यादें बचपन की यादें अधिकतर ख़ुशनुमा ही होती है,हालात कैसे भी हो। हर बच्चा जब तक माँ बाप के साये में होता है, दुनियाँ का डर उसे नहीं सताता। ह...
यादें
बचपन की यादें अधिकतर ख़ुशनुमा ही होती है,हालात कैसे भी हो। हर बच्चा जब तक माँ बाप के साये में होता है, दुनियाँ का डर उसे नहीं सताता। हाँ यह बात अलग है कि माँ -बाप की डाँट का डर सदा साथ रहता है। लेकिन बड़े होने पर लगता है कि वो डर ही बेहतर था। घटना भारत चीन युद्ध की है,हमारा परिवार आगरा में रहता था। हम लोग दस भाई बहन थे, पिताजी व्यापारी थे। माँ बच्चों और घर को बड़ी कुशलता से संभालती थी, खाना भी बहुत स्वादिष्ट बनाती थी। आज भी जब बड़ी बहनों के हाथ का बना खाना खाती हूँ ,तो माँ के हाथों के स्वाद की याद ताज़ा हो जाती है। मैं अपने भाई बहनों में नीचे से चौथे नम्बर पर थी। सर्दियों का मौसम था,ठिठुरन वाली ठंड पड़ रही थी। ऐसे मौसम में स्कूल जाना किसी भी बच्चे को अच्छा नहीं लगता था,और मैं कहाँ सबसे अलग थी। युद्ध के कारण सारे स्कूल बंद थे। बच्चे स्कूल की छुट्टी होने पर ख़ुश थे और अपने आस पास हो रही गतिविधियों का मज़ा ले रहे थे। तब मुझे युद्ध के बारे में कुछ जानकारी न थी पर पिताजी की चिंता देख कर लगता ,कुछ बुरा घटित होने वाला है। हम बच्चों की दुनियाँ बिलकुल भिन्न थी ,हम अपने विचारों की पतंग उड़ाते रहते।
हमारा एक पेट्रोल पम्प हिण्डोन में भी था पिताजी वहाँ जा रहे थे,जाते -जाते माँ को हिदायत दे कर गए कि बच्चों के लिए ज़्यादा नाश्ते का समान बना कर रखे। हमारे रसोई स्टोर में बड़े-बड़े पीपों में ड्राइफ्रूट्स ,गोंद के लड्डू , मठ्ठरियाँ, चिप्पस, पापड़ नमकीन ,बरनियों में तरह तरह के आचार रखे रहते थे। शहर में कर्फ़्यू लगा हुआ था और रात में बिजली भी नहीं आती थी। माँ रसोई घर में मिसरानी (यानी महिला रसोईया) को खाने में क्या बनेगा ,कितना बनेगा आदि की हिदायत देती। घर के नौकर चाकरों से काम करवाती। बड़ी बहने सैनिकों के लिए स्वेटर बुनती क्योंकि हमारे जवानों के पास गरम स्वेटर की कमी थी और सरकार ने जनता से अपील की थी कि वो जवानों के लिए स्वेटर बना कर युद्ध में अपना योगदान दे। सब के पास अपने अपने काम थे ,बस हम चिल्लर पार्टी शैतान के दूत बने हुए थे। दिन भर भूख-भूख चिल्ला कर मिसरानी को परेशान करते। रात में तारे गिनते और मनगढ़ंत कहानियाँ बनाते। आगरा में ताजमहल के साथ पागलखाना भी बहुत मशहूर है ऐसा कहते है। ऐसा सोचने पर एक रात मेरे दिमाग़ में विचार कौंधा कि अगर बम से पागलखाने की दीवार टूट जाए और सारे पागल शहर में फैल जाए तो क्या होगा। मेरी छोटी बहन को लड्डूओं की चिंता हुई तुरंत बोली " अगर पागल हमारे घर में घुस कर सारे लड्डू खा जाए तो"। उसका इतना कहना था कि सब सोच में पड़ गए समस्या गंभीर थी। इस समस्या का हल हमने कुछ यों निकाला, छोटी बोली " क्यों न हम लड्डू प्रतियोगिता रखे देखते है कौन सबसे ज़्यादा लड्डू खाता है"। हम सब सहमत हो गए और यह काम इतने गुप्त रूप से करने लगे कि किसी को इसकी भन्नक भी न लगी। माँ ने एक पीपा लड्डूओं का पिताजी के लिए अलग से बना कर रखा था, हम वो भी चटकर गए।
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दिन बीतने लगे और हमारी शरारतें भी बढ़ने लगी। मिसरानी सुबह सुबह आ कर माँ को पूरे शहर की ख़बर सुनाया करती ,हम भी कान लगा कर बैठ जाते पर उस समय आधी बातें पल्ले ही नहीं पड़ती। बड़े भाईसाहब भी रात में माँ को शहर और युद्ध के क़िस्से सुनाया करते। मिसरानी दिन भर हमारे धर रहती रात को उसका बेटा उसे लेने आ जाता था। हमें मिसरानी से क़िस्से सुनने में मज़ा आने लगा और मौनी बाबा के साथ हुए हादसों को बड़े चाव से सुनते। हमारे घर से कुछ घर छोड़ कर एक बुज़ुर्ग रहते थे ,उन्हें सब मौनी बाबा कहते थे। वैसे वो सुनते ऊँचा थे पर बोलते बहुत थे,फिर भी लोग उन्हें मौनी बाबा कहते यह बात आज तक समझ नहीं आई।
मौनी बाबा बड़े भाईसाहब को क़िस्से सुनाने आ जाते थे। वो किसी की सुनते न थे पर अपनी बात पूरी किये बिना जाते न थे। उन्हें चाय पीने का शौक़ था न दिन देखते न रात ,अपना लोटा उठा और चाय की दुकान पर चले जाते। उन्हें किसी का भय तो था नहीं अपनी ही धुन में मस्त रहते। इसी कारण उनके साथ कई मज़ेदार हादसे हुए । वो समय टी.वी. का न होकर हक़ीक़त की कहानियों का था जो हमारा मनोरंजन करते थे। युद्ध से पहले चाय की दुकान देर रात तक खुली रहती और मौनी बाबा अपना लोटा उठाए अक्सर रात में चाय पीने जाते। उस रात भी कुछ ऐसा ही घटा ,मौनी बाबा को चाय की तलब लगी और वो चल दिए चाय की दुकान की तरफ़ । रास्ते में पुलिस वाले ने उन्हें रोक कर बताया कि कर्फ़्यू लगा हुआ है इसलिए वो रात में इधर उधर नहीं जा सकते। पुलिस वाला भी इलाक़े में नया था इसलिए मौनी बाबा के बारे में कुछ नहीं जानता था। मौनी बाबा कहाँ किसी की सुनने वाले थे,पुलिस वाले को डाँटने लगे " तुम्हें पता है युद्ध चल रहा है रोज़ हमारे कितने जवान मारे जाते है,और तुम जैसे हट्टे कट्टे लोग यहाँ खड़े है। युद्ध के मैदान में अपना ज़ोर दिखाओ मुझ बुड्ढे को पकड़ रखा है"। पुलिस वाला उन्हें थाने ले जाने लगा तभी उनका बेटा उनको ढूँढता हुआ वहाँ आ गया और पुलिस वाले को सारी स्थिति समझाई ।
एक रात की बात है सब लोग अपनी अपनी छतों पर सोने की तैयारी कर रहे थे कि तभी आसमान से आग के गोले बरसने लगे। चारों तरफ़ अफ़रा तफ़री की लहर फैल गई ,बड़े भाईसाहब ने हम सबको इकट्ठा किया और खाई की ओर ले जाने लगे। चलते हुए पड़ोस के चाचा चाची को भी आवाज़ लगायी। चाची और बच्चे तो बाहर आ गए पर चाचा निकले ही नहीं ,आवाज़ देने पर बोले " मेरी तम्बाकू नहीं मिल रही है"। सुनते ही चाची को ग़ुस्सा आ गया बोली" सबकी जान पर आन पड़ी है और इनको तम्बाकू की सूझी है"। मेरी छोटी बहन को न जाने क्या सूझी बोली" तम्बाकू धरती पर ही है बैकुंठ मे न मिलेगी वहाँ तो सिर्फ़ अप्सराएँ ही मिलेगी ,चाची खा लेने दो चाचा को"। इतना सुनते ही सबको हँसी आ गई जिसमें मौत का डर कहीं खो सा गया। इसी बीच मौनी बाबा कहीं से ख़बर ले कर आए और बोले" अरे ये आग के गोले आसमान में ही पुट हो जात है ज़मीन पर नहीं आवत है डरो न"। पहले उनकी बात पर विश्वास नहीं हुआ पर जब आसमान की ओर देखा और दृश्य वैसा ही था जैसा उन्होंने बताया था तो सबकी साँस मे साँस आई। आज भी जब मैं उन दिनों को याद करती हूँ तो एक मुस्कान चेहरे पर आ ही जाती है।
रुचि प जैन
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