प्राची // जून 2017 // शोध आलेख // भारतीय स्वाधीनता संग्राम और भारतेन्दु युगीन हिंदी साहित्य

SHARE:

डॉ . संध्या प्रेम असिस्टेंट प्रोफेसर , हिंदी विभाग, के . बी. महिला महाविद्यालय, हजारीबाग (झारखण्ड) --- आरती कुमारी शोधार्थी , हिंदी विभाग, व...


डॉ. संध्या प्रेम

असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग,

के. बी. महिला महाविद्यालय, हजारीबाग (झारखण्ड)

---

आरती कुमारी

शोधार्थी, हिंदी विभाग,

विनोबा भावे विश्वविद्यालय,

हजारीबाग (झारखण्ड)



clip_image002

प्रस्तावनाः

देश में नई सांस्कृतिक और राजनैतिक जागरण के साथ-साथ आधुनिक हिंदी का जन्म हुआ और उसका साहित्यिक विकास क्रमशः होता गया. 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में गद्य के लिए ब्रज भाषा का त्यागना और खड़ी बोली को अपनाना एक सामाजिक आवश्यकता की पूर्ति थी. 1857 के पहले और कुछ दिन बाद तक विकसित और पुष्ट गद्य के बिना भी साहित्य

अधूरा नहीं माना जाता था. लेकिन अब परिस्थितियां बदल रही थीं. समाज में नए, उच्च और मध्य वर्गों का जन्म हो रहा था. ये वर्ग पुराने, सामन्ती वर्गों की जगह लेकर साहित्य और समाज दोनों का ही नेतृत्व करने के लिए आगे बढ़ रहे थे. इस परिवर्तन के फलस्वरूप जो नई-नई सामाजिक आवश्कतायें पैदा हुईं, उनकी पूर्ति के लिए गद्य साहित्य अनिवार्य हो गया. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने गद्य की नवीन विधा को प्रतिष्ठापित करके एक ऐतिहासिक कार्य किया.

इस समय के साहित्य को देखकर आश्चर्य होता है कि सन् सत्तावन के विद्रोह पर अनेक कवितायें एवं कहानियां लिखी गईं. हालांकि इसमें विद्रोह का वह रूप नहीं दिखाई देता जो हमारी कल्पना में है, इसका एक कारण यह है कि उस समय की राजनीतिक चेतना का स्वर विप्लव और विद्रोह की भावना से बहुत दूर था. उच्च और मध्य वर्गों के लिए अंग्रेजी राज एक वरदान के रूप में था, जिन्होंने देश में फैली अराजकता को छिपाया. शिक्षित लोग अंग्रेजों से आशा करते थे कि वह सामाजिक कुरीतियों को दूर करेंगे और भारतवासियों से सहयोग लेकर समाज को सुधार की ओर बढ़ायेंगे. महारानी विक्टोरिया की घोषणा के उपरांत लोग हर्षित हुए. इसीलिए उस समय के साहित्य में अंग्रेजों के लिए प्रशस्तियों की कमी नहीं थी.

ब्रिटिश साम्राज्यवाद और भारतीय पूंजीवाद में एक आंतरिक विरोध था जो दोनों के मेल-जोल पर बार-बार प्रभाव डाल रहा था. उच्च वर्गों के कुछ लोगों ने यह बहुत जल्द देख लिया कि अंग्रेजों के सहारे भारतवर्ष वह उन्नति नहीं कर सकता, जिसे वे आवश्यक समझते थे. हिन्दुस्तान के अपने कल-कारखाने हों, वह कुछ अपना माल पैदा करें और तमाम धन विलायत न भेजें; यह भावना भारतेन्दु काल में पैदा हो गई थी. इसलिए इस युग के साहित्य में हमें दो मिली-जुली धारायें मिलती हैं. एक तो प्रशस्ति करने वाली है, जो उनसे सहयोग की इच्छा करती है और उसका तमाम प्रगतिशील चिंतन समाज सुधार के क्षेत्र तक ही सीमित रहता है. इस धारा के सबसे अच्छे प्रतिनिधि, राजा शिवप्रसाद ‘सितारे हिन्द’ थे.

दूसरी धारा समाज सुधार के साथ-साथ स्वदेशी और

स्वाधीनता की चेतना को भी फैला रही थी. इस धारा के प्रतिनिधि भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र थे. यह सोचना समीचीन होगा कि पहली धारा का प्रभाव भारतेन्दु पर पड़ा ही नहीं, वे उससे भी प्रभावित हुए, परन्तु उस पुरानी धारा को छोड़कर नयी दिशा में बढ़ने का कार्य सबसे पहले उन्होंने ही किया.

सामाजिक सुधार नयी धारा का एक आवश्यक अंग था- तभी से यह परम्परा चली थी- स्वाधीनता आंदोलन के नेता समाज-सुधारक भी थे और अपने राजनैतिक प्रचार में सुधार की बात भी कहते थे. गांधी जी के ‘स्वराज’ प्रचार में हरिजन उद्गार को इसी तरह स्थान प्राप्त है. भारतेन्दु के जमाने में

विधवा-विवाह का समर्थन करना अंग्रेजी राज को हटाने से कम क्रांतिकारी नहीं था. इस प्रश्न को लेकर कई दशकों तक युद्ध होता रहा. भारतेन्दु, राधाचरण गोस्वामी आदि ने विधवा-विवाह के साथ-साथ बाल-विवाह, स्त्री की अशिक्षा, धार्मिक-अंधविश्वास का विरोध किया. यह समाज-सुधार की भावना स्वदेशी और स्वाधीनता की कल्पना से जुड़ी हुई थी. सन् सत्तावन तक हिंदी के साहित्यकारों में राष्ट्रीयता की कल्पना उभर कर नहीं आई थी. भारतेन्दु काल में प्रत्येक सजग लेखक राष्ट्रीयता की नई कल्पना से प्रभावित दिखाई देता है. प्रताप नारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट, देवकीनन्दन खत्री की रचनाओं में यह नई भावनायें बार-बार प्रकट हुई हैं.

इस राष्ट्रीयता का एक उग्र और क्रांतिकारी पहलू भी था. देश में अकाल पड़ते देखकर और सरकार को तटस्थहीन, उसके उत्तरदायी कारक को देखकर कई लेखकों में क्षोभ उत्पन्न हो रहा था. वे देख रहे थे कि अंग्रेजी कूटनीतिज्ञ के तहत एशिया और अफ्रीका में अपना राज्य विस्तार करने के लिए भारत के जन-जन को यूरोप के द्वारा उपयोग किया जा रहा था, जिसका जनगीतों, निबंधों और नाटकों में तीव्र विरोध किया गया. ये लेखक गौरवमय अतीत को जगाकर संतुष्ट नहीं थे. वे एक कदम आगे बढ़कर सामन्ती-अत्याचार का विरोध करते थे और गांव से हर तरह का दमन खत्म करने के लिए हिन्दू, मुस्लिम, किसान संगठनों की बात भी करते थे. ‘‘भारतेन्दु ने बलिया में दिये हुए व्याख्यान में इस एकता पर काफी जोर दिया था और इनके शब्द उस बात का सूचक है कि आर्यों और म्लेच्छों की भावना से आगे बढ़कर जनता दोनों के साम्राज्यविरोधी संगठन की ओर बढ़ रही थी।’’1

भारतेन्दु ने कहा था- ‘‘घर में आग लगे तब जेठानी-देवरानी को आपस की डाट छोड़कर एक साथ आग बुझानी चाहिए, मराठी, पंजाबी, मद्रासी, वैदिक, जैन, ब्राह्मणों, मुसलमान सब एक हाथ एक साथ पकड़ो. जैसे- हजार धारा छोड़कर गंगा समुद्र में मिली है वैसे ही तुम्हारी लक्ष्मी हजार तरह से इंग्लैण्ड, फ्रांसीसी, जर्मनी, अमेरिका को जाती है. अफसोस तुम ऐसे हो गए कि अपने निज के काम की वस्तु भी नहीं बना सकते. चारों ओर दरिद्रता की आग लगी है. अपनी खराबियों और मूल कारणों को खोजो. कोई धर्म की आड़ में, कोई देश की आड़ में, कोई सुख की आड़ में छिपे हैं. उन चोरों को पकड़ो, यहाँ-वहाँ से पकड़कर लाओ, उनको बांधकर कैद करो. जबतक एक सौ-दो सौ मनुष्य बदनाम न होंगे, जाति से बाहर न निकाल दिए जायेंगे, कैद न होंगे, जान से न मारे जायेंगे तबतक देश भी न सुधरेगा.’’2

भारतेन्दु युग मूलतः पुनर्जागरण काल के नाम से इसलिए अभिहित किया गया है, क्योंकि राष्ट्रीय भावना का उदय इसी काल में हुआ. समय और परिस्थिति का निष्पन्न रूप समाज के प्रत्येक गतिविधियों में व्याप्त होता है. इस व्यापकता से भारतेन्दु युग भी अछूता नहीं रहा. आर्थिक, औद्योगिक एवं धार्मिक पुनर्जागरण की प्रक्रिया से तत्कालीन साहित्य चेतना में नवीन प्रवृत्तियों का सूत्रपात हुआ. अंग्रेजी शिक्षा ने प्रचार-प्रसार, मशीनीकरण, राष्ट्रीय धन का दोहन, पत्र-पत्रिकाओं की उपलब्धता आदि के माध्यम से जन-जागरण में महत्वपूर्ण योगदान किया. इसी संदर्भ में भारतेन्दु कृत ‘भारत दुर्दशा’ से बयां करती कुछ पंक्तियां-

‘‘अंग्रेज राज सुख साज सबे सब भारी.

पै धन विदेस चलि जात यहै अति ख्वारी.’’3

भारतेन्दु युगीन कवियों ने भारतीय इतिहास के गौरवशाली पृष्ठों की स्मृति अनेक बार दिलायी और राष्ट्रीय भावना की प्रबलता को बढ़ाया. कवियों ने अनेक विचारधाराओं से प्रेरित होकर देश-भक्तिपूर्ण कविताओं की रचना की. जिसका फल यह हुआ कि क्षेत्रीयता से ऊपर उठकर सम्पूर्ण राष्ट्रीयता की अवधारणा जगी. कुछ संदर्भित पंक्तियाँ दी जा रही है-

‘‘हमारो उत्तम भारत देस.’’4

-राधाचरण गोस्वामी

‘‘धन्य भूमि भारत सब रतननि की उपजावनि.’’5

-प्रेमधन

देश के उत्कर्ष-अपकर्ष के लिए उत्तरदायी परिस्थितियों पर प्रकाश डालकर इस युग के कवियों ने जन-मानस में राष्ट्रीय भावना के बीज-वपन का महत्वपूर्ण कार्य किया. इन कवियों की श्रेणी में भारतेन्दु की ‘विजयिनी विजय वैजयन्ती’ प्रेमधन की ‘आनन्द अरुणोदय’ प्रतापनारायण मिश्र की ‘महापर्व’ और ‘नया संवत्’ तथा राधा कृष्णदास की ‘भारत बारह मासा’ और ‘विनय’ शीर्षक कविताएं देशभक्ति की प्रेरणा से युक्त हैं. इन संदर्भ में कवियों ने अपने विषय वर्णन हेतु कई प्रेरणादायी प्रसंगों की चर्चा द्वारा जनमानस जागृत किया. इन्हीं भावनाओं से निहित भारतेन्दु की पंक्तियाँ-

‘‘भीतर-भीतर सब रस चूसै,

हंसि हंसि के तन मन धन मूसै.

जाहिर-बातन में अति तेज,

क्यों सखि साजन नहीं अंग्रेज.’’6

वास्तव में भारतेन्दु युग के राष्ट्रीय चिन्तनधारा के दो पक्ष है- देश प्रेम और राज भक्ति.

प्रथम पक्ष के अंतर्गत उन्होंने- ‘हिंदी हिन्दू हिन्दुस्तान’ का गुणगान किया तो दूसरे पक्ष में जजिया जैसा कर न लगाने वाले अंग्रेजों के शासनकाल में प्रजा-मात्र की सुख-समृद्धि की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की. इन सुविधाओं से लाभ उठाने के लिए उन्होंने जनता से रूढ़िगत प्रभावों से मुक्त होने का आग्रह किया और शासन के प्रति सहयोग अपनाने की प्रेरणा दी. इस प्रकार इस युग को नवीन राजनीतिक चेतना का प्रतीक माना जाना चाहिए.

भारतेन्दु युगीन साहित्यकारों ने अपनी सजग राजनीतिक चेतना के फलस्वरूप विदेशी शासन के अत्याचारों से पीड़ित भारतीय जनता में राष्ट्रीयता जगाने का प्रयास प्रारंभ किया. प्रताप नारायण मिश्र, बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमधन’, अम्बिका दत्त व्यास, ठाकुर जगमोहन सिंह, राधाकृष्ण दास आदि के नाम उल्लेखनीय है. इनकी रचनाएँ राष्ट्रीय चेतना के परिधि में रहकर भारतीय समाज को सुधारने का कार्य किया. साहित्यिक विधाओं के माध्यम से बताया कि भारतीय समाज की सबसे बड़ी कमजोरी जातीयता है. छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटा समाज कभी प्रगति नहीं कर सकता.

भारतेन्दु युग का गुणगान कई विद्वानों ने भी किया है. डॉ. लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय के शब्दों में- प्राचीन से नवीन संक्रमणकाल में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र भारतवासियों की नवोदित आकांक्षाओं और राष्ट्रीयता के प्रतीक थे, वे भारतीय नवोत्थान के अग्रदूत थे.’’7

भारतेन्दु युगीन कृतियों की एक प्रमुख विशेषता यह रही कि उनकी रचना केवल वर्तमान रूप से ही नहीं प्रभावित हुई, अपितु कालांतर में नवीन आशावादी दृष्टिकोण का संचरण हो, जिससे कि प्रगति-जागृति हो सके एवं देश प्रेम की भावना से दुर्दशाग्रस्त भारत को सुसम्पन्न एवं प्रतिष्ठा-सम्पन्न बना सके अर्थात् एक नये स्वरूप स्वतंत्र एवं उन्नत भारत की स्थापना करने का सार्थक प्रयास करे.

भारतेन्दु युगीन रचनाओं का सांगोपांग अध्ययन करने के फलस्वरूप इस बात की प्रामाणिकता सिद्ध हो जाती है कि रचनाकर्म का विषय विविधता को धारण किए हुए था. एक ओर जहाँ उनकी लेखनी ब्रिटिश शोषण परक नीतियाँ, सामाजिक कुरीतियाँ, रूढ़िवादिता, जातीयता, अंधविश्वास, लिंगाविभेद आदि ज्वंलत मुद्दों को प्रदीप्त कर रही थीं, वहीं दूसरी ओर जन जागरूकता, देशभक्ति, मौलिक अधिकार, सामाजिक उत्थान, शिक्षा जैसे राष्ट्रीय चेतना को प्रज्ज्वलित कर रही थीं. वस्तुतः उनका मुख्य उद्देश्य भारतीय जनमानस को जगाना था, अंग्रेज सत्ता को उखाड़ फेंकना था और राष्ट्रीय भावना की जलती दीपक की लौ को उष्णता प्रदान करना था. उनकी रचनाशीलता उनकी अभिव्यक्ति की मुखाकृति थी. दूसरे शब्दों में कह सकती हूँ कि परिस्थितियों का प्रतिफल ही रचनाकर्म का आधार प्रस्तुत करता है. उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान यह रहा कि उन्होंने सोयी भारतीय आत्मा को जागरूक किया. राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत किया, एक सूत्र में बाँधने का प्रयत्न किया.

अतः समग्र रूप से कहा जा सकता है कि भारतेन्दु युग की मुख्य उपलब्धि यह है कि समाज और राष्ट्र को लोकमंगलकारी कार्य हेतु उन्मुख किया और विद्रोही स्वर को बल प्रदान किया. यह युग पुरातन और नवीन का ऐसा संधि स्थल है जहाँ दो वर्गों-दो युगों की आहट सुनाई देती है लेकिन इनमें सर्वथा एक चीज उभयनिष्ठ है- समस्याओं का निराकरण. अंत में यह कहना समीचीन होगा कि भारतेन्दु युग के साहित्यकारों की सबसे बड़ी विशेषता प्राचीन और नवीन का समन्वय करने में है. वर्ण्य विषयों के संदर्भ में तो इस कोटि का प्रयास प्रायः सर्वत्र ही लक्षित होता है, अभिव्यंजना-पक्ष में भी उन्होंने अधिकतर व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया है.

--

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्राची // जून 2017 // शोध आलेख // भारतीय स्वाधीनता संग्राम और भारतेन्दु युगीन हिंदी साहित्य
प्राची // जून 2017 // शोध आलेख // भारतीय स्वाधीनता संग्राम और भारतेन्दु युगीन हिंदी साहित्य
https://lh3.googleusercontent.com/-KpDONCkLJ98/WXcT77FgHiI/AAAAAAAA5sc/Qz4be43QYW0VUVeWjNDgu7opDdN6DcyUwCHMYCw/image_thumb%255B1%255D?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-KpDONCkLJ98/WXcT77FgHiI/AAAAAAAA5sc/Qz4be43QYW0VUVeWjNDgu7opDdN6DcyUwCHMYCw/s72-c/image_thumb%255B1%255D?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/07/2017_79.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/07/2017_79.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content