बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की कहानी व कविता - नौकरी व पुस्तकों की होली

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“नौकरी” लेखक: बेर्टोल्ट ब्रेष्ट अनुवादक – प्रतिभा उपाध्याय  ((बेर्टोल्ट ब्रेष्ट 20 वीं शताब्दी के जर्मन कवि, नाटककार, थियेटर डाइरेक्टर, गीत...

“नौकरी”
लेखक: बेर्टोल्ट ब्रेष्ट
अनुवादक – प्रतिभा उपाध्याय


 ((बेर्टोल्ट ब्रेष्ट 20 वीं शताब्दी के जर्मन कवि, नाटककार, थियेटर डाइरेक्टर, गीतकार और मार्क्सवादी साहित्यकार थे. बेर्टोल्ट ब्रेष्ट के सिद्धांत और व्यक्तित्व उनके समय में इतने हावी थे कि नाटक के आलोचक हर उस चीज़ के लिए "Brechtian" शब्द का प्रयोग करने लगे, जो थिएटर में ब्रेष्ट की विशिष्ट शैली और दृष्टिकोण की याद ताजा करती थी. ब्रेष्ट को 1954 में “स्टालिन शान्ति पुरस्कार” मिला.

इस कहानी “नौकरी“ में मंदी और बड़े पैमाने पर बेरोजगारी के समय में ज़िंदा रहने के लिए काम करने का एक बेबाक चित्रण है. ब्रेष्ट ने इस बात की भी आलोचना की है कि महिलाएं केवल तथाकथित महिलाओं का काम ही कर सकती हैं. ब्रेष्ट का मानना है कि आदमी या औरत कोई भी किसी भी काम को किसी भी प्रकार कर सकते हैं. केवल समाज में व्याप्त लैंगिक भेदभाव वाद उन्हें इस तरह काम करने से रोकता है. यह कहानी यह भी दर्शाती है कि लंबे समय से बेरोजगार रहने वाले व्यक्ति के लिए नौकरी कितना मायने रखती है, और इसे पाने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है .))
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महायुद्ध के बाद के दशकों में बेरोज़गारी और गिरते हुए हालातों के दबाव के कारण बद से बदतर दिन आते चले गए. “मेंज” में हुई यह घटना, किसी भी शान्ति संधि, इतिहास की पुस्तक, सांख्यिकीय तालिका के इस बर्बर हालत को बेहतर दर्शाती है, जिसमें महान यूरोपीय देश बल और शोषण के अलावा अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बनाए रखने के लिए उनकी अक्षमताओं से पराजित कर दिए गए. 

1927 में ‘ब्रेसालाउ’ में पति पत्नी और दो बच्चों वाले गरीब परिवार के मुखिया हाउसमन को एक दिन उसके पूर्व सहकर्मी से एक पत्र मिला, जिसमें उसे नौकरी का प्रस्ताव दिया गया था. यह भरोसे का पद था, जिसे उसका सहयोगी ब्रुकलीन में एक छोटी सी विरासत के कारण छोड़ रहा था. यह पत्र उस परिवार के लिए विह्वल उत्तेजना का कारण बना, जिसे तीन वर्ष की बेरोज़गारी ने हताशा के कगार पर ला खड़ा किया था.

निमोनिया से पीड़ित वह आदमी तुरंत अपनी बीमारी के बिस्तर से उठा, उसने अपनी पत्नी से कुछ आवश्यक सामान पुराने सूटकेस और गत्ते के डब्बे में डालने को कहा, बच्चों को उसने अपने साथ लिया और अपनी पत्नी को बताया कि किस तरह उसे इस दयनीय मकान को बंद करना है, तब अपनी कमजोर हालत के बावजूद वह स्टेशन गया. (उसे उम्मीद थी, जो कुछ भी होगा, बच्चों को साथ लेकर वह निर्विवादित रूप से अपने दोस्त का सामना कर लेगा). रेल के डब्बे में तेज ज्वर के बावजूद भी वह खुश था कि उसे एक युवा सहयात्री और एक नौकरानी मिल गई थी, जिसे काम से बर्खास्त कर दिया गया था और वह बर्लिन जा रही थी. वह नौकरानी उसे विधुर समझकर उसके बच्चों का ख़याल रख रही थी. उसने अपने पैसे से उन्हें छोटी छोटी कुछ चीजें खरीदकर दीं. बर्लिन में उस आदमी की हालत इतनी बिगड गई कि लगभग अचेत अवस्था में उसे अस्पताल ले जाया गया. पांच घंटे बाद वहाँ उसकी मृत्यु हो गई.
नौकरानी सुश्री लाइडनर ने इस स्थिति को भांप लिया था, इसलिए उसने बच्चों को छोड़ा नहीं, बल्कि उन्हें अपने साथ सस्ते ठिकाने पर ले गई. मृतक व्यक्ति और उसके बच्चों के लिए उसने सब प्रकार के खर्चे उठाये. वह असहाय छोटे बच्चों के लिए दु:खी भी थी , इसलिए एक क्षण भी सोच विचार किये बिना उसने श्रीमती हाउसमन को अपने आने का सन्देश भेज दिया, उसी शाम बच्चों के साथ वह ब्रेसलाऊ चली गई. श्रीमती हाउसमन ने बड़ी शांतचित्तता के साथ इस समाचार को लिया. यह एक ऎसी शान्ति थी, जो आपको कभी कभी उन लोगों में मिलती है, जो बहुत पहले ही यह भूल चुके होते हैं कि शांतिपूर्ण सामान्य अस्तित्व होता क्या है.

अगले दिन दोनों स्त्रियाँ दिनभर शोक मनाने के लिए सस्ते कपड़े भाड़े पर खरीदने में व्यस्त रहीं. इस दौरान उन्होंने घर को बेचना तय कर लिया, यद्यपि इस सबका अभी कोई मतलब नहीं बनता था. प्रस्थान से पहले सूटकेसों और गत्तों से भरे खाली कमरों में खड़े खड़े उस स्त्री हाउसमन को एक विचित्र आइडिया आया. वह नौकरी जो उसके पति के न रहने के कारण चली गई थी , एक मिनट के लिए भी उसके दिमाग से बाहर नहीं जा पाई. इस समय उसके लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य था –डूबते हुए जहाज़ को बचाना. भाग्य से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह दूसरी बार ऎसी पेशकश करेगा.
अंतिम समय में उसने एक योजना बनाई, जो उतनी ही साहसिक थी, जितनी उसकी स्थिति निराशाजनक थी. उसने अपने पति का स्थान लेने और रात में चौकीदार का काम करने का निर्णय ले लिया. इसके लिए उसे एक पुरुष के रूप में स्वयं का वेश बदलना था. जैसे ही उसने दिमाग में यह तय किया, उसने अपने शरीर पर लदे काले चीथड़े फाड़ डाले, सूटकेस की रस्सी खोल दी. अपने पति का रविवार वाला सूट बाहर निकाला और अपने बच्चों की आँखों के सामने अपनी नई सहेली की मदद से इसे पहन लिया. उसकी सहेली ने यह समझ लिया था कि उसे क्या करना है. अब यह एक नया परिवार था , जो उस वादा की गई नौकरी की खातिर नए सिरे से “मेंज” के लिए कूच कर रहा था और इसका पहले वाला चेहरा नहीं था. बड़ी संख्या में गोलाबारी के कारण उसमें मारे गए बटालियनों की रिक्तियां भी ताजा रंगरूटों से भारी जा रही थीं .

जिस दिन नौकरी के वर्तमान धारक को हम्बुर्ग में जहाज़ में शामिल होना था, उस दिन हाउसमन के अंतिम संस्कार के लिए बर्लिन में महिलाओं को ट्रेन से जाने की अनुमति नहीं थी. जब बिना किसी साथी के उसे अस्पताल से कब्र में उतारा जा रहा था, उसकी पत्नी को कंपनी के आसपास हाउसमन के कपड़ों में जेब में कुछ कागजात रखते हुए एक सहकर्मी ने देख लिया, जिसके साथ उसने बहुत ज़ल्दी एक समझौता किया. उसने सहकर्मी के फ्लेट में एक दिन बिताया – संयोग से यह सब बच्चों के सामने हुआ. उसने अपने पति के चलने के तरीके का , उसके उठने बैठने और खाने के तरीके का, उसके बोलने के तरीके का उस सहकर्मी और अपनी नई सहेली के सामने अभ्यास किया. हाउसमन को कब्र में दफनाए जाने और उसके नई नौकरी शुरू करने के बीच बहुत कम समय गुजरा.
कहा जा सकता है कि नियति और भाग्य के संयोजन से उत्पादन की प्रक्रिया के लिए जीवन वापस लाया गया. दोनों स्त्रियां श्री एवं श्रीमती हाउसमन के रूप में बच्चों के साथ अपना नया जीवन बहुत व्यवस्थित और सावधानीपूर्वक व्यतीत कर रही थीं. एक बड़ी फैक्टरी में रात के चौकीदार का काम कम मेहनत वाला नहीं होता. मैदानों कारखानों और दुकानों आदि में रात की ड्यूटी विश्वसनीयता और साहस के काम हैं, जिन्हें चिरकाल से मर्दाना गुण माना जाता रहा है. सच्चाई तो यह है कि हाउसमन की विधवा इन आवश्यकताओं के अनुरूप थी. एक चोरी को पकडने और आरक्षित करने के लिए उसे प्रबंधन से सार्वजनिक प्रशंसा पत्र भी प्राप्त हुआ था, जो इस बात का प्रमाण है कि साहस, शारीरिक शक्ति एवं मस्तिष्क की उपस्थिति किसी भी पुरुष अथवा स्त्री द्वारा प्रदर्शित की जा सकती है, जिसे वास्तव में नौकरी की आवश्यकता हो. कुछ ही दिनों में वह औरत मर्द बन गई, ठीक उसी रूप में जिसमें प्रजनन की प्रक्रिया द्वारा पुरुष सदियों से पुरुष हुआ है.    
      
चार वर्ष तक यह छोटा परिवार अपने बड़े होते हुए बच्चों के साथ अपेक्षाकृत सुरक्षित रहा, जबकि उनके आसपास बेरोज़गारी बढ़ रही थी. पड़ोसियों को हाउसमन की घरेलू स्थिति के बारे में कोई संदेह नहीं था. लेकिन तभी एक घटना घटीI ब्लॉक का प्रभारी अक्सर शाम को हाउसमन के फ़्लैट में बैठा करता था. वहाँ चौकीदार, उसकी पत्नी और वह प्रभारी तीनों मिलकर ताश के पत्ते खेलते थे. “ रात का चौकीदार” टाँगें फैलाकर, शर्ट की आस्तीन ऊपर चढ़ाकर, बीयर का प्याला सामने रखकर बैठती थी (उसकी यह तस्वीर बाद में सचित्र पत्रिकाओं में प्रमुखता से छपी.)

फिर रात का चौकीदार जवान पत्नी के साथ प्रभारी को बैठा छोडकर ड्यूटी पर चला जाता था. ऐसे में अंतरंगता अपरिहार्य थी. अब या तो सुश्री लाइडनर ने रहस्य खोल दिया अथवा प्रभारी ने आधे खुले दरवाजों से रात के चौकीदार को कपड़े बदलते हुए देख लिया. यह कहना पर्याप्त होगा कि वह वक्त आ गया जब हाउसमन को प्रभारी से परेशानी शुरू हुई. प्रभारी पियक्कड़ था, जिसे उसकी नौकरी के कारण रहने के लिए मुफ्त फ़्लैट मिला हुआ था, लेकिन इससे अधिक और कुछ नहीं और तब से उन्हें उसका भुगतान करना पड़ रहा था.

असली परेशानी तब शुरू हुई जब लोगों ने ‘हासे’ (यह प्रभारी का नाम था) को हाउसमन के फ़्लैट पर जाते हुए देखना शुरू कर दिया और बची खुची बीयर की बोतलें प्रभारी के कार्यालय में ले जाने की श्रीमती हाउसमन की आदत पास पड़ोस में गपशप का विषय बनी. अपने फ़्लैट में होने वाली अभद्र घटनाओं के प्रति रात के चौकीदार की उदासीनता के बारे में फैक्टरी में भी अफवाहें पहुँच गईं और एक समय तो इस अफवाह ने उसके प्रति प्रबंधतन्त्र  के विश्वास को हिलाकर रख दिया. सार्वजनिक उपभोग के लिए तीनों अपनी अपनी मित्रता तोडने के लिए विवश हो गए. बेशक प्रभारी द्वारा दोनों महिलाओं का शोषण फिर भी नहीं रुका, बल्कि स्थिति बदतर होती गई. कारखाने में हुई एक दुर्घटना ने इस सबको समाप्त कर दिया और इस विनाशकारी सम्बन्ध को भी अंजाम दे दिया.

एक रात बॉइलार विस्फोट से उड़ गया, जिसमें रात का चौकीदार घायल हो गया. हालांकि गंभीर रूप से घायल नहीं था, लेकिन इतना घायल हो गया था कि अचेत अवस्था में उसे अस्पताल ले जाना पड़ा. जब श्रीमती हाउसमन जागी, उसने खुद को स्त्रियों के अस्पताल में पाया. यह अकथनीय उग्र अत्याचार था. अपनी टांगों और पीठ पर घावों के रहते हुए पट्टियां बंधे हुए, उबकाई से व्याकुल होते हुए भी सोती हुई महिला रोगियों से लेकर मुख्य नर्स से भरे हुए वार्ड से डरते डरते खुद को घसीटते हुए वह बाहर निकल आई. नर्स ड्रेसिंग कर रही थी और इससे पहिले कि वह कोई शब्द कह सके, रात के नकली चौकीदार को आंशिक रूप से महिला के कपड़े पहने हुए देखकर उसे अपनी घबराहट पर काबू पाना पड़ा, कुछ चीजें केवल एक ही लिंग के लोगों को देखने की अनुमति थी —श्रीमती हाउसमन ने इन विनाशकारी मामलों की स्थिति प्रबंधतंत्र को रिपोर्ट नहीं किये जाने की अपनी दलीलों से नर्स को अभिभूत कर दिया था.

दयालु नर्स ने दो बार बेहोश हुई निराश महिला से वादा किया , लेकिन इस बात पर ज़ोर दिया कि वह साक्षात्कार के लिए जाए, क्योंकि कागजात पहले ही फैक्टरी जा चुके थे. नर्स ने उसे यह नहीं बताया कि यह अविश्वसनीय कहानी भी शहर में जंगल की आग तरह फ़ैल चुकी है. अस्पताल ने श्रीमती हाउसमन को पुरूष के कपड़ों में ही डिस्चार्ज कर दिया. वह प्रात: घर आई और दोपहर से ही सारा मुहल्ला घर के अंदर और बाहर फुटपाथ पर पुरूष बहुरूपिया की प्रतीक्षा में इकट्ठा हो गया. उस शाम हंगामे का अंत करने के लिए पुलिस ने उस दुर्भाग्यशाली स्त्री को हिरासत में ले लिया. जब वह कार में घुसी, वह तब भी पुरूष के कपड़ों में थी. उसके पास अब और कुछ नहीं था.

कहने की आवश्यकता नहीं कि हिरासत में भी बिना किसी सफलता के वह अपनी नौकरी के लिए लड़ती रही. रिक्ति की प्रतीक्षा में खड़े असंख्य हज़ारों में से एक को यह नौकरी दे भी दी गई , जो जन्म प्रमाण पत्र पर पैर से विकलांग दर्ज था. श्रीमती हाउसमन को प्रयास न करने का दोष नहीं दिया जा सकता. उसने उपनगरीय बार में एक महिला वेटर के रूप में काम करने का भी सोचा, जहाँ ताश के पत्ते खेलते हुए और रात के चौकीदार के रूप में बियर पीते हुए उसकी तस्वीर दिखाई गई थी (जिसमें से कुछ उसने पता लग जाने के बाद खिंचवाई थीं). फुटबॉल के खिलाड़ियों ने उसे सनकी निवासी क़रार दिया. इसके बाद लाखों लोगों की सेना के रैंक में वह संभवत: बिना किसी नामोनिशां के ही तबाह हो गई, जो अपनी मामूली आजीविका कमाने के लिए खुद को बेचने पर मज़बूर हो जाते हैं.

लगभग शाश्वत प्रतीत होने वाली सदियों पुरानी आदतों को हम एक दूसरे के लिए पूर्णत: या अंशतः छोड़ देते हैं. और जैसा कि हमने देखा है बिना सफलता के लिंग बदलना भी संक्षेप में खोना ही है और यदि प्रचलित राय पर विश्वास करें, तो यह हमेशा के लिए खो देना है..
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‘पुस्तकों की होली’
कवि - बेर्टोल्ट ब्रेष्ट
-     अनुवादक – प्रतिभा उपाध्याय


जब आदेश दिया हुकूमत ने कि खतरनाक ज्ञान की पुस्तकें
जला दी जाएं खुलेआम और चारो तरफ
खदेड़ दिया गया बैलों को , पुस्तकों से लदी गाड़ियों की
चिता बनाने के लिए,
समझ लिया 
देश से निष्कासित कवि ने
जो श्रेष्ठतम में एक था,
जलाई गयी पुस्तकों की सूची से भौंचक्का था वह,
कि भुला दी जाएंगी किताबें उसकी
क्रोध से आग बबूला वह बढ़ा तीव्रता से अपनी मेज के पास
और एक पत्र लिखा उसने शासक को : जलाओ मुझको
लिखा उसने फड़फड़ाते क्षोभ के पंखों से : जलाओ मुझको!
मत करो यह मेरी खातिर
यूं ही मत छोडो मुझे!
क्या मैंने अपनी पुस्तकों में हमेशा सच नहीं लिखा?
और अब तुम मेरे साथ व्यवहार कर रहे हो
एक झूठे की तरह!
मैं तुम्हें हुक्म देता हूँ :
जलाओ मुझको ।
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आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र 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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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