माह की कविताएँ

SHARE:

सुशील शर्मा आशुतोषी माँ नर्मदा (एक भक्त की क्षमा याचना ) आशुतोषी माँ नर्मदा अभय का वरदान दो। शमित हो सब पाप मेरे ऐसा अंतर्ज्ञान दो। विषम ...

सुशील शर्मा

clip_image002

आशुतोषी माँ नर्मदा

(एक भक्त की क्षमा याचना )

आशुतोषी माँ नर्मदा अभय का वरदान दो।

शमित हो सब पाप मेरे ऐसा अंतर्ज्ञान दो।

विषम अंतर्दाह की पीड़ा से मुझे मुक्त करो।

हे मकरवाहनी पापों से मन को रिक्त करो।

मैंने निचोड़ा है आपके तट के खजाने को।

आपको ही नहीं लूटा मैंने लूटा है ज़माने को।

मैंने बिगाड़ा आवरण ,पर्यावरण इस क्षेत्र का।

रेत लूटी और काटा जंगल पूरे परिक्षेत्र का।

मैंने अमित अत्याचार कर दुर्गति आपकी बनाई है।

लूट कर तट सम्पदा कब्र अपनी सजाई है।

सत्ता का सुख मिला मुझे आपके आशीषों से।

आपको ही लूट डाला मिलकर सत्ताधीशों से।

हे धन्यधारा माँ नर्मदे अब पड़ा तेरी शरण।

माँ अब अनुकूल होओ मेरा शीश अब तेरे चरण।

उमड़ता परिताप पश्चाताप का अब विकल्प है।

अब न होगा कोई पाप तेरे हितार्थ ये संकल्प है।

आशुतोषी माँ नर्मदा अभय का वरदान दो।

शमित हो सब पाप मेरे ऐसा अंतर्ज्ञान दो।

--.

छूट गए सब

जो छोड़ा उसे पाने का मन है।

जो पाया है उसे भूल जाने का मन है।

छोड़ा बहुत कुछ पाया बहुत कम है।

खर्चा बहुत सारा जोड़ा बहुत कम है।

छोड़ा बहुत पीछे वो प्यारा छोटा सा घर।

छोड़ा माँ बाबूजी के प्यारे सपनों का शहर।  

छोड़े वो हमदम वो गली वो मौहल्ले।

छोड़े वो दोस्तों के संग दंगे वो हल्ले।

छोड़े सभी पड़ोस के वो प्यारे से रिश्ते।

छूट गए प्यारे से वो सारे फ़रिश्ते।

छूटी वो प्यार वाली मीठी सी होली।

छूटी वो रामलीला छूटी वो डोल ग्यारस की टोली।

छूटा वो राम घाट वो डंडा वो गिल्ली।

छूटे वो 'राजू 'वो 'दम्मू 'वो 'दुल्ली '.

छूटी वो माँ के हाथ की आँगन की रोटी।

छूटी वो बहनों की प्यार भरी चिकोटी।

छूट गई नदिया छूटे हरे भरे खेत।

जिंदगी फिसल रही जैसे मुट्ठी से रेत।

छूट गया बचपन उस प्यारे शहर में।

यादें शेष रह गईं सपनों के घर में।

--------------------.

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

clip_image003

नारी उवाच: (दोहे)
***************
घर का बाहर का करूं, मैं महिला सब काम |
फिर अबला कहकर मुझे, क्यूं करते बदनाम ||

मैं नाजुक सी कामिनी, मैं चंडी विकराल |
मुझसे लाजे कुसुम सब, मैं कालों की काल ||

कुदृष्टि मुझ पर तेरी, क्यूं करता ये भूल |
माता बहना प्रेयसी, हूँ मैं तेरा मूल ||

मैं तेरी सहचरणी हुँ , तू मेरा हमराज |
चिड़िया समझे तू मुझे, क्यूॉ अपने को बाज ||

तेरे मेरे मिलन से, ये जग है गुलजार |
मुझसे तेरी जीत है, मुझ बिन तेरी हार ||

मै अब अबला ना रही, सबला समझो मोय |
छोड़ दम्भ झूठे सभी, मैं समझाऊँ तोय ||

प्रकृति-पुरुष संसार के, हैं दो तत्व विशेष |
हटा दे गर इन्हें तो, नहीं बचे कुछ शेष ||

                     - विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,
जिला- स.मा. (राज.)322201
मोबा:- 9549165579
Email ld
Vishwambharvyagra@gmail.com

--------------------.

निसर्ग भट्ट


clip_image004

“आँखोंदेखी"

गरीबों की गरिमा को कानून की चौखट पर बेबसी से बिकते देखा है हमने,
अमीरों के आँगन में ईमानदारी को नीलाम होते देखा है हमने,
देश के अन्नदाता को कर्ज के “कहर" से “जहर" के घूँट पीते देखा है हमने,
गायों को कत्लखानों में कटते और कुत्तों को महलों में संवारते देखा है हमने।

शहीदों के सम्मान की जगह कोफिनों पे करप्शन करते देखा है हमने,
वीरों की उन विधवाओं को दफ्तरों के चक्कर लगाते देखा है हमने,
मैकाले के मानसपुत्रों के हाथों इतिहास को विकृत करते देखा है हमने,
और आजाद-भगत जैसे क्रांतिवीरों की आतंकियों से तुलना करते देखा है हमने ।

आरक्षण की आगजनी से प्रतिभाओं को जलते देखा है हमने,
भ्रष्टाचार की भीषणता से कौशल्य को कुचलते देखा है हमने,
दहेज की अंधी प्यास में अपनी पुत्रवधू को जलाते देखा है हमने,
और भुखमरी से बेहाल मजदूर को मजबूरी से मिट्टी खाते देखा है हमने।

अंग्रेज़ियत की इस आँधी में हिंदी को बेबस बेवा बनते देखा है हमने,
पाश्चात्यकरण के इस प्रवाह में अपनी संस्कृति की शर्म को देखा है हमने,
मानवता के मंत्र देने वालों को साम्प्रदायिकता के शूली पे चढ़ते देखा है हमने,
और अपने आराध्य श्रीराम को तंबू में तड़पते देखा है हमने ।

जुनून के उस जज़्बात से झेलम को लाल होते देखा है हमने,
धर्म की धर्मान्धता में इंसान को हैवान बनते देखा है हमने,
कश्मीर में काफिरों के नाम से पंडितों को कटते देखा है हमने,
औरतों की अस्मिता को नंगे बदन लटकते देखा है हमने ।

सत्ता के उन दलालों के हाथों सीमाओं को बेचते देखा है हमने,
राजनीति के इस रण में लाशों को सीढ़िया बनाते देखा है हमने,
संसद के उन सदनों में शालीनता का नंगा नाच देखा है हमने,
और खादी पहनने वालों के हाथों गांधी को बिकते देखा है हमने ।
                                                  - निसर्ग भट्ट

वर्तमान निवास - अहमदाबाद
अभ्यास - Bsc. With biochemistry
जन्मतिथि - १२-८-१९९७
Email address - nisarg1356@gmail.com

-----------------.

मुकेश कुमार

clip_image005

हमें भी चाहिए....

हमारी ज़िन्दगी टुकड़ों में इधर-उधर भागती हैं
हमें भी चाहिए ज़िन्दगी में ठहराव....
सुकून-ओ-चैन, पल दो पल आराम ज़िन्दगी का
हां कब तक भागते रहेंगे कोल्हू के बैल की तरह
हमें भी चाहिए आराम ज़िन्दगी का
दर-बदर-दर की ख़ामोशी की ठोकरों में क्यों जीये
हमें भी गाना है ज़िंदगी तराने के
मुसाफ़िर को आराम चाहिए वहां तक पहुंचने के लिए
हमें भी चाहिए ज़िन्दगी की छाँव
कब तक आँसुओं को पीते रहेंगे पानी समझकर
हमें भी चाहिए दो घूँट हलक से उतारने को
हर दम टूट कर सितारों की तरह चले जाते हैं सपनों को पूरा करने को
हमारे भी कुछ अरमान दिलों में पूरा करने को

नाम:- मुकेश कुमार
Mob. +91884727473
E-mail:- mukeshkumarmku@Gmail. com
पता:- राधाकिशन पूरा, सीकर,
राजस्थान (332001),भारत.

-------------------.

सुरेन्द्र अग्निहोत्री

मैं कराना हॅूं,

संगीत का घराना नहीं !

जीता जागता शहर

नफरत गलियों में बही।

विलंबित ताल,

हूं मैं किस हाल।

रोशनी बन गयी,

अपनों का काल।

मैं कराना हूं,

चबा रहा हूं पूरी हंसी

राजनीति के आगंन में फंसी !

पलायन को विवश

धर्मनिरपेक्ष अब चुप है

लंगडी हो गयी यहां खुशी।

डर से है सभी खामोश

लंगडे हो गये कानून

रतजगों में जिन्दगी फंसी

निरर्थक है शब्द

फिजा में कश्मीर की गंध

गंगा जमुनी नहीं रही मकरंद

अलविदा हो गये सभी संबंध।

मौन और चुप्पी नींद तोडेगी

खामोशी का रहस्य खेलेगी

उखड़ती सांसों से भी

रूकने सल्तनत में कील ठोकेगी।

वजीर और हुक्काम की चालाकी,

स्तब्ध विकल मन,सजा देना बाकी।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री

ए-305, ओ.सी.आर.

बिधान सभा मार्ग;लखनऊ

मो0ः 9415508695

------------------.

ललित साहू "जख्मी"

clip_image006

"जख्मी धारा 370"

सोचा था अपना मुंह ना खोलूंगा
बेमतलब  370  पर कुछ ना बोलूंगा

पंचायती राज जैसा जहां कोई विधान नहीं
भारत में होकर भी भारत का संविधान नहीं

न्यायालय की बात मानने भी कोई तैयार नहीं
स्वतंत्र अभिव्यक्ति का जहां हथियार नहीं

राष्ट्र ध्वज का अपमान जहां अपराध नहीं
मर्यादा पुरुषोत्तम राम जहां आराध्य नहीं

सूचना मांगने का भी जहां अधिकार नहीं
बोलो तुम इसका करते क्यों प्रतिकार नहीं

क्यों उपेक्षित, क्यों वंचित आरक्षण से
कश्मीरी अल्प संख्यक रह जाते है

क्यों फकत शादी से नागरिकता
पाकिस्तानियों को मिल जाते हैं

बताओ किसके हाथों तिरंगे फाडे जाते हैं
जाने किस द्वेश में नर जिंदा गाडे जाते हैं

क्यों मातम का माहौल स्वर्ग जैसी घाटी में
क्यों बिखरा रक्त भारत की पावन माटी में

जाने किस मंशा से चाचा ने टांग अडाई थी
कर हस्तक्षेप संविधान पर धारा 370 बनवाई थी

क्यों महिलाएं मजबूर सरिया कानून मानने को
"जख्मी" सदियों से बेचैन ऐसे तथ्य जानने को

एकता , अखंडता की शत्रु यह धारा
सच्चाई यह जग में सर्व विदित है

फिर क्यों जीवित , फलित है यह धारा
बोलो किसका स्वार्थ इसमें निहित है
-------------------------1------------------------------

"आजादी कितनी सच्ची"

सचमुच आजाद है हम ?
या ये ढ़ोंग आजादी का है
बढ़ रहा भ्रष्टाचार, पापाचार
ये इशारा हमारी बर्बादी का है

रोटी के लिए मरते गरीब कई
कहते हो दोष बढ़ती आबादी का है
कचरे में पडे मिलते हैं अनाज
ये उंचे महलों में हुई शादी का है

राम के मुखौटों के पीछे
है बहरुपिया रावण खडा
लालच की महक से भरा
ये लिबास जरुर खादी का है

बहनों को तार-तार करता भेडिया
देखता ख्वाब शहजादी का है
कोख में बेटियों की होती मौतें
ये करतूत इंसानी जल्लादी का है

हो जाती है रौशनी चिरागों से भी
बारुद का शौक भटके जेहादी का है
भरे चौंक कुचली जाती मानवता
ये किस्सा अमीरों की उन्मादी का

मैंने देखा "जख्मी" आंखों से
आंसू बनकर टपकाता लहू
लाशों पर नाचता बेसुध राक्षस
हमारी ही सांप्रदायिकतावादी का है

कांक्रीटों का घनघोर जंगल
उद्घोषक हमारी नाँदी का है
जरा सुनो बगावत की सरसराहट
ये शोर सिसकियों की आंधी का है
--------------------------2-------------------------
लौट ना जाना.....

हम नाराज भले हैं आपसे
पर राहों में पलकें अब भी बिछाते हैं
हमें खुश देखकर लौट ना जाना
हम तो दर्द हंसकर ही छुपाते हैं

मुद्दत हो गई मुलाकात किये
ना खुद आते हैं ना हमें बुलाते हैं
मालूम भी कैसे हो तड़प क्या है
आपके नाज जाने कितने ही उठाते हैं

हमने अपना जख्म ढंक तो लिया मगर
अश्क आंखों से छलक ही आते हैं
हमने ना खोली कभी यादों की किताब
वक्त-वक्त पर पन्ने खुद ही पलट जाते हैं

आपसे दूर ना रह सकते थे ना रह सकते हैं
ख्याल-ए-फासले से हम तड़प ही जाते है
गुजार लेंगे जिंदगी फकत खैरियत जान कर
आपकी परवाह में आंखें अब भी फड़क जाते हैं
-----------------------------3------------------------------
"सावधान देशद्रोहियों"

भाई समझ लगाया गले
कंधे पर भी तुझे बिठाऊंगा
बस एक बार कह दे तू
मैं भारत माँ की जय गाऊंगा

खाओ निवाला प्रेम से
तुम्हें छप्पन भोग खिलाऊंगा
जो छेद करोगे तुम थाली
एक बूंद को भी तरसाऊंगा

इंसानियत होती तार-तार
बंदूकों पर उंगलियों के इशारों से
मानवता होती शर्मसार
तुम्हारे देश द्रोही नारों से

मैंने फाडे नफरत के परदे
नकाब दोगले चेहरों से उतारुंगा
जिसने उठाई भारत माँ पर नजर
उसे घसीट- घसीट के मैं मारुंगा
------------------------4-------------------------

"कलयुग की छाप"

आज मैंने कई दोगले
चेहरे एक साथ देखे
अपनों को ही डसते
आस्तीन के सांप देखे

मासूम रक्तों से सने
शरीफों के हाथ देखे
लालच में लोगों को
गधे को बनाते बाप देखे

मक्कारों को बैठकर
करते मैंने जाप देखे
पापी पेट की खातिर
होते मैंने कई पाप देखे

बेटे की लाश पर मां की
रुदन और विलाप देखे
देखे अनाथ होते बच्चे और
मैंने विधवाओं के संताप देखे

लड़ते देखे भाई-भाई
बंटवारे में होते नाप देखे
जब झांका मानव के भीतर
मैंने कलयुग के छाप देखे
-----------------------5----------------------

** असहाय पिता **

होती होंगी कई मौतें पेटों में
पर मैंने तो तुम्हें मारा नहीं
सबने टोका तुम्हें धरा पर लाने से
पर मैं तो जमाने से हारा नहीं

ना मैंने बुढ़ापे की चिन्ता की
ना ही की वंश की खोखली बातें
तेरी परवरिश की चिंता में बेटी
बिना सोये गुजारी मैंने कई रातें

जब तू रोती थी बेटी
खिलौने मैं ले आता था
तेरी मुस्कुराहट की खातिर
घोड़ा मैं बन जाता था

तुझे पढाने से पहले ही
तेरी किताबें मैं रट लेता था
तुझे सुलाने मैं हर रोज कोई
परी कहानी गढ़ देता था

बोल बेटी तुझे कब मैंने
कमजोर का अहसास कराया है
जब- जब तेरा नाम आया
मैंने गर्व से सिर उठाया है

सोलहवें बसंत की दहलीज पर
तुमने गौर सारा संस्कार किया
अजीब समानों और तंग कपड़ों से
तुमने अपना साज श्रृंगार किया

उस पल ना टोका मैंने ये सोचकर
की तुम स्वछंद उड़ान भर पाओगी
लड़कों से भी आगे बढ़कर
तुम दुनिया में नाम कमाओगी

जाने किसकी पडी परछाई
की अब दुश्मन मुझे समझती हो
छोटी- छोटी बेतुकी बातों पर
अपनी मां से तुम उलझती हो

मेरे इन कानों तक पहुंची
तेरे प्रेम प्रसंग की कड़वी बातें
भरोसा किन्तु भय पितृ हृदय में
चूंकि देखी है कलयुग की वारदातें

मेरा एक ही तो सपना था बेटी
काबिल बना तेरा विवाह करने की
वो भी तोड़ तुमने कसमें खा ली
किसी और से निबाह करने की

उंगली थाम चलना सिखाने वाला
क्या अब जरा भी काबिल ना रहा
तेरे जीवन के अहम फैसलों में बेटी
क्यों अब मैं शामिल ना रहा
-----------------------6-----------------------

" वीरांगना बहू "

पहली किरण संग उठ जाती
सबको सुला के ही वो सोती है
घर को अकेले संभालने वाली
वो वीरांगना बहू ही होती है

बच्चे की देखभाल करती
पति को चाय भी देती है
ससुर को देती ऐनक अखबार
और दूध भी बहू ही लेती है

देवर के नखरे मस्ती सहती
ननंद की राजदार वो होती है
देवरानी की गुरु, सखी, बहिन
घर की रानी भी बहु ही होती है

पाक कला में निपूर्ण होती
सास की सारी बातें सहती है
रहने दो मां जी मैं कर लूंगी
ऐसा सिर्फ बहू ही कहती है

कपड़े बर्तन झाड़ू पोंछे का बोझ
बिचारी चुप-चाप ही सहती है
स्वस्थ दिखती है पर रहती नहीं
दर्द में भी ठीक हूं बहू ही कहती है

होती है नौकरानी, चौकीदार
बहु घर की साहूकार भी होती है
ईश्वर का अहसास घर की लाज
सर का ताज भी बहू ही होती है

माँ, बहन, बेटी, पत्नी, प्रेमिका
और नारी ही बहु भी होती है
दो कुलों के मजबूत रिश्तों की
आधार-शीला भी बहू ही होती है
-----------------------7------------------------

       "पत्नी गाथा"

पायी जाती दो प्रजातियां इनकी
एक गाय दूसरी शेरनी जैसी होती है
गाय मिली तो जिन्दगी लगती स्वर्ग
शेरनी मिली तो नरक जैसी होती है

घूमते रहे हर मौसम सर्वत्र स्वछंद तब
धर रुप मोरनी चहकती ठुमकती है
बेटी बन बाबुल का अंगना महकाती
दामनी बन ससुराल में चमकती है

कहती घर का सारा काम हूं करती
फिर ना जाने कब सजती संवरती है
हर फरमाईश उनकी पूरी करो वरना
बिना बात ही बिगडती झगड़ती है

भोजन अधपका नमकीन सा रहता
चैनलों में व्यस्त दिनभर ही रहती है
सोकर गुजरती उनकी हर दोपहरी
फिर भी आलस्य से ही घिरी रहती है

कपड़े गहनों की शौकीन बहुत
प्रतिस्पर्धा सखियों संग होती है
ना कहो उठने इनको चौपाल से
निंदा सुख की लय भंग होती है

मायके में सास को डायन बताती
सामने पूजा वो करने लगती है
ससुर बेचारे लगते बहु को सज्जन
ननंद के खरचे आंखों को चुभती है

सबकी कडवी बातें ताने सुनकर भी
एक पत्नी ही है जो समर्पित रहती है
रचना के गर्भ में छुपा अगाध प्रेम
वो मासूम भली-भांति समझती है

यह तो हास परिहास की बातें थी
मुझे कुछ दिन और अभी जीना है
कोई भी इनसे लड़के बच ना पाया
जिसने पत्नी का सुकून छीना है
----------------------8-----------------------

"जबसे छोड़ा साथ"

शीशे ने कह दीये राज सारे
बेबसी से हमारी वो खेलने लगे
हालात नहीं कि मैं कुछ कहूं
तकिये अब खुद ही बोलने लगे
जबसे छोड़ा साथ तुमने
हम अकेले ही चलने लगे
हमारी सिसकियों से शायद
खामोशियां भी जलने लगे
बड़ी मुद्दत के बाद फिर से
चंद अरमान दिल में पलने लगे
मुस्कुराया हमने महज दिखावे में
वो भी तकदीर को खलने लगे
ना जाने आंखों से अश्क भी
रुक-रुक कर क्यों बहने लगे
शायद मेरी तन्हाईयां भी अब
तेरी बेवफाईयां समझने लगे
हम तेरी रुह हुआ करते थे कभी
ना जाने कब से तुझे कसकने लगे
वाह रे नसीब! कांटे हमारे हिस्से!
क्यों फूल कहीं और महकने लगे ?

----------

ललित साहू "जख्मी"

ग्राम- छुरा   /  जिला - गरियाबंद  (छत्तीसगढ़)
मो. नं. – 9144992879

--------------------.

लोकनाथ ललकार

चुनौतियों को अवसर बना लीजिए

चुनौतियों की परवाह न कर,

चुनौतियों को अवसर बना लीजिए

लक्ष्य की राह में अपने कदम तो रख,

फिर, कदमों का लश्कर बना लीजिए

चाहे सुखों का आसाढ़ हो

या दुःखों की बाढ़ हो

महकता मधुमास हो

या दहकता जेठमास हो

समय सतत् प्रवाह है

इसकी नहीं थाह है

दुर्दिन कभी ठहरा नहीं

सुदिन सदा महरा नहीं

चाहे राजा हो या रंक

महान् हो या भगवान्

समय के आगे सभी नतमस्तक हुए

समय की अर्चना के स्वर सजा लीजिए

चुनौतियों की परवाह न कर,

चुनौतियों को अवसर बना लीजिए

दुःखों का पर्वत टूटा था,

तब सेतु बांधे थे श्रीराम ने

द्वापर में गोकुल डूबा था,

तब पर्वत साधे थे श्याम ने

महाराणा को तृण की रोटी खानी पड़ी,

फिर उनने सैन्यबल का संचार किया

शिवाजी को अपने कदम रोकने पडे़,

पश्चात् उनने राज्य का विस्तार किया

पृथ्वी ने गौरी को सोलह प्राणदान दिए

पर कृतघ्न ने उनके नेत्रों का अवसान किया

”चार बांस, चैबीस गज“ बरदाई ने दिया आकार

तब राजन् ने शत्रु का शब्दवेधी किया संहार

संकट में शौर्य के वो पहर गुना कीजिए

चुनौतियों की परवाह न कर,

चुनौतियों को अवसर बना लीजिए

---

लोकनाथ ललकार

बालकोनगर, कोरबा, (छ.ग.)

मोबाइल - 09981442332

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: माह की कविताएँ
माह की कविताएँ
https://lh3.googleusercontent.com/-OPoBw-HJHXM/V2k8lRacmdI/AAAAAAAAugQ/Mzosrh4PbLE/clip_image002_thumb.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-OPoBw-HJHXM/V2k8lRacmdI/AAAAAAAAugQ/Mzosrh4PbLE/s72-c/clip_image002_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/06/blog-post_92.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/06/blog-post_92.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content