प्राची-दिसंबर 2016-साक्षात्कार डॉ. भावना शुक्ल से इन्द्रेश कुमार जी की बातचीत

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साक्षात्कार डॉ . भावना शुक्ल से इन्द्रेश कुमार जी की बातचीत... (पिछले दिनों प्राची की सहायक सम्पादिका डॉ. भावना शुक्ल ने इन्द्रेश कुमार...

साक्षात्कार

डॉ. भावना शुक्ल से इन्द्रेश कुमार जी की बातचीत...

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(पिछले दिनों प्राची की सहायक सम्पादिका डॉ. भावना शुक्ल ने इन्द्रेश कुमार का साक्षात्कार लिया था. उन्होंने कुछ प्रश्न इन्द्रेश जी के सामने रखे थे, जिनका उत्तर उन्होंने एक साथ ही बोलकर एक वक्तव्य के रूप में दिया था, अतः हम यहां सभी पूछे गये प्रश्नों को पहले दे रहे हैं और इन्द्रेश जी के वक्तव्य को उसके बाद, ताकि पाठक उसको समग्र रूप से समझ सकें.

संपादक)

1. आपको बहुत-बहुत प्रणाम और बधाई कि विश्वग्राम परियोजना को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता पुरस्कार के रूप में प्राप्त हुई. हम आपसे विश्वग्राम के सन्दर्भ में विस्तार से जानना चाहेंगे. इस कल्याणकारी योजना से आतंकमुक्त विश्व की कल्पना कैसे साकार होगी?

2. भारत ने अपनी बढ़ती सेना को रोक दिया. फलस्वरूप कश्मीर के कुछ हिस्से पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया. फिर मामला यू. एन. ओ. अर्थात संयुक्त राष्ट्र संघ के सुपुर्द कर दिया गया. इस उलझी स्थिति को सुलझाने के लिए क्या किया जाना चाहिए?

3. धारा 370 क्यों नहीं हटाई जा रही? उसके हटाने के क्या परिणाम होंगे?

4. विथापित कश्मीरी पंडितों के हित में क्या किया जाना चाहिए?

5 अलगाव वादियों को पालने पोसने का काम कांग्रेस और भाजपा दोनों ने किया. क्या अब भी उसे जारी रखा जाना चाहिए?

6 क्या भारत ब्लूचिस्तान के बारे में बांग्लादेश जैसा कदम उठा सकता है?

7. पाकिस्तान के सेना प्रमुख और सुरक्षा मंत्री आदि युद्ध की तैयारियां कर रहे हैं, निपटने की धमकियां दे रहे हैं. क्या इन विस्फोटक स्थितियों के मध्य आप भी युद्ध की आहट सुन रहे हैं?

8. दूरदर्शन पर प्रसारित समाचार के अनुसार सीमा सुरक्षा बल के एक हजार पदों के लिए 15 हजार नौजवान पहुंचे. यदि एक हजार का चयन होता है तो क्या शेष 14 हजार के मन में कड़वाहट नहीं आएगी? क्या उन्हें भी कोई रोजगार मुहैया (उपलब्ध) किए जाने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए?

9. महाराष्ट्र नव निर्माण सेना द्वारा पाकिस्तानी कलाकारों को महाराष्ट्र छोड़ देने और भारत से चले जाने का निर्देश दिया गया है. इस बारे में आपका क्या मत है?

10. राजनैतिक दलों द्वारा, सेना द्वारा की गई कार्यवाही पर टीका-टिप्पणी करना अथवा विस्तृत जानकारी मांगना कहां तक उचित है?

इन्द्रेश जी का समग्र वक्तव्य

जम्मू कश्मीर समस्या को लेकर विश्व में व्याप्त आतंकवाद को लेकर कुछ मौलिक बाते हैं, जिनकी तरफ ध्यान जाना जरूरी है. भारत और विश्व आतंक मुक्त हो. ये आतंकवाद शब्द जो है, वह कुछ मुस्लिम देशों से जुड़ा है. ये देश आतंकवाद की आड़ में अमेरिका और चीन आदि के शस्त्रों का व्यापार भी करवा रहे हैं और विश्व में हिंसा फैला कर अशांति की ओर बढ़ा रहे है. हम कश्मीर समस्या के सन्दर्भ में और वैश्विक आतंकवाद के सन्दर्भ कुछ बातें कहना चाहते हैं.

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पाकिस्तान में शुरू से इस बात का नारा लगाया था कि हंसकर लेंगे पाकिस्तान, लड़कर लेंगे हिंदुस्तान. वह 47-48 व 65-71 के युद्ध में जमीन पर बुरी तरह से पराजित हुआ. भारतीय सैनिकों ने अपने शौर्य और बलिदान से पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया, तब अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक षड्यंत्र भारत को दबाने और पाकिस्तान की मदद के लिए आगे आया. 47-48 में अमरीकन कूटनीति के कारण भारत के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू यू एन ओ में चले गए, जिसके कारण 80000 वर्ग किलोमीटर से अधिक भारत का जम्मू कश्मीर का भूभाग पाकिस्तान के कब्जे में चला गया. सन् 65 में रूस के अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण देश के प्रधान-मंत्री लाल बहादुर शास्त्री को ताशकंद समझौते के लिए जाना पड़ा. भारत में जो कुछ विजय हासिल की थी, उनसे वापस लौटना तो हुआ ही हुआ परंतु लाल बहादुर शास्त्री को अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र के कारण सदा सदा के लिए भारत से छीन लिया. 1971 में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान को भारी पराजय हुई. 93000 पाकिस्तानी सैनिकों का सरेंडर हुआ. पूर्वी पाकिस्तान पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश के रूप में बना. फिर से एक अंतरराष्ट्रीय रोब बना और शिमला समझौते जैसा एक नकारात्मक समझौता हुआ जिसमें केवल इतना ही लिखित में आ गया कि भारत और पाकिस्तान के बीच में कोई तीसरा पक्ष नहीं होगा, जिसको पाकिस्तान ने आज तक फॉलो नहीं किया और इसलिए तीनों बार कहीं ना कहीं वैश्विक कूटनीति ने भारत को मेज के ऊपर पराजित करने की कोशिश की.

पकिस्तान को यह ध्यान आ गया कि अब वो युद्ध में जीत नहीं सकता, तो उसने सन् 1972 में प्राक्सी वार को आतंकवाद के रूप में जन्म दिया और जिसका नारा था- भारत पर सैकड़ों स्थानों पर हमला करेंगे, हजारों स्थानों पर रक्त बहेगा हजारों नहीं लाखों लाखों लोग मरेंगे और करोड़ों करोड़ों की बर्बादी होगी. भारत के विकास को रोककर इसको एक स्थाई अशांति में डाल देंगे. इस कूटनीति के अंतर्गत उन्होंने इस आतंकवाद को जन्म दिया. 1962 में चीन का हमला हुआ. पंडित नेहरू ने चीन पर बहुत भरोसा किया था. इसलिए वह सदमे को सह नहीं सके और सन् ’64 के अंदर बीमार हालत में वह भी दुनिया छोड़कर चले गए. भूमि को भूमि मात्र मानना मातृभूमि ना मानना, जैसी भूल पंडित नेहरू से क्यों हुई? होनी नहीं चाहिए थी, पर उन्होंने की. कह दिया- उस भूमि में घास का तिनका भी नहीं उगता है यानी वह मातृभूमि को मातृभूमि ना मानकर केवल भूमि मान बैठे. इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि पंडित नेहरू को घात के कारण दुनिया छोड़नी पड़ी और भारत के अंदर लोगों के सामने प्रश्न खड़ा हो गया- इस भूमि के एक-एक इंच के लिए सैकड़ों नहीं, हजारों नहीं, लाखों लाख और करोड़ों बलिदान हुए और डेढ़ सौ 200 साल ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध और फ्रेंच पुर्तगीज के विरुद्ध और अन्य कैसे यूरोपियन देशों के विरुद्ध देश ने स्वतंत्रता संग्राम लड़ा, ऐसे ही हजार डेढ़ हजार साल शक, हूण, कुषाण, मुगल, तुर्क के खिलाफ बड़े बलिदान दिए, वह बलिदान भी परेशानी में पड़ गए. आजाद भारत के प्रधानमंत्री ने इस भूमि को मातृभूमि मानने के बजाय भूमि मात्र क्यों मान लिया? इसलिए इस देश के अंदर इस कश्मीर समस्या का जन्म भारत ने स्वयं पैदा किया और पाकिस्तान ने भारत की कमजोरी का लाभ उठाकर इस समस्या को विकराल रूप दे दिया. इधर पाकिस्तान को मोहरा बनाकर प्रॉक्सी वार की टेरिरिस्ट स्ट्रेटिजी ने दुनिया के जो हथियारों के व्यापारी थे, उन्होंने पाकिस्तान को आतंक का जन्मदाता बना कर छोड़ दिया और पाकिस्तान आतंक के जन्मदाता के रूप में विश्व में स्थापित हो गया. इसी के साथ साथ अगर हम वर्तमान को समझना चाहें तो सन् 1947 से लेकर डॉ. मनमोहन सिंह तक भारत के सब प्रधानमंत्रियों ने पकिस्तान से रिश्ते सुधारने के भरपूर प्रयास किए और उसके लिए मेज पर पराजय भी स्वीकार करने की उन्होंने गलती की. पाकिस्तान कभी सुधर नहीं सकता और उसने कभी भी किसी समझौते का ठीक से पालन नहीं किया. सीमा पर आक्रमण करना और अंदर घुसपैठ कर के हमले करवाना उसका काम है. एक बार भी पाकिस्तान ने यह नहीं कहा हम इनको रोकेंगे बल्कि हर बार एक ही भाषा बोलता रहा- इसमें पाकिस्तान का कोई हाथ नहीं. इसलिए चोरी और सीनाजोरी दोनों मागरें से पाकिस्तान यह रवैया लेकर हिंदुस्तान के विकास के विरुद्ध और विनाश लीला खेलता रहा. सन् 2016 में पहली बार भारत ने साफ-साफ नीति ली. तब 70 साल के अनुभवों से 15 अगस्त 2016 को लाल किले की प्राचीर से उस नीति का प्रत्यक्ष चलो कल करेंगे भारत और विश्व को मिला पहली बार पकिस्तान के प्रति टीच टू द लेसन पकिस्तान को सबक सिखायें इस नीति ने जन्म लिया.

पंडित नेहरूजी की गलती के कारण जो गिलगिट, बाल्टिस्तान, मुजफराबाद, मीरपुर कोटली आदि का भूभाग पकिस्तान के कब्जे में चला गया था, उस हिस्से ने उस गुलाम कश्मीर ने पीओके ने आज तक भी उसे पकिस्तान ने स्वीकार नहीं किया. उसे उसने मर्ज नहीं किया. उसने पाकिस्तान असेंबली के वहां इलेक्शन होने नहीं दिया और अपने विभाग में भी चुनाव नहीं होने दिए. उनका अपना झंडा है, सेना है, पोस्ट ऑफिस है, उनका अपना प्रशासन है और वह तब से लेकर आज तक पाकिस्तान के अत्याचारों के खिलाफ लड़ रहे हैं और उनका भारत से बार-बार यही कहना है आप भारत की गलती और कमजोरियों के कारण हम पाकिस्तान के जबड़े में हैं और पाकिस्तान हमें कुरूपता से कुचल रहा है और चबा रहा है. हम हिंदुस्तान के थे और हम हिंदुस्तान के होना चाहते हैं. हिंदुस्तान में अपने लोकतंत्र के सीमांकन में हमारे इलाके की 24 विधानसभा सीटें बनाकर जम्मू कश्मीर की असेंबली में 24 कुर्सियां रख लीं, परंतु ना नॉमिनेटेड किये सदस्य और ना ही चुनाव करवाए क्यों? 22 फरवरी 1994 को नरसिम्हा राव के नेतृत्व में भारत की लोकसभा और राज्यसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया कि हम एक-एक इंच पाकिस्तान से पीओके का मुक्त करवाएंगे तो आज तक उस नीति को लागू क्यों नहीं किया जा रहा और इसलिए पहली बार भारत ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मुख से इस बात को बोला- इस कश्मीर की बात नहीं करेंगे. अब पाकिस्तान से जो भी बात होगी उस कश्मीर की होगी जिसकी सालों पहले की जाती थी. वह अब किया गया है. भारत सरकार और प्रधानमंत्री और देश की जनता बहुत बहुत भाग्यशाली है, धन्यवाद की पात्र है. एक सही नीति की आज आवश्यकता है, इस पीओके को पाकिस्तान से मुक्त करवाने के लिए और पूरे कश्मीर को भारत में एकीकृत करने के लिए. यह होना चाहिए और बहुत जल्दी होना चाहिए. हमें ये करना है. यह समस्या के समाधान के लिए महत्वपूर्ण है.

भारत ने दूसरा कदम उठाया. 1946-47 से ही बलूचिस्तान पक्तुनिस्तान के इलाके ने पकिस्तान में विलय का विरोध किया. उन्होंने कहा हमें आजादी चाहिए, पाकिस्तान नहीं. हम हिन्दुस्तान चाहते हैं. उस समय सरहदी आदि नेताओं ने पाकिस्तान से उसकी रक्षा के लिए और अत्याचारों आदि से बचने के लिए भारत से और दुनिया से भी मदद मांगी और भारत ने उनकी कोई मदद नहीं की. भारत ने बहुत बड़ी कूटनीतिक, राजनैतिक और मानवीय भूल की और इसका लाभ उठा कर पाकिस्तान ने ब्रिटिश लोगों से मिलकर सेना के द्वारा बलूचिस्तान पर कब्जा कर लिया. आज तक बलूचिस्तान के लोग शांति के मार्ग से शस्त्रों की मार सहते हुए अपनी आजादी की जंग लड़ 1 लाख के लगभग बलूच अपना बलिदान दे चुके हैं. 7-8 लाख बलूच उधर भटकने वाली जिंदगी जी रहे हैं. अनेक देशों में उन्होंने शरण ले रखी है. बलूचिस्तान का कहना है कि हम पुराने हिंदुस्तानी हम पर जुल्म होते हुए क्या भारत और विश्व की जनता हमें पाकिस्तान के जुल्मों से नहीं बचाएगी और इसलिए वहां की निरीह बलूच जनता का अपने मानव अधिकारों की और मानवीय जीवन की सुरक्षा के लिए भारत और विश्व से यह बात कही. हमारे कंसर्न हैं कि बलूचिस्तान के अंदर विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय तक्षशिला विश्वविद्यालय है, तो बावन शक्तिपीठ हिंगलाज है, गोल्ड माईन, पेट्रोलियम और ऑयल का एक भंडार भी है और वहां के मानव अधिकारों की रक्षा करना भारत की नैतिक जिम्मेदारी बनती है.

लाल किले की प्राचीर से बलूचिस्तान के अत्याचारों को समझ कर के स्मरण किया भारत के प्रधानमंत्री ने. वहां पाकिस्तान के अत्याचारों से मुक्ति हो. उन्हें भी अपना शांति प्रिय, सम्मानित, स्वतंत्र और सुरक्षित जीवन व्यतीत करने का हक मिले. इस बात को बलूचिस्तान के स्मरण से पूरे विश्व में ताजा कर दिया, जिसके कारण भारत में ही नहीं पूरे विश्व में जो मानवाधिकारवादी है, उनमें बड़े हर्ष की लहर दौड़ गयी. विश्व में जिस बलूचिस्तान को पाकिस्तान के जबड़े में चबाने और खाने के लिए छोड़ दिया गया था, उसके मानव अधिकारों की रक्षा करने के लिए भारत की पहल विश्व में अभिनंदनीय हुई और बलूचिस्तान के अंदर फिर से जीने का एक भाव जागृत हुआ. इसलिए बलूचिस्तान के अंदर मानव अधिकारों की रक्षा हो. वह भी स्वतंत्र सम्मान और विकास के अंदर अपनी सांसें ले सकें जिसकी एक उम्मीद विश्व में बलूचिस्तान को लेकर बनी है.

इसी के साथ साथ सिंधी का एक बड़ा भूभाग है जिसने प्रारंभ से ही पाकिस्तान का विरोध किया और उन नेताओं ने भी भारत से मदद मांगी. मदद मांगते हुए उन्होंने यह कहा था सिंधु से हिंदुस्तान की पहचान है फिर सिंधु विदेशियों के कब्जे में क्यों है? सिन्ध भारत के राष्ट्रगान में है फिर उनसे पराया क्यों है. राष्ट्रगान वाला सिंध भारत में क्यों नहीं. सिन्धी भारत की मातृभाषा में एक महत्वपूर्ण भाषा है. उसको यह दर्जा है तो फिर सिंधी मातृभाषा को बोलने वाले सिन्धी गुलाम क्यों और सिन्ध मातृभाषा पराई क्यों? कलियुग के अंदर मानवता की रक्षा हो और मानव अत्याचारों से सुरक्षित हो इसके लिए वर्णावतार अवतार झूलेलाल का अवतार हुआ. वरुण देवता का झूलेलाल के रूप में अवतार हुआ, वो भूमि सिंध हैं जिसने प्राणी मात्र की रक्षा के लिए अवतार लिया वो भूमि विदेशी कब्जे में और अत्याचारों में लिप्त क्यों हैं? ये प्रश्न थे जिनका उत्तर भारत से मांगा जा रहा था और सिंध के लोग, भारत के लोग भारत और विश्व से यह उम्मीद करते थे कि अत्याचारों में उनकी मदद के लिए वो आगे आएंगे. लंबे समय तक हजारों हिंदुओं को जेल में डाल कर कुचला जाता रहा, सार्वजनिक रूप से उनकी हत्याएं की गई और मारा गया, तब इस सारे दर्द से निजात पाने के लिए 15 अगस्त 2016 उनके लिए एक सौभाग्य का दिन बनकर आया. इस दिन भारत ने सिंध में अपने कंसर्न दिखाए और सिंध का जनमानस सड़कों पर उतरा और अपनी आजादी की मांग के साथ भारत को धन्यवाद करता हुआ आगे बढ़ा.

आज 62 प्रतिशत पाकिस्तान की लैंड और 40 से 45 प्रतिशत जनता पाकिस्तान के अत्याचारों से आजादी चाहती है. बलूचिस्तान, पक्तुनिस्तान आजादी चाहता है, सिंध आजादी चाहता है. उसने अत्याचारों के बीच में पाकिस्तान जाइन तो कर लिया परंतु आज भी उसके मन में यह भाव है कि हमें आजादी मिले. गिलगित-बाल्टिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर चाहते हैं कि हम कश्मीर हो जाएं और एक हिंदुस्तान हो जाएं. इसलिए भारत का नैतिक कर्तव्य बनता है, इस पुराने हिंदुस्तान को मानवीय मार्ग पर लाएं और पाकिस्तान को टीच टू द लेसन दिखाएं. इसलिए जनमत संग्रह इधर कश्मीर में नहीं चाहिए पाकिस्तान में चाहिए और जिस दिन पाकिस्तान जनमत संग्रह पर जाएगा तो जैसे 47 से पहले पाकिस्तान नहीं था, वैसे ही उसके वजूद पर भारी प्रश्न लग जाएगा और इसलिए वह एक अग्रेसर के रूप में कश्मीर में डिस्टरबेंस करके अपने प्रति ध्यान डाइवर्ट करता रहा है, परंतु अब सारी दुनिया का ध्यान पाकिस्तान के अत्याचारों के ऊपर फोकस हो गया है. इसलिए जरूरी है कि बलूचिस्तान को आजादी मिले, सिंधु स्वतंत्र हो और पाक अधिकृत कश्मीर गिलगिट पाकिस्तान आदि जो हिन्दुस्तान की राह लिए हुए हैं वो उनको प्राप्त हो. यहां पाकिस्तान को आदत हो गई है. वो घुसपैठ करता है, वो सीमा पर हमला करता है, भारत के अंदर विस्फोट करवाता है, गोलियां चलाता है और आज तक वह यह मानता रहा कि इन सबके पीछे उसका हाथ नहीं है. प्रश्न खड़ा होता है अगर उसका हाथ नहीं है तो फिर किसका हाथ है. सारा जगत जानता है कि पाकिस्तान का हाथ है. इसलिए झूठ बोलने वाले को तर्क देकर समझाया नहीं जा सकता, उसको सबक देकर ही सिखाया जा सकता है. इस आतंकवाद को बोलने के लिए पाकिस्तान जिन शिवरों को लगाकर वहां के नौजवानों को भारत और विश्व अन्य देशों के नौजवानों को भड़काकर और आतंकवाद के लिए प्रशिक्षित करके भारत और विश्व के अंदर दहशत फैला रहा था. हिंसा फैला रहा था. ऐसे आतंकी शिविरों को नष्ट करना भारत का संवैधानिक नैतिक अधिकार और कर्तव्य है. जिसका यूज भारत ने नहीं किया. देश की 125 करोड़ जनता का यह मन बन गया है कि ऐसे जो आतंकवाद को जन्म देने वाले और आतंकियों को प्रशिक्षित करने वाले शिविर हैं, भारत में अब उन पर हमला करना चाहिए, नष्ट करना चाहिए. पहले भी छोटे-मोटे प्रयत्न हुए, परंतु अब पहली बार सन् 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक के अंतर्गत 7 से अधिक आतंकी शिविर, 30 से अधिक आतंकवादियों और चार-पांच उनके लॉन्चिंग पैड्स(अड्डों) को भारत नष्ट करने में सफल हो गया. इसलिए पाकिस्तान को यह ध्यान में आ गया कि अब भारत सहने की सीमा को खत्म कर रहा है. भारत एक सहनशील देश था और सहनशील देश रहेगा, परन्तु अपनी स्वतंत्रता, विकास और सम्मान को अब और दांव पर लगने नहीं देगा.

कई लोगों ने इस सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर ऐसा रवैया अपनाया कि कुछ राजनीतिक देश के स्वाभिमान और भारतीय सैनिकों के बलिदान को अपमानित करने में नहीं चूके. उसमें कांग्रेस पार्टी और उनके नेता, आप पार्टी और उनके नेता और कहीं कहीं पर समाजवादी बहुजन और कम्युनिष्ट पार्टियों के नेता यहां तक चले आए. उनकी शैली से यह लगने लगा कि जैसे वो पकिस्तान से प्रेम और हिदुस्तान से नफरत करते हों. यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है, परंतु देश की जनता ने ऐसे नेताओं और उनकी पार्टियों को मुंहतोड़ जवाब दिया, जब उन्होंने यह कहा कि उन्हें कोई सबूत नहीं चाहिए. अमेरिका ने ओसामा पर कार्यवाही की, इसराइल ने अपने जहाज और कैदी छुडवाने की काररवाई की, रूस और चीन ने भी काररवाइयां की, तब किसी ने प्रमाण नहीं दिया कि उन कार्यवाहियों को कैसे किया. यानी भारत अपने सीक्रेट लीकेज करवा देगा, इस से बड़ी मूर्खता और गुलामी नहीं हो सकती. मैं ऐसे लोगों के लिए और पार्टियों के लिए कहूंगा कि अगर उनमे भारत के लिए शौर्य और प्रखरता का स्वाभिमान और सम्मान नहीं है, तो बहुत अच्छा है भारत छोड़कर पाकिस्तान ज्वाइन कर सकते हैं; परंतु देश की जनता ऐसे लोगों को सबक सिखाए, जो अपनी तुच्छ राजनीति के अंदर भारत की सेना के बलिदान और भावनाओं का मजाक करें.

इसी के साथ साथ भारत ने एक और नीति ले ली है जो भारत में पाकिस्तान का झंडा लहराते हैं और पाकिस्तान जिंदाबाद बोलते हैं, आतंकवाद को फैलाने में मदद करते नौजवानों को बहला-फुसलाकर उनके हाथ में पत्थर देकर उनसे पत्थर मारने को कहते हैं, चाहे वह हुर्रियत के नेता हों या अन्य कोई नेता हो, चाहे भारत में कहीं भी हों, चाहे कश्मीर में हां,े इनके लिए एक स्पष्ट नीति ली है कि उन से वार्ता नहीं करेंगे. बल्कि ऐसे जो लोग हैं जिनको सुरक्षा या अन्य सुविधाएं दी गई हैं, वह छीनी जाएंगी और यह आवश्यक भी है कि जो लोग भारत में पाकिस्तान का झंडा लहराते हैं और पाकिस्तान के साथ भोजनों में सम्मिलित होते हैं, अगर उनको भारत से प्यार नहीं है और पाकिस्तान से प्यार है तो उनको पाकिस्तान चले जाना चाहिए. पाकिस्तान की गाए, खाये भारत का और यह है उनका देशद्रोही रवैया, अमानवीय और असंवैधानिक रवैया. इसे अब स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए. एक साफ नीति लेनी चाहिए. अगर भारत से प्यार है तो भारत में रहो, वरना भारत छोड़ कर चले जाओ और इसलिए उनकी सुविधाएं और सुरक्षा छीनी जानी चाहिए और उनके प्रति भारत की साफ नीति ली है और अधिक लेनी चाहिए.

जम्मू-कश्मीर के अंदर भारत सरकार ने यह साफ नीति अपना ली है कि हम सब से बात करेंगे, जितने भी कन्सर्न्स हैं. इसलिए वहां पर जम्मू के डोगरे सिक्ख और जम्मू कश्मीर के अंदर के कश्मीरी पंडित, लद्दाख के बौद्ध आदि का पुनर्वास हो और उनके साथ इलाकाई भेदभाव डोगरे सिक्ख और बौद्धों के साथ ना हो. लाखों लाख वहां पर लोग हैं जिनको अभी तक प्रदेश की नागरिकता नहीं मिली, इसलिए उनके विकास, शिक्षा और रोजगार के बिना जीवन बड़ा दयनीय है. उनके ऊपर वो जुल्म खत्म हों और उनको अपनी नागरिकता और उसके

अधिकार प्राप्त हों. इसके अंतर्गत लाखों लाख की संख्या में गुज्जर है, गुज्जर बक्करवाल हैं, पहाड़ी है, पिछड़े हैं, जिनको मुख्य धारा में लेकर आज तक विकास के रास्ते पर जाने नहीं दिया गया. जिन्होंने युद्धों में और समय समय पर सीमाओं की छेड़छाड़ चाहे पाकिस्तान से हुई, चाहे चीन से हुई और इस बात को सिद्ध किया है कि वह देश भक्त हैं. इसलिए यह गुज्जर बकरवाल, पिछड़े और पहाड़ी अधिकांश इस्लाम मतावलंबी भारतीय हैं. जम्मू-कश्मीर के नागरिक हैं. इनके साथ तो सौतेला व्यवहार हुआ. यह दूर हो, इसलिए भारत सरकार इनकी भी सुनेगी. ऐसी बात चर्चा में आई है. वहां पर एक बहुत बड़ा समाज है, शिया समाज जो कारगिल और कश्मीर में बसता है, जिसमें से अधिकांश लोगों ने अपने को आतंकवाद और कट्टरता से अलग रखने की कोशिश की है. उनकी भी अपनी समस्याएं हैं जिनको सुना जाना चाहिए. वहां पर जो महिलाएं हैं और जिन नौजवानों को बहकाकर गोली या पत्थर मारने की ट्रेनिंग देकर कुछ पैसे में खरीदा गया है, उन सब के साथ वार्तालाप कर मुख्यधारा में लाना है. शिक्षा मिले रोजगार मिले विकास मिले शांति और भाईचारा मिले और इसलिए इन सब की जो समस्याएं हैं, इलाकाई समस्याएं और मानवों के जातीय धार्मिक-भौगोलिक समूहों में निवास, उन सबको भारत सरकार सुनेगी और मुख्यधारा में लाकर जम्मू कश्मीर समस्या का सदा- सदा के लिए हल करते हुए वहां शांति, विकास और भाईचारा और रोजगार इसको लेकर एक नया जम्मू कश्मीर बनाएंगे. जो 70 साल से कश्मीर दो टुकड़ों में घिरा है, उनको भी एकजुट करेगी. मुझे लगता है कि भारत की नीति सदा सर्वदा योग्य नीति है, जिससे भारत और विश्व को पाकिस्तान के आतंक से मुक्ति मिलेगी. विश्व में भी शांति आएगी और इसी के साथ-साथ कश्मीर समस्या का भी सदा सदा के लिए हल हो जाएगा. भारत की नीति के कारण जो लोग गद्दारी का व्यवहार करके उस देश में रहते हैं, पर गुण दूसरे देशों का गाते है, ऐसे गद्दार लोगों की कहीं भी इस दुनिया में कोई परंपरा है तो उससे भी मुक्ति का मार्ग विश्व को मिल जाएगा. मुझे यह पूरा विश्वास है कि कश्मीर घाटी और जम्मू कश्मीर के सब प्रकार के लोगों पर दर्द सुनकर उनको मुख्यधारा में लाना है. जम्मू कश्मीर लद्दाख में इलाकाई भेदभाव है, उसे समाप्त करना और इसी के साथ-साथ कश्मीर पाकिस्तान को लेसन देन बहुत जरूरी है.

पाकिस्तान अगर समझदारी से काम लेगा तो वह भारत पर शत्रुता वाली नीतियों को छोड़ेगा. भारत के प्रति शत्रुता वाली नीतियों वाले नेता कट्टरपंथी नेता रहेंगे तो पाकिस्तान हर बार और हर दिन हर कदम पर अपने विनाश की ओर बढ़ता जाएगा और इसलिए मेरा पाकिस्तान के सब लोगों से कहना है कि वह अपनी इस कट्टरता, हिंसा और अलगाववाद को छोड़ दे, नहीं तो उनकी नीतियां आने वाले कल के अंदर पाकिस्तान के वजूद के लिए गहरा खतरा खड़ा कर देंगी. मुझे यह लगता है कि भारत ने बहुत दिन बाद एक सही कदम उठाया है, इसलिए 15 अगस्त 2016 लालकिले की प्राचीर से 125 करोड़ के भारत और उसके नेतृत्व के रूप में भारत सरकार और उसके प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत और विश्व को आतंकवाद से मुक्त करने का मार्ग दिखाया और कश्मीर समस्या के स्थाई समाधान का मार्ग निकाला जो देश के अंदर गद्दारी के रूप में काम करते हैं उनको भी सबक सिखाते हुए देश को गद्दारों से मुक्त करने का जो एक पैगाम लाल किले की प्राचीर से दिया, भारत के 125 करोड़ दिलों की बात को भारत के प्रधानमंत्री ने प्रकट किया.

बात आई यहां पर धारा 370 की तो मुझे लगता है कि जब यह उपचार हो जाएगा तो 370 अपने आप ही हट जाएगी.वैसे भी दुनिया के किसी भी संविधान के अंदर कोई टेंप्रेरी धारा नहीं है. भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान है. इसमें एक मात्र टेंपरेरी धारा 370 है. टेंप्रेरी धारा ही इस बात की सूचक है कि यह संवैधानिक नहीं असंवैधानिक विरोध है और इसलिए जब विश्व के किसी भी संविधान में कोई तात्कालिक और अस्थाई धारा नहीं है तो भारत के संविधान में भी इसकी जरूरत नहीं है. इस पर संजीदगी से विचार करना चाहिए कि धारा 370 से कश्मीर का भला हुआ या विदेशी ताकतों से कश्मीर और भारत को बर्बाद करने का अवसर मिला. कश्मीरियों को रोजगार मिला, उनका विकास हुआ, शिक्षा के नए अवसर मिले यहां, कोई औद्योगीकरण हुआ है, तो ऐसा कुछ दिखता नहीं है. इसके साथ-साथ आज वहां पर जो सैनिकों की कार्यवाहियों पर टिप्पणियां करते हैं, वह केवल राजनीतिक दल की तुच्छ राजनीति के कारण! वे लोग चक्रव्यूह में फंस गए हैं. समय और देश की जनता उनको उचित उचित सबक सिखाएगी. देश की जनता ने सर्जिकल स्ट्राइक के साहस का सेना के शौर्य और बलिदान का सम्मान करते हुए नेता और दलों को सबक सिखाना शुरू कर दिया है.

विश्वग्राम नाम से एक प्रभावी बुद्धिजीवियों और शिक्षकों की ग्राम से लेकर वन और नगरवासियों तक एक जन जागरण का आंदोलन है. समस्त विश्व के वासी एक ग्राम की तरह रहें.एक परिवार की तरह रहे. यह किस प्रकार किया जा सके, इसका प्रश्न है और यह साकार हो सकता है, इसके लिए विश्व ग्राम ने कुछ सिद्धांत बनाए हैं. दुनिया में अनेक धर्म हैं, सब अपने अपने धर्म पर चलें. कट्टर नहीं सच्चे और अच्छे बनें यह लेकर जाओ दूसरे के धर्म का सम्मान करें. दंगे, धमरंध हिंसा और धर्म परिवर्तन जैसे अमानवीय अनैतिक कृत्यों से मानवता की रक्षा हो सके. सब धमरें में लोग समान रूप से फल-फूल सकें. आपस में बहुत बड़ा समन्वय और सहिष्णुता का जन्म हो.इसी प्रकार से हर जाति ईश्वर विश्वासी हो और ईश्वर सही है इसलिए अपनी-अपनी जाति का स्वाभिमान करें. किसी भी जाति को अस्पृश्य नीच हीन पिछड़ा नहीं कहें. दूसरे की जाति का भी सम्मान करें, ताकि जातीय हिंसा और घृणा से मानवता मुक्त हो सके. जो पंक्ति के अंत में खड़ा है चाहे आर्थिक दृष्टि से हो चाहे सामाजिक रूप से हो चाहे राजनीतिक रूप से हो चाहे सांस्कृतिक रूप से हो सब ने मिलकर उस को आगे बढ़ाना है. ग्राम के अंदर इस बात का भी चिंतन किया जाता है कि समाज व्यक्ति और समूह के रूप में जो सबसे गरीब है और जो सबसे अंत में खड़ा है उसका सम्मान करें, प्यार करें, उसको सहारा दिया जाय. वह दुनिया का मार्ग दर्शक तत्व होता है, विकास व राज्य की गारंटी देता है, इसलिए विश्व ग्राम विकास और स्वराज की चर्चा करता है. इसी के साथ आज एक प्रश्न तो खड़ा हो ही गया है कि भ्रूण हत्या, नशा, छुआछूत, प्रदूषण ऐसे जितने भी अत्याचार और राक्षस हैं, इनसे मानवता मुक्त हो इसके लिए जरूरी है कि हर मनुष्य अपने अपने धर्म, परिवार, जाति, घर, अपने गांव, मोहल्ले, व्यवसाय, मित्रों और संबंधियों में अग्रसर हों कि हमें भारत को दंगा मुक्त करना है, संघर्ष मुक्त करना है. विश्व के अंदर शांति और भाईचारे को लाना है. विश्वग्राम को मैंने जितना जाना समझा और उनके कार्यक्रमों को देखा, इन सबसे एक बुद्धिजीवी आंदोलन उभर कर देश के सामने आ रहा है जो आने वाले कल के अंदर एक आशा की किरण जगाएगा.

अमरीका चीन भाईचारे को जितना मैंने जाना और उनके कार्यक्रमों को देखा करने की कोशिश की है, उसके कारण आतंकवाद खत्म होने की बजाए सिर उठाता जा रहा है. एक तो मैं विश्व को यह अपील कहूंगा जो शस्त्रों का रोजगार करते हैं, व्यापार करते हैं, उन्हें शस्त्रों का व्यापार बंद कर देना चाहिए. शस्त्र बनाये नहीं और दूसरों को उपदेश देना बंद कर दें. अपनी उर्जा को विकास की ओर लगाएं. इसलिए शस्त्रों का उत्पादन और रोजगार बड़ी-बड़ी दुनिया की ताकतें रोकें, तभी जाकर हिंसामुक्त विश्व हो सकता है. नहीं तो शस्त्र बनते रहेंगे और हिंसा व रक्तपात से कभी मुक्ति नहीं मिल सकती. युद्ध अंतिम अनिवार्यता होनी चाहिए. शांति, विकास, भाईचारा यही प्रमुख होना चाहिए. इसलिए वर्चस्व के लिए नहीं लड़ा जाए बल्कि समन्वय और शांति के लिए प्रयत्न किया जाए.

सभी बुद्धिजीवियों को कहूंगा, विशेष रूप से जो पाकिस्तान के कलाकार भारत में आकर रोजगार करते हैं और भारत के जो कलाकार पाकिस्तान में रोजगार करते हैं, उनके देश के अंदर जो होने वाले अमानवीय कृत्य हैं, उसके विरुद्ध खुलकर आएं. किसी से जबरदस्ती नहीं की जा सकती परंतु उनसे अपेक्षा जरूर की जा सकती है. पाकिस्तान हर रोज हिंसा में कदम बढ़ा रहा है, अपने विकास को ग्रहण लगा रहा है, विश्व के अंदर अशांति फैला रहा है. कला समन्वय, सौंदर्य, संगीत, और खुशियों का मार्ग है. पूरे कलाकारों ने उनके देश में जो भी आज मानवता पर कला पर चोट हो रही है, उसके विरुद्ध सामने आना चाहिए. भारत के लोग अगर उनसे इस बात की अपेक्षा करते हैं तो उन्हें भी उस अपेक्षा पर खरा उतरना चाहिए. तभी कलाकार कलाकार है और मुझे पूरा विश्वास है कि कलाकार इस बात को समझेंगे और अपनी कला को हिंसा से निपटने के लिए भी प्रयोग करेंगे और इसी में सच्चा कलाकार जीवित रहेगा!

संपर्कः सह संपादक प्राची

डब्ल्यू जेड 21, हरिसिंह पार्क, मुल्तान नगर,

पश्चिम विहार, नई दिल्ली- 110056

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ 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रचनाकार: प्राची-दिसंबर 2016-साक्षात्कार डॉ. भावना शुक्ल से इन्द्रेश कुमार जी की बातचीत
प्राची-दिसंबर 2016-साक्षात्कार डॉ. भावना शुक्ल से इन्द्रेश कुमार जी की बातचीत
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