दान / हास्य व्यंग्य कहानी / ऋषभचरण जैन

SHARE:

  चंदूलाल, रामचन्द, ज्योतिप्रसाद और हुकूमतराय चार आदमियों के नाम हैं। चन्दूलाल एक घड़ी की दूकान में बीस रुपये का नौकर है। स्त्री है, एक बच्च...

image

 

चंदूलाल, रामचन्द, ज्योतिप्रसाद और हुकूमतराय चार आदमियों के नाम हैं।

चन्दूलाल एक घड़ी की दूकान में बीस रुपये का नौकर है। स्त्री है, एक बच्ची है। गुजर-बसर मुश्किल से होती है। कोट बरसों में बदलता है, जूता टुकड़े-टुकड़े हो जाता है, टोपी का खर्च बचाने के लिए नंगे-सिर नौकरी पर जाता है। रामचन्द्र, साधारण गृहस्थ हैं। जाति के वैश्य हैं। कृष्णा र्क सच्चे भक्त हैं। गीता का नियमित पाठ करते और माथे पर चन्दन पोत कर घर से बाहर निकलते हैं अनाज की मंडी में दलाली करते हैं। कृष्णा की कृपा से खासी प्राप्ति हो जाती है। घर के लोग खुशहाल हैं। ज्योतिप्रसाद, किसी अर्द्ध-सरकारी दफ्तर में हेड क्लर्क हैं! वेतन तीन सौ रुपया है। कपड़े रेशमी पहनते हैं। टोपी फेल्ट लगाते हैं। 'अबदुल्ला' का सिगरेट पीते हैं। अक्सर इंटर में और कभी-कभी सेकिंड क्लास में सफर करते और ब्रीसों रुपया अपने और बच्चों के स्वास्थ्य की खोज में डाक्टर-वैद्यों को अर्पण करते हैं।' हुकूमतराय, मोटी तोंद-वाले, क्षत्रिय के अपभ्रंश खत्री हैं। छज्जेदार पगड़ी लगाते हैं। ' मक्खनजीन का कोट या रफल का अंगरखा पहनते हैं। दोनों' हाथों की उंगलियों में कई-कई अंगूठियां भरे रहते हैं। चूडीदार पायजामा. पहनते हैं, रेशमी कमरबंद हमेशा लटकता दिखाई देता है, और सलीम-शाही जूते या पंप-शू धारण करते हैं। अक्सर मोजों का इस्तेमाल भी होता है, आखों में सुर्मा और मुंह में पान चौबीस घंटे रमा रहता है। रायसाहब की' पदवी प्राप्त कर चुके हैं, और .साहब' की जगह. .बहादुर' बनने की मन: में बड़ी लालसा है।

एक दिन ये चारों आदमी शहर के भिन्न-भिन्न भागों से अपने-अपने' घर की तरफ चले।

(2)

रमजू एक भिखारी का नाम है। फटी-सी, सर्व-परिचित गूदडी ओढ़ सड़क के किनारे बैठा है। हाथ-पैर कांप रहे हैं, या कंपाए जा रहे हैं। शरीर- जगह-जगह से जख्मी हो गया है। मुंह पर घोर दीनता का भाव है। नीचे. का होंठ फैल गया है। दांत निकले पड़ते हैं।

चन्दूलाल सामने से निकला, तो रमजू ओंठ फैलाकर, दांत निकालकर चिल्ला उठा-''बाबा, एक पैसा!.. .तेरे बच्चों की खैर...! ''

इस आर्त स्वर ने या इस शुभ कामना ने चन्दूलाल के पैर बांध दिए । जेब में एक ही पैसा था। सोचा था, लड़की के लिए दाल-सेव लेते चलेंगे।. अब वह इरादा बदल गया, और पैसा जेब में न रह सका। उसने जेब में हाथ- डाला, और पैसा रमजू की तरफ फेंक दिया।

कंपकंपी क्षण-भर को रुक गई, ओठ सिकुड़ गए, दांत भीतर चले गए । पैसा उठाकर माथे से लगाया गया, और कृतज्ञ कंठ से रमजू ने कहा- ''दाता तेरा भला करेगा।''

चन्दूलाल आगे बढ़ गया।

छन्न' से आवाज हुई, और इस पैसे ने रमजू की थैली में पहुंचकर अपने जाति-भाइयों से मिलने की सूचना दी।

(3)

यह आवाज विलीन हुई थी कि रामचन्द आ पहुंचे। माथे पर अब तक चन्दन पुता हुआ था। मुँह से कृष्ण का नाम निकल रहा था, और मन अनाज की मण्डी में घूम रहा था।

रमजू का भाव झट बदल गया। ओठ फैल गए, दांत निकल आए, शरीर कांपने लगा, और स्वर में वही कातरता फूट निकली। हाथ फैलाकर चीख पड़ा- ' 'बाबा, एक पैसा!.. .तेरे बच्चों की खैर......!''

रामचन्द को कृष्ण-नाम और अनाज की मंडी के चिंतन में कोई व्याघात न हुआ, और वह बिना उधर देखे आगे बढ़ गया।

रमजू ने सतृष्ण नेत्रों से देखा, और धीरे से कहा-' 'दाता तेरा भला करेगा। ''

यह वाक्य अम्यासवश मुंह से निकल गया था, या सचमुच उसकी: ' ऐसी इच्छा थी, इसे हम नहीं जानते।

रामचन्द थोड़ी दूर आगे बढ़ा था कि किसी ने रोक दिया। नजर उठाकर देखा, तो एक जटाधारी संन्यासी! रामचन्द ने अवाकू हौकर उन्हें. ताका, और फिर दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम किया।

संन्यासी कर्कश स्वर में बोला-''बोल, साधू की इच्छा पूरी- करेगा?''

रामचन्द सहकर बोला-''कहिए क्या है महाराज?''

संन्यासी ने इधर-उधर देखा। सड़क पर कोई न था। फिर वैसे ही कर्कश स्वर में बोला-' 'तेरे मुँह में कृष्ण का नाम है। संन्यासी की इच्छा. तू ही पूरी कर! तेरा कल्याण होगा।''

रामचन्द हाथ जोड़कर बोला-' ' कहिए न महाराज?

' 'संन्यासी के भंडारे के लिए तुरन्त सवा रुपया दे।' ' संन्यासी ने आँखें निकालकर कहा-' 'तेरी जेब में है, देख, अभी निकाल; कल्याण होगा।

रामचन्द क्षण-भर को ठिठका, तो संन्यासी ने जमीन पर पैर पटककर कहा-' ''नहीं देता? अच्छा ले, जाता' हूँ, याद रख, तेरा सर्वनाश हो जायगा?''

रामचन्द एड़ी से चोटी तक लरज जाता है, और सवा रुपये का मोह त्याग देता है।

सवा रुपया लेकर संन्यासी लाल आँखें किये आगे बढ़ता है।

(4)

रमजू अपनी टेर शुरू करता है- बाबा, एक पैसा!'.. तेरे बच्चों की खैर...! ''

अब ज्योतिप्रसाद आये। फेल्ट तिरछी हो गई है। रेशमी वोट के बटन खुल गये हैं। कमीज झकझक कर रही है। पतलून की 'क्रीज' कुछ बिगड़ गई है। बूट अभी-अभी रूमाल से साफ किये गए हैं । सिगरेट से धुआँ निकल रहा है।

रमजू की टैर कान में पड़ती है, तो थम जाते हैं। क्षण-भर विचित्र दृष्टि से इस दीन भिखारी की तरफ ताकते रहते हैं, फिर कहते हैं-' अरे, तू क्यों भीख माँगता है? ''

रमजू उसी तरह दाँत निकालकर कहता है-बाबा पेट' ''!''

'' पेट -पेट किसके नहीं है -हमारे भी तो है। हम भीख नहीं ; मांगते '! तू जो मक्कारी करके यहाँ अपाहिज बना बैठा है, इससे क्या फायदा अरे, उठकर हाथ-पांव चला, और कमाकर खा, यह तो परले सिरे का कमीनापन है! समझा? तुम लोगों ने इस मुल्क की 'हालत, बहुत खराब . कर रक्खी है! ''

रमजू मुँह बाए सब सुनता रहा कि अन्त में कुछ मिलेगा। पर जब लेक्चर और विरक्ति-पूर्ण दृष्टि के अतिरिक्त कुछ न मिला, और बाबू साहब -चल दिये, तो उसकी निराशा का ठिकाना न रहा। तब भी उसके मुँह से निकला---दाता तेरा भला करेगा! ''

ज्योतिप्रसाद आगे बढ़े। सामने से वही जटाजूट धारी संन्यासी आ रहा .था। पुष्ट शरीर, चेहरा खिला हुआ, गेरुआ वसन, और लाल-लाल आँखें। देखते ही ज्योतिप्रसाद की त्यौरी चढ़ गई। आप-ही-आप बोले-' 'एक यह और .आया पाजी !''

संन्यासी ने तीव्र नेत्रों से ज्योतिप्रसाद पर दृष्टिपात किया, पर त्यौरी चढ़ी देखी, तो दृष्टि की तीव्रता का लोप हो गया। पास आ कर नर्मी से .बोला-''बाबू......!''

ज्योतिप्रसाद ने कड़ककर कहा-' 'क्या है बे? ''

संन्यासी की घिध्घी बंध गई। लड़खड़ाती जीभ से बोला-' 'बाबू भूखा हूँ।''

ज्योतिप्रसाद चिल्ला उठे-' ' भूखा है, तो क्या' मुझे खायेगा हैं-जाकर कुँए में डूब मर।

और वह आगे बढ़ गए। संन्यासी भी अपना-सा मुंह लिए चल दिया।

ज्योतिप्रसाद चले। अपने इस निरर्थक क्रोध पर मन कुछ विषण्ण 'हो गया। संन्यासी की स्थिति पर कुछ दया भी आई, और उसी वक्त भिखारियों के पक्ष में उनके मस्तिष्क ने कई मौलिक युक्तियों की सृष्टि कर डाली।

धर पहुंचते-पहुंचते वह क्रोध भी, विषण्णता भी और वे युक्तियां भी, सब कुछ लुप्त हो चुका था।

बैठक में तीन-चार सज्जन उपस्थित थे। सबके शरीर पर खद्दर के वस्त्र और चेहरों पर नई तरह के भाव थे। सब बैठक में बैठे आपस में हँसी- दिल्लगी कर रहे थे। ज्योतिप्रसाद पहुंचे कि सब का भाव बदल गया; जैसे सूरज के आगे बादल आ गया, और खिली धूप की जगह पलक मारते छाया'. हो गई।

थोड़ा-बहुत परिचय तो सभी से था, पर जगन्नाथ घनिष्ठ थे। हंसकर बोले-'जनाब की इन्तिजारी में दरें-दौलत पर हाजिर हैं!’

ज्योतिप्रसाद आसीन होकर बोले- '' कहिए, क्या, हुक्म है?''

जगन्नाथ दांत निकाल कर बोले- 'इस महीने की तनख्वाह छीनने आए हैं। ''

ज्योतिप्रसाद सहमकर बोले-'''क्या?''

''हां जी बाबू बिहारीलाल, अब बोलो न।,'-जगन्नाथ ने अपने निकटस्थ साथी से कहा।

बिहारीलाल ने गांधी-कैप सरका कर कई बार मुँह का भाव बदला, फिर ऊपर का ओठ नाक की नोंक से छुआया, और कुछ बहियाँ, रसीद-बुकें: और कुछ हैंड-बिल खद्दर के बस्ते से निकालकर मेज पर पटक दिए।

एक हैंड-बिल ज्योतिप्रसाद के हाथ में दे दिया गया।

शीर्षक था-' भयंकर आघात !' ' फिर छोटी सुर्खी में था-हिन्दू: धर्म खतरे में!'' इसके नीचे और छोटे टाइप में छपा था-' 'लाखों अनाथों की रक्षा का आयोजन-हिंदुओं से अपील। ''

देवनागरी का निम्न-लिखित पद्य देकर बात शुरू की गई थी-

हिन्टू जाती आज जाती है रसातल को सुनो;

लाखों बच्चे भ्रष्ट होते, उनकी कहानी को सुनो।''

फिर उस लम्बे हैंड-बिल में बहुत-सी बातें लिखी हुई थी। उपर्युक्त पद्य का माधुर्य बूट कर और हैंड-बिल के घोर आशुद्ध वक्तव्य को समाप्त- करके, ज्योतिप्रसाद बोले-''स्कीम तो अच्छी है! ''

जितनी देर में। हैंड-बिल खत्म हुआ, सबकी नजर. उनके चेहरे पर जमी रही। अब यह बात सुनकर जैसे सब के सब पानी का छींटा खाकर जाग उठे, और हर्षित हो कर एक साथ बोले-जी, यह तो आशा ही थी आपसे ''''।''

ज्योतिप्रसाद ने कोशिश करके मुंह की मलिनता छिपाई और कहा- ' 'आप लोगों का साहस प्रशंसनीय है। '' बिहारीलाल बोले-' 'अजी देखिए, आज लाखों की तादाद में अनाथ बच्चे विधर्मी हो रहे हैं।......। (ज्योतिप्रसाद ने अतिशयोक्ति पर ध्यान न् दिया, और मुंह की मलिनता छिपाने के लिए सिर हिलाकर समर्थन किया।? ईसाई और मुसलमान इन बच्चों की खोज में मुंह बाए फिरते हैं, और अन्त में उन्हीं की मदद से हमारे पवित्र धर्म पर कुठाराघात करते हैं। अगर हमारे पूर्वज इस बात का खयाल रखते तो आज भारत में विधर्मियों की इतनी संख्या कभी न होती। ( मलिनता का भाव छिपाने में कुछ-कुछ सफल हुए है, इसलिए ज्योतिप्रसाद बराबर समर्थन-सूचक सिर हिलाए जा रहे हैं।) आज हमारे अनाथ बच्चों की जैसी दुर्दशा हो रही है, उसे देखकर किस हिन्दू की छाती फट न जाएगी? किसका हृदय हाहाकार न कर उठेगा? किसका... :

बिहारीलाल ने कब अपनी स्पीच समाप्त की, ज्योतिप्रसाद को इसका होश नहीं। जैसे रेल ठहरने पर नींद खुल जाती है, वैसे ही बिहारीलाल की' स्पीच का प्रवाह रुकने पर उन्हें होश आ गया। जगन्नाथ हंसते हुए कह रहे थे-कहिए, कुछ समझे? '' ज्योतिप्रसाद सिटपिटाकर बोले-''जी हाँ, ठीक है-बडी अच्छी बात हैं! ''

बिहारीलाल ने डॉनेशन-बुक' खोलकर उनके आगे रख दी, पेंसिल'? हाथ में थमा दी, और खुद रसीद-बुक लेकर फाउंटेनपेन खोलने लगे।

ज्योतिप्रसाद बोले-''क्या हुक्म है? ''

बिहारीलाल ने गिड़गिड़ाकर कहा-''अजी .वाह, मैं क्या हुक्म चलाऊँगा, मैं तो आपका सेवक हूँ!''

जगन्नाथ ने हँसकर बेतकल्लुफी से कहा-''आपके पास. ' अपील ' करने से हमारा उद्देश्य यह है कि कम-से-कम आपकी एक महीने की तनख्वाह हड़प कर जायँ। ''

ज्योतिप्रसाद के मुख पर जैसा संकट का भाव उदित हुआ, उसे देखकर आपको दया आती और अनाथाश्रम के 'डेपुटेशन' पर हँसी छूटती 1 ज्योतिप्रसाद ने पन्ने पलटकर डॉनेशन-बुक' का निरीक्षण किया, फिर थोड़ी देर सोचते रहे, और फिर कलेजे पर पत्थर रखकर...... लिख दिया।

जगन्नाथ ने खूब हाथ-पैर मारे, पर पचीस रुपए से एक कौडी ज्यादा न लिखी गई।

( ५)

दो वार खाली जा चुके थे, इसलिए रमजू ने टेर के स्वर में वृद्धि की--''बाबा, एक पैसा...! तेरे बच्चों की खैर!''

रायसाहब हुकूमतराय आते नजर पडे। छज्जेदार पगड़ी की बहार देखने योग्य थी। रफल का अंगरखा उड़कर भागा जाता था। चूड़ीदार पायजामा खूब कसा हुआ था। सलीमशाही जूते और मोजे अलग फबन दिखा रहे थे।

रमजू ने इरादा कर लिया कि दोनों बैरंग दाताओं की कसर इस एक से निकालूंगा। दूर से देखा, और चिल्लाने लगा--' 'बाबा तेरे बच्चों की खैर... कुछ देना...! ''

इस बार टेर में परिवर्तन कर दिया, क्योंकि एक पैसे से ज्यादा की आशा और अभिलाषा थी।

हुकूमतराय एक-एक कदम रखते आगे बढे। माथे की शिकन से मालूम होता था कि किसी गहरी चिन्ता में हैं। ऐसा जान पड़ता था कि किसी ने उन्हें छेड़ा तो बरस ही पड़ेंगे। पर रमजू को इतनी अक्ल होती तो भीख क्यों मांगता? उसे तो बस एक पैसे से ज्यादा की धुन थी। उनका एक-एक कदम पड़ता था, और उस के दिल पर जैसे चोट पड़ती थी । हर एक कदम पर या हर एक चोट पर आवाज भी तेज होती जाती थी।

सागने आने में तीन कदम की देर थी। रमजू गला फाड़कर चिल्लाया, ''बाबा, तेरे बच्चों की खैर... !''

दो कदम रह गए। रमजू आगे सरक गया। आवाज फिर निकली, ''बाबा, तेरे बच्चों...।' '

एक ही कदम: रह गया था। रमजू की आखें निकल आईं। पूरा जोर लगा कर बोला--''बाबा, तेरे...।''

हुकूमतराय ठीक सामने आ गये। उड़ती नजर से एक बार चीखते हुए भिखारी को देखा। विचार श्रृंखला में बुरी तरह बाधा डालने वाले इस नाचीज पर क्रोध तो बहुत आया, पर पी गए।

वह पिया हुआ क्रोध मानो अभागे भिखारी ने बाहर उगलवा लिया। क्या किया? जब हुकूमतराय ने आगे कदम रक्खा, तो आवेग में भरकर उसने उसका पैर पकड़ लिया। मुँह से बोला-''बाबा, तेरे... !''

हुकूमतराय गिरते-गिरते बचे। वह पिया हुआ क्रोध वापस आ गया, और सारा शरीर आवेश के कारण एकबारगी झनझना उठा। उस नाचीज की इतनी हिम्मत। पहले तो उस कीमती विचार-वाटिका का सत्यानाश कर दिया, फिर.. .फिर ऐसे अपमान के साथ संबोधन करता है। और पाजी की यह हिम्मत कि पैर पकड़ लिया.. .।

यह सब विचार भयानक वेग के साथ पलक मारते दिमाग में घूम गए। हुकूमतराय की आंखों से चिनगारियां छूटने लगीं। आँखें निकालकर और दांत पीसकर उन्होंने पीठ फेरी। रमजू आशा और भयपूर्ण नेत्रों से देख रहा था। पर उनका तो विवेक नष्ट हो चुका था, उसके कातर भाव को लक्ष्य करने लायक भावुकता उनमें कहां से आती? शरीर में जैसे ज्वाला भर गई! उन्होंने पूरे वेग से एक लात रमजू पर चलाई, और पास से एक पत्थर का टुकड़ा उठाकर उस के सिर पर दे मारा।

रमजू की पहली चीख हवा में विलीन हो गई! फिर वह दहाड़ मारकर: रो उठा। सिर से खून की मोरी-सी बह निकली। लात की चोट भी पूरी बैठी थी।

हाथ-पैर का काम खत्म हुआ, तो मुंह का शुरू हुआ। गन्दी-से-गन्दी

गालियों की बौछार-सी होने लगी।

रमजू घात और मार की पीड़ा से चीखता था, रोता था और 'हाय-

हाय' करता था। आस-पास इतनी भीड़ इकट्ठी हो गई थी, पर कोई माई का लाल उसका पक्ष लेकर, हुकूमतराय से जवाब तलब करने वाला न था। जो लोग रायसाहब के परिचित थे वे उनसे-प्रश्न कर रहे थे, उन्हें शांत कर रहे थे, और उनके क्रोध का अतिरंजित कारण जानकर असहाय रमजू पर रोष

प्रदर्शन कर रहे थे।

जब ज्यादा भीड़ इकट्ठी होती देखी, और क्रोध का खासा स्खलन हो चुका, तो रायसाहब आगे बड़े।

बिलखते हुए रमजू की तरफ किसी का ध्यान न था। सब-के-सब आश्चर्य की मूर्ति बने, सहमें-से आतंक-पूर्ण रायसाहब को निहार रहे थे। रामचन्द से सवा रुपया ऐंठने बाला और ज्योतिप्रसाद की झिड़की खाने वाला संन्यासी भी चुपचाप भीड़ में खड़ा था।

घर थोड़ी दूर रह गया था। किसी ने आवाज दी रायसाहब.. .!' रायसाहब ने पीछे फिरकर देखा-अनाथाश्रम का डेपुटेशन! आवाज देने वाला जगन्नाथ था। रायसाहब से भी उसका साधारण परिचय था। उसी बल के आधार पर उसने आवाज दी थी।

रायसाहब थम गए। डेपुटेशन के लोग गर्दन झुकाए, खद्दर के कुरतों की सीवन को टटोलते हुए आगे बड़े। एक के हाथ में हैंड-बिल थे, दूसरे ने रसीद बुकें ले रक्खी थीं, तीसरे, के पास थैली और डोनेशनबुक थी। जगन्नाथ खाली हाथ था।

रंग-ढंग देखकर रायसाहब ने बहुत कुछ अनुमान कर लिया। गुस्सा अभी पूरी तरह शांत नहीं हुआ था। यह नए हमले की तैयारी देखी, तो त्यौरी में बल पड गए। फिर भी थमे रहे।

डेपुटेशन पास आया। सब ने हाथ जोड़कर अभिवादन किया। माथे की त्यौरी नष्ट किये बिना ही रायसाहब ने सिर हिलाकर अभिवादन का उत्तर दिया। डेपुटेशन कुछ शंकित हआ।

जगन्नाथ ने कहा--' 'कहिए, आपका मिजाज तो अच्छा है? ''

रायसाहब कुढ़कर बोले-' 'जी हां, आप इधर कहाँ चले?''

जगन्नाथ ने देखा, रंग बेढंग है! नरमी की नदी में डूबकर बोला-- आपही के दौलतखाने पर कदम-बोसी के लिए हाजिर होने वाला था। '' रायसाहब तब भी बे-तकल्लुफी पर न आए। दुहकर बोले-- .''मेरे...... क्यों, मुझ से क्या काम था?''

जगन्नाथ बोला-'आप तशरीफ ले चलिए, वहीं चलकर बताऊंगा।'' रायसाहब अनखाकर बोले-'आप कहते चलिए, घर पर तो मुझे मरने की भी फुर्सत नहीं रहती। ''

जगन्नाथ ने इस अपमान को कतई न-बरदाश्त कर कहा- ' अच्छा, तो बात यह है......। ''

उसने बिहारीलाल की तरफ देखा। एक हैंड-बिल राय-साहब की तरफ बढ़ा दिया गया।

हैंड-बिल उन्होंने न लिया। मोटी सुर्खी पर दूर से ही नजर डालकर -बोले--''क्या है यह? जबानी फर्माइए, मुख्तसिर ...। ''

जगन्नाथ ने बिहारी लाल की तरफ देखा, और कहा-'जी, लीजिए, -आपसे परिचय करा दूं। आपका नाम......। ''

रायसाहब टोककर बोले-' 'मतलब की बात कहिए न, मुझे देर हो रही है!

बिहारीलाल के मुंह पर हवाइयां उड़ने लगी।

जगन्नाथ बोला-' 'जी, एक अनाथाश्रम की स्कीम है। आप जानते है, आजकल लाखों बालक...। ''

रायसाहब जल उठे। पहले कोई कड़ा उत्तर देना चाहते थे, फिर जगन्नाथ का मुंह देखकर रह गए। बोले-' 'क्या चंदे के लिए आए हैं.. '

'जी, आपकी सम्मति भी लेनी थी! और चंदा तो आप-ही जैसे......। '

' 'आप फिर किसी वक्त मिलें। जो मुनासिब सलाह मैं दे सकता हूं, दूंगा !'' कह कर रायसाहब एकदम चल दिए। डेपुटेशन भी वापस फिरा।

अब बिहारीलाल ने गम्भीरता की चादर उतार फेंकी, और हंसकर ''..... .है बड़ा घाघ!''

अब सब का रूप अकस्मात् बदल गया, और पांच मिनट बाद दूसरे शिकार की खोज होने लगी।

उबर रायसाहब हुकूमतराय घर पहुंचे। खूब ठाठ का घर था। धर क्या महल समझो । देखते ही नौकर-चाकर दौड़ पडे। जूता उतारते हुए एक नौकर ने कहा-''सरकार, कमिश्नर साहब का चपरासी आया था।''

''क्यों? ''--कहकर रायसाहब एक साथ उछल पड़े।

''एक चिट्ठी दे गया है; दफ्तर में रक्खी है! ''

रायसाहब नंगे-पांव उधर दौड़े। चिट्ठी खोलना दुश्वार हो गया । खूबसूरत लिफाफे में मोटे कागज पर छपा हुआ एक सर्कुलरनुमा पत्र था । नीचे चीफ-कमिश्नर के हस्ताक्षर थे।

था क्या? वायसराय ने बादशाह के अच्छे होने की खुशी में 'थैंक्स- गिविंग-फंड' खोला है। उसी की सूचना इस चिट्ठी द्वारा रायसाहब हुकूमतराय: को. दी गई है।

इस छपी हुई चिट्ठी को रायबहादुरी के स्टेशन का टिकट समझकर. रायसाहब उसी वक्त एक हजार रुपए का चेक 'थैंक्स-गिविंग-फंड' में भेजने की व्यवस्था करने लगे।

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. मनुष्य के स्वार्थी स्वभाव को व्यक्त करती यह कहानी बहुत ही संवेदनशीलता के साथ लिखी गयी है।
    बहुत अच्छी कहानी ।

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: दान / हास्य व्यंग्य कहानी / ऋषभचरण जैन
दान / हास्य व्यंग्य कहानी / ऋषभचरण जैन
https://lh3.googleusercontent.com/-u_QtJj43VVY/V3jWIEqsqJI/AAAAAAAAuxc/0rIHno9BdLE/image_thumb%25255B3%25255D.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-u_QtJj43VVY/V3jWIEqsqJI/AAAAAAAAuxc/0rIHno9BdLE/s72-c/image_thumb%25255B3%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/07/blog-post_15.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/07/blog-post_15.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content