युक्त होने की प्राविधि है – योग डा. सुरेन्द्र वर्मा

SHARE:

योग एक अति प्राचीन और रहस्यमय विद्या है। इसके अनुसंधान में भारतीय ऋषि-मुनियों का एक बड़ा योगदान रहा है। भारतीय संस्कृति की यह एक परम्परागत व...

image

योग एक अति प्राचीन और रहस्यमय विद्या है। इसके अनुसंधान में भारतीय ऋषि-मुनियों का एक बड़ा योगदान रहा है। भारतीय संस्कृति की यह एक परम्परागत विशेषता रही है कि उसने वाह्य जगत पर (जिसमें प्रकृति और सामाजिक परिवेश दोनों ही सम्मिलित हैं) नियंत्रण की बजाय सदैव ही आत्म-नियंत्रण पर बल दिया है। जहां एक ओर आधुनिक पाश्चात्य संस्कृति दूसरों के मन पर अपना प्रभाव डालने के लिए प्रचार और विज्ञापन के नए नए तरीके खोजती है, वहीं दूसरी ओर भारत में उन पद्धतियों का अन्वेषण किया गया है जिनसे व्यक्ति स्वयं अपने ही मन और शरीर पर नियंत्रण प्राप्त कर सके। इस प्रकार का नियंत्रण, भारतीय मनीषा के अनुसार, तभी संभव है जब हम अपने अवधान को वाह्य विषयों से स्थानांतरित कर आंतरिक जगत की ओर उन्मुख कर सकें। सामान्यत: मनुष्य केवल वाह्य विषयों पर ध्यान केन्द्रित करने का अभ्यासी रहा है। वह स्वयं अपने मन के भीतर उतर पाने में लगभग असमर्थ रहता है। योग वह पद्धति है जो व्यक्ति को उसकी आंतरिक अवस्थाओं को भी पहचान पाने और उन्हें नियंत्रित करने की सामर्थ्य प्रदान करती है। योग इस प्रकार हमारे ध्यान का वाह्य से आंतरिक क्षेत्र में विस्तार और स्थानान्तरण है।

[ads-post]

योग विद्या को प्राय: हिन्दू जीवन-पद्धति और दर्शन से जोड़ा जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि हिन्दू षठ-दर्शनों में योग भी एक महत्वपूर्ण दार्शनिक सम्प्रदाय है किन्तु बौद्ध और जैन दर्शनों में भी योग विद्या को एक महत्त्व पूर्ण स्थान प्राप्त है। बौद्धों के ‘ज़ेन-सम्प्रदाय’ ने जो मुख्यत: जापान में विकसित हुआ, अनेक ‘ज़ेन’ योगियों को जन्म दिया है। वस्तुत: शब्द, ‘ज़ेन’ संस्कृत शब्द, ‘ध्यान’ से निकला है – ध्यान> ज्यान> ज़ेन। इसी प्रकार ‘ज़ेन’ साधु भी योग क्रियाओं का सतत अभ्यास करते हैं। बौद्ध ही नहीं, जैन विपश्यना भी योग का ही एक रूप है। योग, इस प्रकार किसी एक मत या सम्प्रदाय या धर्म की धरोहर नहीं है। यहाँ तक कि मुस्लिम समाज में नवाज़ की क्रियाएं तक बहुत कुछ योगिक क्रियाओं से मिलती-जुलतीं हैं। सच तो यह है कि योग एक धर्म-निरपेक्ष ध्यान- पद्धति है जो सभी व्यक्तियों को लिंग और जाति के भेद-भाव के बगैर, अभ्यास द्वारा उपलब्ध हो सकती है। आधुनिक काल में तो योग देश और राष्ट्र की सारी सीमाएं तोड़ कर एक वैश्विक संपत्ति बन गया है। यूरोप और विशेषकर, अमेरिका, में तो योग बहुत-कुछ एक फैशन के रूप में, “योगा” नाम से प्रचलित हो गया है।

‘योग’ शब्द ‘युज’ धातु से बना है। इसका अर्थ जुड़ने या युक्त होने से है। योग करना जोड़ना है। किसी भी वस्तु का योग किसी अन्य वस्तु से हो सकता है। संख्याओं का योग, ग्रहों का योग, व्यक्तियों का योग (मिलन), इत्यादि। गीता के प्रथम अध्याय में अर्जुन को विषाद से युक्त दिखाया गया है इसलिए इस अध्याय को विषाद-योग कहा गया है। विभूतियों से युक्त होना ‘विभूति-योग’ है और पुरुषोत्तम से युक्त होना ‘पुरुषोत्तम-योग’ है। इसी प्रकार ज्ञान, भक्ति अथवा कर्म से युक्त होना क्रमश: ज्ञान-योग, भक्ति-योग और कर्म-योग है। किन्तु वास्तविक प्रश्न तो यह है कि युक्त (किसी भी वाह्य या आंतरिक विषय से) हुआ कैसे जाय ? उक्त होने की इसी युक्ति को पतंजलि ने राज-योग में उद्घाटित किया है। पारिभाषिक अर्थ में यही योग है। पतंजलि के अनुसार योग की यह विधि, एक शब्द में “चित्त-वृत्ति-निरोध” है। अर्थात, चित्त की वृत्तियों का नियंत्रण ही योग है। इसी को हम आत्म-संयम कह सकते हैं। गीता में योग को “वश्वात्मा” कहा गया है। अर्थात, योग वह है जो आत्मा को ‘वश’ में करता है। स्पष्ट ही आत्मा से यहाँ तात्पर्य समस्त शारीरिक और मानसिक प्रक्रियाओं से है। आत्मा को वश में करने के लिए आठ साधन, योग के ‘अष्टांग’, बताए गए हैं। ये हैं – नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्यहार, धारणा और समाधि।

जब हम अपनी मानसिक वृत्तियों को नियंत्रित करने में सफल हो जाते हैं तो संज्ञानात्मक धरातल पर हमारी बुद्धि निश्चय हो जाती है और हम अपनी मानसिक क्षमताओं का समन्वय करने में सक्षम हो सकते हैं। यही कारण है कि योग हमें ‘समत्व-बुद्धि’ प्रदान करता है। योग को समत्व बुद्धि कहकर उसके इसी संज्ञानात्मक पक्ष पर बल दिया गया है।

भावात्मक या संवेगात्मक धरातल पर योग ‘दुःखहा’ है। यह दुःख का हरण करने वाला है। गीता में योग को ‘दुःख संयोग वियोगम’ कहकर परिभाषित किया गया है। योग वह युक्ति है जिससे मानव स्थिति में जो दुःख का संयोग है उसको विच्छेदित किया जा सकता है। दुःख रहित स्थिति शान्तावस्था है। योग इस प्रकार शान्ति प्रदान करने वाली एक सावधान अवस्था है जो हमारे संवेगों को नियंत्रण में रखती है। संवेगों को नियंत्रण में रखना ही अनासक्ति प्राप्त करना है। अत: योग व्यक्ति को विषयों की आसक्ति से बचाता है और इस प्रकार भावात्मक रूप से एक अविचलित अवस्था प्रदान करता है। गांधी जी ने तो योग के इसी पक्ष को ध्यान में रखते हुए उसे ‘अनासक्त-योग’ की संज्ञा प्रदान की थी।

यदि योग द्वारा बुद्धि और भावना से व्यक्ति निश्छल और अविचलित बने रहने में समर्थ हो जाता है तो वह सहज ही किसी भी कर्म में कौशल प्राप्त कर सकता है। प्राय: कार्य करते समय हमारा ध्यान उस कार्य के अच्छे या बुरे परिणामों की ओर जाने-अनजाने केन्द्रित हो जाता है और इसीलिए पूरे मनोयोग से हम अपने कार्यों को संपन्न नहीं कर पाते। अपने कार्य में कौशल हम तभी प्राप्त कर सकते हैं जब हमारा पूरा ध्यान केवल कार्य पर रहे। इसीलिए क्रियात्मक धरातल पर योग “कर्मसु कौशलम” कहा गया है। यदि पूरे मनोयोग से कर्म किया जाए तो उसका परिणाम (फल) तो असंदिग्ध है ही। फल के बारे में पहले से चिंता क्या करना ? इस प्रकार की चिंता तो स्वयं परिणाम के लिए ही अहितकर होगी क्योंकि तब हमारा ध्यान कर्म से विचलित हो जाएगा। इसीलिए फलाशा रहित निष्काम-कर्म ही यह एकमात्र उपाय है जिससे कर्म का अपना वांच्छित फल सुनिश्चित किया जा सकता है।

भारतीय मनोविज्ञान व्यक्तियों की मानसिक बुनावट में अंतर स्वीकार करता हैं। सभी व्यक्तियों की आध्यात्मिक पृष्ठ-भूमि जो उन्हें अपने पिछले जन्मों से प्राप्त है, एक सी नहीं होती। जन्म के समय से ही प्रत्येक व्यक्ति में भावनात्मक और बौद्धिक स्तर पर फर्क होता है। यूँ तो साधना की विभिन्न प्रणालियों के रूप में योग के अनेक प्रकार हैं, किन्तु इनमें से चार प्रमुख हैं। कर्म-योग, भक्ति-योग और ज्ञान-योग तथा कर्म-योग। योग के यह प्रमुख चार प्रकार मनुष्य की मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति पर आधारित हैं। कुछ लोग दुखी मानवता के लिए अधिक संवेदन- शील होते हैं और उनकी सेवा करना आवश्यक मानते हैं; कुछ दूसरे लोग भावुक अधिक होते हैं तथा संसार के पीछे जो रहस्यमय शक्ति काम कर रही है , उसे न केवल जानना चाहते हैं वरन उसके साथ अपना तादात्म्य भी स्थापित करना चाहते हैं; कुछ अन्य लोग अपने विवेक और अपनी बुद्धि के प्रति आग्रहशील होते हैं। इन सभी लोगों को एक ही प्रकार की साधनापद्धति अनुकूल नहीं हो सकती।

पहले प्रकार के लोगों के लिए कर्म-योग का प्रावधान है। वे दूसरों की सेवा से अपना आध्यात्मिक लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। जो विश्व को संचालित करने वाली शक्ति को आश्चर्य और भय से देखते हैं, उन भाव-प्रवण लोगों के लिए भक्ति-योग है। वे जो स्वयं प्रकृति के रहस्य का अनुसंधान करना चाहते हैं वे राज-योग की साधना कर सकते हैं। इसी प्रकार वे जो शुद्ध विचार और बुद्धि द्वारा अपना आध्यात्मिक विकास करना चाहते हैं, उनके लिए ज्ञान-योग निर्धारित किया गया है। किन्तु हम किसी भी साधना से क्यों न आगे बढ़ें अंतत: सभी साधनाओं का लक्ष्य एक ही है। योग का शाब्दिक अर्थ ‘संयुक्त करना’ है और मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि सभी योग पद्धतियाँ मनुष्य को उसकी दिव्यता के साथ संयुक्त करती हैं।

भक्ति-योग एक सहज और स्वाभाविक साधन का मार्ग है। अधिकाँश लोग ब्रह्म के निर्गुण और अमूर्त स्वरूप पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते। अत: भक्ति ही एक सरल मार्ग है। भगवद-प्रेम के कारण विश्व-बंधुत्व और विश्व-प्रेम जाग्रत हो जाता है। भक्त यद्यपि आरम्भ में स्वयं अपने में और भगवान में एक अंतर बनाए रखता है किन्तु परमार्थ अवस्था में पहुँच कर प्रेम, भक्त और भगवान में कोई अंतर नहीं रहता और इस प्रकार भक्ति से भी अभेद प्राप्ति संभव हो जाती है। भावुकता से शून्य व्यक्तियों के लिए ज्ञान-योग का विधान है। ज्ञान-योग में ज्ञान का अर्थ इन्द्रियजन्य ज्ञान अथवा बौद्धिक ज्ञान से नहीं है। यह आत्मानुभूति है; “अहं ब्रह्मास्मि” का अपरोक्ष ज्ञान है। जिस प्रकार भक्ति योग में पारमार्थिक स्तर पर प्रेम, भक्त और भगवान में कोई अंतर नहीं रहता, उसी प्रकार ज्ञान योग में ज्ञाता, ज्ञेय और ज्ञान की त्रिपुटी का अतिक्रमण हो जाता है तथा ज्ञानी अपरोक्षानुभूति प्राप्त कर लेता है। कर्म-योग का अर्थ कुशलता के साथ कार्य करना है इस विधि में जहां एक ओर स्वार्थयुक्त कर्मों को त्याग देने का विधान है तथा फलाशा और आसक्ति से रहित हो जाने का उपदेश है, वहीं दूसरी ओर लोकसंग्रह की दृष्टि रखते हुए निस्वार्थ कर्म के लिए आग्रह है। अहंभाव को समाप्त कर कर्म करना ही कर्म-योग है। कर्म-योगी की एकाग्रता केवल कर्म पर होती है, उसके फल पर नहीं, अत: कर्म-योग की सफलता के लिए एकाग्रता की आवश्यकता है और यह चित्त की वृत्तियों का निरोध करके प्राप्त की जा सकती है।

कहा गया है कि साधक रूपी पक्षी के उड़ने के लिए ज्ञान और भक्ति यदि उसके दो पंख हैं तो योग (राज-योग) सामंजस्य बनाए रखने वाली पूंछ है। राज-योग ही वह मार्ग है जिससे हम एकाग्रता अथवा अविचल ध्यान अर्जित करते हैं। इसकी आवश्यकता कमोबेश प्रत्येक साधना-प्रणाली में पड़ती है। इसी प्रकार राज-योग में वर्णित यमनियामादि सद्गुण सार्वभौमिक हैं और बिना किसी भेद-भाव के सभी प्रकार के योगियों को स्वीकार करने आवश्यक होते हैं। ये साधक को एक नैतिक आधार देते हैं। बिना इनका पालन किए मुमुक्ष किसी भी प्रकार के साधना-मार्ग पर नहीं चल सकता।

ध्यान और नैतिक सद्गुणों के अतिरिक्त एक तीसरा तत्व जो सभी साधनाओं में समान रूप से परिलक्षित है वह है, “अहंनाश”। सभी प्रणालियों में मूलत: अहंनाश द्वारा ही अंतिम लक्ष्य की सिद्धि संभव है। कर्म-योग में कर्म की फलाकांक्षा से रहित होने के लिए कर्मों को ईश्वरार्पण कर देना ज़रूरी है। भक्ति योग में भक्त का अहं भगवान के अहं में विलय हो जाता है, राजयोग में साधक का अहं समाधि में विलीन हो जाता है और ज्ञान-योग में ज्ञानी का अहंकार ब्रह्म में एकाकार होकर विश्वेक की स्थिति में आ जाता है। अत:, कहा जा सकता है की अहं-त्याग के बिना कोई साधना पूरी नहीं होती।

---

 

डा. सुत्रेन्द्र वर्मा (मो. ९६२१२२२७७८)

१०, एच आई जी / १, सर्कुलर रोड

इलाहाबाद -२११००१

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: युक्त होने की प्राविधि है – योग डा. सुरेन्द्र वर्मा
युक्त होने की प्राविधि है – योग डा. सुरेन्द्र वर्मा
https://lh3.googleusercontent.com/-fkvtZZIitNM/WOzKPI_18aI/AAAAAAAA4GM/IDev8M5Q0-o/image_thumb.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-fkvtZZIitNM/WOzKPI_18aI/AAAAAAAA4GM/IDev8M5Q0-o/s72-c/image_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/04/blog-post_96.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/04/blog-post_96.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content