शबनम शर्मा की लघुकथाएँ

SHARE:

तेरहवीं शाम को एक छोटा सा कार्ड बिना दरवाज़ा खटखटाए कोई फेंक गया। रात को मुन्ना हाथ में लिये मुझे दिखा रहा व बोला, ‘‘अम्मा, पिछली गली वाली...

image

तेरहवीं

शाम को एक छोटा सा कार्ड बिना दरवाज़ा खटखटाए कोई फेंक गया। रात को मुन्ना हाथ में लिये मुझे दिखा रहा व बोला, ‘‘अम्मा, पिछली गली वाली दादीजी की तेरहवीं है। कल दोपहर का खाना है व 2 से 3 बजे तक पगड़ी की रसम।’’ उसके बताते ही मेरे शरीर में बिजली सी कौंध गई। मेरा अच्छा-खासा प्यार था उनसे। दूसरे दिन मैं समयानुसार उनके पिछले वाले बड़े से आँगन में पहुँच गई। बड़ा सा शामियाना, आज़ाद टैंट वालों का इन्तज़ाम। खाना सजा हुआ, लोग घूम-घूमकर चटकारे लेकर खाते हुए। सिर्फ कमी थी तो ये कि डी.जे. के अश्लील गानों पर लोग नाच नहीं रहे थे। माहौल चुपचाप खाकर, लिफ़ाफा पकड़ाकर जाने का था। कोने में खड़ी-खड़ी मैं ये दृष्य देख रही थी कि अचानक मेरा ध्यान दादी की उस स्थिति पर चला गया, जब मैं उन्हें आखिरी बार मिलने गई थी। ढीली खाट, जिस पर बिछी चादर न जाने कब बिछाई गई थी। गुच्छा-गुच्छा होकर दादी के बदन को तंग कर रही थी, दादी कभी इधर से सीधी करती कभी उधर से। तकिया बेहाल था। कमरे में ज़ीरो वॉट का बल्ब था। न कोई खिड़की, न झरोखा। पास में एक प्लास्टिक की टूटी बालटी पड़ी थी। सुबह-सुबह पानी का लोटा, गिलास रख दिया जाता। लाख आवाज़ें देने पर भी कोई न आता। हरिया भागता-भागता कभी-कभी चाय का गिलास, दो रस दे जाता। दादी बेचारी हाँफती-हाँफती उठती, मुष्किल से नहाती, धोती, अपने अस्त-व्यस्त बाल अपने हाथों से सुलझाती। कभी किसी से कोई शिकायत न करती। कोई हाल पूछता तो कहती, ‘‘बेटा बुढ़ापा ही तो सबसे बड़ी बीमारी है।’’ तरस आता उन्हें देखकर। किसी के पास वक्त न था उन्हें कुछ पूछने का, उनकी सेवा करने का, पर आज ये लाखों रूपये खर्च कर दिखावा क्यूँ?

रसम

छुट्टियों के बाद स्कूल में मेरा पहला दिन था। नीना को सामने से आता देख मुझे अचम्भा सा हुआ। वह स्कूल की पी.टी. अध्यापिका है। पूरा दिन चुस्त-दुरुस्त, मुस्काती, दहाड़ती, हल्के-हल्के कदमों से दौड़ती वह कभी भी स्कूल में देखी जा सकती है। आज वह, वो नीना नहीं कुछ बदली सी थी। उसने अपने सिर के सारे बाल मुंडवा दिये थे। काली शर्ट व पैंट पहने कुछ उदास सी लग रही थी। कुछ ही समय में पता चला कि इन छुट्टियों में उसके पापा की मृत्यु हो गई थी। सुनकर बुरा लगा। शाम को मैं करीब चार बजे उसके घर गई। उसने मुझे बैठक में बिठाया। पानी लाई व मेरे पास बैठ गई। पूछने पर पता चला कि उसके पिता की मृत्यु हृदय गति रूकने के कारण हुई थी। रात का समय था, वह उन्हें अस्पताल ले गई जहाँ डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। घर आकर उसने अपने रिष्तेदारों को पिता जी मृत्यु की सूचना दे दी। सुबह पूरा जमघट लग गया। सवाल कि संस्कार पर कौन बैठेगा? चाचा के 3 बेटे थे। तीनों खिसक लिये। समय का अभाव था। नीना की दो बड़ी बहनें शादीषुदा थी, उनके बच्चे व पति भी व्यस्त थे। वह 10 दिन बैठ नहीं सकते थे। लाष को उठाने से पहले यह कानाफूसी नीना तक पहुँच गई। वह माँ के पास बैठी थी। उसने आँसू पोंछे व पिछवाड़े वाले ताऊजी से कहा जो रात से उनके साथ थे, ‘‘ताऊजी, मैं करूँगी पिताजी का अन्तिम संस्कार, मैं बैठूँगी सारी पूजा पर।’’ सबके दाँतों तले अंगुली आ गई। पर नीना ने किसी की परवाह न की। कंधे पर सफ़ेद कपड़ा रख कर, सबसे पहले अपने पापा की लाश को कंधा दिया व शमशान तक पूरी विधिपूर्वक सब कार्य किया। बताते-बताते उसकी आँखें कई बार नम हुई। बोली, ‘‘मैडम, मेरे पापा उकसर कहते थे मेरी दो बेटियाँ, एक बेटा है। मुझे क्या पता था कि आज...........’’ मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘नीना, मुझे तुझ पर गर्व है।’’

माँ

आदत है हर रोज़ शाम को मन्दिर जाकर कुछ समय बिताने की। दिवाली थी उस दिन। पूरा दिन काफ़ी व्यस्त रही, शाम को भी काम खत्म नहीं हो रहा था। पर मन था कि एक चक्कर मन्दिर का काट आऊँ। जैसे-तैसे काम निबटाकर मैं मन्दिर चली गई। मन्दिर का पुजारी उस अहाते में ही छोटी सी कुटिया में रहता था। मन्दिर में माथा टेक कर मैं पुजारी जी के पास कुछ देने चली गई। देखा पुजारी जी घर में पूजा कर रहे थे व उनकी आँखों से बरबस आँसू टपक रहे थे। मैं भी जूते उतार कर धीरे से वहां बैठ गई। 5-10 मिनट बाद उन्होंने आँखें खोली। मुझे देखकर बोले, ‘‘माफ़ करना बिटिया, कुछ भावुक हो गया। देखो ये मेरी माँ की तस्वीर, मैं आज के दिन इसकी पूजा करता हूँ। आपको बताऊँ, हम 9 भाई-बहन थे, मेरा बाप शराबी था, दिवाली से 4 दिन पहले ही जुआ खेलने बैठ जाता था, मेरी गरीब माँ, फटे-पुराने कपड़ों में, प्लास्टिक की चप्पल पहने, कमज़ोर सी देह में लोगों के घरों में बासन माँजती, झाडू-फटका करती। इन दिनों लोग उससे बहुत काम लेते, घर साफ़ करवाते, कपड़े धुलवाते, बासन मंजवाते, फिर कहीं मिठाई का डिब्बा और 5 रू. देते। वह सारी थकान भूल जाती व सामान लाकर हमारे सामने खोलकर रख देती। हम सब भाई-बहन बिन कुछ महसूस किये खुश हो-होकर, शोर मचाकर खाते। बस हमारी दिवाली मन जाती। आज सब कुछ है पर माँ नहीं है।’’ कहकर वे फिर से रोने लगे।

इन्तज़ार

रात गहराती जा रही थी। मेरा मन बहुत घबरा रहा था। मेरी बेटी शाम 4 बजे से यह कहकर गई थी कि वो 2-2) घंटे में वापस आ जायेगी। मैंने उसे अनगिनत फोन कर डाले। फोन मिलने का नाम ही नहीं ले रहा था। ‘अनरिचेबल’ की टोन ने मुझे और भी परेशान कर दिया। आखिर माथे पर हाथ रखकर, थक हार कर, एक पिटे ज्वारी की तरह मैं अपने कमरे में बैठ गई। पर मनगडंत प्रश्नों-उत्तरों का सिलसिला मुझे बार-बार झकझोर रहा था। एक पल भी मुझे एक बरस की तरह लग रहा था। ज़माना कितना खराब है? लड़की की जात, ऊपर से सर्दियों के दिन, ये दिल्ली जैसा शहर और अकेली लड़की। बेचैनी बढ़ती जा रही थी कि दरवाजे पर घंटी बजी। मैं बिजली की तरह दरवाज़े की ओर लपकी। दरवाज़ा खोला कि सामने मेरी बेटी हाथ में फूल का गुलदस्ता व कुछ पैकेट, मुस्कान होठों पर लिये खड़ी थी। उसको मुस्कुराता देख मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। मैंने एक जोरदार थप्पड़ उसके मुंह पर मार दिया व लगी बोलने। वह अवाक सी खड़ी सुनती रही। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे, पर मैं अपनी पूरी बात कह कर ही चुप हुई। उसने फिर भी मुझे बाँहों में भरा और कहा, ‘‘माँ, तू इतनी परेशान हुई, इसके लिए मुझे माफ़ कर दे। पर सुन, आज जब मैं गई तो रास्ते में मेरा फोन किसी ने निकाल लिया और तू कल वापस जा रही है। तुझे पता है, मुझे आज पहली पगार मिली थी, मैं तेरे लिये ये तोहफा लेने गई थी, मुझे देर हो गई, तो मैंने अपनी सहेली को बुला लिया, जो अभी दरवाज़े के बाहर ही खड़ी है। माँ, चुप हो जा, शाँत हो जा और देख, खोल इस पैकेट को, कैसा लगा तुझे।’’ इतने में उसकी सहेली भी अन्दर आ गई, बोली, आँटी, ‘‘इसे कुछ पसंद ही नहीं आ रहा था, बार-बार कह रही थी, अम्मा को ऐसी चीज़ दूँगी कि वो खुश हो जायें।’’ मैंने उन दोनों को गले लगा लिया और ताकने लगी शून्य में।

समझौता

अध्यापिका हूँ। हर रोज़ अलग-अलग बच्चों से वास्ता पड़ता है। कक्षा में जाना, पढ़ाना, बच्चों से बतियाना, उनकी नन्हीं-नन्हीं समस्याओं को सुलझाना मेरा शौक है। इस कक्षा में जाते मुझे करीब 6 माह हो गये थे। दो जुड़वाँ भाई-बहन को पढ़ाती हूँ। जहाँ बहन अति शान्त, कुशल व स्नेही वहीं भाई शरारती, बातूनी व कभी-कभी लापरवाह। उससे मेरी उम्मीदें कुछ ज्यादा ही बढ़ने लगी। हमेशा उसमें सुधार लाने की इच्छा ने मुझे उसके करीब ला दिया। परन्तु बात न मानना तो जैसे उसका संकल्प सा हो। वह अपनी मनमानी करता परन्तु पलटकर न तो कभी जवाब देता न ही सही काम करता। परीक्षा हुई। परिणाम भी मेरी आशा से कम था। उसकी कुशाग्र बुद्धि से ज़्यादा उम्मीद की जा सकती थी। मैंने उसके माता-पिता को संदेश भिजवा कर मिलने का आग्रह किया। निश्चित समय पर उसके माता-पिता अपने बच्चों के साथ मेरे पास आए। पिता ने पूछा, ‘‘मैम, आपने बुलाया था, क्या कोई समस्या है?’’ मैंने बच्चों की ओर देखा, दोनों के चेहरे पीले हो गये थे। मैंने कहा, ‘‘इन्होंने क्या कहा?’’ पलटकर पिता ने कहा, ‘‘ये क्या कहेंगे, रात को बताया कि कल रिजल्ट है और मैम ने आपको बुलाया है। मैडम मैं आपको एक बात बताना चाहता हूँ इससे पहले कि आपकी सुनूं। मैंने 7 माह पहले शादी की है। ये बेटी मेरी पहली पत्नि की है, जो पिछले बरस गुजर गई और लड़का इनका है (अपनी पत्नि की और इशारा करते हुए) इसका पापा भी पिछले बरस गुजर गया। मेरी बहन ने यह रिश्ता सुझाया और हमने ब्याह कर लिया। जाने वाले तो चले गये, अब आगे की भी तो सोचनी है। हाँ, मैडम कहिए आप क्या बता रही थीं?’’ मैं उनकी बातें सुनकर स्तब्ध थी। मैंने दोनों बच्चों की ओर देखा जो अभी भी वैसे ही सहमे से खड़े थे। मैंने कहा, ‘‘बस यूं ही बुलाया आपको, आपके बच्चे नए हैं इस स्कूल में। पूछना था इन्हें कैसा लगा?’’ वह बोले, ‘‘ओर, शुक्रिया।’’ देख सकती थी अब मैं उन दोनों अधूरे बच्चों के मुँह पर लौटती रौनक।

कुंठा

रीमा आफिस में नई-नई आई है। देखने में सुन्दर, सुशील और बहुत ही सुलझी हुई। अपने काम से काम और फिर होठों पर सदा मुस्कराहट। यह सब देखते हुए मुझे कुछ तसल्ली सी न होती। वह पूरे स्टाफ में किसी के साथ भी घुल-मिल न पाई। बस सबके साथ औपचारिकता निभाती दिखाई देती। एक दिन ज़ोरों की बारिश हो रही थी कि आज आफिस में काम भी कुछ कम था। मेरे साथ उसका रिश्ता माँ-बेटी का सा है। मैंने कहा, ‘‘रीमा चाय पीते हैं।’’ उसने स्वीकारात्मक ‘हाँ’ भर दी। हम दोनों बैठे थे कि चाय आ गई व मैंने पूछा, ‘‘रीमा शादी नहीं हुई अभी।’’ ‘‘नहीं।’’ उसके बाद वह इधर-उधर ऐसे देखने लगी, जैसे कि कुछ गलत कह दिया हो मैंने। ‘‘फिर कब कर रही है, मुझे मिठाई कब खिलाएगी।’’ ‘‘कभी नहीं।’’ कह कर वह ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। मुझे लगा, मुझसे कोई बड़ी भूल हो गई है। मैंने उठकर उसे गले से लगाया। वह जी भर कर रोई व ‘‘सॉरी’’ कहकर बैठ गई। उसकी यह दशा देख मैं अन्दर तक हिल गई थी। कुछ सांत्वना भरे शब्द कहकर उसके कंधे पर हाथ रखकर कारण पूछा। उसने बताया वह मात्र 12 बरस की थी जब उसका ब्याह हुआ। वह ब्याह के मायने भी न समझती थी, ऊपर से ससुराल वालों की असीमित उम्मीदें, जिन पर वह ख़री न उतर पाई। उसके साथ सबका व्यवहार बद से बदत्तर हो गया और आखिर मात्र 13 साल 3 महीने की उम्र में उसे मार-पीटकर घर से निकाल दिया। वह पीहर आ गई। यहाँ उसके माता-पिता ने उससे वापस जाने को कहा पर वह न मानी। फिर उसने अपनी पढ़ाई जारी की और बी.कॉम. फिर एम.कॉम. किया। उसने बताया, उस पर किये जुल्म उसे आज भी सोने नहीं देते। वह फिर से रो पड़ी। इस बीच मैंने पूछा कि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली। उसने बताया उसके 2 बच्चे भी हैं। पर वह शादी नहीं करेगी क्योंकि वो जानना चाहती है उसमें क्या कमी थी। उन लोगों ने ऐसा क्यों किया? मैंने उसे बिठाया, चुप कराया व समझाया, ‘‘देखो रीमा, कल कभी लौटता नहीं, और हर दिन एक सा होता नहीं। तब तुम मात्र 12-13 वर्ष की अबोध बालिका थी, अब इतनी सुन्दर, सलोनी, प्यारी सी लड़की हो। अगर किसी ने तुम्हारे बड़े होने का इन्तज़ार नहीं किया, तो तुम क्यों इस जि़न्दगी को बरबाद कर रही हो और हाँ, तुमने कुछ नहीं खोया, उन्होंने एक अच्छी बहु खोई।’’ उसके चेहरे की रंगत बदल गई। मुझे खुशी है इस बात की, कि उसकी कुंठा को निकाल पाई मैं और पता चला कि उसने अब इरादा बदला है। नए जीवन की ओर पग बढ़ाया है।

फितरत

पिछले माह मुझे मिसेज गुरुंग के घर जाने का मौका मिला। रात गहरा गई थी। मौसम भी बहुत अच्छा था। सर्दी के साथ-साथ अच्छा खाना, सूखे मेवे व गरमा-गरम चाय-काॅफी ने समय बांध दिया था। हम दोनों ड्राईंग रूम में बैठे बतिया ही रहे थे कि उनकी दोनों लड़कियाँ अपने बच्चों के साथ घर में आ गईं। आते ही पर्स इधर फेंका, शाल कुर्सी के कोने पर टंगा दी और जूते अस्त-व्यस्त रख दिये, बच्चों ने अपना पूरा धमाल शुरु कर दिया। घर का माहौल क्षण भर में ही बदल गया। बच्चे रसोई की तरफ दौड़े, बोलते हुए, ‘‘मामी जी भूख लगी है कुछ खाने को दो।’’ लड़कियाँ भी आवाजें लगाने लगी, ‘‘अरे, भाभी एक-एक कप चाय, पकौड़े हो जायें।’’ बेचारी भाभी ‘‘हां जी’’ बोलकर रसोई की तरफ भागी। आध घंटे में सबकी फरमाइशें पूरी करके दस व्यक्तियों के खाने की तैयारी करने लगी। पता चला उसे चैथा महीना चल रहा है, पर किसी को भी परवाह नहीं। मुझसे रहा न गया। पूछ ही बैठी, ‘‘मिसेज गुरुंग आपने लड़कियों की शादी लोकल की और ये जब-तब आएँ तो इससे काम नहीं बढ़ जाता, देखो दोनों जब से आई हैं, एक फोन पर, दूसरी टी.वी. के आगे और बच्चे धमाल किये हुए हैं, इससे बहू-बेटे के जीवन पर क्या असर पड़ेगा।’’ उन्हें मेरी बात ज़रा न भाई। तपाक से बोलीं, ‘‘मिसेज शर्मा, दोनों कमाती हैं, हर माह मेरे हाथ पर अच्छे पैसे रखती हैं। आखिर इन्हें पाला, पढ़ाया-लिखाया। शादी करके बेचा तो नहीं, इनका घर है जब चाहें आएँ-जाएँ, ससुराल में तो खटती ही है, यहाँ भी काम करें तो मायका क्या?’’ मैंने पूछा, ‘‘फिर इनके घर पर कौन देखभाल करता है?’’ वह नाक-भौं तरेरकर बोली, ‘‘इनकी माऐं यानि सासें और ननदें।’’ मैं हैरान थी ये सब देख-सुनकर कि मेरी नजर उनकी बहू पर पड़ी जो 1-1) किलो आटा गूंथ रही थी। मुझे उसकी तरफ देखते ही मिसेज गुरुंग बोली, ‘‘गरीब घर की है, बाप भी नहीं, माँ है भाई के साथ रहती है। जान-बूझकर लाये इसे, घर का काम तो करे और दो रोटी खाती रहे व पड़ी रहे।’’ मेरे लिये अब रुकना मुहाल हो गया इस फितरती माहौल में। मैं उठी और भारी कदमों से घर वापिस आ गई।

कलयुगी बेटा

मैं किसी काम से बैंक में बैठी थी। कार्य कुछ ज्यादा होने की वजह से मैं मैनेजर के चैम्बर में चली गई। अकेली थी काम ज्यादा। कुछ फार्म भरकर मैंने मैनेजर साहब को थमाए। उन्होंने मुझे बैठने व कुछ देर और इन्तज़ार करने को कहा। मैं बैठ कर इधर-उधर आए लोगों को निहारने लगी कि बैंक के मेन गेट से लम्बा, ऊँचा, सुन्दर सा युवक, आधुनिक वेशभूषा में प्रवेश हुआ और मैनेजर साहब का कमरा खेल अन्दर आ गया। पीछे हाथ बाँधे, एक लिफ़ाफा हाथ में थामे उसने कहा, ‘‘सर, मुझे बहुत जरूरी सूचना चाहिये?’’ मैनेजर ने उसे बैठाया व पूछा, ‘‘हाँ, बताओ मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूँ।’’ उसने लिफ़ाफा आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘सर, इसमें मेरे पिताजी के बैंक के कुछ कागज़ हैं, मुझे पता करना है कि यह पैसा किसको मिल सकता है और मुझे यह पैसा लेने के लिये क्या-क्या कार्यवाही करनी होगी, जल्दी बताइए।’’ लिफ़ाफा खोलते ही मैनेजर सकते में आ गया। उसने कहा, ‘‘अभी इसी सप्ताह तो वो अपनी पैंशन लेकर गये हैं, मेरे साथ चाय पी है, क्या हुआ उन्हें? कब हुआ?’’ लड़का बोला, ‘‘परसों सुबह वो हमें छोड़कर चले गये।’’ मैनेजर ने कहा, ‘‘भले मानस डैथ सर्टीफिकेट लेने तक तो इन्तज़ार करते। इतनी भी क्या जल्दी है। आज तीसरा ही दिन है।’’ उसने जवाब दिया, ‘‘सर, वो तो आराम से मर गये। हमें अब समाज की भी लाज रखनी है। खर्च करूँगा उतने हिसाब से ही जो छोड़ कर गये हैं मेरे लिये।’’ मैनेजर ने कम्प्युटर खोला तो देखा, उसकी आँखों में आँखें डालकर बोला, ‘‘बेटा तेरे नाम कुछ नहीं है, उनके सारे खाते तुम्हारी माँ के नाम है। उसकी मर्जी है तुम्हें दे या न दे।’’ लड़का बिजली सा उठा, कागज समेटे व गुस्से में बोला, ‘‘मरता भी ढंग का काम न कर गया, अब करे ये बुढि़या जो चाहे, मैं तो चला कल अपनी नौकरी पर।’’ मैं पैसे के लिए पागल इस कलयुगी औलाद को ताकती रह गई।

वो समझदार बहू

शाम को गरमी थोड़ी थमी तो मैं पड़ोस में जाकर निशा के पास बैठ गई। उसकी सासू माँ कई दिनों से बीमार है। सोच खबर भी ले आऊँ और बैठ भी आऊँ। मेरे बैठे-बैठे उसकी तीनों देवरानियाँ भी आ गईं। ‘‘अम्मा जी, कैसी हैं?’’ शिष्टाचारवश पूछ कर इतमिनान से चाय-पानी पीने लगी। फिर एक-एक करके अम्माजी की बातें होने लगी। सिर्फ शिकायतें, ‘‘जब मैं आई तो अम्माजी ने ऐसा कहा, वैसा कहा, ये किया, वो किया।’’ आध घंटे बाद सब यह कहकर चली गईं कि उन्होंने शाम का खाना बनाना है। बच्चे इन्तज़ार कर रहे हैं। कोई भी अम्माजी के कमरे तक न गया। उनके जाने के बाद मैं निशा से पूछ बैठी, ‘‘निशा अम्माजी, आज 1) साल से बीमार हैं और तेरे ही पास हैं। तेरे मन में नहीं आता कि कोई और भी रखे या इनका काम करे, माँ तो सबकी है।’’ उसका उत्तर सुनकर मैं तो जड़ सी हो गई। वह बोली, ‘‘बहनजी, ये सात बच्चों की माँ है। इसने रात-रात भर गीला रहकर सबको पाला। ये जो आप देख रही हैं न मेरा घर, पति, बेटा, शानो-शौकत सब इसकी है। अपनी-अपनी समझ है। मैं तो सोचती हूँ इन्हें क्या-क्या खिला-पिला दूँ, कितना सुख दूँ, मेरा बेटा, इनका पोता सुबह-शाम इनके पास बैठकता है, ये मुस्कराती है, इन्हें ठंडा पिलाता है तो दुआएँ देती हैं। जब मैं इनको नहलाती, खिलाती-पिलाती हूँ, तो जो संतुष्टि मेरे पति को मिलती है, देखकर मैं धन्य हो जाती हूँ और वह बड़े ही उत्साह से बोली, एक बात और है ये जहाँ भी रहेंगी, घर में खुशहाली ही रहेगी, ये तो मेरा तीसरा बच्चा बन चुकी हैं।’’ और ये कहकर वो रो पड़ी। मैं इस ज़माने में उसकी यह समझदारी देखकर हैरान थी और म नहीं मन उसे सराह रही थी।

शबनम शर्मा

अनमोल कुंज, पुलिस चैकी के पीछे, मेन बाजार, माजरा, तह. पांवटा साहिब, जिला सिरमौर, हि.प्र. - 173021

मोब. - 09816838909, 09638569237

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. शबनम शर्मा जी की सारी ही कथाएँ वास्तविक लगीं । दिल को छू गयीं । उनका अभिनन्दन ।

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: शबनम शर्मा की लघुकथाएँ
शबनम शर्मा की लघुकथाएँ
https://lh3.googleusercontent.com/-YEWT5_mqCDk/Vu4qYoTxcJI/AAAAAAAAsdg/atnXu-xECyA/image_thumb.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-YEWT5_mqCDk/Vu4qYoTxcJI/AAAAAAAAsdg/atnXu-xECyA/s72-c/image_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/03/blog-post_529.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/03/blog-post_529.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content