कहानी संग्रह - अपने ही घर में / मैं पत्थर नहीं बनना चाहती : लखमी खिलाणी

SHARE:

कहानी संग्रह - अपने ही घर में / मैं पत्थर नहीं बनना चाहती लखमी खिलाणी ‘पापा ! आपको दिल का दौरा पड़ा, एम्बुलेंस में नर्सिंग होम ले जाया ग...

कहानी संग्रह - अपने ही घर में /

मैं पत्थर नहीं बनना चाहती

लखमी खिलाणी

‘पापा ! आपको दिल का दौरा पड़ा, एम्बुलेंस में नर्सिंग होम ले जाया गया, तीन-चार दिन इन्टेंन्सिव केअर यूनिट में रखा। किसी ने मुझे फोन भी नहीं किया।’

ये तो उस दिन मुम्बई से आए चाचा मोतीराम अचानक न्यू मार्केट में मिल गए। शिकवा करते हुए कहा - ‘ये क्या विमला ! भाऊ को इतनी तकलीफ थी, दूसरे शहरों से कहाँ-कहाँ से लोग उन्हें देखने नर्सिंग होम में आए। एक तुम ही अपने शहर में रहते हुए भी नज़र नहीं आई। मुझे लगा उसकी आँखें तुझे ही ढूँढ़ रही थीं। वे बात नहीं कर पा रहे थे, पर उनके होंठ तेरा ही नाम उच्चारते नज़र आए।’

आपकी बीमारी का सुनकर मेरी जो हालत हुई, क्या बताऊँ ? उसी व्याकुलता में चाचा मोतीराम से आपके बारे में पूछा था। आप अभी कैसे हैं ? कौन से नर्सिंग होम में हैं ? क्या मैं आपसे अभी, इस वक़्त मिल सकती हूँ ?

मैं उस दिन शाम को पाँच बजे नर्सिंग होम पहुँची। मुख्य द्वार पर ही बड़े भाई श्याम मिल गए। मैंने उन्हें उलाहना देते हुए कहा - ‘क्यों भैया, तुमने मुझे पापा की बीमारी की खबर भी नहीं दी ?’

श्याम ने रूखे अंदाज़ में जवाब दिया - ‘डैडी को लेकर हम पहले ही इतने परेशान थे... निर्मला ने ज़रूर तुम्हें फोन किया होगा, पर आजकल फोन की जो हालत है...!’

उस वक़्त मम्मी जी भाभी निर्मला का हाथ पकड़कर अन्दर आ रही थी। शायद वे भी अभी ही घर से कार में आए थे। मैंने दौड़कर मम्मी को पुचकारते हुए पूछा- ‘ममी अभी पापा की तबीयत कैसी है ?’

‘अभी तो बेहतर है बेटे ! पर इस बीमारी का क्या भरोसा ?’ मम्मी ने कहा।

‘कौन-सा डाक्टर पापा का इलाज कर रहा है ? कहो तो मैं डा. इब्राहीम को बुला लाऊँ। वह शहर का बेहतरीन हार्ट स्पेशलिस्ट है।’

‘नहीं, ज़रूरत नहीं है। डा. बॅनर्जी भी नामी डाक्टर हैं। अभी डैडी की तबीयत में काफ़ी सुधार है। बस डाक्टर ने किसी भी विजिटर को भीतर जाकर उनसे मिलने की सख़्त मनाही की है’ श्याम ने कहा।

‘मैं सिर्फ़ एक मिनट के लिये उन्हें देख आऊँगी ! मैं कमरे में भीतर भी नहीं जाऊँगी, मुझे यह विजिटर्स कार्ड दे दो।’

मैंने श्याम से अनुरोध किया। इस नर्सिंग होम में बिना पास के भीतर जाने ही नहीं दिया जाता। पर श्याम भी जैसे अड़ गया - ‘मैं किसी भी हालत में किसी को भी अन्दर जाने नहीं दूँगा। हमें डैडी की जान प्यारी है। देख नहीं रही हो हम सब खुद बाहर खड़े हैं ?’

‘देखो, समझदार बनो। मैं वादा करती हूँ कि मैं भीतर नहीं जाऊँगी। पर्दे के पीछे से ही उनका दर्शन करके लौट आऊँगी।’

पर निर्दयी श्याम ने एक न सुनी। भाभी निर्मला खामोश बुत की तरह खड़ी रही। मम्मी ने बेटे की हिमायत करते हुए कहा - ‘विमला तुम ज़िद क्यों करती हो, दो तीन दिन की तो बात है। तेरे बाबा जल्द ही ठीक होकर घर आ जाएँगे। फिर ज़रूर उनके साथ बैठकर पहले जैसी घंटों भर बातें करना। वैसे भी अपने बेटी-बेटियों से उनका मोह तुझमें ज़्यादा है।’

उस दिन मैं निराश ही लौट आई !

दूसरे दिन भी मैं निराश ही लौट आई !!

तीसरे दिन भी मैं निराश ही लौट आई !!!

श्याम, निर्मला और मम्मी आपके कमरे के बाहर मेरा रास्ता रोककर खड़े रहे। उन्हें कितना मनाने की कोशिश की, पर उन्होंने मेरी एक न सुनी। एक तरफ़ चाचा मोतीराम कह गए कि आप मुझसे मिलने के लिये आतुर हैं, मुझसे कोई ज़रूरी बात करने को व्याकुल, दूसरी तरफ़ श्याम भाई कहते थे कि आप मुझसे नाराज़ हो और मुझसे मिलना नहीं चाहते। मुझे देखकर आपके ब्लड प्रेशर बढ़ जाने की संभावना ज़्यादा है।

नहीं पापा नहीं ! मैंने आपको बेहद चाहा है। मैं आपका बुरा कैसे चाहूँगी ? मैं सिर्फ़ एक बार आपको देखना चाहती हूँ, आपकी सेवा करना चाहती हूँ। एक बार पहले भी जब आपको टाईफाइड हुआ था, मैंने रात दिन आपके सिरहाने बैठकर, आपकी पेशानी पर ठंडी गीली पट्टियाँ बदलती रही थी। ठीक होने के बाद आपने मेरा हाथ सर पर रखकर कहा था - ‘विमला तुम मेरी धर्म की बेटी नहीं, पिछले जन्म की मेरी माँ हो।’

‘पर पापा आज श्याम, निर्मला और मम्मी मुझे गैर क्यों समझ रहे हैं। अब तक तो मैं आपके घर की सदस्या बनकर रही हूँ। आपके मुझपर इतने एहसान हैं, उन्हे मैं कैसे भुला सकती हूँ? अरुण तो अचानक मुझे वैधव्य का दुख देकर खुद चलता बना। उस वक़्त आप अगर मेरे सर पर अपना हाथ न रखते तो न जाने मेरी क्या हालत हुई होती। आपने ही भाग-दौड़ करके मुझे अरुण वाली फर्म में नौकरी दिलाई। इन्श्योरेन्स के पैसे वसूल करके दिये। बच्चों को अच्छे स्कूल में दाख़िला लेकर दिया। जब कभी मुझपर कोई विपत्ति आई, मैं दौड़ती हुई आपकी शरण में आई, फिर वह मकान मालिक की धमकी हो या बास की बुरी नज़र ! एक विधवा का अपने बच्चों के साथ अकेले जीवन काटना कितना दुश्वार है, इस बात का अहसास मुझे बखूबी होने लगा था।

आपसे जुड़े हुए बाप-बेटी के पवित्र रिश्ते को भी लोगों ने शक की निगाह से देखा। खुद श्याम भैया, निर्मला भाभी और मम्मी को भी आपका मेरे यहाँ आकर घंटों तक बैठना और अपने दिल की बातें मेरे साथ करना नागवार गुज़रा। आज का इन्सान सही अथरें में कितना तन्हा होता जा रहा है, वह अपने छोटे बड़े दर्द अपने भीतर ही भीतर जब्त करता रहता है। कोई एक खुशनसीब होगा जिसे भरोसेमंद दोस्ती का कंधा मिल जाता है, जिसपर वह अपना सिर टिकाए, रोए, अपने आपको बाँटकर हल्का महसूस करे। हम दोनों यक़ीनन ऐसे खुशनसीब लोगों में से थे जिनको सीने में समाए दुख-सुख बाँटने के लिये मन चाहा आधार मिल गया था। फिर भी कम ज़हनी लोगों की मनोवृत्ति स्त्री-पुरुष के शारीरिक संबंध से ऊपर उभरकर, भावनात्मक संबंध की कल्पना कर पाने में असमर्थ रही है।

चाचा मोतीराम आपकी ख़ैरखबर लेने के लिये मुम्बई से लौट आया है। यह सुनते ही मैं दौड़कर उनके पास गई - ‘चाचा ! श्याम भैया और वे सब मुझे पापा से मिलने नहीं देते। आप तो कह रहे थे कि पापा मुझे देखने को तड़प रहे हैं।’

‘यह तुम क्या कह रही हो ?’ मेरी बात सुनकर चाचा मोतीराम हैरत में पड़ गए। ‘तुम्हें भाऊ से मिलने नहीं दे रहे हैं ? यह तो सरासर अन्याय है। सारे जहान को पता है कि भाऊ का तुझसे खास स्नेह रहा है। मरने वाले की आखिरी इच्छा दोस्त क्या दुश्मन भी पूरा करने को तत्पर रहता है ...।’

कुछ देर सोचने पर चाचा अचानक मेरी तरफ़ निरन्तर देखते हुए बोले - ‘सच कहो, कहीं तुमने रुपये पैसे उनके पास अमानत के तौर पर तो नहीं रखे हैं ?’

चाचा की बात सुनकर मैं सुन्न-सी हो गई। इस तरफ़ तो मेरा ध्यान ही नहीं गया था। अपने जीवन की तमाम जमा पूँजी, अपने बच्चों का भविष्य तो मैंने इनके पास ही गिरवी रख छोड़ा था। अगर वह रक़म मुझे वापस न मिली तो फिर समझो कि मेरा सर्वनाश तय है।

‘पापा ! आपने ही तो सलाह दी थी कि अरुण की इन्श्योरेन्स से मिला पैसा और उसकी बचत की रक़म सब श्याम के पास ब्याज पर रख दो। हर महीने तुम्हें चार-पाँच हज़ार घर बैठे मिलते रहेंगे। उससे तेरे बच्चों की बेहतर परवरिश होगी। तुम्हारी रक़म को कोई जोखिम नहीं है, इस बात का ज़ामिन मैं हूँ !

‘नहीं पापा नहीं ! मुझ बेसहारा विधवा औरत की अमानत में ख़्यानत आप कभी नहीं करेंगे। मुझे कभी भी धोखा नहीं दोगे। मेरा आपमें पूरा भरोसा है।

मैं चाचा से कहती हूँ - ‘नहीं चाचा, यह बात हो ही नहीं सकती। यह सच है कि मैंने पापा की सलाह पर श्याम भैया के पास पैसा ब्याज पर रखा है। पर श्याम भैया के पास रुपयों की क्या कमी है। उनके पास तो अपनी करोड़ों की दौलत है, ज़मीन-जायदाद, मोटर-गाड़ियाँ...।’

‘तुम बहुत ही भोली औरत हो। रुपये पैसों की कमी हमेशा साहूकारों को ही महसूस होती है। उनकी लालच का कुआँ कभी भी नहीं भरता।’

चाचा की बात सुनकर मेरे बदन में बिजली की लहर दौड़ जाती है।

‘पर चाचा ! मेरे पास पक्की रसीद है।’

मुझे यों डूबता हुआ देखकर चाचा को मुझपर रहम आता है, कहता है - ‘उठो विमला, अब देर मत करो। डा. बॅनर्जी से कहकर मैं तुम्हें मुलाक़ात वाले समय से पहले ही उसके पास ले चलता हूँ। इन्होंने तुम्हारे साथ सरासर अन्याय किया है।’

‘भाऊ आँखें खोलो, देखो आपसे कौन मिलने आया है ?’ चाचा आपको जगाने का प्रयास करते हैं।

‘पापा, मैं हूँ आपकी बेटी विमला।’ मैं दौड़कर आपका हाथ पकड़ती हूँ। आपकी छाती पर सर रखकर रोना चाहती थी। पर मौके की नज़ाकत देखते हुए अपने आप पर क़ाबू रखती रही।

आप आँखें खोलकर लगातार मेरी ओर देख रहे हैं, उनमें शिकायत है, उलाहना है- ‘इतने दिन तुम कहाँ थीं ? तुमने मेरी कोई ख़ैर-खबर ही नहीं ली।’ आपके हाथ की पकड़ मज़बूत होती जा रही है।

‘पापा ! मैं आपको कैसे बताऊँ कि इन्होंने मुझे आपसे मिलने ही नहीं दिया, मुझ पर बंदिश लगा दी। अब आप ठीक हो जाएँ, मैं आपको अपने घर ले चलूँगी, आपकी सेवा करूँगी।’

‘नहीं, पापा नहीं ! मैं आपसे नाराज़ नहीं हूँ, आप तो हमारे खैर-ख़्वाह रहे हैं, हमेशा हमारा भला चाहा है। मुझे इसमें कोई भी शक नहीं है।

पापा, आपकी आँखों से आँसू लुढ़ककर गालों को गीला करते हुए बह रहे हैं। लगता है आपकी जबान तालू को लग गई है। आप कुछ कहना चाहते हैं, पर कोशिश के बावजूद शब्द आपका साथ नहीं दे पा रहे हैं। सिर्फ़ आपके हाथ की पकड़ मज़बूत और मज़बूत होती जा रही है।

मैं सब कुछ समझ रही हूँ पापा ! आप मजबूर हैं, मेरे लिये कुछ न कर पाने का आपको बेहद अफ़सोस है। खुद को गुनहगार महसूस कर रहे हैं आप। आपने अपने बेटे पर विश्वास किया, अपने इर्द-गिर्द के सभी सगे-संबंधियों पर विश्वास किया। पर आज की यह दुनिया विश्वास के क़ाबिल नहीं रही है, वह अपनी पाक निष्ठा खो चुकी है, भावनाओं से वंचित होकर पत्थर बन चुकी है।

पर मैं पत्थर बनना नहीं चाहती पापा, मेरे असली माता-पिता तो मेरे जन्म के बाद ही एक हादसे में गुज़र गए। उसके बाद आपमें ही मैंने अपने माँ-बाप को पाया। मैं अपना वह विश्वास खोना नहीं चाहती, अपने सीने से लगाकर उसे संजोना चाहती हूँ। इस विश्वास के खोते ही मैं खुद को भी खो बैठूँगी !

आपकी आँखें मुँद गई हैं, चेहरा शांत हो गया है, हाथ की पकड़ ढीली होने लगी है। शायद आप इस घड़ी का ही इन्तज़ार कर रहे थे। ना पापा ना ! आपको मुझसे माफ़ी की तलब करने की कोई ज़रूरत नहीं। अब मैं इस दुनिया को कुछ-कुछ समझने लगी हूँ। यह कितनी मक्कार, फरेबी, खुदमतलबी बनकर अपना चेहरा गँवाकर बेमतलब बन गई है।

श्याम भैया कमरे में आते ही मुझे देखकर कितना शोर मचा रहे हैं - ‘तुम्हें अन्दर आने किसने दिया ? निकलो, बाहर निकलो !’

मुझे इस पत्थर पर दया आ रही है। पापा मैं आपसे इजाज़त ले रही हूँ। विश्वास कीजिये, आपका दिया हुआ प्यार, स्नेह, विश्वास मेरी अनमोल पूँजी बनकर रहेगी, और उसे कोई भी मुझसे न छीन सकेगा, न लूट सकेगा।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी संग्रह - अपने ही घर में / मैं पत्थर नहीं बनना चाहती : लखमी खिलाणी
कहानी संग्रह - अपने ही घर में / मैं पत्थर नहीं बनना चाहती : लखमी खिलाणी
https://lh3.googleusercontent.com/-POxwWihRZTk/VzrYcRbKX1I/AAAAAAAAtsk/P4PPe63-0Fc/image_thumb1_thumb.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-POxwWihRZTk/VzrYcRbKX1I/AAAAAAAAtsk/P4PPe63-0Fc/s72-c/image_thumb1_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/05/blog-post_56.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/05/blog-post_56.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content