प्राची-अप्रैल 2017–हास्य-व्यंग्य विशेषांक : व्यंग्य / राम प्रसाद...का प्रेम! / अजय कुमार मिश्र ‘अजय श्री’

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क ल सुबह जब मैं लेटा अलसा रहा था. अपने ख्यालों में गुम व्यंग बना रहा था. मेरी पत्नी मुझे देखकर बड़बड़ा रही थी, अपना प्रेशर कूकर की तरह बढ़ा ...

ल सुबह जब मैं लेटा अलसा रहा था. अपने ख्यालों में गुम व्यंग बना रहा था. मेरी पत्नी मुझे देखकर बड़बड़ा रही थी, अपना प्रेशर कूकर की तरह बढ़ा रही थी. बोली- कब तक कविता कहानी बनाते रहोगे. दुनिया के आदमी औरतों को अपनी बेवकूफियां समझाते रहोगे.? अरे बिस्तर छोड़ो, उठो...बाहर देखो राम प्रसाद कब आता है? कब जाता है?

मैं चौंका अरे राम प्रसाद कहां आता है? पत्नी बोली...कहीं भी जहां उसकी मर्जी, आता है, जाता है. मैंने सोचा लगता है कोई नया पड़ोसी आया है, जिसने अपना नाम राम प्रसाद बताया है. पत्नी बोली नहीं-नहीं बगल के मुहल्ले का है. जब मर्जी आता है, घूमता-फिरता ऐश करता चला जाता है. मेरा सर चकराया, साथ ही शांत मन घबराया. मैंने प्यार से पूछा और क्या-क्या करता है, मुझे विस्तार से बताओ, मैं समझ सकूं, खुल के बताओ. पत्नी बोली- अभी कल की बात है, मिसेज दीक्षित उसे क्यूट और हैंडसम बता रही थीं, मिसेज पाण्डे उसे प्यार से सहला रही थीं, मिसेज श्रीवास्तव ने तो अपना पूरा अनुभव सुनाया. साथ ही उसे बड़े प्यार से गले लगाया और मिसेज मिश्रा का क्या कहना...वो तो शर्मा रही थीं, फिर भी उसे इशारे से पास बुला रही थीं.

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मैंने कहा- ये साला राम प्रसाद मरवायेगा, हम मर्दों की इज्जत में चार चांद लगवायेगा. तभी मेरी पत्नी इठलायी और बोली- सच कहूं जी. सबको इस तरह देख मैं खुद को रोक नहीं पायी, न चाहते हुए राम प्रसाद को घर पे बुलाया. तुम्हारी कसम मन में ख्याल आया. कुछ तो बात है जो सारी औरतें अपना रही हैं. राम प्रसाद पर अपना हक जता रही हैं. मेरा व्यथित मन चिल्लाया, अब तो कुछ करना ही होगा. राम प्रसाद को मरना ही होगा. वरना ये सारी औरतों को घुमायेगा, मर्द जाति की इज्जत में धब्बा लगायेगा. तुरन्त मैंने श्रीवास्तव जी को बुलाया. राम प्रसाद अपने मुहल्ले में आ रहा है, उनको समझाया. श्रीवास्तव बोले वो राम प्रसाद? मैंने कहा हां-हां वही राम प्रसाद, जिसके बारे में मुहल्ले के बच्चों ने समझाया था कभी घर पर भी रहा करो नसीहत दी थी बताया था. अजय ऐसा करते हैं एक मीटिंग रख लेते हैं. राम प्रसाद पर सबकी राय ले लेते हैं. मौका अच्छा है- दीक्षित चिल्ला रहे थे, राम प्रसाद पर अपना भाषण सुना रहे थे.

मेरी बीबी पुलिस में है एक फोन घुमायेगी, पूरी पुलिस फोर्स चली आयेगी. उनकी बीबी बोली, मैं क्यों फोन घुमाऊँगी, क्यों पुलिस फोर्स बुलवाऊंगी? मैं सबसे अलग हूं क्या? मैं भी राम प्रसाद को गले लगाऊंगी.वैसे भी तुम्हारी बक-बक से बोर हो गयी हूं. इसी बहाने कुछ चेंज कर पाऊंगी. दीक्षित जी भी तैश में आ गये. बोले- क्यों भाव खा रही हो. मैं भी यूनिवर्सिटी में काम करता हूं. वहाँ के लौंडों को पुलिस के सामने कमजोर बता रही हो? देखो मैं भी लौंडों को बुलवाऊंगा. इस राम प्रसाद की अर्थी उठवाऊंगा. श्रीवास्तव बोले- क्यों पुलिस और लौंडों के चक्कर में पड़ रहे हो. ऐंठते हुए आयेंगे करेंगे कुछ नहीं. ऐश कर के चले जायेंगे! सिंह बोले- आप ही कुछ करवा दीजिए. राम प्रसाद को मुहल्ले से हटवा दीजिए?

मुझे करना होता तो एक दिन में राम प्रसाद को हटवा देता. कोई मुहल्ले में घुस नहीं पाता ऐसा कर्फ्यू लगवा देता. पाण्डे बोले- क्यों झूठ बोलते हो. एक नाली सीवर तो अपने दरवाजे का ठीक नहीं करवा पाते हो. खामख्वाह कर्फ्यू लगवाने की बात समझाते हो...? ये केवल बातें करते हैं. जब भी मौका आता है, स्कूटर स्टार्ट करते हैं. अभी आता हूं और बाजार चल देते हैं. मिश्रा जी बोले- नगर निगम में एक एप्लिकेशन डलवा देते हैं. मुंहनोचवा की तरह इसको भी हाई लाइट करवा देते हैं. मेयर साहब से कह कर प्रशासन पर जोर डलवाते हैं, प्रशासन हरकत में आ जायेगा. राम प्रसाद नहीं तो श्याम प्रसाद को अन्दर कर अपना फर्ज पूरा कर जायेगा. दीक्षित बोले- ये सड़क बिजली का काम नहीं है, जो मेयर साहब को समझा लोगे. कुछ भी दिखा कर फाइल साइन करा लोगे? इसमें प्लानिंग की जरूरत है. जब मैं पहले वैशाली में सचिव था. तो मैंने ऐसा प्लान बनाया था जहां लोग मिल-जुल कर रहते थे वहां झगड़ा कराया था. मिश्रा जी बोले- देखो फेंक रहा है. अरे इनको किसने देखा है. जो बोल रहे केवल धोखा है.

श्रीवास्तव जी बोले- औरतों के सेंटीमेण्ट की बात है क्यों इसे भड़का रहे हो. छोटी-सी बात को नेशनल इश्यू बना रहे हो. आप अभी इनको नहीं जानते. इनके रंग ढंग को नहीं जानते. ये जिद्द पर आ जायें या किसी पर दिल आये कुछ भी कर जाती हैं. माँ, बाप, भाई, बहन, पति सबको छोड़ जाती हैं. मैंने देखा मसला गंभीर हो रहा है. ऐसे तो कुछ नहीं हो पायेगा. राम प्रसाद सबके अरमानों पर पानी फेर जायेगा. अब ऐसा करते हैं सारी औरतों को बुला लेते हैं, राम प्रसाद पर चर्चा करवा लेते है. मिसेज सिंह बोली- राम प्रसाद आप लोगों से अच्छा है. जब चाहें पास बुलाओ, प्यार करो. कहीं भी घूम आओ. मिसेज दीक्षित बोलीं- और क्या तुम लोगों की तरह केवल बक-बक नहीं करता, हमारी परेशानियों को समझता है...? मुझे तो उसका कैरेक्टर भा रहा है. धीरे-धीरे वो मेरे दिल में उतरता जा रहा है. चाहे जो खिलाओ जो पिलाओ कुछ नहीं कहता, जी भर के प्यार करो कभी उफ नहीं कहता.

मिसेज दोहरे बोलीं- सच कहती हूं जब से राम प्रसाद आया है मेरी रातों की नींद दिन का चैन उड़ाया है. मिसेज पाण्डे बोलीं- जब पाण्डे जी चले जाते हैं, मैं आजाद हो जाती हूं. राम प्रसाद आता है. मौका देख कर घर में बुलाती हूं, जी भर के गले लगाती हूं. तब जाके कहीं सुकून पाती हूं. मेरी पत्नी कैसे पीछे रहतीं. बोलीं- वैसे मैं इनको ही सब कुछ मानती हूं. पर राम प्रसाद समझदार है. इसलिए उसको भी जानती हूं. राम प्रसाद मौसमी चीज है इसमें बुराई नहीं है. सच मानिए अपनाने में कोई बुराई नहीं है. मिसेज मिश्रा बोलीं- आप मुझे क्यों भुला रहे हैं. माना कि छोटों का नम्बर बाद में आता है. पर रामप्रसाद पे मेरा भी हक जाता है. मैंने इससे पहले भी राम प्रसाद को अपनाया, अभी कुछ दिन पहले अपनी जिन्दगी से हटाया है. मिसेज श्रीवास्तव अन्दर ही अन्दर घबड़ा रही थीं. सबकी बातें सुन कर बड़बड़ा रही थीं.देखो, सब कैसे समझा रही हैं, राम प्रसाद पर अपना हक जता रही हैं. इस मामले में सबसे ज्यादा अनुभव मेरा है. मेरे घर तो दिन-रात इसी का बसेरा है.

मुझसे पूछिए प्यार कैसे करते हैं, मैं बताऊंगी! ऐसे ही कोई थोड़े ही वफादार हो जाता है? त्याग, प्यार और सहानुभूति दिखाता है. तब जाके कहीं राम प्रसाद का प्यार पाता है. एक बात आप लोग जान लीजिए, राम प्रसाद को कोई भी अपना सकता है. पर उसका सच्चा प्यार मेरे अलावा कोई और नहीं पा सकता है. तभी बच्चे ने चिल्लाया- राम प्रसाद आला, सब के दिल पे छाला रे.! यह सुन कर सारे मर्द जोश में आ गये. एक साथ बोले- आज न छोड़ेंगे हमजोली, मारेंगे तुझे गोली. चाहे टूटे तोरी टंगड़िया, चाहें रूठे हमजोली. मैंने कहा- केवल गाते रहोगे कि कुछ करोगे, सामने देखो, यूं ही हवाई फायर करोगे या बंदूक में गोली भी भरोगे? सब बोले तो ये राम प्रसाद है. अपनी उम्र नहीं देखते. बहुत ही घटिया इंसान हो? ऐसे बुजुर्ग इंसान का तो बायकाट करना चाहिए, समाज में गन्दगी न रहे कुछ इंतजाम करना चाहिए.

जैसे ही सब ने हाथ उठाया. सारी औरतों ने चिल्लाया. आप लोगों का दिमाग खराब हो गया है, गुस्से में अपने पराये का आभास खत्म हो गया है. अरे ये ही तो एक सज्जन बुजुर्ग इंसान है, सादगी और मानवता की पहचान है. जो हर वक्त अपना बड़प्पन दिखाते हैं, जब आप लोग अपने-अपने काम पर चले जाते हैं, हम लोगों से हाल-चाल परेशानियां पूछ जाते हैं. आप लोगों को शर्म आनी चाहिए. इन पर इल्जाम लगाते हैं. एक बुजुर्ग पर हाथ उठाते हैं. मैंने कहा- हम क्या गलत कर रहे हैं. एक अमर्यादित इंसान को सबक दे रहे हैं. आप तो इनका फेवर दिखायेंगी ही, इनसे सहानुभूति दिखायेंगी ही. सिंह बोले- अजय ठीक कह रहा है. इसने हमारी औरतों को भड़काया है. राम प्रसाद बन कर हमारे हिस्से का प्यार पाया है.

मिसेज सिंह बोलीं- आप कुछ जानते भी हैं. राम प्रसाद को पहचानते भी हैं. ये राम प्रसाद नहीं हैं? सब चौंके- ये राम प्रसाद नहीं है? मिसेज श्रीवास्तव इठलायीं, थोड़ा बल खायीं. झिझक के साथ शर्मायीं, बुजुर्ग इंसान के साथ खड़े उनके कुत्ते की तरफ इशारा करते हुए बोलीं- वो देखो राम प्रसाद शर्मा रहा है. कितने प्यार से अपनी दुम हिला रहा है. ये मेरे कुत्ते टूटू का जुड़वा भाई है. राम प्रसाद रोज टूटू से मिलने आता है. हम औरतों का प्यार-दुलार पा कर धन्य हो जाता है. मैंने कहा- भाइयों ये क्या अनर्थ हो गया. गुस्से में हमारा आई क्यू कहां खो गया. दोस्तों आज एक नसीहत ले लीजिए, किसी को कुछ कहने से पहले अपने अन्दर देख लीजिए. क्योंकि अक्सर ऐसा हो जाता है, किसी राम प्रसाद के चक्कर में अपनों पर इल्जाम जाता है.

हमें अपने मन से राम प्रसाद का भ्रम मिटाना होगा. अपना प्यार अपना विश्वास कायम रहे ऐसा माहौल बनाना होगा.

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वैशाली एन्क्लेव, से-9,

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रचनाकार: प्राची-अप्रैल 2017–हास्य-व्यंग्य विशेषांक : व्यंग्य / राम प्रसाद...का प्रेम! / अजय कुमार मिश्र ‘अजय श्री’
प्राची-अप्रैल 2017–हास्य-व्यंग्य विशेषांक : व्यंग्य / राम प्रसाद...का प्रेम! / अजय कुमार मिश्र ‘अजय श्री’
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https://www.rachanakar.org/2017/05/2017_4.html
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