व्यंग्य की जुगलबंदी-26 : चुनाव के बाद / अनूप शुक्ल

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अनूप शुक्ल व्यंग्य की जुगलबंदी-26 चुनाव के बाद ----------------------------------------- इस बार की व्यंग्य की जुगलबंदी का विषय़ था -चुन...

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अनूप शुक्ल

व्यंग्य की जुगलबंदी-26 चुनाव के बाद

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इस बार की व्यंग्य की जुगलबंदी का विषय़ था -चुनाव के बाद ! Ranjana Rawat और Rishbh Saxena पहली बार शामिल हुये। रंजना जी के वन लाइनर ’हासिल-ए-जुगलबंदी’ टाइप रहे।

Alok Puranik के बारे में लिखते हुये हमने लिखा (http://fursatiya.blogspot.in/2014/09/blog-post_30.html) था - “आलोक पुराणिक की खूबी यह यह है कि जिस घटना पर बाकी लेखक एकाध लेख ही निकाल पाते हैं उसी घटना से वे अलग-अलग कोण से तीन-चार लेख बड़े आराम से निकाल लेते हैं।“ उन्होंने हमारे विश्वास की फ़िर रक्षा की। तीन लेख सटाय़े।

विषय तय करने और बताने इसके बाद सब लेखों को समेटकर पेश कराना बवाल-ए-जान काम है। टैग करने में कोई न कोई छूट जाता है, किसी को अनावश्यक टैग हो जाता है। दोनों बवाल हैं। लोगों के लेख पढते हुये अच्छा लगता है। लेकिन जब उनको समेटने का समय आता है तो मरी हुई नानी एक बार फ़िर मर जाती हैं। नानी भी झल्लाती होंगी कहीं -कित्ती बार मारेगा बच्चा हमको।

जुगलबंदी में तीन टाइप के लेख छपते हैं। पहले वे जुगलबंदी में आने के बाद सज-संवरकर , कट-छंटकर अखबारों में शामिल होते हैं। Nirmal Gupta, DrAtul Chaturvedi, समीरलाल Udan Tashtari आदि साथियों के लेख इस घराने के होते हैं। दूसरे आलोक पुराणिक घराने के लेख जो सजे-संवरे और अखबार में छपे होते हैं। तीसरे वे साथी जो अपने मजे के लिये लिखते हैं। ये साथी थोड़ा समय निकालकर अपने लेख को थोड़ा प्यार से संवारकर लिखें तो और बेहतर बनेगें लेख। इसकेलिये सोचते हैं कि जुगलबंदी का विषय और पहले बताया जाये तो शायद अच्छा रहे। अपनी राय बतायें।

Arvind Tiwari जी जो लिखते हैं यथार्थ और अनुभव की शानदर रेसिपी होती है। उनके लिये यही उपमा याद आती है कि वे ऐसे लेखक बल्लेबाज हैं जो विकेट के चारो तरफ़ शॉट लगाते हैं। हर गेंद पर रन बनाते हैं। थोड़ा हाथ कम्प्यूटर पर और मांज लें तो नियमित अखबारी लेखन फ़िर से शुरु कर सकते हैं। अभी केवल बजरंगबली की कृपा वाले दिन मंगलवार को डीएलए आगरा में छपते हैं।

Sanjay Jha Mastan के लिखने की अलग ही शैली है। सिनेमा से जुड़े होने के कारण लेखों को प्रस्तुत करने का उनका अंदाज अनूठा और बेहतरीन होता है। वे अपने लिखने का श्रेय जुगलबंदी को देते हैं। संजय झा का जुगलबंदी की उपलब्धि है। यह अलग बात है कि संजय झा अक्सर हमारी हड़बड़ी के कारण टैग होने से रह जाते हैं। संवेदनशील मन के होने के कारण संजय इसे हमारे ’प्यार’ से वंचित होना मानकर दुखी होते हैं। फ़िर अनुरोध करने पर लिखते हैं , शानदार लिखते हैं।

बाकी सबके बारे में फ़िर कभी। फ़िलहाल आइये आपको झलक दिखलाते हैं इस बार की जुगलबंदी के लेखों की।

पहला लेख आया Alok Puranik का। आलोक बाबू ने लेख का विषय रखा’ आमिर खान के बाद अभिषेक बच्चन’। आलोक, आमिर और अभिषेक में ’अ’ वर्ण की आवृत्ति देखिये। अनुप्रास की छटा दर्शनीय है न !
लेख का लिंक यह रहा-

https://www.facebook.com/puranika/posts/10154547930963667
इस लेख के कुछ अंश देखिये:

1. बंदे को शाणा होना चाहिए, पर बहुत ज्यादा शाणा नहीं होना चाहिए, हाल प्रशांत किशोर जैसा हो जाता है।

2. चिरकुट से चिरकुट एजेंट एजेंसी लेने से पहले सोचता है कि वह आइटम बेच पायेगा या नहीं।

3. एक जमाने में हारनेवाले नेता ऐसी स्याही पर आरोप लगाते थे, जो वोट देनेवाले की उंगली पर लगाते ही गायब हो जाती थी और वो दोबारा वोट डालकर अपने मनपसंद कैंडीडेट को जिता देते थे। स्याही से आरोप उठकर ईवीएम पर आ गये हैं, यानी देश डिजिटल इंडिया की तरफ बढ़ रहा है।

एक और लेख जिसका शीर्षक रखा ’हारे को ईवीएम’ में आलोक बाबू फ़िर ईवीएम महिमा बताते हैं। पूरा लेख इधर बांचिये https://www.facebook.com/puranika/posts/10154545943108667

आपके लिये मुख्य अंश हम पेश करते हैं:

1. यह ईवीएम घोटाला नहीं, बैंकिंग घोटाला है। हर नेता मस्त बैठा था यह सोचकर कि मैं बैंक खाते में इतने वोट हैं। बाद में जाकर पता लगा कि जिन वोटों को वह अपना समझ रहा था या अपना समझ रही थी वह किसी और के खाते में बरामद हुए।

2. सदमा तब सौ गुना हो जाता है, जब अपने खाते से गायब रकम विरोधी के पास बरामद हो और उसे दिखाकर वह चुनाव-डांस कर रहा हो।

Anshu Mali Rastogi का इस बार मन लफ़ंगई पर लिखने का था। उन्होंने चुनाव के बाद अपने मन की मुराद पूरी की। लफ़ंगई पर गर्व करते हुये उन्होंने जो लिखा वह यहां देख सकते हैं

https://www.facebook.com/anshurstg/posts/213644762449219
लेख के कुछ अंश हम आपको पढवाते हैं:

1. लफंगा हूं तो हूं। कम से उन कथित चरित्रवानों से तो अच्छा ही हूं जो मुंह में राम आंखों में अश्लीलता रखते हैं।

2. यह दुनिया लफंगों की ‘सद-चरित्र लफंगई’ पर ही टिकी है। दुनिया-समाज में अगर लफंगे न हों तो अजीब-सी विरानी और उदासी छा जाए। खास बात, लफंगे बढ़-बोले नहीं होते। न किसी से हिलगते हैं, न ज्यादा किसी को भाव देते। बस अपने काम से मतलब रखते हैं।

3. हर व्यक्ति अपनी लफंगई को राजनीति, चुनाव, नौकरी, साहित्य, लेखन, घर-परिवार, नाते-रिश्तेदारी, लड़ाई-झगड़े में एप्लाई करने पर तुला है। इसमें कुछ लोग कामयाब हो जाते हैं, जो नहीं हो पाते वे इस-उस को ‘कोसने’ में ही अपनी सारी ‘एनर्जी’ गवां डालते हैं।

समीरलाल उर्फ़ Udan Tashtari जुगलबंदी के ’राजा बाबू’ टाइप लेखक हैं। नियमित शिरकत करते हैं। ब्लॉगिंग की फ़ैन फ़ालोविंग फ़ेसबुक पर मिली हुई है। उनको अखबारों में और लेख भेजने चाहिये। अखबारों की शब्दसीमा के हिसाब से। खूब छपना चाहिये। इस बार जो लिखा समीरलाल ने उसका लिंक यह रहा https://www.facebook.com/udantashtari/posts/10154852969371928

लेख के कुछ अंश:

1. चुनाव के बाद बस दो तरह के नेता बचते हैं. एक जीते हुए और दूसरे हारे हुए.

2. यहाँ (राजनीति में) न तो कोई सिरा होता है न ही कोई छोर, जो कोई किसी को सिरे से खत्म करे और न ही चुनाव के बाद क्या होगा जैसी कोई सोच....जो भी ऐसी सोच रखता है वो नेता हो ही नहीं सकता.

3. हमारी या आपकी पार्टी जैसी अवधारणा भी मूर्ख ही पालते हैं. नेता अजर अमर है. नेता मूल रुप से राजनिती की आत्मा है और पार्टी शरीर. पार्टियाँ बदलती रहती हैं.

Arvind Tiwari जी ने इस मसले को लिखते हुये शीर्षक रखा ’चुनाव के बाद 'मैं'और 'वह’। चुनाव में लेखकों को भी उतार दिये। मजे लिये। देखिये। लेख का लिंक यह रहा https://www.facebook.com/permalink.php… लेख के कुछ अंश यहां पेश हैं:

1. उनके हारने और मेरे हारने में फ़र्क है फिर भी मेरा हारना उनके हारने से उसी तरह जुड़ा है जैसे नया वेतनमान मंहगाई भत्ते से जुड़ा होता है।

2. चुनाव परिणाम आये तो हमारी हालत उस प्रेमी जैसी हो गयी जिसकी प्रेमिका ने साथ भागने का वादा तो कर दिया लेकिन गाड़ी छूटने तक प्लेटफार्म पर नहीं पहुंची! प्रेमी बेचारा दूसरी गाड़ी और प्रेमिका के संयुक्त इंतज़ार में हाफ़ शर्ट पहने गर्म पानीनुमा चाय पीते हुए रात को सुबह में बदलकर घर लौट आता है!

3. कुत्तों की घ्राण शक्ति बहुत पावरफुल मानी जाती है।जबकि उनके चमचेनुमा कुत्ते आज भी हर किसी पर भोंक पड़ते हैं।सियासत में चमचों का भौंकना सतत चलने वाली प्रक्रिया है भले ही उनका नेता हार क्यों न जाये।

Nirmal Gupta जी ने चुनाव के बाद लड्डुओं का राजनय पर नजर दौड़ाई और खूब दौड़ाई। लेख बाद में हरिभूमि अखबार में छपा। पूरा लेख बांचने के लिये इधर आइये- https://www.facebook.com/gupt.nirmal/posts/10211599001306254

लेख के कुछ अंश:

1. चुनाव के दौरान जो लड्डू होते हैं,वे नेताओं के वादों और उनकी बातों की तरह गोलमटोल होते हैं। वे लगभग डिजिटल होते हैं। वे लड्डू होकर भी दरअसल नहीं होते। वे आभासी मित्रता की तरह मित्र और अमित्र के बीच झूले की तरह झूलते रहते हैं। इनमें स्वाद का सिर्फ तिलिस्म होता है।

2. चुनाव के बाद जीतने वाले जीत की ख़ुशी में लम्बी सांस लेता है। चूँकि वह भरपूर हवा भीतर लेता है तो अनिवार्यत: उसे छोड़ता भी है। वह जीत के एक एक पल का मजा लेता है। वह सबको मुफ्त में खुलेहाथ शर्तिया विजय के सूत्र बांटता है।

3. चुनाव के नाम पर जो होना था ,हो लिया। खेल खत्म हुआ। खेल के भीतर का असल खेल शुरू हुआ। पाले खिंच गये हैं। पाले बदलने वाले अपने काम पर लग गये है। जो किसी वजह से ‘कर्तव्यविमूढ’ खड़े के खड़े रह गये,वे अपनी मूढ़ता में सरोकार ढूंढ रहे हैं।

Ranjana Rawat जी ने हमारे अनुरोध पर जुगलबंदी में शिरकत की। ग्यारह पंच पेश किये। सब एक से बढकर एक टाइप। सभी पंच यहां बांचिये https://www.facebook.com/ranjana.rawat2/posts/1260639690723220

हम आपको झलक दिखलाते हैं:

1. गोवा में काँग्रेस के हाथ से सत्ता फिसल गई है, दिग्विजय सिंह को ये बात एक विदेशी सैलानी द्वारा उस वक़्त पता चली जब वे गोवा में समुद्र के तट पर लेटे, भाजपा की जीत के पीछे RSS का हाथ होने पर मंथन कर रहे थे ।

2. 2014 में पर्रिकर गोवा से दिल्ली लाए गए अब 2017 में फिर से वापिस गोवा भेज दिए गए हैं । ये बात ठीक है गोवा में समुद्र है पर उस में भी मोदी लहर चल रही है, इस बात की जाँच होनी चाहिए--विपक्ष

3. चुनाव हो जाने के बाद माहौल बिलकुल उस बेडरूम के सीन सा हो जाता है जिसमें पति-पत्नी अब करवट लेकर सोने की तैयारी में हैं ।

Sanjay Jha Mastan ने चुनाव के बाद में ’काला हास्य’ कैटेगरी के पंच लिखे। शानदार पंच। सभी पंच यहां बांचिये

https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=10155157301822658&id=640082657

हम कुछ झलक दिखाते हैं:

1. चुनाव के बाद खिचड़ी पकती है ! चुनाव के बाद सबकी दाल गलती है ! सुबह का भूला चुनाव के बाद घर लौट आता है ! चुनाव के बाद अनुलोम, विलोम हो जाता है ! चुनाव के बाद सब पात ढाक के हो जाते हैं ! चुनाव के बाद कुछ अंगूर खट्टे हो जाते हैं ! चुनाव ख़त्म होते ही राजनीती शुरू हो जाती है !

2. चुनाव के बाद फिर से शपथ ग्रहण होता है ! चुनाव के बाद कुर्सी बंटती है ! चुनाव के बाद कुर्सी का तौलिया बदल जाता है ! चुनाव के बाद बेरोज़गार के पाँव भारी हो जाते हैं !

3. चुनाव के बाद चुनाव में हारा प्रत्याशी फिर से कुँवारा हो जाता है ! चुनाव के बाद साहित्य का चीरहरण हो जाता है ! चुनाव के बाद व्यंग्य की लाज रख ली जाती है ! चुनाव के बाद अगली चुनाव की तैयारी शुरू हो जाती है !

विनय कुमार तिवारी जी ने चुनाव के बाद पर जो लिखा उसको आप यहां पहुंचकर पूरा बांचिये

https://www.facebook.com/vinaykumartiwari31/posts/1229542713830352
हम आपको इसके कुछ अंश पेश करते हैं

1. नेता हो या वोटर, क्या चुनाव के पहले और क्या चुनाव के बाद, जिसकी जो आदत होती है वह नहीं छूटती है।

2. चुनाव बाद तो सरकार बदल गई है, अब फिर से ठेका होगा और ठेकेदार भी बदल जाएंगे..अब उनके वाले लोग ठेका उठाएँगे´।

3. चुनाव बाद भी चुनाव पूर्व वाला गोरखधंधा चलता रहता है, ठेकेदार नेता की मजबूरी होते हैं। यह गोरखधंधा ही चरम-सत्य है, चुनाव तो आते-जाते रहते हैं।

Ravishankar Shrivastava उर्फ़ रविरतलामी जी चुनाव के बाद के लिये सौ साल आगे ले गये हमको। सन 3025 के चुनाव दिखा दिये। आप भी देखिये यहां पहुंचकर

http://raviratlami.blogspot.in/2017/03/26-3050.html
लेख के कुछ अंश:

1. बायोमैट्रिक तरीके से, 1048 बिट एनक्रिप्टेड सेक्योर्ड साइट के जरिए जो मतदान करवाए गए उसमें हैकिंग की गई, और तमाम वोट परसेंटेज जीतने वाली पार्टी को चले गए. (इसीलिए, वापस, पुराने, ईवीएम तरीके से, बूथ आधारित मतदान कराने की पुरजोर मांग हारने वाली पार्टी की ओर से की गई)

2. चुनाव के दौरान वोटरों को जमकर लुभाया गया. चुनावी घोषणा-पत्र में पर्सनल ड्रोन से लेकर पर्सनल रोबॉटिक असिस्टेंट तक देने के वायदे किए गए और बांटे गए, जिससे लालच में अंधी होकर जनता ने वोट दिए.

3. चुनावी विश्लेषकों के मुताबिक दरअसल, अधिकांशतः जीते वही हैं जो टिकट नहीं मिलने या अन्य वजहों से ऐन चुनाव से ठीक पहले पाला बदल लिए थे. इस लिहाज से, जिस पार्टी की जीत है, सत्यता में वह जीत नहीं है, और जिस पार्टी की हार है, वस्तुतः वह हार नहीं है. ठीक ठीक कहें, तो यह तो यथा-स्थिति-वाद है!

लखनऊ में Alankar Rastogi के जानपहचान के लोग उपमुख्यमंत्री बन गये हैं। फ़िर भी वे परदुखकातरता के भाव से हारे हुये लोगों के लिये हार के जिम्मेदार खोज रहे हैं। *हार का जिम्मेदार कहाँ से लाऊं यार* लेख बांचने के लिये उनकी पोस्ट पर पहुंचिये-

https://www.facebook.com/rastogi.ala…/posts/1292059700882713

इसके कुछ अंश आपको पढवाते हैं:

1. हार के जिम्मेदार को ढूंढना और उस कवच विहीन सिर की तलाश करना जिस पर हार का ठीकरा फोड़ा जा सके. तथाकथित रूप से आगे –आगे चलने वाले को करारी हार मिलने पर पीछे के रास्ते से बेदाग़ निकाल देना भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा होता है .विशेषकर वहां जहाँ राजनितिक पार्टी उनकी पर्सनल प्रॉपर्टी समझी जाती हो .

2. हार का पोस्ट मार्टम शुरू किया जाता है . जिसने अपनी पार्टी का मर्डर किया होता है वही उस पोस्ट मार्टम के पैनल का हेड होता है . आसानी से समझा जा सकता है कि उस पोस्ट मार्टम में कारण नहीं बल्कि कातिल को बचाने का निवारण किया जाता है .पोस्ट मार्टम रिपोर्ट आती है

3. जब हर बंदा पार्टी हित के बजाये चंदाहित में लगा रहेगा . जब हर कार्यकर्त्ता के भांजे –भतीजों का ठौर पार्टी के सिरमौर बनने में रहेगा . जब सभी को टिकट देने की विकट समस्या आ जाएगी तब भीतराघात तो होना ही है .

Rishbh Saxena इस जुगलबंदी में पहली बार शामिल हुये। उनका स्वागत है। उन्होंने हर पार्टी के हिसाब से चुनाव के बाद के सीन बयान किये हैं। बयान क्या पूरी चकल्लस है भाई। उनके लेख को पढने के लिये इधर आइये .

https://www.facebook.com/rishbh.saxena/posts/1508685029175990 कुछ अंश यहां पेश हैं:

1. चुनावी जीत की खबरों के बीच सबसे बड़ा झटका पीएम मोदी को लगा है। उत्तर प्रदेश में बीजेपी की भारी जीत को देखकर पड़ोसी देशों श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान विचार कर रहे हैं कि पीएम मोदी के उनके देश की यात्रा करने पर प्रतिबंध लगा दिया जाए।

2. नेताओं को डर था कि मोदी लहर जिस तरह से सुनामी में तब्दील होती जा रही है उसके बाद कहीं मोदी इन देशों में भी चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री न बन जाए। इन सभी देशों ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में भी उठाने की बात कही है।

3. यूपी इलेक्शन का रिजल्ट देखकर फूली नहीं समा रही बीजेपी पर दिग्विजय सिंह ने ट्वीट से वार किया। पीएम मोदी को निशाना बनाते हुये दिग्विजय ने कहा कि यूपी जीतना कोई बड़ी बात नहीं है, अगर सच में मोदी लहर है तो पाकिस्तान में जीत कर दिखाएं मोदी।

अभी हम समेट ही रहे थे जुगलबंदी कि देखा कि आलोक पुराणिक ने फ़िर एक लेख ठेल दिया- “कांग्रेस-मुक्त में अमर रहे कांग्रेस” लेख का लिंक यह रहा https://www.facebook.com/puranika/posts/10154556189663667

लेख के कुछ अंश देखिये:

1. कांग्रेस दरअसल आत्मा है, जिसके बारे में गीता में बताया गया है कि वह मरती नहीं है, एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश कर लेती है। हालांकि कांग्रेस कुछ के लिए अब प्रेतात्मा हो गयी है-डराती है, सबसे ज्यादा कांग्रेस के उन नेताओं को जो अभी भाजपा ज्वाइन करने का जुगाड़ नहीं तलाश पाये हैं।

2. कांग्रेस आम भारतीय जैसी है, चौबीस घंटे चूंचूं, मैंमैं राजस्थान में कांग्रेसी नेता सीपी जोशी दूसरे कांग्रेसी नेता नेता गहलौत से झगड़ते हैं, गहलौत तीसरे कांग्रेसी नेता सचिन पायलट से झगड़ते हैं, आपस में इतना झगड़ते हैं कि भाजपा से लड़ने का वक्त ही नहीं बचता।

3. कांग्रेस दरअसल वह बड़ा भूतपूर्व शो रुम है, जिसके भूतपूर्व कर्मचारियों ने शो-रुम वीरान करके अपनी दुकानें जमा ली हैं-बंगाल की ममता बनर्जी की पार्टी, महाराष्ट्र की शरद पवार की पार्टी, आंध्र की वाईएसआर कांग्रेस-ये सब कांग्रेस के काऊंटर होते, तो अगर कांग्रेस शो-रुम ठीक चल रहा होता तो। अब ये दुकानें जम गयी हैं, तो शो-रुम को कुछ ना समझतीं।

और अब अंत में अनूप शुक्ल का भी लेख तो है

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10210882645235623

कुछ अंश भी देख लीजिये

1. चुनाव के बाद होने वाली हरकतों के बारे में गदर मतभेद हैं। कुछ लोग कहते हैं चुनाव के बाद सरकार बनती है। दीगर लोग मानते हैं कि चुनाव के बाद फ़िर चुनाव होते हैं। ज्यादा अनुभवी लोग बताते हैं कि चुनाव के बाद जो होता है उसको नौटंकी के अलावा कुछ कहना ठीक नहीं।

2. ईवीएम और वैलटपेपर के लफ़ड़े से लफ़ड़े से बचने का सस्ता और टिकाऊ उपाय यह भी हो सकता है कि चुनाव में जिसको सबसे ज्यादा गरियाया जाये उसको इज्जत के साथ बुलाकर शपथ ग्रहण करा दी जाये-’ आइये भाई देश/प्रदेश को हिल्ले लगाना शुरु करिये एक तरफ़ से। अभी बरबादी की तमाम संभावनायें बची हैं।’

3. हम यह तक नहीं तय कर पाते कि आजकल दिन अच्छे चल रहे हैं कि खराब। हम अभी खुश हैं कि दुखी। हम पूरी तरह लुट चुके हैं या अभी और लुटने की गुंजाइश है। बस यही सोचकर संतोष कर लेते हैं - ’सब कुछ लुट जाने के बाद भी भविष्य बचा रहता है।’

यह रहा इस बार की जुगलबंदी का लेखा-जोखा। कैसा लगा बताइये। इसके बाद अगली जुगलबंदी पर लिखने के लिए जुट जाइये। अब आप कहेंगे -विषय तो बताइये। तो अगली बार की जुगलबंदी का विषय है -गर्मी।

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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: व्यंग्य की जुगलबंदी-26 : चुनाव के बाद / अनूप शुक्ल
व्यंग्य की जुगलबंदी-26 : चुनाव के बाद / अनूप शुक्ल
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