" सन्देश " उस दिन एक पारिवारिक कार्यक्रम में नमिता मिली। वह मेरी बचपन की सहेली है ,हम दोनों जब भी मिलते हैं खूब बातें करते हैं। अ...
" सन्देश "
उस दिन एक पारिवारिक कार्यक्रम में नमिता मिली। वह मेरी बचपन की सहेली है ,हम दोनों जब भी मिलते हैं खूब बातें करते हैं। अगली पिछली सारी यादों को ताजा कर लेते हैं ,बड़ा अच्छा लगता है हमें एक दूसरे से मिल कर इस बार कई वर्षों के बाद मिले .वह मुझे पकड़ कर बोली ,
अरे शुचि तू वकील बन गई है क्या ,कब की तूने पढ़ाई ,घर व बच्चों के साथ।
बस कर ली समय निकाल कर। पर तुझे कैसे पता लगा ,मैंने तो अभी किसी को बताया ही नहीं।
राजू मेरा छोटा भाई भी तो कोर्ट जाता रहता है न ,अपनी प्रॉपर्टी का लेन देन करने ,उसी ने बताया की शुचि दीदी कला कोट पहिने वकीलों की एक मीटिंग में भाषण दे रहीं थीं। सब उनकी तारीफ कर रहे थे ,मैने भी उनसे कहा वो हमारी दीदी है कुछ कह रहे थे हमें भी मिलवाओ अपनी दीदी से। राजू कह रहा था कि तुम कार्यक्रम में इतनी व्यस्त थीं की वह खुद भी तुम से नहीं मिल पाया।
अरे मिल लेता मैं तो उस दिन काफी समय तक रही थी वहां। उन लोगों ने मुझे नारी शसक्तीकरण पर बोलने कि लिए बुलाया था।
पर तूने वकालत क्यों नहीं की ,
बस नहीं कर पाई।
क्यों?
क्यों कि मैं रही अधिकारी कोई बिना आज्ञा कि कोई मेरे कक्ष मैं नहीं आ पाता था। यहाँ तो जब मैं अपने बस्ते पर बैठती थी तो कोई न कोई अख़बार पड़ने कि बहाने मुंह मैं पान दबाये बे मतलब बतियाने चला आता था ,जो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता था। करीब तीन महीने मैने वकालत की ,आज भी मेरे नाम की प्लेट वहां लगी हुई है ,कभी कभी चली जाती हूँ हाजरी लगाने। मैंने गरीब महिलाओं कि लिए सेंटर खोल रखा है ,मैं उनकी क़ानूनी सलाहकार हूँ ,समाज सेवा करती हूँ।
अच्छा करती है हमने तो नौकरी करके बच्चे पाले बस। और कुछ नहीं किया। अरे तूने सारे देश में कई जगह नौकरी की है कोई दोस्त नहीं बना।
तुझे पता है मैने नौकरी कि साथ साथ पढ़ाई भी की है ,बच्चे भी पाले ,कभी जिंदगी में एक अच्छा सा दोस्त बना था उससे शादी नहीं हो पाई ,जिससे शादी हुई वह कभी दोस्त नहीं बन पाया।
बस परिवार का फर्ज निभाते निभाते जिंदगी कब गुजर गई पता ही नहीं चला।
अरे आज कल सब ऎसे ही जिंदगी गुज़ारते हैं।
तुझे कैसे पता ?
अरे मै भी तो इसी समाज मै रहती हूँ न ,उसने बड़ी आत्मीयता से कहा।
अच्छा ,मैने उसका हाथ पकड़ कर कहा फिर बोली शुचि तुम ने बड़ी जल्दी अपना मकान बना दिया था।
अरे मज़बूरी थी ,कहीं भी ठिकाना नहीं था ,न मायके में न ससुराल में ,माँ पिताजी किराये के मकान में रहते थे वहीँ से हमारी शादियां हुई थीं। ससुराल वाले भी किरायेदार ही थे। इस लिए मैंने अपना मकान बनाया ,माँ पिताजी भी करीब तीन वर्ष तक मेरे ही मकान में रहे। मेरे मकान के बाद ही उन्होंने अपना मकान बनाया
|तेरे ही घर में रह लेते।
अरे लड़की के घर में कब तक रहते। बड़े स्वाभिमानी थे माँ पिताजी। जबकि मकान के लिए ज़मीन पिताजी ने ही मुझे दी थी।
चलो तूने अपने को बहुत जल्दी सुरक्षित कर दिया था।
हाँ यह तो है ,
तूने कब बनाया था मकान।
तुझे नहीं पता
मेरा बेटा जब नौकरी पर लगा तब हम मकान बना पाये। एक आदमी की आमदनी से केवल घर ही अच्छी तरह चल सकता है।
तूने नौकरी क्यों नहीं की ,तू भी तो पड़ी लिखी थी।
बार बार इनकी बदली जो हो जाती थी ,
सरकारी नौकरी में ऐसा ही होता है।
काफी दिनों बाद मिले थे हम दोनों ,खूब बातें करते रहे ,यह भी भूल गए कि हम किसी के पारिवारिक कार्यक्रम में आये हुए हैं। हमारी पुकार हो रही थी ,पर हम अपने में ही मगन थे।
नमिता मेरे बाद आई थी ,पूछ बैठी ,आज तो तुम्हें कई पुराने मित्र मिले होंगे
कोई बात हुई क्या ,
मैने पूछा किसकी बात कर रही है।
अरे तेरे उसी प्रिय मित्र की जिसके साथ तेरा नाम जुड़ता था
हाँ मिले तो थे ,काफी देर हम बात करते रहे।
कोई गिला शिकवा।
अरे नहीं अब इसका समय ही नहीं रहा ,उमर बीत गई
,तुम वहां किसके साथ बात कर रहीं थीं।
उसने पास आकर ऊँगली से इशारा करके कहा।
तेरी पुरानी आदत गयी नहीं इशारा करने की।
जब मै ही नहीं बदली तो आदत कैसे बदल सकती है ,उसने हँसते हुए कहा।
मै तो वहां सबसे ही बात कर रहीं थी।
किसी टोपी वाले को तुम अपनी पुस्तक दे रहीं थीं।
अरे वो ,वो कामिनी का बेटा था।
कौन कामिनी ?
भूल गयीं कामिनी को ,तू कैसे भूल सकती है ,जिसकी शादी में तुम सब लोग गांव गए थे।
अरे वो मैं तो भूल ही गयी ,उसकी शादी मैं तेरा दोस्त तुझे अपने गांव ले जाना चाहता था। पर तेरी माँ ने तुझे नहीं भेजा ,तू तीन दिन तक रोती रही थी।
पर तू तो गयी थी न गांव कामिनी की शादी मेँ।
मैं क्या पूरा मुोहल्ला गया था ,बस तू ही नहीं जा पाई ,हमें भी बहुत बुरा लगा था तेरे बिना।
पर तुम सब ने तो खूब मस्ती की थी न वहां।
पर तेरे बिना मजा नहीं आया ,तेरा दोस्त भी खुश नहीं दिख रहा था।
बहुत प्यार करते थे न तुम दोनों।
हाँ करते तो थे ,पर समाज की बनाई हुई जाती की दीवार नहीं तोड़ पाये। सारी उम्र उसी की यादों के साये में जीते रहे।
खैर छोड़ ,तू टोपी वाले को कैसे जानती है।
मै नहीं जानती राजू ने बताया कि यह कामिनी का बेटा है।
कौन राजू ?
तू तो सबको भूल गयी है ,तुम्हारे घर के सामने ही तो रहता था ,रजनी का बेटा।
अच्छा वो था वह ,
हाँ अब अच्छी तरह सबको पहिचान ले।
मुझे जरुरत नहीं है ,पर तू कामिनी के बेटे से क्या कह रही थी।
तू बार बार क्यों पूछ रही है।
बस तू मुझे सच सच बता बस ,तभी मुझे चैन पड़ेगा।
तू ऐसे नहीं मानेगी तो सुन ,मैने कामिनी के बेटे से कहा कि अपनी ममी से कहना कि शुचि आंटी मिली थीं ,उन्होंने आपके लिए किताबें भेजी हैं। तथा कहा है कि मै तुम्हारी भाभी तो नहीं बन सकी ,लेकिन आज भी में तुम्हारे भाई के प्रति मेरे दिल में वही प्यार व सम्मान है लो पचास वर्ष पहिले था। यह सन्देश मैंने उसके बेटे द्वारा कामिनी को भिजवाया है।
अरे जिससे प्यार करती है उसी से कह देती।
उससे तो तभी कह दिया था जब हम पचास वर्ष बाद मिले थे। हम पिछले दस वर्षों से मिल ही तो रहे हैं।
फिर कामिनी को सन्देश क्यों भिजवाया।
ताकि उसकी भाभी को भी पता चल जाये कि हम दोनों एक दूसरे को आज भी उतना ही प्यार करते हैं जितना पहले करते थे।
इससे क्या होगा ?
उसकी पत्नी तक मेरा सन्देश पहुंच जायेगा।
वह घर में कलह करेगी तो।
वह तो रोज ही करती है। मेरा नाम ले कर मेरे मित्र को बहुत दुःख देती है। उसे भी तो पता लगना चाहिये कि वर्षों संग साथ रह कर भी वह अपने पति का दिल नहीं जीत पाई। और हम वर्षों दूर रह कर भी दिल के इतने पास पास हैं कि जब आवाज लगाई करीब आ गये| हमारी दोस्ती इतनी पवित्र है कि कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता
,वह तो सौ जनम ले कर भी दोस्ती के महत्व को नहीं समझ सकती है।
तेरे ऐसा सन्देश भेजने से क्या वह घर में कलह करना छोड़ देगी।
पता नहीं।
फिर कामिनी द्वारा अपने मन की बात उसकी पत्नी तक क्यों पहुंचाई ?
“मन की शांति” के लिए।
---
COMMENTS