प्राची - फरवरी 2016 - हास्य-व्यंग्य / सर, हमें हंसाओ न / रामदेव धुरंधर

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  हास्य-व्यंग्य सर , हमें हंसाओ न रामदेव धुरंधर 11 जून 1946 को मारिशस में जन्मे रामदेव धुरंधर, हिंदी भाषा को अपनी रचनाओं से समृद्ध कर...

 

हास्य-व्यंग्य

सर, हमें हंसाओ न

रामदेव धुरंधर

11 जून 1946 को मारिशस में जन्मे रामदेव धुरंधर, हिंदी भाषा को अपनी रचनाओं से समृद्ध करने वाले मारिशस के महत्त्वपूर्ण साहित्यकार हैं. इन्होंने विभिन्न विधाओं में सैकड़ों रचनाएं लिखी हैं. तीन भागों में प्रकाशित इनका उपन्यास ‘पथरीला सोना’ विशेष चर्चित रहा है. यह मारिशस के प्रखर व्यंग्य लेखक हैं. इनके अनेक व्यंग्य संकलन प्रकाशित हो चुके हैं. ‘चेहरों के झमेले’, ‘पापी स्वर्ग’, ‘बंदे आगे भी देख’, ‘पूछो इस माटी से’ आदि इनके चर्चित व्यंग्य संकलन हैं.

ये विभिन्न साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से संबद्ध हैं.

ह आदर्श वाक्य ठीक भी हो सकता है कि आदमी को ठोंक-ठांककर ठीक-ठीक बनाने में इसी धरती के महापुरुषों का बड़ा योगदान रहता आया है, परंतु इस आदर्श वाक्य का एक दूसरा पहलू भी है. यह पहलू शोचनीय है और इस प्रश्न पर आकर अटक जाता है कि क्या इसी को ‘ठीक-ठीक’ करना कहते हैं? इस संदर्भ का एक नमूना प्रस्तुत है.

भाई चिमनलाला ने एम.ए. की डिग्री कमा रखी है. भगवान करे, उसकी डिग्री सलामत रहे. इसी डिग्री के बूते वह टीचर है. उसके हिसाब से तनख्वाह अच्छी नहीं है और भी बहुत कुछ अच्छा नहीं है. मसलन, चांद का मुंह टेढ़ा है, सूरज फीका है, धरती दोगली है, राजनीति खोखली है आदि-आदि. विद्यार्थियों के सामने खड़ा होकर पढ़ाना उसका काम है, इसलिए यह दुनिया उसके लिए और भी अच्छी नहीं है, परंतु क्या करे, तनख्वाह के लिए दुनिया का सामना तो करना ही पड़ता है. उसका दावा है कि विद्यार्थियों को पढ़ाना सहज नहीं है. गंभीर शिक्षण पद्धति से विद्यार्थियों के साथ जुड़ना चाहते तो वे कुछ ग्रहण नहीं कर पाएंगे और टीचर के नाते अपनी हालत से भी बदतर होती जाएगी. चिमनलाला इतना मूर्ख नहीं है कि विद्यार्थियों के ज्ञान के लिए खुद के ज्ञान को गंवाकर पागलों की लिस्ट में अपना नाम जमा कर आए. यही रहस्य है कि वह अपने को पागलपन से बचाने के लिए हंसोड़ होना, सबसे बड़ी दवा मानता है, अर्थात कक्षा में उसका शिक्षण यही है, स्वयं हंसना और विद्यार्थियों को हंसाना.

चिमनलाला ने हंसने-हंसाने से पढ़ाई की यह जो विधि अपनाई है, इससे हुआ यह है कि विद्यार्थियों में पढ़ाई के प्रति एक दूसरी ही भावना बन आई है. विद्यार्थी मानो हंसी के होकर रह गए हैं. चिमनलाला ज्यों ही कक्षा में आता है, विद्यार्थी हंसी से उसका स्वागत करते हुए कहते हैं, ‘‘सर! हम बोर हो गए हैं, हमें हंसाओ न!’’

हंसी के लिए ‘जोक’ चाहिए और चिमनलाला तो जोक का पिटारा है. गली में कुत्ता मरा पड़ा था कि किसी आदमी ने

अंधा बनकर उस पर पांव रख दिया, यह चिमनलाला का जोक है. किसी के बैल ने बीमार पड़ जाने पर घास खाना छोड़ दिया. जोक इसमें है कि भला बैल कभी बीमार होता है? किसी आदमी की कमर टूट गई. चिमनलाला का जोक यह है कि वह झुककर चलता है. जोक सुनाने वाला चिमनलाला पहले हंसता है, विद्यार्थी उसे हंसता देखकर हंसने के लिए मजबूर होते हैं. अब तो हालत यह है कि जहां रुलाई है, वहां भी हंसी के फव्वारे छूटते हैं. एक रोज एक विद्यार्थी कहने लगा, ‘‘ऐसे मीठे-मीठे जोक सुनाने वाले टीचर को तो मैं सिर झुकाता हूं. मेरा वश चले तो तमाम टीचरों को गोली मार दूं, केवल एक चिमनलाला को जिंदा रहने दूं. पुस्तक पढ़कर क्या हासिल होगा? हंसी की पुस्तक पढ़े, जीवन में यही काम आएगा.’’

आवाज एक विद्यार्थी की थी, लेकिन दूसरे विद्यार्थियों की आवाज इससे अछूती नहीं थी. अब तक दूसरे टीचरों ने चिमनलाला का ‘ऐसा’ होना पूरी तरह पहचान लिया था. विद्यार्थियों के जोक तो और भी विचित्र हुआ करते थे. मसलन, ‘‘कुत्ता मरा पड़ा था, कीड़े उसे खा रहे थे.’’ जोक खत्म कि तालियां और मजेदार हंसी.

‘‘आदमी मर गया, औरत विधवा हो गई.’’ हंसी, हंसी के साथ तालियां.

‘‘किसी देश में बाढ़ आई, हजारों की जाने गईं.’’ तालियां और हंसी.

‘‘हवाई जहाज में आग लग जाने से सभी यात्री मारे गए. यात्रियों में अधिकतर बच्चे, जो छुट्टियां मनाने कहां जा रहे थे.’’ जोक खत्म कि हंसी और तालियां शुरू.

चिमनलाला तो टीचर था, विद्यार्थियों को परीक्षा में सफलता दिलाकर जीवन के मोर्चे पर खड़ा करना उसका काम था. टीचर को महापुरुष कहें तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. चिमनलाला ने अपने परिवेश में एक अलग ही प्रश्न को जन्म दिया था. उसके तमाम सहकर्मी टीचर चिहुंक पड़े थे, इस चिहुंकन में भय भी था, आश्चर्य भी था. टीचरों के बीच भी कहकहे लगते थे और हंसी से सभी लोट-पोट होने लगते थे. ‘‘सिर पर दो बाल हों और आदमी नाई के पास रंगाने चले,’’ यह हंसी का विषय तो हो सकता है, लेकिन ‘‘किसी का गला कट जाए और खून बहने लगे.’’ इसमें हंसी कहां है? चिमनलाला ने इसी को हंसी बनाया था.

चिमनलाला ने एक रोज मित्रों को आपस में हंसते देखा तो बेतहाशा उनकी ओर बढ़ आया और कहने लगा, ‘‘किस बात पर इतनी हंसी चल रही है, भाई! मुझे भी तो सुनाओ.’’

हंसी के पीछे मीठी बातें ही थीं, लेकिन चिमनलाला के आने से बातों को कोई और मोड़ दे दिया गया. एक टीचर हंसते-हंसते कहने लगा, ‘‘भाई, चिमन! तुम भी कुछ सुनाओ न?’’

चिमन ने सुनाया, ‘‘मेरे शहर में आज सुबह एक लड़की की मां मर गई. बाप तो बहुत पहले मर गया था. हां, लड़की अब पूरी तरह अनाथ है.’’

चिमनलाला को अपने जोक सुनाने के बाद सबसे पहले हंसने की आदत थी. आज भी वह सबसे पहले ही हंसा और मित्रों को हंसी से लोट-पोट होते देखने के लिए आंखें चौड़ी कीं, परंतु मित्रों ने हंसी का साथ नहीं दिया. व्यथा भरी बातों पर कब तक चिमनलाला का साथ देते चलते. चिमनलाला ने समझा कि जोक समझ में न आने से मित्रों को हंसी नहीं आई है. उसने अपना जोक पुनः सुनाने की उत्सुकता दिखाई, लेकिन मित्र अब जाने लगे थे. उसने मित्रों को नीरस समझा और अपने जोक को होंठों पर गुनगुनाते हुए अपनी कक्षा में पहुंचा. उसके विद्यार्थी तो उसके पीरियड की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे. गणित का पीरियड अभी-कभी खत्म हुआ था. विद्यार्थी बोर हो गए थे. अब चिमनलाला ही उनकी बोरियत दूर कर सकता था. अंग्रेजी के टीचर बनाम जोक के टीचर चिमनलाला के आने से विद्यार्थियों को मानो बिन मांगे मोती मिला. विद्यार्थी कुछ कहते, इससे पहले चिमनलाला ने उन्हें कहा कि एक मजेदार हंसी से कक्षा का शुभारंभ करते हैं. विद्यार्थी तो खुशी के मारे तालियां बजाने लगे. चिमनलाला ने वही जोक सुनाया, जो कुछ देर पहले टीचरों को सुनाया था. विद्यार्थियों ने तो बड़े मजे से जोक को सुना और हंसते रहे.

चिमनलाला आज एक नए अनुभव से गुजरा. सहकर्मी टीचरों को लेकर उसके मन में गजब की ऊहापोह मच आई थी. अपने जोक से सभी टीचर खुश थे, किंतु क्या कारण था कि चिमनलाला के मजेदार जोक को सुनते ही जैसे सभी के प्राण सूख गए और जिसका सींग जिधर समाया वह भाग चला. चिमनलाला जिस नतीजे पर पहले पहुंच चुका था, उस पर आज और ऊपर पहुंचा. पेड़ पर चढ़कर देखना जरूरी नहीं था, बल्कि पेड़ की जड़ में ही खड़ा होकर देखा जा सकता था कि मित्रों के मन में उसके प्रति गजब की ईर्ष्या थी. दूसरे टीचर बस विद्यार्थियों को रुलाना जानते थे, केवल एक चिमनलाला ही हंसाने वाला मास्टर था. यदि सहकर्मी टीचरों को थोड़ी सी भी उदारता आए तो चिमनलाला के जोक से वे हंसी के मारे ऐसी हालत में पहुंच जाएं कि कभी दांत गिरने लगें तो कभी जीभ झड़ने लगे.

चिमनलाला अपनी जिद्द का पक्का था. उसने मित्रों को बताया कि हंसी से किस तरह दुनिया पर जय की जाती है, परंतु अचानक देखा गया कि उसकी हंसी ठहर गई थी और जोक करने के उसके मूड पर संभवतः कोई भारी-भरकम पत्थर ढुलक जाने से सब कुछ ठहर गया था. विद्यार्थियों को उसका यह रूखापन जंचने वाला नहीं था. यदि सर जोक सुनाना नहीं चाहता था तो वे तो सुना ही सकते थे. कभी गिद्ध के मरने से जोक का श्रीगणेश जारी रहा तो किसी के बाप के मरने और चिता में भस्म होने से जोक का पटाक्षेप हुआ. चिमनलाला सुनता, थोड़ा हंसता और अधिक रोने का भाव प्रदर्शित करता.

इसी बीच पता चला कि सर की प्यारी साली बीमार है, बचने की उम्मीद बहुत कम है. एक विद्यार्थी ने कहा, ‘‘हमें आपके साथ सहानुभूति है सर! आपकी साली मर जाए तो हम फूलों के गुलदस्ते लेकर जरूर आएंगे. केक तो अवश्य

काटेंगे.’’

जोक खत्म, अब तालियां और हंसी की गूंज मची.

सर का दुःखी मन इस शोर में न होकर प्यारी साली के पास था.

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रचनाकार: प्राची - फरवरी 2016 - हास्य-व्यंग्य / सर, हमें हंसाओ न / रामदेव धुरंधर
प्राची - फरवरी 2016 - हास्य-व्यंग्य / सर, हमें हंसाओ न / रामदेव धुरंधर
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