प्राची - दिसंबर 2015 - जिन्दगी और टेबल टॉक / कहानी / शरजील

SHARE:

शरजील (जन्मः 13 दिसंबर 1938, नवाबशाह जिला) हैदराबाद में आर्ट टीचर के तौर पर स्थापित रहे. अब वे सेवानिवृत हुए हैं. 1970 में उन्होंने लिखना...

image

शरजील

(जन्मः 13 दिसंबर 1938, नवाबशाह जिला)

हैदराबाद में आर्ट टीचर के तौर पर स्थापित रहे. अब वे सेवानिवृत हुए हैं. 1970 में उन्होंने लिखना शुरू किया. उनका कहानी संग्रह, पल पत्ते झड़ने के बाद!’ और नज्मों का संग्रह ‘छोलियूं’ प्रकाशित हैं.

उनकी एक और पहचान चित्रकार के रूप में भी है. उन्होंने चित्रकार के रूप में अनेक पुस्तकों के कवर पृष्ठ और स्केच भी बनाए हैं. इस समय वे हैदराबाद जिला काउंसिल के फ्लैट नम्बर बी-2-1 में रह रहे हैं.

जिन्दगी और टेबल टॉक

शरजील

गातार तीन सालों से तुमने कुछ भी नहीं लिखा है. इतनी चुप्पी क्यों साध ली है? क्या तुम्हारा विश्वास अब जात से भी निकल चुका है?

उसने कुर्सी पर बैठे-बैठे ही करवट ली और फिर दोनों हाथों की उंगलियां बालों में उलझाते हुए ऊपर की ओर अपनी आंखें उस पर टिकाईं फिर नीचे करते हुए कहा-‘‘मैंने लिखना नहीं छोड़ा है. वह छोड़ भी कैसे सकता हूं?’’

‘‘मैंने तो बीते तीन सालों में तुम्हारी एक भी रचना नहीं पढ़ी. बहुत इन्तजार किया तुम्हारी लिखी हुई कृतियों को पढ़ने के लिये-पता नहीं तुमने कौन सी, और किसकी पत्रिकाओं के लिये लिखा है.’’

‘‘मैंने सिर्फ डायरियों में लिखा है और वे मरने के बाद छपती हैं.’’

‘‘बीते तीन सालों में दुर्भाग्य की कोई भी कयामत तुमसे कुछ भी नहीं लिखवा पाई, बड़ी हैरत की बात है.’’

‘‘कयामतें अब हमारी जात पर गुजरते अपना प्रभाव खो बैठी हैं.’’

‘‘तो फिर भीतर की दुनिया से निकलकर बाहर की दुनिया में क्यों नहीं आते?’’

‘‘बाहर की दुनिया!’’

‘‘हां, बाहर की दुनिया.’’

उसने सिगरेट सुलगाया. क्षण के लिये सिगरेट को दो उंगलियों में फिराता रहा. आंखें टेबल के शीशे के नीचे पड़ी ऑफिस के स्टॉफ के साथ खिंची तस्वीर पर टिकी हुई थी. कुछ सोच रहा था या कोई जवाब नहीं जोड़ पा रहा था. फिर रिक्त आंखें उठाकर उसकी ओर निहारा था, जैसे कोई गुनाह करते हुए पकड़ा गया हो, या भागने के लिये रास्ता ढूंढ़ रहा हो. फिर गला साफ करते हुए कहा-‘‘बाहर की दुनिया बहुत कठिन है, बहुत छिट-पुट, विरोधाभास की शिकार बनी हुई.उसे समेटने के लिये आज से सात साल पहले अपनी कलम को अरब के पेट्रोल की तरह इस्तेमाल किया था और सीधा जेल चला गया था.’’

‘‘यह खबर मैंने अखबारों में पढ़ी थी. हां, फिर क्या हुआ?’’

‘‘कुछ भी नहीं, स्टूडैंट्स ने आपस में चंदा इकट्ठा करके एक वकील किया था और जमानत भी उनमें से एक के पिता ने करवाई थी. आठ महीने सस्पेंड रहा. गुनाह साबित न हो पाने की सूरत में केस खारिज किया गया.’’

‘‘और फिर तुमने बाहर की दुनिया के लिये लिखना छोड़ दिया.’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है, हां इस तरह की जिरह से कतराता हूं.’’

‘‘तुम्हें इस तरह की जहनी और जिस्मानी तकलीफ लेने के लिये पछतावे का अहसास तो नहीं हुआ है.’’

‘‘नहीं’’

‘‘नौकरी कैसी चल रही है?’’

‘‘बस ठीक है’’

‘‘सुना था तुम्हें प्रमोशन मिलना था?’’

‘‘हां, पर फिर स्कॉलरशिप के लिये एन.ओ.सी. भी नहीं मिला और प्रमोशन भी रोका गया!’’

‘‘तुम्हें दुख तो हुआ होगा.’’

‘‘दुख हुआ था, दुख है. वैसे भी आदमी जो कुछ सही समझ कर अपने जहन के साथ करता है, फिर आगे चलकर उन्हीं बातों और कामों को खुद ही रोकता है. पर मैंने कम से कम अपनी ऐसी किसी बात और अमल को आज तक खारिज नहीं किया. फिर भी अगर उस अमल को कायम नहीं रख पाया हूं, तो ऐसे हालातों से समझौता भी नहीं किया है.’’

‘‘अभी तक अकेले हो?’’

‘‘हां’’

‘‘उसका क्या हुआ?’’

‘‘किसका...?’’

‘‘जिस पर नॉवल लिखा था?!’’

‘‘जहनी तौर पर नाबालिग और सामान्य-सी साधारण सोच रखने वालों में से थी.’’

‘‘तो फिर नॉवल कैसे लिखा?’’

‘‘उसकी आदर्शवादी आंखों में हकीकतों के दुःख और सुख भरने के लिये!’’

‘‘उसने ऐसी बातों को महसूस किया था?’’

‘‘तभी तो फिर नहीं मिली है’’

‘‘कितना समय हुआ है?’’

‘‘छः महीने के करीब.’’

‘‘समझते हो कि वह आएगी?’’

‘‘हकीकत कड़वी होती है. इसलिये आदर्शवादी आदमी भरोसे के काबिल नहीं होते.’’

‘‘तुम भी तो अपनी उम्र में अदर्शवादी रहे हो समाज से लेकर जीवन साथी तक.’’

‘‘मैं इन्कार भी तो नहीं करता!’’

‘‘तो फिर यह भरोसा न लगने वाली तोहमत तुम पर भी लग सकती है!’’

‘‘ऐसी तोहमतों की वजह से तो कुछ हासिल नहीं कर पाया हूं.’’

‘‘तो फिर उस पर, क्या नाम बताया था?’’

‘‘पिरह!’’

‘‘हां, फिर पिरह पर ऐसा दोष थोप देने का क्या सबब है?’’

‘‘दोष थोपने की बात नहीं है. फर्क सिर्फ सोचों के अलग-अलग होने की वजह से ख्वाहिशों का था. मिलकर रहना बेमतलब, एक दूसरे की हालातों और आदतों को बर्दाश्त करते हुए आहिस्ते-आहिस्ते एक दूसरे के परित्याग के जज्बे को अच्छे से और अच्छा बनाना होता है. कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जो सामाजिक हैसियत और राष्ट्रीय चेतना के सिवा अधूरी और जटिल साबित होती हैं जैसे पिरह ने कौम की बुनियादी चेतना तो ध्यान में रखी, पर जीवन साथी के बारे में वर्गीकरण की शिकार हो गई. उसे राष्ट्रीयता और आजाद खयाली के जज्बे ने कितने ही अजीम अदीबों और शाइरों से मिला. उनमें से एक मैं हूं.’’

‘‘वह तुम्हें कब मिली थी?’’

‘‘मैं समझता हूं लगभग तीन साल पहले.’’

‘‘तुम्हें पहली मुलाकात में ही प्रभवित किया था उसने?’’

‘‘किसी हद तक!’’

‘‘फिर उस सिलसिले को तुमने बढ़ाया या उसने?’’

‘‘दोनों ने मिलकर. उसने पहला खत पहली मुलाकात के बाद तुरन्त ही लिखा और फिर बिना विलम्ब किये इक दूजे को लिखते रहे, जिस में उसने तीन हैसियतों से सीढ़ी-दर-सीढ़ी कदम बढ़ाए-पहला रजामंदी, फिर दोस्ती और फिर प्यार!’’

‘‘तुमने उस नॉवल को कब लिखा?’’

‘‘तीसरे साल के मध्य में, जो उसे सालगिरह के मौके पर दिया.’’

‘‘तुमने उसे ‘प्रपोज’ करके गलती तो नहीं की?’’

‘‘नहीं!’’

‘‘फिर इन्कार और छोड़ जाने का सबब?’’

‘‘उसने इन्कार नहीं किया था. बस! यही कहा कि मेरा एक दोस्त मुझसे इतनी मुहब्बत करता है कि वह कहता है कि अगर तुम किसी और से शादी करोगी तो मैं तुम दोनों को मारकर, खुद को भी खत्म कर दूंगा.’’

‘‘और तुमने उसके उत्तर में कुछ भी न कहा होगा.’’

‘‘नहीं, बाकी उससे पहले दो तीन मुलाकातों में इतना जरूर कहा था कि तुम इतनी तो सुन्दर और लुभावनी हो कि तुम्हें भगा ले जाने को जी चाहता है.’’

‘‘ऐसी बात पर उसकी कोई खास प्रतिक्रिया?’’

‘‘वह सिर्फ आंखें मिलाकर मुस्करा देती थी.’’

‘‘तुम जैसे मर्दो को औरत के भीतर की मनोस्थिति की कभी भी जानकारी नहीं हो सकती. सिर्फ खूबसूरत लफ्ज जोड़कर गुफ्तगू कर सकते हो.’’

वह फिर दूसरी बार अटक गया था, जैसे चलते चलते उसके सामने धरती दो भागों में बंट गई हो और वह दूसरी तरफ पहुंचने के लिये परेशान हो गया हो. उसकी उंगलियों में आधा बचा हुआ सिगरेट घूम रहा था, जो उसने मरोड़ कर ऐश-ट्रे में डाला और पैकेट से दूसरा सिगरेट निकाल कर सुलगाया और फिर कॉल-बेल पर उंगली रख दी. उसी वक्त ऑफिस का दरवाजा खुला.

‘‘जी हुजूर’’

‘‘तुम क्या पियोगी?’’

‘‘जो तुम पिओगे.’’

‘‘बाबा, चाय तैयार कर लो.’’

कुछ समय वह टेबल पर पड़े कागजों को पलटता रहा. ‘‘सामी, वैसे तुम बहुत अच्छे आदमी हो, और प्यारे भी. मुझे तुम्हारी यह मासूमियत और ‘अनाड़ीपन’ वाली अदा अच्छी भी लगती है. पर तुम्हारी नीरस तन्हाई को देखकर दिल भी दुखता है. मैं समझती हूं कि तुमने अनजाने में ही सही, पर पिरह को जरूर कोई दुख पहुंचाया होगा. नहीं तो तीन सालों वाला ऐसा रिश्ता किसी भी सूरत में बेकार या जड़हीन नहीं हो सकता.’’

‘‘शायद ऐसा ही है!’’

‘‘शायद नहीं, ईमान से कहो. कभी तो हार भी मान लिया करो. मैं भी तुम्हें अपनी जात के हवाले से कुछ न कुछ समझ सकी हूं. ऐसा क्यों करते हो? तन्हाइयों से अगर तुम इतना ही प्यार करते हो तो फिर दरवाजों को बंद क्यों नहीं कर लेते? ऐसे हर आने जाने वाले को दिल में जगह देकर फिर सुन्दर अल्फाज से क्यों अलविदा कहते हो? कम से कम जो तुम्हें चाहते हैं, उनके साथ तो ऐसे मत किया करो. उन्हें तो अपने भीतर के किसी न किसी कोने में स्थान दे दिया करो!’’

उसे राही के ऐसे जुमलों से, एक ही वक्त में लगातार तमाचों की बरसात के साथ-साथ अपनेपन और हमदर्दी वाला भरपूर स्नेह भी मिला. उसकी झुकी हुई गर्दन फिर एक बार ऊपर उठी. राही की आंखों में आंखें टिकानी चाहीं. उस वक्त राही की गर्दन झुकी हुई थी, वजह दुख! कुछ ही पलों के बाद जब राही ने गर्दन ऊपर उठाई तो उसे उसकी आंखें नम सी लगीं.

‘‘राही, इन्सानी जिंदगी के लिये क्या-क्या आवश्यक है. कभी न खत्म होने वाली एक लिस्ट है ख्वाहिशों की, जो धरती से लेकर आसमान तक फैली हुई है. उस पर अगर मैं ‘लॉजिक’ से राय दूंगा तो तुम्हें दुख होगा. प्लीज राही. इन आंसुओं को यूं व्यर्थ न करो, तुम्हारे पास अभी सबकुछ है. हर वह चीज जिसकी हर लड़की ख्वाबों में ख्वाहिश करती है. फिर पति भले बड़ी उम्र के हों, तो क्या हुआ? अगर औरत यह सब कुछ अपने आने वाले कल को सुरक्षित करने के लिये करती है, तो फिर प्यार से खाली दिल को भी अगर चाहे तो सोने के सिक्कों से भर दं. फिर क्यों उनकी आंखें ऐसे इन्सानों के सामने भर आती हैं जिनको वो छोड़कर चली जाती हैं?’’

उसने जैसे हिम्मत करके धरती के दोनों भागों को मिला दिया, पर उसे ऐसी बात राही के सामने करते हुए दुख के साथ खुदगर्जी भी महसूस हुई. उसी पल खुद को संभालते हुए कहा-‘‘राही, तुम्हें, पिरह की तस्वीरें पसंद थीं न? सच, वह फोटोग्राफ्स से भी ज्यादा आकर्षक और प्यारी है. मैं समझता हूं कि वह जरूर आएगी. वैसे मैंने उसे कभी सुन्दर शब्दों में ‘गुड बाई’ नहीं कहा है. बस उसे एक खत लिखा था कि मैं भूतकाल को भूल जाने के काबिल समझता हूं और मुस्तकबिल जो देखा नहीं जा सकता, उसकी ओर उम्मीद भरी नजरों से नहीं देखता. बाकी बचा वर्तमान, इसलिए जब चौबीस घंटों में अगर चार-पांच ठहाके लगाने को मिल जाते हैं तो जिन्दगी को जीने का सबब मिल जाता है. मैं समझ नहीं रहा, पर यकीन से कह सकता हूं कि उसे ऐसे आदमी की तलाश न थी, जो वर्तमान से तो प्यार करता है, मगर आने वाले कल से नहीं, और शायद उसने खुद को घड़ी पल के लिये माजी समझा हो, जो मुझ जैसे आदमी के लिये भूल जाने के योग्य है...’’

इतने में दरवाजा खुला. दरबान बाबा चाय लेकर आया. सामी चाय बना रहा था और राही उसके खामोश और कुछ उदास चेहरे को देख रही थी. राही के सामने चाय रखते हुए उसने फिर से बात का सिलसिला जारी रखा.

तुम्हें पता है कि जहां हम रहते हैं, वहां के साठ प्रतिशत लोगों का ख्याल है कि यहां दौलत कमाने के लिये रिश्वत, घोटाले, तस्करी और ऐसे कई तरह के काम किये जाते हैं. आठ प्रतिशत जनता का ख्याल है कि किस्मत भी आदमी को अमीर बनाती है. जब कि छः प्रतिशत का कहना है कि ऊंची तालीम से भी आदमी दौलत और इज्जत कमा सकते हैं. तुम्हें पता है कि मैं मुहब्बत से लेकर समाजों और इन्कलाबों तक आदर्शवादी रहा हूं. बाकी मेरे वर्तमान के लिये चाहत वाली बात पिरह ने शायद गलत समझी है. मैं इस बात से बिलकुल सहमत नहीं हूं कि कोई इन्सान दुनिया को फानी समझकर जिन्दगी की देन को जीने की तमन्ना से किनारा करे, सब कुछ त्याग दे. और ऐसा बिलकुल भी नहीं है. यहां बड़े शहरों में आधे से ज्यादा आबादी किराये के मकानों में रही तो क्या हो पाएगा? यहां कितने आदमियों और बच्चों के भविष्य सकुशल और सलामत हैं, कौन उनकी गारन्टी देगा?’’

उसी वक्त ऑफिस का दरवाजा खुला. दरबान ने सामी से कहा-‘‘हुजूर, बाहर मैडम की गाड़ी आई है.’’

ऐसा कहकर वह दरवाजे के बाहर चला गया. राही ने सर ऊपर करके सामी की ओर देखा. उसे ऐसे लगा जैसे सामी किसी लम्बी दौड़ दौड़ते हुए आधे में ही थककर हार मान बैठा हो.

‘‘अच्छा, मैं चलती हूं!’’

ऐसा कहकर उसने टेबल से पर्स उठाया और जाने के लिये खड़ी हुई. सामी चाहकर भी राही को बाहर तक छोड़ने नहीं गया. वह वहीं टेबल और कुर्सी के बीच में अटका सा खड़ा रहा. उसके कानों में काफी देर तक ‘खुदा हाफिज’ के मंद होते हुए शब्द, उदास धुन की तरह बजते रहे.

000000000000

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्राची - दिसंबर 2015 - जिन्दगी और टेबल टॉक / कहानी / शरजील
प्राची - दिसंबर 2015 - जिन्दगी और टेबल टॉक / कहानी / शरजील
https://lh3.googleusercontent.com/-kTokcPkUbF4/VptVZ7fanFI/AAAAAAAAqa4/XAj8WG5T6RA/image_thumb.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-kTokcPkUbF4/VptVZ7fanFI/AAAAAAAAqa4/XAj8WG5T6RA/s72-c/image_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/01/2015_66.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/01/2015_66.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content