रवि श्रीवास्तव की कहानी - कर्जा

SHARE:

लहराती फसल कितना सुकून देती है। रमेश अपने बेटे से कहता हुआ खेत को देख रहा था। हर तरफ से घूम कर अपनी फसल को देखा। मन में सोच रहा कि भगवान त...

image

लहराती फसल कितना सुकून देती है। रमेश अपने बेटे से कहता हुआ खेत को देख रहा था। हर तरफ से घूम कर अपनी फसल को देखा। मन में सोच रहा कि भगवान तेरा शुक्रिया कैसे अदा करूं। तभी पीछे से एक आवाज आती है। अरे रमेश क्या बात है, आज अपने बेटे को खेत दिखाने लेकर आए हो। पीछे मुड़कर देखा तो सुखीराम खड़ा था। किसान हर सुबह आंख खुलते ही सबसे पहले अपनी फसल के दर्शन करना चाहता है। वैसे आप को बता दे नाम तो सुखीराम है, पर जिंदगी में सुख तो था नहीं बस राम ही राम था। हां भाई सुखीराम, मैंने सोचा चलो बेटे सूरज को भी अपनी मेहनत दिखा लाते हैं।

अब क्या था दो किसान आपस में मिल गए थे। बस खेती किसानी का बात शुरू। सुखीराम इस बार की फसल तो अच्छी है, हां भाई मेहनत करते हैं तो क्यों नहीं होगी। दोनों हंस पड़ते है। हंसें भी क्यों न उनकी मेहनत रंग दिखा रही थी? गांवों में जो हमेशा होता आया है। दो लोग मिल गए तो दो दिन गांव के लोगों का हाल चाल पूछना शुरू हो जाता है। अच्छी बात नहीं तो कम से कम बुराई ही करने लगते हैं।

फलाने ने ऐसा काम किया, ढ़माके के लड़के ने तो नाक ही कटा ली है। बगल के गांव की नीच जाति की लड़की को लेकर शहर भाग गया है। ऐसी ही कुछ बातें रमेश और सुखीराम के बीच चल रही थी। तभी रमेश ने सूरज से कहा तुम घर चले जाओ, स्कूल जाना है। मां से कहना मैं देर से घर आऊंगा। खेत का कुछ काम निपटा के आऊंगा। सूरज का स्कूल घर से करीब 5 किलोमीटर दूर था।

आठवीं कक्षा में सूरज पढ़ता था। उसके बाद फिर तो पढ़ाई के लिए और दूर जाना पड़ेगा। रमेश ने कहा था कि इस बार उसे इस बार साइकिल दिला देगा। सूरज पढ़ने में भी काफी अच्छा था। इसलिए रमेश भी उसे आगे पढ़ाना चाहता था। सूरज ने भी अपने पिता से कह दिया था कि इतनी दूर पैदल स्कूल जाने में काफी परेशानी होती है। एक साईकिल दिला दो।

अरे भाई सुखीराम इस बार का क्या हिसाब किताब है। का बताइ रमेश भैइया अगर सब कुछ बढिया रहैल तो खाने के तंगी न होई। कर्जा भी चुकाइ देबय। यार, किसानों की जिंदगी भी अजीब है। जैसे लोग जुआ खेलते हैं। वैसे ही हम फसल उगाने के लिए जुआ खेलते हैं। कम बारिश तो पानी के लिए तरसे। बेमौसम हुई तो फसल बर्बाद। अरे रमेश भईया जो किस्मत मा लिखा होत है वो तो हो के रहे।

भगवान पर किसका बस हवय। सो तो है भइया। वैसे इस बार कितना कर्जा है तुम्हार। पिछली बार नुकसान खाने के बाद इस बार ज्यादा कर्जा लेने की हिम्मत नहीं हुई। फिर भी इस बार का 20 हजार और पिछली बार का 15 हजार बाकी है। अरे सुखीराम पिछली बार का भी बकाया है।

हा भइया। फसल भी ज्यादा ठीक नहीं थी। फिर भी कर्जा चुकाने लायक थी। अरे भाई परेशान होने की जरूरत नहीं है सब ठीक हो जाएगा। मैंने भी इस बार ज्यादा कर्जा ले लिया है। खेत में पानी के लिए पम्पिंग सेट ले लिया है। और बोरिंग भी कराई। बैंक से मैंने पचास हजार का कर्ज लिया और मुखिया जी से 20 हजार का। अरे रमेश भइया मुखिया जी से भी कर्ज ले लिया है। हां ब्याज पर दिया है। बीवी की तबियत ख़राब हो गई थी। तो उधार लिया था ब्याज पर। चलो भइया अब घर चलते हैं। धूप भी तेज हो गई है। घर मालकिन इंतजार कर रही होंगी। चलो सुखीराम चलो ।

रमेश और सुखीराम अपनी लहराती फसल को देख चेहरे पर खुशी लेकर एक गीत गुनगुनाते हुए जा रहे थे। जो कि वो हमेशा कहते थे। कुछ इस तरह से –अब बन जावे, हम भी तौ सेठ, कर्जा चुकाइ देब, कर्जा चुकाइ देब, रंग लाई है मेहनत, लहराइ रहा खेत, कर्जा चुकाइ देब, कर्जा चुकाइ देब। सर पर गउंछा बांधे दोनो किसान अपने घर के लिए निकल पड़ते हैं। अच्छा राम राम भइया। राम-राम।

फसल कटने में बस कुछ दिन ही शेष रह गए थे। कुछ लोगों की फसल कटनी भी शुरू हो गई थी। किसानों की फसल कटने लगती है तब से उसके दिल में जबरदस्त उत्साह होने लगता है। बस वो यही सोचता है कि जल्दी से फसल घर आ जाए।

रमेश जैसे ही सड़क से घर की तरफ मुड़ता है। सामने नीले रंग की खड़ी कार की झलक मिलती है। घर के सामने कार देख चौक जाता है। मन में सोचता है कौन आया होगा। वैसे ही गांवों ने कार कहा ज्यादा देखी जाती हैं। कुछ सम्पन्न लोगों को छोड़कर। लेकिन ये कार दूर से ही चमचमा रही थी। रमेश सोच पड़ा में था। उसके किसी रिश्तेदार की तो होगी नहीं।

वह अच्छे से जानता था कि सबकी हालत क्या है। साइकिल खरीदने के लिए तो उधार लेना पड़ता है। तो कार कौन लेकर आ सकता है उसके घर। एक तरफ उसे डर था कि कही बैंक को लोग तो नहीं हैं। अभी से लोन के लिए परेशान करने आ रहे हैं। वो जल्दी से घर पहुंचना चाहता है, तभी ओ रमेश भइया का हाल चाल है। बस बढ़िया है भइया। हालचाल पूछने वाला कोई और नहीं गांव के अध्यापक महोदय थे।

भइया आप का लड़का पढ़ने काफी तेज है। उसे आगे तक पढ़ाना ताकि गांव के साथ-साथ आप का नाम रोशन कर सके। जरूर भइया। चले भइया थोड़ा जल्दी म है घर पर कोई आवा अवैह। ठीक है, पर हमार ई बात जरूर याद रखना। ठीक है।

अरे रमेश, रामू काका की पुकार, मुखिया जी का लड़का आप का इंतजार कर रहा है। बहुत देर से आया हुआ है। जाओ जल्दी से। रमेश जैसे ही घर के पास पहुंचता है। जिस कार के बारे में वो सोच रहा था, जो उसके लिए रहस्य बना हुआ था उसका पर्दाफाश हो चुका था। वो चमचमाती नीले रंग की कार गांव के मुखिया की थी। अपने बेटे को जन्मदिन पर उपहार में दी थी।

वही कार लेकर अपने दोस्तों के साथ वह घूमता था। और वही कार लेकर आज रमेश के घर पर आया था। मुखिया के लड़के का दोस्त कहता है। लो आ गए महराज। बड़ी देऱ से इंतजार था। प्रकट तो हो गए। मुखिया का लड़का कहता है, रमेश भाई पिता जी ने भेजा है।

उधार में जो रूपया लिया था आज उसका एक महीना पूरा हो गया है। 10 टका ब्याज मिलाकर 22 हजार हो गया है। रमेश तो हक्का बक्का रह गया। पैसे का इंतजाम वो कर नहीं पाया था। क्या जवाब दे वो। दबे मन से रमेश ने बोला, भइया कुछ दिन और दे दो।

तभी मुखिया के लड़के ने कहा, मूलधन नहीं तो ब्याज ही दे दो भाई। नहीं है भइया। रमेश ने अपनी घरैतिन से बात की। उसने जोड़-तोड़ के 500 रूपए बचा रखे थे। इज्जत को बचाते हुए उसने ये मुखिया के लड़के को पैसे दिए। 500 रूपए देख लड़के ने अकड़ कर कहा भीख नहीं मांग रहा हूं। कर्जा मांग रहा हूं।

रमेश ने कहा साहब अभी इतना ही है, अगले महीने धीरे-धीरे सारा चुका दूंगा। बड़े घराने के लड़के क्या जाने गरीबों का हाल। बस मुखिया जी ने कार खरीद दी और वसूली का काम पकड़ा दिया। वसूली करो और जेब खर्च चलाओ। रमेश का इतना कहना कि अगले महीने से सब ठीक हो जाएगा। उतने मे आग बबूला होकर कहा कि क्या अगले महीने तेरी लाटरी निकलने वाली है। अभी तो जा रहा हूं पर अगले महीने से कम से कम ब्याज का पैसा तो लेकर जाऊंगा। कार को उसने ऐसे मोड़ा जैसे किसी टैलेंट शो में अपना हुनर दिखा रहा हो।

गाड़ी घूमी बड़ी तेजी से घूंऊऊऊऊ और एक दो तीन हो गई। रमेश वही काफी देर तक खड़ा रहा। सोच रहा था भगवान जिसे पैसा देते हो उसे थोड़ी सी इंसानियत भी दे दिया करो। 20 साल का लड़का आज इस तरीके से बात कर रहा था। रमेश की पत्नी ने कहा क्या सोच रहे हो। चलो हाथ पैर धो लो, खाना लगा देती हूं। हम गरीबों की किस्मत में तो ये सब ऊपर से लिखा होता है।

जी तोड़ मेहनत करो फिर भी खाने के लाले पड़े रहते है। इतना कहकर वह अंदर चली जाती है। रमेश हाथ पैर धोकर वापस आता है। और खाने बैठ जाता है। दोनों आपस में बात करने लगते हैं। रमेश कहता है कि इस बार की अपनी फसल काफी अच्छी है।

पूरा कर्जा खतम कर देबय। सूरज का साइकिल दिला देबय। मुखिया का भी और बैंक का भी लोन चुका देबय। बस कुछ दिनों की बात हैं। फसल पक रही है। बैंक से याद आया। कितना मुश्किल होता है लोन पास करवाना। रमेश अपनी घरैतिन को बता रहा है। बैंक वाले ने कितना दौड़ाया था।

हर साल फसल की पैदावार ठीक से सिंचाई न होने से खराब हो जाती थी। रमेश जिसे लेकर काफी चिंतित रहता था। एक दिन वो बाजार गया हुआ था।

वहां एक नुक्कड़ नाटक के जरिए सरकार खेती किसानी की जानकारी दी जा रही थी। कुछ सरकारी लोग वहां खड़े थे। रमेश भी देख रहा था। जब नाटक खत्म हो गया तो वो सरकारी अफसर से खेती के बारे में बात करना चाहता था।

पर एक डर था उसके मन में पता नहीं क्या बोलेंगे। कही फटकार दिया तो भरे बाजार झेंप जाएंगे। फिर भी रहा न गया। आखिर हिम्मत कर के उसने उस सरकारी अफसर से बात कर ली।

रमेश: साहब एक सवाल है, बुरा न मानो तो कहें

सरकारी अफसर: बड़े प्यार से बुरा क्यों मानेंगे, आप सबकी सहायता के लिए तो हम यहां आएं हैं।

बताओ क्या जानना चाहते हो बेझिझक।

रमेश: साहब, हम खेती तो करते हैं, फसल शुरू में सही रहती है। लेकिन बाद में पानी की कमी से पैदावार कम हो जाती है। साहब इ परेशानी बहुतय बड़ी है हमरे लिए। मेहनत से हम नहीं पीछे हटते। पर हर साल इस वजह से गच्चा खा जाते हैं। इय परेशानी हमरे नहीं करीब-करीब सारे गांव की हैं।

नहर का जो पानी आता है उसे दबंग लोग जब तक अपनी खेतों की सिंचाई नहीं कर लियत हम गरीबों को नहीं दियत। जब हमार सबकय नम्बर आवत है तो नहरिया टूट जात है।

मतलब पानी कम होइय जात है जो कि खेत तक नहीं पहुंच पावत है। साहब ईकय लिए कौनौं जानकारी हुअय तो बताइ दियव आप।

सरकारी अफसर: ये तो बहुत बड़ी परेशानी है कि नहर का पानी आप सबकों नहीं मिल पाता है। ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है रमेश, सरकार एक योजना चला रही है।

बैंक से लोन पास करा कर एक पंपिंगसेट खरीद लो और बोरिंग करा लो, मेहनत करो फसल अच्छी होगी तो बैंक का लोन चुका देना। इसके लिए अपनी किसान बही लेकर बैंक जाओ और दिखाकर लोन पास करा लो।

रमेश: धन्यवाद साहब जी, इतना कछु बतावय के लिए।

सरकारी अफसर: अरे ये तो मेरा काम है भाई। सरकारी स्कीम को किसानों तक पहुंचाना।

अब क्या था रमेश के मन में उस सरकारी अफसर की बात बैठ गई थी। जल्दी से सब्जी खरीदी और घर वापसी करने लगा। रास्ते भर बस यही बात सोच रहा था। जो सरकारी अफसर ने बताई थी।

घर पहुंचाते ही रमेश ने थैला अपनी पत्नी को पकड़ाया। और कहा आज वो बहुत खुश है। तभी आवाज आती है चिल्लाने की। सब्जी क्या लाए हो। जो कहा गया था वो नहीं लाए।

घर में आलू एक भी नहीं है। और लाए भी नहीं हो। इतनी क्या खुशी बट रही थी। जो सिर्फ प्याज और टमाटर भर ले आए हो। अब खाओ इसे कच्चे। खाना नहीं पकाऊंगी।

रमेश बुत की तरह चुप-चाप खड़ा सुन रहा था। सुने भी क्यों नहीं उसे इतनी खुशी थी सरकारी अफसर की बात से कि वह आलू की जगह प्याज भर ले आया था।

अब उसके घर की गृहमंत्री नाराज थी। घर के गृहमंत्री पर आखिर किसका बस चलता है। ज्यादा बोल दो तो खाना नहीं बनेगा। रात में फिर तारे गिनने पड़ेंगे। थोड़ी देर बाद जब रमेश की घरैतिन का गुस्सा शांत हुआ तो रमेश से पूछा, बात की।

रमेश ने कहा, नाराज हुअय से पहले तो दुसरव की सुन लिया करव। माना कि हम आलू लाऊव भूल गइन रहय ।

लेकिन हुआ कुछ सरकारी अफसर खेती की जानकरिया दियत रहे। उनहिन का सुनत रहिन और फिर जल्दी-जल्दी मा भूल गइन।

रात में दोनों बात कर रहे थे, वही जो सरकारी अफसर ने कहा था। अब क्या था, रमेश का सपना पूरा होने वाला था। बस यही सपने देख कर वह उस रात ठीक से सो नहीं पाया था।

सुबह उठते ही वह खेत की तरफ गया तो वहां सुखीराम से मुलाकात हुई। उसने बाजार वाली पूरी बात बताई। सुखीराम ने कहा भइया अगर ऐसा होय जात तो बहुतय बढ़िया रहत।

लेकिन भइया हमरे पास ज्यादा जमीन नहीं हवय सो हम का करब लोन लय के। रमेश भइया तुमहरे पास तो हवय तुम लय लियव। हमरो काम चल जाए। और कमाई का धंधा भी बन जाएगा। देखिथय सुखीराम भइया।

दूसरे दिन किसान बही लेकर रमेश बैंक जाता है। लोन के बारे में पता करता है। सारी जानकारी लेकर वापस आता है।

तीसरे दिन, सारे कागज लेकर घर से खुशी –खुशी निकलता है। जैसे आज ही सब कुछ काम कराकर पैसा लेकर आएगा। और कल सारा सामान खरीद कर काम शुरू करा देगा।

बैंक पहुंचते ही रमेश ने मैनेजर से मिलना चाहा। लेकिन मैनेजर साहब बिना काम के व्यस्त थे। तीन-चार घण्टे के लम्बे इंतजार के बाद रमेश का नम्बर आया।

रमेश ने बैंक मैनेजर के पूरे कागज दिखाए। और कहा साहब लोन चाहिए।

बैंक मैनेजर : उसे ऊपर से नीचे तक देखता रहा। और बोला कितना चाहिए।

रमेश : कहा साहब 50 हजार लोन कर दियव।

बैंक मैनेजर : चलो कल आना।

रमेश उठा और चलता बना। बाहर आकर सोचा कल क्यों बुलाया है।

दूसरे दिन रमेश फिर बैंक पहुंचा, फिर से वही फरमान।

अब लगातार वह बैंक जाता रहा और वही फरमान सुनता रहा।

एक दिन उसने पूछा, साहब कितना दौड़ाओंगे, लोन काहे पास नहीं कर रहे हो।

बैंक मैनेजर: रमेश तुम्हारे कागज तो सही हैं पर हमें जो कागज मिलना चाहिए वो नहीं हैं।

नादान रमेश मैनेजर की बात को नहीं समझ सका। और फिर फरमान सुन वापस आ जाता है।

धीरे-धीरे इस बात को महीने बीतने वाले हैं। रात को सारी बात उसने अपनी पत्नी को बताई।

उसकी पत्नी को सारी बात समझ में आ गई। उसने कहा मैनेजर पैसा मांग रहा है। हमें इसलिए आजकल लगा रखा है।

अगले दिन रमेश फिर बैंक पहुंचा। तो चपरासी ने कहा फिर आ गए। लोन ऐसे पास नहीं होता। कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता हैं। नहीं तो चक्कर लगाते रहो।

रमेश अब पूरी तरह समझ चुका था कि पैसे देने पड़ेंगे।

मैनेजर रमेश को देखते ही मिलने से मना कर दिया था। रमेश ने जैसे तैसे मिलने का एक मौका खोज लिया। रमेश : साहब हमें समझ आ गया।

बैंक मैनेजर: चलो देर से ही पर अकल तो आई।

रमेश : साहब लोन पास करने में कितने रूपए देने पड़ेंगे।

बैंक मैनेजर: 50 हजार का लोन है तो 15 हजार देना पड़ेगा।

रमेश : साहब गरीब हैं इतना नहीं दे पाएंगे।

बैंक मैनेजर: देखो रमेश ये तो बहुत कम है। नहीं तो लोग आधा लेते हैं। हम तो फिर भी 15 ही मांग रहे हैं। सोच लो आज ही पास कर दूंगा। वरना एक हफ्ते की छुट्टी पर जा रहा हूं।

रमेश ने कहा ठीक है साहब कर दो पास। फटाफट दस्तखत किए गए पेपर पर और 50 हजार रमेश को दिए गए। जिसमें से 15 हजार काट लिए गए।

रमेश उस पैसे को लेकर घर आता है। और पत्नी से कहता है कि 50 में से 35 हजार मिले 15 हजार बैंक मैनेजर ने ले लिया। सरकारी स्कीम के बावजूद ये हाल है बैंकों का। अगले दिन से बोरिंग का काम शुरू करा देता है। बोर होने के बाद पम्पिंग सेट खरीदता है। रूपए तो कम पड़ गए थे। तो रमेश पत्नी के गहने के सुनार के यहां गिरवी रख देता है।

अब अपनी फसल को रमेश पानी ठीक तरीके से दे पा रहा था। और दूसरों के खेत में पानी लगाने के लिए उसने उसे कारोबार बना लिया। जिससे उसने पत्नी के गहने तो गिरवी से छुड़ा लिए थे। लेकिन गांव के लोगों के पास स्कीम पहुंचते ही सबने रमेश की तरह लोन पास करवा कर अपना खुद का बोर और पम्पिंग सेट खरीद लिया।

रमेश का व्यापार थम सा गया बस अपने काम के लिए रह गया था। साग सब्जी का खर्च जो उससे निकल आता था वह भी बंद हो गया।

रमेश ये सारी बातें अपनी अर्धांगिनी को बता रहा था। कि स्कूल से सूरज वापस आता है। रमेश के गले लगकर कहता है, पिता जी आज मैं बड़ा खुश हूं। रमेश क्यों भाई क्या हो गया। हेड़ मास्टर ने सबके सामने मुझे शाबासी दी। स्कूल में अधिकारी लोग आए थे। वो मेरी कक्षा में आए और कविता सुनाने को कहा था। मैंने झट से उठकर कविता सुना दी। रमेश कौन सी सुनाई थी।

अरे आप को नहीं पता जो आप रोज गाते हैं। रमेश अंजान बनकर कौन सी है जरा हमें भी तो सुना दो।

सूरज: ठीक है सुनाता हूं। अब बन जा बे हम भी तौ सेठ, कर्जा चुकाइ देब, कर्जा चुकाइ देब, रंग लाई है मेहनत, लहराइ रहा खेत, कर्जा चुकाइ देब, कर्जा चुकाइ देब।

रमेश: वाह क्या बात है सूरज।

सूरज: पिता जी स्कूल बहुत दूर है, आने जाने में समय भी लगता है और मै थक भी जाता हूं।

रमेश: बस कुछ दिन की बात है बेटा। फसल कटते ही साइकिल दिला दूंगा। सूरज खेलने चला जाता है।

रमेश अपनी पत्नी से कहता है अरे सुखीराम भी मिला था। हमने फसल की सिंचाई में उसकी मद्द की थी। उसकी भी फसल काफी अच्छी है। काफी खुश था। लेकिन उस बेचारे ने भी 20 हजार खेती के उधार लिए हैं। और 15 हजार बैंक का पिछला बाकी है। बेचारा हमेशा दुखी रहता है।

खाने के लाले पड़ जाते हैं उसके। इस बार फसल अच्छी है वो भी अपना कर्जा चुका देगा। पिछली बार तो गल्ला मण्डी में खुले में उसका अनाज पड़ा रहा। और बारिश में भीग गया था। जिसे फिर मण्डी में खरीदा भी नहीं गया।

वह दर दर भटकता रहा। अनाज कही नहीं खरीदा गया। सारा अनाज सड़ चुका था। सुखीराम जिसे बेचकर अपना कर्जा उतारना चाहता था वो तो हुआ नहीं। बल्कि खाने के लिए खरीदना पड़ रहा था। किस्मत की मार तो देखो।

रमेश की पत्नी ने कहा होनी को कौन टाल सकता है। इस बात को दो तीन दिन बीत गए थे। रमेश तीन दिन से खेत नहीं गया। उसकी तबियत खराब है। सूरज खेत देखकर चला आता है। दोपहर को एक आवाज आती है। रमेश भइया ओ रमेश भइया। रमेश बाहर जाता है तो देखता है सुखीराम होता है। का बात है भइया आजकल खेत नहीं आवत हो।

रमेश: अरे भइया दो-तीन दिन से तगड़ा बुखार था। इसलिए नहीं जात रहिन। सूरज का भेज दियत रहिन देख आवत रहा।

सुखीराम: भइया अगल-बगल के फसल कट गई है। अपनव फसलिया पक गई है, लोग मशीन से कटवाय रहे। हम सोच रहिन अपनव फसल मशीन से कटवाय लिया जाए। मौसम का कौनौ भरोसा नहीं ना।

रमेश: हां काहे नहीं, बस थोड़ा तबियत सही होय जाय।

ठीक है भइया, तो दोइ दिन बाद मशीन आए तो फसल कटा दिया जाए। अच्छा भइया जयराम। जयराम सुखीराम।

रात का खाना खाकर रमेश सोया हुआ था। हजारों ख्वाहिशें लेकर नींद से सोया रमेश की आंख अचानक तेज आवाज से खुलती है। वह चौंक जाता हैं। बाहर आकर देखता है तो उसके पैरों को तले की जमीन खिसक जाती है। वह एक बुत की तरह खड़ा रहता है।

उसकी पत्नी उसके पीछे खड़ी है। आधी रात में उसके आंखों से आंसू छलक रहे थे। उसे सुखीराम की इक बात याद आती है। मौसम का कौनौ भरोसा नहीं ना।

ये तेज आवाज पानी बरसने के साथ तेज हवा की थी। साथ में ओले भी गिर रहे थे। बस रमेश के दिल में अपने खेत के बारे में चिंता सता रही थी। आखिर लहराती फसल जिसे वह एक हफ्ते पहले करीब देखा था। वो बर्बाद हो रही थी।

उसकी पत्नी भगवान को मनाने में लगे थी। बारिश को बंद कर तो प्रभु। पर भगवान भी जैसे किसी जिद पर अड़े थे। बारिश रूकने का नाम नहीं ले रही थी।

चार घण्टे लगातार बारिश और ओले के बाद भगवान को थोड़ी दया आई। सुबह करीब 6 बजे बारिश तो कम हो गई थी। पर हवा चल रही थी। सभी किसान सुबह होते ही खेत की तरफ भागते नजर आए।

रमेश भी खराब तबीयत में अपनी फसल देखने भागता हुआ खेत पहुंचा। वहां खड़े किसानों के दिल से खून के आंसू गिर रहे थे। जो तन मन धन से फसल उगाने में मेहनत की थी सारी एक दिन के अंदर चौपट हो चुकी थी।

रमेश अपने खेत के पास पहुंचता है। फसल की हालत देखकर वही गिर पड़ता है। कल तक जो फसल लहरा रही थी। आज वो पानी में तैर रही थी।

सुखीराम भी वही था। रमेश को संभालते हुए घर लेकर आता है। उसकी हालत काफी खराब होती है। बस एक ही बात कह रहा था। बर्बाद हो गइन, बर्बाद हो गइन,।

बुखार भी तेज हो गया था। डॉक्टर को बुलाया गया। दवा देकर डॉक्टर चला गया और कहा रमेश का ख्याल रखना। काफी आघात दिल पर लगा है।

उस रात रमेश सो नहीं पा रहा था। बस बैंक के लोन कैसे चुकाऊंगा। मुखिया का कर्जा कैसे दूंगा। सूरज के लिए वादा किया था। साइकिल लाने का वो कहा से लाऊंगा। जिस फसल पर नाज था वो तो अब रही नहीं।

दूसरे दिन लोगों में ख़बरें आ रही थी। फसल खराब और कर्जा होने से फलाने ने आत्महत्या कर ली है। रमेश के दिल में ये बाद बैठती जा रही थी। मुखिया के बेटे का अल्टीमेटम भी मिल चुका था। बैंक लोन की भी वसूली होने वाली थी। दिन-रात बस यही सोचता रहा। आखिर करे तो क्या।

उस रात रमेश के सब्र की आखिरी रात थी। उसने सबके सो जाने के बाद वही काम किया जिसका डर था। बाहर गया रस्सी उठाई और कमरे में फंदा बनाया। खुदकुशी के पूरे विचार से वो आगे बढ़ता रहा। उसने फंदे को तैयार कर लिया था।

बस देर थी गले में पहनने की। बिना सोच विचार के कि मेरे जाने के बाद इस परिवार पर क्या गुजरेगी। जो कर्जा लिया उसके लिए ये कितना परेशान होंगे।

गले में फंदा जैसे ही डाला, एक बिल्ली ने सारा प्लान चौपट कर दिया। दूध रखे बर्तन को गिरा दिया। जिससे सूरज की आंख खुल गई थी।

वो अंधेरे में देखता हुआ पहुंचा तो सामने अपने पिता को फंदे पर देखता हुआ जोर से चिल्लाया। पिता जी ये क्या कर रहे हैं। मां देखो पापा को। फांसी लगा रहे हैं। रमेश की पत्नी नींद से उठकर भागती हुई वहां पहुंची।

तभी सूरज अपने पिता से कह रहा था, पिता जी हमें साइकिल नहीं चाहिए, हम पैदल रोज स्कूल जाएंगे। हम पढाई भी छोड़ देंगे। कर्जा चुकाने के लिए कमाएंगे। आप पिता जी परेशान मत हो। ऐसा काम मत करो। उधर रमेश की पत्नी बिलखती रोती कहती है। आप तो फांसी लगा लोगे पर हमारा क्या होगा।

कभी सोचा है, हमें लोग कितना परेशान करेंगे। मुखिया का लड़का और बैंक वाले हमारा जीना हराम कर देंगे। आप तो चले जाएंगे। मुझे अपनी परवाह नहीं है मैं भी जान दे सकती हूं। पर सूरज का ख्याल है दिल में। जो हमारा आंखों का तारा है। हम भी आप के साथ मजदूरी करेंगे। और कर्जा चुका देंगे।

रमेश के आंखों में आंसू बहते जा रहे थे। आज वह अपने आप को काफी नीचा महसूस कर रहा था। सोच रहा था कि मैंने कितना गलत कदम उठा लिया था। लोग मेरे परिवार पर हंसते। और परेशान करते। मैं मेहनत मजदूरी करूंगा। सारा कर्जा चुकाऊंगा। जीवन एक बार ही मिलता है। पर आज मुझे दोबारा से मिला जिसका फायदा उठाऊंगा।

धीरे-धीरे रमेश के खुदकुशी के प्रयास की बात आग की तरह आग में फैल गई थी। लोग रमेश के घर आने लगे थे। उसे समझाने। सुखीराम भी आया था। उसने कहा कि भइया मुझे देखो हर बार किस्मत लेकर रोता हूं। पर जीता हूं कमजोर नहीं हूं कि खुदकुशी कर लूं।

आप भी कमजोर मत बनो। इस बार नहीं तो अगली बार। खेती तो जुए का खेल है। इस बार रोज कमाएंगे। और मजदूरी कर कर्जा भी चुकाएंगे। मेहनत से क्या डरना।

रमेश की आंख में आंसू थे। वो वही सुखीराम है जिसे नाम के अनुसार कभी सुख नहीं मिला। फिर भी कितना खुश है।

तभी दूर से गांव के मुखिया जी आते दिखाई दिए। उन्हें भी ये खबर पता चल चुकी थी। रमेश ने मुखिया को आते देखा तो सोचा ये देखो कर्जा वसूलने वाले रहे हैं।

मुखिया: का रे रमेशवा, इ का सुन रहिन है तू फांसी लगा रहा था। अबे फसल बर्बाद हुई है, और तू अपना परिवार बर्बाद कर रहा है। फसल का तुम्हरी ही खराब हुई बहुतन की खराब भय, सब फांसी लगा लेहियव तो खेती किसानी कौन करे। पूरे गांव की फसल खराब हुई है। सुखीराम को देखो दो साल से मेहनत मजदूरी कर कर्जा चुकाय़ रहा और परिवार का पेट भी पाल रहा है। तोहसे य उम्मीद नहीं थी।

अपने बीवी और बच्चे का ख्याल तो कर लो।

रमेश: झट से उठता है, और मुखिया के पैर पकड़कर माफी मांगता है। और कहता है हम मेहनत और ज्यादा करके आप का कर्जा चुका देबय।

मुखिया: अरे नहीं पहले तू बैंक का लोन भर दिया। हमरे कर्जा की चिंता न करा। जब होगा तो दे देना वो भी बिना ब्याज के। उस दिन मेरा लड़का तुहरे हियासे कर्जा वसूल को लौटा रहा था। तो कार का एक्सीडेंट हो गया। जिसमें मेरा लड़का अब चल नहीं सकता। बहुत हो गया।

सूत का पैसा हमने सबके सूत माफ कर दिए है। जब जिकरे पास होगा। हमरा मूलधन वापस कर दे बस। इतना कहकर मुखिया वहां से चलते बने।

रमेश मन में सोच रहा था। कितनी बड़ी गलती की थी उसने। सूरज की तरफ देखकर कहता है, वाह पुततर तुने तो मुझे दुसरी जिंदगी दी है। इस बार साइकिल तो तोहरे लिए हम लाएंगे चाहे जितनी मेहनत करनी पड़े। और बैंक का लोग भी।

सुखीराम की तरफ देखते हुए कहता है -

किस्मत में जो नहीं, उसपर काहे का खेद, , रंग लाएगी है मेहनत, लहराइगा खेत, कर्जा चुकाइ देब, कर्जा चुकाइ देब।

दोनों हंसने लगे। रमेश को अपनी गलती का अहसास हो चुका था 

--

सम्पर्क सूत्र- 9452500016,9718895616

ravi21dec1987@gmail.com

--

clip_image002

लेखक, व्यंग्यकार, कहानीकार, कवि,

सम्पर्क सूत्र- 9452500016,9718895616

ravi21dec1987@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: रवि श्रीवास्तव की कहानी - कर्जा
रवि श्रीवास्तव की कहानी - कर्जा
http://lh3.googleusercontent.com/-k2ru-HkGJfA/VhjGh35hzgI/AAAAAAAAnv0/eOPm5QmqcQM/image_thumb.png?imgmax=800
http://lh3.googleusercontent.com/-k2ru-HkGJfA/VhjGh35hzgI/AAAAAAAAnv0/eOPm5QmqcQM/s72-c/image_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/10/blog-post_94.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/10/blog-post_94.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content