1. जब आँख खुली -------------------- --- सुशांत सुप्रिय कल...
1. जब आँख खुली
--------------------
--- सुशांत सुप्रिय
कल रात
मैंने एक सपना देखा
मगर वह कोई सपना नहीं था
सपने में मुझे
कुछ जोकर दिखे
लेकिन वे कोई जोकर नहीं थे
वहाँ सर्कस जैसा
माहौल था
किंतु वह कोई सर्कस नहीं था
वहाँ एक अमीर आदमी
लाया गया जो
वास्तव में कोई और ही था
वहाँ झक्क् सफ़ेद धोती-कुर्ते
और उजले सफ़ारी सूटों में
कुछ जादूगर आए
जो असल में जादूगर थे ही नहीं
उन्होंने उस अमीर आदमी को
जोकरों की तालियों के बीच
देखते ही देखते
एक बीमार भिखारी बना दिया
लेकिन यह कोई खेल नहीं था
बहुत देर बाद
जब मेरी आँख खुली
तो मैंने पाया
कि वे सफ़ेदपोश
असल में राजनीतिज्ञ थे
और मेरी बगल में जो
बीमार भिखारी पड़ा कराह रहा था
वह दरअसल मेरा देश था
----------०----------
2. जो बचा रहा
----------------
--- सुशांत सुप्रिय
मैं तो पेड़ था
बचा रहा
पशु था जो वह मेरी
पत्तियाँ खा कर चला गया
भूख पशु की देह में
चुभी कँटीली झाड़ी थी
पत्तियों में उस चुभन का दर्द
दूर करने वाला मरहम था
पशु के कुलाँचों में बदल गई
मेरे पेड़ की हरी पत्तियाँ
मुझमें बचा रहा
उसे नव-जीवन देने का संतोष
----------०----------
3. विडम्बना
-------------
--- सुशांत सुप्रिय
जब सुकरात को
मृत्यु-दंड दिया जा रहा था
तुम किसी राज-भवन में
भोग-विलास का आनंद उठा रहे थे
जब ईसा को
सूली पर लटकाया जा रहा था
तुम किसी वन में
आखेट का मज़ा ले रहे थे
जब गाँधी को
गोली मारी जा रही थी
तुम आज़ादी का
जश्न मना रहे थे
जब जयप्रकाश नारायण को
जेल में ठूँसा जा रहा था
तुम अपनी
सरकारी नौकरी बचा रहे थे
जब भ्रष्टाचार के विरुद्ध
आंदोलन चल रहा था
तुम अपने बेड-रूम में
टी. वी . देखते हुए
इसे महज़ एक ख़बर की तरह
पचा रहे थे
जब उनके ज़ुल्म से
पीड़ित हो कर रोहित वेमुला
आत्म-हत्या कर रहा था
तुम आइ.पी.एल. की
चियर-लीडर्स देख कर
अपना मन बहला रहे थे ...
फिर भी हर युग में
तुम्हें शिकायत रही है कि
दुनिया में कितना अन्याय
अपराध और भ्रष्टाचार है
और इनके विरुद्ध
कोई कुछ करता क्यों नहीं !
------------०------------
1. ईंट का गीत
-----------------
--- सुशांत सुप्रिय
जागो मेरी सोई हुई ईंटो
जागो कि
मज़दूर तुम्हें सिर पर
उठाने आ रहे हैं
जागो कि राजमिस्त्री
काम पर आ गए हैं
जागो कि तुम्हें
नींवों में ढलना है
जागो कि तुम्हें
शिखरों और गुम्बदों पर
मचलना है
जागो मेरी पड़ी हुई ईंटो
जागो कि मिक्सर चलने लगा है
जागो कि तुम्हें
सीमेंट की यारी में
इमारतों में डलना है
जागो कि तुम्हें
दीवारों और छतों को
घरों में बदलना है
जागो मेरी बिखरी हुई ईंटो
जागो कि तुम्हारी मज़बूती पर
टिका हुआ है
यह घर-संसार
यदि तुम कमज़ोर हुई तो
धराशायी हो जाएगा
यह सारा कार्य-व्यापार
जागो मेरी गिरी हुई ईंटो
जागो कि तुम्हें
गगनचुम्बी इमारतों की
बुनियाद में डलना है
जागो कि तुम्हें
क्षितिज को बदलना है
वे और होंगे जो
फूलों-सा जीवन
जीते होंगे
तुम्हें तो हर बार
भट्ठी में तप कर
निकलना है
जागो कि
निर्माण का समय
हो रहा है
----------०----------
2. कामगार औरतें
-------------------
--- सुशांत सुप्रिय
कामगार औरतों के
स्तनों में
पर्याप्त दूध नहीं उतरता
मुरझाए फूल-से
मिट्टी में लोटते रहते हैं
उनके नंगे बच्चे
उनके पूनम का चाँद
झुलसी रोटी-सा होता है
उनकी दिशाओं में
भरा होता है
एक मूक हाहाकार
उनके सभी भगवान
पत्थर हो गए होते हैं
ख़ामोश दीये-सा जलता है
उनका प्रवासी तन-मन
फ़्लाइ-ओवरों से लेकर
गगनचुम्बी इमारतों तक के
बनने में लगा होता है
उनकी मेहनत का
हरा अंकुर
उपले-सा दमकती हैं वे
स्वयं विस्थापित हो कर
हालाँकि टी.वी. चैनलों पर
सीधा प्रसारण होता है
केवल ' विश्व-सुंदरियों ' की
' कैट-वाक ' का
पर उससे भी
कहीं ज़्यादा सुंदर होती है
कामगार औरतों की
थकी चाल
----------०----------
3. मेरा सपना
---------------
--- सुशांत सुप्रिय
एक दिन मैं
जैव-खाद में बदल जाऊँ
और मुझे खेतों में
हरी फ़सल उगाने के लिए
डालें किसान
एक दिन मैं
सूखी लकड़ी बन जाऊँ
और मुझे ईंधन के लिए
काट कर ले जाएँ
लकड़हारों के मेहनती हाथ
एक दिन मैं
भूखे पेट और
बहती नाक वाले
बच्चों के लिए
चूल्हे की आग
तवे की रोटी
मुँह का कौर
बन जाऊँ
प्रेषकः सुशांत सुप्रिय
A-5001 ,
गौड़ ग्रीन सिटी ,
वैभव खंड ,
इंदिरापुरम ,
ग़ाज़ियाबाद - 201014
( उ. प्र. )
मो: 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com
COMMENTS