आनंद दास का आलेख - दशरथ माँझी और यथार्थवादी संघर्ष

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दशरथ मांझी एक बेहद पिछड़े इलाके से आते थे और दलित जाति से थे। शुरुआती जीवन में उन्हें अपना छोटे से छोटा हक मांगने के लिए संघर्ष करना पड़ा। ...

दशरथ मांझी माउंटेन मैन

दशरथ मांझी एक बेहद पिछड़े इलाके से आते थे और दलित जाति से थे। शुरुआती जीवन में उन्हें अपना छोटे से छोटा हक मांगने के लिए संघर्ष करना पड़ा। वे जिस गांव में रहते थे वहां से पास के कस्बे जाने के लिए एक पूरा पहाड़ (गहलोर पर्वत) पार करना पड़ता था। उनके गांव में उन दिनों न बिजली थी, न पानी। ऐसे में छोटी से छोटी जरूरत के लिए उस पूरे पहाड़ को या तो पार करना पड़ता था या उसका चक्कर लगाकर जाना पड़ता था। दशरथ मांझी ने फाल्गुनी देवी से शादी की। दशरथ मांझी को गहलौर पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का जूनून तब सवार हुया जब पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे अपने पति के लिए खाना ले जाने के क्रम में उनकी पत्नी फगुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनका निधन हो गया। उनकी पत्नी की मौत दवाइयों के अभाव में हो गई, क्योंकि बाजार दूर था। समय पर दवा नहीं मिल सकी। यह बात उनके मन में घर कर गई। इसके बाद दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले दम पर पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकलेगा और अतरी व वजीरगंज की दूरी को कम करेगा।

दलितों के जीवन का केंद्रीय विषय हमेशा जातिगत उत्पीड़न ही रहा है जो उनके जीवन की सच्चाई भी है।  "गहलौर गांव की जरूरत की हर छोटी बड़ी चीज, अस्पताल, स्कूल सब वजीरपुर के बाजार में मिला करते थे लेकिन इस पहाड़ ने वजीरपुर और गहलौर के बीच का रास्ता रोक रखा था। इस गाँव के लोगों को 80 किलोमीटर लंबा रास्ता तय करके वजीरपुर तक पहुंचना पड़ता था। ना बड़ी बड़ी मशीनें थीं और ना ही लोगों का साथ – दशरथ मांझी अकेले थे और उनके साथ थे बस ये छेनी, ये हथौड़ा और 22 बरस तक सीने में पलता हुआ एक जुनून। उन्होंने छेनी व हथौड़े की मदद से दो दशक में गहलौर की पहाड़ियों को काटकर 20 फीट चौड़ा व 360 फीट लंबा रास्ता बना दिया। इस रास्ते के बन जाने से अतरी ब्लॉक से वजीरगंज की दूरी मात्र 15 किलोमीटर रह गई। जबकि वजीरपुर और गहलौर के बीच की दूरी मात्र 2 किलोमीटर रह गयी।"(1) ‘माँझी द माउंटेन मैन’ में दलितों के जीवन का यथार्थवादी संघर्ष है। हम जितने साल अंग्रेज़ों के ग़ुलाम नहीं रहे उससे कहीं ज़्यादा उस समाज के गुलाम रहे जो जाति और धर्म की आड़ में कमज़ोर लोगों को खरपतार की तरह कुचलता रहा है। कमज़ोर आज भी इस समाज के ग़ुलाम हैं। " दशरथ मांझी बेटे के भागीरथ मांझी आज भी बकरी चराने को मजबूर हैं। उनका परिवार झोपड़ी में रहता है और पैसे के लिए मुर्गी और बकरी पालता है।"(2) ‘माँझी द माउंटेन मैन’ दलित, आदिवासी या वंचित तबकों के वास्तविक जीवन में नायक-नायिका पर बनने वाली अमुख्यधारा की घटना है। दलितों के जीवन का केंद्रीय विषय हमेशा जातिगत उत्पीड़न ही रहा है जो उनके जीवन की सच्चाई भी है। दशरथ माँझी सामन्ती व्यवस्था से संघर्ष करते हैं। एक सबसे गरीब और अत्यंत ही वंचित तबके के व्यक्ति का प्रेम। दलितों के जीवन में व्यक्तिगत प्रेम जैसी कोई वस्तु ही नहीं होती। सामाजिक दंश को झेलते हुए भी कोई व्यक्ति अपने प्रेम के लिए कुछ भी कर सकता है। हर तरह की स्थितियाँ चाहे वो सामाजिक हो या आर्थिक दशरथ माँझी के विपरीत थीं। फिर भी वो अपनी पत्नी फगुनिया से अथाह प्रेम करता है। जब तक फगुनिया जीवित रहती है , माँझी कहता है कि ‘कैसे बताएँ कि हम तुमसे कितना प्रेम करते हैं?' वह अपने प्रेम की भावना को प्रकट करने के लिए उपहार का प्रतिरूप फगुनिया को भेंट करता है। लेकिन उपहार एक शक्तिशाली और सम्पन्न शासक के प्रेम की अभिव्यक्ति है। "पांच फुट का इंसान बहुत ही मजाकिया था, जब वो हंसता था तो दिल खोल कर हंसता था। बीबी से बहुत प्‍यार करता

था।"(3) उसमे एक गरीब और दलित के प्रेम को अभिव्यक्ति कैसे मिल सकती है? वह उपहार की कल्पना कर सकता है पर हकीकत में बना तो नहीं सकता। यहाँ कहने का अभिप्राय यह है कि वो सौन्दर्य के परम्परागत प्रतिमानों पर तो कहीं से भी खरी नहीं उतरती होगी। फिर भी दशरथ माँझी को उससे असीम प्रेम था जिसके लिए वो कुछ भी करने को तैयार था। दशरथ माँझी जिस जाति (मुशहर) से आते हैं वहाँ आज भी बाल विवाह और दूसरे विवाह का प्रचलन आम है। इसके बावजूद दशरथ माँझी दूसरा विवाह नहीं करते हैं। वास्तव में फगुनिया उनके लिए मरी ही नहीं थी। दशरथ माँझी में प्रेम की पराकाष्ठा को बहुत ही गहराई से दिखता है। दशरथ माँझी की पहाड़ तोड़ने की जिद , हर तरह की कठिनाइयों को सामना करने साहस ; इन सबके पीछे की एक मात्र प्रेरणा उनका प्रेम था। वे पहाड़ से बदला लेते हैं पर शत्रु बनाकर नहीं मित्र बनाकर। उनका उद्देश्य सिर्फ उसकी अकड़ को तोड़ना था। वास्तव में दलित और बेहद गरीब दशरथ माँझी के पास ऐसा कुछ नहीं था जिससे वो फगुनिया के प्रति अपने प्रेम को बयान कर पाते इसलिए उन्होंने उस पहाड़ को ही तोड़ने की जिद ठानी जिसने उनसे उनकी फगुनिया को छीना था। प्रेम के लिए पहाड़ से टकराने का मुहावरा  तो बहुत आम है लेकिन दशरथ माँझी ने इस मुहावरे को सचाई में बदल दिया। एक बहुत ही प्रसिद्ध शेर है कि ‘एक बादशाह ने ताजमहल बनाकर हम गरीबों की मुहब्बत का मजाक उड़ाया है’। दशरथ माँझी के कहानी को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि ‘एक गरीब ने पहाड़ तोड़कर ताजमहल का मुँह चिढ़ाया है’। अकेले पहाड़ तोड़कर 22 वर्षों में बनाया गया वह रास्ता ताजमहल की तुलना में कहीं अधिक बड़ा प्रेम का प्रतीक है। शाहजहाँ को अगर अकेले ताजमहल बनाना होता तो शायद ही वह बन पाता लेकिन दशरथ माँझी ने अकेले ही पहाड़ को तोड़ दिया। एक दलित और गरीब का प्रेम जीवन की कठिनाइयों से जूझकर विकसित होता है इसीलिए उसका सार्थक परिणाम सामाजिक होता है। ताजमहल की भव्यता किसी गरीब को राहत नहीं दे सकती पर गहलोर गाँव की उस सड़क ने कई लोगों की कठिनाइयों को दूर किया है।

अभी भी मजबूरियों से पार पाने की कोशिश में लगा है।  "दशरथ मांझी के परिजनों को आज तक इंदिरा आवास का लाभ नहीं मिला। सरकार के वादों को सिर्फ याद करके संतोष करते हैं कि एक दिन मेरा भी घर बन जाएगा।"(4) हो सकता है इसमें मगध का पूरा परिवेश उभर नहीं पाया हो या जातिगत-सामन्ती उत्पीड़न का बहुत ही सतही चित्रण हो। हर तरह के उत्पीड़न के बीच भी कोई दलित उसी तीव्रता और गहराई के साथ प्रेम कर सकता है और किया है, जिस तीव्रता के साथ अन्य वर्ग या जातियों के ऐतिहासिक प्रेमियों ने किया है। संभवतः इस प्रेमियों से महान प्रेम था दशरथ माँझी इस बात को सिद्ध करने में सफल रही है। दशरथ मांझी हमेशा कहते – ‘ शानदार, जबर्दस्त, जिंदाबाद’

 

संदर्भ-सूची

1--https://hi.wikipedia.org/wiki/

2--http://www.bhaskar.com/news/c-268-469098-pt0171-NOR.html

3--http://pforpooja.blogspot.in/2015/08/blog-post_29.html

4--http://www.bhaskar.com/news/c-268-469098-pt0171-NOR.html

 

शोधार्थी

आनंद दास

कलकत्‍ता विश्‍वविद्यालय

4 मुरारी पुकुर लेन, कोलकाता-67

मो. नं. – 9804551685

ईमेल- anandpcdas@gmail.com

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फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर 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divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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आनंद दास का आलेख - दशरथ माँझी और यथार्थवादी संघर्ष
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