प्राची - नवंबर 2015 - इतालवी कहानी : मटका

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(1867-1936) यूरोपीय साहित्य में आधुनिक उपन्यास की उत्पत्ति इटली में चौदहवीं शताब्दी में लिखी जाने वाली नवल कथाओं में मानी जाती है, जिन्हें...

(1867-1936) यूरोपीय साहित्य में आधुनिक उपन्यास की उत्पत्ति इटली में चौदहवीं शताब्दी में लिखी जाने वाली नवल कथाओं में मानी जाती है, जिन्हें ‘नॉवेला’ कहा जाता था. इसी से अंग्रेजी में ‘नॉवेल’ शब्द प्रचलित हुआ. आधुनिक इटालियन साहित्य में लुईजी पिरानडेलो की प्रसिद्धि एक नाटककार के रूप में है, किंतु वह सिद्धहस्त कहानी-लेखक भी थे. उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था.

मटका

लुईजी पिरानडेलो

स लाल जैतून की फसल असाधारण रूप से अच्छी हुई थी. पिछले साल सभी पेड़ खूब फूले थे और इस साल कुहरा पड़ने पर भी उनकी डालियां फलों से झुकी थीं. लोलो ने भी अपने खेत में बहुत-से जैतून के पेड़ लगाए थे. यह सोचकर कि शराब की कोठरी में रखे हुए पुराने मटके इस साल तेल भरने के लिए काफी न होंगे, उसने पहले से ही कुम्हार से एक नया मटका तैयार करने के लिए कह दिया. उसने अपना नया मटका सबसे बड़ा बनवाया था. वह पांच हाथ ऊंचा और तीन हाथ चौड़ा था. अन्य पांच मटकों के बीच में वह सबका पिता मालूम पड़ता था.

यह कहने की आवश्यकता नहीं कि नए मटके के संबंध में लोेलो और कुम्हार में झगड़ा भी हुआ. दुनिया में ऐसा कोई आदमी नहीं था, जिससे उसका झगड़ा न हो चुका हो. छोटी-सी बात पर झगड़ा हो जाता था. अगर कोई उसके घर में पत्थर का छोटा-सा टुकड़ा या घास का मुट्ठा फेंक देता था तो वह फौरन चिल्लाकर अपने नौकर को ऊंटनी तैयार करने का आदेश करता था, जिससे वह नगर जाकर उस पर नालिश ठोंक सके. वकीलों और अदालत की फीस में उसने अपनी आधी संपत्ति बरबाद कर दी थी. वह सदा एक न एक आदमी से मुकदमा लड़ा करता था और अंत में उसे ही हर्जाना और सारा खर्च देना पड़ता था. लोगों का कहना था कि उसका वकील उसे सप्ताह में दो-तीन बार अपने यहां आ धमकते देखकर घबरा गया था. उसका आना कम करने के लिए वकील ने उसे एक पुस्तक भेंट की थी, जो देखने में प्रार्थना-पुस्तक मालूम पड़ती थी, परंतु पुस्तक को देखकर स्वयं निर्णय कर लिया करे कि विवादास्पद प्रश्न पर मुकदमा चलाया भी जा सकता है या नहीं.

पहले जब गांव का कोई आदमी लोलो से नाराज हो जाता था तब उसका तवा गरम करने के लिए वह चिल्लाकर कहता था-‘जाओ, अपनी ऊंटनी तैयार कराओ!’ परंतु अब उससे कहा जाता था-‘जाओ, अपनी कानून की पुस्तक में देखो!’ लोलो भी बिगड़कर उत्तर देता-‘यही करने जा रहा हूं, बदमाश! मैं तुझे अच्छी तरह मजा चखा दूंगा.’

एक दिन वह नया मटका बनकर आ गया. लोलो ने उस पर एक अच्छी रकम-दो रुपये खर्च की थी. शराब की कोठरी में जगह नहीं थी, इसलिए मटका दो-चार दिन के लिये ओसारे में रखवा दिया गया. लोलो उस बड़े मटके पर मुग्ध था. उसे बड़ा दुःख हुआ कि ऐसा सुंदर मटका कारखाने में रखवा दिया गया, जहां प्रकाश और हवा न पहुंचने के कारण

गंध आती थी.

फसल का आरंभ हुए दो दिन हो गए थे. लोलो को जरा भी अवकाश नहीं मिल रहा था. एक ओर मजदूरों की देखभाल का काम था, जो पेड़ों से फल गिरा रहे थे, दूसरी ओर पीठ पर खाद लादे हुए खच्चरों की पांति खड़ी थी. लोलो ने यह खाद नए खेत में डालने के लिए मंगवाई थी. उसका मन बार-बार झुंझला पड़ता था कि सारा काम मेरे बस का नहीं. उसकी समझ में नहीं आता था कि वह किस-किसकी देखभाल करे. फौजी सिपाहियों की तरह वह कभी इस और कभी उस मजदूर को फटकार बताता था कि अगर एक फल भी गायब हो गया तो वह उनको जीता न छोड़ेगा. वह इस तरह कहता था जैसे उसने एक-एक पेड़ के एक-एक फल गिन रखे थे. इसके बाद ही वह खच्चरवालों की तरफ मुड़ पड़ता था और उन्हें धमकाता था कि एक भी बोरी में अगर जरा-सी भी खाद कम निकली तो फिर उनकी खैर नहीं. कमीज की बांह समेटे हुए वह इधर-उधर दौड़ता ही रहता था, चेहरे से पसीना टपकने लगता था, आंखें भेड़िए की तरह चमकती रहती थीं.

तीसरे दिन शाम को तीन मजदूर-गंदे और कुरूप मजदूर-ओसारे में गए. वे भी फल तोड़ने के लिए रखे गए थे. वे अपनी सीढ़ियां बदलने के लिए ओसारे में गए थे. वहां नए बड़े मटके को दो टुकड़ों में टूटा देखकर वे भयभीत हो गए. ऐसा मालूम पड़ता था कि किसी ने चाकू लेकर बीच से मटके के दो टुकड़े कर दिये हैं.

‘‘हे ईश्वर! यह क्या हुआ! उधर देखना, उधर!’’

‘‘हे! यह तोड़ा किसने?’’

‘‘भगवती, रक्षा करो! लोलो देखेगा तो जमीन-आसमान एक कर देगा! नया मटका था!’’

पहला मजदूर अपने साथियों की अपेक्षा कम भयभीत हुआ था. उसने कहा, ‘‘चलो, हम लोग चुपके से ओसारे का दरवाजा बंद कर बाहर चले जाएं. सीढ़ियां और लग्गियां बाहर की दीवार के सहारे रख दें.’’ परंतु दूसरे मजदूर ने कहा, ‘‘क्या बेवकूफी की बात कहते हो! तुम चतुराई में लोलो के कान नहीं काट सकते. तुम चाहे जो कहो, वह तो यही समझेगा कि मटका हमीं लोगों ने तोड़ा है. अच्छा यही होगा कि हम लोग यहीं रहें’’

ओसारे के बाहर जाकर उसने दोनों हाथ भोंपू के समान मुंह पर रखकर पुकारा-‘‘मालिक हो! मलिक हो ो ो ो ो!’’

टूटा हुआ मटका देखते ही लोेलो के बदन में आग लग गई. पहले तो उसने अपना क्रोध तीनों मजदूरों पर ही उतारा. उसने एक मजदूर का गला पकड़ लिया और उसे दीवार से दबाकर चिल्लाकर कहा, ‘‘ईश्वर की सौगंध खाकर कहता हूं, तुझे इसका मजा चखा दूंगा.’’

अन्य दो मजदूरों ने भयभीत होकर फौरन लोलो को पकड़ लिया और उसे अलग किया. तब उसका उन्मत्त क्रोध अपने ऊपर उमड़ पड़ा. वह जमीन पर अपने पैर पटकने लगा, अपने गालों पर तमाचे मारने लगा. वह उस मटके के टूट जाने पर इस प्रकार रुदन कर रहा था, जैसे किसी निकट संबंधी की मृत्यु हो गई हो.

‘‘नया मटका था! नकद दो रुपये में खरीदा था. अभी एकदम नया था. आखिर मटका किसने तोड़ा? क्या वह अपने आप टूट सकता था? निश्चय ही उसे किसी ने तोड़ा है-द्वैषवश अथवा ईर्ष्यावश कि यह इतना सुंदर मटका है! परन्तु कब तोड़ा? किस समय तोड़ा? मटके पर चोट का कोई निशान नहीं है. क्या वह कुम्हार के यहां से ही टूटा हुआ आया था? नहीं, उस समय तो लोहे की चादर की तरह बोलता था!’’

मजदूरों ने जब देखा कि लोलो के क्रोध का पहला उफान ठंडा पड़ गया है, तब वे लोलो को सांत्वना देने लगे. कहने लगे, ‘‘मटके पर अधिक शोक करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि अभी मटका बन सकता है. मटका बेढंगे तौर से नहीं टूटा है, आगे का हिस्सा अलग हो गया है; एक चतुर लोहार इस मटके को अभी बिलकुल नया बना सकता है. डिम चाचा सबसे उपयुक्त आदमी हैं. उन्होंने एक सीमेंट बनाई है. उसे वे किसी को बताते नहीं कि उस सीमेंट में उन्होंने क्या मिलाया है, पर वह है बड़ी आश्चर्यजनक! एक बार वह सीमेंट लगा देने पर यह मटका फिर हथौड़े से भी नहीं तोड़ा जा सकेगा.’’ मजदूरों ने यह कहा कि अगर मालिक की आज्ञा हो जाए तो डिम चाचा सुबह होते ही यहां आ जाएं. यह मटका निश्चय ही बन जाएगा, बल्कि पहले से भी अच्छा हो जाएगा.

बहुत देर तक तो लोलो ने इन बातों पर कान तक नहीं दिया-अब वह व्यर्थ है, टूटा हुआ मटका बन नहीं सकता है. परंतु अंत में वह राजी हो गया.

सुबह होते ही डिम चाचा पीठ पर बोरे में अपना सामान लादे हुए आ गए. डिम चाचा अति वृद्ध थे, टेढ़ा-मेंढ़ा शरीर था, पके हुए बाल थे. उनके मुंह से शब्द निकलवाने के लिए, मालूम पड़ता था, चिमटी से उनकी जबान खींचने की आवश्यकता थी. उनकी कुरूप आकृति निराशा की सजीव प्रतिमा मालूम पड़ती थी, शायद यह निराशा इस कारण थी कि उनके आविष्कार की कद्र करने वाला अभी तक कोई मिला नहीं था. डिम चाचा ने अभी तक अपने नवीन आविष्कार की रजिस्टरी नहीं करवाई थी और वे शायद प्रथम बार उसका सफल प्रयोग करके प्रसिद्धि प्राप्त करना चाहते थे. उन्हें हर समय भय लगा रहता था कि कहीं किसी को उनके नवीन आविष्कार की गुप्त विधि मालूम न हो जाए.

लोलो ने डिम चाचा को कई मिनट तक सिर से पैर तक देखने के बाद अविश्वासपूर्ण स्वर में कहा, ‘‘लाओ, तुम्हारी सीमेंट देखूं तो’’.

डिम चाचा ने गंभीर भाव से सिर हिलाकर कहा, ‘‘आपको अभी इस सीमेंट का गुण मालूम हो जाएगा.’’

डिम चाचा ने अपनी बोरी पीठ पर से उतारकर जमीन पर रख दी और उसमें से एक लाल बंडल निकाला. एक रूमाल से कोई चीज बड़े यत्न से लपेटी हुई थी. वे बड़ी सावधानी से उसकी तह पर तह खोलते रहे. सब लोग बड़े ध्यान से डिम चाचा को देखते रहे. अंत में रूमाल में से कुछ नहीं, एक ऐनक निकली, जो तागे से बंधी थी. सब लोग हंसने लगे. डिम चाचा ने इस पर ध्यान न देकर हाथ में थामने से पहले अपनी उंगलियां पोंछी, फिर ऐनक लगाकर बड़े गंभीर भाव से मटके की परीक्षा करने लगे. मटका ओसारे से निकालकर बाहर मैदान में लाया गया था. अंत में डिम चाचा ने कहा, ‘‘सीमेंट से यह जुड़ जाएगा.’’

‘‘लेकिन मुझे अकेले सीमेंट पर विश्वास नहीं.’’ लोलो ने कहा, ‘‘मैं इसमें लोेहे की पत्ती-सी जड़वाना चाहता हूं.’’

‘‘अब मैं चला.’’ डिम चाचा ने अपनी बोरी पीठ पर रखते हुए तत्काल उत्तर दिया.

लोलो ने डिम चाचा को पकड़ लिया. उसने कहा, ‘‘चले! कहां चले? तुम्हें तमीज छू नहीं गई है. अरे बेबकूफ, तुझे पता नहीं कि मैं इस मटके में तेल भरूंगा और तेल चू सकता है. इतना बड़ा मटका है, तू केवल सीमेंट से जोड़ने के लिए कहता है. मैं चाहता हूं, इसमें लोहे की पत्ती भी लगे-सीमेंट और लोहे की पत्ती दोनों! यह निर्णय करने का भार मुझ पर है.’’

डिम चाचा ने अपनी आंखें बंद कर लीं, ओंठ कसकर दबा लिए और जोरों से सिर हिलाया, ‘‘बस, सब लोगों का यही हाल है. वे साफ-सुथरा काम नहीं करवाना चाहते, जिससे डिम चाचा को भी अपने कलापूर्ण कार्य में संतोष हो और उसकी सीमेंट का अद्भुत गुण भी प्रकाश में आ जाए.’’ उन्होंने जोर देकर कहा, ‘‘मटका फिर लोहे की चादर की तरह न बोलने लगे तो...’’

मैं एक शब्द भी नहीं सुनना चाहता.’’ लोलो ने गरजकर कहा, ‘‘मैं कह रहा हूं कि इसमें लोहे की पत्ती भी लगेगी. काम हो जाने पर मजदूरी तय कर दूंगा. मेरे पास व्यर्थ का समय नहीं है.’’

लोलो मजदूरों की देखभाल करने के लिए चला गया.

डिम चाचा अति क्रुद्ध भाव से अपना काम करने लगे. वे जैसे-जैसे टूटे मटके पर लोहे की पत्ती चढ़ाने के लिए उसमें छेद करते जाते थे, उनके क्रोध का पारा भी चढ़ता जाता था. क्रोध के कारण उनकी आंखें लाल अंगारे की तरह हो रही थीं, मुंह तमतमा आया था. मटके में छेद करने के बाद उन्होंने क्रुद्ध भाव से बरमा बोरी में डाल दिया और उसमें से कैंची निकालकर वे लोहे की पत्ती काटने लगे. इसके बाद उन्होंने एक मजदूर को पुकारा, जो जैतून के फल गिरा रहा था.

डिम चाचा को अति क्रुद्ध देखकर मजदूर ने कहा, ‘‘गुस्से को थूक दो, डिम चाचा.’’

डिम चाचा ने अपना हाथ हिलाया. उन्होंने सीमेंट का डिब्बा खोला और उसे दोनों हाथों में लेकर आसमान की ओर उठाया, जैसे वे यह देखकर कि मनुष्यों ने उस सीमेंट का मूल्य समझा ही नहीं, उसे ईश्वर की भेंट चढ़ा रहे थे. वे अपनी उंगलियों से मटके के टूटे हुए भाग की कोर पर सीमेंट फैलाने लगे. इसके बाद वे प्लायर लेकर मटके में जा बैठे और मजदूर को आज्ञा दी कि वह मटके का ऊपरी हिस्सा अच्छी तरह से बिठाकर उसे थामे रहे. लोहे की कीलियां ठोंकने से पहले डिम चाचा ने मटके के भीतर से ही चिल्लाकर कहा, ‘‘जोर से खींचकर देखो, जोर से.तुममें जितनी ताकत हो, खींचकर देख लो, मटका जुड़ गया है या नहीं. उन लोगों को क्या कहूं, जो मेरी बात पर विश्वास नहीं करते! तुम मटके को बजाकर देखो! लोहे की चादर की तरह बजता है कि नहीं! जाओ, अपने मालिक को जाकर बता आओ!’’

मजदूर ने एक गहरी सांस लेकर कहा, ‘‘तुम भी, डिम चाचा, बेकार की हुज्जत करते हो. मालिक ने लोहे की पत्ती भी लगाने के लिए कहा है, लगा दो. तुम्हारा क्या बिगड़ता है?’’

डिम चाचा एक-एक छेद में कील डालकर उसकी नोक प्लायर से चपटी करने लगे. उन्हें सारे मटके में लोहे की पत्ती जोड़ने में पूरा एक घंटा लगा. वे पसीने से तर हो गए. काम करते समय वे अपने दुर्भाग्य का रोना रोते जाते थे और मटके के बाहर खड़ा मजदूर उन्हें सांत्वना देता जाता था.

‘‘अच्छा, अब मुझे बाहर निकलने में मदद दो!’’ डिम चाचा ने काम समाप्त होने पर कहा.

मटका था तो बड़ा, परंतु उसकी गरदन बड़ी पतली थी. क्रोधावेश में होने के कारण डिम चाचा ने पहले इस बात पर

ध्यान नहीं दिया था. अब वे लाख प्रयत्न करते थे, परंतु बाहर नहीं निकल पाते थे. मजदूर उनकी सहायता करने के बजाय हंसते-हंसते दोहरा हुआ जा रहा था. बेचारे डिम चाचा मटके में कैद थे-उसी मटके में जिसकी उन्होंने मरम्मत की थी. अब उनके निकलने का एक ही उपाय रह गया है कि मटका तोड़ा जाए, और इस बार टूटने पर मटका फिर नहीं बन सकता था.

मजदूरों को हंसी से लहालोट होते देखकर लोलो तेजी से

उधर आया. डिम चाचा मटके के अंदर बिल्ली जैसी चमकती हुई आंखों से घूर रहे थे.

‘‘ईश्वर के लिए मुझे बाहर निकालो.’’ डिम चाचा चिल्ला रहे थे, ‘‘मैं बाहर निकलना चाहता हूं! मेरी सहायता करो. शीघ्र!’’

लोलो मटके के निकट जाकर चिल्लाकर डिम चाचा से बोला, ‘‘तुम्हारी सहायता करूं? तुम्हारी क्या सहायता की जा सकती है? तुम भी पूरे गोबर हो. पहले से समझ-बूझ क्यों नहीं लिया? अच्छा, अपना हाथ बाहर निकालो...ठीक! अब अपना सिर निकालो. बाहर निकल आओ. नहीं-नहीं, धीरे-धीरे. भीतर जाओ, भीतर जाओ, जरा ठहरो. इस तरह नहीं. भीतर जाओ. क्या तुम्हारी खोपड़ी में दिमाग नहीं है. तुम इसके भीतर बंद कैसे हो गए? अब मेरे मटके का क्या होगा?’’

‘‘शांति! शांति!’’ लोलो ने दर्शकों की ओर घूमकर कहा. जैसे दर्शक ही उत्तेजित हो रहे थे, वह नहीं. उसने कहा, ‘‘मेरा सिर चकरा रहा है! शांति! यह एक अनोखी बात है! मेरी ऊंटनी तैयार करो!’’ उसने मटके को अपनी उंगलियों की हड्डी से ठोंका. सच ही, वह लोहे की चादर की तरह बोलने लगा था.

‘‘खूब! यह तो एकदम नया हो गया...तुम जरा सब्र करो!’’ उसने डिम चाचा से झुककर कहा. इसके बाद अपने नौकर को फौरन जाकर ऊंटनी तैयार करने की आज्ञा दी. लोलो दोनों हाथ से अपना माथा दबाता हुआ कहने लगा, ‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं. बुड्ढ़ा पूरा शैतान है. शांति! शांति!’’ वह मटके को संभालने के लिए उसकी ओर दौड़ता हुआ चिल्लाया. डिम चाचा का क्रोध अब शिखर पर था और वे जाल में फंसे हुए किसी हिंसक पशु की भांति उसमें से निकलने का यत्न कर रहे थे.

‘‘भाई मेरे, जरा शांति रखो. यह बिलकुल अनोखी बात है. इसे मेरे वकील ही तय कर सकते हैं. मुझे अपनी समझ पर भरोसा नहीं हो रहा है. ऊंटनी तैयार हो गई? फौरन उसे यहां ले आओ. मैं वकील के पास से होकर चुटकी बजाते लौटता हूं. तब तक तुम प्रतीक्षा करो. इसमें तुम्हारा ही लाभ है. जरा शांति रखो, शांति! मैं अपने अधिकारियों को त्याग नहीं सकता. और देखो, मैं अपने कर्त्तव्य का पालन पहले किए देता हूं. ये रहे तुम्हारे ढाई रुपये! ठीक है न?’’

‘‘मुझे कुछ नहीं चाहिए.’’ डिम चाचा ने चिल्लाकर कहा, ‘‘मैं बाहर निकलना चाहता हूं.’’

‘‘सब्र करो, तुम बाहर निकाल लिए जाओगे. परंतु मैं अपना कर्त्तव्य पूरा किए देता हूं. ये लो अपने ढाई रुपये.’’

लोलो ने अपने जेब में से रुपये निकालकर मटके में फेंक दिए, फिर सहानुभूति के स्वर में पूछा, ‘‘तुमने जलपान किया है या नहीं? दो रोटियां और सब सामान ले आओ. फौरन! क्या तुम जलपान नहीं करोगे? तो जाओ, भूखों मरो! मैंने अपने कर्त्तव्य का पालन कर दिया.’’

जलपान लाने का आदेश देकर लोलो अपनी ऊंटनी पर सवार होकर नगर की ओर चल दिया. वकील के यहां उसे

अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी, परंतु सारी कहानी सुनाने के बाद जब वकील जोरों से हंसने लगा तब उसे अवश्य उसका मुंह देखते हुए थोड़ी देर तक बैठे रहना पड़ा. वकील की हंसी से चिढ़कर उसने कहा, ‘‘मुझे क्षमा कीजिएगा. मुझे इसमें ऐसी कोई बात नहीं मालूम पड़ती, जिसमें आपको हंसी आवे. आपको तो कुछ नहीं लगता; क्योंकि आपकी कोई हानि नहीं हो रही है. परंतु आप यह मानिएगा कि मटका मेरी संपत्ति है.

वकील फिर भी हंसता रहा. उसने लोलो से एक बार सारी कथा दुहराने के लिए कहा, जिससे वह फिर ठहाका मार सके.

‘‘डिम चाचा उसके अंदर कैद हैं? अपने को उसके अंदर बंद कर लिया? और लोलो की क्या इच्छा है? वह उस-उस के अंदर ही रहें-हा! हा! हा!- वह उसके अंदर ही रहें, जिससे तुम्हारा मटका न टूटे?’’

‘‘मैं अपना मटका क्यों टूटने दूं?’’ लोलो ने अपनी मुट्ठियां बांधकर, गर्म होकर कहा, ‘‘मैं इतने रुपयों की हानि क्यों सहूं, जिससे सब लोग मेरी हंसी उड़ावें?’’

‘‘लेकिन यह अपराध होगा?’’ वकील ने अंत में कहा, ‘‘तुम उसे गैरकानूनी तौर से कैद में रखोगे.’’

‘‘अपराध क्यों? उसे किसने कैद किया? उसने स्वयं अपने को कैद किया है! इसमें मेरा क्या दोष है?’’

वकील ने लोलो को समझाया कि इस मामले में कानून दो बातें कहता है. पहले तो आप अगर लोहार को गैरकानूनी तौर से कैद करने के अपराध से मुक्त होना चाहते हैं तो उसे फौरन रिहा कर दें. इसके बाद उस लोहार ने अपनी मूर्खता के कारण आपकी हानि की है उसे पूरा करने के लिए वह जिम्मेदार होगा.’’

‘‘ओह!’’ लोलो ने संतोष की सांस लेकर कहा, ‘‘तो उस लोहार को मेरे मटके के दाम देने होंगे?’’

‘‘नहीं, आप समझने में गलती कर रहे हैं.’’ वकील ने कहा, ‘‘वह नए मटके के दाम देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है?’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि वह टूटा था बेकाम था.’’

‘‘टूटा था! नहीं वकील साहब. वह टूटा नहीं था. वह पहले से भी अच्छा हो गया था. लोहार स्वयं यही कहता है. अगर अब वह तोड़ा जाएगा तो नहीं बन सकेगा. मेरा मटका बरबाद जाएगा, वकील साहब!’’

वकील ने आश्वासन दिया कि इस बात का ध्यान रखा जाएगा और लोहार को जिस अवस्था में मटका था, उसका मूल्य देना पड़ेगा.

वकील ने कहा, ‘‘अच्छा यह होगा, आप उससे स्वयं पूछ लीजिए कि वह मटके की क्या कीमत लगाता है.’’

लोलो हर्ष से उछल पड़ा. वह शीघ्रता से घर लौटा.

शाम को घर पहुंचने पर लोलो ने देखा कि खेत पर काम करने वाले सभी मजदूर मटके के चारों ओर इकट्ठें हैं! कुत्ते भी उस समारोह में सम्मिलित होकर हर्ष से भूंक रहे थे. डिम चाचा का क्रोध केवल उतर ही नहीं गया था, अब अपने इस विचित्र अनुभव पर वे स्वयं हंस रहे थे, जिस प्रकार कोई दुर्भाग्यग्रसित मनुष्य उदास भाव से हंसने लगता है.

लोलो ने मजदूरों को एक ओर हटाकर मटके के भीतर झांका.

‘‘क्यों! प्रसन्न हो न?’’

‘‘प्रसन्न हूं!’’ उत्तर मिला, ‘‘सिर पर मुक्त आकाश है. मेरे घर से यह जगह अच्छी ही है.’’

‘‘यह सुनकर मुझे प्रसन्नता हुई. मैं तुमसे एक बात जानना चाहता हूं. यह मटका मैंने दो रुपये में खरीदा था. तुम्हारा क्या ख्याल है, अब यह कितने का होगा?’’

‘‘मुझे लेकर?’’ डिम चाचा ने पूछा.

मजदूरों ने ठहाका मारा.

‘‘शांति!’’ लोलो ने गरजकर कहा, ‘‘या तो तुम्हारी सीमेंट अच्छी है या फिर एकदम कूड़ा. और बीच की कोई संभावना नहीं. अगर कूड़ा है तो तुम ठग हो; अगर अच्छी है तो इस अवस्था में भी मटके का मूल्य है. इसीलिए मैं पूछता हूं, तुम्हारी समझ में इस मटके का अब क्या मूल्य है?’’

डिम चाचा ने थोड़ी देर विचार करने के बाद कहा, ‘‘मेरी समझ में यह आता है कि अगर आपने मुझे केवल सीमेंट से इसे जोड़ने दिया होता जैसा मैं चाहता था, तो पहले तो मैं इस मटके के अंदर कैद नहीं होता, और फिर मटके का मूल्य भी नए के समान ही होता. परंतु लोहे की पत्ती के जड़ने से यह मटका कुरूप हो गया है. अब इसका पहले जितना मूल्य नहीं रह गया. अब अधिक से अधिक इसका मूल्य एक-तिहाई रह गया है.’’

‘‘एक तिहाई, अर्थात साढ़े दस आने!’’

‘‘हां, शायद इससे भी कम हो.’’

‘‘खैर!’’ लोलो ने कहा, ‘‘वादा करो कि तुम मुझे इसके साढ़े दस आने दोगे.’’

‘‘क्यों?’’ डिम चाचा ने पूछा, जैसे उनकी समझ में बात नहीं आई.

‘‘तुम्हें निकालने के लिए यह मटका तोड़ना पड़ेगा.’’ लोलो ने उत्तर दिया, ‘‘मेरे वकील ने मुझे बताया है कि तुम इस मटके की कीमत देने के लिए बाध्य हो. तुम्हीं ने इसकी कीमत साढ़े दस आने बताई है.’’

‘‘मैं? दाम दूंगा?’’ डिम चाचा हंस पड़े, ‘‘इससे अच्छा है, मैं इसी के अंदर सड़ जाऊं.’’

कुछ कठिनाई के साथ डिम चाचा ने अपनी जेब में से एक टेढ़ा कुरूप पाइप निकालकर जलाया और वे उसका धुआं मटके के बाहर फेंकने लगे.

लोलो खड़ा रहा. उसके माथे पर बल पड़ रहे थे. डिम चाचा मटके के भीतर ही रहना पसंद करेंगे, इस संभावना पर न तो उसने विचार किया था, न उसके वकील ने. अब क्या किया जाए? वह अपनी ऊंटनी तैयार करने का आदेश देने जा रहा था, परंतु उसने देखा कि रात हो गई है.

लोलो ने कहा, ‘‘अच्छा, तुम मटके के अंदर ही अपना निवास-स्थान बनाना चाहते हो, सारे आदमी गवाह हैं. तुम मटके की कीमत चुकाने के डर से मटके के भीतर ही रहना चाहते हो. मैं मटका तोड़ने के लिए तैयार हूं. खैर, जब तुमने मटके के भीतर रहने की जिद पकड़ ली है तब तुम पर मुकदमा चलाऊंगा. तुमने गैरकानूनी तौर से मेरी संपत्ति पर अधिकार कर लिया है और अब उसे तुम मुझे अपने व्यवहार में लाने से रोकते हो.’’

डिम चाचा ने धुएं का दूसरा बादल उगलते हुए शांतिपूर्वक कहा, ‘‘नहीं, मालिक! मैं आपको रोकता नहीं हूं. आप क्या समझते हैं, मैं अपनी इच्छा से इसके अंदर हूं? आप मुझे बाहर निकलने दीजिए, मैं खुशी से निकल आऊंगा. परंतु आप जो मुझसे इसकी कीमत मांगते हैं, मैं स्वप्न में भी नहीं दे सकता.’’

लोलो को इतना क्रोध चढ़ा कि वह मटके पर लात मारने जा रहा था, परंतु उसने अपने को वश में कर लिया. मटके को दोनो हाथों से झकझोरते हुए वह गुर्राया.

‘‘आप खुद देख लीजिए, मेरी सीमेंट कितनी अच्छी है.’’ मटके के अंदर से डिम चाचा ने कहा.

‘‘बदमाश!’’ लोलो ने गरजकर कहा, ‘‘गलती किसकी है-तेरी या मेरी? तू समझता है, मैं इतने पैसों की हानि सहूं? जा, इसके अंदर भूखों मर. मैं भी देखूंगा कि किसकी विजय होती है.’’

लोलो क्रोध से तमतमाता हुआ घर के भीतर चला गया. वह यह भी भूल गया कि उसने डिम चाचा को मजदूरी के ढाई रुपये दे दिए हैं. डिम चाचा ने इन रुपयों के बल पर उस रात्रि को आनंद मनाने का निश्चय किया. खेत पर काम करने वाले सब मजदूर भी इस विचित्र कांड को देखने में इतने व्यस्त हो गए थे कि शाम को अपने-अपने घर जाना भूल गए थे और अब उन्होंने रात वहीं ओसारे में काटने का निश्चय कर लिया था. एक मजदूर पास की सराय में जाकर ताड़ी खरीद लाया. चांदनी रात थी. चारों ओर दिन के समान प्रकाश हो रहा था. आनंद मनाने के लिए बड़ी सुंदर रात थी.

कुछ रात बीते एक कोलाहल सुनकर लोलो की नींद खुल गई. उसने छज्जे पर आकर देखा कि ओसारे में जैसे भूतों का दल इकट्ठा है. उसके मजदूर ताड़ी के नशे में चूर एक-दूसरे के हाथ बांधे हुए मटके के चारों ओर नाच रहे थे और डिम चाचा मटके के भीतर अपनी भारी आवाज में गा रहे थे.

इस बार लोलो अपने को वश में नहीं रख सका. वह उन्मत्त बैल की भांति दौड़ पड़ा और जब तक मजदूर उसे रोकें कि उसने मटके पर कसकर एक लात जमा दी. मटका ढलुई जमीन पर लुढ़कने लगा. नशे में मस्त मजदूरों की मंडली मटके को लुढ़कते देखकर पेट पकड़कर हंसने लगी. मटका जैतून के एक पेड़ से टकराकर टूट गया और डिम चाचा धूल झाड़कर, विजयी की भांति हंसते हुए, उसमें से निकलकर खड़े हो गए.

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: प्राची - नवंबर 2015 - इतालवी कहानी : मटका
प्राची - नवंबर 2015 - इतालवी कहानी : मटका
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