'' हे राम ' ' राम तुम त्रेता में थे फिर त्रेता में आओगे सुना है इतिहास दोहराता है स्वयं को । इरा कलिकाल में हमें आपकी मूरत...
'' हे राम ' '
राम तुम त्रेता में थे
फिर त्रेता में आओगे
सुना है इतिहास
दोहराता है स्वयं को ।
इरा कलिकाल में
हमें आपकी मूरत
से ही काम चलाना है
आपकी मूरत के नाम पर
लोग क्या कुछ नहीं
कर रहे
धंधा, राजनीति
हर तरह का अधर्म
राम. तुम विस्मरित
क्यों नहीं हो जाते
कितने गुनाह है
तुम्हारे सिर
पापियों के किये हुए ।
या तो प्रगटो
आ जाओ
नहीं तो स्मृति से लोप हो जाओ
झूठे सहारे याद न रहे तो अच्छा
और पापी तुम्हारा नाम
लेकर पाप न करे
ये आपके नाम के लिए अच्छा ।
आपका नाम न होगा
वो हमें पता तो होगा
कौन सच्चा कौन झूठा
आपकी श्रद्धा में हम खाते रहते है धोखा
और पापी नहीं चूकते कोई मौका
हे राम विस्मरण हो जाये तुम्हारा ।
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बाजार
बाजार किसी का नहीं होता
मुनाफा की भाषा चलती
है यहाँ
जबसे घर में बाजार लगने
लाभ-हानि में रिश्ते तुलने लगे
तब से हर नाते ओछे लगने लगे
' पैसा है तो प्यार है
नगद न राही उधार है
किन्तु बाजार तो बाजार है
भाव के भी भाव तय है
क्या मान, क्या सम्मान
क्या स्त्री. क्या संतान
क्या परिवार. क्या पिता
- कितने सक्षम हो
कितने कमाऊ हो
सब कुछ तय करता है पैसा
पैसा है तो मेरा भाई ऐसा है
. पैसा नहीं तो मेरा कोई भाई नहीं
है भी तो ऐसा है वैसा है
पता नहीं कैसा है
हर आदमी के हाथ में तराजू है
पैसो के आगे सब धर्म संस्कृति
आजू-बाजू है
मुख्य है पैसा
अहम् है बाजार
तुम कितने में बेच सकते हो
कितने बार बेच सकते हो ।
कितना गिर-गिर बेच सकते हो
नहीं बेच पाये तो खोटे सिक्के
फिर तुम्हारा कुछ नहीं
कोई नहीं ।
तुम पूरे के पूरे बेकार ।
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'' गेहूँ के साथ घुन ' '
गेंहू के साथ क्यों पिसता है घुन
मेरी बात जरा ध्यान से सुन
गेंहू तो पिसकर बनता है आटा
रोटी बनकर खाया गया
और अंगुलियों को चाटा गया ।
गेंहू का अपना कर्त्तव्य है, धर्म है
मोक्ष है, नियति है, स्वर्ग है ।
जैसे जीता हुआ
ताज पहनता है युद्ध में
मारा हुआ स्वर्ग
जाता है
और यही सैनिकों के हिस्से है आता
जीत या स्वर्ग ।
किन्तु वो नागरिक
जिनका नहीं हार-जीत से कोई वास्ता
फिर भी उनके जीवन का कट
जाता है रास्ता ।
वो बिखरा हुआ समाज
वो भूख पीड़ा के मारे हुए बेआवाज
उनके हिस्से आता है लुटना
बढ़ते हुए टैक्स
बढ़ते हुए दाम
क्या उनकी नियति भी
धुन की तरह है
जिनके बचाव का
नहीं कोई इलाज
जो पिसते हैं ऐसे
गेंहू के साथ घुन जैसे
तो क्या दो राष्ट्रों के लिए
सरकारों के लिए
वो आम गरीब जनता
मात्र घुन है
बेवजह पिसना
और कुछ भी हासिल
न होना जिनका भाग्य है
उनके लिए बस यही
एक वाक्य है कि क्या करें
गेंहू के साथ घुन
तो पिसता ही है
तो जनता सुन
तू है घुन
अब तू ही कोई रास्ता चुन
अन्यथा सरकार की नजर में
तो तू है घुन
अब ऐसी राह चुन
कि कोई न समझे घुन
ऐसे को चुन या खुद कुछ बुन
जो पीसकर खाकर भी
कुछ तो अहसान माने
तुम्हें कम रो कम गेंहू तो माने
ये न कहे
कि तुम्हारा भाग्य
पिसता है गेंहू के साथ घुन ।
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'' मैं तिरंगा हूँ ''
सावन का अंधा हूँ
जबरदस्ती लिया हुआ
चंदा हूँ ।
थोड़ा सा अच्छा
थोड़ा गंदा हूँ
मैं आम
आदमी
खुदा का बन्दा हूँ ।
थोड़ा सा दंगा हूँ
थोड़ा सा नंगा हूँ
कभी दिल्ली कभी
दरभंगा हूँ ।
बिना बाल के
लिए हुए कंघा हूँ ।
तोड़ी है सत्ता के भीम ने
फर्जी मुठभेड़ में
मैं दुर्योधन नहीं
आम आदमी की जंघा हूँ ।
मैं वो अर्जुन हूँ
जिसके पास कोई कृष्ण नहीं
मैं भरी सभा में लुटती द्रोपदी हूँ
मेरे पारा चुप्पी साधे पांडव तो है
लेकिन तन ढांकता कोई कृष्ण नहीं
मैं उल्टी बहती
बांधो में बंधी गंगा हूँ
मैं लोगों को राजमुकुट पहनाता
सत्ता की शक्ति रो भरता फिर
खुद उनसे लुटता
और आवाज उठाने पर
उनसे ही पिटता
अपने ही खून रो रंगा हूँ
अपनी ही भूली पर लूंगा हूँ ।
मैं आम आदमी
1047 की आजादी
बंटवारे की बर्बादी
जिन्हें चुन-चुनकर दिल्ली भेजा
उन्हीं से चुन-चुनकर मारा गया
अधनंगा हूँ
मैं मंदिर का घंटा
मस्जिद के बाहर
भौंकता कुत्ता
कोई भी धुतकार दे
दोस्त कहें उधार दे
बीबी कहे प्यार दे
बच्चे कहे संवार दे
माँ-बाप कहें सेवा दे
न दे सकूं बेकारी के दौर में
महंगाई के इस अंतहीन ओर-छोर में
तो कहे सब निकम्मा हूँ
मैं लफंगा हूँ ।
पुलिस की धारा हूँ
वकील का केस हूँ
न्यायाधीश की पेशी हूँ
लोकतंत्र की ऐसी तैसी हूँ
मैं आम आदमी राजनीति का फंडा हूँ
बिना मुर्गी का अंडा हूँ ।
अपनों के धोखे से
घायल हुआ तिरंगा हूँ ।
मैं मैली हो चुकी गंगा हूँ ।
बाबू के लिए फाइल हूँ
साहब के लिए फिनायल हूँ
चपरासी के लिए दस का नोट हूँ
नेता के मात्र वोट हूँ
मैं ऊपर से अपटू-टेड
पहने हुए कोट हूँ
अन्दर से भूखा.प्यासा
दिखने में भला चंगा हूँ
मैं आम आदमी
मैं चीत्कार हूँ
मैं हाहाकार हूँ
मैं करुण पुकार हूँ
में धिक्कार हूँ
रखी पर लटका ईसा हूँ
बाजार में खड़ा बिना
पैसों के खीसा हूँ
व्यापारियों की नजर में भिखमंगा हूँ
मैं बिना फांसी के फंदा हूँ ।
अमीरों का धंधा हूँ
गरीबों का कंधा हूँ
मध्यमवर्गीय फंदा हूँ
इन सबके के मध्य में आम आदमी
अंधेरे रो उजाले
की ओर फूटती किरण हूँ
युद्ध की करुणा महावीर की अहिंसा
से निर्भीक विचरता
वन का हिरण हूँ तुलसी का राम
मीरा का श्याम । मैं अजान । मैं नमाज अली का बली हूँ
नानक का रात श्री अकाल
कालों का काल महाकाल
गीता उच्चारित करता कृष्ण हूँ ।
मैं मन का चंगा हूँ ।
कठौती में गंगा हूँ ।
ढलती रात की प्रतीक्षा भोर का उजाला हूँ
जेठ की तपती धूप से त्रस्त
आषाढ़ का प्रथम मेघ हूँ ।
मैं आस हूँ उम्मीद हूँ
मनुष्यता की जीत हूँ
सुनहरे कल का सपना रंग बिरंगा हूँ ।
सत्यमव जयते का उद्घोष
करता तिरंगा हूँ ।
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.. शिकार ' '
हर बड़ी मछली
का शिकार है
छोटी मछलियाँ
छोटी मछलियों
के आन्दोलन से तंग आकर
उन्हें खुश करने के लिए
आखिर वोट बैंक वे भी है
कुछ बडी मछलियों ने
आश्वस्त किया
कानून बनाये जायेंगे
तुम्हारी सुरक्षा के लिए
दंडित होगे तुम्हारे
साथ जबरदस्ती करने वाले
छोटी मछलियाँ खुश हो गई
बड़ी मछली ने दूसरी
बड़ी मछली से कहा
फिर हम शिकार कैसे करेंगे
हमारे आनन्द का क्या होगा?
ये तो अपने पैर पर
कुल्हाड़ी चलाने वाली बात हुई ।
चिन्ता क्यों करती हो,
कहा बड़ी मछली ने
जिसकी लाठी उसकी भैंस
जगत की यही रीत
कानून बनने दो
सजा होने दो
सजा छोटी को होती है
होती रहेगी
बड़ी मछलियाँ शिकार
करती है
यह हमारी प्रकृति प्रदत्त क्रिया है
जो राजा पा जाये
जिसके विरुद्ध कानून का डंडा चल जाये
तो छोटा ही हुआ
छोटी मछली
से अपहरण
बलात्कार. हत्या
के आरोप में
राजा पाती रही
छोटी मछलियाँ
कानून की जयकार
करती छोटी मछलियाँ
बड़ी मछलियाँ
वे रची हो या पुरुष
आज भी शिकार
करती है पूरे अधिकार के साथ ।
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'' हमारी लड़ाई हम से है ''
हमारी लड़ाई हम से है
अपने चुने प्रतिनिधि जन से है ।
सत्याग्रह क्या करेगा
असत्य के सामने
कब तक भूख हड़ताल
अनशन करोगे
गूंगी, बहरी, अंधी सरकार
के सामने
बहिष्कार करो
असहयोग करो
उखाड़ फेंको बिजली
के मीटर
रहना सीखो अंधेरों में
अगर चाहिए उजाला
बढ़ते बिल
. बढ़ते दाम
बढ़ते कर
छोड़ो सुख-सुविधायें
मोटर-गाड़ी वाहन
नहीं चाहिए लूट की
कीमत पर पेट्रोल,डीजल.रसोई गैस
मत खरीदो अनाज राशन, सब्जी
काले दामों में
बहिष्कार करो कलाबाजारी का
गोदामों में सड़ते राशन पर मक्कारी का
एक के भूखे रहने से कुछ नहीं होने वाला
पूरे तंत्र को शून्य कर दो
स्वयं को शुद्ध कर लो
हमारी लड़ाई तम से है
हमारी लड़ाई अपने जन से है ।
असहयोग करो
अपना सदुपयोग करो
शस्त्र उठाओगे
तो किसके विरुद्ध
कुचल दिये जाओगे
अपने ही रक्तबीज
कर देंगे जीना अवरुद्ध
फिर वही जीत-हार
फिर वही असफल आन्दोलन
फिर वही झूठे वादे
फिर वही सरकार
बाबू से लेकर अफसर तक
संत्री से लेकर मंत्री तक
जरुरत से लेकर बाजार तक
कुछ मत खरीदो
कुछ मत बेचो
सत्ता शासन, प्रशासन
सब का बहिष्कार करो
उज्जल भविष्य के लिए सारा भारत
मिलकर एक साथ ये तप करो
बहिष्कार करो
हमारी लड़ाई पूरी दम-खम से है ।
हमारी लड़ाई हम से है ।
हमारी चुनी हुई सरकार
हमारी पुलिस हमारी सेना
से ही करवायें हम पर वार
धिक्कार भरो बहिष्कार करो ।
प्रशासन के लोग भी जनता है
जनता के साथ मिलकर
सब सरकारी
गैर सरकारी
अर्द्ध सरकारी
भ्रष्ट. निकम्मे तंत्र का उद्धार करो
आओ सब मिलकर बहिष्कार करो ।
आओ सब जनता
मिलकर लुटेरों के हन्ता हो जायें
यही मरण होगा इनका
न देंगे टेक्स बिल
न लेंगे कोई दाना-पानी
सरकार स्वयं मर जायेगी
असहयोग की प्रबल लाठी
जब चल जायेगी ।
हमारे ही लोग
हमारी ही सरकार
हमारी बोटी-बोटी
नोचकर हमें मार-मारकर
काट-काटकर हमारे लहू
और पसीने से
महल-बंगले बना रही है
हमारा धन देश में न समाया
तो विदेशी बैंको में भर रही है ।
सिस्टम को तोड़ दो
अहिंसक बहिष्कार दो
हमारी लड़ाई हम से है
अपने ही पैदा किये असुर जन से है ।
हमें त्यागना होगा सबकुछ
जिससे चलता ये तंत्र है
बरा यही एक मंत्र है
सम्पूर्ण बहिष्कार करो
अपने रक्तबीजों के
रक्त का बीज न पड़ने दो
खुद को चाहे सड़ने दो
कुछ वर्ष तो गलने दो
नया पौधा जमेगा
नये-नये फूल खिलेंगे
अपने देश के स्वाभिमान के लिए
अपनी बेहतरी की मान के लिए
अगली पीढ़ियों के गर्व करने के लिए
शासन-प्रशासन को स्वच्छ बनाने के लिए
इतना तो करना होगा
असहयोग तो धरना होगा
बहिष्कार से भरना होगा
ताकि प्रजातंत्र में प्रजा का
न हो निरादर
हमारी सरकार न बन बैठे
तानाशाह हिटलर, बाबर
इस लड़ाई की शुरुआत
हमसे हैं
इस लड़ाई का अन्त हमसे है ।
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'' दूध का धुला। ' '
कोई दूध का
धुला नहीं है
जो दूध का धुला है
उस दूध में भी पानी
मिला है ।
जिस दूध में पानी
नहीं मिला है
जरूर उसमें कोई
गहरी साजिश
छिपी है ।
ऐसे कैसे हो सकता है
मिलावट' बेईमानी
के जमाने में
शुद्धता कैसे संभव है
इस दूध में पानी
होना ही चाहिए ।
कोई शुद्ध हो
हमें भरोसा नहीं
ये असंभव है
आज की दुनिया में कैसे
हो सकता है
जाँच अच्छे से न हुई हो
रिपोर्ट बदल दी गई हो
और जाँच करने वाले
कौन से दूध के धुले हैं
उनकी अपनी जरूरतें हैं
उनका घर-परिवार है
उनपर आरोप भी लगे हैं पहले
फिर इस बात की
जांच हुई कि
दूध देने से ठीक पहले
भैंस ने पानी न पिया हो ।
भैंस ने पानी पिया होगा
वह पानी उसके पेट
में गया होगा
दूध में पानी मिल गया होगा
आप ये क्यों नहीं मानते
कि दूध में पानी होता ही है
तभी तो दूध द्रव्य होता है.
बिना पानी का दूध
तो पावडर होता है 1
या कोई ठोस आकार में होता है
तो सिद्ध हुआ कि
कोई दूध का धुला नहीं हैं ।
जो दूध का धुला है
उसके पास इतना दूध आया कहां से
जनता जवाब चाहती है ।
बच्चों के लिए दूध नहीं । पीने को पानी नहीं
और ये खुद को दूध से
. नहला रहा है ।
कहां से आया इसके
पास इतना दूध
जितना दूध इसके पास है
उतने तो शहर में दूध देने
वाले जानवर नहीं है
फिर ये दूध कहां से आया
इसका मतलब ये दूध नकली है
बनावट-मिलावट का बना है ।
ये दूध इतना पतला क्यों है
जरूर इसमें पानी मिला है
ये दूध इतना गाढ़ा क्यों है
जरुर इसमें केमिकल मिला है
ये दूध इतना सफेद क्यों है
यदि सफेद नहीं है
तो फिर ये दूध नहीं है ।
ये दूध लग तो दूध जैसा ही रहा है
यदि ये दूध है
तो ये दूध जैसा क्यों है
ये दूध है ही क्यों?
ये दूध खुद धुला हुआ
लग रहा है व्हाइट-व्हाइट
जब दूध ही धुला हुआ है तो जब दूध की दूध नहीं है ।
तो फिर कौन दूध का धुला हुआ है ।
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कवि परिचय -
1 नाम देवेन्द्र कुमार मिश्रा
2 जन्मतिथि 21 -०३-१ 9733. शिक्षा एम ए समाजशास्त्र,
. 15 प्रमाणपत्रीय कोर्स
4. भाषा हिन्दी5 कार्य स्वतंत्र लेखन्
6 लेखन 1991 से सतत् पत्र-पत्रिकाओं में कथा - कविता लेखन ।
7000 से अधिक कवितायें ।3०० कहानियाँ प्रकाशित ।
8 कथा संग्रह प्रकाशित ।
27 काव्य संग्रह प्रकाशित ।
. सम्मान : देश भर की साहित्यिक संस्थाओं से 225 सम्मान-पत्र ।
. पत्राचार का पतादेवेन्द्र कुमार मिश्रा
पाटनी कालोनी. भरत नगर
चन्दनगाँव-छिन्दवाडा मप्र.)
छिन्दवाडा (मप्र. -४८०१०
मो 9425405०22
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