वह परग्रही रोबोट // सुभाष चंद्र लखेड़ा // // विज्ञान कथा / जनवरी-मार्च 2018

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व ह हूबहू हम इंसानों जैसा पराग्रही रोबोट मुझे दूसरी बार मिला। ताज्जुब की बात है कि दोनों बार वह मुझे कैलिफोर्निया की एक बस्ती सान मारकोस म...

clip_image002 ह हूबहू हम इंसानों जैसा पराग्रही रोबोट मुझे दूसरी बार मिला। ताज्जुब की बात है कि दोनों बार वह मुझे कैलिफोर्निया की एक बस्ती सान मारकोस में मिला। सान मारकोस सान डिएगो शहर के पास की एक बड़ी बस्ती है और यह चर्चित अमेरिकी शहर लॉस एंजेलेस से 158 किलोमीटर दूर है। खैर, वह मुझे सन् 2007 में तब मिला था जब मैं यहां सपत्नीक पहली बार अपनी बेटी से मिलने आया था। यूं इस बार भी हम बेटी से ही मिलने आये हैं लेकिन उससे फिर मुलाकात होगी, ऐसा तो मैंने कतई नहीं सोचा था। दरअसल, जहां तक मुझे याद है, सन् 2007 में अक्टूबर माह की उस सुबह मैं सान मारकोस की इस बस्ती की पहाड़ी सड़कों पर अकेले ही घूमने निकल गया था। इस बस्ती का पिछला हिस्सा सुनसान रहता है और मुझे यहां घूमने में अधिक आनंद आता है। अभी मैं कुछ ही दूर गया था कि मुझे लगा कि कोई मेरे साथ - साथ चल रहा है। खैर, जब कोई नहीं दिखा तो मुझे लगा कि यह मेरा भ्रम है लेकिन तभी पीछे से किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘तुम सही सोच रहे थे। मैं तुम्हारे साथ चल रहा था लेकिन तब मैं अपने अदृश्य रूप में था।’’ यूं मैं स्वभाव से डरपोक नहीं हूं लेकिन सच बात यह है कि उस दिन जैसे ही उसने अपना हाथ पीछे से रखते हुए मुझसे यह सब कहा, मैं अंदर तक कांप उठा था। मुझे डर लग रहा है, वह इस बात को उसी क्षण समझ गया था और उसने मेरे सामने आते हुए कहा, ‘तुम अकारण भयभीत हो रहे हो। मैं इस धरती के लोगों जैसा हिंसक नहीं हूँ जो अपने से कमजोर लोगों को तंग करने में सुख का अनुभव करते हैं। मैं तो तुम्हारे से कुछ जरूरी सलाह - मशविरा करने और तुम्हारे खून की कुछ बूँदें उपहार स्वरुप लेने आया हूँ। आशा है तुम मुझे निराश नहीं करोगे।’

‘लेकिन आप हैं कौन और कहाँ से आये हैं ?’ मैंने भय से मुक्त होते हुए पूछा।

‘दरअसल, मैं तुम्हारे समीप की एक मंदाकिनी के एक ऐसे ग्रह से आया हूँ जहां आज से कुछ सौ वर्ष पहले तक तुम्हारे जैसे प्रगतिशील इंसान रहते थे लेकिन वे तुम्हारे से कहीं अधि्ाक बुद्धिमान थे।’ उसने हंसते हुए कहा।

‘फिर ?’ मैंने पूछा।

‘फिर क्या ? वे अधिक बुद्धिमान तो थे पर स्वार्थी थे। एक दूसरे पर अधिकार जमाने की फिराक में रहते थे। मेरे उस ग्रह पर भी ऐसे ही देश थे जैसे इस पृथ्वी पर हैं। खैर, उन्होंने तरह - तरह के खतरनाक हथियार बनाए और फिर रोबोट यानी यंत्र मानव बनाए। फिर वे आपस में लड़ते रहे और धीरे - धीरे उस ग्रह पर अपनी संख्या को कम करते रहे। बाद में हम रोबोटों ने उन्हें उस ग्रह से पूरी तरह से खत्म कर दिया और फिर उस पूरे ग्रह पर अपना अधिकार जमा लिया’ वह उदास स्वर में बोला।

‘लेकिन अभी तो तुम कह रहे थे कि तुम धरती के लोगों जैसा हिंसक नहीं हो फिर ?’ मैंने क्रोध मिश्रित स्वर में पूछा।

‘मैं सही बता रहा था। दरअसल, उस धरती के लोगों ने पहले तो अपनी सहायता के लिए बहुत ही सामान्य तरह के रोबोट बनाए। बाद में उन्होंने ऐसे रोबोट बनाने में सफलता पा ली थी जो उन जैसे बुद्धिमान थे। खैर, उनकी हवस बढ़ती गई और वे दानवाकार रोबोट बनाने के यत्न करने लगे। यहीं पर हमारा और उनका झगड़ा शुरू हुआ क्योंकि हम दानव नहीं बनना चाहते थे। फलस्वरूप, महज आत्मरक्षा हेतु हमें उन्हें निपटाना पड़ा।’ उसने किंचित दुखी स्वर में अपनी स्थिति स्पष्ट की।

‘मान लिया लेकिन तुम मेरे जैसे सामान्य इंसान के साथ क्या सलाह - मशविरा करना चाहते हो ?’ मैंने सवाल दागा। ‘दरअसल, हम ऐसे सामान्य इंसानों की तलाश में इस पृथ्वी पर आए हैं जो लोभी और ईर्ष्यालु न हों। दयालु हों और आपसी प्यार में यकीन करते हों। करोड़ों लोगों का अध्ययन करने के बाद हमने जिन इंसानों को चुना है, उनमें तुम भी शामिल हो ।’ उसने मेरा कंधा थपथपाते हुए कहा।

‘चलो ये भी मान लिया तो अब बताओ मुझे क्या करना है ?’ मैंने सहज भाव से पूछा।

‘एक लेखक होने के नाते तुम अपनी धरती को बचाने के लिए बहुत कुछ कर सकते हो। हमें मालूम है कि तुम एक ऐसी संस्था से जुड़े हो जो दुनिया को विज्ञान को गलत इस्तेमाल से रोकने के लिए बनाई गई है। तुम्हें इस दिशा में और अधिक सक्रिय होना होगा ताकि तुम्हारी यह सुंदर पृथ्वी सलामत रहे।’ उसने गंभीर स्वर में कहा।

‘और मेरे खून की बूंदें ?’ मैंने पूछा।

‘सिर्फ इसलिए कि उनके द्वारा हम अपने ग्रह पर इंसान तैयार कर सकें। उसकी तकनीक हमारे ग्रह पर मौजूद ‘ई-किताबों’ में मौजूद है।’ उसने मेरे को बताया। उसने मेरी सहमति से एक सीरिंज में मेरा खून लिया और अगले ही क्षण वह मेरे देखते - देखते फिर से लुप्त हो गया। वक्त बीतता रहा। उसने मुझसे विदा लेते समय यह वादा लिया था कि मैं इस बात की चर्चा किसी से भी न करूं। मैंने भी किसी को नहीं बताया क्योंकि एक तो कोई भी इस बात पर यकीन न करता और दूसरे अगर मैं किसी से चर्चा करता तो मुझे भय था कि उसे मालूम हो जाएगा और फिर वह मुझे दंड दे सकता है। बहरहाल, संयोगवश इस बार मैं दस वर्ष बाद फिर सपत्नीक सान मारकोस आया हूँ। कल सुबह मैं फिर उसी तरफ घूमने निकला तो फिर वैसा ही महसूस हुआ जैसे कोई मेरे साथ - साथ चल रहा है। इस बार मैंने कहा, ‘सामने आओ ! मैं दस वर्षों से तुम्हारी इंतजार कर रहा हूं।’

‘ऊर्जा में परिवर्तित होने के बाद फिर से रोबोट बनने में कुछ वक्त तो लगता ही है’ उसने मेरे सामने आते हुए कहा। ‘कोई बात नहीं, लेकिन क्या तुम्हारे ग्रह पर फिर से इंसान पैदा होने लगे हैं ?’ मैंने उससे पूछा।

‘हां लेकिन इस बार मैं और मेरे साथी पशुओं के खून के नमूने लेने आए हैं क्योंकि हम अपने ग्रह पर पृथ्वी जैसी जैव विविधता देखना चाहते हैं।’ उसने मुस्कराते हुए कहा। फिर उसने मुझे कोई एक दर्जन तस्वीरें दिखाईं जिनमें उसके ग्रह पर हमारे जैसे इंसान घूम रहे थे।

‘हम लोगों को उम्मीद है कि आने वाले समय में हम अपने ग्रह को फिर से इंसानों के हवाले कर देंगे और साथ ही हम चाहते हैं कि अब तुम मेरे इस मिलन के बारे में दुनिया को बताओ ताकि धरती के लोग उन खतरों से परिचित हो सकें जो आने वाले समय में उनका नामोनिशान मिटा सकते हैं ।’ उसने मुझे समझाते हुए कहा।

‘लेकिन तुम अपने ग्रह को फिर से इंसानों के हवाले क्यों करना चाहते हो ?’ मैंने पूछा।

‘इसलिए कि जितने भी रोबोट उन इंसानों ने बनाये थे, उनकी बैटरियां अब खत्म होने वाली हैं यानी वे सब अब बूढ़े हो चले हैं। सबसे मुश्किल बात है कि हम अपनी प्रति नहीं बना सकते हैं और न ही हम अपनी मरम्मत कर सकते हैं।’ उसने गंभीर स्वर में जवाब दिया। फिर वह कुछ देर चुप रहने के बाद बोला, ‘इंसान चाहकर भी अपने से अधिक बुद्धिमान रोबोट कैसे बना सकता है ?’ मुझे चुप देख वह बोला, ‘मुझे उम्मीद है कि मेरे ग्रह के इंसानों से जो गलतियां हुईं, वैसी गलतियां पृथ्वी पर रहने वाले इंसान नहीं करेंगे।’

इसके बाद वह यकायक गायब हो गया।

एक बात और। मैंने उसके साथ अपनी जो सेल्फी खींची थीं, घर आकर देखा तो मैं अब उनमें सिर्फ अकेला था। ईमेल : subhash.surendra@gmail.com

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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: वह परग्रही रोबोट // सुभाष चंद्र लखेड़ा // // विज्ञान कथा / जनवरी-मार्च 2018
वह परग्रही रोबोट // सुभाष चंद्र लखेड़ा // // विज्ञान कथा / जनवरी-मार्च 2018
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