,खिड़की भी खुली थी ,मगर उतने बाल बच्चे वाले घर में  किसी की आहट नहीं आ रही थी । बहुत देर के बाद माया  आई चिल्लाते “ तब से क्यों गला गाड़े जा रही है दाय ,सीरियल चलता है तभी तुम्हें कोई न कोई काम सुझाने लगता है”। पवन जी भी रसोई में ही थे ,भैरवी को देख कर कहने लगे ,”बुढिया भर दिनपरेशान करती रहती है ,बच्चे भी क्या करें”।   भैरवी महसूस कर रही है , उन सरकारी आंकड़ों से अलग ,ये कन्याएँ ,गृह कार्य से ,पढ़ाई लिखाई से ,बड़े बुजुर्गों की सेवा से हाथ खींचे ,अंधेरे कमरे में टीवी पर नजरें गड़ाए ,सास बहू सीरियल देखने में मग्न रहती है ,अपना सहज स्वभाव ,सेवा ,मिलनसारिता खोती जा रही हैं। इसे कोई बुरा भी नहीं मानता ।  “यहाँ बिजली हमेशा रहती है क्या?’ भैरवी के जिज्ञासा पर पवन जी ने कहा “ ग्रामीण इलाकों में सरकार खेती के नाम पर बिजली मुहैया करती रही है ,लेकिन ,कहते हैं न कि आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है ,तो ,अपने गाँव से जो कुछ नौजवान ,महानगरों की ,झुग्गियों ,की ,फुटपाथों की अजीबो गरीब गरम गरम हवा के थपेड़े खाकर लौटे हैं ,वे अपने साथ ,घर बैठे कमाने का कुछ सौ प्रतिशत कामयाब धंधे का नुक्सा भी लेकर लौटे हैं । शाम को ठीक छौ बजे से नौ बजे तक बिजली काट देते हैं ,या कभी कभी पास का बिजली का ट्रांसफ़ौरमर ही जला देते हैं ,और शुरू हो जाती है उनका अपना जेनरेटेर का धंधा ,एक बल्ब तीन घंटे  के लिए नब्बे रुपए महिना के । खूब बढ़िया धंधा चल रहा है भौजी ।हाँ ,जेनरेटर के लिए किरासन का तेल ये उन लोगों से कम पैसे में खरीद लेते हैं ,जो सही या फर्जी तरीके से राशन कार्ड पर उठा लेते हैं”। भैरवी पवन जी का मुंह ताकती रह गई थी ।तो सरकार इन्हीं भोले भाले लोगों के कल्याण के लिए योजना दर योजना बनाती रहती है । ये पवन जी इस गाँव के मुखिया भी हैं ।

      वैसे धक्कम ,धुक्की,तेज रफ्तार , आवास ,बिजली और पानी की किल्लत वाले शहरों से घूम कर वापसी गाँव का रास्ता अख़्तियार करने वाले भी बहुत कम ही लोग होते हैं ,मगर जो आ जाते हैं ,उनकी तो चाँदी ही समझिए एक तरह से । सिंहासन खाली है ,आओ राज करो ,थोड़ी सी बुद्धि लगाओ ,फिर देख तमाशा । अकेले पन का दंश झेल रहे बड़े बुजुर्गों के लिए यही क्या कम है कि पाँच सात में से कोई एक औलाद उनकी आँखों के सामने रहे ,भले ही श्रवण कुमार का अवतार न हो ,भले बेटे बहू रात दिन गाली गल्लौज करे । धरती ने उपजाना थोड़े ही छोड़ दिया है ,आम और लीची के पेड़ बांझ तो नहीं न हुए  हैं ,गाय ,भैंस तो दूध देती ही है ,अब जो वहाँ रहेगा ,वही न भोग करेगा ।

  बाहर से तिक्त होकर   भैरवी का ध्यान अपने घर पर अटका ।    इतने विशाल घर में माँजी अब अकेली ही रहती हैं । “सांझ होते ही जैसे झपटने के लिए दौड़ता है  सन्नाटा ,,दिन भर तो टोला महल्ला के लोग आते जाते दालान पर बैठे देखकर हाल चाल पूछते ,बातचीत कर के समय को गतिशील बना देते हैं ,मगर सांझ होते ही सब अपने अपने घर में ,कामकाज में व्यस्त ,तब ,हम भी दरवाजा बंद कर दिन का कुछ पका  पकाया खाए ,नहीं तो कुछ थोड़ा सा बना लिए ,फिर इस कोठारी से उस कोठारी ,इस बकसा को ठीक करे उस अचार के बोतल में तेल डाले ,  आलतू फालतूके काम में अपने को उलझा कर  फिर बिछौना पर बैठ भगवान का नाम लेते रहते हैं ,आठ नौ बजे सो जाते है ,सुबह चार बजे से फिर काम शुरू ,पूजा के लिए फूल तोड़ना ,भगवान के बरतन माँजना ,कुछ व्यायाम करना ,फिर किरण फूट जाती है ,तब हाथ में खुरपी लेकर ,बाड़ी झाड़ी में लगाए अपने फूल पौधे को हवा पानी  देना ।ऐसे ही सब चलता रहे तब तो हम भाग्य शाली हैं ,बाबूजी ने बच्चों को इतना कष्ट कर ,गाँव के वातावरण में भी ,चौकन्ने रह कर पालन पोषण किया ,पढ़ाया लिखाया ,अब सब अपने अपने ठिकाने पर हैं ,खुश हैं अपने बाल बच्चों को पढ़ा लिखा रहे हैं  ,मगर जब गठिया का रोग असाध्य बढ़ जाता है ,किसी अपने का पास नहीं होना बेहद अखरता है ,बीपी है ,कभी कभी चक्कर आ जाता है ,एक दिन चापाकल के चबूतरे पर ही गिर गए ,वो तो भगवान का लाख लाख शुक्र ,सलमपुर वाली उसी समय आई थी बरतन धोने । उसी के कंधे पर सिर रख कर खूब मन भर रो लिए”। माँजी बोलते वक्त नहीं देख पाई कि भैरवी की आँखें उनके दुख से कैसे भरभरा कर बह चली थी ।उसने चाय लाने के बहाने रसोई में जाकर पानी  पीकर अपने जज़्बात पर काबू कर लिया था  कितने मजबूर हो गए हैं सब लोग ,अपने अपने द्वंध में फंसे ।

अब तो हाथ में मोबाईल था ,दिन में दस बार बच्चे फोन कर ही लेते हैं ,  ऐसा कोई पर्व त्योहार नहीं होता ,जब घर में कोई मौजूद न हो । मगर ,इतने बड़े भरे पूरे घर में ,जब वो भी ब्याह कर आई थी ,हालाकि तब घर इतना बड़ा और भरा पूरा तो नहीं था ,मगर परिवार में सदस्यों की कमी न थी ।पचासों साल से उनका पूरब यही ,पश्चिम यही ,पुराने बहुत से रिश्ते नाते खोते  गए थे ,मगर बाबूजी के जाने से वास्तव में वो कर्मठ महिला अपने आप को अनाथ महसूस करने लगी थी । वैसे गठिया के वावजूद उनका शरीर एकदम स्वस्थ था ,पैसठ की होकर भी पैतालीस से ज्यादा की नहीं दिखती थी ।लंबी कद काठी ,बड़ा ,रोबीला चेहरा ,,एकदम काले बाल ,अब कहीं कहीं छिटपुट सफेदी दिखाई पड़ने लगे थे ।

बाबूजी का पेंशन ,शहर वाले मकान का किराया और बढ़िया खेती बाड़ी  ,,उनके पास भला संबंधियों की क्या कमी रहती । बाबूजी के ही समय में,जब सारे बच्चे बड़े होकर अपने काम काज के बहाने शहरों में  सिमट गए ,मौसी ने अपने बेटे भीमशंकर का हाथ माँजी के हाथ मे सौंप  दिया था ,इसको भी मनुख बना दीजिए ,इतना क्रोध ,झाड पात नोचने लगता है ,बाप को देखना नहीं चाहता है ,भर गाँव में किस्सा ,बाप बेटा में उठा पटक ,बाप ने इससे परेशान होकर जहर पी लिया था ,वो तो देवता पीतर तुम्हें खुश रखे ,बहिन ,छोटका बेटा को तुम नहीं भेजती तो समय पर अस्पताल भी पहुँचाने वाला कोई नहीं मिल रहा था ।तुम्हारे किरपा से हमारा सुहाग बच गया”। अपनी छोटी बहन के दुख से द्रवित होकर माँजी ने अपने बच्चे की तरह उसे गले लगा लिया था । चौदह बरस का भीम शंकर ,मौसा के टहल टिकोरा में लग कर ,किसी तरह पढाई  तो कर लिया था ,मगर स्वभाव क्या बदलता ,तब क्रोध को दबाने के लिए ,बात व्यवहार सिखाने के लिए टोल पड़ोस के लोग भी शामिल हो गए थे । माँजी ने तब डपट कर कहा था “एना जे रास्ता पेड़ा मारपीट करब त लोग जुत्ता स मारबे करतौ”। परम उदण्ड ,असभ्य ,असंस्कारी, उदण्ड ,आखिर एक दिन बिना किसी को बताए भाग खड़ा हुआ ।माँजी रात भर रोती रही , ‘बाट घाट ,मोटर ट्रेन ,  की मुंह देखईबे बहिन के”। लेकिन बाबूजी ने ढांढस बँधाया “ओ अपन गाम चलि गेल हेतै,जखन फेर पेट जरते आपस घुरि क औते”। मौसा जो कलकत्ता के स्टेट ट्रांसपोर्ट कंपनी से झगड़े के कारण  निकाले गए थे ,फिर कभी कोई काम करने की उक्ति नहीं दिखाई । बेटी की शादी खेत बेच कर ,कर दी ,बाकी  जमीन बटाई दार के हवाले कर ,खुद लड़ाई झगड़े ,कोर्ट कचहरी से परिपूर्ण जिंदगी मे लीन होते चले गए ।बिना अनुशासन के दूसरा बेटा भी इलाके का दादा बनने लगा था । मौसी जब भी माँजी से मिलने आती ,खीर पूड़ी के साथ ,अपने दुखनामे का गठरी भर भर कर लाती ,। माँजी भी बाबूजी पर ,अपने बेटों पर दवाब डालने लगती , “मौसे के नौकरी लगा दही”। कई जगह उनका नौकरी लगाया भी गया ,मगर यूनियन बाजी का अड़ियल क्रोधी रवैया ,,वापस उन्हें अपने गाँव पहुंचा देता । ऐसे मे घर की क्या स्थिति होती ,खेती वो करना नहीं चाहते थे ,हालाकि जमीन पूरी थी । इस  वातावरण से उकता कर  भीमशंकर दो दिन में ही वापस आ गया ,।बाबूजी से माफी मागी “मौसा ,हमसे गलती हो गई थी ,अब मैं  आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा”। बाबूजी को भी एक आदमी चाहिए था ,बाजार हाट के लिए ,खेती बड़ी के साथ ,बाबूजी को सुबह शाम सरसों के तेल की घंटे भर की मालिश भी चाहिए था ।

     ऐसे में पता नहीं कैसे दूसरे तीसरे चांस में वह मैट्रिक भी पास कर गया ,मैट्रिक पास करना थोड़ा बहुत कठिन अवश्य था ,मगर देखते देखते अपनी कला कौशल से वह बीए पास भी कर गया था । मँझले देवर ने हौसला अफजाई की थी ,लंबाई चौड़ाई इतनी अच्छी है ,पुलिस में भरती हो जाओ ।सुनने में आया कितने साल से बेचारा पुलिस की तरह तरह की नौकरी के लिए फॉर्म भरता रहा ,कभी दौड़ने में छंट जाता ,कभी लिखने में ,।मौसी आ कर बाबूजी के सामने भर भर कटोरा आँसू बहाया करती थी “कहीं कोई नौकरी ,कोई जोगाड़ ,शादिब्याह की उम्र बीती जा रही है ,कौन लड़की वाला किसी बेरोजगार के पल्ले अपनी बेटी बाँधेगा”। बाबूजी सिर्फ आश्वासन ही नहीं दे रहे थे बल्कि प्रयास रत भी थे ,मगर किस्मत ,दौड़ने में ही नहीं सकता है ,तब किसी चोर के पीछे क्या भागेगा खाक ,”। अब किसी फैक्ट्री में लगाने की सोच रहे थे कि काल के विकराल हाथों से उठा लिए गए ।

  अब भीम शंकर सच में अनाथ था ,मौसा के कोप को झेलकर भी उसे एक स्वर्णिम भविष्य की सुनहरी  तस्वीर दिखाई दे जाती थी ,वह भी गया । मगर माँजी ने आगे बढ़ कर उस तपती रेगिस्तान में सहानुभूति के कोमल बादल लहरा दिया “तू हमारा बेटा बन कर था ,जब तक मैं हूँ ,तू वैसे ही रहेगा”। फिर तो वह पनप उठा था । उसके चेहरे की हरियाली यह चीख चीख कर बयान करने लगी कि  ‘सैयां भए कोतवाल अब डर कहे का’।

    एक बात थी उसमें जबर्दस्त कि पूजापाठ करने में उसे थोड़ा बहुत आनंद आता । पंडितों के शहरोन्मुखी और हाई टैक होने के कारण यह क्षेत्र बिलकुल खाली पड़ता जा रहा था गाँव में । योग्य पंडितों का सर्वथा अकाल पड़ने लगा था ।कुछ नवयुवक अपने पैतृक धंधे छोड़ कर अन्य दूसरे धंधों में किस्मत आजमाने चले गए थे । दिखावे के चीजों पर तो लोग दिलखोल कर खर्च करते हैं ,मगर पंडितों को देने के नाम पर उनकी आत्मा जैसे लोहार की धुकनी की तरह धुक धुक करने लगती है ।यह बात भीम शंकर को कई पंडितों ने बताई थी ,कि यहाँ थोड़ा पूंजी लगाकर लोग पंडितों से ज्यादा लाभ उठाना चाहते हैं । ऊपर से सवर्णों में व्याप्त बेरोजगारी ,उन्हें कहीं न कहीं विस्थापित होने के लिए मजबूर करती रहती है ।अब वे बंधुआ मजदूर की तरह त्रिनिदाद ,फ़िजी ,सूरीनाम तो क्या ,अंटार्कटिका पर भी जाने को तत्पर रहते हैं । क्योंकि अपने इलाके में  धर्म का दुहाई देकर उनसे लोग मजदूरी भी नहीं करना चाहते ।

    भीमशंकर दुर्गापूजा    ,सत्यनारायण पूजा  और वसंत पंचमी ,गृहप्रवेश आदि की पूजा कराने मे सफलता प्राप्त करने लगा था ।सुनने मेंयह भी आया कि,महीने में तीन चार हजार की कमाई भी कर लेता है ,मगर ,उसका खुद से बड़ा अहंकार और क्रोध , पंडित को यजमान से कैसे शांतिपूर्ण ,सौहार्दपूर्ण  व्यवहार करना चाहिए यह बात उसके अहंकार के रास्ते में अवरोधक  बन कर खड़ी हो जाती थी । दरअसल वह अपने आप को बहुत बड़ा पंडित मान बैठा था। उसने गणित के क्षेत्र में भी हाथ मारने की  कोशिश की थी ,गणित तो ठीक था ,फलित के लिए साधना की जैसी जरूरत थी उसका अभाव दिख रहा था । मगर गाँव में बचा ही कौन विद्वान था ,जोउसकी गलतियों को पकड़ पाता,अथवा समय भी नहीं था ,गलती पकड़ हाथ आए पंडित को नाराज करने का । बड़ी चतुराई से अपना धंधा चलते हुए ,बाकी समय में अपने शरीर को योग और कसरत से  खूब सुडौल बनाता रहा । गाँव में माँ की देखभाल करने वाला कोई है ,वह भी अपना मौसेरा भाई ,यह सोच कर परदेशी भाईयों ने उसकी सारी फरमाईश बड़ी तत्परता से पूरी करनी शुरू कर दी थी । महंगे जूते ,जींस ,शर्ट,,परफ्यूम ,साइकिल ,तो कभी कुछ कभी कुछ ।अब वह और उसके सगे भाई के रहन सहन में जमीन और आसमान का अंतर हो चुका था ,कहाँ भीम शंकर और कहाँ जटाशंकर ।भीम शंकर तो लाट साहब बन चुका था ,उसके अंग अंग से प्रसन्नता फूट रही थी ।

   मगर मौसी खुश नहीं थीं ।उनका वर्तमान जस का तस पड़ा हुआ ,उन्हें नित दिन खून का आँसू रुलाने पर मजबूर करता रहता था । दो कमरे का घर जो दूर से खंडहर की तरह  दिखाई देने लगा था ,उसके बगल में खुदी नए घर की नींव की मिट्टी भी फिर से भरभरा कर नींव में गिरने लगी थी । छोटा बेटा छोटी मोटी  दलाली करता ,भीमशंकर जो तीन चार हजार रुपए भेजता ,उससे पता नहीं कब ,किसके बीमारी में लिया गया कर्ज सधता या लाख रुपए का ईंट खरीदकर आता ।

मौसी अपने अत्यंत दिन हीन परिधान में आकरअपनी बड़ी बहन के पास , अपने दुख को रोना नहीं भूली ।जाते वक्त अटैची भर कर बहुओं की नई नई साड़ियाँ ,बिछौने के चद्दर ,तौलिया ,अगड़म बगड़म इस भाव से ले जाती मानो ,ये कौन सी अनोखी चीज है ,असल जिस काम के लिए बरसों से आस लगाए बैठे हैं ,वो तो होता ही नहीं ।बहू बेटियाँ मौसी की हर तीन चार महीने में आकार समान ले जाने की चालाकी समझने लगी थी ,मगर क्या बोलती ,माँ के पास भीम शंकर का होना इस सब के आगे कुछ मायने नहीं रखता था ।

     भीम शंकर का नौकरी लगना बेहद जरूरी था .अब माँजी भी अपने बड़े बेटे को फोन पर धमकी सी देने लगी थी “बाबूजी रहते तो हमको किसी की खुशामद करनी पड़ती’? आखिर काफी हाथ पैर मार कर ,फ़रीदाबाद के एक कंपनी में  उसकी नौकरी लगा दी गई थी ।दूसरे भाईयों ने भीम को चेतावनी दी थी “अपना मुंह ठोर वश में रखना ,क्रोध दिखाओगे तो यहाँ लोग बिना  सिलबट्टे के पीस पीस कर चटनी बना डालेंगे”॥

   उधर भीम की नौकरी और उसके प्रस्थान से माँजी भी बहुत खुश हुई। ब्रम्ह्स्थान जाकर लाल साटन का अंचरी चढ़ा कर आई ,कबूला उसी की नौकरी का जो था ॥ कभी कभार भीम बड़े भैया से मिलने भी चला आता तो भैरवी उसे समझाती “अब मौसी का सब सपना साकार हो जाएगा ,साल भर के अंदर ,नहीं तो दो साल में ,घर तो बनवा ही लीजिए”। वह “हाँ” “हूँ” कहकर इधर उधर ताकता रहता । जब भैरवी ने एक बार यह कहा कि एक दफे मौसा मौसी को लाकर तीर्थ करा दीजिए ,मथुरा वृन्दावन ,कितना आशीर्वाद देंगे आपको , उसने उनकी बात ऐसे सुनी ,मानो औपचारिकता वश उसे वह सब सुनना पड़रहा है ।पति नाराज हो गए “तुम्हें क्या पड़ी है ?सब को सुधारने का ठेका ले राखी को क्या ?”।

  बाद में भैरवी को लगा था ,यह मानना नितांत गलत होगा कि सभी मनुष्य एक समान होते हैं । शारीरिक रूप से यदि यह एक हद तक सही भी हो सकता है मगर ,मानसिक रूप से तो कदापि नहीं । कौन क्या सोच रहा है ?कहना कठिन है ।स्वाभिमान भी कोई चीज होती है ,मगर जब लालच के तालाब में सर से पाँव तक कोई सरोबार हो जाए तो कैसी नैतिकता और कैसा स्वाभिमान ?  अब उसने धीरे धीरे अपना चेहरा भी दिखाना गंवारा नहीं समझा । चलो ,टिक तो गया ,इससे पहले भी तो कई कई बार वह नौकरी से भाग चुका था ।

   उधर कुछ ही महीने में माँजी ,अकेलेपन से बौखलाने लगी थी ,यह बौखलाहट बहुओं पर झमाझम बरसने लगता ,जब वे फोन कर के उनका हाल चाल जानने की कोशिश करतीं । “आकर देखती हो हमको ,खाली फोन घुमा देने से जैसे सतवंती हो गई हम मरे चाहे जीए ”। दुख से मलिन चेहरा लिए भैरवी पति से कहती , “आप बड़े हैं सबसे, माँजी को देखना आप का ही काम है” । वे रोज फोन करके माँजी से घंटे घंटे बात करते ही थे । माँजी कहीं जाकर रहने को तैयार भी नहीं होतीं । वहाँ उनका हुकूमत है ,इतना जो बाबूजी ने अर्जित किया है ,सब बिलटने के लिए नहीं न छोड़ देंगी ॥ अब उनको वहीं आराम से रखने का एक उपाय यह भी सोच गया ,कि गाँव की ही ,या पड़ोस के गाँव की कोई सवर्ण स्त्री सेविका उनके लिए नियुक्त कर दिया जाए ,जो उनके साथ हमेशा रहे ।माँजी इसके लिए बिलकुल तैयार नहीं हुई ,”कहीं कोई कुकर्म कर के वो न भाग जाए”।“ दूर के दियाद अर्जुन काका की तीन चार बेटियों मे से एक को अपने पास रख लीजिए ,उसकी शादी ब्याह हम करवा देंगे”। इस पर वे इस लिए नहीं तैयार हुई कि वो  सब चोर है सांझ सवेरे सब कुछ लूट के भाग जाएगी । तब जो काम बाली काम करती है उसी को कहिए रात में आकर सो जाया करेगी बरामदे में ।“ नहीं ,उसका भी ,घर द्वार है ,वह भला रात में कैसे आ सकती है और  उसकी जाति नहीं जानती क्या ?उसको घर में सुलांएंगे”। अजीब परिस्थिति ,अजब कश्मकश । वह चाहती क्या हैं आखिर ?

     इसी बीच ,सुबह सवेरे फोन आया ,भीम शंकर को नौकरी से निकाल दिया गया , वह गाजियाबाद मँझले भाई के पास पहुंचा था कसम  खाया बार बार ,मैंने कोई झगड़ा नहीं किया ।  दो महिना ऐसे ही इनके उनके घर बैठ कर मेहमानबाजी करता रहा था । दुखी और परेशान बड़े भइया ने फैक्ट्री मैनेजर से बात किया ।,किस आधार पर उसे निकाला गया ?उसने उसे फिर से रखने की बात कहा ।पता चला यह खुद नौकरी छोड़ कर भाग गया था ।  मगर भीम अड़ गया “उस बेहूद्दे की कंपनी में हम पैर नहीं धरेंगे । मातृभक्त बड़े भैया ,मैनेजर से कह कर किसी तरह उसके दो महीने की तंख्वाह दिलवा दिए । दुबारा फिर बड़ी तेजी से उसके लिए नौकरी की तलाश जारी था ,ताकि वह खाली हाथ गाँव न लौट जाए ।

     मँझले भैया अपनी बुद्धि का परिचय देते हुए उसके समक्ष प्रस्ताव रखे ,”यदि तुम गाँव जाकर माँ के पास रहो और तुम्हें पाँच हजार रुपए दिए जाएँ तो?” उसके सूखे शरीर ,गड्ढे पड़ी सूनी सूनी आँखों में अजब सी चमक आ गई ,बिना ईथ उथ के वह तैयार हो गया था । हाँ ,यहाँ वह किसी भी हालत में नौकरी नहीं करेगा ।हालाकि उसने बड़े भैया से ये बात छुपा कर रखा था।

उधर जब माँजी को जैसे ही गाँव में इस बात की भनक लगी ,वे परेशान होकर बड़े बेटे को फोन पर अपना प्रलाप सुनाने  लगी “अब हमारे  काया में इतनी शक्ति कहाँ कि भीम के नखरे उठाएँ । स्थाई रूप से उसे रखना अब उन्हें पसंद नहीं था ।“हरदम तीनों वक्त उसको बढ़िया ,मसालेदार भोजन चाहिए ,किसी को वह गुदानता कहाँ है ।वो लड़ेगा ,जहर माहुर खाएगा ,उसकी  अईठी अब हमसे न सहा जाएगा”।

दूर पास के सूत्रों ,को ख्ंघालने पर पता चला कि अड़ोस पड़ोस के लोगों से झगड़ा लड़ाई कर ,माँजी के पास उसकी झूठी शिकायत कर उन्हें भी झूठ के पक्ष में कर लेता था ।एक बार बड़े वाले आम की गाछी का फसलचुपके से  बेचते हुए कमल काका ने उसे देख लिया ।वो वहीं कहीं से चलकर उसके पीठ पीछे अपनी साइकिल खड़ी कर दी थी ।“अच्छा अब अपने  मौसा के संपति को  तुम्  ही अगोरबारी कर रहे हो”।हँसते हुए वे चले गए थे । इतनी सी बात को उसने माँजी के सामने इतना विशाल समिधा डाल कर प्रस्तुत किया कि दोनों परिवारों में भयानक लपटें उठ खड़ी हुई थी । लक्षणा व्यंजना से माँजी ने भी यह जता दिया था कि भीम कोई गैर नहीं ,उससे उलझने वालों की खैर नहीं । भीम चाहता भी तो यही था कि उसके और मौसा के संपत्ति के बीच कोई नहीं आए ।

   नौकरी मिल गई ,मगर भीम के अत्यंत अनुनय विनय पर कि कुछ दिन वह गाँव से हो आता ,तब जो जैसा होगा ,देखेगा ।अब गाँव से उसका अपना गाँव ही समझा गया था ॥ठीक है ,उसे भी तो अपनी समझदारी का एहसास है ,आखिर ब्याह शादी भी तो करेगा ।

   कुछ ही दिनों में माँजी के वार्तालाप से पता चलने लगा कि भीम चंद रोज में ही अपने गाँव से आ गया ,और अब ,वह खुद खाना भी पकाने लगा है ,और माँजी की खूब सेवा भी करता है,कभी भी नहीं लड़ता है  ,पर हर दिन एक ही रट “अब दिल्ली न जयबो” यहीं पर रह कर कुछ काम काज करेगा । शाम के सन्नाटे से डरती माँजी को भी एक सुखद अनुभूति सी लगने लगी थी । “खाने के लिए कितना खाएगा ,एक आदमी तो भरोसे का है ही । मगर उसकी चालाकी भैरवी की आँखों से छिपी न रह सकी थी ।अब वह हर दूसरे महीने में बड़ी वाली गाड़ी भाड़ा पर लेकर मौसी को तीर्थ करने दूर दूर तक ले जाने लगा ,मौसी अकेली कैसे जाएगी ,तो अपनी माँ को भी अपने पास के गाँव से बैठा लेता । बैद्यनाथ धाम सर्द मौसम में लेजाकर ,वहाँ शिवगंगा में स्नान करने पर ज़ोर दिया ।माँजी बाद में बताती थी ,अंग अंग में  फिर से जानलेवा दर्द करने लगा था ,जनक पुर ,और राजगीर के बाद इलाहाबाद का कुम्भ भी वह मौसी को गाड़ी से लाना चाहता था ,मगर वहाँ की भीड़ भडाके देखकर ,मँझले देवर खुद इलाहाबाद स्टेशन पर उनलोगों के साथ गंगा स्नान करने के लिए मौजूद थे । “इसमें हर्ज ही क्या है ,हमारी माँ को घूमा फिरा देता है ,और साथ में अपनी माँ को भी”। “नहीं हर्ज क्या है ,पैसे की कमी तो नहीं थी ,आदमी की थी ,अब हर चीज को माईक्रोस्कोप से देखने पर जिंदगी अधर में लटक कर रह जाएगी”। भैरवी ने भी मन ही मन सोचा था ।मगर  भीम की माँ अभी भी खुश नहीं थी ,उन्हें तो बेटा का स्थायी  नौकरी चाहिए था,जैसे उन मौसेरे भाईयों को थी , चार दिन की चाँदनी नहीं ।

जब छठ के पावन पुनीत अवसर पर भैरवी गाँव आई ,तो उसने उस उजड़े उजड़े ,बेनूर से घर में भीम शंकर का राज्य कायम होते देख लिया था । गैस चूल्हे पर बड़े से बरतन में दूध चढ़ा कर कल्छुल से हिला हिला कर घंटों खड़ा रह कर राबड़ी बनाया जाता ,जिसे भीम शंकर पूजा करने के बाद बड़े प्रेम से अंगुली से चाट चाट कर खाता । मिर्तबान में रखे काजू ,किसमिस बादाम ,जो माँजी के व्रत त्योहारों ,फलाहारों के लिए पवित्रता के लिहाज से विशेष सतर्कता पूर्ण तरीके से रखा जाता ,भीम के लिए अलभ्य नहीं था ।,पेंट के पाकेट में भूजे की तरह रखा काजू किसमिस ,हाथ से निकाल कर भैरवी के सामने से खाते हुए निकलता ,तो उसका खून सौ डिग्री पर पहुँच जाता । ये सब वही माँजी के लिए लाती है ,या किसी किसी के हाथ से भिजवा देती है । मगर कर क्या सकती थी ,माँजी के करीब का आदमी । हालाकि खुद गुस्सा होने पर उसे भाड़े का आदमी तक कह देती ,मगर औरों की क्या मजाल ,कल्ला अलगा ले । चुप रहने पर भी माँजी समझ जाती ,और जली कटी सुनाने लगती “तुम्हीं लोग रह कर सेवा करो हमारी ,हम क्यों दूसरे का बोझ अपने माथे पर ढोएँगे”। बहुओं के छोटे छोटे बच्चे ,पढ़ने लिखने वाले ,वहाँ किसके भरोसे छोड़कर यहाँ आती ।एक बार जब  भैरवी ने कहा ‘मैं रह जाती हूँ यहीं पर’ तो तुरत उनका मिजाज बदल गया   ,मुंह बना बना कर बोलने लगी “ हमारे पोता पोती को ,हमारे बेटा को वहाँ कौन बना कर खिलाएगा ,तुम्हारा बाप” अपमानित सी भैरवी ,उसकी आँखों में आँसू झलझला उठे थे । मगर उनके सामने आँसू बहाने का मतलब था ,सारे किए कराए पर पानी फेरना ।चुपचाप दांत निकालती पल्लू से मुंह ढंके वह उनके पैर में तेल लगाती रही थी । मन ही मन भगवान  को याद करती हुई । मर्यादा निभाना कोई आसान काम नहीं है ,,वैसे ही अब इसकी धज्जियां उड़ने लगी है ,अपनी खाल को मोटी से मोटी बनाने के लिए  ,किसी अप्रिय बात को बर्दाश्त करने के लिए अब शायद जमाना भी  तैयार नहीं हैं ।

     पहले माधवी उसे सीधा सादा समझ कर काफी उपदेशात्मक बातें किया करती थी ।अच्छी कमाई करेंगे ,नौकरी करेंगे या लोन लेकर गाड़ी ही भाड़े पर चलवाना शुरू कर दीजिए । बाद में पता चला उसने माँजी पर ही ज़ोर डालना शुरू कर दिया था कि हमें गाड़ी खरीदने के लिए पैसे दीजिए ,हम भाड़े पर चला कर आपका पैसा सधादेंगे । एक बार छोटे भैया के पीछे भी पड़ा ,वो तो खुद दुनिया जहांन का हवा खाए ,आदमी को हाँकने में माहिर ,तुरत उसको जवाब दिया “ पाँच लाख की गाड़ी , तुम्हारे जैसे क्रोधी ,सिरफिरा के हवाले कर क्या नित दिन कोर्ट कचहरी का चक्कर  काटने पर मजबूर हो जाऊँ?इतना प्यारा भाई तू मेरा नहीं है”। उस दिन से उसके मुंह में जैसे दही जम गया  था  ,कुछ कुछ नाराज ,कुछ कुछ खामोश से  रहने लगे थे । दाल कहीं गल नहीं रही थी ।मेहनत की आदत नहीं ,पिता से पटती नहीं ,जो वही खेत बेच कर पूंजी लगा देते ।मगर उसे तो उनको भी अपनी ताकत दिखाना था ।

“वर्ल्ड बैंक के किसी प्रोजेक्ट के तहत काफी सुपरवाईजर की बहाली हो रही है ,बीए चाहिए ,चौदह हजार रुपया देगा ,नौकरी  के लिए बातचीत चल रही है ,उसके भी लोग लगे हुए हैं”। दिल्ली से वापस लौटने  के बाद असंख्य लोगों की जिज्ञासापूर्ण निगाहें और प्रश्नवाचक वाक्यों का जवाब देने के लिए उसने एक बढ़िया सा बहाना ढूंढ लिया था । महीने दो महीने लोगों ने इंतजार किया ,माँजी भी आश्वस्त थीं ,कि निकट के किसी गाँव या शहर में नौकरी हो जाने से कम से कम उन्हें तो अकेले पन का भूत  नहीं पछाड़ेगा ,आता जाता रहेगा ,या यहीं रह कर जाएगा काम पर ।

   देव उठावन एकादशी के दिन जब अपने दालान पर बैठी ,टोले की महिलाओं से गप्प सप्प कर रही थी ,भीम बाज़ार से लौट रहा था ,अपनी सायकिल दालान के सिडही से टेंक लगा ते हुए ,ज़ोर ज़ोर से सांस खींचते हुए खड़ा हो गया था ,पाकेट से रुमाल निकाल कर मुंह पोछते हुए माँजी की ओर देखकर ,फिर चारों तरफ नज़र फेरा “ नौकरी का गप्प तो फ़ाईनल हो गया ,गाँव गाँव जाकर देखना पड़ेगा ,मोटरसायकिल मगर जरूरी है इसके लिए ,अब हम कहाँ से सत्तर अस्सी हजार रुपया लाते इसलिए हमने उसको जवाब दे दिया”। माँजी ने उसकी बातों में ईक्षवाकू वंश की सच्चाई देखी थी । बेचारी भगवान को ,किस्मत को ,उस नौकरी देने वाले को कोसने लगी थीं ।

         छोटका भैया का उसी समय अचानक गाँव आना हो गया ,किसी दोस्त की शादी जो थी गाँव में, बारात में जाना जरूरी था । भीम भी बाराती में जाता ,मगर उसके नखरे तो आसमान से उतर कर भी खजूर में अटके पड़े थे ।जब तक नया डिजाईन का कुर्ता पैजामा नहीं आयेगा बाज़ार से वह कैसे जाएगा बाराती ,लोग क्या कहेंगे ।जबकि उसके पास कपड़े भरे पड़े थे । माँजी ने चुपके से दो चार गुलाबी नोट सरका दिए थे । बारात में वह नए कुर्ते पैजामें मे दूर से ही चमक रहा था । नथुलाल हजाम जो खुद मुंह फट था ,दूर से सबके सामने चिल्ला कर बोला “ क्या भीम ,दूसरे के सहारे सिर्फ  फलाहार ,किसकी कमाई उड़ा रहे हो बौवा ”।गुस्से से तमतमा कर लाल सुर्ख , वह उससे हाथापाई करने पर उतारू होना ही चाह रहा था कि छोटे भैया ने रोकथाम कर बात को हंसी मज़ाक में उड़ा दिया ।घर आकर उन्होने सबको बताया ,हम कमाते हैं ,फिर भी पुराने कपड़े में गए ,लेकिन यह कौन सी  इज्जत की बात करता है ,आज ही हम न होते तो बुरी तरह से सब इसको मारता”।  खैर ,माँजी का चीख मारता अकेला पन,और उसका फायदा उठाता भीम ,सबने आंखे तो बंद कर ही रखी थी । मगर बेटियों को यह बर्दाश्त तब नहीं हुआ ,जब उनके आने पर माँजी जो खर्च करती , भीम बिगड़ने लगता “,इतना दूध किसलिए ,इतनी सब्जी किसलिए ,भंडारा चल रहा है क्या ,महिना महिना दिन आकर ये सब अड्डा जमा लेती है”। कभी कभी दोनों पार्टियों में जब कर तू तू मैं मैं भी हो जाती ।बेटियाँ कसम  खाती ,कि अब हम नैहर नहीं आएंगे ।माँजी भी मन मसोस कर रह जाती ।बेटी तो चली जाएगी ,मगर भीम भाग जाएगा तो फिर अकेले रहना पड़ेगा । शायद यही एक भय उनके जुबान पर ताला जड़ देता ।ननदों से ही सुना गया ,कि माँजी को जो पेंशन मिलता है , उस पासबुक से भीम ने यह कह कर “कि तुम्हारा पैसा तो पड़ा ही है ,हम उधार ले लेते हैं घर बनाने के लिए ,बाद में सूद समेत जमा कर देंगे” तीन  लाख रुपये निकाल लिए । माँजी के तो हाथ पाँव काँपने लगे थे ,बेटा सब सुनेगा तो उन्हें कितना बुरा लगेगा ।उससे बैंक ,पासबूक का काम करवा  कर हमने बहुत बुरा किया । इसी घबडाहट में अपनी छोटी बेटी को फोन किया था “तुम समझाओ उसे जल्दी पैसा लौटा दे ,तुम्हारे भाई सब को हम क्या मुंह दिखाएंगे”। मगर उसने उन्हें आश्वश्त कर दिया , “अब मेरा छोटा भाई भी तो दिल्ली में कमाने लगा है ,फागुन तक चुकता कर देंगे हमको ऐसा वैसा मत समझो ,हमारी भी कोई इज्जत है कि नहीं ”। मगर सबको पता था ,उसके भाई का वहाँ पर पैर टूट गया है ,और वह खुद अस्पताल में पड़ा है ।जब इसकी भनक पर  बड़े भैया ने सभी भाई बहनों को फोन करते हुए कहा था “बाबूजी का पैसा है ,और अब माँ का है सब कुछ ,माँ जो चाहे करे ,उसको कोई कुछ नहीं कहेगा वैसे भी वह उसे अपनी  संपत्ति में कुछ देना चाहती ही थी समझो दे दी ,वो बेचारा कहाँ से लौटाएगा । आखिर अपना आदमी है, पनदरह सालों से हमारे घर पर रह रहा है ”। तब सभी खामोश रह गए थे । तीनों बहन भी चुप्पी साध ली थी ।

      आजकल महानगरों  जैसा बारात घर बनाने का चलन छोटे छोटे शहरों में भी  हो गया है ।यह बात उसके दिमाग में बहुत दिनों से कौंध रही थी । माँजी को किसी तरह बहला फुसला कर,उनके आगे पीछे दाना डाल कर  उसने उन्हें मना भी लिया था ,शहर के मकान में बारात घर खोलने कापरमिशन देने के लिए  ।करीब छौः कट्ठ्रे में बना घर और विशाल कैंपस काफी अच्छा कमाई का जरिया बन गया था । किराएदार हटा कर अब वह सारी कमाई खुद के जिम्मे रखता ,कभी कभार माँजी को कुछ पकड़ा देता ।आखिर मेंटीनेंस पर भी तो कितना कुछ खर्च होता है ,अच्छी आमदनी भी नहीं हो रही है ,वह उनको समझाता रहा था । मगर जैसे इश्क और मुश्क छुपाए ना छुपे ,वैसे ही लगन के समय तकरीबन हर तीसरे चौथे दिन विवाह भवन की बुकिंग की खबर माँजी के कान में भी पड़ने लगी थी सही कुछ भी हो मगर जब लोग दूसरों की कमाई का अनुमान लगाते हैं तो लाखों में ही लगाते हैं । खबरिओ ने यह भी खबर देना शुरू कर दिया था कि भीम अब अपना विशाल मकान उठा लिया है ,भीम तो कहता रहा ,भाई भेज रहा है पैसा ,हमारे भरोसे क्या होता ।

    बरसों से किराएदार के साए तले रहने वाला वह घर अब इतना महत्व पूर्ण हो उठा कि अगल बगल के बिल्डरों के कान खड़े हो गए ।आकर जगह देखी ।अब सबने भीम पर डोरे डालना शुरू कर दिया ।“जिंदगी भर मौसेरे भाईयों का गुलाम बन कर ही रहोगे का भाई?कि अपना भी कुछ मान सम्मान देखोगे” । भीम को यह बात जची ,यहाँ जब बहुमंज़िली इमारत बनेगी उसमें एक फ्लैट उसका भी होगा । और इसी खुशी में वह वहाँ के पड़ोसिओ से भी लड़ लिया करता “अच्छा ,समय आने दीजिए ,सब बात का सूद समेत बदला लेता हूँ”।पता नहीं उसने या किसने यह खबर उड़ा दिया कि यह घर बिकने वाला है । भाईयों को खबर मिली ,सारे कागजात तो उनके पास है ,सही है फिर वे क्यों परेशान होते । मगर ,खबर अब यह फैल गई कि जिसने उस जमीन को खरीद लिया है अब वह उसपर कब्जा करने आ रहा है ।दूर बैठे भाईयों को जब बताया जाता ,वे हंसी में उड़ाते “कहो ,जिसको मजाल  है ,आकर घुस जाए”।

     छठ के फौरन बाद जब भैरवी वापस शहर जाने लगी ,तब उसने महसूस किया कि माँजी अब और भी ज्यादा आश्रित हो गई हैं ,भीम के ऊपर,और डरती भी हैं उससे  । “वह हमेशा ,जमीन और मकान की बात छेड़ कर कहता ,मौसा का जमीन हम ऐसे ही जाने देंगे ,जान दे देगे पर ,उन गुंडों को छोड़ेंगे नहीं ”। भैरवी को न जाने क्यों भीम पर कभी भरोसा नहीं लगता था । उसे यह भी लगता था कि इस उपद्रव के पीछे भी उसी शातिर का हाथ है ।आखिर है तो भाड़े का आदमी ।

   अभी कुछ ही दिन उसे गाँव से आए हुए थे ,कि फोन आया ,शहर वाले मकान का ताला तोड़कर मुन्ना नामका गुंडा घर में घुस गया । चारों तरफ फोन खटखटाए जाने लगे ।फौरन बड़े भैया गाँव पहुंचे थे ।केस मुकदमा दर्ज करने से वहाँ कि पुलिस भी नानुकुर कर रही थी ,क्योंकि वह जीती हुई पार्टी का आदमी था । बाद में दिल्ली के पुलिस के फोन पर मामला दर्ज हुआ ।लोगों से बातचीत पर शक की अप्रत्यक्ष  सुई भीम पर भी घूम गई थी । वह अपनी वफादारी और ईमानदारी का प्रलाप करता हुआ , अपने गाँव भाग गया ।बारात घर बंद करना उसे पसंद नहीं आया था ।उधर मौसी  शैव्या विलाप करती हुई अपनी बहन को जली कटी सुनाने लगी थी “इतने दिन जो सेवा किया उसका यही अंजाम दे रही हो ।हमारे बेटा को थाना पुलिस मत करना”।समझदार और संवेदनशील  बड़े भैया ने बीच की सारी बातों को हटा कर उसे अपना पक्ष में रहने के लिए राजी तो कर लिया ,मगर अब वह माँजी के पास रहने के लिए बिलकुल तैयार नहीं था । माँजी भी उसके नाम से किसी नीम बौराए आदमी की तरह बौखला जाती हैं ।

  कोर्ट में केस चल रहा है ,भीम अपने गाँव में रहता है बीच बीच में कोर्ट के तारीख पर तो ,बड़े भैया के आग्रह पर चला जाता है, मगर ,भूलकर भी कभी अपनी मौसी को नहीं पूछता हैं । माँजी अकेले रहती हैं ,और उनके सारे गप्प सप्प का केंद्र है अब केवल वही भाड़े का आदमी ।

 

     कामिनी कामायनी ।

फ्लैट न 1102 ,प्लॉट न 15,संचारविहार ,द्वारका ,नई दिल्ली ,110078

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. कामिनी कामायनी जी,
    पूरी कहानी पढ़ने की हिम्मत नहीं रही...गाँव का वर्णन अच्छा रहा.
    अयंगर.

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: कामिनी कामायनी की कहानी - भाड़े का आदमी
कामिनी कामायनी की कहानी - भाड़े का आदमी
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