माह की कविताएँ

SHARE:

डॉ बच्चन पाठक ''सलिल'' ---रचना का जन्म---- वर्षों से सूखी पड़ी  डाली में , सहसा बौर आ जाती है . अमां की कालिमावृत रजनी में...

image

डॉ बच्चन पाठक ''सलिल''


---रचना का जन्म----
वर्षों से सूखी पड़ी  डाली में ,
सहसा बौर आ जाती है .
अमां की कालिमावृत रजनी में ,
अम्बर की छाती को चीर -
सहसा मुस्कराने लगता है चाँद ,!..
पर्वत के निभृत अंचल से ,
फूट पड़ती है चुप चुप निर्झरिणी ..!.
तब अवाक हो जाते हैं वे ..-
जो हर घटना के पीछे तलाश करते हैं --
कार्य और कारण को .
वैसे ही ..वर्षों से गम सुम
किसी भावुक के अंतर से--
फूट पड़ता है कोई गीत ! ..
और वह कह उठता है ----
''मा निषाद प्रतिष्ठा त्वमगम -''
ऐसे ही होती है गीत की रचना ,
बन्धु मेरे !...रचना --रचना है ,
वह नहीं है उत्पादन ...
उसका सृजन कैलेंडर देख कर
युद्ध स्तर पर नहीं किया जा सकता .
जब कोई कवि पाता है माँ का हृदय,
सहन करता है प्रसव --वेदना
--मासों ..वर्षों ..युगों तक ..
तब जन्म होता है --
किसी कालजयी रचना का , .
रचना में होते हैं --सत्यम -शिवम -सुन्दरम
रचनाकार मनीषी होता है ,
यांत्रिक उत्पादक नहीं ...


डॉ बच्चन पाठक ''सलिल''
अवकाश प्राप्त -पूर्व प्राचार्य -रांची विश्वविद्यालय
सम्प्रति --पंचमुखी हनुमान मन्दिर के सामने
आदित्यपुर- 2 ,जमशेदपुर -1 3 ---0657/2370892


000000000000000000

डॉ. महेन्द्र भटनागर


गौरैया
बड़ी ढीठ है,
सब अपनी मर्ज़ी का करती है,
सुनती नहीं ज़रा भी
मेरी,
बार-बार कमरे में आ
चहकती है ; फुदकती है,
इधर से भगाऊँ
तो इधर जा बैठती है,
बाहर निकलने का
नाम ही नहीं लेती !
जब चाहती है
आकाश में
फुर्र से उड़ जाती है,
जब चाहती है
कमरे में
फुर्र से घुस आती है !
खिड़कियाँ-दरवाजें बंद कर दूँ ?
रोशनदानों पर गत्ते ठोंक दूँ ?
पर, खिड़कियाँ-दरवाज़े भी
कब-तक बंद रखूँ ?
इन रोशनदानों से
कब-तक हवा न आने दूँ ?
गौरैया नहीं मानती।
वह इस बार फिर
मेरे कमरे में
घोंसला बनाएगी,
नन्हें-नन्हें खिलौनों को
जन्म देगी,
उन्हें जिलाएगी.... खिलाएगी !
मैंने बहुत कहा गौरैया से —
मैं आदमी हूँ
मुझसे डरो
और मेरे कमरे से भाग जाओ !
पर, अद्भुत है उसका विश्वास
वह मुझसे नहीं डरती,
एक-एक तिनका लाकर
ढेर लगा दिया है
रोशनदान के एक कोने में !
ढेर नहीं,
एक-एक तिनके से
उसने रचना की है प्रसूति-गृह की।
सचमुच, गौरैया !
कितनी कुशल वास्तुकार हो तुम,
अनुभवी अभियन्ता हो !
यह घोंसला
तुम्हारी महान कला-कृति है,
पंजों और चोंच के
सहयोग से विनिर्मित,
तुम्हारी साधना का प्रतिफल है !
कितना धैर्य है गौरैया, तुममें !
इस घोंसले में
लगता है —
ज़िन्दगी की
तमाम ख़ुशियाँ और बहारें
सिमट आने को आतुर हैं !
लेकिन ; यह
सजावट-सफ़ाई पसन्द आदमी
सभ्य और सुसंस्कृत आदमी
कैसे सहन करेगा, गौरैया
तुम्हारा दिन-दिन उठता-बढ़ता नीड़ ?
वह एक दिन
फेंक देगा इसे कूडे़दान में !
गौरैया ! यह आदमी है
कला का बड़ा प्रेमी है, पारखी है !
इसके कमरे की दीवारों पर
तुम्हारे चित्र टँगे हैं !
चित्र —
जिनमें तुम हो,
तुम्हारा नीड़ है,
तुम्हारे खिलौने हैं !
गौरैया ! भाग जाओ,
इस कमरे से भाग जाओ !
अन्यथा ; यह आदमी
उजाड़ देगा तुम्हारी कोख !
एक पल में ख़त्म कर देगा
तुम्हारे सपनों का संसार !
और तुम
यह सब देखकर
रो भी नहीं पाओगी।
सिर्फ़ चहकोगी,
बाहर-भीतर भागोगी,
बेतहाशा
बावली-सी / भूखी-प्यासी !
============================


DR. MAHENDRA BHATNAGAR
Retd. Professor
110, BalwantNagar, Gandhi Road,
GWALIOR — 474 002 [M.P.] INDIA
M - 81 097 30048
*Ph. 0751- 4092908
E-Mail : drmahendra02@gmail.com

00000000000000000


 

अनुवाद - देवी नागरानी

खलील जिब्रान के विचार – कविताओं में
1.
कल आज और कल
मैंने अपने दोस्तों से कहा
उसे देखो, वह उसकी बाहों में झूल रही है
कल वह मेरी बाहों में झूल रही थी।
और उसने कहा: कल वह मेरी बाहों में झूलेगी
और मैंने कहा: उसे देखो, वह उसके बाजू में बैठी है
कल वह मेरे बाजू में बैठी थी।
और उसने कहा: कल वह मेरे बाजू में बैठेगी
और मैंने कहा: क्या तुम उसे उसके प्याले से पीते देख रहे हो?
और कल उसने मेरे पियाले से पिया था।
और उसने कहा: कल वह मेरे पियाले में से पिएगी
*
और मैंने कहा: देखो, वह किस तरह प्यार की निगाहों से उसे देख रही है।
और ऐसे ही प्यार से कल उसने मुझे देखा था।
और उसने कहा: कल वह मेरे ओर ऐसे ही देखेगी।
*
और मैंने कहा: उसे सुनो वह प्यार के गीत उसके कानों में गुनगुना रही है
कल उसने मेरे कान में गुनगुनाया था।
और उसने कहा: कल वह मेरे कानों में गुनगुनाएगी।
*
और मैंने कहा: देखो वह उसे गले लगा रही है 
और कल उसने मुझे गले लगाया था।
और उसने कहा: कल वह मुझे गले लगाएगी
और मैंने कहा: वह कैसी अजीब औरत है?
और उसने कहा: वह ज़िंदगी है!!
अनुवाद: देवी नागरानी
देवी नागरानी
पता:  ९-डी॰  कॉर्नर व्यू सोसाइटी, १५/ ३३ रोड, बांद्रा , मुंबई ४०००५० फ़ोन: 9987938358
 

000000000000000

सुशील शर्मा

1.नारी तुम मुक्त हो।


नारी तुम मुक्त हो।
बिखरा हुआ अस्तित्व हो।
सिमटा हुआ व्यक्तित्व हो।
सर्वथा अव्यक्त हो।
नारी तुम मुक्त हो।
शब्द कोषों से छलित
देवी होकर भी दलित।
शेष से संयुक्त हो।
नारी तुम मुक्त हो।
ईश्वर का संकल्प हो।
प्रेम का तुम विकल्प हो।
त्याग से संतृप्त हो।
नारी तुम मुक्त हो।

2. किसान चिंतित है

 

किसान चिंतित है फसल की प्यास से ।
किसान चिंतित है टूटते दरकते विश्वास से।
किसान चिंतित है पसीने से तर बतर शरीरों से।
किसान चिंतित  है जहर बुझी तकरीरों से।
किसान चिंतित है खाट पर कराहती माँ की  खांसी से ।
किसान चिंतित है पेड़ पर लटकती अपनी फांसी से।
किसान चिंतित है मंडी में लूटते लुटेरों से।
किसान चिंतित है बेटी के दहेज़ भरे फेरों से ।
किसान चिंतित है पटवारियों की जरीबों से।
किसान चिंतित है भूख से मरते गरीबों से।
किसान चिंतित है कर्ज के बोझ से दबे कांधों से।
किसान चिंतित है अपनी जमीन को डुबोते हुए बांधों से।
किसान चिंतित है भूंखे अधनंगे पैबंदों से।
किसानचिंतित  है फसल को लूटते दरिंदोंसे ।
किसान चिंतित है खेत की सूखी पड़ी दरारों से ।
किसान चिंतित है रिश्तों को चीरते संस्कारों से।
किसान चिंतित है जंगलों को नौचती हुई आरियों से।
किसान चिंतित है बोझिल मुरझाई हुई क्यारियों से।
किसान चिंतित है साहूकारों के बढ़े हुए ब्याजों से।
किसान चिंतित  है देश के अंदर के दगाबाजोंसे ।
किसान चिंतित है एक बैल के साथ खुद खींचते हुए हल से।
किसान चिंतित है डूबते वर्तमान और स्याह आने वाले कल से।

3.हाँ मैं एक स्त्री हूँ

 

हाँ मैं एक स्त्री हूँ ,एक देह हूँ।
क्या तुमने देखा है मुझे देह से अलग?
पिता को दिखाई देती है मेरी देह एक सामाजिक बोझ।
जो उन्हें उठाना है अपना सर झुका कर।
माँ को दिखाई देती है मेरी देह में अपना डर अपनी चिंता।
भाई मेरी देह को जोड़ लेता हेै अपने अपमान से।
रिश्ते मेरी देह में ढूंढते हैं अपना स्वार्थ।
बाज़ार में मेरी देह को बेचा जाता है सामानों के साथ।
घर के बाहर मेरी देह को भोगा जाता है।
स्पर्श से ,आँखों से ,तानों और फब्तियों से।
संतान उगती है मेरी देह में।
पलती है मेरी देह से और छोड़ देती है मुझे।
मेरी देह से इतर मेरा अस्तित्व
क्या कोई बता सकता है ?  

4.उसको तो जाना ही है।

 

उसको तो जाना ही है।
आज जब वह तैयार हो रही थी।
आज जब वह अपना बैग सजा रही थी।
कुछ यादें लुढ़क  रही थी आँखों में।
बचपन की सारी शरारतें ,तुतलाती बातें।
एकटक उससे नजर बचा कर देख रहा था।
उसका लुभावना शरारती चेहरा।
और रोक रहा था चश्मे के अंदर लरजते आंसुओं को।
उसकी माँ रसोई के धुएँ में छुपा रही थी लुढ़कते जज्बातों को।
दादी उसकी देख रही थी उसे निर्विकार भावों से।
दे रही थी सीख छुपाकर अपनी सिसकियाँ।
दादाजी उसके चुप थे क्योंकि वो जानते थे।
कि उसको तो जाना ही है।
इन सबसे बेखबर बिट्टो बैग सजा रही थी।
उसे बाहर जाना था पढ़ने ऊँचे आकाश में उड़ने।
0000000000


 

   वीणा भाटिया

पुरुष समाज में
ढेरों कविताएँ पढ़ती हूँ
पुरुष लिखता है
स्त्रियों पर कविताएँ
कविताओं में उड़ेलता है
वह कैसे-कैसे शब्द
शब्दों को
फूलों की तरह चुनता है
ख़्यालों में गुनता है

कविताओं में
स्त्री की छवि देख
हो जाते हैं
हम गदगद्

लेकिन...
असल ज़िन्दगी में
पुरुष को क्या हो जाता है
शायद पुरुषवाद
उसके सिर चढ़ बोलता है।

--

 

स्टेनगनें
लड़ाई बहुत लम्बी है
विरोध किया तो
स्टेनगनें तनती हैं

पुलिस सिखाती है
कपड़े पहनने के तरीके
चाल-ढाल बदलने के
सलीक़े

माना...
क़ानूनी प्रक्रिया में
सज़ा से बच सकता है
चोर दरवाज़े से
निकल सकता है

विरोध करने पर
और अधिक हिंसा दमन
कर सकता है

औरत होने की सज़ा
उस दिन हो जाएगी ख़त्म
जिस दिन महिलाएं जान जाएंगी
दमन के विरुद्ध
लावा बनना है तो ख़ुद।


ईमेल- vinabhatia4@gmail.com
मोबाइल - 9013510023

00000000000000


सुरेन्द्र बोथरा  ’मनु’


जल-दिवस पर कुछ दोहे
 
गंगा यमुना रो रहीं, धोकर जग का मैल,
शरमाएंगे नग्न हो, कल ऊंचे हिम शैल।
 
सागर में जल बढ़ रहा, भू पर मनुज जमात,
जीवन सांसत में फंसा, धरती सिकुडी जात।
 
खाने को दाने नहीं, पीने को जल नाहिं,
भवन बचेंगे भुवन में, सून बसे जिन माहिं।
 
नगर, डगर, घर, दर हुआ, कृत्रिम का शृंगार,
धरती तरसे साँस को, भटक रही जलधार।
 
नदियों में विष घुल गया, मेघ झरे तेज़ाब,
‘बिन पानी सब सून’ की, गई आबरू, आब।
 
एक निवाला मिल गया, चुल्लू में जल नाहिं,
अटक गया जो कंठ में, प्रभु मिलन पल माहिं।
 
बंधे तो जीवन जन्म ले, बिखरे व्यापे पीर,
बूँद-बूँद संचित करो, अमृतसम यह नीर।
 
मनुआ व्यर्थ न जानिए, मुफ्त मिले जो माल,
वर्षा-जल संचित किए, जन-जन होय निहाल।
-----
--


Surendra Bothra
Pl. visit my blog —
http://honest-questions.blogspot.in/
Pl. follow my twitter — https://twitter.com/Surendrakbothra

00000000000000


 

अंश प्रतिभा

अन्याय से लड़ते  लड़ते
अन्याय से लड़ते  लड़ते मैं
खूद से अन्याय कर बैठी
खुश हो मेरा सारा जहां
मैं दुःख के अंधेरे में खो गई
मैं खोई अंधेरों में इस कदर की
सही .गलत को भूल गई
न्याय के लिए  लड़ते  लड़ते मैं
अन्याय की साथी बन  गई
कौन अपना कौन पराया
सब की लाठी मैं बन गई
ऐसी मैंने लड़ी लड़ाई
कि  खुद से लड़ना भूल गई
हूं अशांत मैं फिर भी देखो 
शांत स्वभाव दिखती हूं
कैसी विडंबना मेरी ये
मैं खुद से नहीं लड़ पाती हूं
न्याय के लिए लड़ते  लड़ते मैं
खुद से अन्याय कर बैठी
---
‘‘मृत्‍यु पश्‍चात आत्‍मा मेरी’’
मृत्‍यु  पश्‍चात आत्‍मा मेरी व्‍याकुल और अशांत है।

कैसे छोड़ जांउ इस काया को,
जिसे संभाला वर्षों तक। वहीं काया आतुर है,
आज मिट्टी में मिल जाने को।
मृत्‍यु पश्‍चात आत्‍मा मेरी व्‍याकुल और अशांत है।
जब-जब देखा करती थी मैं, खुद को एक दर्पण में,
घण्‍टों निहारा करती थी मैं, अपनी सुन्‍दर काया को।
आज वहीं व्‍याकुल है काया, अग्नि मैं जल जाने को।
मृत्‍यु पश्‍चात आत्‍मा मेरी व्‍याकुल और अशांत है।
नहीं भरोसा था मुझे, कभी अपनी किस्‍मत पे,
अपनी किस्‍मत को मैंने,
लिखा खुद की स्‍याही से।
क्‍या पता था लिखते-लिखते, स्‍याही खत्‍म हो जाऐगीं,
जीवन रूपी सांसे मेरी, अचानक ही थम जायेगी।
फिर भी मेरी जिद है कि, मैं यही पर ठहरी रह जाउँगी,
मृत्‍यु पश्‍चात आत्‍मा मेरी व्याकुल और अशांत है।

कैसे तुम मेरे अपने हो, जो जीते जी कभी समझे नहीं,
और मृत्‍यु पर अश्‍क बहाते हों।

फिर भी मेरी इच्‍छा है कि, कंधा दो मेरी अर्थी को,
मृत्‍यु पश्‍चात आत्‍मा मेरी व्याकुल और अशांत है।
                   ....................... अंश प्रतिभा


000000000000000000


 

महेन्द्र देवांगन "माटी"


नारी की महिमा
*******************
नारी दुर्गा नारी अंबे , नारी ही है काली
जब भी बढ़े पाप तो, नारी हो जाती लाली
नारी से संसार चले, नारी से ही विस्तार
जगत का पालन करने वाली, नारी है आधार
अबला न समझो उसे, सब पर है वह भारी
हर काम सहज वो करती, न हो कोई लाचारी
ममता की मूरत है नारी, महिमा उनकी भारी
स्नेह सदा बरसाते रहती, है दुनिया में प्यारी
*******************



महेन्द्र देवांगन "माटी"
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला - कबीरधाम (छ. ग)
पिन- 491559
मो.- 8602407353
Email -mahendradewanganmati@gmail.com


00000000000000000


संदीप शर्मा ‘नीरव’

मैं व्योम मिलन को चला
..................................................................

मैं व्योम मिलन को चला ,
हवा के थपेडों से बचते - बचते |

झोंकों  से शिकायत नहीं मुझे , पर
हवा का रुख ही बदल गया,
तूफां उठा , भावों का |

फिर भी मैंने थपेड़े सहे ,
गिरा और उठकर फिर चला  |
मन का  छंद  पूरा करने  को ,
मैं व्योम मिलन को चला  || १ ||


मूक, विमुख नीरव सा रहा |
हृदय ने आत्माग्नि को सहा ||

है कैसा आक्रोश  इस मन का ?
है कैसा लक्ष्य इस जन का ?

अनंत में मंथन करने का
अब स्वप्न मन में है पला ,
मैं व्योम मिलन को चला  ||२||

      
ख शांत शून्य सा जो है ,
असीम सा फैलाकर भुजाएं,
भरकर अंक में इस भव को |

पर है इसका भी छोर कहीं |
होगी फिर से एक भोर कहीं ||
सोचकर इसे पाने की कला |
मैं व्योम मिलन को चला  || ३ ||

 

संदीप शर्मा ‘नीरव’
प्र. स्ना.  शिक्षक - संस्कृत
केन्द्रीय विद्यालय, टोंक |
इ मैल - educatordeea@yahoo.co.in
मोब- 8384905353
पता -86/137 SECTOR-08 TONK ROAD SANGANER JAIPUR
PIN - 302033


00000000000000000


 

जयचन्द प्रजापति


(1)

श्रृंगार रस की कविता की ताकत

मेरी श्रृंगार रस की
कविता सुनकर
एक युवती पिघल गई
घर बार छोड़कर
मेरे घर आ गई
आपकी कविता मुझको भा गई
मन समर्पित,तन समर्पित
आप सादर स्वीकार करें
मैं कई कवियों को
ठुकरा के आई हूँ
मेरे नयन
मेरे होठों की नरमी से
आपकी श्रृंगार रस की कविता
परिपक्व होगी
कहाँ से आई मुसीबत
मैं तो काका की कविता
चुरा के सुनाई थी
बड़ी ढीठ थी
वह मेरे करीब बैठ गई थी
नयनों से घूर रही थी
श्रृंगार रस मुझे पिला रही थी
अब समझा
श्रृंगार रस की कविता की ताकत
मेरा घर बार उजाड़ रह थी

(2)

बन गया कवि

घर बार बेंचकर
पत्नी मायके भेजकर
बन गया कवि
विरह वेदना में लगा जलने

वियोग का बना कवि
किसी कविता पर
एक फूटी कौड़ी न मिली
जूता फटा है
मोजा फटा है
तीन दिन से भूखा सो रहा हूँ
सारा नशा गया उतर
कवि नहीं बनूँगा
यह धंधा बहुत खोटा है
कवि खुद मरा है
दूसरों को क्या उबारेगा

 

              जयचन्द प्रजापति
              जैतापुर,हंडिया, इलाहाबाद
              मो.07880438226


00000000000000000000000

 


 

सागर यादव'जख्मी'

(तुम्हारा प्यार)

 

मन के सूने आँगन मेँ

खुशियोँ की सौगात

तुम्हारा प्यार


सहारा -थार मरुस्थल मेँ

जल का स्रोत

तुम्हारा प्यार


आत्मविश्वास की धरती पर

भरोसे की नीँव

तुम्हारा प्यार


निराशाओँ के अधियाँरे मेँ

आशा का दीप

तुम्हारा प्यार


जीवन के अन्तिम क्षण मेँ

अमृत की बूँद

तुम्हारा प्यार


टिम-टिम करते तारोँ के मध्य

पूनम का चाँद

तुम्हारा प्यार


मई-जून की दोपहरी मेँ

तरुवर की छाया

तुम्हारा प्यार

घने कोहरे ,हाड़ कँपा देने वाली ठंड मेँ

सूरज की किरण

तुम्हारा प्यार


- - -  -  - -

वे लम्हेँ

जो गुजरे तुम्हारे साथ

बड़े प्यारे लगते हैँ

सुबह के वक्त

मैं और तुम

आ मिलते कालेज मेँ

मुस्काते हुए

कुछ प्यार भरी बातेँ होती

कुछ व्यंग भरी बातेँ होती

कई बार तो तुम्हेँ निहारते

गुजर जाता पूरा दिन

कालेज की छुट्टी के दौरान

एक दूजे को

प्यासी निगाहोँ से देखकर

दोनोँ चले जाते

अपने-अपने घर |


(सागर यादव'जख्मी' नरायनपुर,बदलापुर,जौनपुर,उत्तर प्रदेश-222125)

0000000000000000000


 

धर्मेंद्र निर्मल


सुन रे ! मानव वन क्या बोले ?

मेरी जडें बाँधती मिट्टी
पाली हिल साँसे देती है।
धूप में करते श्रम, थकान
शीतल छाँव मिटा देती है।
महुए से बसंत मदमाता है
छाती पर कोयल गाती है।
मेरे एक आमंत्रण पर
वर्षा भू-पर इठलाती है।
मैं जीवों का आश्रयदाता
आँचल औषधियों की थाती।
पूछो दादी से कहाँ कैसे
हैं बन्दर भालू चीते हाथी।
धरती की शोभा मुझमें
झरनों के जीवन संगीत।
क्यों करते सैर बना उपवन
सजाते हो चित्रों से भीत।
मीठे फल पाओगे कहाँ 
होगी जब वसुधा वीरान।
जीवन चूल्हा बुझ जायेगा
जायेगा कौन साथ श्मशान।
किसकी गोदी में पली बढ़ी
पायी है सभ्यता जवानी।
कंदमूल खा छिलके ओढ़े
भूल गये आदम की कहानी।
00


आह्वान

आओ रे हम मिलकर चीरें
फैला घुप्प अंधेरा।
होगा हाथ आते ही कुनकुना
स्वर्ण सरीख सबेरा।।


    ख्वाब सजाना बहुत दूर है
    नींद हुई आँखों से ओझल
    पुरखों की इस ऋण रात में
    वर्तमान के कंबल बोझल।
    भरेंगे श्रम से रंग चाँदनी
    कल, बन प्रकृति-चितेरा।।


मैं दधीचि बन अस्थि देता हूँ
वज्र बना तुम करो प्रहार,
गीता की सौगंध है तुमको
अर्जुन सा करो संहार ।
संभव है जग में परिवर्तन
जब कटे शकुनि का फेरा।।


    नहीं समझते गिद्ध काग की
मूक प्रेम की भाषा,
इनको अपनी जेबें प्यारी
अपने हिस्से की झूठी दिलासा।
खा जायेंगे देश नोचकर
रहते अपना बसेरा।।


कब तक ताके सोन-चिरैया
परमुख भूखी प्यासी,
बरसे दूध उगले सोना
गंगा कल-कल कोकिला-सी।
हिमालय के सख्त पहर में
घुस आया है लुटेरा।।

00000000000000


 

संतोष भावरकर नीर

  अध्यात्म की ज्योत
अध्यात्म की ज्योत मन  में जल जाये तो अच्छा है।
मुश्किलों के  क्षण  जल्द ही टल जाये तो अच्छा है।।
कष्टों में एकाएक घबरा जाता हैं मेरा नाजुक ये मन।
बीत जाएँ मेरे ईश्वर,हे कष्टों भरे पल तो अच्छा है।।
जिंदगी के सफ़र में  न जाने  कौन फरिश्ता मिल जाये।
सबकी की दुआओं से मिल जाए मुझे  बल तो अच्छा है।।
समस्या से घिरा, उलझा और उलझता ही गया उलझनों में।
उम्र का यह पड़ाव भी सरलता से ढल जाए तो अच्छा है।।
कदम कदम पे ठोंकरे मिली,गिरता गया और संभला भी।
मेरी दुआओं का सिक्का हर शु चल जाए तो अच्छा है।।
हर शख्स को हर दिल की चाही ख़ुशी दे दे या  मेरे रब!
आई  हर मुसीबत सर से सबकी टल जाए तो अच्छा है।।
--


नाम:-संतोष भावरकर "नीर"
माता-श्रीमती चंद्रकांता भावरकर
पिता- स्व.श्री जे. एल.भावरकर
पत्नी-श्रीमती रजनी भावरकर
जन्म- 23/03/1975   (छिंदवाड़ा म. प्र.)
शिक्षा-  एम. ए.(संस्कृत साहित्य, हिंदी साहित्य) बी.एड,
विश्वविद्यालय- डॉ हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर
पी.जी.डी.सी.ए.(माखनलाल चतुर्वेदी राष्टीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल)
प्रकाशन/प्रसारण:-देश की राष्ट्र स्तरीय पत्र-पत्रिकाओँ में सन् 1992 से सतत प्रकाशन
(लगभग 200 कविता, आलेख,ग़ज़ल गीत,कहानी,मुक्तक,का प्रकाशन)
प्रसारण:-आकाशवाणी छिंदवाड़ा अनेकों बार कविता,ग़ज़ल, मुक्तक का प्रसारण
सम्मान:- अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित
कार्यक्षेत्र:- शिक्षा विभाग (अध्यापक)
संपर्क-सालीचौका रोड,गाडरवारा जिला-नरसिंहपुर (म. प्र.)


000000000000000


 

अंजली अग्रवाल

कविता – “आज”
झूठ ताज पहने घूम रहा हैं आज॰॰॰॰
सच तो दाने — दाने को हैं मोहताज॰॰॰॰
टेबल के नीचे से होता हैं भ्रष्‍टाचार का सत्‍कार॰॰॰॰
चेहरे पर मुखौटा पहनने का बन गया हैं रिवाज॰॰॰॰
ईमानदारी के फूल कहाँ खिलते हैं आज॰॰॰॰
तभी तो काँटों से भर गया हैं संसार॰॰॰॰   
अधर्म पाँव पसारे बैठा है॰॰॰॰
विश्‍वास का दीपक बुझ रहा हैं आज॰॰॰॰
संवेदना खो रहा हैं समाज॰॰॰॰
आज इंसान ही इंसान के लिये बन गया हैं अभिशाप॰॰॰॰
झूठ ताज पहने घूम रहा हैं आज॰॰॰॰
सच तो दाने — दाने को हैं मोहताज॰॰॰॰

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. सबसे पहले तो मैं रचनाकार के संपादक महोदय एवं सभी सहयोगियों को धन्यवाद देता हूँ जिसके अथक प्रयास से यहाँ सभी प्रकार के लेख कहानी कविता आदि का प्रकाशन हो रहा है
    इसमें प्रकाशित सभी रचनाएँ एवं लेख बहुत ही बढ़िया है
    सभी को मेरी ओर से हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
    महेन्द्र देवांगन माटी

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: माह की कविताएँ
माह की कविताएँ
https://lh3.googleusercontent.com/-ASwLakzClCI/VwC-4M1S7XI/AAAAAAAAswE/B6fTllWxUcQ/image_thumb%25255B5%25255D.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-ASwLakzClCI/VwC-4M1S7XI/AAAAAAAAswE/B6fTllWxUcQ/s72-c/image_thumb%25255B5%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/04/blog-post_18.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/04/blog-post_18.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content