पद्मा शर्मा की कहानी - विषकन्या

SHARE:

रा त को ही सोचकर सोयी थी कि सुबह आराम से उठूँगी। अक्सर रविवार की सुबह देर से ही उठना होता। फोन की घण्टी ने अचानक ही नींद से जगा दिया। कन...


रात को ही सोचकर सोयी थी कि सुबह आराम से उठूँगी। अक्सर रविवार की सुबह देर से ही उठना होता। फोन की घण्टी ने अचानक ही नींद से जगा दिया। कनफोड़़ू और कर्कश लग रही थी फोन की घण्टी। अलसाते हुए सब एक-दूसरे को ताकते प्रतीक्षा कर रहे थे कि कोई रिसीवर उठाने की पहल करे। ‘‘देखो तुम्हारा ही होगा’’ कहते हुए मृगांक ने पूर्णिमा को ताकीद दी। मैंने अलसाकर और मन ही मन भुनभुनाकर रिसीवर मुँह पर लगाते हुए कहा-‘‘हलो’’...। उधर से कानों में रस टपकाती लड़की की आवाज आयी-‘‘ जी आप पूर्णिमा जी बोल रही हैं। मैंने झल्लाते हुए कहा ‘जी कहिए’।

उधर से आवाज आयी-‘‘...देखिए सौ लोगों में से आपके नाम का ड्रा निकला है आपके नाम एक लाख रुपये का इनाम है इसलिए हमने आपको फोन लगाया हैं।’’

मैं सोचने लगी आये दिन सुनते रहते थे कि आजकल कई कम्पनियाँ इनाम के नाम पर आम जनता को बेवकूफ बना रही हैं। उस लड़की की बात सुनते ही मैं सतर्क हो गयी मैंने कहा, ‘‘कैसा इनाम ?’’ वह समझाते हुए बोली- ‘‘मैडम हमारी कम्पनी लोन देती है और बीमा भी करती है उस कम्पनी के द्वारा कस्टमर को प्रोत्साहित करने के लिये इनाम की योजना रखी गयी है।’’

एक लाख रुपये की रकम सुनकर मन कुछ उत्साहित हो गया।

उसकी आवाज फिर आयी, ‘‘ मैडम आज रविवार को हमने दस बजे ग्रान्ट होटल में एक मीटिंग रखी है। आपको यहाँ आकर कुछ फॉर्मेलिटी पूरी करनी है।’’

मैं जैसे नींद से जागी, मैने उससे कहा आपका नाम ?

‘‘मैं दीपा जादौन’’ उधर से खनकती आवाज आयी।

शायद मेरी अन्यमनस्कता को भाँप गयी थी फिर से आग्रहपूर्वक बोली-‘‘मैडम! आइये जरूर , नहीं तो आप इस गोल्डन चान्स को खो देंगी।’’ फिर जैसे अपना पासा फेंकती-सी बोली, ‘‘आपके हसबैन्ड किस जॉब में हैं ?’’

‘‘जी हैल्थ विभाग में हैं’’

सुनते ही जैसे वह खिल गयी ‘‘डॉक्टर हैं ?’’

मेरा सिक्सथ सेंस चालू हो गया ... आवाज से तो लगता है ये खूबसूरत है।

मैंने टालने के उद्देश्य से कहा -‘‘ जी मैं अवश्य आती हूँ । ’’ फोन की आवाज ने सबको जगा दिया था। पति ने मजाकिया लहजे में पूछा-‘‘किस चाहने वाले का फोन आ गया सुबह -सुबह ? बड़ी खिली -खिली लग रही हो ?’’

मैंने खीझते हुए कहा-‘‘मेरी नींद हराम हो गयी और आपको चेहरा खिला-खिला लग रहा है, आपको दृष्टिदोष हो गया हैं । ’’

घर के कामों में दस ना जाने कब बज गये थे। 11 बजे फिर से फोन बजा, फिर वही खनकती आवाज उभरी, ‘‘मैडम हम आपका वेट कर रहे हैं, प्लीज ! आइये आप कब तक आ रही हैं।’’ मै सोच रही थी-‘‘ये प्लीज भी अजब बला थी। सच मानो , सॉरी और थैंक्यू से भी बड़ी। सीधे दिल में उतरती चली गयी उसकी ‘प्लीज’। न जाने किस परेशानी में कम्पनी की सिफारिश कर रही है वह ...। मैंने कहा, ‘‘देखिये जब ये घर आयेंगे तब मैं आ पाऊँगी।’’

‘‘मैडम आप सर का कॉन्टेक्ट नम्बर दे दीजिए , मैं उनसे रिक्वेस्ट कर लूँगी।’’

मैं उसे मोबाइल नम्बर देने में सकुचा रही थी। आजकल मोबाइल पर ही रिश्ते बनाना आसान हो गया हैं ।

मैने कहा, ‘‘जी मैं बात करती हूँ, हो सकता है वो किसी मीटिंग में व्यस्त हों।’’

दीपा भी तो यही चाहती थी कि पूर्णिमा ही फोन लगाये। पति दुनिया के सब काम छो़ड़ सकता है, बीवी के आग्रह को नहीं। पूर्णिमा दीपा की चालाकी नहीं समझ पायी। सहज व सरल स्वभाव वाली, गृहस्थी चलाने वाली महिलाएँ घर की गाड़ी चलाने में तो निपुण होती हैं पर दूरदृष्टि और व्यावसायिक समझ परख वो ही समझ पाती हैं जिन्होंने कार्पोरेट की दुनिया में कदम रख लिया है। उनके लिये व्यक्ति सिर्फ प्राणी नहीं वरन् उपभोग करने का माद्दा रखने वाला नवसिखिया जीव है जो आसान तरीकों और थोड़े से प्रलोभन से उनके जाल में फंस जाता है।

मैंने तुरन्त इन्हें फोन लगाया और याद दिलाया कि होटल जाना है।

हम होटल ग्रान्ट में पहुँचे। होटल के बाहर ही बैनर लगा था।चमक-दमक और साज-सज्जा के साथ अन्दर उस कम्पनी ने आकर्षण की चौपड़ फैला रखी थी। घुसते ही एक काउन्टर था, जिस पर एक लड़की बैठी थी, उसके पास दो व्यक्ति पहले से बैठे थे- उनकी भाषा में कस्टमर। व्यक्ति की उपमायें किस तरह बदल जाती हैं समय और परिस्थिति के हिसाब से । व्यावसायिक क्षेत्र में जो कस्टमर है वही जेल की दुनिया में कैदी, अस्पताल में मरीज, वाहन में सवारी और अन्य अनेक जगह अलग-अलग नामों का फरेब ...। कस्टमर किसी प्रपत्र को भरने में लगे थे।

हम लोगों को देखकर उसने हँसते हुए स्वागत किया और कहा-‘‘हलो , आइ एम स्वाति।’’ कहने के साथ ही उसने हाथ आगे बढ़ा दिया। उसने मुझसे हाथ मिलाया फिर मृगांक से। मृगांक ने भी उतनी ही गर्मजोशी से हाथ मिलाया। मैं बारी-बारी से दोनों के चेहरे देख रही थी।

दाएँ तरफ भी एक बड़ी मेज और कुछ खाली कुर्सियाँ पड़ी थीं। छोटे-छोटे काउन्टर बना दिये गए हैं।हमें बैठने को कहा गया।मेरी नजरें चारों ओर घूम रही थीं, सामने तखत रखकर एक छोटी सी स्टेज भी बना दी गयी थी, शायद उद्घाटन के लिये जो अब तक हो चुका था। वहाँ पड़ी कुर्सियों पर दो सूटबूटेड सज्जन बैठे थे, कुछ कागजों में उलझे हुए।

लड़की ने हमें एक फॉर्म दिया जिसे भरना था... अपना नाम..पता... फोन नम्बर...व्यवसाय आदि।

फार्मेलिटी पूरी कर दी थी हमने। लड़की ने उस फॉर्म को एक रजिस्टर पर चढ़ाकर एक फाइल में वो फॉर्म रखकर स्टेज पर बैठे सज्जनों की तरफ प्यून से पहुंचवा दिया।

होटल के पूर्व दिशा की ओर एक बड़ी-सी टेबिल थी, वहाँ एक लड़की जींस और जैकेट पहने बैठी थी। कुर्सी पर दो पुरुष और दो महिलाएँ बैठे थे, लगता था दो फेमिली हैं।

सबको अटेण्ड करने वाले अलग-अलग थे। पुरुषों के लिये ड्रेस कोड था, स्काय ब्लू शर्ट और काली पतलून के साथ लाल कलर की टाई। लड़कियाँ जीन्स और जैकेट में चहक रही थीं। सब सुन्दर और आकर्षक व्यक्तित्व की धनी। अब स्कूलों में भी सुदर्शना टीचर की डिमांड होने लगी है। व्यावसायिकता स्तर पर तो और भी अधिक आकर्षक व्यक्तित्व को प्राथमिकता दी जा रही है। डिग्री के साथ सौन्दर्य। जैसे योग्यता को प्रमुखता न देकर सिर्फ उपयोगिता के रूप में उपभोक्ता का स्वरूप प्रदान कर दिया गया है।उत्पाद बेचना है तो महिलाओं को काम पर लगा दो।

अब हम लोगों को दीपा जादौन की टेबिल पर बिठा दिया गया था। उसने हाथ बढ़ाकर कहा -दीपा जादौन

मैंने हाथ मिलाया, फिर मृगांक ने

पुरुषों को हाथ मिलाने में बड़ा अच्छा लग रहा था। टच थैरेपी जो काम कर रही थी। मृगांक के चेहरे के भाव बदल गये थे। मैंने ध्यान से देखा तो सकपका गये।

हँसते हुए उसने हमें बैठने का इशारा किया। बैठकर उसने एक कागज पर पेन से कुछ लिखना शुरु कर दिया-‘‘जी सर आपका नाम ?’’

..... ‘‘मृगांक ढेंगुला’’

‘‘आप शर्मा और ये ढेंगुला क्या लव मैरिज हुयी है ?’’

मैंने सोचा ये मना न कर दें इसलिये तपाक से कहा, ‘‘जी हाँ’’

‘‘आप किस जॉब में हैं’’

‘‘स्वास्थ्य विभाग में’’

फिर कुछ याद करती सी बोली - हाँ मैडम ने बताया था।

पेन कागज पर चलाती हुयी बोली-‘‘ आपको पता है बीमा की कुल कितनी कम्पनियाँ हैं.?’’...थोड़ी देर वह रुकी फिर उत्तर देती हुयी बोली-‘‘कई हैं ...पर उनमें से रजिस्टर्ड केवल 34 हैं, जिनमें से कुल बीमा कम्पनी 19 काम कर रही हैं।इनमें से 10 तो चल ही रही होंगी।’’ उसने ध्यानपूर्वक बारी-बारी से हमारे चेहरे को देखा। वह संतुष्ट हो गयी कि हम ध्यान से उसकी बात सुन रहे हैं, उसने फिर से बोलना शुरु कर दिया, ‘‘10 में से आदमी को चोइस करने में परेशानी होगी। हम एक ही छत के नीचे आपको गाइड करेंगे और सलाह देंगे।’’

‘‘...देखिए आदमी चार सेक्टरों में पैसा इन्वेस्ट करता है... बैंक में , पोस्ट ऑफिस में, शेयर मार्केट में और इन्श्योरेन्स में। हमारी कम्पनी पोस्ट ऑफिस को छोड़कर बांकी तीनों सेक्टर में काम कर रही है।’’

मैंने कहा, ‘‘पर हमें तो यहाँ इनाम के लिये बुलाया गया है ’’ वह बोली, ‘‘मैं उसी बात पर आ रही हूँ।’’

उसने धीरे से अपनी जैकेट की जिप ऊपर चढ़ाई। हम दोनों का ध्यान उस ओर गया, वहाँ गोरे कबूतरों की जुड़वाँ जोड़ी हल्की विभाजक रेखा के साथ दिखाई दे रही थी।शरीर कुलांचे मार बाहर निकलने का उद्यत है।

उसने समझाना शुरू किया, ‘‘इसके अन्तर्गत मकान निर्माण है, इन्फ्रास्ट्रक्चर हैं। हाउसलोन, क्लेम सेटलमेंट, इन्श्यारेन्श, रिटायरमेन्ट पेंशन प्लान भी हैं। इसमें टेक्स बेनेफिट भी मिलेगा।’’ कहकर उसने हमारे चेहरों को बारी-बारी से देखा। वह जानती है टैक्स बचाने की सोच हर नौकरी बाला रखता है और अन्तिम प्रयास तक उसे बचाये रखने के लिये कई जगह रुपये इन्वैस्ट करता है।

वह बोली-‘‘देखिये आजकल जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं। हम घर से निकलते हैं कई आशाओं के साथ... पर लौटना अनिश्चित होता है। आज जब हर तरफ आतंक और दुर्घटनाओं का बोलबाला है, हमारा जीवन सुरक्षित नहीं है। ऐसी स्थिति में हम तो चले जाते हैं, पर हमारे अपने जो इस दुनिया में अकेले रह जाते हैं उनके लिये आर्थिक व्यवस्था करना हमारी जिम्मेदारी है।’’

अब उसने मृत्यु और दुर्घटना का भय दिखाकर बीमे की बात शुरू कर दी, ‘‘हमारे यहाँ एक्सीडेन्टीयल बीमा होता है, आते-जाते जब कभी हमारे साथ कोई दुर्घटना घटित हो जाये तो हम पैसों के लिये मोहताज नहीं होंगे।’’ तभी घण्टी बजी और दूसरे टेबिल पर अटैण्ड कर रही लड़की ने कहा, ‘‘सब इनके लिये ताली बजाइये इन्हें वी आई पी किट मिल गयी है। इसकी कीमत एक लाख रुपये है।’’

मेरे मन में जिज्ञासा उभर आयी, ‘‘मैंने कहा यह वी आई पी किट क्या है ?’’

दीपा मुस्कराती है, ‘‘ये एक लाख रुपये की एक्सीडेन्टीयल पॉलिसी है, जिसे कम्पनी चलायेगी। आपको सिर्फ छह हजार रुपये वार्षिक किश्त भरना होगा। इसमें लाइफ के इन्श्योरेन्स प्लान में 5 वर्षों तक लगातार किश्त भरने पर बीस वर्ष तक रिस्क कवर बनी रहती है। इसमें यदि कोई कस्टमर तीन वर्ष तक भी किश्त जमा कर चौथी पाँचवी किश्त जमा न करे तो भी बीमा बना रहेगा। उसमें उसे अपना घोषणा पत्र देना पड़ेगा।लेकिन यह तभी सम्भव है जब वह पार्शियल विड्राल करे अर्थात् एक किश्त पहले वर्ष की छोड़कर शेष दो किश्तों का पैसा ब्याज से निकाल सकता है। क्लेम में 16 डॉक्यूमेन्ट लगते हैं। अन्य कम्पनी के एजेन्ट वादे तो करते हैं पर उन्हें पूरा नहीं करते।’’

उसकी वाणी में मिठास थी और वह वाक्पटु भी थी।

थोड़ा रुककर वह फिर से बोली, ‘‘सौ रुपये वार्षिक देने पर एक लाख का एक्सीडेंटीयल बीमा हो जायेगा। जिसे कम्पनी चलायेगी, पर उसके लिये आपको बीमा करवाना होगा।’’

मेरा मन व्यग्र हो रहा था। कम्पनी की सोची समझी चाल जिसे ग्राहक कम्पनी की मेहरबानी समझ रही है वह दरअसल ग्राहक की जेब का ही पैसा है जो दुर्घटना में मौत पर ही मिलेगा। जैसे चलती फिरती जिन्दगी में अर्थी की तैयारी।

एक फोन नम्बर लिखकर उसने कहा, ‘‘हमारी कम्पनी का ये मूल नम्बर है, आप जिस शहर का कोड लगा देंगे वहीं के चेयरमेन से बात हो जायेगी। बस आपके हाँ करने की देर है, वैसे भी अब केवल दो व्ही आई पी ऑफर बचे हैं।उसने गहरे आत्मविश्वास से ‘इनकी’ आँखों में झांका। कुछ देर ये भी उसकी आँखों में डूबते उतराते रहे। मैंने कोहनी से इन्हें टच करते हुए इनके सम्मोहन को तोड़ा।

इन्होंने कहा-‘‘जी देखिये हमें कोई बीमा नहीं कराना। हम पहले से ही बीमाधारी हैं।’’

जिन्दगी के प्रति मोह कितना होता है कि जीते जी मरने के बाद के फायदों के बारे में सोचने लगता है व्यक्ति। अपनी जरूरतों में कमी करके ,एक-एक पाई जोड़ेगा। दुर्घटना की आशंका की पहले से व्यवस्था... जिन्दगी को कितने व्यावहारिक तौर पर देखने लगे हैं हम...एक व्यवसाय और उत्पाद की तरह।

अन्य अटेण्डर लड़कियाँ भी सजी सँवरी घूम रही हैं।पेन्सिल हील पहने खट्-खट् की आवाज लोगों के कानों में समाती जा रही है। टाईट जीन्स और जैकेट में वे किसी सुन्दर रोबोट का काम कर रही हैं, जिसके इशारे पर कस्टमर अपना सब, उनके कहे अनुसार दांव पर लगाने का आतुर है। स्त्री के मानवीय सौन्दर्य की सहज अनदेखी हो रही हैं। उसे सिर्फ देह तक सीमित कर दिया गया हैं।

उसने फिर से पासा फेंकते हुए कहा, ‘‘देखिए ! हमारे यहा 18 से 20 परसेन्ट इन्टरेस्ट मिलता है। फिर प्यून से मुखातिब हुयी, ‘‘जरा इनका ऑफर चैक करना, उसमें क्या इनाम है।’’

मैंने मृगांक से कहा, ‘‘कम्पनी इसे कितनी सेलरी दे रही होगी ? उस सेलरी से ज्यादा यह श्रम कर रही है। उसे तन्ख्वाह तो अपनी बुद्धि की मिलती है पर देह को शस्त्र के समान प्रयोग में लाने का उसे क्या मेहनताना मिलेगा ? ...स्त्री की नई छवि बनाने बालों ने स्त्री को ‘अतिरिक्त मूल्य’ यानी सिर्फ श्रमिक बनाया है जिसे मजदूरी भी पूरी नहीें मिलती बल्कि मुनाफा मालिकों की तिजोरी में रहता है। सिर्फ सुन्दर स्त्री । ‘कमेरी’ स्त्री। आजाद स्त्री। ऐसी सुन्दर और स्वतन्त्र स्त्री जो राष्ट्रीय - बहुराष्ट्रीय निगमों का माल, ब्राण्ड और उपभोक्ता सामग्री बेच सके और मालिकों के लिए ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा कर दे सके, भले ही इस ‘यज्ञ’ में उसे चौराहे पर निर्वस्त्र होना पड़े...।

उसने बात बदलते हुए कहा, ‘‘ मैं ग्वालियर की रहने वाली हू, भाभीजी आप कहाँ की रहने वाली हैं’’

अब वो मैडम की जगह भाभीजी कह रही थी। उसने मेरी पूरी शिक्षा ग्वालियर की नोट की थी और मुझे ग्वालियर के नाम से द्रवित करना चाहती थी, आखिर मायका सब पर्यटन स्थलों से बड़ा होता है। मुझे उसका भाभीजी कहना भला लगा क्योंकि अप्रत्यक्ष रूप से मृगांक उसके भाई थे। मानवीय संबंध ब्राण्ड,उत्पाद और कम्पनी की खातिर नवीन रूप और स्वरूप ले रहे थे।

भाईसाहब आप कहाँ से हैं ?

लाइये मैं आपका फॉर्म भर दू

आपका नाम ...पूर्णिमा शर्मा

वह अब फेमिली एटमोस्फियर बनाती जा रही थी।

आप ग्वालियर में कहाँ हैं,..? कहकर उसने अपने परिवार का परिचय दिया, ‘‘मैं गोले के मंदिर पर रहती हू। मेरे परिवार में मेरी माँ और दो भाई हैं।’’

चेहरा देखते हुए उसने फिर से प्रश्न दागा, ‘‘आपकी शादी कब हुयी ?’’

इन्होंने जल्दी से कहा, ‘‘जी 1993 में’’

वह बोली, ‘‘मेरी भी सगाई हो गयी है ,वो भी आर्मी में है, मैसूर में’’

‘‘हॉल में हल्का संगीत बज रहा था।’’

...‘‘भाभीजी आपके बच्चे कितने हैं ?’’

...‘‘दो’’

...‘‘बड़े का नाम क्या है ?’’

...‘‘ईशान’’

‘‘अरे ये नाम तो ‘तारे जमीं पर’ फिल्म में था।’’

‘‘दूसरा बेटा है या बेटी ?’’

‘‘दूसरी बेटी है ..आयुषी’’

अब उसने अन्तिम हथियार फेंका, ‘‘आप लोग रिटायर हो जायेंगे तो मकान की आवश्यकता होगी। हर महिला का सपना होता है एक सुन्दर घर में रहने का।" ... वह अब मुझे पटा रही थी, उसे गलत फहमी थी कि घर में मेरी चलती है।

थोड़ा रुककर बोली, ...‘‘आपका सपना साकार हो सकता है, हम करेंगे आपका सहयोग, हमारी कम्पनी आपको लोन दे सकती है’’

कोने में बैठे कस्टमर को अटेण्ड करने वाली लड़की ने एक झुनझुना बजाया और कस्टमर पति पत्नी के हाथ ऊपर उठाकर कहा - एक डील फायनल हो गयी है। सब इन्हें बधाइयाँ दें।’’

अब तक मेरे मनोमस्तिष्क पर होमलोन असर करने लगा था। मैंने इनसे कहा हम कितने दिन से परेशान हो रहे हैं बैंकों के चक्कर काट-काटकर , लोन पास नहीं हुआ, क्यों न इनसे ही लोन ले लिया जाये ?’’

मृगांक को लग रहा था कि नशा मुझपर हावी हो रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘अरे ये लोग अभी तो लुभावने सपने दिखा रहे हैं बाद में चक्कर लगवायेंगे और ऊपर से इन्टरेस्ट भी ज्यादा लेंगे। आज जो कुछ भी कम्पनियाँ दे रही हैं वह बाजार की और अपनी शर्तों पर, केवल अपने फायदे के लिये। देखने में लगता है कि ग्राहक का फायदा है पर असल में कम्पनी का फायदा होता है इसमें केवल।’’

वे मुझे समझा रहे थे, ‘‘और देखो व्यावसायिक जाल फैलाने के लिये ब्यूटीफुल टीनएजर्स का इस्तेमाल किया जा रहा है। ये सब विषकन्या लग रही हैं, जो अपने कमीशन के फेर में सीधे-सादे ग्राहकों के मनोमस्तिष्क में कम्पनी का जहर फैला रही हैं। जहाँ एक तरफ आज की स्त्री आत्मविश्वास से भरी है वहाँ क्या स्त्री का काम सिर्फ सजना सँवरना हैं ? ये उत्तेजित मुद्रा में थे । कौटिल्य के अर्थशास्त्र की पंक्तियाँ सुनाते हुए बोले-

बन्धकीपोषकाः परमरूपयौवनाभिः स्त्रीभिः सेनामुख्यानुन्मादयेयुः

स्त्रियों का पालन-पोषण करने वालों को चाहिए कि वे सुन्दर रूपवती स्त्रियों के द्वारा प्रमुख व्यक्तियों को प्रमादी बनवा दें।

मैंने कहा, ‘‘तो फिर बीमा ही करवा लीजिए। मैं जोर डाल रही थी। दुकान पर जाओ और खाली हाथ वापस आओ तो अच्छा नहीं लगता। उत्साह कम हो जाता हैैै। और मैं तो कई लोगों को अपने एक लाख रुपये के इनाम के बारे में बता चुकी हूँ, अब मेरी रेपुटेशन का भी तो सवाल है... मैंने दलील दी।

मृगांक कई उदाहरण देकर समझा रहे थे।

थोड़ी देर बाद बीमे के उपलक्ष में हमारे लिए भी झुनझुना बजाया जा रहा था ...हमारी समझदारी को विषकन्या ने डँस लिया था।...

 ----

पद्मा शर्मा

एफ-1, प्रोफेसर कॉलोनी

शिवपुरी, म प्र


COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: पद्मा शर्मा की कहानी - विषकन्या
पद्मा शर्मा की कहानी - विषकन्या
http://4.bp.blogspot.com/-v5iMj2hBi2I/Vm-5lAhVPYI/AAAAAAAApOE/2lfAkqdfwRU/s320/girls%2Bdancing%2B2.PNG
http://4.bp.blogspot.com/-v5iMj2hBi2I/Vm-5lAhVPYI/AAAAAAAApOE/2lfAkqdfwRU/s72-c/girls%2Bdancing%2B2.PNG
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/12/blog-post_59.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/12/blog-post_59.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content