बाल-विज्ञान-कथा / 23वीं सदी का एक दिन / कल्पना कुलश्रेष्ठ

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माँ कब आयेंगी पापा ? मुझे भूख भी लगी है।‘ नहाकर बाहर आते शुभम ने पूछा। आज सोमवार था। उसकी मां यह पूरा दिन उन्हीं लोगों के साथ बिताती थीं। ...

माँ कब आयेंगी पापा ? मुझे भूख भी लगी है।‘ नहाकर बाहर आते शुभम ने पूछा। आज सोमवार था। उसकी मां यह पूरा दिन उन्हीं लोगों के साथ बिताती थीं।

‘‘अभी नाश्ता मिल जायेगा। बताओ क्या खाना है ?‘‘ पापा ने मुस्कुराते हुए पूछा।

‘‘वही मन्डे स्पेशल ! इडली और जलेबियां।‘‘

‘‘ठीक है।’’ पापा ने चाय लिये खडे़ रोबो कुक की मेमोरी में इडली और जलेबी की कमाण्ड फीड कर दी। चाय का कप लेकर वह अखबार पढ़ने बैठ गये जो उनके चश्मे के लैंसों पर सचित्र समाचार दिखा रहा था।

‘‘यह नानू बहुत अच्छी जलेबियां बनाता है और इडलियां तो इतनी मुलायम हैं जैसे स्पंज।’’ मजे़ लेकर नाश्ता करते शुभम ने कहा। अपने घरेलू रोबो कुक का नाम उसने नानू रख दिया था। ‘‘आप भी आइये न पापा और मां अभी तक नहीं आयीं?’’ शुभम को फिर मां की याद आयी। ‘‘दरअसल चन्द्रमा की मूनलैण्ड जेल से कुछ गड़बड़ी की खबर आ रही है। शायद इसलिये तुम्हारी मां को आने में देर हो रही है।’’ चिन्तित स्वर में पापा ने कहा। उसकी माँ मून कमाण्डर थीं। सप्ताह के छः दिन चन्द्रमा के अपने ऑफिस में काम करतीं थीं। आजकल अपराधियों के लिये पृथ्वी की बजाय चन्द्रमा पर ही जेल बना दी गयी थी। पृथ्वी पर बनी जेलों से बहुधा षातिर अपराधी भाग निकलते थे इसलिये दुर्दांत और आदतन अपराधियों को चन्द्रमा पर कैद रखना ठीक समझा गया था ताकि वे किसी भी तरह फ़रार न हो सकें और पृथ्वी के शन्तिप्रिय नागरिक सुरक्षित रहें। विशेष प्लास्टिक के बने विशाल गुम्बदों जैसी जेलों में मनुष्य के रहने लायक परिवेश तैयार किया गया था। पृथ्वी से अलग-थलग इन जेलों में कैदी अपना जीवन बिताते थे। चन्द्रमा पर बने अंतरिक्ष स्टेशन बीटा से इन जेलों की निगरानी की जाती थी। इस पूरी व्यवस्था का चार्ज मून कमाण्डर पर रहता था।

‘‘अब पूछताछ बन्द करो और तैयार हो जाओ। स्कूल जाना है न?’’

‘‘जाना है पापा। सर ने बताया था कि हमारे लिये कोई सरप्राइज़ है’’ शुभम सब भूलभाल कर तैयार होने लगा।

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स्कूलों में पठन-पाठन की प्रक्रिया लगभग समाप्त हो चुकी थी। बच्चों के दिमाग में नैनो न्यूरो चिप लगा दी जाती थी जो गणित, विज्ञान आदि सभी विषयों के शैक्षिक उद्दीपन दिमाग की तन्त्रिका कोशिकाओं यानी न्यूरॉन्स को भेजती रहती थीं। एक जटिल जैवरासायनिक प्रक्रिया के बाद उस विषय का ज्ञान विशेष प्रोटीन श्रृंखला के रूप में मस्तिष्क की कोशिकाओं में स्थायी हो जाता था। किसी चेतन प्रयास के बिना ही यह प्रक्रिया लगातार सोने के दौरान भी चलती रहती थी। बच्चा कोई प्रयास किये बिना ही अपनी उम्र और कक्षा के अनुसार उस विषय में जल्दी ही पारंगत हो जाता था। अब स्कूलों में शिक्षक का कार्य बच्चों को व्यायाम या नृत्य सिखाने, खेलकूद करवाने, सांस्कृतिक या मनोरंजक गतिविधियाँ आयोजित करवाने तक सीमित रह गया था। कुछ समर्पित शिक्षक कभी-कभार नैतिक शिक्षा के पाठ पढ़ा दिया करते थे। बच्चे अपनी मर्जी से स्कूल आते थे परन्तु पढ़ने नहीं बल्कि बचपन का आनन्द लेने। यहाँ वे साइबर दुनिया के अपने दोस्तों से सशरीर मिलते और सैर-सपाटा करने जाते। तनाव और दबाव उनके जीवन में कहीं था ही नहीं। कुछ था तो बस उल्लास, उत्साह और आने वाले कल के लिये उत्सुकता। तैयार होकर शुभम ने अपनी पोर्टेबल कम्प्यूटर चालित कार निकाली और गंतव्य का नाम फीड करने के बाद आराम से बैठ गया। सड़क और आकाश में छोटे-बड़े वाहन आ-जा रहे थे। गति की सीमा निर्धारित कर दी गयी थी। कहीं-कहीं विशाल ऑटोमेटिक इमारतें खिसककर अपना स्थान बदल रही थीं। सब कुछ नियंत्रित व सुरक्षित था। विशाल चमकते गोले जैसी इमारत के सामने आकर कार रुक गयी। यह शुभम का स्कूल था। शुभम कार से उतरकर जैसे ही अन्दर आया, आश्चर्यचकित सा खड़ा रह गया। आज तो स्कूल की सजधज ही निराली थी। चारों ओर फूल-पत्तियों व रंगीन झालरों की सजावट की गयी थी। एक बड़े नियॉन बोर्ड पर ‘मंगल बाज़ार’ लिखा जगमगा रहा था। तरह-तरह के सामानों से भरी दुकानों पर ‘मेड इन मार्स’ का लेबल लगी वस्तुएँ दिखायी दे रही थीं।

‘‘देखो शुभम यह इलैक्ट्रॉनिक बेडशीट है। यह शरीर की मालिश करके थकान मिटा देती है और हमारे मूड के अनुसार फूलों की थ्री डी इमेज के साथ उनकी सुगन्ध छोड़ती है। लगता है जैसे फूलों के बगीचे में लेटे हों।’ यह शुभम की दोस्त शीना थी। कमरे में रखने वाला नाइट लैम्प था जो तापमान को नियन्त्रित रखने के साथ-साथ सुहाने सपने भी दिखाता था। कमर में बांधने वाली बेल्ट गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को कम कर देती थी और व्यक्ति हवा में तैरने लगता था। पीठ पर लगाने वाले नन्हे रॉकेट थे जिनसे व्यक्ति कुछ घण्टों की उड़ान भर सकता था।

‘‘यह देखिये सर, मंगल ग्रह का स्पेशल प्रोडक्ट, प्लैनेट फोन, इसस आप सौरमंडल के किसी भी ग्रह तक वीडियोकॉल लगा सकते हैं’ दूसरी दुकान का रोबो सेल्समैन चिल्लाया। पौधों की एक नर्सरी थी। न जाने कैसे-कैसे अद्भुत पौधे वहां थे कि मिट्टी में बीज डालते ही दस मिनट के अन्दर नन्हा पौधा निकलने लगता था और एक घण्टे बाद पांच-छः फुट का होकर फल-फूल देने लगता था। कुछ पौधे विचित्र सी आवाजें निकाल रहे थे तो कुछ गिरगिट की तरह रंग बदल रहे थे। जुगनू की तरह चमकने वाले पौधे भी थे जो रंगीन प्रकाश छोड़ रहे थे। गमलों में पंखों की तरह घूमने वाले पौधों ने तो उन्हें हैरान कर दिया। वे जानते थे कि पौधे सजीव प्राणी हैं परन्तु पृथ्वी पर तो ऐसे पौधे नहीं होते। मंगलवासियों ने उनकी जीन संरचना में सुधार करके ऐसे उन्नत पौधे विकसित किये थे।

वस्तुओं को अदृश्य करने वाला विशेष पदार्थ का बना कपड़ा भी वहां था। ‘‘दरअसल इस कपड़े की आणुविक बनावट ऐसी है कि इस पर पड़ने वाली प्रकाश किरणें इसमें होकर सीधे अपने मार्ग पर चली जाती हैं, टकराकर इधर-उधर नहीं बिखरतीं। ऐसा लगता है जैसे रास्ते में कोई रुकावट है ही नहीं। किसी वस्तु को इससे ढक दिया जाये तो वह हमारे लिये अदृष्य हो जाती है’’ सेल्समैन ने समझाया। सचमुच मंगलवासियों की तकनीक किसी जादू से कम नहीं थी।

‘मंगल की सैर’ बोर्ड देखकर शुभम और शीना दुकान के अन्दर घुस गये। यहाँ सिम्युलेटर जैसा यंत्र था जो मंगल यात्रा का वास्तविक सा आभास कराता था। शुभम और शीना के अन्दर बैठते ही कन्ट्रोल पैनल के बल्ब जलने लगे।

‘‘काउन्ट डाउन शुरू हो चुका है। तीन.....दो........एक...........शून्य। लीजिये हमारा अंतरिक्षयान चल पड़ा है मंगल की ओर। इस आभासी काल-यात्रा में आपका स्वागत है।‘‘ मधुर रोबोटिक ध्वनि उनके कानों में गूंज उठी। भारी धक्के और खिंचाव के बाद वे पृथ्वी की कक्षा से बाहर अंतरिक्ष में आ चुके थे। भारहीनता का अनुभव उन्हें रोमांचित कर रहा था। चारों और काले आकाश में चमकते ग्रह-नक्षत्र दिखायी दे रहे थे।

‘‘सन् 2095.....परमाणु शक्ति से चलने वाले तीव्रगामी अंतरिक्षयान ने मानव को मंगल पर पहुंचाया। लाल ग्रह पर पहला कदम। चमकीला नारंगी आकाश और पतला वायुमण्डल, 24 घण्टे 37 मिनट का एक दिन, गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी का एक तिहाई.......ये है ज्वालामुखी ओलम्पस मॉस, 90000 फीट उँचाई। उजाड़, बियाबान मंगल को मानव ने जीवन्त बनाने की ठान ली और टेराफॉर्मेशन ऑफ मार्स प्रोजेक्ट शुरू कर दिया।’’ शुभम और शीना मंत्रमुग्ध से सुन रहे थे।

‘‘लगभग दो सदियों के अनवरत प्रयास के बाद मानव ने मंगल को रहने लायक बना दिया। आज यहां फलते-फूलते उद्योग हैं, वैज्ञानिक अनुसंधान चल रहे हैं, भरी-पूरी मानव बस्तियाँ, जंगल, खेत और पर्यटन स्थल हैं। मंगल पर अति बुद्धिमान और शान्तिप्रिय मनुष्य ही बसाये गये हैं। पृथ्वी, चन्द्रमा और मंगल तीनों पर मानव जाति राज कर रही है। सौरमंडल के बाहर जाने के लिये मंगल को लॉन्चिंग पैड के रूप में विकसित किया गया है। वह दिन दूर नहीं जब सौरमंडल के बाहर भी मानव की विजय पताका फहरायेगी।’’ कहने के साथ ही ध्वनि शान्त हो गयी। मंगल को हरा-भरा कर जीवन बसाने की 200 वर्षों की आभासी कालयात्रा पूरी कर वे अभिभूत हो उठे थे।

यह पृथ्वी का मुख्य नियंत्रण कक्ष था। अर्थ कमाण्डर मीटिंग ले रहे थे। देशों की सीमाएँ कब की समाप्त हो चुकी थीं। धर्म या राष्ट्रीयता के भेदभाव के बिना पूरी पृथ्वी अब एक प्रशासनिक इकाई थी। अर्थ कमाण्डर ने अचानक आधी रात को मीटिंग बुलायी थी जिसमें शुभम और उसके पापा भी शामिल थे। एक भयानक समस्या उठ खड़ी हुई थी। चन्द्रमा की मूनलैण्ड जेल में कुछ ऐसे खूंख्वार आतंकवादी समूह भी थे जिनकी विचारधारा आदिमयुगीन थी। वे अपने धर्म और भाषा के वर्चस्व को लेकर पृथ्वी पर खूनखराबा करते रहते थे। चालाक, क्रूर और विक्षिप्त सोच वाले इन आतंकवादियों को बड़ी कठिनाई से पकड़ा जा सका था। पता नहीं कैसे वे जेल से भाग निकले थे और चन्द्रमा के अंतरिक्ष स्टेशन बीटा पर कब्जा़ कर लिया था। वहां के कर्मचारियों और वैज्ञानिकों को उन्होंने बन्धक बना रखा था। अब उनकी मांग थी कि एक बड़े अंतरिक्षयान का इन्तज़ाम कर उन्हें मंगल पर पहुंचाया जाये।

‘‘अपराधी बेहद चालाक और सावधान हैं। वे मूनकमाण्डर को अपने साथ अंतरिक्षयान में ले जाना चाहते हैं ताकि कोई धोखाधड़ी न हो सके। मंगल पर उन्हें पकड़ना बेहद मुश्किल होगा। वहां न पुलिस तंत्र है और न ही हथियार। मंगल पर हिंसा वर्जित है’’ चिन्तित स्वर में अर्थ कमाण्डर कह रहे थे।

‘‘तो हम मंगल पर उनसे पहले पहुंचकर उन्हें पकड़ सकते हैं’’ किसी ने प्रश्न किया ।

‘‘नहीं, वे बीटा से हम पर नज़र रखे हुए हैं। उन्होंने धमकी दी है कि धरती से कोई अंतरिक्षयान उन्हें मंगल की ओर जाता दिखायी दिया तो वे बन्धकों की हत्या कर देंगे। ऐसी स्थिति में हम वहां उनसे पहले नहीं पहुंच सकते। मंगल पहुंचकर वे वहां के स्पेसगार्ड पर नियन्त्रण कर लेंगे और धरती से आने वाले किसी भी अतरिक्षयान को मंगल की सीमा से बाहर ही नष्ट कर देंगे’’ अर्थ कमाण्डर के माथे पर चिन्ता की लकीरें थीं। शुभम सोच में डूब गया। उसका दिमाग तेजी से काम कर रहा था।

‘‘हम ऐसा नहीं होने देंगे सर.....शायद एक उपाय हो सकता है .....’’ शुभम धीरे-धीरे अर्थ कमाण्डर से कुछ कहने लगा।

‘‘ओके......सुनने में यह बचकाना लगता है लेकिन कोई और उपाय भी तो नहीं।’’ कुछ देर बाद मीटिंग समाप्त कर दी गयी।

पृथ्वी से प्रोग्राम करके भेजा गया अंतरिक्षयान कुछ घण्टों बाद चन्द्रमा पर पहुंच चुका था। तमाम अन्तर्ग्रहीय मीडिया चैनल इस घटना को कवर कर रहे थे। पृथ्वी पर तनाव फैला हुआ था। शुभम और उसके पापा भी सांस रोके स्क्रीन पर ऑपरेशन मून की कार्यवाही देख रहे थे। सभी आतंकी मून कमाण्डर के साथ अंतरिक्षयान में सवार हो चुके थे। काउन्टडाउन के बाद चन्द्रमा के क्षीण गुरुत्वाकर्षण से निकलकर यान मंगल की ओर बढ़ने लगा था। न जाने क्या होने वाला था। सब कुछ कुशल मंगल नहीं था। अचानक लोगों ने देखा.......यान ने अपना रास्ता बदल दिया। मंगल की ओर जाने की बजाय वह सीधा गहन अंतरिक्ष की ओर बढ़ने लगा और शीघ्र ही उसकी अंधेरी अतल गहराई में सदैव के लिये खो गया। तनाव के कारण शुभम आंखें बन्द कर पापा की गोद में लुढ़क गया।

‘‘शुभम...’’ कुछ समय बाद माँ की आवाज से उसकी चेतना जागी। उसने झट से आंखें खोल दीं। माँ का वही मुस्कराता चेहरा स्क्रीन पर दिखाई दे रहा था।

‘‘माँ आप ठीक तो हैं न ?’’......... वह अटककर बोला।

‘‘मैं ठीक हूँ। तुम्हारा आइडिया काम कर गया शुभम। हम तीनों कमाण्डर टेलीपैथी द्वारा हमेशा सम्पर्क में रहते हैं। रेडियो संकेत आतंकियों की पकड में आ सकते थे। अतः इस मामले में टेलीपैथी द्वारा मार्स कमाण्डर से मदद मांगी गयी। उनके पास निर्जीव वस्तुओं को टेलीपोर्ट करने की तकनीक थी। वस्तुओं को अणुरूप में बदलकर निश्चित स्थान पर भेजने और पुनः संयोजित करके वस्तु में बदलना यानी टेलीपोर्टेशन। योजनानुसार उन्होंने दो चीज़ें चन्द्रमा पर मेरे पास टेलीपोर्ट कर दी। मेरे जैसा दिखने वाला एन्ड्रॉयड और अदृश्य करने वाला लबादा। मैंने स्वयं को अदृश्य करके एन्ड्रॉयड को अंतरिक्षयान में भेज दिया। हमारी योजना बड़ी सादा और सरल थी पर इसने काम कर दिखाया। शुक्र है कि हमें उन आतंकियों से सदैव के लिये छुटकारा मिल गया।’’ माँ ने विस्तार से बताया।

‘‘ओह.... मंगल ने हमारा अमंगल नहीं होने दिया’’ शुभम खुश हो उठा।

‘‘अब मैं कुछ दिनों की छुट्टी लेकर तुम्हारे पास आ रही हूं। मैंने स्पेस होटल गैलेक्टिक स्पॉट में बुकिंग करवा दी है। हम तीनों उस फ़ाइव स्टार स्पेस होटल में मज़े करेंगे.....और हां मार्स कमाण्डर ने हमें मंगल पर आने का निमन्त्रण भी दिया है। अब हम तीनों अपनी छुट्टियां स्पेस में घूमते फिरते और मौजमस्ती करते बिताएंगे।’’ शुभम की खुशी का ठिकाना नहीं था।

सब ओर मंगल ही मंगल था।

 

(विज्ञान कथा - जनवरी - मार्च 2017 से साभार)

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रचनाकार: बाल-विज्ञान-कथा / 23वीं सदी का एक दिन / कल्पना कुलश्रेष्ठ
बाल-विज्ञान-कथा / 23वीं सदी का एक दिन / कल्पना कुलश्रेष्ठ
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