प्राची - नवंबर 2016 / समीक्षा / सच पर मर मिटने की जिदः साहित्यिक विरासत से रू-ब-रू होने का सच / गणेश चंद्र राही

SHARE:

समीक्षा सच पर मर मिटने की जिदः साहित्यिक विरासत से रू -ब-रू होने का सच गणेश चंद्र राही सच पर मर मिटने की जिद हिंदी के सुप्रसिद्ध आलोचक ए...

समीक्षा

सच पर मर मिटने की जिदः साहित्यिक विरासत से रू-ब-रू होने का सच

गणेश चंद्र राही

सच पर मर मिटने की जिद हिंदी के सुप्रसिद्ध आलोचक एवं कवि भारत यायावर की स्मरणीय पुस्तक है. इस पुस्तक में उनके द्वारा समय समय पर लिखे गये आलोचनात्मक लेखों का संकलन किया गया है. लेकिन जब इन लेखों को पढ़ेंगे तो लेखक की अनुसंधानात्मक दृ-िट एवं शुरू से अंत तक वैचारिक चिंतन भी समझ में आने लगता है. देश के ऐसे लेखकों के बारे में नयी नयी जानकारियों एवं उनको करीब से जानने का एक ऐसा साक्ष्य है जो पाठक को पुस्तक को पढ़ने के लिये बाध्य करते हैं. यहां लेखन के बहुआयामी व्यक्तित्व की झलक एवं लेखन में भी विविधता है. संस्मरण, व्यक्ति चित्र, एवं गंभीर शोध का भी परिचय मिलेगा. फणीश्वरनाथ रेणु, गीतकार शैलेंद्र, राजेंद्र यादव, डॉ नामवर सिंह, नाटककार भुवनेश्वर, अनिल जनविजय, हजारीबाग शहर के साहित्यकारों के संक्षिप्त किंतु अनछुए पहलुओं को खोलनेवाले इतिहास एवं उनकी रचनाओं की पडताल. ये सभी लेख देश की चर्चित पत्र पत्रिकाओं में प्रकााशित हुए है. इनमें साहित्यिक एवं गैर-साहित्यिक लेख हैं.

हिंदी साहित्य के अमर कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु और फिल्मी जगत के महान गीतकार एवं फिल्मकार शंकर शैलेंद्र की फिल्म तीसरी कसम के निर्माण को लेकर जितनी परेशानियों का सामना करना पडा और दोनों हस्तियों के बीच कितने प्रगाढ मधुर प्रेम संबंध थे इसका जीता जागता हास्य करुणा से युक्त महत्व पूर्ण संस्मरण -सच मर मिटने की जिद है. यह भारत यायावर की कलम की ताकत है जिसने ऐसे संस्मरण लिख कर हिंदी पाठकों को चौकाया है. संस्मरण के वाक्य दर वाक्य शंकर शैलेंद्र के जीवन, उसके संघर्-ा, आर्थिक बदहाली, टूटन, दर्द, और तीसरी कसम फिल्म को पूरा करने की बेचैनी साथ ही ऐसे संकट की घड़ी में रेणुजी का सहयोग मन पढ़ते वक्त दर्द एवं करुणा पैदा करता है. शैलेंद्र इस फिल्म के निर्माण के लिये हर प्रकार की कठिनाइयों को झेलने एवं बाधाओं से लोहा लेने तैयार रहते थे. लेखक ने इस परिस्थिति का चित्रण आंखों देखा हाल जैसा किया है- ‘रेणु पर पांच सौ रुपये का कर्ज था और दुर्गति भोग रहे थे. उधर शैलेंद्र भी खस्ताहाल थे. उन पर कर्ज का पहाड़ चढ़ गया था जो फिल्म ढाई तीन लाख में पूरी करनी थी और समय लगना था पांच छह महीने, उसे बनते बनते पांच साल से ऊपर हो गये और खर्च 22 लाख रुपये. जो रेणु शैलेंद्र के लिये हृदय के स्पंदन की तरह थे उनको भी कुछ नहीं दे पा रहे थे. अजीब बेबसी का आलम था. उन्हें भरोसा था तो एक ही कि तीसरी कसम रिलीज होगी और वे तमाम कर्ज से मुक्त हो जायेंगे. लेकिन क्या हुआ? तीसरी कसम शैलेंद्र के जीते जी नहीं रिलीज हुई. 20 सितंबर को उन्होंने रेणु को फिल्म रिलीज होने की सूचना दी पर वह दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश के कुछ शहरों में ही प्रदर्शित हो पायी. उन्होंने लिखा- मुझे अपनी फिल्म का प्रीमियर शो देखना भी नसीब नहीं हुआ 14 सितंबर को राजकूपर जब अपना जन्मदिन मना रहे थे खबर आयी कि शैलेंद्र नहीं रहे. पूरा फिल्म-जगत मर्माहत हो उठा. लेखक ने इन स्थितियों, प्रसंगो एवं भाव बोध का मार्मिक चित्रण किया है. जैसे सारी घटनाएं लेखक की आंखों के सामने घट रही हैं. अदभुत लेख है पढने वाले के दिल को छूता है.

हिंदी आलोचना की एक गौरवशापी परंपरा है. जिसके आधार स्तंभ आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, नंद दुलारे वाजपेयी, हजारीप्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा और नामवर सिंह. डॉ नामवर सिंह हिंदी आलोचना की अंतिम कड़ी हैं, जिसे इतिहास पुरु-ा कहा जा सकता है. भारतीय पंरपरा और आधुनिकता के द्वंद्व से उनकी आलोचना निर्मित हुई है. यही कारण है उनमें एक तरफ संस्कृत, अपभ्रंश एवं हिंदी साहित्य की प्रगतिशील परंपरा का गहरा बोध है दूसरी तरफ पाश्चात्य देशों की मनी-ाा का अवगहान. अपार ज्ञानरात्मक अनुभव के साथ उन्होंने एक अलग दृ-िट निर्मित की एवं हिंदी आलोचना के विकास में महत्वूपर्ण योगदान दिया. लेखक ने डॉ नामवर सिंह के हिंदी आलोचना क्षेत्र में आर्विभाव और उनकी दीर्घकालीन साहित्य साधना को अस्सी के नामवर सिंह लेख में काफी गंभीरता से विचार किया है. नामवर सिंह ने हिंदी आलोचना को शिखर तक पहुंचाने का काम किया है. इस कारण उन्हें आलोचना के शिखर पुरु-ा कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं कही जा सकती है. लेखक ने नामवर सिंह के वैचारिक दृ-िट का विकास और उनके चिंतन को आग्रह पूर्वक नहीं बल्कि उनकी समस्त आलोचनात्मक कृतियों और शोधग्रंथों का गहन अध्यन कर रेखांकित किया है. आलोचक नामवर सिंह को समझने की यहां एक स्प-ट दृ-िट है.

हिंदी कथा जगत को अपने लेखन, वैचारिक विमर्श एवं संपाकदीय लेखों द्वारा प्रभावित करनेवाले सुविख्यात कथाकार राजेंद्र यादव पर लिखा गया लेख ‘राजेंद्र यादव की विरासत’ सुचिंतित एवं हास्य व्यंग्य से भरपूर है. लेखक ने अपने व्यक्तिगत संबंधों, मुलाकातों एवं उनकी कृतियों के आस्वादन कर अपनी आत्मीय शैली में काफी रोचक ढंग से लिखा है. हंस के संपादक रहते हुए उन्होंने अपने संपादकीय के माध्यम से कई प्रकार के विमर्श छेड़े हैं. हिंदी के विद्वानों एवं लेखकों का ध्यान उस ओर जाता रहा है. कई बार राजेंद्र यादव को विवादित संपादकीय के लिये तीव्र व्यंग्यवाणों का प्रहार भी सहना पड़ा है. उनका कभी दलित विमर्श तो कभ स्त्री विमर्श और कभी हिंदी पटटी को गोबर पटटी बताकर चर्चा में आ जाते थे. राजेंद्र यादव नयी कहानी आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षरों में से एक रहे हैं. कमलेश्वर एवं मोहन राकेश के साथ इन्होंने कहानियों की कथावस्तु पर विशे-ा बल दिया. कहानियों में रूढ़ियों का विरोध एवं आधुनिक जीवन-दृ-िट को स्थापित करने में अहम भूमिका निभायी. इन पर लिखा यह लेख पहले पाखी में छपा था. जो काफी चर्चित हुआ था. भारत यायावर ने इस लेख में राजेद्र यादव के लेखन, चिंतन एवं व्यक्तिगत जीवन से ऐसे संदर्भों को खोज निकाला है जो हिंदी के पाठकों एवं साहित्यकारों के लिये भी चौकानेवाले हैं. और सबसे बड़ी बात यह है कि लेखक की ईमानदारी, आत्मीयता एवं सत्य की खोजी दृ-िट ने लेख को अधिक रोचक एवं पठनीय बनाया है. राजेंद्र यादव जैसी हस्ती पर इतने साहस एवं चुनौतियों का सामना करने की दृढ़ता बिरले लेखकों में पायी जाती है. लेखक उनके व्यक्तित्व का एक चित्र यहां इस तरह खिंचता है- ‘राजेंद्र यादव कितने ही रावण के पक्षधर हों, कितनी भी नकारात्मक दृ-िट रखते हों लेकिन वे खलनायक तो कतई नहीं हैं. उनके जैसा प्रेमी साहित्यकार हिंदी में दूसरा नहीं. वे सरल, सहज और उदार हैं. जनवादी हैं. विद्रोही हैं. विनम्र और मिलनसार हैं. सहनशील हैं. सामाजिक हैं. अपने साथ के लोगों की चिंता करते हैं. मिलने पर आत्मीयता से बतियाते हैं. चाय पीते एवं पिलवाते हैं. छोटों से भी दोस्ताना अंदाज में बतियाते हैं. विरोधी बातें करनेवालों को भी तरजीह देते हैं. वे हिंदी लेखकों के हमदम हैं. मैं उनसे उम्र में पच्चीस वर्-ा छोटा हूं, किंतु मुझसे जब भी मिले समान स्तर पर मिले और मुझे लगा कि इतना खुला हुआ आदमी हिंदी साहित्य में कोई दूसरा नहीं है.’

भारत यायावर ने अपने चिरपरिचित साहित्यकारों पर अनूठे शब्द चित्र लिखे हैं. इन शब्द चित्रों में अनिल जनविजय, भारत भारद्वाज के नाम शामिल किये जा सकते हैं. लेखक ने अपने अजीज मित्र अनिल जनविजय जो सपरिवार रूस में रहते हैं दिल खोलकर न केवल प्रशंसा की है, बल्कि उनके जीवन में आयी दुख की घड़ियों एवं उनके संघ-ारें को बड़े ही आत्मीय ढंग से बताया है. यारों का यार अनिल जनविजय नामक के इस शब्द चित्र में कवि जनविजय के व्यक्तित्व के कई महत्वूपर्ण एवं रोचक पहुलओं को उभारा है. इतनी आत्मीयता एवं प्रेम है कि पढ़ते वक्त लेखक की भावनाओं में बहना पडता है. लेख की शुरुआत इस प्रकार से है- अनिल! दोस्त, मीत, मितवा! मोरी आत्मा का सहचर! जीवन के पथ पर चलते चलते अचानक मिला भिक्षुक को अमूल्य हीरा. निश्छल -बेलौस -लापरवाह -धुनी -मस्तमौला -रससिद्ध अनिल जनविजय! जब उससे पहली बार मिला, दिल की धडकनें बढ़ गयीं. क्यों, कैसे? नहीं कह सकता. यह भी नहीं कह सकता कि हमारे बीच में इतना प्रगाढ प्रेम कहां से आकर अचानक समा गया. अनिल को बाबा नागार्जुन मुनि जन विजय कहा करते थे. उसने पहचान लिया था कि उसके भीतर कोई साधु-संन्यासी की आत्मा विराजमान है. वह प्रेम का राही है, जो भी प्यार मिला ,वह उसी का हो लिया. इसमें अपने कवि मित्र के प्रति भारत यायावर का हृदय बहता हुआ दिखायी पडता है. इसमें एक आवेग है, जोश है, उमंग है एवं गहरी रागात्मकता है. उन्होंने अनिल जन विजय के अभावग्रस्त जीवन, उसकी स्थितियों एवं पारिवारिक तकलीफों के साथ उसमें बाद में आये परिवर्तन सुख और खुशिहाली के दिनों का भी बड़ी ही आत्मीयता, करुणा एवं प्रेम का चित्रण किया है. अपने अजीज दोस्त की आतिथ्य सत्कार वृत्ति एवं उसके सहयोगी व्यक्तित्व पर बाग बाग हो जाता है. लेख में कई रोचक प्रसंग हैं.

मेरे मीता भारत भारद्वाज में भारत यायावर का दोस्ताना अंदाज बड़ा ही मजेदार है. भारत भारद्वाज पर उनका दोस्ताना अंदाज पढ़ा एवं जाना सकता है. सबसे बड़ी बात जो है वह यह कि भारत यायावर का व्यक्तित्व ही दोस्ताना है. उनके संपर्क में आनेवाले लोग चाहे उम्र में उनसे काफी छोटा हो या बड़ा सबसे आत्मीय व्यवहार कर उनका दिल जीत लेते हैं. देश की सभा गो-िठयों में एवं सेमिनारों में मिलनेवाले साहित्यकार उनका मीता हो जाता है. यह गुण हर लेखक में अक्सर देखने को नहीं मिलता. यदि दोस्ती में कोई बाधक है तो अपना नया फार्मूला भी बनाना जानते हैं. और उनकी इस संवांद शैली से सामनेवाला व्यक्ति बिना प्रभावित रह नहीं सकता. दूसरी वह जो भी कहते हैं हदय से कहते हैं. निःसंकोच और बेधड़क कहते हैं. भारत भारद्वाज के बारे में कहते है- ‘भारत भारद्वाज वन पीस आदमी हैं. दिल्ली में रहते हैं और दिल्ली में रमे हुए हैं. और मैं हजारीबाग में रहता हूं. स्वीकार करता हूं कि मै हर खेल में अनाड़ी हूं. किसी किसी खेल का कोई कोई गुर वे ही बताया करते हैं. हम दोनों भारत हैं और प्यार से एक दूसरे को मीता कहते हैं. इस मीतापन को और गहरायी में जाकर उनके व्यक्तित्व की व्यापकता को इस प्रकार बताते है- भारत भारद्वाज स्मार्ट ही नहीं बेहद अध्ययनशील आदमी हैं. रोज 12 घंटे लिखते-पढ़ते हैं. बाकी के काम कब करते हैं, वे ही जानते हैं. उन्हें जो भी काम सौंपा दिया जाए उसे तुरंत तत्परता से करते हैं. पढ़ते लिखते समय थोड़ा पीते हैं और पीने को रस-रंजन कहते हैं. वे इतना रस ग्रहण करते हैं कि फिर भी कठोर लगते हैं. पर मैं जानता हूं- वे भावुक और हमदर्द इंसान हैं. बड़ा ही रोचक, हास्य एवं व्यंग्य के साथ ज्ञान को बढ़ानेवाला लेख है. दोनों की अंतरंगता एवं प्रेम की अनूठी मिसाल इस लेख में पेश है.

साहित्यकारों का शहर लेख में उन्होंने अपने प्रिय शहर हजारीबाग के रचनाकारों पर अदभुत संस्मरण लिखा है. यह संस्मरण इसलिये ऐतिहासिक हो गया है कि इसमें पहली बार हजारीबाग में कई दशकों से विभिन्न भा-ााओं में लिखनेवाले कवियों, कहानीकारों, उपन्यासकारों एवं साहित्य मनी-िायों के जीवन, उनके साथ बिताये गये पल, साहित्यिक गो-ठी एवं साहित्य परिवेश को दर्ज किया है. भारत यायावर ने अपने संपर्क में आनेवाले चाहे वह लेखन के क्षेत्र में पहला कदम रखनेवाला छात्र हो व वरीय रचनाकार हो उनके बारे में जरूरत के अनुसार लिखा है. संस्मरण को अधिक रोचक एवं पठनीय बनाने के लिये लेखक ने लेखकों के जीवन के विभिन्न प्रसंगों का उल्ल्ेाख किया है. यह संस्मरण हजारीबाग के लेखकों के लिये प्रेरणा देनेवाला नहीं, बल्कि देश के किसी भी शहर में लिखनेवाले संवेदनशील रचनाकारों को प्रेरित कर सकता है. हजारीबाग से महाकवि रवींद्रनाथ टैगोर, राहुल सांस्कृत्यायन, रामबृक्षपुरी, रामनंद संिहत रेणु जी, विजय कुमार संदेश, गोपाल शरण पांडेय, छविनाथ मिश्र, विजय बहादुर सिंह, नंददुलारे वाजपेयी, कुमार सरोज, शंभु बादल, रमणिका गुप्ता, प्राणेश कुमार, रतन वर्मा, डॉ चंद्रेश्वर कर्ण, भूपाल उपाध्याय, शंकर तांबी, सच्चिदानंद धूमकेतु, विजय केसरी, अशोक प्रियदर्शी, रामनरेश पाठक, जहीर गाजीपुरी, डॉ. नागेश्वर लाल, गणेश चंद्र राही समेत दर्जनों साहित्यकारों के साहित्यिक परिचय, उनके व्यवहारिक जीवन एवं लेखन को बड़ी ही विद्वता से इस लेख में समेटा गया है. कौन कहां से हजारीबाग आये, कहां किस पद नौकरी की एवं रचनात्मक लेखन से किस प्रकार उनका जुड़ाव रहा. उनका हजारीबाग की साहित्यिक भूमि को सींचने में कितना अहम योगदान रहा, भाारत ने बडी सादगी एवं नि-ठा के साथ कलमबद्ध किया है. आनेवाली नये रचनाकारों की पीढ़ियों को कुछ नया लेखन एवं ऐतिहासिक कार्य करने के लिये यह एक तरह से भूमिका लिखी गयी है. और शहर के रचनाकारों पर इस परंपरा को वहन करने की जिम्मेवारी दी है.

पुस्तक में इसके अलावे राधाकृःण के संग और उनके ढंग, राधाकृःण एक अप्रतिहत रचनाकार, मैं ऐसे बाबा का चेला हुआ, फकीरों में नव्वाब, गिरहकट, अघोरी साधक : भुवनेश्वर एवं महापुरु-ाों में बालगंगाधर तिलक, गोपाल कृःण गोखले, अबुल कलाम आजाद, एनी बेसेंट एवं जयप्रकाश नारायण पर गंभीर चिंतनपरक लेख विरासत की तरह हैं. हर लेख एक नया दृ-िटकोण प्रदान करता है और साथ ही भारत यायावर की गंभीर अध्ययन प्रवृत्ति. मैं ऐसे बाबा का चेला हुआ लेख हिंदी के महान जनकवि बाबा नागार्जुन के साथ गुजारे कई अंतरंग क्षणों एवं उनके साथ सीखे ज्ञान अनुभव के ऊपर लिखा गया है. नागार्जुन के व्यवहार एवं व्यक्तित्व के कई अनजाने पहलुओं से पहली बार अवगत होते हैं. पूरी किताब पढ़ने में जो हमें कहीं भटकने नहीं देती वह है लेखक की प्रवाहपूर्ण शैली. यह गंभीर अध्ययन, साधना एवं नियमित लेखने से प्राप्त हो सकती है. पढ़ते वक्त काव्यात्मक आनंद होता है. सरल एवं सहज भा-ाा में लिखे गये सभी लेख साहित्य की विरासत में संजोये जाने लायक है. नवीन चिंतन एवं जानकारियां पुस्तक को बार बार पढने की इच्छा जगाते हैं. ज्ञान एवं संवेदना लेखक की भा-ाा की विशे-ाता रही है.

समीक्षक का पताः ग्राम-डूमर, पो. जगन्नाथधाम,

जिला- हजारीबाग-825317 (झारखंड)

पुस्तकः सच पर मर मिटने की जिद

लेखकः डॉ भारत यायावर

प्रकाशकः अनन्य प्रकाशन, ई-17,पंचशील गार्डन,

नवीन शहादरा, दिल्ली-1100032

मूल्यः 450 रुपया

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्राची - नवंबर 2016 / समीक्षा / सच पर मर मिटने की जिदः साहित्यिक विरासत से रू-ब-रू होने का सच / गणेश चंद्र राही
प्राची - नवंबर 2016 / समीक्षा / सच पर मर मिटने की जिदः साहित्यिक विरासत से रू-ब-रू होने का सच / गणेश चंद्र राही
https://lh3.googleusercontent.com/-OHo7kNfJflk/WEqIqhk0q3I/AAAAAAAAxcU/X7gL2VHvdcA/image_thumb%25255B1%25255D.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-OHo7kNfJflk/WEqIqhk0q3I/AAAAAAAAxcU/X7gL2VHvdcA/s72-c/image_thumb%25255B1%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/12/2016_16.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/12/2016_16.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content