शैलेन्द्र सरस्वती की कहानी - लालबाई का प्रतिशोध

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बात तब की है जब सिंध का बादशाह अहमदशाह था। अय्याश अहमदशाह के कई पत्नियां होने के होने के बावजूद भी यह इच्छा बनी रहती कि उसके साम्राज्य की को...

बात तब की है जब सिंध का बादशाह अहमदशाह था। अय्याश अहमदशाह के कई पत्नियां होने के होने के बावजूद भी यह इच्छा बनी रहती कि उसके साम्राज्य की कोई भी सुंदर युवती का विवाह उससे ही हो। बादशाह के चमचे भी उसकी इस कमजोरी से खूब परिचित थे,अतः जैसे ही उनकी नजर में कोई सुंदर युवती दिखाई पङती,वे तुरंत बादशाह को सूचित करते। बदले में बादशाह उन लोगो को खुश हो कर अनेक उपहार देता। ऐसे में एक दिन बादशाह के कानों को खबर लगी कि आहोर के राजा पर्वत सिंह की बेटी लालबाई का सौन्दर्य ऐसा है कि सौ चांद भी शरमा जाये और सौ सूर्यो का प्रकाश भी उसके सामने फीका पङ जाये। सुनाने वाले ने लालबाई का ऐसा वर्णन किया कि बादशाह को अपना हरम बेनूर नजर आने लगा। तुरंत पर्वत सिंह के दरबार में अपना एक दूत भेजा।


-''बादशाह का हुक्म है कि लालबाई उनके सुपुर्द की जाए ताकि वे उसे अपनी बेगम बनाकर अपने हरम की शान बढा सके।'' बादशाह के दूत ने जैसे ही भरे दरबार में यह संदेश पढकर सुनाया,राजपूत राजा व उसके सरदारों के चेहरों पर खून उतर आया। फिर भी राजधर्म का पालन करते हुए पर्वत सिंह ने दूत को ससम्मान अहमदशाह के पास इस संदेश के साथ भेज दिया कि राजपूत राजा अपनी संस्कृति तथा खानदानी परम्पराओं के अनुसार किसी विजातिय के साथ अपनी बेटी का विवाह नहीं करते। इसके साथ ही पर्वत सिंह ने यह भी संदेश भिजवाया कि वह बादशाह का गुलाम नहीं कि जिसकी आज्ञा पर वह अपनी गर्दन उसकी तलवार के नीचे रख दे।


जब अहमदशाह ने यह संदेश सुना तो वह गुस्से के मारे पागल हो गया। भला एक चींटी की इतनी हिम्मत कि हाथी के सामने सर उठाये। अगले ही दिन अहमदशाह ने अपनी सेना के साथ आहोर की तरफ कूच किया। उधर पर्वत सिंह भी समझ गया था कि गुस्साया बादशाह उस के छोटे से राज्य पर हमला जरूर करेगा सो उसने अपनी सेना को पहले से लङने के लिए तैयार कर लिया था।


अहमदशाह ने किले को घेर लिया। बहादुर राजपूत सैनिकों ने किले की बुर्ज से दुश्मन सेना से युद्ध किया। अहमदशाह चंद राजपूत सैनिकों की वीरता से हैरान था जो उसके हजारों जांबाज सैनिकों पे भारी पङ रहे थे। अहमदशाह की लगातार हार हो रही थी,फिर भी उसने किले के बाहर पङाव डाले रखा। युद्ध करते-करते काफी दिन बीत गये थे। किले के अंदर रसद खत्म हो चुकी थी। अंत में पर्वत सिंह ने अपने सरदारों के साथ मिल कर निश्चय किया कि भूखों मरने की बजाय दुश्मन सेना से युद्ध करते हुए शहीद होना ही श्रेयस्कर होगा। किले के भीतर की सारी स्त्रियां जलती चिता में हंसते-हंसते कूद पङी। पुरूषों ने केसरिया कपङे पहने। गले में तुलसी की माला धारण की। माथे पर तिलक लगाया और हर-हर महादेव कहते हुए रणक्षेत्र में कूद पङे। जम कर युद्ध हुआ। राजपूतों ने मरते दम तक दुश्मनों के छक्के छुङाये। संख्या में कम होने के कारण राजपूतों की हार निश्चित ही थी और अंत में हुआ भी यही। अपनी जीत की खुशी मनाता जब अहमदशाह किले में घुसा तो उसके हाथ सिर्फ चिता का धुआं लगा। किले में एक भी जीवित मनुष्य नहीं बचा था। अहमदशाह हाथ मलता हुआ सिंध लौट गया।


लेकिन कुछ ही दिनों बाद अहमदशाह को खबर मिली कि पर्वत सिंह ने अपनी बेटी लालबाई को युद्ध से पहले ही अपने एक विश्वसनीय सरदार के साथ कहीं गुप्त रूप से भेज दिया था। यह सुन अहमदशाह की सोयी हुई आग फिर से भङक उठी। थोङे ही दिनों में उसने अपने गुप्तचरों से उस सरदार का पता लगा लिया और उसे जान से मारने की धमकी देते हुए लालबाई को उसे सौंपने को कहा। यह सुन सरदार ने तो दूत पर बिगङते हुए कहा कि लालबाई अब उसकी अमानत है। अगर बादशाह को लालबाई हासिल करनी है तो पहले उससे मुकाबला करना होगा,लेकिन तभी सरदार को हैरत में डालते हुए लालबाई ने कहा-''काका सा! युद्ध की कोई नौबत न आयेगी। मैं पहले ही अपने भाई-पिता तथा पूरे परिवार को खो चुकी हूं। अब आप देवता सरीखे आदमी की बलि नहीं होने दूंगी। मैं अहमदशाह से विवाह करने को तैयार हूं।''


जब अहमदशाह को यह खबर मिली कि लालबाई खुद ही बिना किसी दबाव के उससे विवाह करने को तैयार है तो वह फूला न समाया। उसके महल में विवाह की तैयारियां होने लगी। लालबाई की इच्छा के अनुसार चांद झील के पास महल की छत्त पर निकाह का शामियाना लगाया गया। उस समय की परम्परा के अनुसार लालबाई को अहमदशाह की तरफ से कपङे भेजे गये तो लालबाई की तरफ से अहमदशाह को कपङे भेजे गये। रिवाज के अनुसार दुल्हा-दुल्हन को इन्हीं कपङों को पहन कर विवाह करना था।


आखिर में विवाह की घङी आयी। अहमदशाह लालबाई के साथ महल के कंगूरे पर जनता को खुश करने के लिए आया। लेकिन जैसे ही अहमदशाह कंगूरे तक पहुंचा कि उसके कपङों से आग की तेज-तेज लपटे निकलने लगी। घबराया अभिमानी अहमदशाह अपने आप को बचाने सीढियों की तरफ भागा। इस तरह हवा लगने से आग और भङक उठी। देखते ही देखते दुष्ट बादशाह आग में जल कर तङप-तङप कर मर गया। जनता यह देख का हैरान रह गयी। लालबाई मन ही मन मुस्कुरायी। आखिर में उसकी योजना कामयाब रही। उसके द्वारा भेजे गये विष-बुझे कपङों से जलकर दुष्ट बादशाह का खात्मा हो ही गया। अब सबकी समझ में आ गया कि लालबाई ने सिर्फ अहमदशाह को मारने के लिए ही विवाह का खेल खेला था।


इससे पहले कि अहमदशाह के सैनिक लालबाई को पकङ पाते,लालबार्इ्र ने अपने मृत प्रियजनों को याद करते हुए महल की छत्त से चांद झील में छलांग लगा दी। वीरागंना लालबाई का शव भी दुश्मनों के हाथ नहीं लग पाया। वीर लोगों की लाज तो प्रकृति भी लूटने नहीं देती।

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शैलेन्द्र सरस्वती
नारायणी निवास
मोबाइल टॉवर के सामने
धरनीधर कॉलोनी
उस्तों की बारी के बाहर
बीकानेर-334005(राज)
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रचनाकार: शैलेन्द्र सरस्वती की कहानी - लालबाई का प्रतिशोध
शैलेन्द्र सरस्वती की कहानी - लालबाई का प्रतिशोध
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