दीपक आचार्य का आलेख - दूर रहें कचरापात्रों से

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दूर रहें कचरापात्रों से - डॉ. दीपक आचार्य 9413306077 dr.deepakaacharya@gmail.com यह कतई जरूरी नहीं कि कचरा पात्र वही कहें जाएं जो किसी ...

दूर रहें कचरापात्रों से

- डॉ. दीपक आचार्य

9413306077

dr.deepakaacharya@gmail.com

यह कतई जरूरी नहीं कि कचरा पात्र वही कहें जाएं जो किसी एक स्थान पर स्थिर पड़े रहें और कचरा जमा करने के काम आते रहें।

कचरा पात्रों का जीवन्त स्वरूप भी हमेशा हर युग में रहा है। यह हो सकता है कि हमारी जानकारी में न हो, लेकिन मानव जाति हर युग में कचरा पात्रों से घिरी रही है।

ये कचरा पात्र हर सदी में रहे हैं और इनकी वजह से ही समाज और परिवेश में सडान्ध का माहौल हमेशा बना रहता है।

इन कचरा पात्रों को किसी भी अच्छाई, अच्छे कामों या सज्जनों से कोई सरोकार नहीं है बल्कि इन कचरा पात्रों को रोजाना हर क्षण कुछ न कुछ नया कचरा चाहिए होता है।  हमारे आस-पास भी ऎसे ढेरों कचरा पात्र विद्यमान हैं, अपने क्षेत्रों में भी, और देश में जहाँ-तहाँ, हर जगह।

खूब सारे लोग ऎसे पाए जाते हैं जो अपने कर्म या समाज के प्रति फर्ज की तरफ हमेशा मुँह मोड़े रहते हैं लेकिन अपने आस-पास, परिवेश और क्षेत्र में कहाँ क्या कुछ गलत-सलत हो रहा है, कौन कर रहा है, क्यों कर रहा है तथा इससे भी आगे बढ़कर हर प्रकार की सडांध भरी गंदगी और बुराइयों से जुड़ी हर हरकत पर इनकी पैनी नज़र होती है।

इन लोगों को मनुष्य की गिद्ध प्रजाति कहा जाए तो ज्यादा अच्छा होगा।  इन लोगों का व्यक्तित्व, कर्म, व्यवहार और आदतों से लेकर जीवनचर्या को देखा जाए तो साफ प्रतीत होगा कि इन लोगों का जन्म ही नकारात्मक कर्मों, गंदगी फैलाने और  मलीनता फैलाने वाले जानवरों के काम करने के लिए ही हुआ है। फिर इन लोगों को अपनी नकारात्मक हरकतों से औरों को परेशान व दुःखी करने में जो आनंद आता है, वह किसी और से प्राप्त नहीं हो सकता।

दुर्भाग्य से ऎसे लोग सभी स्थानों पर हैं। सज्जन लोग भी इनसे भयभीत रहते हैं क्योंकि इनके पास गंदगी के जाने कितने महा भण्डार हमेशा विद्यमान होते हैं, पता नहीं कब एक कतरा कीचड़ इधर उछाल दें। इन पर तो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला क्योंकि ये गंदगी देखने, सुनने और फैलाने के लिए ही पैदा हुए हैं, सडांध  से ही इनका दिमाग और शरीर पुष्ट होता है और गंदगी तलाशना ही इनके जीवन का एकमेव उद्देश्य होता है।

लेकिन शुभ्र और सात्ति्वक छवि वाले लोगों के मन-मस्तिष्क पर इसका गहरा असर होता है। क्योंकि जो लोग सज्जन और सात्ति्वक होते हैं वे गहरे संवेदनशील भी होते हैं और परिवेश की किसी भी प्रकार की चर्चा या घटना का उन पर असर जल्दी होता है।

इसके विपरीत इन सभी आयु वर्गों के कचरापात्रों न संवेदना होती है, न कोई लाज-शरम।  इसलिए इन नुगरों और नालायकों पर कोई फर्क नहीं देखा जाता।

घर-परिवार, समाज, क्षेत्र या परिवेश में कुछ मिनट की मुलाकात में इन कचरापात्रों को आसानी से जाना-पहचाना जा सकता है। कोई सी कितनी अच्छी बात हो, उसके लिए नकारात्मक अभिव्यक्ति इन कचरापात्रों का पहला गुण है। इसके बाद शंकाओं, भ्रमों, आशंकाओं और विचार या कार्य से संबंधित सभी प्रकार की नकारात्मक चर्चाओं की झड़ी लग जाती है।

कचरापात्रों का सबसे पहला गुण यही है कि ये खुद कुछ भी करना नहीं चाहते। कोई सा काम सामने आ जाए इन्हें आफत लगता है और ऎसे में ये हर काम को बड़ी ही चतुराई से टाल दिया करते हैं या औरों के पाले में डाल देने में माहिर होते हैं।

इन कचरापात्रों की पूरी जिन्दगी अनर्गल चर्चाओं, निन्दाओं और दुनिया भर की फालतू बातों से भरी रहती है और इन लोगों को इसी में आनंद आता है। दुनिया के किसी भी कोने में कुछ भी हो रहा हो, इन कचरापात्रों के लिए वह हर बात महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि कचरापात्रों का पेट किसी माँसाहारी भट्टी या  देग से कम नहीं होता जहाँ उनके लिए मसालों की बजाय किसम-किसम की चर्चाओं और फिजूल की निंदाओं से ही स्वाद आता है और पेट भरता है।

इन लोगों का पेट पौष्टिक भोजन या सुस्वादु खान-पान से नहीं भरता बल्कि उन बातों से भरता है जिनका इनके जीवन से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं होता। कहा जाता है कि बारह साल में घूरे के भी दिन फिरते हैं लेकिन ये कचरापात्र ऎसे ढीठ, निर्लज्ज और नाकारा हो गए हैं कि इनमें दशकों तक कोई परिवर्तन नहीं आता बल्कि ज्यों-ज्यों समय बीतता जाता है ये और अधिक परिपक्व और मजबूत होते जाते हैं।

इनके दिमाग और मन में जमा गंदगी, अंधकार और मलीनता इनके चेहरों पर भी साफ तौर पर प्रतिबिम्बित हो ही जाती है। यही कारण है कि जिसका मन और मस्तिष्क मैल से भरा हुआ है उन लोगों का चेहरा कभी सौन्दर्य या आकर्षण नहीं बिखेर सकता बल्कि इन लोगों की शक्ल देखने भर से घिन्न आने लगती है। 

लेकिन इन्हीं की कचरापात्री बिरादरी के लोगों में आपसी आत्मीयता, व्यवहार और परस्पर काम आने की प्रवृत्ति इतनी अधिक कि हर किसी को आश्चर्य होता है। भारत जैसे देश में जहाँ सहिष्णुता,सहृदयता और आत्मवत सर्वभूतेषु जैसे आदर्शों का बोलबाला रहा हो, वहाँ ये संवेदनहीन, खुदगर्ज और स्वार्थी कचरापात्रों का वजूद कहीं न कहीं यह कहने को विवश करता ही है कि आखिर वह कौनसा क्षण था जब बीज तत्वों में मिलावट हो गई।

हमारे प्रधानमंत्रीजी से लेकर हम सारे के सारे लोग स्वच्छता अभियान चलाने में तुले हुए हैं, झाडू लेकर हर तरफ सफाई का पैगाम दे रहे हैं। लेकिन जब तक समाज और परिवेश से ऎसे नाकारा और सड़ियाये कचरापात्रों की तगड़ी सफाई नहीं होगी तब तक सम्पूर्ण स्वच्छता की कल्पना बेमानी है।

हकीकत में तो तमाम प्रकार की संस्थाओं, प्रतिष्ठानों, संस्थानों, समाज और देश भर में प्रदूषण फैलाने के लिए ये कचरापात्र ही जिम्मेदार हैं और इनसे मुक्ति पाने के लिए कुछ और करना होगा। क्योंकि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। इनके लिए डण्डे चलाने की जरूरत है तभी इनकी अक्ल ठिकाने आएगी और अपने-अपने काम-धंधों में मन लगेगा। 

आईये हम अपने आस-पास ऎसे बेशर्म, मुफत का माल उड़ा रहे कचरापात्रों को चुनें और उन्हें समझाएं। समझाने के तौर-तरीकों के बारे में बताने की जरूरत शायद नहीं है। पर यह भी जान लें कि ये शालीनता से समझने वाले नहीं हैं। इनके लिए हम सभी को मिल-जुलकर ही तगड़ा इंतजाम करना होगा। ऎसा होने पर ही हमारा स्वच्छता अभियान सफल हो सकता है। पहले उन  असामाजिक तत्वों और आतंकवादियों की सफाई जरूरी है जो समाज, परिवेश और देश में गंदगी फैला रहे हैं।

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