धनञ्जय द्विवेदी की कविताएँ

SHARE:

1.. मैं जाता हूँ ....... भूल गये हो क्या तुम, कहना फिर आना | तुमने तो देखा होगा घन का मंडराना || फिर टिप-टिप करती, बूंदों का गिरना |...

snip_20171118142358

1..

मैं जाता हूँ .......

भूल गये हो क्या तुम,
कहना फिर आना |
तुमने तो देखा होगा
घन का मंडराना ||

फिर टिप-टिप करती,
बूंदों का गिरना |
नभ से गिरती बूंदों का
कमलों पर पड़ना ||

मोती बन पानी के बूदों का,
कमल दलों पर तिरना |
तुमने तो देखा होगा ,
बादल का घिरना ||

जब कोई अपने अश्क बूंद, अपनाता है |
तब आँसू मोती इसी तरह,
बन जाता है ||

पर मित्र मेरे तुम कमल ,
नहीं बन पाये |
मेरे अश्कों को वहन नहीं
कर पाये||

इसीलिए मैं बार- बार,
दोहराता हूँ |
हे मित्र! छोड़कर तुम्हें
आज जाता हूँ ||

एक बार अगर कह देते
फिर तुम आना |
अपने अश्कों में स्वाति बूंद,
को लाना||

मैं सीपी बन वहन तुम्हें,
कर लूंगा|
सच कहता हूँ न खलता
मुझको जाना||

*2.*

सब कुछ उतार दिया था


मैने तुम्हारे लिए........
अब चली गयी हो तो पहन लूंगा
वह सभी जो मैने उतारा था
तुम्हारे लिए......

बिना पहने रह नहीं सकता हूँ,
इस अद्यतन समाज में
यह समाज आदी नहीं है
मनुष्य के उस रूप का
शायद इसीलिए तुम भी
छोड़कर चली गयी
सामाजिक प्राणी जो हो......

जिस दिन तुमको देखा था
उसी दिन ,उतार दिया अहं को मैंने,
झाड़ दी थी सारी  नाराजगी
व्यस्ततायें उतार कर टांग दी थी खूंटी पर,

स्वार्थ के अन्तर्वस्त्र को
उतार कर रख दिया था
परमार्थ के कबर्ड में.....

इसी तरह, आलस्य, जड़ता,
दुष्टता ,अभद्रता और बहुत से
ऐसे ही वस्त्र उतार कर रख दिए थे
मैंने तुम्हारे लिए.......अब

फिर भी तुम चली गई
अर्वाचीन समाज का हिस्सा जो हो.....

*3. दशहरी आम और मित्र*


हे मित्र !
तुम मुझे बहुत याद आते हों,
पर आते हो
तो मेरे बाग के दशहरी आमों की तरह
जी उबा जाते हो
हे मित्र !
तुम मुझे बहुत याद आते हो||

पर क्या करूं मैं माँ नहीं हूँ,
न मेरे पास उनका नुसख़ा ही है
नहीं तो आमों से
जी ऊबने के बाद
जिस तरह
माँ बना लेती है अमावट
जिसे बाद में बड़े प्यार से
चबा- चबा खाता हूँ ,
बिन मौसम आम के स्वाद को पाता हूँ||

मैं भी मौसमी आमों की तरह
तुम्हारे आने पर ,
साथ रहकर जी को उबाने पर
बना लेता तुम्हारी यादों का अमावट
फिर तुम्हारे जाने के बाद
तुम्हारे साथ का लुत्फ लेता

*4.याद का इनबाक्स***


_____________________
मैं सुनाऊंगा तुम्हें,
इक गीत सुन्दर आज
आओ बैठो पास मेरे
छोड़कर सब काज

गीत यह न प्यार का
मनुहार का भी है नहीं
गीत यह न छंद का है
बन्द इसमें भी नहीं

बात है इसमें नहीं
कुछ मित्र मेरे खास
है नहीं यह और कुछ
है याद का इनबाक्स

एक लड़की है हमारे
गाँव के संसार  में
जाति की ओछी मगर,
क्या रूप दी सरताज ने

बातें उसकी थी सुकोमल
गात भी सुन्दर सा कोमल
पर नहीं रह सकती थी
वह, साथ ऊंची जाति में

उम्र सोलह की हुई
तो देख उसके गात
ब्राह्मणों व ठाकुरों ने
खूब की उपहास

है नहीं सुधई की बेटी
बात यह होने लगी
मां कलंकित रात दिन
उसकी सदा होने लगी

अब उसे गलियों में चलना
हो गया दुस्वार...
छेड़ते थे सब उसे
कहते थे कर लो प्यार

प्यार से ,मनुहार से,
जीत से या हार से
किसी के उपकार से
तो किसी के अपकार से

प्यार वह करने लगी
एक से नहीं अनेक से
वह सरोज सौन्दर्य के सुगन्ध को
लुटाने लगी हर एक भंवर पर

आज उसको भी कलंकनी
लोग सब कहने लगे
मिलने को सोचा था मैंने
फबतियां कसने लगे

सोचता हूँ बैठ कर
है कलंकित कौन
बुद्धि भी कुछ सोचकर
हो गयी है मौन

इसलिए तुमको सुनाता
गीत हूं यह आज
है नहीं यह और कुछ
है याद का इनबाक्स

*5.हाँ एक दिन*


_________________________
हाँ एक दिन मिला था
तुम्हारा साथ,
मुझे याद है
खो गया था मैं,
तुम्हारे गजरे के गमक में नहीं
भविष्य के चमक में....
सोचा था चलूंगा एक साथ
उस घाट तक......
जहाँ पहुंचकर छूट जाता है
सब कुछ यहाँ तक
कि यह पंचतत्व भी

हाँ एक दिन .....
छूट जाता है पंचतत्व भी,
याद आते ही सिहर उठी थी
मेरी ज्ञानेन्द्रियाँ.......
जैसे अचानक रेत दाँत के नीचे पिसकर सिहरा देती है ,
शरीर को.........

हाँ एक दिन
सिहरा था मेरा मन,
तुम्हारे प्रेम में...

हाँ एक दिन
सिहरी थी ज्ञानेन्द्रियाँ
उस घाट के याद में....

हाँ एक दिन
सिहरा था शरीर
रेत की दाँत के नीचे पिसने की
कल्पना में......

इतने सारे सिहरन को
मैं झेल न सका
और हो गया मैं
अकेला छोड़ तेरा साथ
उसी दिन ....
हाँ एक दिन

*13.पैर की मोच और बेरोजगारी की पीर*

पैर में मोच आयी
दर्द की पामीर लायी
मोच की पीर ......
रक्त की
रफ्तार से चलकर
अस्थि और मज्जा को
सालते हुए
पहुंची हृदय में
नहीं देखा उसको उदास
मिली नहीं उसे हृदय में
कोई तड़प........
पीर को मिली....
हृदय से पराभव
फिर इस पराभव को
विजय में बदलने हेतु
पहले से द्रुत गति से
चलकर पहुंची.....
मस्तिष्क में
और सम्पूर्ण शक्ति से
सारी नशों को दर्द से झकझोर कर
अट्टहास किया .......
फिर भी वह चीखा नहीं
निकली नहीं  उसकी
एक भी आह....
बदले में दी एक मीठी मुस्कान
जिसे देख .....
रो पड़ी पीर.....
हाथ जोड़ बोली
किस मिट्टी के बने हो?
क्या पीकर पले हो?
मस्तिष्क ने उत्तर दिया
यूपी की मिट्टी का बना हूँ
बेरोजगारी का
दंश पीकर पला हूँ
हे पीर ! तुम क्या रूलाओगी मुझे
मैं तो खुद दर्द का बना हूँ.....

*14 दीप और मनुष्य*


जीवन रहित है दीप यह,
या तुम कहो निर्जीव है |
पाकर के बाती तेल को,
फिर देखो कैसे दीप्त है||

छोटा सा टुकड़ा माटी का,
है दीप देखो बन गया |
जिसके निखिल प्रकाश से,
जग का अंधेरा मिट गया ||

संसार में जब-जब मिले,
बाती दिया और तेल हैं |
तब-तब तिमिर का नाश होता,
यह प्रकृति का खेल है ||

पर भान हो दीपक वा बाती,
तेल के संयोग से |
मिटता नहीं  जग का अंधेरा,
बिन अगिन के योग से||

इक बड़ी सी दीपिका,
मानव तुम्हारी देह है |
जिसमें दया है तेल,
व बाती तुम्हारी नेह है ||

पर स्वार्थ के आँधी के कारण,
दीप यह न जल सका |
अज्ञान के भीषण अमा को,
न पराजित कर सका ||

हे विश्वविजयी मनु के सुत,
वह ज्ञान की लौ है कहाँ ||
पाकर के जिसके योग को,
अज्ञान की मिटती अमा ||

तुम ब्रह्म की हो श्रेष्ठ रचना,
श्रेष्ठता अपनी दिखा दो |
तेल बाती से सजे इस,
दीप में इक लौ जला लो||
      

*15 यादों का इनबाक्स*
यादों के इनबाक्स को
जब मैं खंगालता हूँ
तो याद आता है मुझे
सन् दो हजार आठ नौ
जब........
चौदह वर्षीय बालिका
अपने ही शयनकक्ष में
मारी जाती है,किसी
पाषाणी मानव के हाथ
जुटता है शासन तंत्र
हत्यारे को खोजने हेतु
या अपनी नाकामयाबी और नियति को छुपाने हेतु......
शासन की अयोग्यता और
सस्ती नियति के धार से
एक नहीं हजार बार
मरती है आरूषी...
प्रारंभ होती है हत्याओं की श्रृंखला.....
सर्व प्रथम
मृतिका के चरित्र की हत्या.....

फिर उसके दोस्तों को
उठाकर विश्वास की हत्या....

फिर माता पिता के रिश्ते की हत्या......
और और बहुत सी हत्याएँ एक साथ होती हैं...

इकट्ठा करो उस समय के अखबारी कतरनों को
खुद ही समझ जाओगे
कि उत्तर प्रदेश की पुलिश
हत्या करने में कितनी माहिर है.......
फिर भी पूछ रहे हो
कि आरूषि का हत्यारा कौन है
तो सुनो...
आरूषि का हत्यारा है
निकम्मा और नियति का खोटा प्रशासन
और कभी कभी साथ देते हैं
सरकारी तोते (सीबीआई) भी..
हमारी रद्दी मानसिकता भी
कम हत्यारी नहीं है.......
             

*16 यह सच है*

प्रिय ! मैं नहीं कहता
तुम चन्द्र वदनी हो
पर देखकर
मुखड़ा तुम्हारा
शान्ति वही मिलती
जो चाँद देता है
यह सच है||

मैं यह भी नहीं कहता
कि तुम्हारी देह में
चम्पे सी महक है
पर संग तेरा पाकर
मैं महक उठता हूँ
यह सच है ||

तेरी मुस्कान
इक तीखी  कटार है
यह कह नहीं सकता
पर चीर कर
सीने को मेरे
उतर जाती है
यह सच है||

तेरे नयन समुन्दर से हैं
मैं नहीं कहता
पर डूब गया मैं
इन्ही में
यह सच है||

मैं कहूँ जुलफें
तुम्हारी काली घटा हैं
देखकर जिनको मयूर
झूम उठते हैं
तो ये सरासर झूठ है,
पर देखकर ज़ुलफें
तुम्हारी
यह हमारा मन
झूम उठता है
यह सच है||

*17  उद्गार*

नफरत के बदले में
मुझको प्यार सदा जो देती है,
वह नहीं मानवी है कोई,
वत्सल हृदया वह धरती है,

है प्यार का मतलब क्या होता
प्रतिपल हमको समझाती है
देना है प्रेम का नाम सदा
यह मुझको सीख सिखाती है
है नहीं मानवी वह कोई
वह मातृस्वरूपा धरती है

हूँ उसी धरित्री का बालक
वैसी ही सीख सिखाऊंगा
तुम मुझसे प्रेम करो न करो
मैं तुमपर प्रेम लुटाऊंगा

वर्षों जो सीख दिया माँ ने
मैं उसको भूल न जाऊंगा
झरनों के निर्मल जल से
मैं, तेरी प्यास बुझाऊंगा

सुन्दर वृक्षों की छाया से
मैं तुमको खूब रिझाऊंगा
तुम सभी करो नफरत मुझसे
मैं सब पर प्रेम लुटाऊंगा
        
                 (हिमालय)

*18 मकड़ जाल*

मुट्ठी को भींच कर,
आँखों को मीच कर
खींची है जो तूने कमान
लक्ष्य को भेदने हेतु
वह अदृष्ट लक्ष्य
क्या तेरी इस अन्तर्दृष्टि से
विध सकेगा?

तोड़ सकेगा?
इन चारों ओर
बुने हुए जालों को
मार सकेगा?
उन मकड़ों को
जो बुनते हैं आठों याम तार,
तुम्हें फंसाने हेतु

कही ऐसा तो नहीं
कि तेरी क्रोध की कमान पर
जो कोकबान है चढ़ा
वह भी किसी मकरे का
बुना हुआ तार है
जो छूटते ही
तेरी इस कमान से
रच देगा तुम्हारे लिए
एक नया जाल
जो इस पुराने जाल से होगा कही दु:श्तर|

बनारसी बहनों !
कोदंड पर तेरे ,
चढ़ा जो बाण है
जाँच लो
वह कहीं अश्वशेन तो नहीं
जो अर्जुन को मारने हेतु
कर्ण को है साध रहा
या फिर
वह सांवला कृष्ण है
जो धर्मराज को
कुरूक्षेत्र में लाने हेतु
सुयोधन को मारकर
पाप को मिटाने हेतु
कृष्णा को साध रहा ...................

*19 अनुभव का आकाश*

*अनुभव के आकाश तले,
अनुमानो का पहरा होगा|

माँ धरती के सीने में इक,
और घाव गहरा होगा||

आज बने हैं शर्णार्थी ,
कल हक के लिए लड़ेगें|

भाषा धर्म और बोली पर ,
वें प्रतिघात करेंगें||

दिशा -दिशा नफरत की वेलें,
फिर से पनप उठेंगी|

फिर रसाल की मंजरियों पर,
पूर्वा झोंक पड़ेगी||

घर्घरनाद करेंगें रोहिंग्या के,
मुस्लिम सारे|

मानवता के नवकोपल पर,
बरसेगें अंगारे||

बरसेगें अंगारे,
सारी मानवता झुलसेगी|

अनुभव के आकाश तले,
जब भी कल्पना पलेगी||

*20*** *गीत******

मित्र और थोड़ा सा चलना

इतना भार सहन कर आये
कंटक मार्ग वहन कर आये
फिर क्यों सोच रहे हो रूककर अभी और कितना है चढ़ना
मित्र और थोड़ा सा चलना

अमा अभी जो घिर आयी है
रात्रि नहीं यह चढ़ आयी है
देख रहे हो जो तुम छाया ये तो है बस घन का घिरना
मित्र और थोड़ा सा चलना

लक्ष्य तुम्हारा दूर  नहीं  है
कठिन पंथ दुर्भेद नहीं  है
पांव महावर को मत देखो अभी और चलते ही रहना
मित्र और थोड़ा सा चलना

सोचो कितनों के अरमां को
लेकर तुम घर से हो निकले
अगर नहीं तुम पहुंच सके तो बहुतों के सपने है जलना
मित्र और थोड़ा सा चलना

*21** *चमेली*

हे चमेली ! तुम सुगंध की खान हो
यासमीन हो,(प्रभु की देन)...
सम्मोहन हो भंवर की |
अचानक ख्याल आया कि लिखूँ
तुम्हारे सौगंधिक सार को,
सुगंध के सुन्दर जाल को
जिसमें फंसे हुए है,वे भंवर
जो देश के कर्णधार हैं
वैसे तो सिर दर्द ,चक्कर
जुकाम आदि की दवा हो तुम| |

पर आज सिर दर्द हो गयी हो
चक्कर और जुकाम देना
बन गयी है फितरत तुम्हारी.....

कितने ही भँवर को
जुकाम हो गया तुम्हारे गंध से
सोचा था कुछ ऐसे ही लिखूंगा
अटपटा सा...... |

पर सोचते ही याद आया
चमेली नाम ...
जो होता है स्त्री का
वह आज विमर्श में है....

डर विमर्श से नहीं विमर्शकर्ता भंवरों से है,
जो तुम्हारे रस ,सुगंध और सौन्दर्य का पान कर ,
हैं तुम्हें नोचते व काटते
वही तुम्हारी अस्मिता के नाम पर खड़े होकर लाठियां है भाजते

देखकर इन लाठियों को
मैं लिखूंगा......
उन भंवर उन साथियों को मैं लिखूंगा
मैं तुम्हें अब ना लिखूंगा.....
कह रहा अटपटा सा........

भूखे भी हैं ,नंगे भी हैं,
फिर सुबह वही दंगे भी हैं
कानून  वही  रिश्वतखोरी
नेता भी वही इस्मत खोरी
बदले गा नहीं कुछ भी कल तो
पर नया साल मुबारक हो

भात  भात  कहते  कहते
कल मरेगी फिर कोई संतोषी
अपने घर के कमरे से फिर
गायब होगी कल आरूषी
न नया हुआ है कुछ भी तो
पर नया साल मुबारक हो

छल दम्भ द्वैष पाखंडों के
हैं बरस रहें फिर  अंगारे,
हैं गरल भरे अन्तरमन में
ऊपर से हैं सब मधु डाले
कुछ भी तो नहीं नयापन है
पर नया साल मुबारक हो

होरी ना गाय खरीद सका
झुनिया की सारी न आयी
हल्कू की खेती न सम्हली
मजदूर हो गयी  है  मुन्नी
सब कुछ तो वही पुरातन हो
पर नया साल मुबारक हो

सैनिक फिर गोली खायेंगे
नेता  फिर जु़मले गायेंगे
सधवायें फिर विधवा होंगी
विधवा फिर ना जी पायेंगी
कुछ भी न भायेगा मन को
पर नया साल मुबारक हो

*22*

पुष्प !


मैं बैठा हूँ तुम्हारे गुच्छों के पास
ले रहा हूँ बैठ कर सुन्दर सुवास

कहीं तुम  ये न समझ लेना
मैं लिखूंगा तुम्हारे सौन्दर्य को
तुम्हारे दूर तक फैले सुगंध को
पर लिखूंगा जरूर यह समझ लेना

मैं लिखूंगा...
कि तुम्हें खाद किसने है दिया
गोड़कर तेरी..
तली को साफ जिसने है किया
हर सुबह उठकर...
तुम्हें  जिसने है सिंचित किया

मैं लिखूंगा .....
हर दिन उसके त्याग को
तुम जिसे हो ...
भूल गये स्वयं इतने फूल गये
अपने ही ..
रंग खुशबू और सौन्दर्य के
मस्ती में झूम गये,
जिसको तुम भूल गये

मैं लिखूंगा.....
इन तुम्हारे कंटकों को
जो संरक्षित कर तुम्हें,
स्वयं नीरस  हो गये
उन जड़ों को भी लिखूंगा जो तुम्हारे उत्थान हेतु
सदा ही गड़े रहे....

मैं लिखूंगा ......
और बहुत कुछ ऐसे ही
तुम्हें सुनना पड़ेगा ...
तुम्हें पढ़ना पड़ेगा....
मैं बैठूंगा तुम्हारे पास ही
तुम्हें जताने हेतु
आज के पुष्प
कवि हूँ मैं....

*23*

*वत्सल हृदया माँ*

हे माँ !
मातृ दिवस है आज,
तुम्हारा दिन लौट आया ,
फिर साल में एक बार ,
तुम्हारी त्याग दया और ,
निष्ठा की गाथा के लिए,
हो गया है कद छोटा आपका,
रह गया है बस,
सिमट कर आज भर|

पृथ्वी से भारी थी जो मां ,
किस रहस्य के पर्त में है खो गई ,
वर्ष में बस एक दिन की रह गई,
हे माँ !मातृ दिवस है आज..................

दामिनी सी क्षिप्र  गति से ,
चल रहा जो काल है|
उस समय की चाल में ,
क्या घिस गई तुम?
या पाश्चाती सभ्यता में छिप गई थी,
दिख रही हो आज तुम ?
हे त्याग की देवी ,करुणा की सागर|
वत्सलता की प्रतिमूर्ति ,निश्छल हृदया माँ |
सच बताना लाल का तेरे हृदय है फट रहा,

      सुनो वत्स!
मेरे छोटे कद होने का रहस्य,
गोद की अपनी सुकोमल कली को ,
मैंने गला दबाकर जिस  दिन मार दिया
हो गया कद मेरा छोटा ,
उसी दिन ,एक  इंच ,एक फुट,
हाथ भर या उससे अधिक
दृगों में सपने संजोये ,
लाज का घूंघट चढ़ाए
कमलदल सी नयन वाली
चंद्रमुखी उस बहू को
स्वार्थवश मैंने तुम्हारे
संग था जिस दिन जलाया
हो गया कद मेरा छोटा
उसी दिन, एक इंच, एक फुट,
हाथ भर या उससे अधिक ||

कैसे कह दूं मैं दया की सागर हूं ,
त्याग की प्रतिमूर्ति हूं
या निश्छल हृदया हूँ
हे वत्स मैं पृथ्वी से
भारी वाली माँ नहीं  हूं,

इसीलिए मैं काल की
द्रुत चाल में भी घिस गई हूं ,
पाश्चाती सभ्यता में छिप गई हूं ,
दिख रहा है वर्ष में जो एक दिन,
प्रेम तेरा है मेरा वह कद नहीं  है |

               हे माँ!

तुम वही हो त्याग की मूर्ति, दया की सागर |
वत्सल हृदया, पृथ्वी से भारी मां ||
कितनी आसानी से मेरे पापों को,
आंचल में समेट लिया ,
विशाल हृदया माँ
मैं कृत्कृत्य हुआ
                         

*24*

*क्यों ? करते हो उनको प्रणाम*

जो सदा स्वार्थ से चलते हैं ,
जो दीन-दुखी को ग्रसते हैं
निज कर्मों से हैं भ्रष्ट हुए
करते हैं हरदम घृणितकाम
क्यों ?करते हो उनको प्रणाम
हाथों में जिनके हाला है ,
धंधा भी जिनका काला है
इन काले कर्मों के बूते
ऊंचा है जिनका हुआ नाम
क्यों ?करते हो उनको प्रणाम

जो दौलत के मद में अपने
हैं देख रहे ओछे सपने
हमने उनको अधिकार दिया,
पर किए हमी को है गुलाम
क्यों ?करते हो उनको प्रणाम

गीता पर रखकर हाथ सदा ,
झूठी कसमें जो खाते हैं
थोड़ी दौलत के लालच में
करते रहते हैं छुद्र काम
क्यों ?करते हो उनको प्रणाम

जो उच्च शिखर की चोटी पर
हम ही को कुचल कर बैठे हैं
अपने हितार्थ के कारण जो
हो गए हैं जयचंद के समान
क्यों ?करते हो उनको प्रणाम

पथ भ्रष्ट और दुष्कर्मों के
जो उदाहरण है मूर्तिमान
निज के बंदीगृह में जिसने
कितने जीवन का किया शाम
क्यों ?करते हो उनको प्रणाम

जिनको सर्वस्व समझ कर के
हो गए पूर्वज मेरे धूल
वे आज गए जब हमें भूल
ना छोड़े अपना कनक धाम
क्यों ?करते हो उनको प्रणाम

समझो इन पाप आत्माओं को
छल दम्भ द्वेष मालाओं को
हैं गरल भरे घट के समान
क्यों ?करते हो उनको प्रणाम

  

*25*

*ठूंठ*


क्या हूँ मैं ?
बाबूजी ये आप पूछते हैं,
क्या जानना चाहते हैं मेरा वजूद|
या फिर रिक्शे पर बैठकर,
बिताना चाहते हैं अपना समय,
उठाना चाहते हैं लुत्फ ,
मेरी रिरियाती आवाज  को सुनकर||

बाबूजी ....
पूछा है तो बताऊँगा,
मै शीत ऋतु में ओस की बूँदों को,
मोतियों के रूप में समेटे हुए,
हरी भरी घास का ,बचा हुआ ठूँठ हूँ |
चर लिया है जिसे बर्बर पशुओं ने,
क्षुधा की पूर्ति की फिर रौंद दिया,
नष्ट कर दिया उन मोतियों को ,
जो थाती थी मेरी |
फिर मेरी ही ठूंठ पर बैठकर ,
करते  हैं जुगाली |
जमाते हैं हमीं पर धौंस,
नष्ट करते हैं मेरे वजूद को,
साथ देते हैं वो भी ,
जो अपने को श्रेष्ठतम बोलते संसार में||

साहब! पर मैं फिर भी
हरा होने की कोशिश करता हूँ,
छोड़ता नहीं हूँ जीने की आस,
अपनी नष्ट हुई मोतियों को समेटने हेतु
या उन पशुओं की क्षुधा की पूर्ति हेतु
आप जो समझे...............
        
         

*26*


बन दशकंधर जो सीता का हरण करे,
धनुर्धारी राम सरताज बन जाइए|
आज फिर दुशासन पाञ्चाली की जो सारी खींचे,
चक्रधारी कृष्ण भगवान बन जाइए|
रोके जो जयद्रथ पाण्डवों को द्वार पर,
तो पृथा पुत्र अर्जुन के बाण बन जाइए|
लूटते है देश को बताते है जो देश भक्त,    व.   ल
ऐसे देश द्रोहियों के काल बन जाइए |
देश की स्वतंत्रता को लग रहा कलंक फिर ,
भगत सुभाष अश्फाक बन जाइए|
सीरियाई बगदादी बनता है पाक जो तो,
उसके लिए रुस सा अंगार बन जाइए|
छोड़ जाति वाद भाषा और भेद भाव को ,
देश के हितार्थ कुछ काम कर जाइए|
अब केशव के इशारों का हे भीम तू विचार कर,
मिले जो धृतराष्ट पुतला थमाइए|

COMMENTS

BLOGGER: 8
  1. बेनामी2:45 pm

    आपकी सभी कविताओं में यथार्थ है जो जीवन से कहि न कही मिला हुआ है। बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  2. बेनामी3:43 pm

    गर्वानुभूति हो रही है मेरा भाई शिखर को छू रहा है !
    अशेष शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बेनामी3:50 pm

    जींवन यथार्थ का अद्भुत मिश्रण है आपकी उक्त कविताओं में ऐसे ही अपनी लेखनी को मजबूत करते रहो हम सब की दुआएं है आप बहुत ऊँचाई पर पहुंचे.!

    जवाब देंहटाएं
  4. बेनामी4:22 pm

    गर्वानुभूति हो रही है मेरा भाई शिखर को छू रहा है !
    अशेष शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  5. Wtsp mitra5:02 pm

    भावभरी कविताएं। सार्थक प्रयास।।

    जवाब देंहटाएं
  6. बेनामी10:55 pm

    Apki in kavitao men gyan tatha bhaukta ka samanvay hai Jo yuva piri
    ko prerana dene valid hai
    Aapki mehanat rang layegi

    जवाब देंहटाएं
  7. बेनामी10:56 pm

    Achhi kavitaye

    जवाब देंहटाएं
  8. Yatarth ka boddh karane vali kavita

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: धनञ्जय द्विवेदी की कविताएँ
धनञ्जय द्विवेदी की कविताएँ
https://lh3.googleusercontent.com/-r92hJtqABVQ/WofPHwg1QYI/AAAAAAAA_Ak/ZkxD7fIvoaQdRQ8RaB-9bdTZGHQ_2xKdwCHMYCw/snip_20171118142358_thumb%255B1%255D?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-r92hJtqABVQ/WofPHwg1QYI/AAAAAAAA_Ak/ZkxD7fIvoaQdRQ8RaB-9bdTZGHQ_2xKdwCHMYCw/s72-c/snip_20171118142358_thumb%255B1%255D?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/02/blog-post_17.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/02/blog-post_17.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content