लोकप्रिय व्यंग्यकार आलोक पुराणिक से सवाल जवाब : जिसको जो लिखना है, उसे वह लिखने की छूट होनी चाहिए -आलोक पुराणिक

SHARE:

आलोक पुराणिक से पूछताछ की कड़ी में आज के सवाल Anshu Pradhan के हैं। अंशु जी जनसन्देश में नियमित व्यंग्य लेख लिखती हैं। उनके सवालों की शुरुआत...

image
आलोक पुराणिक से पूछताछ की कड़ी में आज के सवाल Anshu Pradhan के हैं। अंशु जी जनसन्देश में नियमित व्यंग्य लेख लिखती हैं। उनके सवालों की शुरुआत आलोक पुराणिक की फ़िटनेट को लेकर हुई। बताते चलें कि आलोक पुराणिक का वजन कभी सौ किलो के अल्ले-पल्ले पहुंच गया था। इसके बाद वजन कम करने की ठानी तो साल भर में तीसेक किलो वजन बाहर कर दिया। आलोक पुराणिक इसे स्वास्थ्य की जरूरत बताते हैं लेकिन उनके बहुत खास लोगों ने नाम न बताने की शर्त पर जानकारी दी कि उनकी ’लेखन सहेली’ सन्नीलियोनी जी राखी सावंत जी ने संयुक्त रूप से स्लिप-ट्रिम होने के लिये इशरार किया था। यह तक कह दिया कि अगर हमारा अपने लेखों में रखना है तो पहले छैला बाबू बनना है। फ़िर क्या था - परिणाम सामने है। दोनों फ़ोटुयें देख सकते हैं आप नीचे।

बाकी के सवाल लेखन से जुड़े हैं। पहले भी इन पर आलोक पुराणिक लिख चुके हैं। एक बार इसी बहाने और सही।

आपके कोई सवाल हों आलोक पुराणिक से तो मुझे इनबाक्स करें या फ़िर मेल करें anupkidak@gmail.com पर।

फ़िलहाल तो आप सवाल-जबाब पढें और अपनी प्रतिक्रिया बतायें। :)

सवाल 1- आप इतना फिट कैसे रहते हैं?
जवाब-फिट रहना बहुत आसान है। चित्त निर्मल रखें, किसी से राग-द्वेष ना पालें, किसी का अहित ना सोचें, तो मन साफ रहता है। सुबह उठकर मैं योग करता हूं और एक घंटा कम से कम घूमता हूं। खाने में नियंत्रण रखता हूं। एक वक्त मैं बहुत अनफिट था मेरा वजन सौ किलो तक चला गया था और दिन में आठ कप चाय पी जाया करता था। अब खान-पान पर नियंत्रण रखा है।

सवाल 2- आपके व्यंग्य में विविधता रहती है, वो कैसे ?
करुणा की जमीन पर अनुभव-चिंतन के बीज डालिये और संवेदना से सींचिये, व्यंग्य फलीभूत हो जाता है। खूब देखिये, खूब पढ़िये और खूब सोचिये, तो व्यंग्य आता है। बाजार, तकनीक, इंसानी पाखंड, क्रिकेट, इश्तिहार सबको खुली आंखों से देखिये तो व्यंग्य की रेंज बहुत लंबी बन जाती है। मैं रोज 11 अखबार पढ़ने की कोशिश करता हूं। और पंद्रह-बीस पत्रिकाएं नियमित पढ़ता हूं, तकनीक से लेकर शेयर मार्केट से लेकर साहित्य से लेकर तमाम विषयों पर, विविधता बनी रहती है। बहुत आवारागर्दी करता हूं, तरह तरह के लोगों से संवाद करता हूं। इस सबसे लगातार खुद को अपडेट करने में मदद मिलती है।

सवाल 3: एक व्यंग्यकार का व्यंग्य कैसा होना चाहिए ? क्या व्यंग्य को इस तरह से लिखा जा सकता है जो हर आयु वर्ग के अनुरूप तो हो ही साथ में उसमें स्थिरता भी हो ? क्या इन बातों को ध्यान में रखकर ही व्यंग्य लिखा जाना चाहिए।

जवाब: व्यंग्यकार को व्यंग्य वह लिखना चाहिए, जो उसे रुचता है, जो उसे जमता हो। किस आयु वर्ग के लिए, किस जेंडर के लिए, ऐसे मुद्दे पहले तय ना कीजिये। पहले जो मन करे, लिखिये, फिर खुद को कई बार डिस्कवर करते हैं कि हम तो यहां बेहतर कर सकते हैं, तो गाड़ी फिर उस रुट पर दौड़ा दीजिये। रचनात्मक कामों में बने बनाये रास्ते ना होते, ट्रायल एंड एरर बहुत होता है, इसी से सीखना होता है

सवाल 4. किसी समस्या पर एक दो चुटकी लेकर उसी पर लीपा पोती करते हुए आर्टिकल को व्यंग्य कहने वालों को या ऐसे आर्टिकल को आप कैसे देखते हैं? क्या ये व्यंग्य के लिए सही है, क्या व्यंग्य ऐसा ही होना चाहिए। आपकी इस विषय पर क्या राय है।

जवाब: देखिये, जिसको जो लिखना है, उसे वह लिखने की छूट होनी चाहिए। क्या व्यंग्य है क्या व्यंग्य नहीं, यह अच्छा व्यंग्य है या बुरा व्यंग्य है, इसकी बुनियादी तमीज हमें अपने बुजुर्गों को पढ़कर आ जानी चाहिए। ज्ञान चतुर्वेदीजी के काम को सामने रखें, श्रीलाल शुक्ल के काम को सामने ऱखें, हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, बाल मुकुंद गुप्त, भारतेंदु, मनोहर श्याम जोशी के काम को सामने रखें, तो मोटा मोटा अंदाज हो जाता है कि ये मानक काम हैं। बाकी जो लिखना चाहे, वह लिखे, उनके लिखे पर फतवे भी जारी नहीं किये जाना चाहिए। कोई सीखने का उत्सुक हो, तो उसे किसी वरिष्ठ से मार्गदर्शन ले लेना चाहिए। ठोस लेखन समय की छलनी के पार जाता है, श्रीलाल का शुक्ल का रागदरबारी करीब पचास साल बाद भी बांधे हुए है। तो सबको लगातार सीखना चाहिए, इस भाव में नहीं रहना चाहिए कि मैंने जो कर दिया वही अल्टीमेट है।

सवाल 5: एक लेखक का सशक्त लेखन और शब्दों का चुनाव उसे पहचान दिलाता है या फिर मठ, मण्डली और चापलूसी आदि । आपके इस सन्दर्भ में क्या विचार हैं।

जवाब: इतिहास को देखें, तो सिर्फ काम ही समय की छलनी की पार ले जाता है। जौक गालिब के समकालीन थे और जौक उस वक्त के बादशाह जफर के उस्ताद थे, बहुत करीबी थे। आज गालिब का कद जौक से बहुत बड़ा माना जाता है, क्यों, इसलिए काम ही हम तक आ रहा है। मठ मंडली चापलूसी बहुत आगे तक नहीं ले जाती। सिर्फ समय खपाऊ काम हैं ये और मेरा मानना है कि सच्चे रचनात्मक व्यक्ति की क्षमताओं में भी नहीं है यह सब चापलूसी और मठबाजी वगैरह।

सवाल 6: हिंदी में पैसा बिलकुल भी नहीं है इसलिए भी हिंदी की कोई खास पहचान नहीं है न हिंदी लेखकों की। इस विषय पर आपका क्या कहना है? क्या हिंदी में पैसा न होना ही हिंदी को और हिंदी लेखक को कमजोर बनाये हुए हैं

जवाब : हिंदी में पैसा है, पर हिंदी के साहित्यिक लेखन में नहीं है। हिंदी व्यंग्य को अगर कोई मंच पर कायदे से पेश कर सकता है तो भरपूर पैसा है, शरद जोशीजी ने दिखाया है। हिंदी व्यंग्य लेखक को अपनी मार्केटिंग करनी पड़ेगी पाठक तक पहुंचना पड़ेगा, वरना वह प्रकाशक का गुलाम टाइप ही होकर रह जायेगा।

सवाल 7. लेखक को अपने किसी भी लेखन में क्या बिल्कुल साधारण भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए या फिर लेख को उचित शब्दों के चुनाव और अभिव्यक्ति की शैली पर भी ध्यान देना चाहिए?

जवाब- जो मरजी आये लेखक को करना चाहिए, कर के देख लेना चाहिए, फिर तय करना चाहिए कि यह ठीक जा रहा है या नहीं। लेखक को मन में नहीं रखनी चाहिए कुछ भी सब करके देख ले। मैं रचनात्मक कामों में इस तरह की फतवेबाजी के खिलाफ हूं कि ये होना चाहिए या यह नहीं होना चाहिए। जो मन करे सब होना चाहिए। बाद में फैसला कर लें कि जो आपने किया, वह आपके हिसाब से ठीक था या नहीं।

(अनूप शुक्ल के फ़ेसबुक वाल से साभार)


अनूप शुक्ल ने बताया कि आलोक पुराणिक के कुछ और सवाल जवाब हैं. उन्हें भी फ़ेसबुक से खोजबीन कर यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ताकि सनद रहे -

पाखंड को समझना व्यंग्यकार का काम है - आलोक पुराणिक
---------------------------------------------------------------

आलोक पुराणिक के व्यंग्य लेखन में फ़िल्मों के जिक्र अक्सर रहते हैं। उनमें भी राखी सावंत, मल्लिका सेहरावत और सन्नी लियोनी फ़ुल जोरदारी से आती हैं आलोक पुराणिक के लेखों में। बाजार, फ़िल्म और लेखन के इसी तामझाम से जुड़े कुछ सवाल-जबाब बांचिये आलोक पुराणिक से:

सवाल1 : आपके लेखन में फिल्मों के जिक्र खूब रहते हैं। लगता है फिल्में खूब देखी बचपन में। पहली पिक्चर कब देखी? कौन सी देखी। कैसे देखी।

जवाब-फिल्मों की बहुत गंभीरता से लेता हूं बचपन से ही। अब भी लगभग हर फिल्म मैं देखता हूं, लगभग इसलिए कि कुछ फिल्में छूट जाती हैं। फिल्म कैमरे की अभिव्यक्ति है, कैमरे बहुत ही सशक्त माध्यम है अभिव्यक्ति का। मैं अब कैमरे को ज्यादा गंभीरता से लेने लगा हूं। खैर, पहली फिल्म जो मुझे याद है-वह है दो बूंद पानी- स्कूल से दिखाने ले गये थे, तब मैं पांच छह साल का रहा होऊंगा। पीतल की मेरी गागरी-यह गीत मेरी स्मृति में पहला फिल्मी गीत है। 1979 यानी जब मैं कक्षा मैं नौ में था, तब से फिल्में व्यवस्थित तौर पर देखीं। घर से कोई बंधन नहीं रहा। मैं आठ साल का था, तब पिता नहीं रहे, मां काम भर का भरोसा करती थीं कि चलो ठीक ही है लड़का, तो फिल्म देखने पर बंदिश नहीं थी। आगरा में महालक्ष्मी और बसंत सिनेमा टाकीज में मैंने सैकड़ों फिल्में देखी हैं। फिल्में बहुत जरुरी हैं हर उस व्यक्ति के लिए जो अपने वक्त के समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और राजनीति को समझना चाहता है। रचनात्मक व्यक्ति के लिए फिल्में एक सबक हैं कि कैसे रचनात्मकता को तरह तरह से स्वर दिये जाते हैं। मैं तो कामर्स पढ़ाते वक्त, स्टाक बाजार पढ़ाते वक्त फिल्मों को सुझाता हूं कि ये ये फिल्में देख लेना। फिल्में अर्थशास्त्र भी बताती हैं पहले फिल्मों में उद्योगपति टैक्सटाइल मिल का मालिक होता था, फिर शाहरुख के जमाने से हीरो साफ्टवेयर इंजीनियर होने लगे। यह फिल्म नहीं अर्थशास्त्र का आख्यान है, साफ्टवेयर ने टेक्सटाइल को बहुत पहले पीट दिया है।

सवाल 2. यादगार पिक्चरें जिनको फिर फिर देखना चाहते हैं। किस कारण यादगार हैं?

जवाब-गाईड,मौसम, दीवार, शोले, परिंदे-सब अलग-अलग कारणों से। गाईड अपने वक्त से बहुत आगे की फिल्म थी और यह कामयाब हुई। संबंधों की जटिलता को अलग तरह से व्य़ाख्यायित करती है यह फिल्म। मौसम बिलकुल ही अलग विषय की फिल्म थी- बाप के सामने बेटी अपना तन परोस रही है, बाप को पता है, बेटी को नहीं पता कि यह उसका बाप है। कमलेश्वर और गुलजार की जोड़ी ही यह काम कर सकती थी, इतने संवेदनशील विषय को थोड़ा भी कम परिपक्व बंदा हाथ लगाता तो फिल्म छिछोरी हो जाती। दीवार अपने वक्त की आर्थिकी राजनीति को पेश करती है। ईमान से दो वक्त की रोटी मुश्किल है और बेईमान के लिए मुंबई का पूरा आकाश है। शोले तो खैर टैक्स्टबुक पिक्चर है, किस तरह से चरित्र गढ़े जाते हैं। किस तरह से डायलाग गढ़े जाते हैं। क्या है, जो लंबे समय तक दिलो-दिमाग पर छाया रहता है। परिंदे कम चर्चित फिल्म है-विधू विनोद चोपड़ा की, इसमें नाना पाटेकर का किरदार दिमाग पर छा जाता है। नदिया के पार -यह फिल्म में कई बार देख चुका हूं, और हमेशा देख सकता हूं। सहजता से बड़ी कामयाबी कैसे मिलती है, यह फिल्म बताती है। हालांकि राजश्री वालों ने लगभग इसी थीम पर बाद में कई फिल्में बनायीं, पर नदिया के पार की बात अलग है।

सवाल 3. पसंदीदा हीरो और हीरोइन कौन हैं? हिरोइन की किस अदा पर फिदा हैं?

जवाब-अमिताभ बच्चन का जो असर हमारी पीढ़ी पर है, वैसा असर किसी का किसी भी पीढ़ी पर ना होगा। 11-12 साल की उम्र से अमिताभ बच्चन की फिल्में देखना शुरु किया-डान, मुकद्दर का सिकंदर, सुहाग, सिलसिला-अमिताभ बच्चन अल्टीमेट हैं, उन जैसी वैरायटी किसी के पास नहीं है। उनकी आवाज, डायलाग डिलीवरी कमाल है। अभिनेत्री मुझे तब्बू बहुत शानदार लगीं, पर उन्हे फिल्म जगत में वह सब नहीं मिला, जिसकी वह हकदार थीं। कलाकार का नसीब भी एक बात होती है।

सवाल 4: आपके व्यंग्य लेखन में फिल्मों की जानकारी का कितना योगदान है।

जवाब-फिल्में अर्थशास्त्र समाजशास्त्र राजनीति को एक हद तक समझाती हैं, समाज की नब्ज पर हाथ रखती हैं। समाज के तापमान का एक हद तक पता फिल्मों से चलता है। इसलिए आप कह सकते हैं कि फिल्मों का मेरे रचनाजगत में महत्वपूर्ण योगदान है।

सवाल 5: कभी किसी व्यंग्य उपन्यास/ लेख पर फ़िल्म बनने की संभावना देखते हैं ?

जवाब-राग दरबारी का सीरियलीकरण होना शुरु हुआ था, पर वह ज्यादा हो नहीं पाया। राग दरबारी अपने आप में फिल्म या सीरियल का स्त्रोत है, ज्ञान चतुर्वेदीजी के काम पर कैमरा चलना शुरु हो गया है। अगर आप मेरे काम और कैमरे का रिश्ता पूछें तो कारपोरेट पंचतंत्र की कहानियां सीरियल का रुप ले सकती हैं।

सवाल 6: आपके लेखों में राखी सावंत, मल्लिका सहरावत और सन्नी लियोनी का जिक्र अक्सर आता है। इसका क्या कारण है?

जवाब-राखीजी, मल्लिकाजी और सन्नीजी के अभ्युदय के पीछे एक आर्थिक, सांस्कृतिक,राजनीतिक परिवेश है, जो बदल रहा है। सन्नीजी आसमान से नहीं आ जाती हैं, वह तब आती हैं जब उनके लिए माहौल तैयार हो। सन्नीजी अभी केरल में गयी थीं, उनकी लोकप्रियता का वहां आलम यह था कि थोड़ी दूर चलना भी उनके लिए मुश्किल हो गया। अपने समाज का विद्यार्थी होने के नाते मेरी रुचि हर उस व्यक्तित्व में है, जिसकी बात समाज सुन रहा है या जिससे समाज किसी भी तरह से प्रभावित हो रहा है। सन्नीजी मूलत कनाडा में रहनेवाली ऐसी अभिनेत्री थीं कि जिनका एक संबंध भारत से भी रहा। अब वह भारत में सुपर स्टार हैं। बाबू आलोक नाथ के संस्कारी भारत में पूर्व पोर्न स्टार सन्नी लियोनी सुपर स्टार , यह विसंगति समझने के लिए सन्नीजी को समझना होगा। विसंगति पकड़ना व्यंग्यकार की ड्यूटी है। देखिये इंसान मूलत पाखंडी जीव है और भारतीय परम पाखंडी हैं, क्योंकि अतीत का महान विरासत का बोझ भी उन्हे ढोना है और नये जमाने की मौज भी उन्हे लेनी है। राम नामी चोला ओढ़कर सन्नी लियोनी की पोर्न फिल्म भी देखनी है। राम रहीम जैसे बलात्कारी बाबा ठीक इसी जमीन से उगते हैं। पाखंड को समझना व्यंग्यकार का काम है। सन्नी लियोनीजी धार्मिक बाबा राम रहीम से ज्यादा सम्मानित हैं। सन्नीजी का जिक्र बार-बार इसलिए होता है कि उनके बहाने इस समाज के पाखंड को उधेड़ना ज्यादा आसान हो जाता है।

सवाल 7-राखी सावंत और सन्नी लियोनी में तुलना करने को कहा जाए तो कैसे देखते इनको।

जवाब-वही जो लोकल और ग्लोबल का फर्क है। सन्नीजी की मार्केटिंग ज्यादा दुरुस्त है, वैसा ब्रांड राखीजी ना बना पायीं। राखीजी ब्रांडिंग, मार्केटिंग का वह असर नहीं समझ पायीं, जिसका इस्तेमाल सन्नीजी बखूबी बरसों से कर रही हैं।

इसके पहले की बातचीत बांचने के लिये इधर पहुंचिये https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10212457436844429

सवाल-जबाब के बारे में अपनी राय बताइये। आपको आलोक पुराणिक से कोई सवाल पूछने हों तो मुझे इनबॉक्स में भेजें या फ़िर मेल करें anupkidak@gmail.com

-----------

आलोक पुराणिक हमारे समय के महत्वपूर्ण व्यंग्यकार हैं। हम तो उनको ’व्यंग्य के अखाड़े का सबसे तगड़ा पहलवान’ मानते हैं। लेकिन खलीफा लोगों द्वारा खुद को व्यंग्य का विनम्र सेवक बताने वाले अंदाज में दस किताबों का यह लेखक खुद को 'व्यंग्य का विद्यार्थी' ही बताता है।

सबसे तगड़ा पहलवान वाली बात पर तो आलोक पुराणिक ने एतराज नहीं किया। लेकिन जब हमने उनकों ’व्यंग्य बाबा’ की उपाधि देनी चाहिये तो उन्होंने तत्काल एतराज करते हुये खुद को ’व्यंग्य बाबा’ मानने से मना कर दिया। आज जब हरियाणा में बाबा राम रहीम की जो दशा हुई उससे लगा कि ये व्यंग्यकार अपने समय से कितने आगे देखता है।

आलोक पुराणिक सितम्बरी लाल हैं। 30 सितम्बर को 51 को हो लेंगे आलोक जी। हम उनके और उनके लेखन के काफ़ी लम्बे समय से प्रशंसक हैं। व्यंग्य में कई प्रयोग किये हैं आलोक पुराणिक ने। करते रहते हैं। हाल में ’फ़र्स्ट पोस्ट’ के एकलाइना आने लगे हैं। उनके पाठकों की संख्या काफ़ी है। मेरी समझ में आज के समय में सबसे अधिक पढे जाने वाले व्यंग्यकार हैं आलोक पुराणिक।

आलोक पुराणिक की सबसे अच्छी खूबियों में यह है कि वे बेफ़ालतू की बातों में समय बरबाद करने की बजाय लिखने-पढने के काम में लगे रहते हैं। दूसरों को भी सलाह देते रहते हैं ऐसी ही। उनका कहना है आगे बढने के लिये या तो ’वर्क चाहिये या फ़िर तगड़ा नेटवर्क’। आलोक पुराणिक नेटवर्क की बजाय वर्क पर भरोसा करते हैं।

ये तो हुई भूमिका टाइप। अब काम की बात यह कि आलोक पुराणिक के 51 वें जन्ममाह के अवसर पर मेरा विचार उनसे रोज विभिन्न मुद्दों पर सवाल करने का है। शुरुआत आज से कर रहे हैं। आप भी अगर कोई सवाल करना चाहें तो मुझे इनबॉक्स में भेजें या फ़िर ईमेल करें anupkidak@gmail.com पर। सवाल-जबाब के अलावा आलोक पुराणिक पर सितम्बर माह में नियमित लेखन की कोशिश भी जारी रहेगी। इनमें आलोक जी के ’व्यंग्य पंच’ होंगे, उनके बारे में लेख होंगे और उनकी खिंचाई भी होगी तारीफ़ के साथ। इसके अलावा इरादा तो इस सबको इकट्ठा करके किताब बनाने का भी है। कितना हो पाता है यह समय बतायेगा।

आज आलोक पुराणिक से जो सवाल हुये वो किताबों के बारे में। आप भी सवालों को मुलाहिजा फ़र्मायें।

1. सवाल: पढ़ने की शुरुआत कैसे हुई? सबसे पहले पढ़ी यादगार किताब/किताबें कौन हैं?

जवाब: मेरी नानी के यहां बहुत तरह की किताबें-पत्रिकाएं आती थीं। बहुत छोटेपन में यानी छह-सात साल की उम्र में ही उनके यहां चंदामामा, कल्याण, दिनमान, धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान आदि पत्रिकाएं देखीं। आठ साल की उम्र में आगरा में एक स्वर्गीय हेमचंद्र जैन के परिवार से संपर्क में आया। हेमचंद्रजी लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन में काम करते थे, उनकी व्यक्तिगत लाइब्रेरी जितनी दिव्य थी, वो मैंने दिल्ली में बड़े बड़े प्रोफेसरों और पत्रकारों के यहां भी नहीं देखी। उस दौर की हर पत्रिका, हर कामिक्स उनके यहां आती थी। वहां बहुत पढ़ाई की। नाच्यौ बहुत गोपाल-अमृतलाल नागर की बहुत कम उम्र में पंद्रह-सोलह में पढ़ ली थी। कमाल था यह उपन्यास। बीकाम में आते ही राग दरबारी-श्रीलाल शुक्ल पढ़ा। इसने बाकायदा जादू किया। पर तब मैं व्यंग्य लेखन से बहुत दूर था। व्यंग्य लेखन करुंगा कभी, तब तो यह भी ना सोचा था। आर्थिक पत्रकार, कामर्स से जुड़े काम-धंधे करुंगा, तब यही सोचता था।

2. सवाल: अभी तक कि पढ़ी बेहतरीन किताबें जो एकदम याद आयें वो कौन हैं।

जवाब : राग दरबारी-श्रीलाल शुक्ल, हम ना मरब-ज्ञान चतुर्वेदी, छावा-शिवाजी सावंत,वे दिन-निर्मल वर्मा, दीवाने गालिब, दीवाने मीर,नासिर काजमी और जौन एलिया-बिलकुल अलग ढंग के शायर हैं इनका काम। बैंकर टू दि पुअर-डा मुहम्मद युनुस।

3. सवाल: कौन सी किताबें न पढ़ पाए अब तक जिनको पढ़ने का मन है।

जवाब: ओशो का कहा सारा अब किताबों की शक्ल में है, वह पढ़ना है। राम मनोहर लोहिया की लिखी-बोली एक एक लाइन पढ़नी है। कार्ल मार्क्स का लिखा कहा एक एक शब्द पढ़ना है। सुशोभित शक्तावत की लिखा सब कुछ पढ़ना है। अमेरिकन निवेशक वारेन बूफे की आत्मकथा पढ़नी है। वैल्युएशन पर डाक्टर दामोदरन का लिखा सब कुछ पढ़ना है। बहुत पढ़ना है, पढ़ना ही है।

4. सवाल: हालिया पढ़ी गई और पढ़ी जा रही किताबों के नाम और खासियत।

जवाब: राममनोहर लोहिया के लोकसभा में दिये गये भाषण पढ़ रहा हूं, दूसरा खंड। कमाल बात करते थे लोहियाजी, मुल्क की वैसी गहरी समझ कम नेताओं में रही है। खुलकर पूरी दबंगई से वो लाल बहादुर शास्त्री को डपटते थे।वैसी हिम्मत और मेधा कम नेताओँ को नसीब हुई।

5. सवाल: अपनी पहली किताब के अलावा कौन किताब सबसे ज्यादा पसन्द है।

जवाब-कारपोरेट पंचतंत्र, नोट कीजिये मेरे जाने के बाद मेरी एकमात्र किताब यही होगी जो मेरे ना रहने के बहुत बाद तक रहेगी।

6. सवाल: किताबें पढने के लिए चुनते कैसे हैं?

जवाब-कामर्स का प्राध्यापक होने के नाते, आर्थिक पत्रकार होने के नाते, व्यंग्यकार होने के नाते, पढ़ने का दायरा बहुत व्यापक है। इतिहास से लेकर शेयर बाजार तक सब कुछ आ जाता है। कोई भी किताब जो कुछ नया कहती दिखती है, खरीद लेता हूं।

7. सवाल: पढ़ते कब, कैसे हैं। पढ़ने की स्पीड क्या है?

जवाब: जहां जब वक्त मिल जाये बैग में किताबें होती हैं हमेशा। स्पीड अच्छी खासी है। साल में मोटे तौर पर कम से कम आठ-दस किताबें तो कम से कम पढ़ ही लेता हूं, अलग अलग विषयों की।

---

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: लोकप्रिय व्यंग्यकार आलोक पुराणिक से सवाल जवाब : जिसको जो लिखना है, उसे वह लिखने की छूट होनी चाहिए -आलोक पुराणिक
लोकप्रिय व्यंग्यकार आलोक पुराणिक से सवाल जवाब : जिसको जो लिखना है, उसे वह लिखने की छूट होनी चाहिए -आलोक पुराणिक
https://lh3.googleusercontent.com/-LuiADHAxOL8/Wa4igdzXxKI/AAAAAAAA6vY/7kwQbWWFJdgPkGogbFw0VmQc6mFu99HtwCHMYCw/image_thumb?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-LuiADHAxOL8/Wa4igdzXxKI/AAAAAAAA6vY/7kwQbWWFJdgPkGogbFw0VmQc6mFu99HtwCHMYCw/s72-c/image_thumb?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/09/blog-post_5.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/09/blog-post_5.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content