प्राची - अगस्त 2015 - सिंधी कहानी - जेब्रा-क्रॉसिंग पर

SHARE:

सिंधी कहानी जेब्रा-क्रासिंग पर हरिकांत बैंक की बहु-मंजिली इमारत से बाहर निकलते ही यंत्रवत्‌ उसका बायां हाथ उसके कंधे पर लटकते हुए जूट के...

सिंधी कहानी जेब्रा क्रासिंग हरिकांत

सिंधी कहानी

जेब्रा-क्रासिंग पर

हरिकांत

बैंक की बहु-मंजिली इमारत से बाहर निकलते ही यंत्रवत्‌ उसका बायां हाथ उसके कंधे पर लटकते हुए जूट के खुरदरे शोल्‍डर बैग की ओर चला गया. लंच बाक्‍स जो आज उसने खोला ही नहीं था, छोटी सी डायरी जिसके प्‍लास्‍टिक कवर की तह में वह रुपये रखती थी, पेन, दो रूमाल और एक साप्‍ताहिक पत्रिका- उसकी उंगलियां इन इनी-गिनी और जानी-पहचानी चीजों को छूती हुई फोल्‍डिंग छतरी पर पहुंचकर रुक गईं. उसने आसमान की ओर देखा. चारों तरफ ऊंची-ऊंची इमारतें एक-दूसरे से सटी हुई- बीच में एक चौकोर आकाश और उसमें मंडराती हुई सितम्‍बर के अन्‍तिम सप्‍ताह की एक छोटी-सी बदली-धुनी रुई की तरह और सफेद- इधर से उधर दौड़ती हुई- छुटकारा पाने को आतुर.

लोहे का गेट पार करते हुए उसे महसूस हुआ, ग्रीष्‍म की तीव्रता खत्‍म हो चुकी थी और वर्षा ऋतु लौटने लगी थी. वातावरण में सिर्फ उमस बाकी थी. उसने छतरी न निकालकर रूमाल निकाल लिया और बस-स्‍टाप की दिशा में चलते हुए अपना सांवला चेहरा पोंछा. रूमाल गीला नहीं हुआ. उस पर केवल कुछ काले निशान बन गए.

बस स्‍टाप उसके दफ्‍तर से ज्‍यादा दूर नहीं, करीब दो फर्लांग होगा. लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए एक चौराहा पार करना पड़ता है.

जेब्रा-क्रासिंग पर पहुंचकर वह रुक गई. सामने लाल बत्ती थी. जब भी वह यहां पहुंचती, बत्ती अक्‍सर लाल ही होती है. न चाहते हुए भी उसे यहां रुकना ही पड़ता है. रुकावट के ये कुछ लाल पल भी उसे बहुत भारी लगते. कभी-कभी उसे सन्‍देह घेर लेता- यातायात नियंत्रक में अवश्‍य कोई खराबी आ गई है. लाल बत्ती अब कभी हरी नहीं होगी- उसे वहीं इन्‍तजार करना होगा- वहीं, जहां पिछले कई वर्षाें से वह थी.

सुबह उठते ही रसोई में जाना, भाई साहब और भाभी जी को बेड-टी देना, नाश्‍ता बनाना, पिंकी और राजू को जगाकर तैयार करना, उन्‍हें स्‍कूल-बस में चढ़ा आना, खुद तैयार होना, बस में धक्‍के खाकर बैंक पहुंचना, सीयर-ड्राफ्‍ट विभाग में दिन भर वही खाता लिखना, शाम को थककर घर लौटना, रात का खाना बनाना, और कुछ धुंधले से सपनो में खोकर सो जाना-

आज भी ऐसा ही हुआ था, कल भी, परसों भी, उससे पहले और उससे पहले भी- उसे लगा कई वर्षों से वह वहीं खड़ी हुई है- लाल बत्ती के सामने, हरी बत्ती की प्रतीक्षा में.

एक फुट ऊंची फुटपाथ पर खड़े कभी-कभी उसे लगता वह सड़क के किनारे नहीं, एक नदी के किनारे खड़ी है, जिसमें बाढ़ आई हुई है और सैकड़ों बसें, मोटरें, टैक्‍सियां, स्‍कूटर, साइकिलें, बाढ़ के तेज बहाव में लुढ़कती चली जा रही हैं. फिर अचानक धारा का रुख बदल जाता और उसके देखते-देखते सभी प्रकार के वाहन विपरीत दिशा में बहने लगते- उसी रफ्‍तार से.

जेब्रा-क्रासिंग पर हरी बत्ती होते ही एक और बाढ़ आई- जैसे कोई बांध टूट गया हो. इस प्रवाह में वह भी बहती जा रही थी. कोलतार की चौड़ी सड़क पर छपी अट्ठाइस मैली, सफेद पट्टियां पार करते हुए उसे अचानक याद आया- भाभी ने आज जल्‍दी घर लौटने को कहा था. वेल्‍फेयर एसोसियेशन ने कम्‍यूनिटी सेन्‍टर से कठपुतली का तमाशा आयोजित किया था. पिंकी और राजू को वहां ले जाना था. खेल-तमाशे में उसकी जरा भी रुचि नहीं. लेकिन अपनी रुचि की गुंजाइश ही कहां है. घर में शांति और सुसम्‍बन्‍ध कायम रखने के लिए दूसरों की इच्‍छाएं ओढ़कर संतुष्‍ट रहना, अब आदत बन गई थी उसकी. बस-स्‍टाप पर पहुंचकर उसने देखा क्‍यू इतनी लम्‍बी नहीं थी. दस-बारह व्‍यक्‍ति होंगे, इसका मतलब थोड़ी-सी देर पहले बस जा चुकी है. अगली बस बीस मिनट से पहले तो नहीं ही आयेगी.

‘हैलो दीदी!’

बैंक की कैन्‍टीन में पहली बार अपनी एक नई सहेली द्वारा अपने लिए यह सम्‍बोधन सुनकर वह पल भर स्‍तब्‍ध रह गयी थी. न जाने कैसे-कैसे सवाल एक साथ उसके मस्‍तिष्‍क में कौंध गये थे और उसे पहली बार अपनी आयु का एहसास हुआ था.

‘किस सोच में डूबी हो दीदी.’

उसने मुड़कर पीछे देखा. सरला और उसके साथ उसी उमर की एक अपरिचित लड़की उसकी ओर देखकर मुस्‍करा रही थी.

‘इसे जानती हो दीदी!’

‘कभी देखा नहीं.’

‘ये हैं मिस- नहीं- नहीं- नहीं- मिसेज कान्‍ता. कैश सैक्‍शन में आई हैं. करीब एक महीना हुआ. आते ही लम्‍बी छुट्टी पर चली गई थीं- शादी करने. आज नैनीताल से वापस आई हैं- हनीमून मनाकर.’ सरला ने अपनी सहेली का परिचय देना पूरा किया, लेकिन उससे पहले ही उसने कान्‍ता को सर से पांव तक देख लिया था. सफेद सैंडल से झांकती पतली उंगलियों के लम्‍बे नाखूनों पर करीने से लगाई गई नेल पालिश, फूल जैसा खिला-खिला चेहरा और घने काले बालों के बीच चमकता सिंदूर.

‘और ये हमारी दीदी.’ सरला ने अब उसका परिचय देना शुरू किया, ‘बैंक की सीनियर मोस्‍ट महिला असिस्‍टेन्‍ट- ओवरड्राफ्‍टिंग सेक्‍शन में हैं. दिन भर लेजर लिखती रहती हैं या कहानी-कविता. लेकिन सुनाती किसी को नहीं. लंच टाइम कैन्‍टीन की बजाए लाइब्रेरी में गुजारती हैं और- ’

‘बस- बस, बहुत हो गया.’ उसने सरला को बीच में ही टोक दिया और कहा, ‘तुम दोनों बातें करो, मैं वहां बैठी हूं. बस आये तो बुला लेना.’ और उनके उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना वह पास वाली सफेद इमारत की बाउन्‍ड्रीवाल की ओर बढ़ गई.

बाउन्‍ड्रीवाल और इमारत के बीच काफी जगह थी जिसमें एक छोटा-सा बगीचा बनाया गया था- हरी-हरी घास, तीन तरफ मेंहदी और बाउन्‍ड्रीवाल के साथ लगाये गये रंग-बिरंगे फूलों के पौंधे. इमारत में किसी विदेशी फर्म का दफ्‍तर था. बगीचे की अच्‍छी देखभाल से फर्म का वैभव झलकता था.

क्‍यू में खड़ी होकर बस की प्रतीक्षा करते पेट्रोल और डीजल की बदबू और धुएं से जब भी उसका दम घुटने लगता, वह सड़क से दूर इसी बाउन्‍ड्रीवाल पर आकर बैठती. हरी घास मेंहदी और फूलों को देखते हुए उसे एक सुकून मिलता था और कभी-कभी अपने आप में खोकर अपने पर सोचने का मौका मिल जाता था. वैसे उसके बारे में सोचने की फुर्सत या जरूरत किसको थी? सब अपने लिए सोचते हैं- घर वाले.

हायर सेकेण्‍डरी तक पढ़ाकर एम्‍पालयमेंट एक्‍सचेंज के बाहर लाइन में खड़ा कर दिया. यह तो मेरी अपनी जिद्‌ थी कि पड़ोस की लड़कियांें को ट्‌यूशन देकर, आत्‍मनिर्भर बनकर प्राइवेटली बी.ए. कर लिया और बैंक की परीक्षा में पास होकर अच्‍छी नौकरी हासिल कर ली.

पहली तनख्‍वाह मिलने पर जब भाई साहब के हाथों में दी थी तो भाभी ने कितनी सादगी से कहा था, ‘तुम्‍हारी कमाई कैसे ले सकते हैं हम? अपने ही बैंक में अपने नाम एक खाता खुलवा लो. आगे चलकर ये रुपये तुम्‍हारे ही काम आयेंगे. हां, तुम्‍हें नौकरी मिलने की खुशी में गैस अवश्‍य लेंगे. तुम्‍हें ही सुविधा रहेगी.’ और भाई साहब ने अपने प्रभाव का सदुपयोग कर उसी महीने गैस का प्रबन्‍ध कर लिया था.

फिर उसी के नाम पर घर को ‘देखने लायक’ बनाने का एक ऐसा अभियान शुरू हुआ कि धीरे-धीरे घर का नक्‍शा ही बदल गया. घर के पिछवाड़े खाली पड़ी जगह के आधे हिस्‍से में एक अतिरिक्‍त कमरा बनवाया गया. दो-चार महीने की तनख्‍वाह जमा होते ही भाई साहब या भाभी जी की घर को देखने लायक बनाने की चिन्‍ता फिर जाग उठती, जिसका निवारण करने के लिये उसे अपने रुपयों को कभी सोफा सेट में परिवर्तित करना पड़ता कभी डबल-बैड में.

अब तो वह अनेक रूप और आकार लेकर रसोईघर से ड्राइंग रूम तक बिखर चुका था. कुकर, मिक्‍सी, वार्ड-रोब, टी.वी., फ्रिज, टेपरिकार्डर, घर की जिस चीज को देखती उस पर उसे अपनी छाप नजर आती. आवश्‍यकता, सुविधा और आनन्‍द विलास के अनेकानेक साधनों से भरे-भरे घर को देखकर उसे खुशी तो होती ही, लेकिन उस खुशी में एक हल्‍की-सी निराशा भी शामिल रहती. उसे लगता घर को भरने के प्रयास में वह अपने आप को खाली करती गई है. खालीपन- जिसको उसके सिवाय कोई नहीं समझता.

हवा का एक हलका झोंका अपने अदृश्‍य आंचल में फूलों की सुगन्‍ध लेेकर उसके पास आया. उसने मुड़कर बगीचे की ओर देखा. फूलों के नन्‍हें-नन्‍हें पौधे नाच रहे थे- मन्‍द-मन्‍द, शर्मीले बच्‍चों की तरह. फूल और बच्‍चे उसे कमजोरी की हद तक भाते थे. उसकी इसी कमजोरी का लाभ उठाकर भाभी ने उससे पिंकी का बीमा करवा लिया था. बीस साल आगे चलकर उसके विवाह में काम आने के लिए और साथ ही राजू के नाम दस वर्ष का रिकरिंग जमा खाता भी खुलवा लिया था- उसकी उच्‍च शिक्षा के लिए. उसे फिर याद आया- आज उनको कठपुतली का तमाशा दिखाने ले जाना है. दोनों तैयार बैठे अधीरता से इन्‍तजार कर रहे होंगे और भाभी उत्तेजित हो रही होगी- उन पर भी और मुझ पर भी.

उसने क्‍यू की ओर देखा. काफी लम्‍बी हो गई थी, लेकिन बस नजर नहीं आ रही थी.

खुरच-खुरच की आवाज से उसका ध्‍यान फिर बगीचे की ओर चला गया. बूढ़ा माली खुरपा लेकर पौधों के आस-पास उगी घास को जड़ से काटकर फेंकता जा रहा था. उसे याद आया, इसी माली ने एक बार बताया था- खरपतवार पौधों को पूरा विकसित होने नहीं देते- यह काले गुलाब का पौधा ही देखो- अब तक यह कम से कम ढाई फीट ऊंचा हो जाना चाहिए था और इसमें कई फूल खिल जाने चाहिए थे- लेकिन.

‘बस आ गई दीदी- ’

एडवांस बुकर टिकट पहले ही दे गया था. सरला ने दाएं हाथ की उंगलियों में थामे टिकट हिलाते हुए उतावलेपन से कहा, ‘जल्‍दी आओ न दीदी!’

बस एक ही फर्लांग चलकर रुक गई. फिर वही लाल बत्ती. खिड़की से बाहर झांकते हुए उसको महानगर के जीवन पर खीझ-सी होने लगी. अजीब परेशानी है- लोग पैदल हों चाहे बस में, अपनी इच्‍छा से रास्‍ता तक पार नहीं कर सकते. यंत्रों के इशारों पर चलना पड़ता है.

पीछे वाली सीट पर बैठी कान्‍ता, सरला को अभी तक नैनीताल के अपने मधुर अनुभव सुनाने में मग्‍न थी.

चारों तरफ पहाड़, ऊंचे-ऊंचे पेड़, हवा में गाते हुए से, बीच में नैनी झील और उसमें नौका विहार.

उसे लगा यह सब उसने भी देखा है- पहाड़, गाते हुए पेड़ और उसके बीच एक नीली झील. लेकिन मैं नैनीताल तो कभी गई नहीं. फिर, कहां देखा यह सब.

माउंट आबू में, शायद चार साल पहले.

अहमदाबाद से भाभी के मायके होकर लौटते हुए. दो दिन ठहरे थे. कुछ भी अच्‍छी तरह देख नहीं पाई. दलवाड़ा मन्‍दिर तक नहीं देखा. भाई साहब और भाभी अकेले देख आये थे. मैं पिंकी और राजू को होटल में संभालती रही थी, आया की तरह. केवल सन्‍सेट-प्‍वाइंट और नक्‍की झील देखी थी, किनारे पर बैठकर, कोई मधुर स्‍मृति नहीं.

बस के अन्‍दर शोर और अंधेरा बढ़ता जा रहा था. उसने सर में हल्‍का-हल्‍का दर्द महसूस किया और आंखें बन्‍द कर लीं.

आंखें बन्‍द होने के बावजूद उसे अहसास था कि बस कहां से गुजर रही है. जैसे-जैसे घर नजदीक आता जा रहा था, उसकी व्‍याकुलता बढ़ती जा रही थी. भाभी के तेवर असली जगह पर कायम रखने के लिए, भाई का खिंचाव नियंत्रित रखने के लिए और पिंकी तथा राजू की हर तमन्‍ना पूरी करने के लिए वह क्‍या कुछ नहीं करती. फिर भी...गेट के अन्‍दर कदम रखते ही उसको उसी स्‍थिति का सामना करना पड़ा जिसकी उसे आशंका थी और जिससे बचने के लिए बस से उतरते ही वास्‍तव में वह दौड़ती-सी घर पहुंचती थी.

बरामदे में भाभी दोनों बांहें बांधे आराम कुर्सी पर अधलेटी थी. बच्‍चे चेहरे लटकाये दीवान पर बैठे थे. उनकी गीली आंखों को देखकर उसे लगा उन्‍हें थप्‍पड़ मारकर चुप कराया गया था. उसको देखते ही दोनों उसकी ओर लपके और अपनी सारी व्‍यथा विशेष स्‍वर में कहे एक ही शब्‍द से व्‍यक्‍त कर दी-

‘दी- दी.’

अपना सिरदर्द, दिन भर की थकान और मानसिक पीड़ाएं भूलकर वह अपने चेहरे पर प्रयत्‍न से एक मुस्‍कान खींच लाई.

‘अरे तुम तैयार बैठे हो, अभी चलते हैं.’

और शोल्‍डर-बैग वहीं रखकर रूमाल से चेहरा पोंछते हुए कहा, ‘चलो- .’

बड़े-बड़े कदम उठाते हुए कम्‍यूनिटी-सेन्‍टर की ओर बढ़ते हुए उसे लगा वह अभी घर की तरफ जा रही है. उसे विश्‍वास ही नहीं हो रहा था कि वह घर से होकर आई है. जब देखा कंधे पर शोल्‍डर-बैग नहीं है और पिंकी और राजू बतियाते हुए उसके पीछे-पीछे आ रहे हैं तब जाकर विश्‍वास हुआ कि वह घर गई थी. पीछे मुड़कर उसने कहा, ‘जल्‍दी चलो- भाई, तमाशा शुरू हो जायेगा- ’

और तमाशा सचमुच शुरू हो चुका था. छोटा-सा हाल पूरा भरा हुआ था. दर्शक अधिकतर बच्‍चे थे और महिलाएं- फर्श पर बिछी चटाई पर बैठी हुई. दोनों बच्‍चों को साथ लिये हुए एक कोने में दीवार को सहारा लेकर खड़ी हो गई. उसका अंग-अंग टूट रहा था. दीवार पर पीठ टिकाने से उसे कुछ राहत मिली. फिर उसने मंच की ओर देखा.

शुरू-शुरू में उसे कुछ समझ में नहीं आया. दो बड़े-बड़े तख्‍त दाएं-बाएं और ऊपर सफेद पर्दे- बीच की खाली जगह पर रंगबिरंगे वस्‍त्र पहने लकड़ी की कुछ छोटी-छोटी मूर्तियां- अदृश्‍य डोरियों में बंधकर इधर-से-उधर उछलती हुई- कुछ अजीब आवाजें- जो उनकी नहीं थीं, लेकिन उनके मुंह में डाली जा रही थी. इन सबसे उसे क्‍या वास्‍ता? उसे ऊब महसूस होने लगी. फिर भी वह वहीं खड़ी रही- विवश.

अचानक उसकी दृष्‍टि मंच पर नाच-नाचकर एक कोने में चुपचाप खड़ी एक कठपुतली पर केन्‍द्रित हो गई. उसने ध्‍यान से देखा- उसमें कुछ था जो उसे अपनी ओर आकर्षित कर रहा था. एकटक उसकी ओर देखने से उसे लगा, वह मंच पर खड़ी की गई किसी कठपुतली को नहीं, स्‍वयं अपने आप को देख रही थी. उसकी आंखें और भौहें और ओंठ और नाक, पूरा चेहरा यथावत उससे मिलता था. वह अवाक्‌ हो गई और अपलक उसकी ओर देखती रही, देखती रही.

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्राची - अगस्त 2015 - सिंधी कहानी - जेब्रा-क्रॉसिंग पर
प्राची - अगस्त 2015 - सिंधी कहानी - जेब्रा-क्रॉसिंग पर
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhwgJcdz35k5dT1XTr1OIkD7rvaSUOUdbIGYTfFVpcnP3z-CQGBJF598QGn2biOS3w1ymoWEEe5eL38uAl8htUZYTe1TT37oJpbv2L-OAyn9xFnPZmnep_ShmPeGWDApoYrR4a/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhwgJcdz35k5dT1XTr1OIkD7rvaSUOUdbIGYTfFVpcnP3z-CQGBJF598QGn2biOS3w1ymoWEEe5eL38uAl8htUZYTe1TT37oJpbv2L-OAyn9xFnPZmnep_ShmPeGWDApoYrR4a/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/09/2015_43.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/09/2015_43.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content