नन्दलाल भारती की कहानी - बुलौवा

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डां .नन्दलाल भारती कवि , लघुकथाकार, कहानीकार, उपन्यासकार एम .ए.। समाजशास्त्र। एल.एल.बी.। आनर्स। पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर...

डां.नन्दलाल भारती

कवि, लघुकथाकार, कहानीकार, उपन्यासकार

एम.ए.। समाजशास्त्र। एल.एल.बी.। आनर्स।

पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट ;

बुलौवा/कहानी

खींझचन्द ने स्वर्णिम आभा से दमकते हुए शादी के बुलौवा कार्ड को लिफाफे से ऐसा निकाला जैसे कोई चक्रवर्ती सम्राट म्यान से तलवार और बुलौवा कार्ड को ऐसे दूर फेंका जैसे किसी विषकन्या का बलात्कार कर आंखों से दूर। इसके बाद खींझचन्द विजयी मुद्रा में बोले साहब ने तो मुझे क्षेत्र में दूसरा स्थान दे दिया। यह सुनकर रूपचन्द बोले क्या हुआ ठाकुर साहब फिर प्रमोशन हो गया क्या ?

पंडितजी नहीं समझे खींझचन्द बोले। रही बात प्रमोशन की तो प्रमोशन तो कभी रूका नहीं देर सबेर तो बांस बन जाऊंगा।

रूपचन्द-बदलते युग में सब कुछ सम्भव है खींझचन्द, गांठ ढीली करनी पड़ सकती है। आप तो साम दाम और भेद से भी समर्थ है। कोई काम रूका तो नहीं है। रूकेगा भी कैसे नीचे से उपर तक सभी तो आपके लोग है। अच्छे दिन तो सदैव बने रहे है।

खींझचन्द-क्यों नहीं रूका, बराबर प्रमोशन हुआ होता तो चीफ मैनेजर बन गया होता। बी.काम टाइपिस्ट मुख्यप्रबन्धक बन गया और मैं खाक छान रहा हूं।

रूपचन्द-आप भी बड़े प्रबन्धक हो, क्यों चिन्ता कर रहे हो ठाकुर साहब, आपसे सीनियर हंसाबाबू थे, उन्हें समय से पहले रिटायर कर दिया, आपका तो धड़ल्ले से प्रमोशन हो रहा है, तनख्वाह के साथ दूसरी कमाई भी बढ़ गयी, काश आप जैसी किस्मत सभी की होती। बछन दरवाजे के बाहर बैठे देवराम के बारे में कभी सोचा है, सबसे अधिक पढ़ा लिखा है पर उसका प्रमोशन नहीं हुआ तो नहीं हुआ क्योंकि इसकी ऊपर तक पहुंच नहीं है, दूसरी बड़ी कमी है कि देवराम छोटी जाति का आदमी है। दुर्भाग्यवश, विभाग में जातीय भेद के चक्रव्यूह का खेल बेखौफ शुरूआती दिनों से चल रहा है। विभाग की नींव ही सामन्तवादी व्यवस्था पर पड़ी हुई है। इसी व्यवस्था का है देवराम। बेचारे के साथ न्याय हुआ होता तो प्रशासन विभाग का हेड होता परन्तु आज तक उसी जातीय चक्रव्यूह की साजिश जारी है। सच किसी ने कहा है समर्थ नहीं दोष गोसाईं।

खींझचन्द-रूपचन्द क्यों भूल रहे हो तुम्हें भी जातीय श्रेष्ठता के बल पर यहां तक पहुंचे हो। जिस दिन दलितों को विभाग में समान मौका मिल गया तो तुम्हारी नौकरी खतरे में पड़ जायेगी।

रूपचन्द-देखो ठाकुर साहब आपकी सामन्ती नीति की तोड़ तो मेरे पास नहीं है।

खींझचन्द-मेरे पास भी तुम्हारी चाणक्य नीति का तोड़ नहीं है।

रूपचन्द-पैतरेबाजी ना करो। प्याज जितना छीलेंगे उतना छिलका ही निकलेगा। रही बात देवराम की तो जातिवादी प्रबन्धन ने देवराम के साथ अत्याचार ही किया है। आप तो ये बताओ कि किस साहब ने आपको प्रदेश के दूसरे नम्बर का अफसर बना दिया। खैर आप पहले नम्बर के अफसर बन जाओगे।

खींझचन्द-अपनी मुट्ठी में प्रबन्धन नहीं है तो क्या कोई काम रूकता नहीं है।

रूपचन्द-खैर आपका काम कौन रोक सकता है। दूसरे नम्बर का अफसर कौन कैसे कह दिया आप तो प्रथम श्रेणी के अफसर है।।

खींझचन्द-तुम्हारी बिरादरी के अफसर लेवप्रसाद के बेटे की शादी है, शादी के बुलावा कार्ड पर विभागाध्यक्ष के बाद मेरा नाम लिखा है।

रूपचन्द-विभागाध्यक्ष के बाद आप ही तो प्रदेश में है, वैसे भी हर मायने में एरिया के तो आप पहले नम्बर के अफसर हो। लेवप्रसाद साहब ने दूसरे नम्बर का कैसे लिख दिया ? देवराम को तो लेवप्रसाद साहब ने दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया।

खींझचन्द-देवराम की बात कहां से आ गयी रूपचन्द ?

देवराम तीस साल से विभाग की सेवा कर रहा है। लेवप्रसाद के साथ दस साल तक काम किया है और लेवप्रसाद ने उसे ही भूला दिया रूपचन्द बोला।

खींझचन्द-लेवप्रसाद ने देवराम को दोयम दर्जे का आदमी हमेशा समझा, उसके साथ अछूतों जैसा व्यवहार किया। सरकारी जश्नों से देवराम और उसके परिवार को लेवप्रसाद दूर रखने की पूरी कोशिश करते थे। सोचो जरा लेवप्रसाद बेटे की शादी का बुलौवा ऐसे दोयम दर्जे के आदमी को भेज सकते है क्या ?

रूपचन्द-बी.काम पास लेवप्रसाद भी देवराम की तरह मामूली से क्लर्क से नौकरी शुरू किये थे जबकि देवराम विभाग में सबसे अधिक पढ़ा-लिखा इंसान है। जातीय अयोग्यता के कारण देवराम मार खा गया वरना लेवप्रसाद जैसे लोग तो देवराम के अधीनस्थ काम करते।

खींझचन्द-देवराम का बहुत पक्ष ले रहे हो क्या बात है ?

रूपचन्द-पक्ष नहीं ले रहा हूं, देखा जाये तो जातीय दुश्मन है देवराम। युग बदल गया है अपनी रूढ़िवादी मानसिकता भी बदलनी चाहिये। अन्याय को न्याय तो नहीं कह सकता खींझचन्द। देखो विभाग का हर आदमी मौन ही सही पर मानता है कि देवराम के साथ अन्याय हुआ है।

खींझचन्द-जो होता है अच्छे के लिये होता है।

रूपचन्द-कभी-कभी अपवाद भी हो जाता है मानवीय प्रक्रिया में।

खींझचन्द-क्या कहना चाहते हो ? देवराम को सामन्तवादी विभाग में नौकरी मिल गयी क्या कम है। उसके बच्चे आपके बच्चों से आगे निकल गये जबकि आपसे आधे से कम तनख्वाह उसको मिलती है। सोचो जरा यदि वह बड़ा अफसर होता तो क्या होता ? तुम्हारी छाती पर मूंग दलता। उच्च अधिकारियों ने अच्छा किया उसके पर कतर दिये। इतनी देवराम को अपनी शैक्षणिक योग्यता पर गुरूर था तो विभाग की टाइपिस्ट की नौकरी छोड़ देता।

रूपचन्द-उच्च शिक्षित देवराम टाइपिस्ट की नौकरी नहीं छोड़कर रूढ़िवादी या कहो सामन्तवादी अफसरों के मुंह पर थप्पड़ मारा है। भले ही सामन्तवादी अफसरों ने देवराम की तरक्की नहीं होने देने की खुशी मना ले।

खींझचन्द-क्या कह रहे हो रूपचन्द ?

रूपचन्द-जरा सोचो इस सामन्तवादी विभाग के इस प्रदेश में सौ लोग काम करते है, पूरे देश की बात नहीं करता। उसमें दलित कितने है। सिर्फ एक देवराम। देवराम को मौका मिल जाता तो विभाग की वाहवाही होती। देवराम भी जहां जाता विभाग के गुण गाता, अब हाल तो ये होता होगा, नौकरी का नाम आते ही मौन सांध लेता होगा। राष्ट्रीय स्तर पर देखो सभी आरक्षण का विरोध कर रहे है पर हर सरकार दस साल और के लिये सर्वसमिति से आरक्षण बढ़ा देती है। आरक्षण से आरक्षित वर्ग का कितना भला हुआ है। कितने दलितों को आईएसएस /आईपीएस बनने दिया जा रहा है। इस वर्ग के उच्चशिक्षित घबराकर आत्महत्या तक कर रहे है। खींझचन्द आरक्षित वर्ग के लोगों का भविय तो अनारक्षितों के हाथ मे है। आजादी के दशकों बाद वे आज भी रोटी आंसू से गीली कर रहे हैं।

खींझचन्द-जीतराम मांझी को क्यों भूल रहे हो रूपचन्द।

रूपचन्द-जीतराम मांझी को पदोन्नति और एक मामूली से दलित कलर्क की पदोन्नति में अन्तर है। खैर मांझी की नईया तो डूबो दी ने सामन्तवादियों ने। देवराम बड़ा अफसर बन जाता तो अपनी योग्यता का भरपूर उपयोग विभाग के भले के लिये करता। दुनिया में जनजागरणककर्ता के रूप में उसकी जयजयकार तो नहीं होती। कुएं का मेढक बनकर रह जाता। वैसे भी अनारक्षितों की इन्ट्री विभाग में बन्द है, एक आ गया था तो उसकी शैक्षणिक योग्यता का सम्मान विभाग को करना था पर विभाग ने निरापद के भविष्य को फांसी पर चढ़ा दिया।

खींझचन्द-तुम्हारी बात में तो बहुत दम है तभी तो हिटलर भी तुम्हारे पूर्वजों की ढकोसले वाली धार्मिक कूटनीति के आगे बौना हो गया। हालत तो आज ये है उसके परिवार के लोग हिटलर के नाम पर मुंह छिपाते हैं, अपना उपनाम हिटलर भी बदल चुके है। तुम लोगों का अघोषित साम्राज्य कभी खत्म नहीं हुआ और होगा भी नहीं। तुम्हारे पूर्वजों ने देश के मूलनिवासियों के साथ छल कर उनकी सत्ता हथिया कर गुलाम बनाने के साथ, छत्तीस करोड़ देवी देवतओं का ऐसा मन्त्र लोगों के कानों में फूंक दिया है कि तुम लोग पूजवाते रहोगे। आरक्षित वर्ग आरक्षण के आक्सीजन पर सांस भरते रहेगा। इनका विकास तब तक सम्भव नहीं है जब तक इन्हें समानता का सामाजिक अधिकार और जल जमीन और व्यापार पर समान कानूनी अधिकार नहीं मिल जाता। ऐसा होना इस देश में सम्भव भी नहीं है। उच्च वर्णिक पोथी वाले सनातन आरक्षणधारी भरपूर दोहन करते रहोगे।

रूपचन्द-ये बात तो है हमारे पूर्वज लाखों साल पहले भी बुद्धिमान थे और आज भी है, उनके विकसित दिमाग की कमाई आने वाली हजार पीढ़ियां भी खाकर खत्म नहीं कर पायेगी।

खींझचन्द-कैसी तुम्हारी कूटनीति है रूपचन्द एक तरफ तो कह रहे हो तुम्हारी सत्ता खत्म होने वाली नहीं है। दूसरी तरफ देवराम का पक्ष ले रहे हो।

रूपचन्द-मैंने पक्ष नहीं लिया है, ढील देकर फन्दा कसने कि बात किया हूं खींझचन्द, जो बात मैंने की है उसका सार इतना है कि देवराम की तरक्की भी हो जाती उसका मुंह भी बन्द हो जाता, वह ये तो नहीं ना कहता कि विभाग में उसके साथ अत्याचार हुआ है, मेरे कहने का बस इतना सा मकसद है।

खींझचन्द-ना सांप मरे ना लाठी टूटे वाली कहावत चरितार्थ कर रहे हो।

रूपचन्द-छोटे लोगों की जरूरतें भी छोटी होती है। इनको खुश कर इनका दोहन किया जा सकता है। रूपचन्द के मामले में विभागीय प्रबन्धन से चूक हो गयी। डां.विश्व प्रताप, देवप्रसाद, अवधेशप्रसाद, रामप्रसाद, लेवप्रसाद और दूसरे ने तो देवराम के दमन का ऐलान करके रखा हुआ था। डां.विश्व प्रताप, देवप्रसाद, अवधेशप्रसाद तो रिटायर होने के बाद भी देवराम को डंस रहे है। मोहनसिंह राठौड़ को तो देवराम अपना हितैषी समझ बैठा था पर वे तनिक भी नहीं चाहते थे। रिटायर होने के एक महीना पहले देवराम के मामले पर क्या बोले थे मालूम है ?

खींझचन्द-मुझे नहीं मालूम।

रूपचन्द-नये निदेशक के सामने देवराम ने कैरिअर के कत्ल की बात किया था। निदेशक साहब ने अर्जी मंगवाया था। देवराम ने अर्जी भी दिया था पर मोहनसिंहराठौड़ ने डां.विश्व प्रताप, देवप्रसाद, अवधेशप्रसाद, रामप्रसाद, लेवप्रसाद जैसे ही आगे नहीं बढ़ाने की कसम खा लिया था। मालूम है क्या बोले थे ?

खींझचन्द-अरे रूपचन्द हमें क्या पता मैं वहां पर तो था नहीं मुझे कैसे मालूम ?

रूपचन्द-मैं कौन सा था।

खींझचन्द-पर तुमको मालूम तो है ना। मुझे नहीं मालूम है। बताओगे तो जान सकूंगा।

रूपचन्द-मोहनसिंहराठौड़ साहब अर्जी को कूड़ेदान के हाले करते हुए बोले थे इस नौकरी से सन्तोष नहीं है तो नौकरी छोड़ दे देवराम।

खींझचन्द-ये कोई नई बात नहीं है, ऐसा तो अक्सर सभी अफसरों ने देवराम के मुंह पर बोला है। अवधेशप्रसाद ने तो यहां तक बोल दिया था कि बड़ा अफसर बनने की इतनी लालसा है तो बड़े पद की पट्टी गले में बांध लो जैसे कुत्तों के गले में बंधी होती है।

रूपचन्द-सभी कि बात अलग है पर मोहनसिंह राठौड़ साहब को देवराम के लिये ऐसा बोलना किसी सदमें से कम नहीं है।

खींझचन्द-देवराम सुनसुनकर ढीठ हो गया है। वह किसी पर विश्वास नहीं करता होगा। ये साहब किस खेत कि मूली है।

रूपचन्द-नहीं ऐसा नहीं किसी दूसरे अफसर की तारीफ देवराम नहीं करता पर इस साहब की तारीफ करता है। मोहनसिंहराठौड़ साहब के रिटायरमेण्ट के मौके पर विजयपथ कविता लिखा था। कविता पढ़ा भी था बतौर स्मृतिचिन्ह यह कविता फ्रेम करवा कर साहब को तत्कालीन क्षेत्रीय इंचार्ज ने गर्व के साथ दिया था। ऐसा अफसर इस तरह का डायलांग डिलीवर करे तो शर्म की बात है।

खींझचन्द-चड्डी के नीचे सभी नंगे होते है।

रूपचन्द-ठीक कह रहे हो विभाग के सभी अफसरों ने देवराम के साथ जातीय दुश्मनी खूब निभाया है। यह तो दिखता है बांस।

खींझचन्द-देवराम को भूल जाओ, कोई विभाग के लिये वह छाती का बोझ हैं, भले ही दुनिया विश्वभूाण का ताज दे दे, विभाग में तो वह है तो मामूली सा टाइपिस्ट ही है ना। फालतू की बातें छोड़ों लेवप्रसाद साहब के बेटे टुन्नू की शादी के बुलौवे का क्या हुआ ?

रूपचन्द-शादी के बुलौवे का क्या हुआ आप भी जानते हो। इतना बड़ा अफसर एक बैलावा कार्ड पर इतने सारे अफसरों का नाम लिख दिया कौन जायेगा। हम सभी अफसर मिलकर एक ईमेल करते देते है टुन्नू की शादी के बुलौवे बदले, इतने में देवराम आ गया। देवराम को देखते ही खींझचन्द ने झिंक दिया और रूपचन्द ने बात का रूख बदल दिया पर देवराम के कान को शादी का बुलौवा स्पर्श कर चुका था।

देवराम-रूपचन्द साहब किस का बुलौवा आ है।

टुन्नू की शादी का रूपचन्द बोले।

क्या ? टुन्नू की शादी का बुलौवा देवराम आश्चर्यचकित होकर बोला।

रूपचन्द-इतना अचम्भा क्यों हो रहे हो ?

देवराम-इतने बड़े अफसर के बेटे टुन्नू की शादी का बुलावा और मुझे खबर नहीं लगी। कोई कलेक्शन भी नहीं हुआ क्या ? पहले तो बड़े अफसरों के बेटा-बेटी की शादी के बुलौवा के बदले सोने के हार तक दिये गये है। कब शादी थी ?

खींझचन्द-गुस्से में बोले देवराम तुम तो ऐसे पूछ रहे हो जैसे तुमको पता ही नहीं।

देवराम-सच नहीं मालूम।

खींझचन्द-तुमको टुन्नू की शादी का बुलौवा कार्ड ने भेजने के लिये खेद माफीनामा ई पत्र तो लिखा है।

देवराम-तारीख स्थान का जिक्र नहीं है। खींझचन्द जी लेवप्रसाद साहब ने ई खेदपत्र के माध्यम से मुझे अपमानित किया है।

खींझचन्द-इतना बड़ा अफसर एक टाइपिस्ट से माफी मांग रहा अपमान कैसे हुआ यह तो तुम्हारे लिये सम्मान की बात होनी चाहिये देवराम।

देवराम-रिसते जख्म पर बार-बार पड़ते खार को हम अपना नसीब तो नहीं मान सकते। अपमान और सम्मान में उतना ही अन्तर है जितना नरक और स्वर्ग में। मैं भी शब्दों के मायने समझता हूं। सम्भवतः आपने वह ईमेल पढ़ा है।

खींझचन्द-तुमको कैसे मालूम ?

देवराम-उचित माध्यम से ईमेल जे आया है। वैसे सच्चाई बिन कहे बयां हो जाती है। आपने गौर फरमाया होगा पत्र मुझे नहीं टाइपिस्ट से खेद व्यक्त किया गया है। टुन्नू की शादी सरकारी नहीं थी इसलिये सरकारी पद से सम्बोधन वह भी वह इंसान जो खुद टाइपिस्ट कभी था वह अपने भारी ओहदे के अभिमान से सम्बोधित करें तो मुझ जैसे इंसान के लिये अपमान ही लगेगा ना खींझचन्दजी।

खींझचन्द-खिझते हुए बोले तुम सोचने को स्वतन्त्र हो, देश आजाद है। आजादी के पहले क्या हाल था अपने बुजुर्गों से पूछ सकते हो।

देवराम-हाल में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं हुआ है वक्त के साथ परिवर्तन की पूरी उम्मीद है। वह रूपचन्द से मुखातिब होते हुए बोला कौन सी तारीख का बुलौवा था ?

रूपचन्द-तेईस फरवरी का।

देवराम-कौन-कौन गये थे ?

रूपचन्द-दिल्ली दूर है देवराम।

आप जैसे अफसरों के लिये तो एक घण्टे का रास्ता है, मुझ जैसे दोयम दर्जे के आदमी के लिये बीस घण्टे का खैर मुझे तो बुलौवा के नाम पर अपमानपत्र आया है देवराम बोला।

खींझचन्द-मुंह चिढाते हुए बोले टुन्नू की शादी का बुलौवा आता तो जाते क्या ?

देवराम-आता तब सोचता। आप गये थे खींझचन्दजी ?

रूपचन्द-अफसोस ना करो देवराम।

क्यों और कैसा अफसोस। लेवप्रसाद साहब ने मुझ अदने को ना बुलाकर अच्छा किया पर ईमेल लिखकर और बुरा देवराम बोला।

रूपचन्द-ईमेल का जवाब दे दो।

देवराम-दे दिया साहब।

खींझचन्द-क्या ?

देवराम-दूल्हा दुल्हन को शुभकामनाओं के साथ लेवप्रसाद के प्रति कृतज्ञता और क्या ?

रूपचन्द-अपमान पत्र के बदले कृतज्ञता।

देवराम-कोई गलत तो नहीं।

रूपचन्द-अपमान के बदले सम्मान दे रहे हो गलती कैसी ? भले हमारे जातीय भाई है लेवप्रसाद साहब, जब तक इस प्रदेश में रहे हमारे खास रहे पर स्थानान्तरण के बाद सारे सम्बन्ध विसार दिये। टुन्नू की शादी का सभी अफसरों का एक बुलौवा कार्ड। इसे बेकद्री के अलावा और क्या समझा जा सकता है।

जिनके के पास टुन्नू की शादी का सामूहिक बुलौवा कार्ड आया उनकी जूतियां तो गयी ही नहीं तुम तो लेवप्रसाद साहब की निगाहों में दोयम दर्जे के लोग पहले ही थे अब कहां जाओगे देवराम, खींझचन्द बोलते हुए उठे और स्वर्णिम आभा से दमकते हुए शादी के बुलौवा कार्ड को कचरा पेटी के हवाले करते हुए अपने चैम्बर में लाक हो गये

 

डां.नन्दलाल भारती

27.02.2015

आजाददीप, 15-एम-वीणा नगर, इंदौर ;म.प्र.द्ध-452010

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: नन्दलाल भारती की कहानी - बुलौवा
नन्दलाल भारती की कहानी - बुलौवा
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