कहानी // अधर्म // अर्जुन प्रसाद

SHARE:

मिर्जापुर के एक कस्‍बे की बहुत पुरानी बात है। वहाँ के जानेमाने यशस्‍वी, उदार, सुशील और सदाचारी ठाकुर बलराज सिंह के पास धन-दौलत के अलावा खेती...

निरोद नलिनी बेहरा की कलाकृति

मिर्जापुर के एक कस्‍बे की बहुत पुरानी बात है। वहाँ के जानेमाने यशस्‍वी, उदार, सुशील और सदाचारी ठाकुर बलराज सिंह के पास धन-दौलत के अलावा खेतीबाड़ी लायक साठ बीघे पुश्‍तैनी जमीन थी। संतान के नाम पर उनके पास केवल दो पुत्र थे लालमणि और नागमणि। कोई बेटी न थी। बाबू साहब शिक्षा का अर्थ और महत्‍व भलीभांति समझते थे। उन्‍होंने अपने दोनों पुत्रों को खूब पढ़ाया-लिखाया। उन्‍हें भरपूर शिक्षा-दीक्षा दी। दोनों बेटों को पढ़ा-लिखाकर वह योग्‍य और काबिल बना दिए। लालमणि बड़े थे और नागमणि छोटे।

पढ़-लिख लेने के बाद लालमणि रेलवे में जूनियर इंजीनियर बन गए और नागमणि एक सरकारी स्‍कूल में अध्‍यापक। लालमणि अपने पिता ठाकुर बलराज सिंह की तरह बड़े सात्‍विक, दयालु, उदार और धर्मनिष्‍ठ पुरूष थे। वह किसी को भूलकर भी कभी न सताते थे। लोग उनकी बड़ी इज्‍जत करते जबकि नागमणि यथानाम तथागुण एक अध्‍यापक होकर भी बहुत ही क्रूर और निर्दयी थे। उनके हृदय में उदारता और दयालुता नाम की कोई चीज न थी। उनकी नजर में धर्म-अधर्म और न्‍याय-अन्‍याय का महत्‍व न था। वह बड़े ही स्‍वार्थी और लोभी पुरूष थे।

ठाकुर साहब और अनकी अर्धांगिनी अश्‍विनी देवी वृद्धावस्‍था में तो पहुँच ही चुके थे। कुछ दिन बाद एक-एककर उन्‍होंने दुनिया से अपनी आँखें फेर ली। उनके देहावसान के बाद नागमणि एक रोज लालमणि से बोले-भइया! अब अम्‍मा और बाबूजी तो रहे नहीं उन्‍हें गुजरे हुए डेढ़-दो साल गुजर गए। अगर आपको कोई आपत्‍ति न हो तो मेरे हिस्‍से की जमीन-जायदाद अलग कर दीजिए।

व्‍ह फिर बोले-सच मानिए, आपका उपदेश सुनते-सुनते मेरा जी अब बिल्‍कुल ऊब चुका है। अब मैं आपसे एकदम अलग रहना चाहता हूँ। आप बड़े मुकद्‌दर वाले हैं। अपना नसीब एकदम खोटा है। मैं करता कुछ हूँ तो हो जाता है कुछ। आपके पास कुल मिलाकर एक ही औलाद है। अमर आपका इकलौता बेटा है। हमारे पास तीन बेटियाँ और दो पुत्र हैं। इन्‍हें पढ़ाते-लिखाते मेरा तो कचूमर ही निकल जाएगा। एक बच्‍चे को आप जैसे चाहेंगे वैसे पढ़ा-लिखा लेंगे।

[ads-post]

तब लालमणि हँसकर बोले-अरे भई! इससे क्‍या फर्क पड़ता है? क्‍या मैं तुम्‍हारे बच्‍चों से कोई भेदभाव करता हूँ? मैं सभी बच्‍चों को अपना ही मानता हूँ। हाँ इतना जरूर है कि अगर तुम्‍हारी मंशा हमसे अलग रहने की ही है तब कोई बात नहीं। तुम बड़े शोक से अलग रह सकते हो। मेरी तो इच्‍छा यही थी कि हम दो ही भाई हैं और एक बहन। कोई बहुत लंबा-चौड़ा परिवार नहीं है इसलिए संयुक्‍त परिवार ही बना रहे तो कितना अच्‍छा रहेगा।

यह सुनते ही नागमणि ने बड़ी निर्ममता से निःसंकोच कहा-नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं लेकिन अलग-अलग रहने में हर्ज ही क्‍या है? दरअसल अब मैं बगैर किसी दबाव के स्‍वतंत्र रहना चाहता हूँ। जीवन भर पारिवारिक बंधनों में पड़े रहना मुझे कतई पसंद नहीं है। आप अपना देखिए और मैं अपना। हम दोनों का भाग्‍य अलग-अलग ही है तब अगर हम एक-दूसरे से अलग रहेंगे तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा? मुझे उलझन में न डालिए। आपको मैंने अपना आखिरी निर्णय सुना दिया। आगे आपकी मर्जी। आप जानें और आपका काम जाने। मुझे जो कुछ भी कहना था कह दिया।

यह सुनकर बाबू लालमणि उदास होकर बोले-छोटे! जब तुम्‍हारी यही इच्‍छा है तो ऐसा ही सही। मैं पटवारी को कल ही बुलाकर आधी खेतीबाड़ी तुम्‍हारे नाम करा दूँगा। तुम चिंता न करो। मेरी ओर से बिल्‍कुल निश्‍चिंत रहो। मैं तुम्‍हारे विचारों की बड़ी कद्र करता हूॅ। इस काम में अपनी ओर से जानबूझकर मैं कोई अड़चन न डालूँगा। मैं यह अधर्म कदापि नहीं कर सकता।

तत्‍पश्‍चात अगले दिन सुबह ही लालमणि बाबू ने इलाके के पटवारी को बुलवाकर तीस बीघे जमीन उनके नाम कर दिया। इसके साथ ही पुश्‍तैनी मकान का बँटवारा भी हो गया। अब एक घर में दो चूल्‍हे जलने लगे। अलग होते ही नागमणि आपे अग्रज लालमणि और भौजाई तृप्‍ति देवी को एकदम भूल से गए। उनके दिल में फर्क आ गया। उनका मन बदल गया। उसमें अब खोट ही खोट आ गया। एक घर में रहते हुए भी उनका व्‍यहार इतना अधिक बदल गया कि वह इस तरह रहने लगे जैसे उन्‍हें जानते ही नहीं। ऐसा लगता मानो दौलत बँटवारे के साथ-साथ उनके दिल भी बँट गए। हालाकि लालमणि बाबू इसके बावजूद उनका बड़ा ख्‍याल रखते थे।

उन्‍हें हमेशा नागमणि की चिंता लगी रहती। घर पहुँचते ही अपनी पत्‍नी तृप्‍ति देवी से एक ही साथ तरह-तरह का सवाल पूछने लगते-छोटे कहाँ है? उसने भोजन किया या नहीं? आजकल वह बहुत उदास दिखाई पड़ रहा है। वह दिन-प्रतिदिन दुबला होता जा रहा है। उसे क्‍या तकलीफ है। अभी से उसे कौन सी फिक्र खाए जा रही है। वह मुझे कुछ बताता क्‍यों नहीं? अगर वह मुझे कुछ बता देता तो मैं उसकी कोई न कोई सहायता अवश्‍य करता।

समय इसी तरह पंख फैलाकर तीव्रगति से गुजरता रहा। धीरे-धीरे कई साल बीत गए। नागमणि के मन में संतोष नाम की कोई चीज तो थी नहीं वह अंदर ही अंदर बाबू लालमणि की संपन्‍नता से द्वेष करने लगे। मन में ईर्ष्‍या उत्‍पन्‍न होते ही उनका विवेक मर गया। उनकी बुद्धि भ्रष्‍ट हो गई। अक्‍ल नष्‍ट हो गई। मानो वह घास चरने चली गई। यकायक उन्‍हें दुर्बुद्धि ने आ घेरा। वह मृगतृष्‍णा के शिकार हो गए। लालमणि बाबू के प्रति नागमणि के अंतस्‍तल में बड़े बुरे विचार आने लगे। वह मन ही मन सोचने लगे कि यदि आज लालमणि संसार में न होते तो सारी जमीनों का मालिक मैं ही रहता।

जैसे-तैसे कुछ समय और व्‍यतीत हुआ। तभी एक दिन यकायक ऐसी घटना घटी कि उससे बाबू लालमणि की पत्‍नी तृप्‍ति देवी पर गमों का पहाड़ ही टूट पड़ा। देखते ही देखते उनकी दुनिया वीरान हो गई। उनका हराभरा चमन उजड़कर रह गया। वह दुःखों के सागर में डूबने-उतराने लगीं। बाब लालमणि दफ्‍तर से घर जाते समय एक बड़ी दुर्घटना के शिकार हो गए।

अस्‍पताल ले जाने पर डॉक्‍टर उन्‍हें बचाने में असमर्थ रहे। वह बेचारे असमय ही सबको छोड़कर संसार से चल बसे। तृप्‍ति देवी एक विधवा का जीवन जीने को विवश हो गईं। उनके जीवन का कोना-कोना एकदम सूना हो गया। हालाकि कुछ वक्‍त गुजरने के बाद ही उन्‍हें अपने पतिदेव के स्‍थान पर नौकरी मिल गई पर, वह बाबू लालमणि को फिर कभी भुला न सकीं।

लालमणि बाबू के दूर जाते ही नागमणि अपने मन में बहुत प्रसन्‍न हुए। मानो उनके मन की मुराद पूरी हो गई। उनकी निगाह में उनके सबसे बड़े वैरी का अंत हो गया लेकिन कुछ लाकलाज के भय से वह अपनी भाभी तृप्‍ति देवी और भतीते अमर से दिखावटी हमदर्दी जताने लगे। वह उनसे कहते-भाभीजी! आप फिक्र न कीजिए। भइया नहीं रहे तो कोई बात नहीं। मैं ता अभी जिंदा हूँ। अपने रहते आप दोनों को मैं कोई कष्‍ट न होने दूँगा। यही सनातन धर्म है कि जीवन और मृत्‍यु पर किसी का कोई वश नहीं चलता। शायद ईश्‍वर को यही मंजूर था।

तृप्‍ति देवी सीधे स्‍वभाव की निष्‍कपट महिला तो थीं ही वह बनावटपने से हमेशा कोसों दूर रहती थीं। उन्‍होंने बिना किसी तर्क-वितर्क के नागमणि की इन मीठी-मीठी कपटमय बातों पर बड़ी सरलता से यकीन कर लिया। उनकी बातों पर उन्‍हें लेशमात्र भी संदेह न हुआ।

वह सोचने लगीं-अपने पास ले-देकर एक बेटा ही है देवर जी उसकी देखभाल कर लेंगे। वह उसे पढ़ने-लिखने में उसकी पुत्रवत मदद ही करेंगे। अपने पास जायदाद ता है ही वह अपनी ओर कोई कसर न रहने देंगे। उसकी भरपूर निगरानी करेंगे। यदि अब मैं भी न रहूँ तो गम नहीं। वह उसके साथ कोई बुरा बर्ताव कदापि न करेंगे। यद्यपि नागमणि के दिल में कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी। इससे तृप्‍ति देवी बिल्‍कुल अनजान थीं। उन्‍हें दुनियादारी का पूरा ज्ञान न था।

समय के साथ-साथ बाबू लालमणि और तृप्‍ति देवी के कलेजे का टुकड़ा अमर आहिस्‍ता-
आहिस्‍ता बालिग होने को आ गया। अब वह बारहवीं पास करके इंजीनियरिंग क्‍लास में पहुँच गया। जुलाई-अगस्‍त में दाखिला लेकर वह बी.टेक. की पढ़ाई पूरी करेगा। अमर बहुत ही होनहार लड़का था। वह अपने माता-पिता की हर आज्ञा का पालन तो करता ही था, अपने चाचा नागमणि और चाची नागेश्‍वरी का कहना भी मानता था। वह उनके किसी हुक्‍म की कभी नाफरमानी न करता।

नागमणि के मन में पाप तो समा ही चुका था उनके बच्‍चे आधुनिकता की चकाचौंध में खो गए। वे पढ-लिख न सके। किसी ने किसी क्‍लास में पढ़ाई-लिखाई से मूँह मोड़ लिया तो किसी ने किसी क्‍लास में। सबके सब अनपढ़ ही रह गए। डॉक्‍टरी और इंजीनियरी को कौन कहे वे दसवीं, बारहवीं कक्षा भी अच्‍छे नंबरों से पास न कर सके। उनकी शिक्षा अधूरी ही रह गई। यह देख पति-पत्‍नी के हृदय में अपार पीड़ा होने लगती। उनका कलेजा कचोट उठता। वे तड़पकर रह जाते।

अमर की मजबूत कद-काठी, सुदर, गठीली देह और बुद्धि देखकर राजा मुंजराज की भांति नागमणि सोचने लगे-हमारा सबसे बड़ा दुश्‍मन तो इस जग से जवानी में ही चला गया किन्‍तु अब अगर यह कमबख्‍त अमर न होता तो मेरी सारी चिंता मिट जाती। यह अकेले आधी जमीन का स्‍वामी बनेगा और मेरी खेती दो जगह बँट जाएगी। उस पर भी इस महँगाई के समय में तीन-तीन बेटियों विवाह भी करना है। लगता है अपनी कुछ खेती तो उनकी शादी में बिक ही जाए्रगी। अपनी तनख्‍वाह का तीन चौथाई खाद-पानी में ही चला जाता है। बाढ़ और अकाल का सामना भी करना पड़ता है।

मासूम अमर को भोजराज की तरह अपनी प्रगतिमार्ग का सबसे बड़ा रोड़ा समझकर नागमणि उसे रास्‍ते से हटाने का यत्‍न करने लगे। मनुष्‍य के मन में जब एक बार पाप समा जाता है तब उसके मन की शांति भंग हो जाती है। वह सदैव षड़यंत्र रचने में ही उलझा रहता है। भाई ही अपने भाई का शत्रु बन जाता है। वह उसकी जान तक लेने पर उतारू हो जाता है। नागमणि भी अमर को मारने की खातिर दिन-रात बड़ बेचैन रहने लगे। उनकी रातों की नींद न जाने कहाँ उड़ गई। अपने मकसद में कामयाब होने के लिए वह एक से बढ़कर एक उपाय खोजने लगे। अपने इस मंतव्‍य को उन्‍होंने अपनी पत्‍नी नागेश्‍वरी को भी बता दिया। इस अधर्म को अंजाम देने के लिए उसने भी खुशी से हामी भर दी। वह चाहती तो नागमणि को ऐसा करने से रोक सकती थी पर, रोका नहीं। शायद जमीन-जायदाद के लालच में उसके अंदर की मां और उसकी ममता मर गई।

अपने षड़यंत्र की सफलता की खातिर नागमणि ने तृप्‍ति देवी और अमर से अपना दिखावटी व्‍यवहार पहले से और अधिक दर्शाना शुरू कर दिया। इससे मां-बेटे उनके झाँसे में आते गए। वे उन पर असीमित रूप से विश्‍वास करने लगे। उन्‍हें यह आभास तक न हुआ कि नागमणि वास्‍तव में किसी न किसी दिन उनके लिए एक विषैला नाग ही साबित होंगे। वह उन्‍हें डस लेंगे। तृप्‍ति देवी ने स्‍वप्‍न में भी न सोचा कि जो चाचा आज अपने भतीजे पर इतनी जान छिड़क रहा है वही किसी दिन उसकी मौत का सौदागर बन जाएगा। वह उसका चाचा नहीं बल्‍कि साक्षात यमराज है। वह उसे काल का ग्रास बनाने को तैयार बैठा है। मौका पाते ही वह अमर को बाज की तरह धर दबोचेगा।

तृप्‍ति देवी और अमर का विश्‍वास जीत लेने के बाद नागमणि को अपने मन की मुराद पूरी होती दिखाई देने लगी। उनके चेहरे पर वह कुटिल मुस्‍कान छा गई। उनका हृदय मारे खुशी के हिलोरें मारने लगा। वह नादान पक्षी को फँसाने के लिए दिन-रात जाल बुनने में जुट गए।

एक रोज की बात है इतवार का दिन होने की वजह से तृप्‍ति देवी भी घर पर ही थीं। लालच मनुष्‍य से जो चाहे सो करवाले। लालच वाकई बहुत बुरी बला है। बढ़िया अवसर देखकर नागमणि ने अपने मन के भावों को आसानी से छिपाकर बड़ी चालाकी से बहाना बनाते हुए अमर से कहा-बेटा अमर! त्‍निक एक काम कर दो। मुझे कहीं बहुत जरूरी काम से बाहर जाना है। मैं अभी वहाँ जा रहा हूँ। तुम ऐसा करो रामनगर के चंद्रकांत वर्मा जी के पास चले जाओ। वह कुछ पैसे देंगे उसे ले आओ। उनसे कहना कि चाचा जी ने भेजा है।

यह सुनते ही अमर बड़ी मासूमयित के साथ बोला-चाचाजी! आप फिक्र न कीजिए। मैं अभी चला जाता हूँ। आपको जहाँ जाना है आराम से जाइए।

नागमणि को कहीं जाना तो था नहीं वह तो अपना शिकार दबोचने की फितरत में थे। किसी को कोई शक न हो इसलिए साइकिल उठाकर कहीं और जाने के बहाने चुपचाप मार्ग बदलकर रामनगर की ओर चल पड़े। सायंकाल का समय था। अंधेरा होने में कुछ ही वक्‍त बाकी था। नागमणि एक निर्जन और सूनसान स्‍थान पर गुपचुप छिपकर अमर के आने का बड़ी बेताबी से इंतजार करने लगे।

अमर बेचारे को उनकी मंतव्‍यता के बारे में कुछ अता-पता तो था नहीं वह निर्द्वंद्वमन से बेखटके अपनी मंजिल की ओर गुनगुनाते हुए चला जा रहा था। उसे देखते ही नागमणि दबे पाँव उसके पीछे-पीछे चलने लगे। फिर उसके निकट पहुँचकर मुस्‍कराकर बोले-अमर! रूक जाओ। आज वहाँ मत जाओ। वर्माजी आज घर पर नहीं हैं। वह कल मिलेंगे। मैंने मोबाइल पर उनसे बात किया तो पता चला कि वह कहीं बाहर गए हैं। इसलिए मुझे जहाँ जाना था वहाँ नहीं गया। तुम्‍हें बताने यहाँ आ गया। ऐसा करना फिर कभी चले जाना। आज रहने दो।

तत्‍पश्‍चात वह अमर से फिर बोले-आओ थोड़ा सुस्‍ता लेते हैं। बडी अच्‍छी ठंडी-ठंडी हवा चल रही है। इसके बाद घर चलेंगे। नागमणि पास में ही स्‍थित एक पुलिया पर अमर के साथ बैठकर अेधेरा होने की प्रतीक्षा करने लगे। अब शिकार पूरी तरह बहेलिया के कब्‍जे में था। इसके बाद नागमणि बड़े प्‍यार से गपशप करते हुए अमर की गर्दन पर शेर जैसे अपने मजबूत पंजे को घुमा- फिराकर टोह लेने लगे कि इसे दबाने के लिए कितनी ताकत लगाने की जरूरत है।

अमर के गर्दन की थाह पाते ही बेहतर मौका देखकर नागमणि ने एक ही झटके में उसे इतनी क्रूरता से दबा दी कि वह बेचारा हाथ-पैर भी न चला सका। उन्‍हें उस पर तनिक भी तरस न आया। अमर छटपटाता ही रह गया। पलक झपकते ही उसके प्राणपखेरू उड़ गए। वह अपनी विधवा मां को छोड़कर हमेशा के लिए एकदम शांत हो गया। वह असमय ही बहुत दूर चला गया। इकलौते बेटे के चले जाने से तृप्‍ति देवी इस निष्‍ठुर दुनिया में अकेली रह गईं।

अमर को काल के गाल में पहुँचाकर नागमणि ने उसकी लाश को ले जाकर नजदीक ही स्‍थित जंगल के एक गहरे पानी भरे गड्‌ढे में दबा दिया। जिसे रात में खोदकर खूँखार जंगली जानवर उठा ले गए। अमर को पूर्णतया ठिकाने लगाने के पश्‍चात निश्‍चिंत होकर रात के दस बजे तक घर वापस पहुॅच गए और अपनी पत्‍नी नागेश्‍वरी से बोले-अरे! टमर अभी तक लौटा नहीं? ऐसा लगता है वर्माजी ने रात्रि का समय होने से उसे वहीं पर रोक लिया। चलो कोई बात नहीं सुबह आ जाएगा। उस वक्‍त उनकी ओर किसी ने गौर नहीं किया और बात आई गई हो गई।

रात व्‍यतीत हो गई। फिर सबेरा हो गया। नागमणि अपने भतीजे अमर का पता लगाने के नाम पर घर से निकल गए और ज्‍यों के त्‍यों शाम तक घर वापस पहुँचकर पुनः बहानेबाजी बनाने में जुट गए। अमर को गायब होते देख तृप्‍ति देवी का हाल रो-रोकर बहुत बुरा हो रहा था। उन पर मुसीबतों का पहाड ही टूट पड़ा। वह विलखते-विलखते बेहोश सी हो गईं। नागमणि को टालमटोल करते-करते समय इसी प्रकार बीतता रहा। आजकल-आजकल कहते लगभग एक पखवाड़ा बीत गया। फिर बीस दिन भी गुजर गए परंतु अमर का कहीं पता न चला। तदंतर यह मानकर कि अमर अपनी पढ़ाई वगैरह त्‍यागकर कहीं चला गया तृप्‍ति देवी मन मारकर रह गईं।

अमर की हत्‍या हो गई और नागमणि का बाल भी बाँका न हुआ। वह एकदम साफ-साफ बच गए। पुलिस में रिपोर्ट करने पर वह भी अमर का पता लगाने में नाकाम रही। उसके हाथ कही कुछ भी न लगा। वह भी उसे न ढूँढ़ पाई। आखिर नागमणि के कारनामों पर पड़ा पर्दा पड़ा ही रह गया। नागमणि के सामने सच्‍चाई दबकर ही रह गई। मगर, नागमणि पति-पत्‍नी यह बात भूल गए कि आत्‍मा अजर अमर होती है। वह कभी मरती नहीं है। उन्‍होंने बस यही समझा कि अमर की आत्‍मा मर गई। यद्यपि ऐसा न हुआ। अमर की आत्‍मा अमर ही रही।

वक्‍त गुजरने के साथ अमर की आत्‍मा पच्‍चीस-छब्‍बीस वर्ष की जवान हो गई। जवान होते ही वह नागमणि और नागेश्‍वरी को तरह-तरह से सताने लगी। उसने उनकी नाक में दम कर दिया। वे उससे बहुत तंग आ गए। धीरे-धीरे वह उन पर हावी होने लगी। नागमणि और नागेश्‍वरी परास्‍त होते नजर आने लगे। यह देखकर वह चिकित्‍सकों के साथ नामीगिरामी तांत्रिकों का सहारा भी लेने लगे। किन्‍तु कहीं कोई फायदा न हुआ।

अब उन्‍हें अपनी करनी पर पछतावा होने लगा। वे मन ही मन पछताने लगे। उन्‍हें अनुभव होने लगा कि हमने अमर को मारकर बहुत बुरा किया। हमने बहुत अधर्म का काम किया। यदि ऐसा न किसा होता तो आज यह दिन हरगिज न देखना पड़ता। अब तो लगता है अमर की आत्‍मा हमारी जान लेकर ही शांत होगी। अंततः नतीजा यह निकला कि अमर की प्रेतात्‍त्‍मा ने उन्‍हें पटक-पटककर मार डाला। उसने उनसे अपना बदला ले लिया। नागमणि ने अमर की हत्‍या की थी और अमर ने उन्‍हें यम की गोद में भेज दिया। इससे उसकी आत्‍मा को शांति मिल गई। उसने उधम मचाना त्‍याग दिया।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी // अधर्म // अर्जुन प्रसाद
कहानी // अधर्म // अर्जुन प्रसाद
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgp2TZN-uA0mUYo-T5t3V7DcszZddoQg6sRSG9kt9Pr6z_VgoF5_v1-826wQAlpr6It6uYnIJYEShTgCbhdD8jrjaKsvRyQxs3AeZ6SEJtU477JWD6QzNyGHwfF5lBPzEMtxzL5/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgp2TZN-uA0mUYo-T5t3V7DcszZddoQg6sRSG9kt9Pr6z_VgoF5_v1-826wQAlpr6It6uYnIJYEShTgCbhdD8jrjaKsvRyQxs3AeZ6SEJtU477JWD6QzNyGHwfF5lBPzEMtxzL5/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/07/blog-post_36.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/07/blog-post_36.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content