प्रतीक श्री अनुराग का आलेख - श्रीलंका में तमिलों की दुर्दशा की अनदेखी क्यों?

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यों तो सिंहलियों द्वारा श्रीलंका में बसे भारतीय तमिलों पर बर्बरतापूर्ण अत्याचार जग-जाहिर है, लेकिन इधर कोई चार-पाँच वर्षों से उन पर जो ज़ुल्म...

यों तो सिंहलियों द्वारा श्रीलंका में बसे भारतीय तमिलों पर बर्बरतापूर्ण अत्याचार जग-जाहिर है, लेकिन इधर कोई चार-पाँच वर्षों से उन पर जो ज़ुल्म ढाए जा रहे हैं, उन्हें देख-सुनकर दुनिया-भर के लोगों के रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं। दुनिया में मानवाधिकारों का इतना घोर हनन शायद पहले कभी नहीं देखा गया है। इतने पर भी भारत सरकार श्रीलंका में तमिलों की दुर्दशा का मूकदर्शक बनी हुई है और इस ज्वलंत मुद्दे को वैश्विक मंच पर जोरदार ढंग से मुखर करने के लिए कोई ऐसी पहल नहीं कर रही है जिससे कि उस देश में तमिलों के वंशोन्मूलन के कुख्यात अभियान पर श्रीलंकाई सरकार पर अंकुश लगाया जा सके। ग़ौरतलब है कि हाल ही के महीनों में श्रीलंका में सिंहलियों द्वारा तमिलों पर किए जा रहे घातक अत्याचार के ख़िलाफ़ वहाँ के प्रगतिशील छात्रों ने विश्वविद्यालयों और कालेजों में हड़ताल करते हुए व्यापक रोष प्रकट किया है और वे यह मांग करते हुए गलियों में और सड़कों पर आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं कि भारत सरकार इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में एक संकल्प उपस्थित करे। भारत सरकार श्रीलंकाई राष्ट्रपति राजपक्ष के युद्ध के नाम किए जा रहे इन अपराधों की तीखी भर्त्सना करे और वहाँ मानवाधिकारों के हनन के विषय पर एक निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय जांच आयोग बैठाए।

ख़ासतौर से मई, 2009 से श्रीलंका में तमिलों की जान-माल को नुकसान पहुंचाने वाले कुकृत्यों में इतनी तेजी से इज़ाफ़ा हुआ है कि उसका स्पष्ट आँकड़ा देना भी मुश्किल हो गया है। दरअसल वहाँ की सरकार भारतीय मूल के तमिलों का जड़ से सफाया करने पर आमादा है। श्रीलंका के पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्वयं श्रीलंका सरकार तमिल संस्कृति का धरोहर समझे जाने वाले स्मृति-चिन्हों और सामाजिक-सांस्कृतिक अवशेषों का सुरक्षण करने के बजाय उनको समूल नष्ट करने पर तुली हुई है। तमिलों की अस्मिता और अस्तित्व पर ऐसा कुठाराघात तो हमें मध्यकालीन बर्बरता की याद दिलाता है जबकि विश्वभर में सुस्थापित संस्कृतियों को नेश्तनाबूद करने के लिए आदिम प्रवृत्ति वाली जंगली जातियों ने जगह-जगह रक्तपात और विध्वंस मचा रखा था। दरअसल, सिंहलियों के वर्चस्व वाली श्रीलंकाई सरकार का मंसूबा अपने देश में तमिलों का भौतिक और सांस्कृतिक विनाश करना है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त नवनीतम पिल्लै का मानना है कि सामरिक अपराधों और राजनीतिक जवाबदेही के विषयों पर श्रीलंका सरकार कुछ भी नहीं कह पा रही है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने हालिया जेनेवा मीटिंग में जो संकल्प उपस्थित किया है, उसमें श्रीलंका की सरकार द्वारा देश में लगातार मानवाधिकारों के उल्लंघन, जनता की इच्छाओं और मांगों को पूरा करने में उसकी विफ़लता तथा जनता की आज़ादी पर कुठाराघात किए जाने जैसे विषयों पर अपनी गंभीर चिंता जताई है। श्रीलंका के सुरक्षा बलों के जवानों द्वारा तमिल स्त्रियों का बलात्कार किया जाना भी एक अत्यंत गंभीर मुद्दा है। यों तो ह्युमन राइट्स वाच (एच आर डब्ल्यु) की 147 पृष्ठ वाली रिपोर्ट में उल्लिखित श्रीलंकाई सैनिकों द्वारा यौन हिंसा सिंहलियों की वहशी प्रवृत्ति पर प्रचुर प्रकाश डाला गया है; तथापि तमिल स्त्रियों के बलात्कार की जो डाक्युमेंटरी फिल्म तैयार की गई है, उसे देखकर रूह काँप उठती है। इसी प्रकार, प्रभाकरन के 12 वर्षीय पुत्र बालचन्द्रन की वहाँ के सैनिकों द्वारा तड़पा- तड़पा कर की गई जघन्य हत्या के फोटोग्राफ़ भी रूह को कंपकंपा देते हैं। इस तरह श्रीलंका की शह पर इन वारदातों में उसकी प्रत्यक्ष लिप्तता जर्मनी में नाज़ियों द्वारा किए गए सामरिक अपराधों की याद दिला जाती है।

बहरहाल, यह बात गले से नीचे नहीं उतरती है कि सरकारी नीतियाँ श्रीलंका में तमिलवासियों की समस्याओं का कोई स्थायी हल ढूंढ पाने में पूर्णतया विफल हैं। क्या सरकार श्रीलंका में रह रहे तमिलों के साथ अपनी आत्मीयता और भाई-चारा खो चुकी है? क्या यह बात भुलाई जा चुकी है कि वे हमारे ही राष्ट्रीय कुनबे के हमारे बंधु-बांधव हैं और उनकी हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी हमारी है? श्रीलंकाई सरकार की दमनकारी नीतियों का करारा जवाब दे पाने में हम इतना हिचकिचा क्यों रहे हैं? हम सही मुद्दे पर भी पूरे आत्मविश्वास और स्वाभिमान के साथ कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर पाते?

(समाप्त)

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--प्रतीक श्री अनुराग, (वरिष्ठ पत्रकार)

मुख्य संपादक--'वी विटनेस'

जीवन चरित

और उपलब्धियों/विभिन्न गतिविधियों

का विवरण

नाम: (i) प्रतीक श्रीवास्तव

(ii) प्रचलित नाम : प्रतीक श्री अनुराग

(iii) उपनाम : अनुराग

जन्म-तिथि : 30-10-1978

पिता : श्री एल0 पी0 श्रीवास्तव (सेवा-निवृत प्रधानाचार्य)

माता : (स्वर्गीया) श्रीमती विद्या श्रीवास्तव

पता : बी-37/179-39, गिरि नगर कालोनी, (बिरदोपुर), महमूरगंज, वाराणसी (उ0प्र0)

शैक्षिक योग्यता : बी0ए0 आनर्स (अंग्रेज़ी साहित्य), काशी हिंदू विश्वविद्यालय,

वाराणसी (उ0प्र0)

अनुभव : (1) पत्र-पत्रिकाओं में लेखन, संपादन, प्रकाशन आदि का 20 वर्षों का अनुभव

(1) पत्रकार के रूप में अनुभव का विवरण

(क): वाराणसी टाइम्स में भूतपूर्व सह-संपादक;

(ख): वाराणसी टाइम्स, जनवार्ता, गाण्डीव एवं भारतदूत आदि दैनिक पत्रों में संपादकीय अंश और मुख्य संपादकीय लेखों का लेखन;

(ग): हिंदुस्तान, दैनिक जागरण, आज, राष्ट्रीय सहारा, गाण्डीव, एवं जनवार्ता के साहित्यिक परिशिष्टों के लिए कविता, कहानी, निबंध, व्यंग्य आदि का लेखन;

(घ): नवभारत के 'एकदा' स्तंभ हेतु लेखन;

(ङ): विभिन्न दैनिक पत्रों के लिए संवाद-लेखन तथा समय-समय पर विशेष संवाददाता के रूप में महत्त्वपूर्ण समाचार तैयार करना और उनका तत्वर प्रकाशन;

(च): अंग्रेज़ी अख़बारों और ख़ासतौर से नार्दर्न इंडिया पत्रिका के लिए एजूकेशन कवरेज़

(छ): 'बिहारी ख़बर' (राष्ट्रीय साप्ताहिक समाचार पत्र) के लिए नियमित लेखन;

(ज): 'बिहारी ख़बर' के ब्यूरो प्रमुख रहे;

(झ): राष्ट्रीय पत्रिका--'वी विटनेस' स्वयं के स्वामित्व में नियमित प्रकाशन;

संप्रति : राष्ट्रीय पत्रिका--'वी विटनेस' के प्रधान संपादक

(2) सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक आदि क्षेत्रों में सक्रियता संबंधी अनुभव का ब्योरा

(i) वाराणसी के अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं की गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी तथा इन विषयों पर आयोजित गोष्ठियों, बैठकों, सम्मेलनों और सेमीनारों में कार्यक्रमों का संचालन, निर्देशन, दिग्दर्शन तथा कार्यक्रमों की कार्यसूचियां एवं कार्यवृत्त तैयार करना;

(ii) व्यापक स्तर पर कवि गोष्ठियों/कवि सम्मेलनों/मेहफ़िले मुशायरों में काव्य पाठ;

(iii) विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक आदि मंचों का संयोजन;

(iv) सामाजिक उन्नयन के लिए विद्याश्री फाउंडेशन की स्थापना एवं संचालन;

(v) शैक्षिक/शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक संस्था--'पगडंडियाँ' की स्थापना एवं संचालन;

(vi) राष्ट्रीय स्तर पर साहित्यिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि ग्रंथों के प्रकाशन हेतु विद्याश्री पब्लिकेशन्स की स्थापना और संचालन; इस बाबत पांडुलिपियों का संपादन;

(vii) समाज के सारभूत उन्नयन में समग्र भागीदारी हेतु राष्ट्रीय मंच--राष्ट्रीय समाज कल्याण परिषद का संचालन;

(viii) माइनॅारिटी एजूकेशन एण्ड वेलफ़ेयर सोसायटी, वाराणसी की स्थापना और संचालन।

(xi) सदस्य : 1. बर्टेड रसेल सोसायटी, अमरीका, 2. रसराज; 3. अभिमत; 4. टेम्पुल आफ़ अंडरस्टैंडिंग, 5. कृतिकार, 6.कहानीकार और 7. सद्भावनापीठ।

ज्ञात भाषाएं : हिंदी और अंग्रेज़ी

 

(प्रतीक श्री अनुराग)

संपर्क सूत्र :

प्रतीक श्री अनुराग

(पत्रकार, लेखक एवं समाज सुधारक)

बी-37/170-39,

गिरिनगर कालोनी (बिरदोपुर),

महमूरगंज, वाराणसी-221010

(उत्तर प्रदेश)

इ-मेल पता editor_wewitness@rediffmail.com

मोबाइल नं. 09648922883

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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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रचनाकार: प्रतीक श्री अनुराग का आलेख - श्रीलंका में तमिलों की दुर्दशा की अनदेखी क्यों?
प्रतीक श्री अनुराग का आलेख - श्रीलंका में तमिलों की दुर्दशा की अनदेखी क्यों?
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