देश बचाओ - (कविता-संग्रह) - कुमार करन "मस्ताना"

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देश बचाओ (कविता-संग्रह) कुमार करन "मस्ताना" विषय सूची कविता ...



देश बचाओ
(कविता-संग्रह)


कुमार करन "मस्ताना"


विषय सूची

कविता पृष्ठ संख्या
दो शब्द 4
1. देश बचाओ 6-8
2. बापू का स्वप्न 9-10
3. क्या हिन्दू, क्या मुस्लिम 11-12
4. कब मिटेंगे आदमख़ोर 13-14
5. वक़्त 15
6. चमन सजाये रखना 16-17
7. देश के लुटेरे 18-20
8. क्या हम मानव हैं 21
9. माँ!मत ला आँखों में पानी 22-23
10. परिवर्तन 24-26
11. अपनी यह ख़ामोशी तोड़ 27-28
12. टूट रहा है हिन्द हमारा 29-30
13. लेखक परिचय 31



दो शब्द
मेरी इस रचना का उद्देश्य किसी धर्म-मज़हब को अपमानित करना नहीं बल्कि इनके ओट में होनेवाले बुराईयों को उजागर करना है! आज इस देश को जाति-धर्म के नाम पर तोड़ा जा रहा है और हम मूकदर्शक बने यह तमाशा देख रहे हैं, सच तो ये है कि अब हमारी रगों में खून नहीं पानी दौड़ रहा है!
हम स्वार्थ और ईर्ष्या में इतने डूब चुके हैं कि इसके आगे कुछ दिखाई ही नहीं देता! जरा सोचें, यदि वर्तमान में हमारी यह स्थिति है तो भविष्य में क्या होगी और इसके ज़िम्मेदार हम ख़ुद होंगे! हमारे पुरखों ने स्वतंत्रता के लिए हँसकर प्राण गवाँ दिए ताकि उनकी आनेवाली पीढ़ियाँ गुलामी में सांस न ले और आज हम उन्हीं के वंशज अपने दायित्वों से भाग रहे हैं! देश के लिए आत्मबलिदानी की बात तो दूर हमारे पास अपने देश के लिए सोचने का भी वक़्त नहीं है, सोचिए हम ख़ुद में कितने व्यस्त हो चुके हैं! आज यही कारण है कि हमारी पहचान विश्वगुरु के रूप में होकर भी अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत है!
कुमार करन "मस्ताना"



हिन्दी दिवस 2015 के शुभ अवसर पर युवा भाजपा नेता आदरणीय
श्री कमल यादव जी(गुड़गाँव,हरियाणा) को अपनी रचना समर्पित
करते हुए!
तमाम खौफ़ दिल से भुलाने का वक़्त है!
आग की दरिया में उतर जाने का वक़्त है!
हरेक सिम्त तूफ़ानों के साये हैं खड़े देख,
घर के चिरागों को बचाने का वक़्त है!.
(इसी काव्य-संग्रह से)


देश बचाओ

धू-धू जलती आग बुझाओ,
हे कर्णधारों! देश बचाओ!

चोर ख़जाना लूट रहा
घर जर्ज़र हो टूट रहा
रिसता गागर लो संज्ञान
समृद्धि होती निष्प्राण
आँखें खोलो जाग भी जाओ,
हे कर्णधारों! देश बचाओ!

विविध जाति-धर्म के कीड़े
बाँट रहे हैं बस्ती-नीड़े
यही षड्यंत्र हो रही आज
डालो फूट और करो राज


इनके झांसे में ना आओ,
हे कर्णधारों! देश बचाओ!

दीप हुई है तम से त्रस्त
उम्मीद की किरणें होती अस्त
साहस किसमें,मुँह खोले कौन
सबने साध रखा है मौन
नवक्रांति की दीप जलाओ,
हे कर्णधारों! देश बचाओ!

सिसकी यह जन-जन की सुन
चूस रहे अपने ही खून
घोर घटा संकट की छाई
अपनी इज्ज़त दाव पे आई
पुनः खोई गरिमा लौटाओ,
हे कर्णधारों! देश बचाओ!



लुटेरों का बढ़ता शासन
डोल रहा है राजसिंहासन
अपाहिजों के वश में सत्ता
देश बना है सूखा पत्ता
उपवन की हरियाली लाओ,
हे कर्णधारों! देश बचाओ!

कल तक था जो स्वर्ग समान
धूमिल होती उसकी पहचान
जो एक सपूत करता है सदा
कर मातृभूमि का कर्ज़ अदा
आओ हाथों से हाथ मिलाओ,
हे कर्णधारों! देश बचाओ!



बापू का स्वप्न

माना कि तू दुःखी है आज
मिला नहीं है पूर्ण स्वराज

सच है! बुरा है देश का हाल
नहीं यहाँ जन-जन खुशहाल

व्यर्थ अभी तक तेरा तपना
तोड़ रहा दम देखा सपना

दूर नहीं हुआ है तम
असफल अभी भी तेरा श्रम

राजा माँग रहा है भीख
भूल गए सब तेरी सीख



मुकर रहे सब लिये शपथ से
विमुख हुए अहिंसा पथ से

ठनी वतन सौदे की रार
एक ही खून में पड़ा दरार

ऐसे में दुःख तो होता होगा
मन ही मन तू रोता होगा

किंतु नहीं मरे हैं तेरे पूत
हम बनेंगे शांतिदूत

झुका दिया तेरे आगे शीश
ठोंक पीठ और दे आशीष



हम जन-जन से प्यार करेंगे
बापू तेरा स्वप्न साकार करेंगे!



क्या हिन्दू,क्या मुस्लिम

क्या हिन्दू,क्या मुस्लिम यारों
ये अपनी नादानी है!
बाँट रहे हो जिस रिश्ते को
वो जानी-पहचानी है!!

क्या पाया है लड़कर कोई
छोड़ ये ज़िद्द लड़ाई की
किस हक से तू चला काटने
सिर ऐ यार खुदाई की
तेरी रगों खून है तो क्या
मेरी रगों में पानी है!



हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई
ख़ुद को बाँट रहा है तू
एक शज़र के शाख हैं सारे
जिसको काट रहा है तू
जाति-मज़हब की ये बातें
बनी-बनाई कहानी है!


इक मिट्टी हम सब टुकड़े
यह बँटवारा करना छोड़
इब्ने-आदम मैं भी, तू भी
'करन' भरम में रहना छोड़
क्या अल्लाह या राम ने सबको
दी कोई निशानी है!


कब मिटेंगे आदमख़ोर

भड़क उठी हिंसा पुरज़ोर
कब मिटेंगे आदमख़ोर?

जगह-जगह लाशों की ढेर
रक्त में डूबा सांझ-सवेर
नित्य नये होते हैं जंग
लाल हुई धरती की रंग
आग लगी यह चारो ओर,
कब मिटेंगे आदमख़ोर?

शहर-गाँव श्मशान हुए
हँसते आँगन विरान हुए


सरल हुआ है खूनी खेल
अपना ही घर बना है जेल
टूटी मानवता की डोर,
कब मिटेंगे आदमख़ोर?

सृष्टि का अपमान हुआ
अति निष्ठुर इंसान हुआ
लुट गया है मन का चैन
जिसको देखो भींगे नैन
रक्षक हुए लुटेरे-चोर,
कब मिटेंगे आदमख़ोर?

जहाँ भी देखो चीख-पुकार
चहुँ ओर गूँजे चीत्कार



सबको है लालच का रोग
शत्रु बने हैं अपने लोग
व्यथा हृदय को दे झकझोर,
कब मिटेंगे आदमख़ोर?



वक़्त

तमाम खौफ़ दिल से भुलाने का वक़्त है!
आग की दरिया में उतर जाने का वक़्त है!
हरेक सिम्त तूफ़ानों के साये हैं खड़े देख,
घर के चिरागों को बचाने का वक़्त है!.



चमन सजाए रखना

ना पुनः कभी वसंत रूठे
ना फिर कोई डाली टूटे
है दूर पतझड़ डेरा डाले
हे उपवन के रखवाले
इसे सींचकर लहू से अपने हरित बनाए रखना,
यह चमन सजाए रखना!

हरेक से हो समरूप लगाव
ना हो फूलों में भेदभाव
श्वेत,लाल या नीला देह
मिले सभी को पूर्ण स्नेह

करुणा और सद्भाव की दीप जलाए रखना,
यह चमन सजाए रखना!

विविध ऋतुओं का पवन बहे
उपवन की शोभा बनी रहे
आयेंगे लाखों सर्प तक्षक
बनकर रहना तुम रक्षक
अपनी कर्तव्यनिष्ठा की लाज बचाए रखना,
यह चमन सजाए रखना!

ना पनपे घृणा का बीज
रहे एकता सबके बीच
सारे फूल चमन के अंग
अमर रहे यह प्रेम का रंग
आत्मीयता का युगों-युगों तक रीत निभाए रखना,
यह चमन सजाए रखना!


देश के लुटेरे

स्वतंत्रता की नींव हिलती
देश को सौ सुरसा निगलती
देखो सत्ता की शक्ति!
अब राजनीति की चाभी से
खुल रहे है देश के ताले,
सेवाओं के नाम पर शोषण
कुचले जाते मजदूर-गरीब जन
देशभक्ति के आड़ में होते
लूट-खसोट और बड़े घोटाले!

किन्तु क्या देखा है कोई
उन मजदूरों के बच्चों को


जिनकी छाती की पसलियाँ
साफ़ दिखाई देती है
सूखे चेहरों और बिखरे बालों से
एक अलग चीत्कार सुनाई देती है
जो अकालमृत्यु की चोट से
असमय मुरझाकर झर जाते हैं

क्षुधा-अग्नि में जलकर तिल-तिल
तड़प-तड़पकर मर जाते हैं
आख़िर कौन है
इन अबोधों का हत्यारा,
कौन है इनका कातिल-दोषी?
क्यों जमे हैं जबड़े सबके
कुछ तो बोलो कोई
है क्यों चेहरे पर ख़ामोशी?



खेलता है कोई रोटियों से यहाँ देखो
और किसी की सूनी थाली है
किसी के लिए बेरंग है होली
किसी की हर रोज़ दिवाली है!

राजनीति की चाभी,
सत्ता की शक्ति
और शासन की कुर्सी के लिए
जनता मात्र जीवित खिलौना है!
मंत्री और सेठों की दृष्टि में तो
हर गरीब, मज़दूर-किसान
क्षुद्र और घिनौना है!

इनके शक्तियों के आगे
मजदूरों का हक बौना है!



स्वतंत्रता के साये में कहीं
सच अभी भी देश गुलाम है,
ऐसे ही लुटेरों से भारत की
आज राजनीति बदनाम है!



क्या हम मानव हैं

प्रतिक्षण खड़ा पतन के सम्मुख
वास्तविक उद्देश्य से अनभिज्ञ
ध्येय पथ से विमुख
विकारपूर्ण मन
मानवता रहित अन्तर
यह स्वार्थमय जीवन
व्यर्थ अनमोल क्षण क्षण
निज अस्तित्व से पृथक
मानवीय सभ्यता-संस्कृति से दूर
भ्रम तिमिर में चूर
ईर्ष्या-घृणा से युक्त
विकृत आंतरिक स्वरूप
अपने दायित्व से मुक्त!


ऐसे हो गए हैं हम वर्तमान समय में,
तो स्वयं से मंथन करो
कि क्या हम मानव है?
शायद नहीं!



माँ! मत ला आँखों में पानी

हे भारती!
क्यों होती है उदास
हम पूतों पर रख विश्वास
नहीं लुटेगा शीश का ताज़
बची रहेगी तेरी लाज
कर दूँगा न्योछावर तुझपे
अपना तन-मन और जवानी,
माँ! मत ला आँखों में पानी!

है शोणितों में उबाल वही
जीवित हैं तेरे लाल अभी
हर पीड़ा झेलेंगे हँसकर
आँच न आने देंगे तुम पर


कोटि-कोटि पूर्वजों की
व्यर्थ नहीं होगी बलिदानी,
माँ! मत ला आँखों में पानी!

जब तक होगा सांसों में दम
डटे रहेंगे हर पल हम
निःसंदेह तू दे आशीष
नहीं झुकेगा तेरा शीश
युगों-युगों तक रहेगा अंकित
हम लिखेंगे वह अमर कहानी,
माँ! मत ला आँखों में पानी!

चहुँ ओर होगी खुशहाली
अमिट रहेगी यह हरियाली



सुख-समृद्धि का भंडार
सदैव रहेगा तेरे द्वार
तेरी कीर्ति से महकेगा जग
तू बनी रहेगी वसुधा की रानी,
माँ! मत ला आंखों में पानी!


परिवर्तन

सड़कों पर,
तीव्र गति से भागती गाड़ियाँ,
आकाश में उड़ते हवाई जहाजें,
सागर में दौड़ते बड़े-बड़े विशालकाय पोत
सिमटी हुई छोटी सी यह दुनिया
है भाग-दौड़ की भीड़ में लोप!
नित्य नए-नए सुख-सामग्री का
सृजन करता हुआ यह विज्ञान,
प्रतिपल दुनिया में परिवर्तन का
एक नया आयाम लिखता हुआ इंसान
न जाने किस ऊँचाई पर
तीव्र वेग से चला जा रहा है!



कैसा है यह परिवर्तन?
बदलती हुई सभ्यता-संस्कृति,
बदलता हुआ यह परिवेश
बदलते हुए जीवन के बिंदु,
बदलता हुआ यह गांव,शहर और देश!

यह क्रांति ने मानव को सुखी,समृद्ध
और ताकतवर बना दिया है
किंतु दूसरी ओर उतना ही दुःखी,
गरीब और कमजोर भी!
आज मानव इस प्रगतिशील युग में,
दुनिया की विशाल भीड़ में
स्वयं कोअकेला,असहज
और असुरक्षित अनुभव करता है!
प्रत्येक दिशा में वह एकांत खोजता है,
भीड़ से सदैव बचना चाहता है!


पहले मानव को भीड़ पसंद था
लेकिन अब परिस्थितियाँ
विपरीत और प्रतिकूल हो गई
वह अकेला,एकांतवास रहना चाहता है
कैसी है यह क्रांति?
जो हमें दुनिया से अलग-थलग कर दे
अपनों से दूर कर दे,
भरी भीड़ में अकेला कर दे
स्वयं से ही पृथक और मजबूर कर दे
मानव को स्वार्थी,
आलसी और शैतान कर दे
मानवता से अपरिचित
और बेईमान कर दे
आत्मग्लानि से युक्त
निर्मम,नासमझ और नादान कर दे!


कैसी है यह प्रगति?
जो उचित मार्ग से
पथ भ्रष्ट कर दे
विनाश को आमंत्रित कर दे
मनुष्यता को संक्रमित कर दे
धरती को निर्वसन कर दे
आकाश को अभिशप्त कर दे
जल को दूषित कर दे
समस्त सृष्टि को क्षीण-भिन्न कर दे!
हमें यह सोचने पर मजबूर कर देता है
कि इस गौरवमई परिवर्तन पर गर्व करें
या रोयें आत्मग्लानि से,
समझ में नहीं आता
कि यह समृद्धि की ओर
बढ़ता हुआ कदम है या की ओर!



अपनी यह ख़ामोशी तोड़

सहोगे कब तक यह प्रहार
छीन रहा तेरा अधिकार
बहुत हुआ छल-कपट,अंधेर
आँखें खोल अब मत कर देर
देख तुम्हें सब रहे निचोड़,
अपनी यह ख़ामोशी तोड़!

सिर्फ़ दिखावा है यह पोषण
हो रहा है तेरा शोषण
तेरी रोटी किसी का भोजन
आख़िर इसका क्या प्रयोजन
दुर्बल बनकर रहना छोड़,
अपनी यह ख़ामोशी तोड़!


वर्तमान की यही सच्चाई
कोई न समझे पीर पराई
देकर लालच दिखाकर सपना
सब गेह भरे हैं अपना-अपना
लगी है लुटेरों में होड़,
अपनी यह ख़ामोशी तोड़!

यह तेरा रहना चुपचाप
बन जाये न कहीं अभिशाप
ओस नहीं अब बन चिंगारी
कर बग़ावत की तैयारी
दे जवाब उनको मुँहतोड़,
अपनी यह ख़ामोशी तोड़!


चोर-लुटेरों का यह फ़ौज
तेरे दम पर करता मौज
बिगुल बजा होकर निर्भय
निज शक्ति का दे परिचय
अपने हक से मुँह मत मोड़,
अपनी यह खामोशी तोड़!


टूट रहा है हिन्द हमारा

सुनो समय का करुण पुकार
ले डूबेगा यह अंधकार
पुनः न हो जाए माँ दासी
जागो मेरे भारतवासी
आओ मिलकर दें सहारा,
टूट रहा है हिन्द हमारा!

भेदभाव की छाया काली
काट रही एकता की डाली
जाति-धर्म का यह टकराव
नित्य नये उपजाता घाव
रोको बहती खून की धारा,
टूट रहा है हिन्द हमारा!


हुआ प्रचंड द्वेष का वार
एक लहू में पड़ा दरार
शिथिल हुई समृद्धि सुहाग
हरेक सिम्त यह भीषण आग
दूर-दूर तक ओझल किनारा,
टूट रहा है हिन्द हमारा!

असफल होती मिली सफलता
छाती यह प्रबल दुर्बलता
धरती का रंग होता लाल
हालत नित होती बद्हाल
अपना ही घर बना है कारा,
टूट रहा है हिन्द हमारा!


अब मूक रहने का वक्त नहीं
बिखर न जाए देश कहीं
पतन के राहों पर सम्मान
शीघ्र बचा अपनी पहचान
कोई जतन कर,कर उजियारा
टूट रहा है हिन्द हमारा!

प्राण गया पर गई न लाज
रहा सुशोभित हिन्द का ताज
याद कर पुरखों की बलिदानी
लहू को मत बनने दे पानी
वही बग़ावत कर दोबारा,
टूट रहा है हिन्द हमारा!


लेखक परिचय


नाम : कुमार करन "मस्ताना"
Member of
(film writer's association Mumbai)
(The poetry society of India)
जन्म स्थान : ग्राम- धनगॉई, पाटन, पलामू (झारखण्ड)
प्रिय विधाएँ : कविता, कहानी, निबंध, संस्मरण, व्यंग्य और गज़लें
पता : ग्राम-धनगॉई, पोस्ट-गहरपथरा, तहसील-पाटन,
पलामू (झारखण्ड)-822123

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 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. 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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: देश बचाओ - (कविता-संग्रह) - कुमार करन "मस्ताना"
देश बचाओ - (कविता-संग्रह) - कुमार करन "मस्ताना"
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