कहानी संग्रह - अपने ही घर में / माई बाप : सुगन आहूजा

SHARE:

माई-बाप सुगन अहूजा चालीस साल का दुर्बल रामू लड़खड़ाता हुआ पेड़ के नीचे उठ खड़ा हुआ, लाठी के आधार पर वह अपनी झोंपड़ी की तरफ़ सरकने लगा। सा...

माई-बाप

सुगन अहूजा

चालीस साल का दुर्बल रामू लड़खड़ाता हुआ पेड़ के नीचे उठ खड़ा हुआ, लाठी के आधार पर वह अपनी झोंपड़ी की तरफ़ सरकने लगा। सामने पेड़ से एक नन्हा पक्षी, फड़कता हुआ उनके सर के ऊपर से गुज़रकर, आसमान की ओर उड़ा। रामू ने गर्दन घुमाकर पक्षी को देखा, पर वह उसे सिर्फ़ एक पल के लिये ही देख पाया, दूसरे पल वह पक्षी आसमान की ऊँचाइयों में ग़ायब हो गया और वह बेमतलब आसमान की ओर देखता रह गया। यकायक, बदन में एक ठंडी सिरहन के साथ, उसे एक ख़याल आया... मौत का! क्या उस पंछी की फड़फड़ाहट में उसके लिये मौत का पैगाम तो नहीं था ! उसके होठों पर फीकी-सी मुस्कराहट आकर ठहर गई। भला, ये भी कोई नई बात होगी क्या? गुज़रे कितने हफ़्तों से मौत, नसीब और भगवान के ख़याल के सिवाय और कोई ख़याल उसके पास फटका भी नहीं है।

हाँ, दूसरा भी एक ख़याल ज़रूर है जो उस अर्से में कभी-कभी उसके छोटे गंवार दिमाग पर भूत की तरह सवार रहा है, मुखिया के गोदाम पर धावा बोलने का। ऐसे ख़्याल के वक़्त शुरू में उसकी नसें ज़्यादा तन जाती थीं, सांस तेज़ और गर्म हो जाती थी। उस वक़्त तसव्वुर ही तसव्वुर में गोदाम के पहरेदारों में से चार-पाँच को अपनी लम्बी और मज़बूत लाठी से घायल करके ज़मीन पर पछाड़ देता था। पर सिर्फ़ चार-पाँच को, ज़्यादा को नहीं। हाँ, एक दो बार तसव्वुर पर ज़ोर देकर उसने छः-सात पहरेदारों को जख़्मी कर दिया, पर फिर बाकी पहरेदारों के हाथों खुद भी लहूलुहान होकर ज़मीन पर गिर पड़ा था और उस दिन के बाद वह मर गया था शायद, जब भनक पड़ते ही उसे जेल भेजा गया। मतलब तो उसकी मज़बूत बाहें अकेले कभी मुखिया के गोदाम पर हमला न कर पाईं, अनाज की एक गोनी भी हासिल न कर पाई थी और आजकल तो उसकी निर्बल बाहों के लिये ऐसा गँवार जांबाज़ तसव्वुर भी संभव नहीं था।

हिन्दुस्तान के गँवार गाँव वाले जब कभी ज़िन्दगी और मौत के बीच में लड़खड़ाते हैं, तब सिर्फ़ क़िस्मत खराब होती है या भगवान उनसे रूठ जाता है। रामू ने एक खुश्क मुस्कराहट के साथ ऊपर आसमान की ओर निहारा और चींटी को कण और हाथी को मन देने वाले जगत-पिता, अन्न-दाता भगवान से मुख़ातिब होकर कहा- ‘भगवान, अगर भूख से बेहाल करके चालीस बरस में मारना था तो मुझे पैदा करने की तकलीफ क्यों की? मेरा बाप इस उम्र में दस रोटियाँ एक ही वक़्त में खाता था, जब उसकी सारी पलकें सफ़ेद हो गईं थी तब भी वह छः रोटियाँ आराम से खाता रहा। क्या मेरे लिये तुम्हारे पास दो रोटियाँ भी नहीं हैं ? मेरे मासूम बच्चों के लिये एक रोटी भी नहीं है ? सारे गाँव के मासूम बच्चे भूख से तड़प रहे हैं, उनपर तुम्हें दया नहीं आती ? गुज़रे हफ़्ते गाँव में दस आदमी मर चुके हैं, अभी तक रहम नहीं आता ?’

पर आसमान या भगवान की ओर से आकाशवाणी के रूप में कोई भी जवाब नहीं आया और धुंधलकी शाम के अंधेरे में दूर-दूर कहीं कुछ सितारे बदस्तूर बेपरवाही से आँखें टिमटिमाते रहे।

लाठी के आधार पर लड़खड़ाता रामू अपनी झोपड़ी के पास पहुँचा तो उसे अजीब लगा। ग़रीबों के झोपड़ों के द्वार भी कभी बंद रहे हैं ? दो हांडियों और एक चटाई को भी कहीं चुराए जाने का खौफ़ रहा है, वह भी शाम के वक़्त। आजकल उसका परिवार भी और परिवारों की तरह मौत के साये में जी रहा था।

दरवाज़ा खड़का और दरवाज़ा खुला, जिसके खुलते ही एक तेज़ ज़ायकेदार खुशबू आकर उसकी नाक से टकराई। रामू ने दो-तीन बार ‘सूं-सूं’ करके तसल्ली की, और उसकी नस-नस में ज़िन्दगी की हसरत दौड़ आई। बीवी को थैला देकर वह जलते हुए चूल्हे और चूल्हे पर रखी कढ़ाई की ओर लपका। पर उसकी खुशी में डूबी हुई आवाज़ ‘रोटी... रोटी...’ हलकी चीख में बदल गई। वह खुद को संभाल न पाया और ज़मीन पर गिर गया। गंगा, जिसने रामू के पीछे दरवाज़ा बंद कर लिया था, एक़दम रामू को ज़मीन से उठाने लगी, पर रामू दुखती-कराहती हड्डियों की परवाह न करते हुए ज़मीन पर बैठा रहा और खुश्क जबान से सवाल किया- ‘यह जीवन-रस किसने दिया है?’

‘सुनाती हूँ आप उठिये तो सही।’

पर रामू खुद ही चूल्हे की तरफ़ सरकता रहा और मैले कपड़े पर पड़ी दो गर्म रोटियों के ऊपर दोनों हाथ रखकर, फिर लेट गया। ज़मीन पर लेटे लेटे रोटियों को हाथों से लपेटते, खोलते, वह शायद भूल गया कि उसने सवाल किया था कि वह जीवन-रस किसने दिया है। या शायद अब उसे उस जवाब की ज़रूरत नहीं रही ? पर गंगा को थी, जिसने सुनाना शुरू किया ‘सुनते हो मुखिया के बेटे गोविंद के पांव में मोच आ गई है।’

‘हूँ ? हाँ... फिर, चलो अच्छा हुआ !’ सर थोड़ा ऊपर उठाकर रामू फिर गरम-गरम रोटियों को लपेटता, खोलता रहा। अब उसने नाक से दो-तीन लंबी सांसें ली।

‘बदरी प्रसाद आया था मुझे बुलाने मालिश के लिये।’

‘शामू ने, गोपू ने रोटी खाई है?’ सुना-अनसुना करते रामू ने पूछा।

‘जी हाँ, बहुत दिनों के बाद रोटी नसीब हुई, इस कारण खाने से ही एक नशा उन्हें घेरे रहा। खाते ही नींद आने लगी, अब सोए हैं।’

‘नहीं, नहीं, बाबा, मैं अभी जाग रहा हूँ, मुझे नींद नहीं आ रही है’ रामू के बड़े बेटे ने कहा।

‘क्यों शामू?’

‘बाबा, मैं सोच रहा हूँ कि कल नहीं तो परसों गोविंद का पैर ठीक हो जाएगा, फिर खाना कहाँ से लाएँगे ? उसके सिवा गाँव के और आदमी कब तक घास पत्तों पर जी सकेंगे ? इस गाँव में तीन दिनों में पाँच आदमी पेट के दर्द के कारण मरे हैं। कहते हैं बिहार के गाँव-गाँव का यही हाल है।’

‘सो जा !’ रामू ने प्यार से झिड़क दिया। उसे शामू की वह बेवक़्त की फिलासफी नहीं भाई। इस वक़्त उसे अपनी ही सोच का अंदाज़ भा रहा था। दो दिनों के लिये ही सही, ज़िन्दगी को या मौत को कुछ खींच तो सकते थे ! सिर्फ़ दो दिन ही क्यों ? दो दिन खाकर, दो हफ़्ते और भी मौत का इन्तज़ार किया जा सकता है। रोटियों को हाथ में दबाते, रामू सोच रहा था और उसी बीच सरकार, माई-बाप ज़रूर कोई न कोई बन्दोबस्त कर लेगी, थानेदार और मुखिया ने तो एक-दो का आसरा दिया है ...। पर वहीं रामू के चेहरे का रंग फीका पड़ गया, अपने आप से कह बैठा ‘पर वो तो यह एक दो दिन का आसरा, दो महीनों से देते रहे हैं और इसी बीच गाँव के दस आदमी जो तीन महीने पहले मुझ जैसे शेर मर्द थे, मर गए हैं। तीन मुझ जैसे शेर मर्द भूख में मर गए !’

‘पर रामू नहीं मरेगा’ उसने खुद से कहा और हाथ में लिपटी हुई रोटियों का एक बड़ा निवाला काटा। ‘हाँ रामू नहीं मरेगा, बस नहीं मरूँगा।’ खुद को भरमाते हुए, मुँह को चलाते हुए, आँखों को मटकाते हुए वह फुसफुसाता रहा।

यहाँ उसे गंगा की हाज़िरी का अहसास हुआ, जो टकटकी बाँधे उसे देख रही थी।

‘तूने भी खाई है न रोटी ?’ रामू ने पूछा।

‘तुम खाओ, मुझे भूख नहीं है। बदरी की बीवी ने ज़ोर करके खिलाया, आधी रोटी से ज़्यादा न खा सकी। डर था कहीं कुछ हो न जाए। बहुत दिनों के बाद ऐसे एक़दम से ज़्यादा खाया जाता है क्या ?’

‘पगली, दो-तीन रोटियाँ खाकर आतीं।’

‘हाँ, माँ खाकर आती ना !’

‘तुम, अभी तक जाग रहे हो ?’

‘हाँ बाबा, मैं अभी तक सोच रहा हूँ...!’

‘बांवले, अभी तक क्या सोच रहे हो ?’ रोटियों से एक और छोटा निवाला काटते रामू ने पूछा।

‘बाबा, सरकार को माई-बाप क्यों बुलाते हैं ?’

‘क्योंकि वह माँ-बाप की तरह सार-संभार लेती है।’

‘पर आपने खुद खाने से पहले अम्मा से हमारे बारे में पूछा, और अम्मा ने तो अभी तक खाया ही नहीं, क्या सरकार...?.’

‘जहन्नुम में जाय तेरी सरकार और उनके साथ तू भी। मैं पूछता हूँ इतनी गहराई से तुम सोचते ही क्यों हो ?’ और उसने तीसरा निवाला रोटी का लिया।

‘पर बाबा, मैं कहाँ जान बूझकर ये सब सोचता हूँ। भूख में खुद ही ऐसी बातें दिमाग़ में चली आती हैं।’

‘बहुत बड़ा दिमाग है न बांवले।’ रामू ने निवाला गले के नीचे उतारते हुए अपने ‘जहन्नुम’ की कही कड़वी बात पर प्यार का हलका रंग चढ़ाते कहा।

सचमुच शामू के साथ रामू का लगाव था, गांव के और गंवार जवानों की तुलना में शामू की समझ लासानी थी। शामू की इसी बात पर रामू को गर्व था। जैसे एक बाप को अपने सहारे पर नाज़ होता है, जिसमें शामू की दो मज़बूत बाहें भी शामिल थीं। उसे शामू के उस प्यार से भी प्यार था जो माँ और छोटे भाइयों पर भी निछावर हो जाता था। प्यार से कुर्बानी उत्पन्न होती है। यही कुर्बानी प्यार की गहराइयों को पार करके कभी-कभी तड़प भी उठती है इज़हार के लिये। रामू और गंगा का इस वक़्त यही हाल था। इज़हार की तड़प जब इन्तहा की ओर बढ़ी तो और कुछ न कहकर फ़क़त बेटे को ‘बावला’ ही पुकार सका। रामू ने गंगा की ओर देखा। उसने सबकुछ सुना था। उसके चेहरे पर गर्व और प्यार झलक रहा था। ‘माँ-बाप’ का गर्व और प्यार।

रामू कुछ सरककर गंगा के साथ सटकर बैठा। फिर ‘अधूरे इज़हार’ ने गंगा के कंधों पर बाहें डालीं, उन बाकी बची रोटियों वाली मुट्ठी उसके मुँह के आगे लाई, मुँह से लगाई और आहिस्ते आहिस्ते दबाता रहा। गंगा के सामने अब अपनी कुर्बानी का सवाल नहीं रहा था। आखिरी निवाला निगलते हुए जाने कितने सालों के बाद, गंगा ने रामू की ऊँगली को हलके से काटा। काटकर वह छलक उठी ! टप, टप, टप...आँसू, और फिर... सिसकियाँ।

शामू ने, पिता को माँ की तरफ़ सरकते देख, करवट बदल ली थी। सिसकियों की आवाज़ पर गर्दन उठाकर देखा, पर माँ को पिता की गोद में देखकर, उसने गर्दन फेर ली... और गर्दन को फेरने के साथ साथ शामू को रोना आ गया।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी संग्रह - अपने ही घर में / माई बाप : सुगन आहूजा
कहानी संग्रह - अपने ही घर में / माई बाप : सुगन आहूजा
https://lh3.googleusercontent.com/-POxwWihRZTk/VzrYcRbKX1I/AAAAAAAAtsk/P4PPe63-0Fc/image_thumb1_thumb.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-POxwWihRZTk/VzrYcRbKX1I/AAAAAAAAtsk/P4PPe63-0Fc/s72-c/image_thumb1_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/05/blog-post_95.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/05/blog-post_95.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content