व्यंग्य / “बापू जी ! चिंता नक्को” / अरविन्द कुमार खेड़े

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बापू जी ! कुछ नहीं हुआ है आपको । आप चिंता न करें। आप सही-सलामत हैं। मुद्रा पर आपकी बदस्तूर मुखमुद्रा आ रही है। दायें न हुई, बायें हो गयी। क...

अरविन्द कुमार खेड़े

बापू जी ! कुछ नहीं हुआ है आपको । आप चिंता न करें। आप सही-सलामत हैं। मुद्रा पर आपकी बदस्तूर मुखमुद्रा आ रही है। दायें न हुई, बायें हो गयी। क्या फर्क पडा ? कुछ नहीं होगा आपको।

आपकी अवाम पौ फटते ही कतारबद्ध अनुशासित खड़ी है। और भूखी प्यासी होकर पर सांझ ढले तक शांत चित्त है। न उन्हें व्यवस्था से शिकायत है न सत्ता से। निठाल होकर भी आपके गुण जपे जा रही है। अब तो सविनय सुराज लेकर ही हटेगी।

चारो ओर हर्ष और ख़ुशी का माहौल है। जिसके खाते में न रोकड़ है, न खीसे में नगदी। आज उसकी चतुर्दिक इज्जत हो रही है। जगह-जगह उसका मान हो रहा है। स्त्री प्यार जता रही है। क्या लोगे ? आज क्या खाना पसंद करोगे ? मनुहार कर रही है। स्त्री सिरहाने खड़ी सिर दबा रही है, तो कभी पांयताने खड़ी पांव दबा रही है। वह भगदड़ से दूर सुबह , दोपहर , शाम को नरम बिस्तर पर लेटा है। सुकून के पलों में डूबा-सा।

मालिक उस पर कितना मेहरबान है बापू। मुझे तो डर लग रहा है, इतनी ख़ुशी और सम्मान के मारे बेचारे की मौत न हो जाए ? मालिक से प्रार्थना कर रहा हूं बापू। उसे अब जिंदगी बख्श देना।

उसकी किस्मत ने कैसा पलटा खाया बापू। जो उसे टके का नहीं पूछते थे, आज तांता-सा लगा है। लोग मिन्नते कर रहे हैं। अपना सिर फोड़ रहे हैं , ‘‘बोल कितना चाहिए ? बोलता क्यों नही रे ? ’’ उसके दरवाजे पर दातारों की भीड़ है।

देखो बापू जी ! यह वही धन्ना सेठ है, जिसने फकत पचास रुपये के लिए उस बेचारे की कभी पगड़ी उछाल दी थी। आज पचास हजारी की दरकार में आया है। कह रहा है, ‘‘ हमीं ने तेरा क्रिया-कर्म किया था, उद्धार भी हमीं करेगें। ’’

देखो बापू जी ! यह वही पन्ना सेठ है, जिसने मीलों बार नंगे पैर दौड़ाया था, आज फरारी लेकर उसके दरवाजे पर खड़ा है। मानो कह रहा हो, ‘‘ मेरे अवगुण माफ करो साईं। ’’

इस हीरा सेठ को देखो बापू ?

कुछ खबरें आ जरूर रही है बापू। भगदड़ में कुछ लोग मारे गये हैं। आप चिंता न करें बापू। ये विघ्न संतोषी थे, जिन्हें अच्छा कभी सुहाया नहीं। चिड़ थी बापू कि, यदि विधवा का पुर्नविवाह हो गया तो सबसे ज्यादा मुसीबत इनकी ही होनी थी। अच्छा हुआ मर गये उपद्रवी। जिंदा रहते तो अराजकता फैलाते ?

कुछ सीखते अपने ही भाईयों से। जो रोज गांवों से बीस-पच्चीस किलोमीटर दूर पैदल चलकर आते थे, और शाम को बिना शिकायत लौट जाते थे। और फिर सुबह आने का हौंसला जुटा लेते थे। ये भी तो जीवित हैं न बापू ? कतार में खड़े-खड़े इनका विश्वास नहीं टूटा ? और बुजदिलों की सांसे उखड़ गयी।

ये आर्यावत भी भूमि के तो नहीं लगते थे बापू। यदि होते तो राष्ट्रहित में अपने प्राणों की आहूति देते। यदि होते तो इन्हें मालूम न होता कि, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती है। दोनों बलिदान मांगती है , प्राण नहीं। आज ये शहीद होते तो इनके परिवार का कितना भला हो जाता ? धन, मान क्या नहीं मिलता ?

यदि ये इसी देवभूमि के होते तो क्या इन्हें यह मालूम नहीं होता कि, परमार्थ के वास्ते दधीचि ने अपनी हड्डियां तक दान कर दी थी। और बालक श्रीकृष्ण के लिए कई नवजात शिशुओं ने अपने रक्त से इस भूमि को सींचा था। अच्छा हुआ मर गये बापू। मरना ही था। भारत का गौरव मिटटी में मिला दिया। देवभूमि कैसे माफ करती ?

कुछ और भी देखने को मिल रहा है बाप। विरोध में घोर विरोधी एक जुट हो गये हैं। जो कभी एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे। कहते हैं न, दुश्मन का भाई विभीषण होता है। यही कौटिल्य का अर्थ शास्त्र कहता है, और यही कारगर राज शस्त्र भी। दोस्ती गंठ गयी है। पहले सदन ठप्प करेगें, फिर देश को।

कुछ नहीं होगा बापू। हल्ला बोलेगें, हमला बोलेगे, झड़पे होगी, नारेबाजी होगी। छुटपुट हिंसा, तोड़फोड़ और आगजनी होगी। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा ? देश की सम्पति को नुकसान पहुंचाएंगें न ? इससे ज्यादा क्या करेगे ? सड़कों पर दूध बहाकर साबित करेगें कि इस देश में कभी दूध की नदिया बहती थी।

कुछ नहीं होने वाला प्रभु। अब देश को आदत सी पड़ गयी है। जब तक देश में इस तरह की हरकते न हो,देश खुद को मरा हुआ महसूस करता है। जिंदा रहने के लिए यह सब उतना ही जरूरी है।

क्या चिता करें इनकी बापू। ये वहीं लोग हैं, जिन्होनें सारी उम्र अपनी मां को लूटा-खसोटा और सोचा था कि, जब मरेगी, जब अर्थी को कांधा देकर अपनी सारी दुष्टता को ढंक लेगें। लेकिन दांव उल्टा पड़ गया। सारे मंसूबों पर पानी फिर गया। परायों ने कांधा देकर यह अवसर झटक लिया। यह उनका विरोध नहीं बापू, खीज है। वे अपनी खीज उतार रहे हैं। हमारी माता पर हमारा अधिकार था। ये कौन होते हैं अर्थी को कांधा देने वाले ?

बापू आपको तो पता ही होगा, जाल तो बड़ी मछलियों के लिए फेंका गया था। बेचारी छोटी मछलियां फंस गयी। आप तो इरादे देखे न ? इरादे तो नेक है न ? जब बड़ी मछलियों को छोटी मछलियों की खुराक नहीं मिलेगी तो बड़ी मछलियां को मरना ही है। देर-अबेर हो जाती है। अंधेर तो नहीं है न ? छोटी मछलियां भी धैर्य रखें , और चुपचाप दाने चुगे। आखिर बड़ी मछलियों की खुराक बनना उनकी नियति है। अपनी नियति से मुकर कर बेवजह का विवाद तो खड़ा न करें। चुपचाप पानी में रहे, त्राहिमाम न करे।

बार-बार निवेदन करने के बाद भी जब समुद्र के द्वारा रास्ता नहीं दिया जा रहा था, जब श्रीराम जी समुद्र को सुखाने को उद्यत हो गये थे। तभी अचानक समुद्र देवता प्रकट हो गये। दुहाई देने लगे, ‘‘क्षमा करो प्रभु। ’’ श्रीराम जी ने समुद्र से सवाल किया था, ‘‘क्या इसलिए कि, यदि समुद्र को सूखा देता तो, छोटे-मोटे जीव जंतु अकाल मारे जाते ? ’’

‘‘नहीं भगवान इसलिए नहीं।’’ समुद्र ने कहा, ‘‘मरना तो एक न एक दिन सब को है। मैं तो यह विनती कर रहा हूं कि, अपनी सिद्धि को व्यर्थ इस्तेमाल न करे भगवान। पानी में मगरमच्छ जैसे उभयचर प्राणी भी होते हैं। उनपर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। पानी के अंदर न सही, पानी के बाहर धरति पर मजे करेगें। ’’

‘‘अब क्या करूं ? मुझे प्रजा के हितार्थ कोई न कोई संदेश तो देना होगा न ? ’’

‘‘मैं गवाही दूंगा न। मैं कहूंगा कि, मर्यादा वीर ने समुद्र को न सुखा कर छोटे-मोटे जीव जंतुओं पर अपार दया की है। इसलिए बड़ी मछलियों के लिए यह जाल है। छोटी मछलियां निश्चिंत रहे, उन्हें थोड़ी असुविधा होगी, लेकिन अंततः भला उनका ही होगा।’’

मगरमच्छ जैसे उभयचर प्राणी बेकार में ख़लबली मचाये हुए हैं। और देश की अर्थ-व्यवस्था की दुर्गति में लगे हुए है।

व्यंग्यकार-अरविन्द कुमार खेड़े

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-अरविन्द कुमार खेड़े

२०, श्री विनायक कुन्ज कॉलोनी, मांडू रोड़,

धार, जिला-धार, मध्य प्रदेश – ४५४००१

मोबाईल नंबर-०९९२६५२७६५४

arvind.khede@gmail.com

https://www.facebook.com/arvind.khede

संक्षिप्त परिचय-

नाम-अरविन्द कुमार खेड़े

जन्म- २७ अगस्त सन १९७३

शिक्षा--परा स्नातक

सम्प्रति-मध्य प्रदेश शासन, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के अंतर्गत कार्यरत.

कार्यालय-मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, जिला-धार, मध्य प्रदेश – ४५४००१

प्रकाशन –

१-पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित.

२-भूतपूर्व का भूत-व्यंग्य संग्रह-अयन प्रकाशन नई दिल्ली/२०१५ एवं कविता संकलन अँधेरे के ख़िलाफ़-बोधि प्रकाशन जयपुर-२०१६ प्रकाशित.

३.चार साझा काव्य संकलनों में कविताएं प्रकाशित.

४. हिन्दी समय डॉट काम एवं कविता कोष डॉट काम में कविताएं/व्यंग्य सम्मिलित हैं.

५.निकट भविष्य में एक काव्य एवं एक व्यंग्य संग्रह के प्रकाशन की संभावनाएं हैं.

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रचनाकार: व्यंग्य / “बापू जी ! चिंता नक्को” / अरविन्द कुमार खेड़े
व्यंग्य / “बापू जी ! चिंता नक्को” / अरविन्द कुमार खेड़े
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