1-इधर मैंने किताब बेचने के बारे में नया सोचा -किसी संपादक को किताब दो, फिर धीरे से एक रचना खिसका दो , रचना छपेगी, उसके पारिश्रमिक को किताब ब...
1-इधर मैंने किताब बेचने के बारे में नया सोचा -किसी संपादक को किताब दो, फिर धीरे से एक रचना खिसका दो , रचना छपेगी, उसके पारिश्रमिक को किताब बेचना कह सकते है, -मैं ऐसा सा कर चुका हूँ.
२-मठाधिशों को मठ्ठाधीशों से बचाओ.
३-हिंदी व् मैथिली भाषा के बीच बहस जारी है, राजस्थानी भाषा वाले...-
४-एक बड़े मठाधीश हर साल एक ही नए प्रकाशक की पुस्तकें अपने विभाग में खरीदते है, कुछ दिनों बाद उस संस्थान से उनकी पुस्तक आती है , यही बाजारवाद है .
५-वंश वाद संस्थाओं को नष्ट कर देता है, राजनीति हो या साहित्य , कला संस्कृति.
६-खबरें बेचना प्याज बेचने से भी मुश्किल काम है .
७-दुनिया को अख़बार की खिड़की से नहीं छत से देखा करो प्यारे.
८ -एक अच्छा समाचार - कामवाली बाई गाँव से आ गई है ...
९-कभी किताब खरीद कर भी पढ़ा करो जानी .
१०-जो लोग हाई स्कूल में फेल हो जाते हैं वे बिल गेट्स व् जुकरबर्ग बनते हैं, जो आई आईटी व् आई आई एम् टॉप करते हैं वे इनके यहाँ नौकरी करते हैं.
११ -अगला विश्व युद्ध पार्किंग को लेकर होगा .
१२-एक ही विषय पर पचीस व्यंग्य , ये हो क्या रहा है? लगभग सब रिपीटीशन.
१३-लेखक के परम मित्र-परम शत्रु-संपादक-प्रकाशक .
१४- शीर्ष पर पहुंचने के बाद जो आत्म ग्लानि होती है वो बड़ी भयंकर होती है , क्योंकि शीर्षस्थ को वे सब तरीके रास्ते याद आते हैं जिनके सहारे वो यहाँ तक पहुंचा
उसने कितनों का हक मारा , कितनों की शैक्षणिक -राजनीतिक हत्याएँ की .
और यह सिलसिला शीर्ष पर बने रहने के लिए चलता रहता है .
१५-मार्क्स का चिंतन अब साहित्य में भी हाशिये की तरफ स्वयं मार्क्सवादियों द्वारा धकेला जार हा है. लेनिन को भी कोसर की ट्रेन की जरूरत पड़ी थी
१६ –मत बांटो हिंदी को .
१७-कुछ आलोचक निर्मल होते हैं , कुछ निर्मम और कुछ केवल मल...
१८- अखिल भारतीय उपेक्षित व्यंग्यकार सम्मेलन का आयोजन शीघ्र जयपुर में किया जा रहा है, खाना-पीना किराया देय , जल्दी करें स्थान सीमित नाम, पता, मोबाइल दे.
१९-इस बार होली पर साथियों पर भाईचारे के साथ बाण चलाये गए, यह शुभ है .अरविन्द तिवारी, सुरेश कान्त, शशि कान्त सिंह व् खाकसार ने मित्रों -दुश्मनों पर लिखा
यही प्यार चलता रहे, भाईचारा बना रहे.
२०-काम वाली बाई सातवाँ वेतन आयोग मांग रहीं हैं, समझ में नहीं आ रहा क्या करूँ?
२१-लोकार्पण , लोकार्पण ओर लोकार्पण , एक ही पुस्तक का कई बार, बार बार लोकार्पण , लोकार्पण के लिए हाथों की कमी हो सकती है पुस्तकों की नहीं, पिछली बार लोकार्पित किताबों का भी पुनः लोकार्पण का शतक जमा चुके हैं लोग, वैसे मेरे एक मित्र का कहना है - पुस्तक लोकार्पणों से नहीं बिकती . सेल के फंडे अलग हैं. लोकार्पण करने वाले दाद्दुजी दादी को नहीं पहचानते , किताब को क्या पहचानेंगे ?
२२-अहमदाबाद में विश्व कविता समारोह के बाद कविता की बहार है , अरुण जेटली बजट में कविता कर रहे हैं , राहुल गाँधी चुनाव सभा में कविता कर रहे हैं, नरेंद्र मोदी संसद में कविता पढ़ रहे हैं .मित्रों, कविता की यह सुखद वापसी, कविता के अच्छे दिन आ गये .
२३ -राजस्थान ने भा ज पा को २५ में से २५ संसद दिए , मगर एक भी काबीना मंत्री नहीं , और ये राज्य मंत्री -स्वतंत्र प्रभार क्या है , जब उपमंत्री का पद समाप्त हो गया तो राज्य मंत्री का पद भी समाप्त हो, सभी काबीना मंत्री हों ताकि कम से कम केबिनेट मीटिंग में बैठ तो सके .
२४-आज बस यूं ही कोई पोस्ट नहीं , फेसबुक जिन्दगी नहीं पर जिन्दगी का अहम् हिस्सा तो है
२५-पहली रोटी गायकी , आखिरी कुत्ते की सबके खाने के बाद भी डब्बे में इतनी रोटियां होती थी कि मेहमान आ जाते तो उनका काम चल जाता या सुबह का नाश्ता हो जाता या कोई मंगता भिखारी आ जाता तो पेट भर लेता , अब मत पूछो ?
२६-राजस्थान में उच्च शिक्षा -1-अंबेडकर विश्व विदयालय बंद, हरिदेव जोशी विश्व विद्यालय बंद, कुछ निजी विश्व विद्यालयों की हालत दयनीय , कई यूनिवर्सिटीस में अयोग्य वीसी , कई में पद खाली कैसे चलेगा शिक्षा का रथ , कहां हैं सारथी
प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा का तो भगवान ही मालिक.
२७-भूत प्रेतों की तरह अच्छी पत्नी भी एक वहम है बस ,
वीरेंद्र सहवाग कपिल शर्मा के साथ बातचीत में
२८-हिन्दी साहित्य में हिन्दी में एम ए होना ही साहित्यकार होना है , मुझे एक वरिष्ठ प्रोफेसर ने कहा-आप लोग तो दूसरे डिसिप्लिन के हैं आप का हिन्दी साहित्य से क्या लेना -देना आप लोग घुसपैठिये हैं, आचार्य किशोरीदास जी ने इन विभागाध्यक्षों की खूब खबर अपने लेखों में ली हैं.
इन लोगों का बस चले तो सूर, मीरा , तुलसी, कबीर को भी अपने अंडर में पी एच डी करवा कर उनको अपना शिष्य घोषित कर दें.
सुर मीरा तुलसी कबीर भी प्रोफेसर का इंटरव्यू दे तो रह जाए और नियुक्ति झपक लाल की हो जाये .
29-राजस्थान सर्कार ने अन्नपूर्णा योजना शुरू की है जिसमें पांच रु. में नाश्ता व् 8रु. में खाने की सुविधा है ऐसे ही मटर गश्ती के दौरान गोविन्द देवजी मंदिर के बाहर व् पास में पेड़ के नीचे खड़ी वैन का खाना टेस्ट करने हम लोग पहुंचे , काउंटर पर लम्बी चौड़ी लिस्ट मगर थाली में एक चम्मच खिचड़ी एक चम्मच दाल, एक चमच कढ़ी , एक चम्मच कोई मीठी वस्तु, चपाती नहीं , चावल नहीं , इस से तो अक्षय पात्र का खाना अच्छा था बताया साथ के लोगों ने , इस योजना का फायदा गाड़ी के चालक, वेटर व् अफसर ही उठा रहे हैं.
30-जागो मोहन प्यारे जागो .
31-स्वेच्छा से सब्सिडी छोड़ें, स्वेच्छा से रेल का कंसेशन छोड़े , कल यह न कह दे स्वेच्छा से दुनिया छोड़े.
32-नया आदमी पद पर आता हे तो शुभचिंतको के विज्ञापन आ जाते हें , नए मंत्री के पूरे पेज के विज्ञापन आखिर यह पैसा आता कहां से है , व् शुभ चिंतकों को वापस क्या और कब तक मिलता है?
33-तालाब से मगरमच्छ पकड़ने के लिए तालाब का सारा पानी निकाल दिया , सब मछलियां मर गयी , मगरमच्छ. चल कर दूसरे तालाब में चला गया, तालाब में ज्योंही पानी आया सब मेंढक टर्राने लगे .
34-चार किताबें अपने पैसे से छापी और अपने पैसे से विमोचन कराया और वरिष्ठ साहित्यकार एक साल में तैयार। दो ईनाम भी अपने पैसे से....
३५ -क्या गुलशन नंदा, मस्तराम, पम्मी दीवानी , कुशवाहा कान्त , कर्नल रंजित, वेद प्रकाश, सुरेन्द्र मोहन पाठक व् ऐसे सैकड़ों अन्य लेखकों को लुगदी साहित्यकार मान कर ख़ारिज किया जा सकता हें ?
३६ -ये माज़रा क्या है ? सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा करने की परम्परा रही है , अब सरकार सवालों की बौछार कर रहीं है और आम आदमी लाइन में खड़ा खड़ा भीग रहा है . सरकार के सवाल , सरकार के ही जवाब बस यहीं प्रजातंत्र रह गया है . सच्चे सवालों के झूठे जवाब .
36-जिस प्रान्त में पुरस्कार मिल रहे हों, उस प्रान्त का जनम प्रमाणपत्र किसी पंचायत-नगरपालिका से बनवा कर पुरस्कार ले लेना चाहिए.
37-आज नाग पंचमी हैं सभी व्यंग्यकारों को प्रणाम। दूध कहाँ मिलेगा?
38-40-45 सालों से लिख रहा हूँ आजकल अख़बारों में जगह की बड़ी समस्या है संपादक, प्रभारी संपादक, पेज इंचार्ज कभी 400शब्द, कभी 650 शब्द कभी 750 शब्दों की सीमा बताते हैं कई बार लेख शब्द सीमा के साथ ही समाप्त कर दिया जाता है.
कई बार लगता है सीमा के नाम पर आलेख को नुकसान हो रहा है , हल्की भाषा में कहें तो कब्र के नाप का मुर्दा लाओ, नाप बनाने के चक्कर में कभी सिर कट जाता है कभी पाँव कट जाते हैं कभी लेख के हाथ बाहर रह जाते हैं .
कभी संपादन के नाम पर शीर्षक बदल जाते हैं क्योंकि महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कहा है-कुछ न कर सको तो शीर्षक बदल दो.
39-आप मेरी पुस्तक की अच्छी समीक्षा लिख दें,
में आपके कविता संकलन को महान बता दूँगा.
40-गर्मी के दिनों में दादा -दादी -नाना नानी के यहां जाकर रहने का आनंद ही कुछ और था. समय के साथ साथ सब कुछ बदल गया , कभी दादा-दादी नाना -नानी बच्चों के पास चले जाय या फिर एक दो दिन के लिए बच्चा आ जाए, इसी में बूढ़े खुश हो जाते हैं .
४१-सरकार के सलाहकार ही सरकार को डुबाते हैं.
42-कल हिन्दी के एक बड़े प्रोफेसर -लेखक के घर जाने का अवसर मिला, गर्व से उन्होंने भव्य पुस्तकालय दिखाया.
मैंने मासूमियत से पूछा- इन पुस्तकों में से कितनी आपने खरीदी है और कितनी पढ़ी हैं ,
वे तब से नाराज़ हैं .
वास्तव में उनका पुस्तकालय सादर भेट -समीक्षा- शोधार्थ -निशुल्क प्राप्त पुस्तकों से भरा पड़ा हैं .
४३- एक लेखक की रचना एक संपादक ने प्रकाशित की
लेखक ने पूछ अगली रचना कब?
संपादक का जवाब - पहली का पारिश्रमिक मिलने के बाद,
वैसे हम पारिश्रमिक भेजते ही नहीं
हा हा हा .....
४४ -रोज रत को सोते समय यह सोचना कि कल सुबह किस-किस अख़बार में रचना छपने की संभावना है , फिर सुबह उठकर जल्दी से जल्दी नेट पर अख़बार देखना- मैं छपा हूं या नहीं, अगर नहीं तो कौन छपा है , खुद नहीं छपने का इतना दुख नहीं जितना क , खा या ग के छप जाने का होता है . अरे यार इसी विषय पर तो मैंने भी भेजा था, फिर इस का क्यों लगा , ज़रूर कोई बात है .
इसी उधेड़बुन में सांझ हो जाती है फिर अगले दिन वही कवायद. आशा अमर धन है दोस्तों लगे रहो .
४५- बी बी सी के बोल इंडिया बोल कार्यक्रम में मुझे भी अवसर मिला. इस से पूर्व भी बी बी सी ने प्रिय वित्त मंत्री के नाम एक पत्र -प्रसारित प्रकाशित किया था.
कल के कार्यक्रम- विरासत पर सियासत में मैंने कहा-नेहरूजी, इंदिराजी, व अटल बिहारी जी के नाम नकार कर आज़ाद भारत के इतिहास की कल्पना मुश्किल है . सरकार को बड़ा दिल रखना चाहिए, सब का साथ सबका विकास तथा देश चलाने के लिए सब का सम्मान ज़रूरी है . इन राष्ट्रीय नेताओं को पार्टियों के दायरे में बंद करना ग़लत है .
देश की अवाम की नज़रों में शहीद दिवस का महत्व कम नहीं है .कार्यक्रम कल रत 7.30 पर प्रसारित हुआ .
४६ -सरकार के मंत्रियों को शर्म आ रही है की वे काम नहीं करा पा रहे हैं, और हमें शर्म आ रही है किनको चुन कर भेज दिया.
४७--अमेरिका की पुस्तकालय व्यवस्था की तारीफ करना चाहता हूं यहां के पुस्तकालय से पुस्तक लेकर आप अमेरिका में कही भी जमा करवा सकते हें. पुस्तकालय में भीड़ देख कर भी खुशी होती है यहां पुस्तक-प्रेमी दिन-भर आते रहते हैं.
४८--इस बार भी मुझे नहीं मिला, में कतार में था , मुझे भी दो
जब सबको दे रहे हो तो मुझे भी दो, जुगाड़ की ट्रैनिंग कहाँ मिलती है?
४९-नोट बंदी ने ग़ालिब निक्कमा कर दिया , वरना मैं भी आदमी था काम का .
५०--फेस बुक ने बताया कि मेरी पोस्ट्स को ३५ हज़ार बार पसंद किया गया .
आप सभी का आभार.
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यशवंत कोठारी 86, लक्ष्मी नगर ब्रह्मपुरी बहार , जयपुर -३०२००२
-०९४१४४६१२०७
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