तिलक, जनैऊ एवं शिखा बनाम आध्यात्म / आनन्द किरण (करण सिंह) शिवतलाव

SHARE:

भारतीय समाज में तिलक, जनेऊ एवं शिखा को धर्म से जोडकर ब्राह्मण वर्ग द्वारा आध्यात्म को परिभाषित करने का प्रयास किया गया है । अत: इनकी प्रासं...

image

भारतीय समाज में तिलक, जनेऊ एवं शिखा को धर्म से जोडकर ब्राह्मण वर्ग द्वारा आध्यात्म को परिभाषित करने का प्रयास किया गया है । अत: इनकी प्रासंगिकता पर विचार कर धर्म एवं आध्यात्म पर विचार करेंगे। इस विषय पर सोचने पूर्व हमें भलीभाँति यह समझना होगा कि मानव समाज एक एवं अविभाज्य है । इसको विभेद करने की खिची गई समस्त रेखाएँ अप्राकृतिक एवं कृत्रिम हैं।

तिलक लालाट पर खिचकर व्यक्ति अपनी भक्ति को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करता है। तिलक के प्रति अंध श्रृद्धा रखने वालों ने इसका विज्ञान भी सृजित कर दिया है। वे तिलक की महत्ता को मानसिक स्वास्थ्य से जोडते हैं । यदि ऐसा है तो तिलक को चिकित्सा विभाग में भेजना उचित रहेगा। ताकि उपयुक्त रोगी को ही चिकित्सा मिले। आमजन इस बोझ को लेकर नहीं घूमें। मानसिक तनाव को दूर करने के लिए बने मरहम के समान तिलक का उपयोग है तो तिलक को धर्म का चौला ओढाना निर्थक हैं । तिलक के मुख्यतः दो रूप प्रचलित है। प्रथम सम्पूर्ण ललाट को किसी विशेष लेप से लेपना। इस अक्षत: स्वास्थ्य विज्ञान से जोड़ा गया है। यह मस्तिष्क को अल्पकालिक ठण्डक अहसास कराने व्यतिरेक कुछ भी स्थायी चिकित्सा नहीं है। इसके संदर्भ बनाया गया विज्ञान निरर्थक हैं। तिलक दूसरा रूप भृकुटी पर टीका एवं टीकी के रूप में व्याप्त है। तिलक का यह रूप सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक एवं तांत्रिक परम्परा के रुप में व्याप्त है। एक बात स्पष्ट रूप से स्वीकार करनी होगी कि तिलक कभी वैश्विक परम्परा नहीं रही है। यह मात्र क्षेमितय परम्परा हैं। एक अन्य बात भी सुस्पष्ट है कि तिलक, जनेऊ एवं शिखा का आध्यात्मिक जगत में फूटी कौडी भी मूल्य नहीं है। मात्र तांत्रिक साधक कापालिक साधना के वक्त रक्त सदृश्य लाल तिलक शीश पर धारण कर अंधेरी रात को जाते थे। उसी से कालांतर में युद्ध भूमि में जाने वाला योद्धा तिलक धारण करने लगा । उत्तरोत्तर युग राजनैतिक जगत राजा के पद ग्रहण के रुप में राजतिलक की परंपरा प्रारंभ हुई। सामाजिक जगत में दुल्ले राजा सदृश्य रूप में पेश करने के लिए तिलक की परंपरा का विकास हुआ। परंपरा का बनना एवं बिगड़ना काल परिस्थितियों पर निर्भर करती है। लेकिन तिलक को धारण कर पवित्र अपवित्र एवं पुण्यात्मा एवं पापात्मा की खिची गई रेखाओं ने समाज में पाखंड को जन्म दिया। आज मस्तिष्क पर खिची गई। तिलक रेखाएँ धर्म का प्रतीक कम पाखंड का प्रतीक अधिक बना हुआ है। तिलक को भृकुटी पर धारण कर शिव के तीसरे नेत्र से जोड़कर भी दिखाया जाता है। शिव का तीसरा नेत्र भूत, वर्तमान एवं भविष्य की अभिव्यक्ति है या अन्य रूप तीसरा नेत्र ज्ञान है। शेष दिखावा मात्र है। यौगिक जगत आज्ञा चक्र में मन के अधिष्ठान के रुप में इसे आध्यात्मिकता के प्रवेश द्वारा के रुप में अंगीकार किया गया है। आध्यात्म अन्त: जगत की वस्तु है । इसे बाहर प्रदर्शित करना भीतर के ज्ञान शून्य को प्रकट करता है। अत: तर्क एवं युक्ति से स्पष्ट हो जाता है कि तिलक का धर्म एवं विज्ञान से कोई संबंध नहीं है। इसे धर्म के प्रतीक के रुप धारण करना व्यर्थ है।

जनेऊ ब्राह्मण वर्ग द्वारा उपनयन संस्कार के रुप में तीन व छ: धागों के धारण किए गए सूत्र का नाम है। जनेऊ धारण कर्ता लघु शंका के वक्त एक कान के एवं दीर्घ शंका के वक्त दोनों कान को लपेट कर मल- मूत्र का त्याग करते थे। कतिपय इसके मोहशील मानुष मल-मूत्र त्याग एवं कर्ण की तंत्रिका का वैज्ञानिक संबंध जोड़ते सुने गए । यह विज्ञान मात्र काल्पनिक है इसका यथार्थ से दूर - दूर तक का रिश्ता नहीं है। शिकारी युग चर्म धारण करने के अहंकार को संस्कार की ओट में धारण कर पवित्रता का अहंकार ले गुम रहे ब्राह्मण मात्र यह भार वहन कर रहे हैं। इस सूत्र ने पवित्रता व अपवित्रता के नाम पर भारतीय समाज में बहुत अधिक भेद सृष्ट किया है। इस भेद ने भारतीय समाज में अस्पर्शयता कलंकित इतिहास भी सृर्जित करवाया है। इस बोझ को अब मानवता अधिक दिनों तक वहन नहीं कर सकती है। भेदभाव की इस काल्पनिक रेखा को उखाड फेंकने में ही मानवता का कल्याण निहत है । कुछ लोग प्राचीनता के मोह में अंधे होकर जनेऊ को धर्म ध्वज समझ बैठे है। उन्हें अपनी बुद्धि को ऋग्वेद के नासदीय सुक्त का अध्ययन कर बाह्य सूत्र उपादेय हीनता के विषय में अपने ज्ञान की पिपासा को शांत कर इसे त्यागने में आगे आना चाहिए। एक दृष्टांत ब्राह्मण मत के प्रखर वक्ता आचार्य शंकर की दण्डी स्वामी परंपरा की ओर ध्यान आकृष्ट कर कहना चाहूंगा कि इस वर्ग सन्यासी को दण्डी स्वामी बनने से पूर्व जनेऊ का त्याग करना होता है। तत्पश्चात ही वह शंकराचार्य बन सकता है। जिसे मत का दर्पण ही जनेऊ विहीन दिखता है वह वर्ग जनेऊ का बोझ लेकर घूमना युक्ति हीन है। जिस प्रकार आध्यात्मिक जगत में तिलक का मूल्य नहीं ठीक उसी प्रकार जनेऊ का भी मूल्य नहीं है।

शिखा ब्राह्मण की पहचान बनी हुई है तो इसने ब्राह्मण को मानवीय गुणों से दूर ले जाकर पटका है। भारतीय समाज में केश को लेकर तीन मुख्य परंपरा का वर्णन है। पंचकेशी, पंचभद्र व त्रिणकेशिता। शरीर के विशेष अंगों बालों काटने नहीं काटने के संदर्भ में यह परंपरा है। इसका विज्ञान हमें आनन्द साहित्य में मिलता है। शिखा का इन किसी भी परंपरा से दूर -दूर का कोई रक्त संबंध नहीं है। यह ब्राह्मणों की खोपड़ी की तूणीर से निकला ऐसा बाण हैं स्वयं का वध कर रहा है। शिखा एवं ब्रह्म तालु को ज्ञान की सरिता बहाने धारा के रुप में चित्रित करने का प्रयास किया गया है। ज्ञान अन्त: जगत की वस्तु है। इसका शिखा से कोई संबंध है। यदि ऐसा होता तो अल्बर्ट आइंस्टीनी सहित प्राचीन भारतीय ऋषि परंपरा शिखा से कोई संबंध नहीं रखती है। शिखाधारी ब्राह्मणों की श्रेणी कर्मकांड युग में जन्म हुआ। यह पंरम्परा बोध युग समकालीन है। इसे ज्ञान विज्ञान से संबंधित करना मूर्खता है। शिखा ने समाज में अंधविश्वास को जन्म दिया है। यह भेद भाव स्पष्ट परिचय है। इसकी समाज में कोई उपादेयता नहीं है। यह पाखण्ड के साम्राज्य सम्पदा है। इस हटाना ही शुभंकर हैं।

शास्त्र में कहा है कि "जन्मना जायेते शूद्र, संस्कारात् द्विज उच्येते, वेद पाठात् भवेत् विप्र, ब्रह्म जानाति ब्राह्मण" अर्थात जन्म से सभी मनुष्य शूद्र हैं। संस्कार से ही वह अन्य श्रेणी में जा सकता है । भारतीय समाज में संस्कार के तीन अर्थ प्रचलित है। प्रथम ब्राह्मण वर्ग द्वारा विशेष विधि किया जाने वाला कर्मकांड को सोलह संस्कार नाम दिया गया है। अन्य अर्थ में संस्कार शब्द का सद्गुणों को कहा जाता है। संस्कार का तीसरा अर्थ अधिशेष कर्म का प्रतिफल है। संस्कार शब्द में सु एवं कु पूर्वक जुडने से अच्छा एवं बुरा अर्थ निकलता है। तो व्यक्ति अपने संस्कार अर्थात कर्म से ही शूद्र से ऊपर एवं नीचे उतर सकता है। यह श्लोक स्पष्ट करता है कि शूद्र का अर्थ मलेच्छ या नीच नहीं है। वह तो कर्म या गुण की स्थिरावस्था का नाम है। अर्थात यह स्व: से कर्म नहीं करने की अवस्था। जैसे ही स्वैच्छिक कर्म करने लगता है तो बुरे कर्म की बदौलत मनुष्य शूद्र से नीचे शैतान, हैवान एवं पिशाच बन सकता है तो अच्छे कर्म की बदौलत साधु(सज्जन), देव, ईश्वर एवं भगवान बन सकता है। वर्ण व्यवस्था से उक्त श्लोक का कोई संबंध नहीं है। वेद अध्ययन अध्यापन करने लगते ही वह विप्र नाम से जाना जाता हे। वेद का अर्थ ज्ञान - विज्ञान है । इस मात्र किसी मत विशेष के शास्त्र तक सीमित रखना वेद शब्द के साथ न्याय नहीं है। प्राचीन काल में विद्वानों द्वारा खोजे गये सर्वमान्य तथ्य को वेदों में संकलित किया गया । ज्ञान की श्रेणियों के आधार पर इसे तीन भाग में विभाजित किया गया । कालांतर में तीनों को संगीत मय अंश अलग कर सामवेद की रचना की गई थी। सृष्टि के आरम्भ से अभी तक खोजे गया ज्ञान वेद हैं । ज्ञान सतत चलने वाली प्रक्रिया का नाम है। इसलिए वेदों को प्रारंभ में लिपि बद्ध नहीं किया गया था। अत: वेद अध्ययन यानी ज्ञान अर्जित करने के लिए किसी प्रकार की शिखा, जनेऊ एवं तिलक की आवश्यकता नहीं है। ऋग्वेद का नासदीय सुक्त तो ज्ञान की सूक्ष्म विधा आत्म के अर्जन के लिए जनेऊ के त्याग की सलाह देता है। ब्रह्म अर्थात परमतत्त्व को जानने एवं प्राप्त करने के अभ्यासी को ब्राह्मण कहा गया है। कबीर, रैदास सहित सभी ईश्वर प्राप्त करने वाले ब्राह्मण है। अत: धर्म, कर्म एवं मर्म को समझने एवं समझाने के लिए तिलक, जनेऊ एवं शिखा की आवश्यकता नहीं है। भक्ति की राह भी इनका फूटी कौड़ी भी मूल्य नहीं है।

संपर्क

आनन्द किरण (करण सिंह) शिवतलावEmail-- anandkiran1971@gmai.com karansinghshivtalv@gmail.com

Address -- C/o- Raju bhai Genmal , J.D. Complex, Gandhi Chock, Jalore (Rajasthan)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: तिलक, जनैऊ एवं शिखा बनाम आध्यात्म / आनन्द किरण (करण सिंह) शिवतलाव
तिलक, जनैऊ एवं शिखा बनाम आध्यात्म / आनन्द किरण (करण सिंह) शिवतलाव
https://lh3.googleusercontent.com/-Ixy8vwoygwg/V3TiUfCDk9I/AAAAAAAAuuU/7N5Xy6Ts7lY/image_thumb.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-Ixy8vwoygwg/V3TiUfCDk9I/AAAAAAAAuuU/7N5Xy6Ts7lY/s72-c/image_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/06/blog-post_57.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/06/blog-post_57.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content