सुखद भविष्य के लिए वर्तमान को स्वीकारें

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डॉ  दीपक आचार्य सुकूनदायी और सुखद भविष्य की चाह सभी को होती है लेकिन हममें से बहुसंख्य लोग अपनी कमजोरियों और उदासीनता के कारण इसमें इच्छि...

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डॉ  दीपक आचार्य

सुकूनदायी और सुखद भविष्य की चाह सभी को होती है लेकिन हममें से बहुसंख्य लोग अपनी कमजोरियों और उदासीनता के कारण इसमें इच्छित सफलता हासिल नहीं कर पाते हैं।

अधिकतर लोगों को इस बात का मलाल जिन्दगी भर रहता है कि वे जो बनना चाहते थे, बन नहीं पाए। जो कुछ करने की तमन्ना संजोये थे वह पूरी नहीं हो पायी।

अधिकतर लोग तमाम प्रकार की अनुकूल स्थितियाँ होने के बावजूद अपनी मूर्खताओं की वजह से जानबूझकर पिछड़ कर रह जाते हैं।

कभी हम अहंकारों की रस्सियों से इतने कसकर जकड़े होते हैं कि चाहते हुए भी दो-चार कदम आगे नहीं बढ़ा पाते हैं।

कई बार किसी न किसी के मोह में फँस कर, दूसरों के दबाव अथवा प्रलोभन, और बहुत सी बार मायावी आकर्षणों की चकाचौंध से घिर कर अपने लक्ष्यों को भुला दिया करते हैं।

इन सारे झंझावातों के बीच एक बात साफ तौर पर उभर कर आती है और वह यह है कि आदमी दबावों, भ्रमों, आशंकाओं, प्रलोभन या किसी न किसी प्रकार के स्वार्थ से घिरा होकर भूत के आकर्षणों में बंधा होता है।

इस वजह से वह वर्तमान को यथोचित आदर सत्कार और महत्त्व नहीं देता है और उसे उपेक्षित करता चला जाता है 

भूत को सिर्र्फ अनुभवों, सीख और सबक के लिए याद किया जाता रहना चाहिए और यह प्रयास होना चाहिए कि भूतकाल से हर रोज कुछ न कुछ आगे बढ़ते रहें।

भूत के अनुभवों का लाभ पाकर वर्तमान में इनका क्रियान्वयन करते हुए भविष्य को ‘सत्यं शिवं सुन्दरं’ बनाने का विवेक ही मनुष्य का प्राथमिक फर्ज है।

लेकिन हममें से अधिकांश लोग भूत के अनुभवों से कुछ सीखने की बजाय भूत से चिपके रहने के आदी हो गए हैं।

लगता है कि भूतकाल के संपर्क, भूतपूर्व लोग और भूत की घटनाएं, आनंद तथा सुकून उसी अनुपात में बने रहें और उनका साथ पाकर जीवन की डगर यों ही आगे बढ़ती रहे।

भूत का अंधा मोह ही है जो हमारे भविष्य में काँटें बिछाता रहता है।

जो भूत से जुड़ा रहने का आकांक्षी है उसका वर्तमान भी बिगड़ता है।. 

भूतिया मोहग्रस्त लोग लाख कोशिशों के बावजूद अपने जीवन में आगे बढ़ नहीं पाते क्योंंकि भूतकाल के लोग, घटनाएं और संस्मरण उन्हें हमेशा उन लोगों और पुरानी तिथियों से कसकर बांधे रहते हैं जो उनके भूतकालीन खट्टे-मीठे रिश्तों का पर्याय होते हैं।

खूब सारे लोगों के लिए वर्तमान का कोई मतलब ही नहीं होता।

वे हमेशा ही भूतकाल का स्मरण करते हुए आनंदित और आत्ममुग्ध महसूस करते रहते हैं।

अपने पुराने संपर्कितों, सहकर्मियों, स्वामियों, अनुचरों, जायज-नाजायज लाभों से नवाजने वालों, प्राकृतिक और अप्राकृतिक संबंधों के जरिये आत्मीयता दर्शाने वालों की याद में पुराने दिनों के इतिहास में खोऎ हुए ऎसे रहते हैं जैसे कि कोई बहुत पुरानी कब्र ही हों।

भूतकालीन व्यक्तियों, वस्तुओं और घटनाओं के प्रति अंधा मोह और आकर्षण होने की वजह से ये लोग दुनिया की कोई सी नई विधा, नवाचारों और परिवर्तनों को स्वीकार कर पाने में हिचकते हैं जो कि समयानुकूल या सर्वानुकूल ही क्यों न हो।

भूत काल की जड़ता इन्हें इस प्रकार जकड़ी रहती है कि ये लोग जहाँ हैं, वहाँ से इनका मन, मस्तिष्क या शरीर एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पाता।

खूब सारे लोग हैं जो भूत से गहरा रिश्ता कायम रखे हुए हैं और इन्हें हर तरफ भूत ही दिखता है, भूत को ही अपने जीवन का स्वर्णिम अध्याय मानकर बार-बार उसे ही पढ़ते रहना चाहते हैं।

भूतिया घटनाओं और अवधिपार लोगों के मोह में मकड़ियों की तरह अंधे कोनों में दुबके हुए इन लोगों के लिए वर्तमान का कोई मूल्य नहीं होता।

ये लोग वर्तमान की हमेशा उपेक्षा करते हुए भूत की भक्ति में रमे होते हैं।

यही कारण है कि वर्तमान भी इन लोगों को पग-पग पर ठुकराता रहता है और इनकी भी जमकर उपेक्षा करता रहता है।

यही कारण है कि इन लोगों का वर्तमान हमेशा खराब रहता है और वर्तमान को लेकर इन्हें हर क्षण कोई न कोई शिकायत बनी ही रहती है।

ऎसे लोगों का भविष्य भी अंधकारमय ही होता है क्योंकि जो लोग वर्तमान का सम्मान नहीं करते, उनका भविष्य कभी भी सुखी नहीं हो सकता।

इस वजह से ये लोग जिन्दगी भर नकारात्मक भावों से भरे हुए कुढ़ते ही रहते हैं और हर तरफ वैचारिक कूड़ा-करकट बिखेरते हुए नकारात्मकता बिखेरते रहते हैं।

वर्तमान की उपेक्षा के कारण इनका भविष्य दरिद्रता के अभिशापों से घिरा रहता है वहीं वर्तमान के संपर्कितों, सहकर्मियों और वर्तमान स्थलों में इनके भूतिया व्यवहार की वजह से इन लोगों के प्रति नाराजगी इनके लिए बद्दुआओं के बादल बनकर इनके सर पर मण्डराती रहती है।

हमारे आस-पास भी ऎसे भेड़चालिया लोगों की कोई कमी नहीं है जिनके लिए भूतकालीन घटनाएं और अवधिपार हो चुके भूतिया लोग आदर्श बने हुए हैं।

इनके प्रति अगाध आस्था, श्रद्धा और स्वामीभक्ति के कारण ये लोग वर्तमान के लोगों, घटनाओं, कत्र्तव्य कर्मों के प्रति हद दर्जे के उदासीन बने रहते हैं और पुराने लोगों तथा पुराने दिनों का स्मरण करते हुए जैसे-तैसे टाईम पास करते रहते हैं।

इससे इनका कर्मयोग अभिशप्त हो जाता है और ये लोग श्रेय पाने से भी वंचित रह जाते हैं, वहीं भूत के प्रति अंधे मोह के कारण मृत्यु के बाद भी भूतयोनि को प्राप्त होते हैं।

ऎसे लोगों के संपर्क में रहने वाले लोगों का जीवन भी दुर्भाग्य से ग्रसित हो जाता है और वे भी इन्हीं की तरह नाकारा और अभिशप्त हो जाते हैं।

इसे देखते हुए भविष्य को सँवारने की कामना करने वालों को चाहिए कि वे वर्तमान को महत्त्व देने के साथ ही पूरा-पूरा आदर-सम्मान दें।

वर्तमान के कंधों पर चढ़कर ही भविष्य के सुनहरे स्वप्नों को देखा जा सकता है।

जो वर्तमान को नज़रअंदाज करते हैं उन्हें वर्तमान ऎसा कुचल कर रख देता है कि न भूत की सुध रहती है, न वर्तमान की।

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रचनाकार: सुखद भविष्य के लिए वर्तमान को स्वीकारें
सुखद भविष्य के लिए वर्तमान को स्वीकारें
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