साहित्य समाज का यथार्थ है न कि दर्पण // सुशील शर्मा

SHARE:

समाज और जीवन दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं । आदिकाल के वैदिक ग्रंथों व उपनिषदों से लेकर वर्तमान साहित्य ने मनुष्य जीवन को सदैव ही प्रभावित क...

समाज और जीवन दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं । आदिकाल के वैदिक ग्रंथों व उपनिषदों से लेकर वर्तमान साहित्य ने मनुष्य जीवन को सदैव ही प्रभावित किया है ।साहित्य की ही अद्‌भुत व महान शक्ति है जिससे समय-समय पर मनुष्य के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिलते हैं । साहित्य की परम्पराओं और अंतर्दृष्टि का आंकलन करें  तो हम पाते हैं कि  समाज में व्याप्त विभिन्न विसंगतियों पर प्रहार करने और विद्रूपताओं को उजागर करने के लिए साहित्य सबसे महत्वपूर्ण भूमिका में नजर आता है।  इस काम को आगे बढाने के लिए स्त्री-विमर्श, दलित-विमर्श, आदिवासी विमर्श जैसे अनेक विमर्शों के माध्यम से हस्तक्षेप किया जा रहा है। जीवन और साहित्य का अटूट संबंध है । साहित्यकार अपने जीवन में जो दु:ख, अवसाद, कटुता, स्नेह, प्रेम, वात्सल्य, दया आदि का अनुभव करता है उन्हीं अनुभवों को वह साहित्य में उतारता है । इसके अतिरिक्त जो कुछ भी देश में घटित होता है जिस प्रकार का वातावरण उसे देखने को मिलता है उस वातावरण का प्रभाव अवश्य ही उसके साहित्य पर पड़ता है। अगर साहित्यकार में  ,दृष्टि  और प्रतिबद्धता  है तो उसकी रचना  जीवित, प्रासंगिक व वैश्विक रहेगी। और जिसमें नहीं है,  उसकी रचना न तो बहुत जीवंत रहेगी न सार्थक रहेगी।

इतिहास के पृष्ठों को पलट कर देखें तो हम पाते हैं कि साहित्यकार के क्रांतिकारी विचारों ने राजाओं-महाराजाओं को बड़ी-बड़ी विजय दिलवाई है । अनेक ऐसे राजाओं का उल्लेख मिलता है जिन्होंने स्वयं तथा अपनी सेना के मनोबल को उन्नत बनाए रखने के लिए कवियों व साहित्यकारों को विशेष रूप से अपने दरबार में नियुक्त किया था । प्राचीन काल में भारतीय सभ्यता अति समृद्ध थी. हमारी सभ्यता इतनी उन्नत थी कि हम आज भी उस पर गर्व करते हैं. किसी भाषा के वाचिक और लिखित सामग्री को साहित्य कह सकते हैं. विश्व में प्राचीन वाचिक साहित्य आदिवासी भाषाओं में प्राप्त होता है. भारतीय संस्कृत साहित्य ऋग्वेद से प्रारंभ होता है. व्यास, वाल्मीकि जैसे पौराणिक ऋषियों ने महाभारत एवं रामायण जैसे महाकाव्यों की रचना की. भास, कालिदास एवं अन्य कवियों ने संस्कृत में नाटक लिखे, साहित्य की अमूल्य धरोहर है. भक्त साहित्य में अवधी में गोस्वामी तुलसीदास, बृज भाषा में सूरदास, मारवाड़ी में मीरा बाई, खड़ीबोली में कबीर, रसखान, मैथिली में विद्यापति आदि प्रमुख हैं.

मध्यकाल में भूषण जैसे वीररस के कवियों को दरबारी संरक्षण एवं सम्मान प्राप्त था । बिहारीलाल ने अपनी कवित्व-शक्ति से विलासी महाराज को उनके कर्तव्य का भान कराया था । संस्कृत के महान साहित्यकारों कालीदास और बाणभट्‌ट को अपने राजाओं का संरक्षण प्राप्त था ।

” नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास इहिं काल । अली, कली सी सौं बँध्यो आगैं कौन हवाल ।”

भारत की आजादी के 70 वर्ष पूरे हो चुके हैं। 15 अगस्त, 1947 से शुरू हुर्इ इस यात्रा में जहाँ जमींदारी-जागाीरदारी प्रथा का उन्मूलन अस्पृश्यता उन्मूलन, ग्राम-भूदान आंदोलनऋ पंचवर्षीय योजनाएँ, पंचायती राज सत्ता का विकेंद्रीकरण,औद्योगीकरण -शहरीकरण, मिश्रित अर्थव्यवस्था, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, प्रीवीपर्सों की समाप्ति आपातकाल एवं इंदिरा-युग का उत्थान व पतन कांग्रेस के एक छत्रराज का अंत व बहुदलीय सरकार या गठबंध्न राजनीति की शुरुआत वैश्वीकरण की असंख्य प्रक्रियाओं का विस्फोट भारत की नेहरूकालीन वैदेशिक नीति में परिवर्तन व यूरो-अमेरिकी शिविर की अनुचरी जैसी घटनाओं को 'मील का पत्थर कहा जा सकता है।  वहीं इसके समानांतर भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था की त्रासदियों, विरूपताओं, विडंबनाओं आदि की भी यात्रा चलती रही है। इस यात्रा के रूप में भारत विभाजन की बेशुमार पीड़ाएं आधुनिकता के प्रयोग के साथ-साथ सामंती मूल्य व्यवस्था की निरंतरता कृषि भारत का विपन्नीकरण किसानों की आत्महिंसा का ज्वार नक्सलवादी-माओवादी आंदोलन की शक्ल में ग्रामीण-आदिवासी भारत के असंतोष का विस्पफोट मंडल-कमंडल आंदोलन व सामाजिक-सांप्रदायिक सौहाद्र् का  बिखराव दलित व स्त्री अस्मिता का उभार अपसंस्कृति  का प्लावन परिवार का विखंडन व तथाकथित मध्यमवर्ग का  बढ़ता वर्चस्व राज्य का जन से विलगन जैसी परिघटनाओं को गिनाया जा सकता है।

अपने समय और समाज से साहित्यकार का गहरा नाता होता है। एक संवेदनशील प्राणी होने के नाते यह संभव नहीं है कि वह अपने देश और विश्व में होने वाली घटनाओं से निरपेक्ष और निर्द्वंद्व होकर रहे। वह अपने लेखन के द्वारा उन सब चुनौतियों और समस्याओं को जरूर अभिव्यक्ति  देता है जो उसे विचलित करते है। वह न केवल अभिव्यक्ति  देता है, बल्कि वह अपेक्षा भी करता है कि उसका साहित्य पढ़ने वालों में नर्इ चेतना पैदा करे। वह बेहतर दुनिया बनाने के उसके संघर्ष में भागीदार बने।

साहित्य में भी स्त्री  और दलित स्वर पहले के किसी भी दौर से अधिक व्यापक और मुखर हुआ है। आजादी के बाद के हिंदी साहित्य को पूंजीवादी विकास के साथ भी जोड़ा जाता है। उसने हमारे समय और समाज को विविध् रूपों और दृष्टियों से पेश किया है। आज हमें यह विचार करना है कि क्या साहित्य  वर्तमान परिदृश्य में अपनी सार्थक भूमिका निभा रहा है? क्या यह आजादी के बाद के यथार्थ को अभिव्यक्ति प्रदान करने में सक्षम रहा है और क्या वह अनुभूति और अभिव्यक्ति से आगे जाकर अपने पाठकों को मानसिक विकास  की ओर अग्रसर कर सका है? मानसिक विकास  राजनीतिक अर्थों में नहीं बल्कि  चेतना और दृष्टि  के स्तर पर भी है।   

आज के परिवेश में  व्यवस्था या अनुभूत घटनाओं का यथार्थ नहीं होता, बल्कि ऐतिहासिक या स्मृति का यथार्थ भी होता है, जिसने आज को बनाने में महती भूमिका निभार्इ होती है। पर जो साहित्य  को, मात्रा वृतांत या दस्तावेज से अलग बनाता है, वह घटित यथार्थ का विवरण नहीं, रचना में घुली-मिली, चिंतन से उत्पन्न लेखक की जीवन दृष्टि होती है।

साहित्य के  स्वरूप में उसका यथार्थ ही व्यंजित होता है, बल्कि अधिक तीक्ष्ण और विचारोत्तेजक ढंग समकालीन व्यवस्थाओं को उकेरने की क्षमता होनी चाहिए । क्योंकि वह समकालीन व भावी यथार्थ के विद्रूप और मोहभंग को उभारता है। इसीलिए वह पाठकों की दृष्टि और चेतना को विस्तृत, मुक्त और परिपक्व करने में, ज्यादा सटीक और प्रेरक भूमिका निभाता है। मुक्तिबोध ने कहा था, साहित्य  में अनुभूत का वह स्वरूप पुनर्सृजित है, जो स्मृति, कल्पना आदि से समृद्ध  हो। जैनेंद्र ने भी रचना में अनुभूति और चिंतन पर समान बल दिया था।

साहित्य का सबसे बड़ा कार्य अपने समय में उसका होना है यानी साहित्य एक नैतिक कर्म है। पशिचम में इस पर काफी बहस हुर्इ है। मिजेनेर तो यहां तक मानते हैं कि नैतिक समस्या ही साहित्यकार को विचलित करती है और वह संयत तथा तार्किक ढंग से उसका मुकाबला करता है। डी.एच. लारेन्स भी कहते हैं कि साहित्य इसीलिए विशिष्ट है कि वह जिंदगी के बारे में होता है। साहित्य की नैतिकता जिंदगी से जुड़ी है  और कदाचित इसकी प्रतिबद्धता भी, पर प्रतिबद्धता की यांत्रिकता की साहित्य  को दरकार नहीं है। प्रतिबद्धता साहित्य में एक दृष्टि के रूप में अवश्य होना चाहिए, पर किसी भी किस्म की क्षेत्रीयता , स्थानीयता जैसी विचारधाररत्मक प्रतिबद्धताएं साहित्य को यांत्रिक बना देती हैं। प्रतिबद्धताएं  अपने से, अपने समाज से और अपने समय से अवश्य होनी चाहिए ,क्योंकि वह साहित्य  का नैतिक तकाजा है, लेकिन प्रतिबद्धताएं विचारधारात्मक घोषणा-पत्र न बन जाए ये देखना जरूरी है । यह देखा गया है कि अपने यहां लेखक संगठनों के लोग प्रतिबद्धता  का यांत्रिक इस्तेमाल कर रचनाओं के वैशिष्टय को नष्ट कर देते हैं। संगठन चूंकि उनके प्रसार में सहायक होता है, इसीलिए वे लेखक बन जाते हैं, पर वे जनता में जगह नहीं बना पाते।

पिछले छह दशकों में, साहित्य में उन क्षेत्रों, अंचलों, जातियों, वर्गों को स्थान मिला है, जिन्हें अब तक नहीं मिला था। और अधिकतर भुक्तभोगियों के लेखन द्वारा। स्त्री और दलित इसी श्रेणी में आते हैं। जब भुक्तभोगी अपना अनुभव स्वयं लिखता है तो निश्चय ही उसका स्वरूप उससे भिन्न होता है, जो संवेदनशील दर्शक या चिंतक उसके बारे में लिखता है। पर समग्र सत्य या यथार्थ को ग्रहणशील बनाने में, दोनों महत्वपूर्ण हैं।

साहित्य की पाठकों की चेतना को विवेक-संपन्न बनाने में अहम भूमिका होती है। अति में व्यंजित जीवन-दृष्टि की होती है। इसलिए नहीं कि उसके केंद्रीय पात्र पुरुष हैं या स्त्री । महत्वपूर्ण यह नहीं है कि पात्र कहां से उठाए गए हैं या वे क्या कहते हैं,बल्कि यह कि वे विभिन्न जीवन-सिथतियों में क्या करते हैं। उनके किए को पढ़कर ही, पाठक रूढि़गत मान्यताओं व अन्याय से प्रतिरोध् करने की प्रेरणा पा सकता है। इसलिए यह सहज संभव है कि कोर्इ स्त्री-केंद्रित साहित्यिक रचना , इतिहास, राजनीति, समाज, और व्यवस्था के विद्रूप की सक्षम और सूक्ष्म व्यंजना करे जैसे पटरंगपुर पुराण या कठगुलाब और पुरुष-केंद्रित साहित्य ,स्त्री वादी  विमर्श का सबल प्रतिपादन करे, जैसे अनित्य और जिंदगीनामा आदि।  पिछले दो-तीन दशकों से हमारा अधिकतर साहित्य नगर केंद्रित  होता गया है। गांव-कस्बे का अनुभव, वहां की सामाजिक विसंगतियां, वहां के संघर्ष और वहां की जनता की आकांक्षाएं नगरीय लेखकों के अनुभवों का हिस्सा नहीं रह पार्इ हैं, इसलिए यांत्रिकता का दबाव बढ़ गया है। भाषा भी संकुचित हो गर्इ हैµ उसमें बड़े अनुभवों की जगह भी नहीं है। अलग-अलग अस्मिताओं को व्यक्त करने वाले चरित्रों  का भाषिक वैविध्य  अब गायब ही हो गया है। अब यथार्थवाद रचना की अंतर्वस्तु का हिस्सा नहीं होता, कथा के सीधे विन्यास में अमिधा में व्यक्त होता है, यह साहित्य  सबसे बड़ा संकट है।

साहित्य समाज का दर्पण है कहने की जगह अगर हम कहें कि साहित्य, यथार्थ का दर्पण होता है,क्योंकि दर्पण में छवि हमेशा विपरीत होती है दर्पण में सीधा उल्टी तरफ दाएं बाएं और बाएं दाएं दिखता है। वह आपकी सही छवि नहीं दिखाता। मगर साहित्य जो होता है, वो कसौटी का पत्थर होता है। वो आपको एक दृष्टि देता है।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: साहित्य समाज का यथार्थ है न कि दर्पण // सुशील शर्मा
साहित्य समाज का यथार्थ है न कि दर्पण // सुशील शर्मा
https://lh3.googleusercontent.com/-ZSb6ACXpB7E/VqXnjjcBnDI/AAAAAAAAqso/wus_uBW_li4/image_thumb%25255B2%25255D.png?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-ZSb6ACXpB7E/VqXnjjcBnDI/AAAAAAAAqso/wus_uBW_li4/s72-c/image_thumb%25255B2%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/10/blog-post_6.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/10/blog-post_6.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content