संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन 2018 : प्रविष्टि क्र. 89 : यात्रा संस्मरण : आदि बद्रीनाथ तथा आदि केदारनाथ की यात्रा // डॉ॰ हरिश्चन्द्र शाक्य, डी0लिट्0

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  प्रविष्टि क्र. 89 आदि बद्रीनाथ तथा आदि केदारनाथ की यात्रा -डॉ॰ हरिश्चन्द्र शाक्य, डी0लिट्0 20 नवम्बर 2011 को हमारे विद्यालय सरस्वती विद्या...

 

प्रविष्टि क्र. 89

आदि बद्रीनाथ तथा आदि केदारनाथ की यात्रा

-डॉ॰ हरिश्चन्द्र शाक्य, डी0लिट्0

20 नवम्बर 2011 को हमारे विद्यालय सरस्वती विद्या मंदिर कोसीकलाँ मथुरा के दो टूर जा रहे थे। कक्षा 8 के छात्रों का टूर मथुरा-वृन्दावन, दाऊजी आदि स्थानों पर जा रहा था तथा कक्षा 6 के छात्रों का टूर राजस्थान के तीर्थ स्थलों आदि बद्रीनाथ तथा आदि केदारनाथ की यात्रा पर जा रहा था। मैं इनमें से किसी एक टूर में जा सकता था। कक्षा 8 के बच्चे चाहते थे कि मैं उनके साथ जाऊँ और कक्षा 6 के बच्चे चाहते थे कि उनके साथ जाऊँ। मैं तो एक था, दोनों जगह तो जा नहीं सकता था। टूर पर जाने वाले अध्यापकों में से किसी ने मुझसे चलने के लिए नहीं कहा इसलिए मैंने कहीं भी न जाने का मन ही बना लिया था।

20 नवम्बर 2011 को विद्यालय के संगीताचार्य श्री जागेशचन्द्र “शर्मा मेरे पास आये और उन्होंने कक्षा 6 के टूर में चलने को कहा। मैं मन से तो तैयार था ही। केवल किसी के कहने भर की देर थी। इस टूर में विद्यालय से तीन बसें जा रही थीं। एक बस में मैं “शर्मा जी के साथ बैठ गया। बस छात्र-छात्राओं को एकत्रित करना छाता कस्बे तक गयी। वहाँ से कोसीकलाँ लौटकर नन्दगाँव रोड पर चलने लगी। थोड़ा आगे चलकर एक खाली स्थान पर टूर में जाने वाली दो अन्य बसें भी खड़ी मिल गयीं। वहाँ विद्यालय के अन्य अध्यापक गणेश दत्त “शर्मा, गजेन्द्र “शर्मा, विकास यादव, श्रीमती पूर्णिमा गुप्ता भी मिले। विकास यादव के साथ उनकी पत्नी श्रीमती रंजना यादव व विकास जी की बहन मोहिनी भी थीं। श्रीमती पूर्णिमा गुप्ता के साथ उनके पति श्री अनिल गुप्ता भी थे। जहाँ बसें थीं वहाँ एक ठेले वाला अमरूद बेच रहा था। अध्यापक, छात्र-छात्राएँ व बसों के ड्राइवर अमरूद खरीद रहे थे। अमरूदों का रंग रूप देख मेरे मुँह में भी पानी आ गया। दस रुपये किलो बिक रहे थे अमरूद। मैंने मात्र आधा किलो अमरूद खरीद लिये और खाने लगा।

तीनों बसें नन्दगाँव रोड पर राजस्थान के जिला भरतपुर के कामा कस्बे की ओर निकल पड़ीं। कोसीकलाँ से कामा लगभग 24 किलोमीटर दूर है। नन्दगाँव से विद्यालय के पुस्तकालयाध्यक्ष श्री ओम प्रकाष सैनी अपनी माता जी को साथ लेकर टूर में “शामिल हो गये। ओम प्रकाश सैनी जी नन्दगाँव के रहने वाले थे। नन्दगाँव की यात्रा मैं हाल ही में विद्यालय के कम्प्यूटर शिक्षक श्री मुकेश पाण्डेय के साथ कर चुका था। नन्दगाँव में एक ऊँची पहाड़ी पर नन्दबाबा का मन्दिर है। यहाँ की लठामार होली विश्वप्रसिद्ध है।

नन्दगाँव से आगे निकलकर ग्राम घिलावटी से राजस्थान की सीमा में प्रवेष हो गया। कामा से 6 किमी पीछे एक पहाड़ीनुमा छोटे से टीले पर छात्र-छात्राओं को नाश्ता वितरित किया गया। बच्चों के साथ अध्यापकों ने भी नाश्ते का आनन्द लिया। आगे चलकर ऊदाका नाम का गाँव मिला। बसें निरन्तर आगे बढ़ती जा रही थीं। मेरे लिए नितान्त अनजान इलाका था। ऊदाका गाँव में एक इण्टर कॉलेज भी था। थोड़ी देर में कामा कस्बा भी आ गया। कामा में मैं पहली बार ही आया था। कामा से बसें डींग भरतपुर रोड पर चल दीं। कला गाँव में पत्थरों के पहाड़ (या पठार) मिले। रास्ते में परमदरा, दिदावली, टाँकोली तथा खोह गाँव मिलते गये। विद्यालय में छटवीं कक्षा के अ, ब, स तीन सेक्शन थे। तीनों ही सेक्शन के बच्चे टूर में थे। बच्चों और बन्दरों में कोई अन्तर नहीं होता है। बच्चे बन्दरों जैसी हरक़तें करते जा रहे थे। विद्यालय को जेल समझने वाले बच्चे उस दिन अपने को पूर्ण रूपेण आजाद समझ रहे थे। नाचते, गाते, चुटकुले सुनाते हुए वे परमानन्द प्राप्त कर रहे थे। जिस बस में मैं बैठा था उसका ड्राइवर बहुत बड़ा हनुमान भक्त था। उसने कोसीकलाँ से निकलते ही अपनी बस में बैठे सारे बच्चों से हनुमान चालीसा पाठ कराया था। वह स्वयं भी बड़ी मस्ती में हनुमान चालीसा गा रहा था। मन में ढेर सारी जिज्ञासाएँ लेकर हम लोग ग्राम अलीपुर पहुँचे। अलीपुर में मंदिर श्री आदि बद्रीनाथ, लक्ष्मण जी का मन्दिर तथा प्राचीन योगमाया मंदिर हैं।

बसों में से उतरकर हम अध्यापकों ने सबसे पहले बच्चों की दो कतारें बनवाईं और लक्ष्मण जी का मंदिर देखने चल पड़ें। पुस्तकालयाध्यक्ष श्री ओमप्रकाश सैनी जी का सब कुछ जाना पहचाना था। वे बड़ी तेजी से आगे-आगे चल रहे थे और बच्चे उनके पीछे-पीछे। वे ऐसे चले जा रहे थे जैसे गाँधी जी डाँडी यात्रा पर चले थे। ओम प्रकाश जी की “शक्ल सूरत और हुलिया युवा महात्मा गाँधी से काफी मेल खाता था। उनके कान भी गाँधीजी जैसे थे। कहते हैं कि गाँधी जी आजानुबाहु थे। ओमप्रकाश सैनी जी गाँधीजी की तरह आजानुबाहु तो नहीं थे किन्तु काफी मेल खा रहे थे। मैंने गाँधी जी के बचपन के व युवावस्था के चित्र देखे हैं। बीस-पच्चीस साल पहले रिचर्ड एटनवरों की फिल्म ‘गांधी’ देखी थी। उसमें जिस अभिनेता ने महात्मा गाँधी की भूमिका अभिनीत की थी वह भी पूरा गाँधी लग रहा था। पथरीले रास्ते पर पहाड़ के किनारे चलते-चलते हम लोग लक्ष्मण जी के मन्दिर में पहुँचे। अनगिनत सीढ़ियाँ चढ़कर पहाड़ी पर बने मंदिर में पहुँच पाये। ऊपर चढ़ते-चढ़ते थकान आ गयी थी। बच्चे पूछने लगे थे कि ऐसा कितनी बार चढ़ना पड़ेगा।

जिन तीर्थ स्थलों पर मैं घूम रहा था वे ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा के मार्ग में पड़ते हैं। इन तीर्थ स्थलों पर आये बिना ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा पूर्ण नहीं मानी जाती। फिल्म निर्माता-निर्देशक शिव कुमार ने सन् 1980 के आस-पास ब्रजभाषा की एक फिल्म ‘ब्रजभूमि’ बनाई थी जिसमें गीत संगीत रवीन्द्र जैन का था। इस फिल्म में जैन साहब ने एक गीत लिखा था, ‘चारों धामों से निराला ब्रजधाम कि दरसन करि लेउ जी’’ इसी गीत के आदि में आलाप में एक दोहा था जो निम्नलिखित है-

“ब्रज चैरासी कोस की, परिकम्मा इक देत।

तौ लखि चैरासी योनि के, संकट हरि हर लेत।।’’

यह फिल्म ब्रजभाशा में बनी प्रथम फिल्म थी जो मुझे काफी अच्छी लगी थी। ब्रज चैरासी कोस की परिक्रमा करने वाले तीर्थ यात्री हम लोगों को भी मिल रहे थे। मंदिर में पहुँच कर हम लोगों ने लक्ष्मण जी की मूर्ति के दर्शन किये। मंदिर का नवनिर्माण सन् 2001 में गिरिधर दास ने कराया है। विद्यालय के अध्यापक गजेन्द्र जी कैमरा साथ ले गये थे जो फोटोग्राफी कर रहे थे। विकास यादव ने अपनी पत्नी के साथ कुछ विशेष फोटो खिंचवाये। श्रीमती पूर्णिमा गुप्ता ने भी अपने पति श्री अनिल गुप्ता व पुत्री के साथ फोटो खिंचवाये। लक्ष्मण जी की प्रतिमा के दर्शन करने के बाद हम लोग मंदिर के पिछवाड़े से निकले। वहाँ बैठे पंडा ने नर और नारायण पर्वत दिखाये। नर पर्वत को वहाँ यमुनोत्री व नारायण पर्वत को गंगोत्री कहते हैं। पंडा ने यह भी बताया कि बरसात के दिनों में नर-नारायण पर्वतों से गंगा-यमुना जैसी धाराएँ निकलती हैं। तब इसकी छटा देखते ही बनती है। मैं प्रसिद्ध केदार नाथ धाम व बद्रीनाथ धाम में तो पहुँचा नहीं था किन्तु ब्रज चैरासी कोस के परिक्रमा मार्ग में पड़ने वाले तीर्थों आदि केदारनाथ व आदि बद्रीनाथ की यात्रा कर गौरवान्वित महसूस कर रहा था। जब कभी प्रसिद्ध केदारनाथ व बद्रीनाथ तीर्थ स्थलों में पहुँचूँगा तो ये तीर्थ मुझे याद आये बगैर न रहेंगे। पंडे ने एक स्थल को लक्ष्मण झूला बताया। उसने यह भी बताया कि मुस्लिम आक्रांताओं ने उसे तोड़ दिया था।

लक्ष्मण जी का मंदिर देखकर हम लोग उतरे तो देखा कि तीर्थयात्रियाँ की एक टोली में आये तीर्थयात्री दान भी कर रहे थे। पंडे-पुजारी इन श्रद्धालुओं को दान के नाम पर खूब ठग रहे थे। उन्हीं श्रद्धालुओं में से एक कार में बैठी एक भद्र महिला ने हमारे विद्यालय के बच्चों को टॉफियाँ बाँटना “शुरू किया। जाते-जाते वे मुझे ढेर सारी टॉफियाँ बच्चों को बाँटने के लिए दे गयीं। थोड़ी देर में विद्यालय के जीव विज्ञान प्रवक्ता श्री गणेश दत्त “शर्मा आ गये। वे ही टूर के विशेष व्यवस्थापक थे। उन्होंने बच्चों को डाँटा और कहा कि तुम लोग भिखारियों की तरह टॉफियाँ झपट रहे थे।

लक्ष्मण जी के मन्दिर से पैदल चलते हुए हमलोग मंदिर श्री आदि बद्रीनाथ में आ गये। इस मंदिर में एक जगह मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था कि आदि बद्रीनाथ की यात्रा तभी पूरी होती है जब गंगोत्री, यमुनोत्री, लक्ष्मण झूला एवं लक्ष्मण जी के दर्शन कर लेते हैं। हम लोगों ने आदि बद्रीनाथ मंदिर में तप्तकुंड के दर्षन किये। मैं और संगीताचार्य श्री जागेश चन्द्र “शर्मा जी तप्त कुंड में नीचे उतर कर गये। उस समय आदि बद्रीनाथ मंदिर में कोई कथा चल रही थी इसलिए दर्शन करने में थोड़ी देर थी। विद्यालय के छात्रों को मंदिर प्रांगण में टाट पट्टियाँ बिछाकर बैठाला गया और सामूहिक रूप से भोजन मन्त्र बोला गया। बच्चे अपने साथ अपना भोजन लाये थे। समस्त अध्यापक भी बच्चों के साथ भोजन करने लगे। कुछ अध्यापक भी अपने साथ भोजन लाये थे। गणेश जी ने अपना भोजन मुझे और जागेश जी को थमा दिया था। विद्यालय की अध्यापिका श्रीमती पूर्णिमा गुप्ता अध्यापकों को खाना परोसने आनंद ले रही थीं। पूर्णिमा जी भी अपने साथ काफी भोजन लायीं थीं। जब हम लोग खाना खा चुके तब पूर्णिमा जी व उनके पतिदेव श्री अनिल गुप्ता जी ने मेवा मिष्ठान युक्त खीर हम अध्यापकों को खिलाई। पूर्णिमा जी बड़ी ही सभ्य, सुसंस्कृत व करुणाशील हृदय की महिला थी। वे अपने साथ-साथ दूसरों का भी ध्यान रखती थी। इस टूर से पहले कक्षा 7 के छात्रों का टूर फतेहपुर सीकरी व आगरा के ताजमहल को देखने गया था। पूर्णिमा जी ने ही मुझे फतेहपुर सीकरी में खाना खिलाया था।

खाना खाकर सभी अध्यापक बन्धु व छात्र-छात्राएँ आदि बद्रीनाथ मंदिर में पहुँचे। मंदिर में जहाँ मूर्तियाँ बिराजमान थीं वहाँ के कपाट वहाँ की व्यवस्था के अनुसार बन्द हो चुके थे। हम लोगों ने दर्शन करने के लिए वहाँ के पंडे-पुजारियों से आरजू-मिन्नत की तो कपाट खोल दिये गये। सभी लोगों ने वहाँ मन्दिर में बिराजमान रामेश्वर जी, गणेश जी, नर भगवान, बद्रीनारायण जी, उद्धव जी, श्रीनाथ जी, राधाकृष्ण जी, की मूर्तियों के दर्शन किये। मंदिर काँच की किरचों से सजाया गया था। वहाँ से दर्षन करके चले तो पूर्णिमा जी के पति श्री अनिल गुप्ता जी ने कहा कि चलो योगमाया मंदिर भी देख लें। योगमाया मंदिर पास में ही था। वहाँ पहुँच कर मैंने वहाँ लिखा हुआ पढ़ा। वहाँ लिखा था, द्वापर युग का बना हुआ प्राचीन योगमाया मंदिर, भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से योगमाया ने चार धाम यहाँ लाकर ब्रजवासियों को दर्शन कराया। योगमाया के दर्शन बिना ब्रज यात्रा सफल नहीं हो सकती।

योगमाया के दर्शन करके हम लोग बसों में सवार होकर ग्राम पसोपा पहुँचे। वहाँ भी बहुत ऊँची पहाड़ी पर चढ़कर हम लोगों ने राधाकृष्ण मंदिर के दर्शन किये। वहाँ उपस्थित एक युवा मुनेश ने बताया कि यहाँ पर एक कथा यह प्रचलित है कि कोई मुस्लिम पहाड़ी की तरफ हथियार नहीं चला सकता। यदि चलायेगा तो मिस हो जायेगा। पहाड़ी पर ही एक तरफ स्थित दो छोटे मंदिरों की तरफ इशारा करते हुए उसने बताया कि यहाँ की रक्षा करने के लिए दो वीर छोड़े गये हैं उनके ही वे मंदिर हैं। उन मंदिरों के पास पहुँचा तो वहाँ उपस्थित साधु ने चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य से जुड़ी कोई किंवदन्ती बताई। किंवदन्तियाँ कितनी सच हैं भगवान जाने, हम लोगों को तो दर्शन करने थे सो कर लिए।

ग्राम पसोपा से हम लोग बसों में बैठकर ग्राम बिलोंद पहुँचे। यहाँ भी बहुत ऊँची पहाड़ी थी। मैं और संगीताचार्य श्री जागेश “शर्मा जी लघुशंका को एक तरफ गये तो देखा कि वहाँ पास में ही एक गहरी खाई सी थी जिसके किनारे पानी पीने के लिए नल लगा हुआ था। वहाँ बत्तखों का एक झुण्ड मिला। मैंने बत्तखों के सामने इशारा करते हुए हाथ ऊपर उठाये तो सभी बत्तखों ने अपनी चोंचें ऊपर उठा लीं और भय मिश्रित आवाज में चीखने लगीं। पहाड़ी के नीचे स्थित रामदरबार के दर्शन किए। आदि केदार नाथ मंदिर तक पहुँचने के लिए यहाँ भी पहाड़ी पर चढ़ना था। सभी लोग पहाड़ियों पर चढ़ते-चढ़ते चकनाचूर हो चुके थे। आदि केदारनाथ के दर्शन तो करने ही थे। ऊपर चढ़ते-चढ़ते हम लोगों की साँस फूलने लगी। पूर्णिमा जी का परिवार व विकास यादव का परिवार सीढ़ियों के रास्ते में पड़ाव डाल-डाल कर चढ़ पा रहे थे। विकास और उनकी पत्नी दोनों ही खूबसूरत थे। एक जगह वे पहाड़ी पर बैठे ऐसे लग रहे थे जैसे फिल्मी नायक और नायिका साथ-साथ एकान्त में बैठे हों। संगीताचार्य श्री जागेश चन्द्र “शर्मा सबसे बुजुर्ग थे। वे तो पहाड़ी पर खरामा-खरामा ऐसे चढ़ते जा रहे थे मानो किसी सड़क पर चल रहे हों। ऊपर जाकर देखा तो पाया कि पहाड़ी ने एक छोटी सी गुफा का रूप ले लिया था। वहाँ पहले से पहुँच गये बच्चों ने बताया कि गुफा में अन्दर घुसकर ही दर्शन करने पड़ेंगे। गुफा में घुटनों के बल चलकर ही आगे बढ़ा जा सकता था। गुफा आर-पार थी। उस पर एक पुजारी बैठा था। उसने मुझे रास्ता बता दिया। घुटनों के बल सरक कर मैंने आदि केदार नाथ के दर्शन किये। गुफा के उस पार निकलकर मैं फिर खुली पहाड़ी पर आ गया। वहाँ एक भारी-भरकम पत्थर पर मैं लेट गया। थोड़ी देर में वहाँ गणेश जी आ गये तथा वे कुछ बच्चों के साथ फोटो खिंचाने लगे। पहाड़ी पर भारी-भरकम पत्थरों की जगह-जगह चोटियाँ थीं। ऐसी ही एक चोटी पर अनिल गुप्ता जी लेटकर अपने फोटो खिंचा रहे थे और बच्चों के साथ आनन्द ले रहे थे।

आदि केदार नाथ के दर्शन करके हम लोग चल दिये और बसों में सवार होकर कुछ ही देर में कामा पहुँच गये। कामा में मंदिर श्री कामेश्वर महाराज पहुँच कर हम लोगों ने दर्शन किये। वहाँ प्राचीन मंदिर श्री पंचमुखी महादेव भी देखा। इतनी ही यात्रा करने के उपरान्त “शाम हो गयी थी इसलिए कामा में और कुछ नहीं देख पाये। घूम-घाम कर हम लोग कोसीकलाँ आ गये। पहाड़ियों पर चढ़ते-चढ़ते सारा “शरीर शिथिल हो गया था। ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी ने लाठी डंडों से पिटाई कर दी हो। बहुत अच्छी नींद आई उस रात।


- डॉ॰ हरिश्चन्द्र शाक्य, डी0लिट्0

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रचनाकार: संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन 2018 : प्रविष्टि क्र. 89 : यात्रा संस्मरण : आदि बद्रीनाथ तथा आदि केदारनाथ की यात्रा // डॉ॰ हरिश्चन्द्र शाक्य, डी0लिट्0
संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन 2018 : प्रविष्टि क्र. 89 : यात्रा संस्मरण : आदि बद्रीनाथ तथा आदि केदारनाथ की यात्रा // डॉ॰ हरिश्चन्द्र शाक्य, डी0लिट्0
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