वर्ष 2015 में तंबाकू उत्पादों से संबंधित संसदीय समिति की रिपोर्ट आई तो उस रिपोर्ट ने सरकार सहित नशामुक्ति से जुडी उन संस्थानों के कान खडे़ क...
वर्ष 2015 में तंबाकू उत्पादों से संबंधित संसदीय समिति की रिपोर्ट आई तो उस रिपोर्ट ने सरकार सहित नशामुक्ति से जुडी उन संस्थानों के कान खडे़ कर दिए थे जो संस्थाएं कई दशकों से नशामुक्ति के क्षेत्र में काम कर रहीं हैं। संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत का कोई भी शोध ये नहीं साबित करता है कि तंबाकू उत्पादों के सेवन से कैंसर होता है। तंबाकू उत्पादों पर चेतावनी का फोटो बड़ा नहीं होना चाहिए और उत्पादों से चेतावनी हटनी चाहिए। यह बयान संसदीय पैनल के अध्यक्ष ने दिया था। समिति प्रमुख के इस बयान ने सरकार सहित सामाजिक संस्थानों की नींद उड़ा दी थी। जबकि यूपीए सरकार द्वारा कराये गये अध्ययन में 80 फीसदी कैंसर का कारण तंबाकू को ही बताया गया था।
आज हमारे भारत में ही नहीं पूरे विश्व में नशे की समस्या इस तरह उभर के आ गई है, जिस तरह मानो आतंकवाद की समस्या? जिस तरह पूरा विश्व समुदाय दुनिया से आतंकवाद समाप्त करने की मुहिम छेड़ रहा है, उसी प्रकार भारत ही नहीं पूरे विश्व के सामने नशा, सिगरेट, तंबाकू की समस्या अंतर्राष्ट्रीय बाजार में हल करने की समस्या बन चुकी है। ‘‘जिदंगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को में धुएं में उड़ाता चला गया’’ किसी पुरानी हिन्दी फिल्म का यह गाना सिगरेट पीने वालों के लिए शायद ही प्रेरणा का काम करता हो मगर तंबाकू का का सेवन करने वालों के लिऐ अब सम्हलने का समय आ गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्लू.एच.ओ. द्वारा जारी आंकड़ों पर यदि हम भरोसा करें तो अगले 20 वर्षो में तंबाकू जनित बीमारियां भारत ही नही पूरे विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या होगी। शोधकर्ताओं की मानें तो अकेले भारत में 12 लाख व्यक्ति तंबाकू जनित बीमारियों के कारण एक वर्ष में काल के गाल में समा जाते हैं। हैरानी की बात तो तब और हो जाती है जब यह संख्या चीन के बाद दुनिया में दूसरे नंबर पर है। 50 फीसदी पुरुषों में एवं 20 फीसदी महिलाओं में कैंसर का कारण तंबाकू ही है। 25 से 60 वर्ष आयु में मरने वालों में 25 प्रतिशत लोग धुम्रपान से मरते हैं। जिसमें पूरे विश्व में तंबाकू जनित बीमारियों से होने वाली मौतों की संख्या 50 लाख से अधिक है। यदि इस समस्या को नियंत्रित करने हेतु कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया तो वर्ष 2030 तक पूरे विश्व में तंबाकू जनित बीमारियों से होने वाली मौतों की संख्या लगभग 80 लाख से अधिक हो जायेगी। यानी जितनी मौतें भारत में आतंकवादी हमले के दौरान हुई हैं, उतनी मौतें तंबाकू जनित बीमारियों के कारण हर चार धण्टे में हुआ करेंगीं।
भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है, भारत के 29 राज्यों में से 17 में तंबाकू का इस्तेमाल 69 प्रतिशत से अधिक होता है। पूर्वोत्तर राज्यों में तंबाकू के इस्तेमाल की दर सबसे अधिक है। मिजोरम में 80 फीसदी से अधिक लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। इसके बाद त्रिपुरा में 76 प्रतिशत और असम में 72 प्रतिशत लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। भारत में 18 करोड़ से अधिक व्यक्ति तंबाकू का सेवन करते हैं। और साढ़े 9 करौड़ से अधिक तंबाकू चबाने के आदी हैं, देश में 50 फीसदी पुरूषों में एवं 20 फीसदी महिलाओं में कैंसर कारण तंबाकू है। ऐसा भी नहीं कि भारत में तंबाकू जनित बीमारियों पर सरकार खर्च नहीं करती है अकेले भारत में 227 अरब रूपये का खर्च प्रतिवर्ष तंबाकू से होने वाली बीमारियों पर किया जाता है। इसमें कैंसर के इलाज पर होने वाला खर्च भी शामिल है। पूरी दुनिया में 08 में से 01 व्यक्ति की मृत्यु तंबाकू जनित बीमारी कैंसर से ही होती है।
ग्लोबल एडल्ट टौबैको सर्वे 2010 के अनुसार पूरे मध्यप्रदेश में 15 साल से ज्यादा उम्र की 17 फीसदी आबादी सिगरेट और बीड़ी का सेवन करती है। इनमें करीब 2.2 प्रतिशत महिलाएं भी हैं। यह आंकड़े चौका देने वाले हैं। स्कूल, कालेज, होस्टलों में जिस तरह से युवा वर्ग नशे का आदी हो चला है वह चिंताजनक है। आधुनिक युग की आधुनिकता क्या नशे का श्रृंगार करते हुए आगे बढ़ रही है यदि बढ़ रही है तो अकेले भारत ही नहीं पूरी दुनिया को इस नशे की समस्या से एकजुट होकर लड़ने का समय आ गया है। स्कूल, कालेज, होस्टल से निकलते धुएं किसी रसोई के धुएं नहीं है ये वही धुएं हैं जो हमारी युवा पीड़ी की नसों में घर कर चुके हैं। शौक बनती सिगरेट हमारी युवा पीड़ी को काल के गाल में धकेल रही है। तंबाकू चबाना आज के दौर का फैशन बन चुका है। तंबाकू ही नहीं सिगरेट का शौक रखने वाली हमारी युवा पीड़ी मुंह और नाक से धुआं निकालना अपना शौक बना चुकी है। जो बच्चे बचपन में घर से टौफी खाने को पैसा ले जाते थे आज वही बच्चे सिगरेट और तंबाकू के सेवन के लिये हर रोज घर से पैसा ले जा रहे हैं। और हम भी कम नहीं है अपने बच्चों की शान और शौकत के लिए अपने बच्चे से यह कभी नहीं पूछते कि जो पैसा वह माँ और पिता ले जाता है, आखिर वह उस पैसा का इस्तेमाल किस काम में कर रहा है। जेब खर्च के पैसे से हमारे बच्चों की बिगड़ती संस्कृति आधुनिक युग के लिये घातक है।
तंबाकू और सिगरेट का शौक हमारे बच्चों तक ही सीमित नहीं है हम भी तो तंबाकू के नियमित सेवन को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा मान चुके हैं अल सुबह नींद से जागते ही तंबाकू की तलब हमें भी तो विचलित कर देती है और यदि घर में तंबाकू ना मिले तो तंबाकू की तलाश में पड़ोस तक जाने में हिचक नहीं करते हैं। आखिर हम किस संस्कृति में ढ़ल चुके हैं ? जो तंबाकू जनित बीमारियों के करीब लेते जा रही है। तंबाकू का मीठा जहर हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है जिसका सफर हमारे घर से शुरू होकर हमारे बच्चों के स्कूल, कालेज, छात्रावासों तक ही सीमित नहीं है तंबाकू सिगरेट के मीठे जहर का सफर तो पुरी दुनिया में बिना किराये के ही हमारे मुंह और नाक के माध्यम से धूम रहा है। जिसका रास्ता रोकने की हिमाकत हम नहीं कर पा रहे हैं।
अपने बच्चों और दूसरों को नशे का सेवन ना करने की सीख देने वाले हम चतुर लोग तंबाकू और सिगरेट को अपना श्रृंगार समझ बैठे हैं। हमीं लोग गली के नुक्कड़ पर स्थित पान की दुकान पर ठहाके के साथ रईसी अंदाज में पान की दुकान वाले से तंबाकू सहित पान लगाने का आदेश देकर तंबाकू और पान से अपने मुंह को लाल करने को अपनी शान और शौकत समझ बैठे हैं। हाथ में सिगरेट और मुंह में पान भरकर अपने बच्चों को पढ़ने और आगे बढ़ने की शिक्षा देने वाले हमीं लोग देश के युवा पीड़ी को नशे के समन्दर में घकेल रहे हैं। जहां से साबुत लौटना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। बहरहाल अब भी समय है यदि समय रहते हम लोग अपनी युवा पीड़ी को नशामुक्ति के लिये प्रेरित नहीं कर पाये तो आने वाला समय तंबाकू जनित बीमारियों की खान बन चुका होगा। जिसमें हम और हमारी युवा पीड़ी काल के गाल में हर रोज समाती रहेगी।
ऐसा भी नहीं कि हमारे देश में नशामुक्ति के लिए काम नहीं किया जा रहा है हमारे देश में हमारे देश की सरकार सहित कई स्वयंसेवी संस्थाओं ने नशामुक्ति के लिए अभियान चलाया है। पर हम हैं जो इन संस्थाओं के नशामुक्ति अभियान में भागीदारी करना अपना अपमान समझने लगे हैं। जब हम आंतकवाद को बर्दाश्त नहीं कर सकते, तो हम इस तंबाकू ओर सिगरेट के नशे को कैसे बर्दाश्त करते चले आ रहे हैं। क्यों कि जितनी मौतें हमारे देश में आतंकवाद से हुईं हैं उससे कईं गुना अधिक नशे के सेवन करने से हुईं हैं। जिस तरह से हमारी दुनिया के लिये आंतकवाद खतरा बन चुका है उसी तरह से तंबाकू सिगरेट या अन्य उत्पादों का नशा भी हमारे आने वाले समय और हमारे जीवन के लिए काल है।
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