व्यंग्य कथा - कोख की तलाश

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हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन स्वर्ग में विचलित गांधी जी को चित्रगुप्त के सामने लाया गया। कारण पूछने पर उन्होंने बताया – भारत की स्थिति अच...

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हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन

स्वर्ग में विचलित गांधी जी को चित्रगुप्त के सामने लाया गया। कारण पूछने पर उन्होंने बताया – भारत की स्थिति अच्छी नहीं है। सिर्फ एक बार मुझे भारत जाने की आज्ञा दिला दीजिए। कुछ दिन रहकर भारत की दुर्दशा को सुधार कर वापस लौट जाऊंगा। चित्रगुप्त समझा रहे थे उन्हें – भारत अब पहले वाला भारत नहीं रहा। इन वर्षों में भारत ने लगभग सभी दिशाओं में खूब प्रगति कर ली है। वहां के लोग तुम्हारी आवश्यकता नहीं महसूसते अब। मैं चाहता हूं आप यहीं रहिए और ईश्वर भजन करिये। गांधी जी कहां मानने वाले थे। चित्रगुप्त जी , मेरा देश तिल तिल कर मर रहा है , और मैं यहां बैठकर भजन करूं , क्या यह शोभा देगा ? चित्रगुप्त जी बोले - आप वहां जाकर भी , कुछ भी नहीं कर पायेंगे। गांधी जी के लिये यह चुनौती वाली बात थी। यही तो अंग्रेज कहते थे। पर हमारी दृढ़ इच्छा शक्ति और जनता जनार्दन के प्रताप से उन्हें भागने पर मजबूर होना पड़ा। तब की बात कुछ और थी , अब की बात कुछ और है। पहले आपको दूसरों से लड़ना था , अब अपनों से लड़ना होगा।

काले अंगरेज गोरों से अधिक खतरनाक हैं। आप नहीं लड़ पायेंगे इनसे। दूसरी बात , आपको अब साथ कौन देगा ? जनता देगी , और कौन ? हूं ..बड़े भोले हैं आज भी आप। कोई नहीं आने वाला आपके पीछे। आप भारत की जनता को नहीं जानते चित्रगुप्त जी। आज भी मेरे नाम की माला जपी जा रही। मेरी एक आवाज पर पूरी आवाम खड़ी हो जायेगी। केवल मुर्दापूजक देश रह गया है भारत। सिर्फ आपके नाम की माला चल रही है वहां। आप जायेंगे तो आपकी बात सुनना तो दूर , अनेक लोग तो आप को पहचानेंगे भी नहीं। आप किस किस को बताते फिरेंगे कि मैं गांधी हूं ....गांधी , जिसने तुम सबको आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। पहले एक कौम लड़ता था दूसरे कौम से। आज एक ही कौम के लोग आपस में लड़ रहें हैं। अब तो एक परिवार में ही वैमनस्यता शुरू हो चुकी है। आज पिता , पुत्र का दुश्मन बना बैठा है। किस किस को समझायेंगे आप ? सब ठीक हो जायेगा , एक बार जाने तो दीजिये मुझे। गांधी की जिद ने चित्रगुप्त को मजबूर कर दिया। ब्रह्मा जी के समक्ष बात रखी गयी। वे तो गांधी से पहले ही बहुत प्रभावित थे , तुरंत हां कर दी । चित्रगुप्त ने बताया कि गांधी जी को कहां भेजूं। एक भी गर्भ खाली नहीं है आने वाले हजारों वर्षों की एडवांस बुकिंग है। कुछ भी करो , पर इसे धरती पर जाने दो। यह जायेगा तो धरती का बोझ ही उतारेगा , मेरी बेटी धरती भी प्रसन्न हो जायेगी। पर इन्हें किसके गर्भ में आरोपित करूं ? इनकी ऊंचाई को देखते हुए , इन्हें कहीं भी , किसी भी के गर्भ में नहीं डाल सकते। एक उपाय करो - गांधी जी को स्वयं अपने लिये उचित कोख की तलाश करने की आजादी दे दो , ताकि वह धरती पर स्वतंत्र रूप से अपना कार्य पूरा कर सके।

भेज दिया गया गांधी जी को धरती पर। एक उद्योगपति को पुत्र की बड़ी कामना थी। गांधी जी ने सोचा , आंदोलन की शुरूआत करने के लिये वित्त की जरूरत होगी। यदि इस बड़े उद्योगपति के घर पैदा लूंगा तो पहली समस्या तो चुटकी में हल हो जायेगी। फिर भी आने की आज्ञा ले लेता हूं। मां को पूछा ‌‌‌- मां मैं गांधी हूं , भारत की दशा सुनकर मुझसे रहा नहीं गया , यदि आज्ञा हो तो , मैं तुम्हारी कोख में पैदा लेना चाहता हूं। कौन गांधी हो भई आप। मैं वही गांधी हूं मां , जिसने भारत को आजाद कराया था। ओह , आप ही वह गांधी हो। पर अब तो भारत आजाद हो गया है। आप यहां आकर क्या करोगे ? फिर आप मेरी कोख में क्यूं आना चाहते हैं ? आप जैसे लोग मुझे पुत्र रूप में मिलेंगे तो , हमारे व्यापार का क्या होगा ? कौन सम्हालेगा इतने बड़े एम्पायर को। कहीं आपने , यहां आकर हमारी सम्पत्तियों को गरीबों में बांट दिया तो ! हमारी वर्षों की मेहनत पर पानी फिर जायेगा। यदि नहीं भी बांटा , तब भी तुम्हारे पास समय कहां रहेगा , इन्हें सहेजने समेटने। तुम केवल , इसकी - उसकी समस्याओं को हल करते रहोगे। कारखाने की समस्या को कौन देखेगा। टेक्स बचाने की जुगत लगाने से रहे तुम। बल्कि सही सही टेक्स देकर केवल और केवल हमारा ही नुकसान करोगे। मजदूरों की समस्यायें जरूर तुम्हें दिख जायेंगी , और फिर मजदूरों को तुम हमारे ही खिलाफ भड़काओगे। सारा माल मजदूरों को बांटकर तुम तो चैन की नींद सो लोगे , पर तुम्हारे बाबा/ पापा का क्या होगा। तुम्हारे कारण मेरे घर में जाने कितनी समस्यायें जन्म ले लेंगी , मुझे माफ करना गांधी जी , अपने लिये कोई और मां तलाश लो तुम।

गांधी जी ने सोचा – इतने बड़े घराने में पैदा लेने का वाकई कोई मतलब नहीं है। मैं ऐसे घर में पैदा लेकर कहीं इन्हीं के बीच फंस न जाऊं। अच्छा हुआ भगवान ने मुझे बचा लिया। थोड़ा छोटा व्यापारी तलाशना चाहिये। मां........ , मैं तुम्हारी कोख से पैदा लेना चाहता हूं। तुम कौन हो बेटा और क्यों आना चाहते हो मेरे घर। मैं गांधी हूं .... गांधी। अच्छा गांधी ......... रूको , तुम्हारे होने वाले पापा से भी जरा पूछ लूं। थोड़ी देर बाद ....... मना कर दो उसे , वह आयेगा तो हमें मिलावट करने नहीं देगा। चोरी का माल बेचने नहीं देगा। पुलिस को सब कुछ सच सच बताएगा , उसके एवज में पुलिस हमसे तगड़ा वसूली करेगी। सब कुछ चौपट हो जायेगा। अच्छा हुआ , आने के पहले ही पूछ लिया , वर्ना अनर्थ हो जाता। कुछ देर में ...... बेटा , तुम कोई और मां देख लो। मैं तुम्हें जन्म नहीं दे सकती। पर क्यूं मां ? बस ऐसे ही। फिर भी कुछ तो कारण होगा। नहीं , कोई कारण नहीं , सिर्फ तुम्हारे पापा नहीं चाहते कि कोई ईमानदार/सत्यवादी उसका वारिस बने।

लगता है व्यापारी मुझसे किसी बात को लेकर नाराज हैं। ओह ........ , कारण समझ आ गया , अंग्रेज व्यापारी बनकर आये थे इस देश में , हमने उन्हें भगा दिया , ऐसे में व्यापारियों की नाराजगी जायज ही मानी जायेगी। कोई बात नहीं। एक बार आ जाऊं धरती पर , फिर गलतफहमियां मिटा दूंगा और सभी को सही रास्ते पर चलने के लिये प्रेरित करने में कामयाब हो जाऊंगा। किसी सरकारी अधिकारी के घर पैदा लेना ठीक रहेगा। उसके पास भी काफी पैसा दिख रहा है। मेरे आंदोलनों के लिये पर्याप्त हो जायेगा। मां......., मैं तुम्हारी कोख से पैदा लेना चाहता हूं। तुम कौन हो बेटे ? मैं गांधी हूं मां गांधी .......। तुम क्या करोगे बेटा पैदा लेकर। इस देश में कोई समस्या ही नहीं है। जो है भी तो , उसका समाधान करने के लिये तुम्हारे पापा हैं न। तुम्हें आने की कोई जरूरत नहीं है। वैसे भी , तुम चाहे कितने भी ईमानदार हो , मेरे यहां रहकर , समस्याओं के समाधान के एवज में केवल काली कमाई करना सीख जाओगे। इस चक्कर में या तो परेशान रहोगे या परेशान करोगे। मेरे घर तुम्हें सुख नहीं मिलेगा। उल्टे तुम्हारे कारण हमारे सुखों पर ग्रहण लग जायेगा। तुम न भ्रष्टाचार करोगे , न होने दोगे , तो हमारी अय्याशी पर बट्टा लग जायेगा। फिर एक बात और , तुम कम कपड़े पहनने के हिमायती हो। केवल गमछा लपेट कर घूमोगे। हमारे संस्कृति में कम कपड़े पहनने का जिम्मा महिलाओं का है। तुम्हारे इस काम से हमारी हंसी उड़ाई जायेगी। न बाबा। तुमसे तौबा ...... कोई और मां तलाश लो।

गांधी जी ने इस बार एक कर्मचारी की पत्नी को मां बनाने की सोची। जैसे ही पूछा , मां का जवाब आया – सरकार इतनी तनख्वाह नहीं देती , कि तुम जैसे बड़े आदमी को बेटे के रूप में झेल सकें। बहुत मुश्किल से अपने घर का बोझ ढो पाते हैं। जब तक ऊपर की कमाई न हो घर चलाना मुश्किल हो जाता है। आप ये करने नहीं देंगे , तब हमारा घर कैसे चलेगा ? मेरे बच्चे , तुम्हें कैसे पालेंगे ? तुम्हारे स्कूल की फीस , घर का किराया , मां की दवाई कहां से आयेगी ? किसी के भी सामने सच बोलने की जिद तुम्हीं करोगे। तुम नहीं जानते बेटा , कोई भी सच हमारा पेट नहीं भर सकता। कैसे जियेंगे ? तुम्हें ठीक से पढ़ायेंगे कैसे ? अच्छी शिक्षा नहीं मिली तो तुम आंदोलन कैसे खड़े करोगे ? तुम कोई और कोख देख लो बेटा , जो तुम्हें ठीक से सिखा सके , भरपेट खिला सके , अच्छे से रख सके।

मां ठीक कह रही है। किसी अन्य सुरक्षित कोख की तलाश करना चाहिये। वह ठेकेदार का घर था। आलीशान भवन , किसी महल से कम नहीं। पूर्व के अनुभव के कारण थोड़ी झिझक जरूर हुई। फिर भी आंदोलन के लिए जरूरत पड़ने वाले वित्त की याद आते ही इसी घर में घुसना मुनासिब समझा। पहले सोचा , बिना आज्ञा के घुस जाता हूं। पूछने पर मना कर देते हैं लोग। फिर भी मन नहीं माना। पूछ ही लिया। तब मां ने कहा – हम लोग प्रत्येक को चंदा बांटते फिरते हैं बेटा , तुम चंदा मांगकर हमें बदनाम कर दोगे। फिर तुम्हारे पापा का काम ऐसा है जो तुम्हें पसंद नहीं आयेगा। कोई भी सड़क या भवन , जो हम बनाते हैं वह - उपयोग करने के लिये नहीं बल्कि केवल देखने के लिये या प्रतिवर्ष मरम्मत करने के लिये होता है। उपयोग के योग्य बनाने पर हम खुद अगली संरचना बनाने योग्य नहीं रह पायेंगे। पर क्यों मां। कमीशन बांटते बांटते संरचना केवल दिखाने लायक ही बन पाता है बेटा। मुझे मालूम है तुम्हें यह सब पसंद नहीं। तुम नहीं चाहोगे तुम्हारे पापा ये सब करे। पर नहीं करेंगे , तो हम खायेंगे क्या ? तुम मेरे घर मत आओ बेटा , मुझ पर मेहरबानी कर दो , बड़ी कृपा होगी।

इनकी मेहरबानी की आदत छूटी कहां थी। चले गये मां की तलाश में। सोचा – इस देश में सारे परेशानियों की जड़ कानून व्यवस्था है। वह दुरूस्त होगा तो सारे लोग अपने आप सुधरते जायेंगे। तभी याद आया , क्यों न किसी जज के घर की राह ली जाय। प्लीज , मुझे मां मत बनाओ बेटा। मैं तुम्हें जन्म तो दे सकती हूं , पर तुम्हें आततायियों से कैसे बचाऊंगी। कोई भी ऐसा दिन नहीं होता , जब तुम्हारे पापा को धमकी नहीं आता , या धन का आफर नहीं आता। तुम किसी की धमकी सुन नहीं सकोगे , पैसे लेने दोगे नहीं। हम जियेंगे कैसे ? तुम न्याय करने जाओगे , तो मार दिये जाओगे , नहीं करोगे तो अपना जमीर स्वयं मारना होगा। तुम धर्म के , न्याय के रक्षक हो बेटा , जिसे पहले भी , सिर्फ इसीलिये ही तो , मार दिया गया था। एक बार फिर कोई मां अपना कोख सूना नहीं करना चाहेगी। प्लीज , तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं। या तो तुम न्याय का रास्ता छोड़ो और मेरे कोख की शोभा बढ़ाओ , या मेरे कोख की रास्ता छोड़ किसी अन्य के लिये राह बनाओ। चुपचाप खिसक लिये वहां से गांधी जी।

मेरा सोचना गलत निकला। इसका मतलब कोई और है इन कारगुजारियों के पीछे। ठीक है , मैं भी गांधी हूं , हार नहीं मानूंगा। चलो किसी पुलिस के घर का रूख करूं। वहां मैं भी सुरक्षित रहूंगा। कोई हमें धमकाएगा भी नहीं , हमारा उद्देश्य भी पूरा भी हो जायेगा। गांधी पहले सोचता है - बिना पूछे जाता हूं। क्योंकि कम से कम इन्हें तो कोई ऐतराज नहीं होगा। फिर सोचा ,वह यह न बोले कि बिना पूछे कैसे आ गया ? सारे लोगों को पूछा , तो इनको पूछने में क्या बुराई है ? मां ..........मैं तुम्हारी कोख से पैदा लेना चाहता हूं। तुम गांधी हो न बेटा। फिर तुम क्यों न किसी अच्छे घर की तलाश करते ? तुम्हें तो कोई भी मां अपने गर्भ में धारण करने में गर्व का अनुभव करेगी। गांधी जी को उम्मीद की किरण नजर आयी। मैं भारत में हो रहे अत्याचार को खतम करने आया हूं। भारत के लोग कितने बिकाऊ हो चुके हैं , उन्हें उनकी असल कीमत बताने आया हूं , नशाखोरी जैसे बुराई को जड़ से मिटाने आया हूं। आपकी सोच बहुत अच्छी है। हमारे पतिदेव भी यही चाहते हैं। वाह ! इसका मतलब मां की तलाश पूरी हो गयी। अब हम बाप बेटे मिलकर इस देश को बचाने में कामयाब हो जायेंगे। ठीक है मैं आ रहा हूं मां। रूको बेटा , पूरी बात सुन लो। तुम्हारे जैसे लोग इस देश में आयेंगे तो उन्हें छुपकर रहना पड़ेगा। तेरे पापा नहीं चाहेंगे कि पुलिस का बेटा घर में छुपकर - दुबककर रहे। मैं क्यों दुबककर रहूंगा मां ? बेटा तुम कोई अपराध नहीं करोगे तो तुम्हें लोग जानेंगे कैसे ? अच्छा काम करने वाले सज्जन को जानने वालों की संख्या उंगलियों में गिनी जा सकती है। पर तुम तो कह रही थी कि मेरे पापा अच्छा सोच रखते हैं। हां बेटा , क्या यह अच्छा सोच नहीं है ? अपने बेटा को नाम कमाते देखना , क्या अच्छे काम की गिनती में नहीं आता। पर अपराधी को .......? बेटा अपराधी को संरक्षण देना ही तो उनका मूल काम है। नशाखोरी को बढ़ाने वाले को अपना दोस्त बनाकर , सबूत नष्ट कर बलात्कारियों को बचाकर , हत्या करने वाले को किसी तरह अदालत की चौखट से महफूज रखकर और इन सबके एवज सही कीमत वसूलना , क्या अच्छा काम नहीं है ? तुम भी तो चाहते हो कि प्रत्येक मनुष्य अपनी कीमत खुद पहिचाने। और सभी को पुलिस का संरक्षण मिले। पर गलत लोगों को संरक्षण क्यों मां ? सही लोगों को संरक्षण की आवश्यकता ही क्या है बेटे ? जिन्हें जरूरत है उन्हें संरक्षण देना इनका काम है , तब फिर बुराई क्या है इसमें ? पर यह तो गलत है मां , पापा को ऐसा नहीं करना चाहिये। हमें क्या करना चाहिये , क्या नहीं – यह तू हमें सिखायेगा। निकल मेरे दरवाजे से ......... वर्ना अभी अंदर करा दूंगी तुम्हें , अचानक इस तरह के बदले तेवर से हैरान गांधी जी ने , वहां से निकलना ही उचित समझा।

बुराई की जड़ कहीं और है। पर कौन है , कहां है ? पता लगाना भी जरूरी है। पर जब तक धरती पर अवतरण नहीं होगा , यह सम्भव नहीं। कोई बात नहीं , मैं गांधी हूं। हार नहीं मानूंगा। बड़ी देर तक सोचते रहे। ध्यान आया , अपने उन साथियों का जिन्होंने आजादी की लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया था। उन्हें लगा उनकी संतानों को जरूर इस देश की फिकर होगी। वे जरूर मुझे साथ देंगे। मां ने देखते ही गांधी जी का अभिवादन किया। अब पहुंचा सही स्थान पर। उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। खुशी के मारे तुरंत पूछ बैठे वे – मां ......... , मैं तुम्हारी संतान बनकर फिर आना चाहता हूं धरती पर , तुम्हारी आज्ञा और आशीर्वाद प्रतीक्षित है मां। कोई गांधी मेरी संतान के रूप में मेरे कोख में पैदा हो , इससे बढ़कर मेरे जीवन में खुशी हो ही नहीं सकती। तुम्हारे ही कारण , तुम्हारे बाबा ने इस देश पर अनेक वर्षों तक राज भोगा , तुम्हारे पापा आज भी कुर्सी की शोभा बढ़ा रहे हैं। तुम्हारे नाम की वजह से ही हमारे पास इतनी धन सम्पत्तियां हो गई है कि अनेक पीढियां बैठे बैठे खा सकती है। तुम्हारे ही कारण , सारा देश हमें सलाम करता है। कोई भी असम्भव काम हम तुम्हारे नाम की वजह से आसानी से पूरा कर लेते हैं। तुम्हारे नाम से हम किसी पर भी , चोट कर , आसानी से बच निकलते हैं। हम चारा भी खाते हैं तो पकड़े नहीं जाते , कोयला भी खाते हैं तो मुंह में कालिख नहीं लगती , तोप भी खाते हैं तो हम उड़ते नहीं , स्पेक्ट्रम हजम जाते हैं और नेटवर्क बना रहता है – तुम्हारे नाम का ही प्रताप है बेटा। तुम यदि मेरे पुत्र रूप में आओगे , तो इन कारगुजारियों के लिये हमें बदनाम करने वाले लोगों का मुंह सिर्फ इसलिये बंद हो जायेगा कि तुम मेरे बेटे हो। आज भी तुम्हारी बहुत पूजा होती है बेटा। तुम्हारे दिये सबक आज भी याद है लोगों को , वे बुरा देखते नहीं , बुरा कहते नहीं , बुरा सुनते नहीं। अच्छा हुआ , तुमने बुरा करने से मना नहीं किया था , यही सबसे बड़ा हथियार है हमारा। हम सिर्फ तुम्हारे खुशी के लिये बुरा करते रहते हैं।

बड़ी देर से भाषण सुन रहे गांधी जी से रहा नहीं गया। पर मैंने तो बुरा करने के लिये कभी कहा नहीं , तुम बुरा क्यों करते हो। हम तुम्हें बहुत नजदीक से जानते हैं बेटा। तुमने जो मना नहीं किया , इसका मतलब उस कार्य को करने में तुम्हारी पूरी स्वीकृति है , समयाभाव या भूलवश तुम कह भले नहीं पाये थे। क्या ...... ? गांधी का मुंह खुला का खुला रह गया। हां बेटा , तुमने अच्छा काम किया था हमारे लिये ....। उसी को तो हम भुना रहे हैं अभी भी। तुम फिर से आ जाओगे तो , जो कुछ और बचा है वह भी पूरा हो जायेगा। क्या मैं जान सकता हूं , क्या बच गया है और ? तुमने कहा था कुटीर उद्योग चलाने के लिये। पर इसके लिये आदमी नहीं मिलते। तुम होते तो इसकी जगह बड़ी बड़ी फेक्ट्रियां बिना किसी विरोध के आसानी से लग जाती। लगाने वाले को फायदा , जनता को काम मिल जाने का फायदा , हमें –एक से पैसे का फायदा , दूसरे से वोट का। आजादी के समय अपने गहने जेवरों को कैसे आपके समक्ष ले आते थे – आपके एक आह्वान पर। आज कोई भी व्यक्ति , भारत की तरक्की आंदोलन के लिये , अपनी जमीन नहीं छोड़ना चाहता। तुम जल्दी आ जाते तो , यह भी हो जाता। हमारी कारगुजारियों पर लगाम कसने लोकपाल के लिये कितना दबाव बन रहा है। तुम आओगे तो कोई कभी यह नहीं कहेगा कि गांधी का बाप या गांधी की पार्टी गलत कर रहा है , फिर कौन लोकपाल के लिये हल्ला मचाएगा। तुम जितना जल्दी हो सके बेटा , आ जाओ मेरे पेट में। तुम्हारे पापा पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा है , कहीं सेटिंग नहीं हो पा रही है , मुखिया खुद भी फंसा है पर , वह अपनी कुर्सी बचाने तुम्हारे पापा की कुर्सी को बलि चढ़ाने के लिए पीछे पड़ा हैं। तुम आओगे , सारे लोग तुम्हारे दर्शन के लिये आयेंगे , तब तुम धीरे से कहकर अपने पापा को बचा लेना , उसके बाद पापा की विरासत तुम्हीं को ही तो सम्भालना है। तुम्हारे पापा ने अपनी सीट अभी से तुम्हारे नाम लिख दी है। तुम बड़े होकर न केवल अपने पापा की कुर्सी बल्कि देश की सत्ता को भी सम्भालोगे। कुर्सी और सत्ता के नाम से गांधी की रूह कांप उठी। गुजरा वक्त याद आ गया , जब उसके साथी कहते थे कि देश की सत्ता आप सम्हालना गांधी जी। पर जब वास्तविक सत्ता सम्हालने का वक्त आया , तब धीरे से देश को टुकड़े कर कब्जा जमा लिया और उन्हे गली –गली , गांव - गांव , शहर - शहर भटकने को मजबूर कर दिया। फिर भी , गांधी ने यह कहा – मां मै सत्ता पाने आपके घर नहीं आ रहा हूं। मैं इस देश की बिगड़ी दशा का कायाकल्प करने आया हूं। क्या ..............? तुम सत्ता पाने नहीं आ रहे हो , तो मेरे कोख में क्या करने आ रहे हो ? क्या तुम्हें नहीं मालूम कि सत्ताधारी का बेटा , सत्ताधारी ही बनता है। तुम राजनीति से बाहर रहकर देश को क्या सुधार लोगे , क्या कर लोगे देश के लिये ? अच्छा हुआ , समय रहते बता दिया कि मुझे नेता बन कर सुख पाने का शौक नहीं। वैसे भी तुम जैसा ईमानदार , न्यायप्रिय , सत्यवचनी मनुष्य कभी इस देश पर शासन नहीं कर सकता। मैंने तुम्हारे जैसे बेटा पाने का जो सपना संजोया था - वह गलत था। तुमने अपने आने का कारण बता , मेरी आंखें खोल दी। मैं तुम्हें प्रणाम करती हूं। तुम्हारा नाम ही काफी है हमारी उन्नति के लिये। तुम किसी जनता के घर का रूख कर लो वहां सुधार की अधिक जरूरत है। तुरंत अपने गर्भाशय का मुंह बंद कर लिया।

जनता के घर जाने के लिए गांधी जी के मन में खूब उथल पुथल चलने लगा। उन्हें लग रहा था कि कहीं अन्य लोगों की तरह उसने भी न कह दिया तब ....... कहां जाऊंगा मैं ? ब्रम्हा जी को क्या जवाब दूंगा ? चित्रगुप्त भी हंसेगा मुझ पर और कहेगा - बड़ा आया था देश को सुधारने वाला , कोई पैदा करने के लिये भी तैयार नहीं। चाहे जो भी हो , बिना पैदा लिये धरती से वापस नहीं जाऊंगा। जनता की तरफ रूख किया। आखिरी बार कोशिश कर रहा हूं मैं , क्यों न पूछ लिया जाय। मां मैं तुम्हारी कोख से पैदा लेना चाहता हूं। तुम कौन हो बेटा ? मैं गांधी हूं मां गांधी ..........। तुम्हारा स्वागत है बेटा। आज पहली बार , पैदा लेने वाले संतान ने आने के पूर्व आने की स्वीकृति ली। नहीं तो जिसकी जब मर्जी होती है चले आते हैं। हम रोकने की कोशिश करते हैं तब भी .......। ऐसा कैसे हो सकता है मां ? ऐसा ही होता है बेटा। परिवार नियोजन कराया था मैंने । पर उसके बाद कितने बार गर्भवती हो चुकी हूं मैं। क्या ........? हां बेटा , निजी अस्पताल में करा नहीं सकते और सरकारी अस्पताल में कराने पर सफल होने की गुंजाइश रहती ही नहीं है। हां यह अलग बात है कि नियोजन के बहाने गर्भ ही निकाल लिये जायें तब .........। पर तुम मेरे घर क्यों आना चाहते हो बेटा ? मैं तुम्हारे कष्टों को दूर करने आ रहा हूं मां। गरीबी और अमीरी के बीच की खाई को मिटाने आ रहा हूं। फिर तुम कुछ नहीं कर पाओगे बेटे। क्योंकि , यह खाई गरीबों की लाश से पटती है। आते ही लाश का हिस्सा बनोगे तो मेरे कष्ट कब दूर करोगे। फिर , मेरे , पहले से ही इतने संतान हैं , उनको पालने के लिये कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं तब दो वक्त की रोटी नसीब हो पाती है।

एक तुम और बढ़ जाओगे तब तुम्हारा इंतजाम कैसे होगा ? तुम्हें कैसे पालूंगी ? फिर तुम ठहरे बड़े आदमी। बड़े लोगों की संगति है तुम्हारी। भुखमरी , गरीबी , बेरोजगारी और लाचारी के बीच रहते हैं हम। इनमें वह ताकत नहीं जो तुम्हें खड़ा कर सके। मेरे अनेक बच्चे बिना किसी बीमारी के तड़प रहे हैं। मैं नहीं चाहती कि मेरे कष्टों को दूर करने के लिए आये गांधी अपने ही कष्ट में उलझ जाये और मेरे दूसरे बच्चे की तरह गुमनामी का जीवन बसर कर अपनी बीमारी के साथ विदा हो जाए। तुम्हारे आने की खुशी है बेटे। पर तुम्हारा जन्म दिन तो दूर , तुम्हारी छट्ठी तक को मना पाना मेरे लिये सम्भव नहीं। सुबह तुम्हें पैदा करूंगी , तो शाम को काम पर जाना होगा , तब तुम्हारे लिए दूध का इंतजाम हो पाएगा। मैं जानती हूं , तुम्हें पैदा करना मतलब नाम कमाना है , पर तुम्हारे इस नाम से मुझ जनता का पेट नहीं भरा जा सकता। मैं मेहनत करूंगी तभी - रसोई से धुआं निकलेगा , तभी बच्चों के हाथों से कौर उठेगा। कपड़े तो तुम वैसे भी कम पहनते हो , पर यह कम कपड़ा तुम्हें नंगई करने के लिये न उकसा दे , डर लगता है। क्योंकि तुम्हारे जैसे कम कपड़े पहनने वाले बहुत नंगे देखे हैं हमने। तुम खाते भी कम हो , पर तुम्हारे लिए खाने की वस्तु लाने पर , तुम्हारे नाम से लाकर खाने वाले लोग , हमें भी शक की निगाह से देखेंगे। फिर , तुम्हें सुलाने जमीन कहां से लाऊंगी मैं। मेरी झोपड़ी कर्ज में डूब गयी। खेती की जमीन को सरकार ने कानून बनाकर अधिग्रहित कर लिया। इसलिये , तुम्हें गर्भ से बाहर आने नहीं दूंगी मैं। क्योंकि यदि तुम सचमुच के गांधी हो तो इस देश के कर्णधार तुम्हारी अगुवाई सिर्फ इसलिये स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि तुम जनता के बेटे हो। तुम्हारे पीछे पड़कर वापस तुम्हें स्वर्ग का रास्ता दिखा देंगे वे। इसलिये गांधी , तुम मेरे भीतर रहकर गांधीपन का एहसास दिलाते रहो। डर गया गांधी , मैं इसी गर्भ में घुट घुट कर जीता रहूंगा , क्योंकि यह मां तो मुझे मरने भी नहीं देगी। मैं गर्भ में ही जिंदा लाश हो जाऊंगा। अब क्या करूं ? गांधी ने कहा - फिर मेरे आने का क्या प्रयोजन ? मैं जब तक गर्भ से बाहर नहीं आऊंगा , तुम्हारे दुख दूर कैसे करूंगा। तुम्हें सच बताऊं बेटा , तुम्हारे पहले कितने लोग गांधी बनकर मेरे गर्भ से बाहर आये , पर बाहर आ जाने के बाद ये सभी नाथू बन गये। हरेक बार गांधी आता है , सपने दिखाता है , पर चार महीने बीतते बीतते ही खुद स्वप्न बन जाता है। हम मुंह फाड़कर ताकते हैं , वह लात मार कर निकल लेता है। वह भूल जाता है हमें – जब वह पंचायत या संसद की देहरी पहुंच जाता है। मैं नहीं चाहती कि तुम भी बाहर आओ , पंचायत का हिस्सा बनो , संसद का हिस्सा बनो और हमें भूल जाने का उपक्रम भी रच डालो। मेरी शर्त मंजूर है तभी तुम मेरे गर्भ में प्रवेश करो , अन्यथा मैंने तो तय ही कर लिया है कि अब किसी गांधी को जन्म नहीं दूंगी मैं। पर मां ............। इस किंतु - परंतु से जनता समझने लगी कि गांधी उसके गर्भ में आना नहीं चाहते। दूसरी ओर गांधी समझ चुके थे कि जनता गांधी पैदा नहीं करना चाहती , इसलिये उसका दुख दूर नहीं हो पा रहा है।

बहुत अधिक निराश था वह। गांधी होने का दुख पहली बार अनुभव किया था आज। हताश परेशान भटक रहा था वह। अब वह गर्भ नहीं , शांति तलाशने लगा। तभी सामने एक भव्य आश्रम नजर आया। बहुत बड़े ऋषि का आश्रम था वह। अनेक लोगों को भीतर बेरोक टोक आते जाते देखा। वह भी घुस गया। उसे लगा इससे अधिक सुरक्षित और शांत जगह कहीं नहीं मिलेगी , यहीं बैठकर भजन पूजन किया जाये। थोड़े समय में ध्यान भंग हो गया। कुछ महिलाओं को आश्रम में रहते पाया। उन्हें देखकर , उनके मन में फिर द्वंद शुरू हो गया - क्यों न इन्हीं माताओं के कोख से पैदा लिया जाये , एक बार पूछ लेना चाहिये , उहूं ......... पूछूंगा ..... और इन्होंने भी मना कर दिया तब..........। बड़ी विचित्र स्थिति थी उनकी। सारी दुनिया के माताओं से पूछा , इन्होंने क्या बिगाड़ा है ? मन कहता – मुझे नहीं लगता , यह भी मुझे पैदा करने में अपना उत्साह दिखायेगी। चाहे जो हो , अब नहीं पूछेगा वह। जैसे ही गर्भ का मुंह खुला देखेगा , प्रवेश कर जायेगा। आखिर मौका मिल ही गया। गर्भ में घुस गया। मां को जैसे पता चला कि वह गर्भवती है , वह रोने लगी। गांधी को लगा , यह खुशी के आंसू है। वह मां से बातें करने के लिये उत्साहित था। जब लगातार कई कई घंटों तक मां को रोते पाया तब उसे मां के दुख का एहसास हुआ। मां ...... मां........ मैं आ गया हूं मां , तुम फिकर मत करो। मैं सिर्फ तुम्हारा ही नहीं , सिर्फ आश्रम भी नहीं , बल्कि पूरे देश का दुख दर्द मिटा दूंगा मां। मैं गांधी हूं मां ........., गांधी। तुम क्यों आये बेटा ? मैं तुम्हारा........। गांधी की बात पूरी नहीं हुई , वह मां कहने लगी - मेरा दुख दर्द मिटाने नहीं , बढ़ाने आ गए बेटा तुम। मैं तुम्हें जन्म नहीं दे पाऊंगी। पर क्यों मां ? क्योंकि तुम जब बाहर आओगे , तब तुम अपने बाप का नाम नहीं बता सकोगे। मैं नहीं चाहती ऐसे बच्चे को जन्म देना , जिसे लोग अवैध कहें। पर वास्तव में मैं अवैध कहां हूं मां। पिता का साथ मिला तभी तो मैं तुम्हारे गर्भ में आया हूं। बेटा , तुम बड़े भोले हो , जिसे तुम पिता कह रहे हो , वह तुम्हारे जैसे कितने संतानों को दुनिया में पदार्पण के लिये जिम्मेदार है , और इनमें से कोई भी बच्चा तभी बाहर आता है , जब मां यह मंजूर करती है कि उसका पिता , धर्म का वह ठेकेदार वह बाबा नहीं है। जिसे मंजूर नहीं , उसे गर्भपात के लिए मजबूर किया जाता है या बदनाम। तीसरा विकल्प बच्चे समेत स्वर्ग की यात्रा का भी रखा है बाबा ने। अब तुम्हीं बताओ बेटा। मुझे क्या करना चाहिये। गांधी ने अपना रंग दिखाना शुरू किया। तुम अदालत चलो , ऐसे लोगों को छोड़ना नहीं है। पर बेटा , उससे क्या होगा ? कुछ दिन जेल में रहेगा , छूट कर फिर किसी अबला के पेट से खेलेगा। और अदालत से इंसाफ मिलते मिलते , मैं और तुम तो दुनिया में रहेंगे ही नहीं , शायद तुम्हारी अगली पीढ़ी को मौका मिल जाये। इसी बीच बाबा ने , मां के खाने के साथ गर्भपात की दवा मिला दी। गांधी छटपटाने लगा। मां दर्द में परेशान हो गई , जब होश आया मां को , तब गांधी चौराहे पर लगी पुतले के भीतर सिसक रहा था। पुनर्जन्म स्वप्न बन चुका था उसके लिये। पर स्वर्ग भी वापस नहीं जा सकता क्योंकि वह खुद ही जिम्मेदार है इसके लिये भी। कभी इस गांव , कभी उस शहर , कभी इस गली , कभी उस डगर भटक रहा है तब से आज तक गांधी। कभी पुतले में छिपकर , हरेक आने जाने वाले को निहारता और तलाशता है सम्भावना को , आज भी

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हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन

97528 - 77925

छुरा , जि. गरियाबंद ( छ.ग.)

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रचनाकार: व्यंग्य कथा - कोख की तलाश
व्यंग्य कथा - कोख की तलाश
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रचनाकार
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