प्रविष्टि क्र. 88 तेलंगाना; यात्रा भारत के सबसे युवा राज्य की- रोली मिश्रा हैदराबाद की यात्रा पर निकलने वाले उत्तर भारत के अधिकाँश लोग हैदरा...
प्रविष्टि क्र. 88
तेलंगाना; यात्रा भारत के सबसे युवा राज्य की-
रोली मिश्रा
हैदराबाद की यात्रा पर निकलने वाले उत्तर भारत के अधिकाँश लोग हैदराबाद को चारमीनार, मोतियों और सानिया मिर्ज़ा के नाम से जानते हैं। कुछ समय पहले तमिलनाडु से लौटी तो वहां आये भाषा के अवरोधों को याद रखते हुए कुछ वैसी ही पूर्वंधारणा मैंने तेलंगाना ( तेलुगुभाषियों की ज़मीन) के बारे में बना ली थी पर हैदराबाद उतरते ही ये सुखद एहसास प्रारम्भ हो गया कि जून,2014 में बना तेलंगाना वास्तव में वैश्विक अपील वाला एक ऐसा नया राज्य है जहां आकर किसी भी स्तर पर उत्तर भारतीयों को अलगाव नहीं लगता। राजधानी हैदराबाद में तो तेलुगु के बजाय हैदराबादी हिंदी ही अधिक प्रचलन में है। स्थानीय लोग विनम्र ,अंग्रेज़ी जानने वाले और पर्यटकों के प्रति सहयोगात्मक रवैया रखते हैं जिससे जानकारी और तेलंगाना में दिलचस्पी बढ़ती चलती है।
तेलंगाना में पहला दिन -
हैदराबाद में पर्यटकों के आकर्षण से जुड़ी इतनी जगहें हैं कि सिटी टूर को सुव्यवस्थित और समयबद्धता के साथ करने के लिए पहले दिन सिटी बस का एक दिन का पैकेज ले लेना ज़्यादा व्यवहारिक लगा। वैसे तो प्राइवेट बस सेवाएं भी हैं पर तेलंगाना स्टेट की सरकारी एसी बस का टूर काफी सस्ता और अच्छा है। मात्र साढ़े तीन सौ रुपये में गाइड के साथ पूरा शहर घूमना अविश्वसनीय सा लगा ।सभी पर्यटन स्थलों पर समयबद्धता, सफाई और प्रोफेशनल रवैया देखने को मिलता है। चारमीनार,लाडबाजार, सालारगंज म्यूजियम, बिरला मंदिर, चौमहला पैलेस,गोलकुंडा फोर्ट और अंत में लुम्बिनी पार्क और हुसैन सागर लेक....इतना सब एक दिन में घूमना हमको किसी उपलब्धि से कम नहीं लग रहा था क्योंकि इन सबके अलावा विस्तार से देखने के लिए तेलंगाना में बहुत कुछ है जिसके लिए वक़्त की पाबंदी बहुत ज़रूरी है।
चारमीनार को देखना हैदराबाद के अतीत में झाँकने के अतिरिक्त इसकी समृद्ध संस्कृति से रूबरू होना है। 1591 में मुसी नदी के पूर्वी तट पर कुली कुतुब शाह ने इस शानदार स्मारक और मस्जिद को तब बनवाया जब उसने अपनी राजधानी गोलकुंडा से हैदराबाद स्थानांतरित की। नगरवासियों को प्लेग के संक्रमण से बचाने के लिए उसने इसकी मस्जिद में प्रार्थना की थी। ग्रेनाइट, लाइमस्टोन और संगमरमर के चूर्ण से बनी यह विश्व धरोहर हिन्दू- इस्लामी और फारसी स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। कहा जाता है कि चार मीनारें इस्लाम के पहले चार खलीफाओं की प्रतीक हैं। 149 सँकरी, घुमावदार सीढ़ियां चढ़कर इस इमारत के ऊपर से हैदराबाद का विहंगम दृश्य देख सकते हैं, वो हैदराबाद जो 400 वर्ष पुरानी इमारतों की भव्यता के साथ साथ आधुनिकतम गगनचुम्बी इमारतों के दर्शन कराता है। 56 मीटर ऊंची चार मीनारों का भव्यतम रूप रात की रोशनी में दूर से ही देख सकते हैं। चारमीनार से सटकर बना भाग्यलक्ष्मी मंदिर हिंदुओं की श्रद्धा का केंद्र होने के साथ साथ विवादों की जड़ भी है।1979, 1983 और 2012 में इस मुद्दे पर भड़के हिन्दू- मुस्लिम तनाव से अब तक सैकड़ों जानें जा चुकी हैं, मंदिर को नष्ट करने के प्रयास हो चुके हैं और संपत्तियों का विनाश किया जा चुका है। पर इन सबके दरकिनार, आम पर्यटकों के लिए ये दोनों ही स्थान पवित्र और भ्रमणीय हैं। चारमीनार के आसपास के क्षेत्र में असली हैदराबाद की खुशबू है। भीड़भाड़ और सरगर्मियों से भरा हुआ ये इलाका हैदराबाद के प्रसिद्ध सामानों की खरीदारी के लिए आदर्श स्थान है जिसे एक व्यस्त टूर में देखना संभव नहीं था इसलिए हमने ये निर्णय लिया कि वहां मोती, बहुमूल्य रत्न, चूड़ियां, कपड़े, शीशे की नायाब क्राकरी,कलमकारी पेंटिंग्स और हैदराबाद की प्रसिद्ध बिरयानी, मिर्ची का सालन,हलीम, डबल का मीठा आदि का लुत्फ लेने और शहर की संस्कृति को महसूस करने के लिए अगले दिन अलग से आएंगे। वैसे पैराडाइस, बावर्ची और कैफ़े बहार जैसे कई रेस्टोरेंट खास हैदराबादी बिरयानी के लिए विख्यात हैं जिन्होंने अपने रेस्टॉरेंटों में अपने यहाँ बिरयानी खाते हुए बहुत सी हस्तियों की तस्वीरें लगा रक्खी हैं।
बिड़ला मंदिर हैदराबाद अचंभित सा करता है क्योंकि देश भर में बने बिरला मंदिरों से ये कई मायनों में अलग और अनोखा है। लेकिन इसकी सुंदरता, प्राकृतिक वातावरण और अलौकिकता का पूरा आनंद लेने के लिए आपको 280 फ़ीट ऊँचे नौबत पहाड़ पर सीढ़ियों से चढ़ने के लिए तैयार रहना होगा। इसके शिखर पर जाकर हैदराबाद और सिकंदराबाद दोनों शहरों का खूबसूरत नजारा देखने को मिलेगा, साथ ही उत्तर ,दक्षिण और उड़िया मूर्तिकला का मिश्रण सर्व धर्म समभाव का संदेश देती मूर्तियों में भी दिखता है।10 वर्ष में बनकर तैयार हुए श्वेत संगमरमर के इस विशाल मंदिर में घंटियाँ नहीं हैं क्योंकि इसे विशेष रूप से ध्यान और चिंतन के लिए बनाया गया है।
हैदराबाद का हर दर्शनीय स्थल एक भिन्न इतिहास और अनुभव समेटे है। जब हम सालारजंग म्यूजियम में कदम रखते हैं तो इसकी भव्यता, रखरखाव और विशालता को देखने के बाद जब गाइड हमें ये बताता है कि ये विश्व के सबसे बड़े प्राइवेट म्यूजियमों में से एक है तो आश्चर्य नहीं होता। एक समय निज़ाम हैदराबाद भारत के सबसे रईस इंसान थे और इस सबसे अमीर रियासत के सातवें निज़ाम के प्रधानमंत्री नवाब मीर यूसुफ अली खान सालारजंग तृतीय के शौक़ के कारण विश्व के हर कोने से लाया गया नायाब फर्नीचर, कारपेट, मूर्तियां, धातु का सामान, हाथीदाँत की अविश्वसनीय कलाकृतियाँ,विश्व प्रसिद्ध राजा रवि वर्मा और अन्य चित्रकारों के दुर्लभ चित्र, हथियार, टीपू सुल्तान का वस्त्रागार, औरंगज़ेब की तलवार और ऐसी ढेरों अद्वितीय धरोहरों से ये संग्रहालय भरा पड़ा है। इसीलिए इसको उनके " जुनून का वसीयतनामा" कहते हैं। इस संग्रहालय में 19वीं सदी की एक ब्रिटिश संगीतमय घड़ी है जिसका संगीत सुनने के लिए उसके सामने बेंच और कुर्सियाँ डालकर बैठने की व्यवस्था की गई है। इतना ही नहीं, इसके संग्रह में एक आदमकद मूर्ति ऐसी है जो सामने से पुरुष और आईने में स्त्री नज़र आती है। शुक्रवार और सार्वजनिक छुट्टियों में बंद रहने वाले इस म्यूजियम को देखने प्रतिवर्ष 10 लाख से भी ज़्यादा लोग आते हैं। वैसे निज़ाम के रिहाइशी स्थान चौमहला पैलेस को सालारजंग म्यूजियम से पहले ही देख लेना ठीक है क्योंकि 2005 में पर्यटकों के लिए खोला गया ये महल जो कि अपने शानदार दरबार हॉल, विंटेज कारों, बग्घियों और निज़ाम के उपयोग की चीजों के बड़े संग्रह के लिए विख्यात है, सालारजंग म्यूजियम के आगे फीका लगता है। हैदराबाद में ज़्यादातर जगहों पर मोबाइल कैमरे पर शुल्क है और कई जगहों पर ये प्रतिबंधित भी है। एक लघु यात्रा के लिए निज़ाम म्यूजियम भी जाया जा सकता है क्योंकि वैसे तो पुरानी हवेली की ग्राउंड फ्लोर पर स्कूल ही चल रहा है और म्यूजियम दूसरी मंज़िल पर सिमटा है पर निज़ाम को मिले उपहारों में से सोने और कीमती रत्नों के बने कुछ यादगार मिनिएचर और कलाकृतियों आदि को देखने के लिए 80 रुपये प्रवेश शुल्क देना बुरा नहीं लगता। शाम होते होते हम गोलकुंडा फोर्ट पहुंच चुके थे जिसके प्रति जिज्ञासा तब से बढ़ी हुई थी जब से इवांका ट्रम्प इसको देख कर गयी थीं।
मुख्य शहर से करीब 9 किलोमीटर दूर 400 फ़ीट ऊंची पहाड़ी पर शान से खड़ा गोलकुंडा फोर्ट वही है जिसके ख़ज़ाने में गोलकुंडा की अति समृद्ध खदानों से निकाले गए दुनिया के सबसे प्रसिद्ध हीरे रक्खे गए थे। कोहिनूर, होप डायमंड , दरिया-ए-नूर और प्रिंसी डायमंड जैसे कई बेशकीमती और बेजोड़ हीरों ने इस किले की आभा बढ़ाई लेकिन इसकी संपत्तियों को लूटकर इस पर कब्ज़ा करने की आक्रमणकारी प्रवृत्तियों को भी बढ़ावा मिलता रहा। इस किले के अंदर वस्तुतः चार किले हैं और 11 किलोमीटर लंबी इसकी चहारदीवारी में भी तीन सुरक्षा दीवारों की पंक्तियाँ हैं। इसके अंदर महल, रिहाइशी इलाके, शस्त्रागार,सेना की बैरकें,घुड़साल, खूबसूरत बगीचे, नया किला, कुतुबशाही कब्रें और मस्जिद आदि हैं और इन्हें देखने के लिए 3-4 घंटे का वक़्त भी नाकाफी जान पड़ता है। इस किले में में रक्खा हुआ 240 किलो का एक लोहे का ब्लॉक है जो उस समय शाही सेना में सैनिकों की भर्ती के लिए उनकी शारीरिक शक्ति को जांचने का एक मानक होता था...आज भी तीस मार खान इसे उठाने की कोशिश करते रहते हैं...और जो बाहुबली इसे उठा लेते हैं, वे यू ट्यूब परअपना वीडियो ज़रूर लोड कर देते हैं।
1687 में नौ महीने तक घेरा डाले पड़ी रही औरंगज़ेब की सेना ने अंततः एक दगाबाज की सहायता से इस दुर्ग का अभेद्य सुरक्षा कवच तोड़कर किले को लूट लिया और नष्ट कर दिया था। अफसोस कि आज कोहिनूर ब्रिटेन की महारानी के ताज में और 185 कैरेट का दरिया-ए-नूर हीरा ईरान के ताज में लगा हुआ है। आज भी ये किला पर्यटकों को न सिर्फ अपनी विशालता, भव्यता और लाजवाब स्थापत्य से बहुत लुभाता है बल्कि शाम के बाद साउंड एंड लाइट शो को देखने के लिए भी विवश करता है।गोलकुंडा फोर्ट में हीरे की ही आकृति की छत वाले फतेह दरवाज़े में चमत्कारिक ध्वनि प्रणाली है... जिसमें वहीं से ताली बजाकर कई किलोमीटर ऊपर तक बने हुए दुर्गों में खतरे के या अन्य ज़रूरी संदेश तुरंत प्रसारित कर दिए जाते थे....इस शानदार इंजीनियरिंग का आज भी कोई मुकाबला नहीं....यह किला रैंकिंग में भारत का चौथे नंबर का सबसे दर्शनीय किला माना जाता है और तेलंगाना के 'सात अजूबों' में एक है।
देर शाम तक बस ने हमें लुम्बिनी पार्क छोड़ा जो कि एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील हुसैन सागर लेक के इर्दगिर्द बना है। इस झील से जुड़ी सड़क नेकलेस रोड के नाम से प्रसिद्ध है क्योंकि रात में ऊंचाई से देखने पर ये एक चमचमाते हार सी नज़र आती है। इस झील का निर्माण1563 में जनता की पानी और सिंचाई संबंधी ज़रूरतें पूरी करने के लिए कराया गया था। UNWTO ने इस विश्व धरोहर को " हार्ट ऑफ द वर्ल्ड" घोषित किया है क्योंकि ये दिल के आकार की है। झील के बीचोबीच रोशनी में नहाया हुआ दुनिया का सबसे लंबा एक ही चट्टान से बना गौतम बुद्ध का अति सुंदर स्टेचू दिखाई पड़ा। किसी बहुत बड़े और रंगबिरंगे मेले का आभास देती बच्चों और परिवारों से भरी हुई इस जगह को देखते ही हमें ये लगा कि ये कुछ ही देर में देख लेने वाली जगह नहीं है इसलिए मन ही मन हमने अगले दिन की शाम यहां के लिए बुक कर ली। हैदराबाद के बाशिंदे भरपूर संख्या में यहां परिवार सहित आनंदपूर्ण समय गुज़ारने के लिए शाम को आते हैं। सोमवार को ये पार्क बन्द रहता है। अन्य दिनों में यहाँ स्पीड बोटिंग, लेज़र शो, म्यूजिकल फाउंटेन, रोमांचक खेतों, टॉय ट्रेन और बहुत सारी मज़ेदार गतिविधियों के लिए लोगों की बेतहाशा भीड़ जुटती है।7.5 एकड़ में बने इस पार्क के मुख्य आकर्षणों में फूलों की घड़ी, फाउंटेन के ज़रिए हैदराबाद का इतिहास और 2000 दर्शकों की क्षमता वाला 3डी लेज़र शो ऑडिटोरियम है। 2007 में इस ऑडिटोरियम में एक बम विस्फोट हुआ था जिसके बाद यहां मेटल डिटेक्टर लगाकर सुरक्षा बहुत मजबूत कर दी गयी है। अगले दिन पूरी शाम यहां कैसे गुज़र गयी, पता ही नहीं चला।
फलकनुमा पैलेस की हाई टी-
शहर से 2000 फ़ीट की ऊँचाई पर बना फलकनुमा पैलेस जिसे अब ताज ग्रुप ऑफ होटल्स ने अधिग्रहीत कर लिया है, को देखने के लिए आपको 3000 रुपये (से अधिक)खर्च करने पड़ेंगे। इसके अलावा पहले से बुकिंग भी करानी पड़ेगी। पर " बादलों के बीच रत्न" कहलाने वाले इस महल की ब्रिटिश और निज़ामी शानोशौकत की शाही अनुभूति करने के लिए लोग बेकरार रहते हैं। निजाम की तुर्की पत्नी के लिए बिच्छू की आकृति में बना ये अति भव्य होटल न सिर्फ विश्व के सबसे बड़े 101 सीटों वाले डाइनिंग हॉल के लिए जाना जाता है बल्कि कलाकृतियों के विलक्षण संग्रह के लिए भी मशहूर है। अंदर कैमरा प्रतिबंधित है और गाइडेड टूर के लिए जब गेट पर हमें बग्घी नहीं, गोल्फ कार्ट लेने आती है तो शाही एहसास थोड़ा कम हो जाता है। दरअसल शाही बग्घी की सुविधा केवल होटल में रुकने वाले मेहमानों के लिए है। चाय और स्नैक्स के लिए आपको निज़ामी या इंग्लिश दोनों में से एक चुनना होगा। हाई टी के लिए काफी संख्या में विदेशी भी पहुंचते हैं। इस शाही अनुभव के लिए कहा जाता है-
" ताज-ए-हिन्द में क्या देखा/ अगर फलकनुमा नहीं देखा!"
रामोजी फ़िल्म सिटी- एक दिन ख्वाब सा-
रामोजी फ़िल्म सिटी नए हैदराबाद का चमकता-दमकता चेहरा है जिसे देखे बिना हैदराबाद की यात्रा बिल्कुल अधूरी है। गिनीस बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में विश्व के सबसे बड़े स्टूडियो काम्प्लेक्स के रूप में दर्ज इस फ़िल्म सिटी में ऐसा कोई लैंडस्केप या प्रतिष्ठान छूटा नहीं है जिसको हम वास्तविक जीवन में देखते हैं या जिसकी कल्पना करते हैं.....कहा ये जाता है कि यहां सिर्फ स्क्रिप्ट लेकर फ़िल्म निर्माता आते हैं और पूरी फिल्म बनाकर जाते हैं....2500 एकड़ क्षेत्र में स्थापित हैदराबाद से लगभग 30 किलोमीटर दूर रंगारेड्डी जिले में रामोजी ग्रुप्स की इस रंगरंगीली दुनिया को पूरा देखने के लिए एक दिन काफी नहीं....यहां आप भारत के गांव,जेल,पुलिस थाने, रेलवे स्टेशन से लेकर बैंकाक का हवाई अड्डा, लंदन की गलियाँ, हॉलीवुड, जापानी इमारतें और गार्डन और पौराणिक सीरियलों के स्थायी भव्य सेट लगे हुए पाएंगे। बाहुबली फ़िल्म की पूरी शूटिंग यहीं हुई थी और स्पेशल बाहुबली टूर पैकेज 2350 रुपये में उपलब्ध है। इतना ही नहीं, ढेर सारे शोज़ जिनमें बहुत ही दिलचस्प तरीके से फ़िल्म निर्माण से जुड़े पहलुओं को दिखाया जाता है,स्कूली बच्चों में खासे लोकप्रिय हैं। यहां आपके टूर की शुरुआत विदेशियों द्वारा स्वागत से और शाम प्रख्यात कलाकारों के लाइव स्टेज शो और विदाई कार्निवाल परेड से होती है। पर यहां भी इसकी झलक लेने के लिए आपको कम से कम 1250 रुपये का टिकट तो लेना ही पड़ेगा। सिटी के अंदर भी इतनीआकर्षक गतिविधियां हैं कि और पैसा कैसे खर्च हो जाएगा, पता ही नहीं चलेगा। इस फ़िल्म सिटी में अब भारत की कुल 65 प्रतिशत से भी अधिक फिल्में बनती हैं और एक साथ 50 फ़िल्म यूनिटें यहां काम कर सकती हैं। रुक करअच्छा समय गुज़ारने वालों के लिए इस सिटी में फिलहाल तीन होटल हैं। एक और नई रामोजी सिटी का निर्माण हैदराबाद के ही पास 10000 एकड़ में चल रहा है। लोग सपरिवार यहां आते हैं और कभी न भूलने वाले अनुभव ले कर जाते हैं। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार ये जगह ताजमहल के बाद पर्यटकों में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय है।
हैदराबाद शहर में-
हैदराबाद में बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी और जीपीएस से जुड़ी ओला और ऊबर जैसी त्वरित टैक्सी सेवाओं के कारण कहीं भी और किसी भी वक़्त आवागमन आसान लगता है। साथ ही किराया भी प्रतिस्पर्धी और संतुलित रहता है। बाहर के पर्यटकों के लिए ये एक वरदान सा है। चौड़ी सड़कें और ढेर सारे फ्लाईओवर के साथ एक और विशेष बात लगी कि बहुत सी गाड़ियों के बावजूद यहां ट्रैफिक कभी स्लो तो हो सकता है पर जाम नहीं होता। उत्तर प्रदेश में रोज़ जाम की समस्या से जूझने के कारण मेरे लिए यह आश्चर्य की बात थी। तेलंगाना में तम्बाकू प्रतिबंधित है। हैदराबाद के परंपरागत चेहरे से अलग इस शहर का एक चेहरा हाईटेक सिटी का है जिसमें अनुशासन, आधुनिकता,अभिजात्य और शिक्षा के प्रतीकस्वरूप माइक्रोसॉफ्ट और गूगल के शानदार आफिस हैं, बहुमंज़िली इमारतें, आईटी हब,संस्थानों जैसे बड़े बड़े शोरूम, बहुराष्ट्रीय मॉल की श्रृंखलाएं,सिलिकॉन वैली, डीजे नाइट्स और पब हैं। यहां के सामान्य से अधिक बड़े आकार वाले मॉल्स में आप स्टारबक्स कॉफ़ी जैसे अंतरराष्ट्रीय उत्पादों का भी स्वाद ले सकते हैं,डायलाग इन दि डार्क जैसे रोमांचक अनुभव से भी गुज़र सकते हैं और नए नए वर्चुअल रियलिटी खेल भी खेल सकते हैं। भारत का पहला बर्फीली थीम का पार्क" स्नो वर्ल्ड"जिसे दुनिया का सबसे बड़ा स्नो पार्क माना जाता है, भी एक अलहदा अनुभव है। यहां रोज़ 2400 के करीब लोग आते हैं और आइस स्केटिंग ,स्नोफॉल,बर्फ के कृत्रिम पहाड़ और घाटियों का आनंद उठाते है। बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए यहां की बर्फ भी मिनरल वाटर से बनाई जाती है। इसीलिए इसका टिकट भी आपको 500 रुपये का पड़ेगा। इसके अतिरिक्त नेहरू जूलॉजिकल पार्क भी पर्यटकों के लिए एक बड़ा आकर्षण है जिसकी लायन सफारी बहुत लोकप्रिय है। एक ग्लोबल शहर के रूप में हैदराबाद बड़ी सहजता से सभी वर्गों को आत्मसात करता है। यहां हर राज्य के लोगों के लिए रोज़गार भी है और संसाधन भी।
कब जाएँ-
छोटी छोटी पहाड़ियों से घिरे होने के कारण यहां गर्मियों में उमस वाली बेचैनी तो नहीं रहती ,फिर भी पर्यटन के लिहाज से अक्टूबर से मार्च तक का मौसम अनुकूल रहता है क्योंकि इस दौरान यहाँ न गर्मी रहती है, न बहुत सर्दी।
शक्तिपीठ श्रीसैलम की ओर-
कहते हैं शक्तिपीठों का वातावरण दिव्य ऊर्जा से ओतप्रोत रहता है। हिंदुओं के पूजित 12 ज्योतिर्लिंगों में श्रीसैलम अकेला ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ दोनों है। यहां एक ही परिसर में शिव मल्लिकार्जुन स्वामी और शक्ति पार्वती भ्रमराम्भा देवी के मंदिर बने हुए हैं।2600 मीटर ऊंची नल्ला मलाई पहाड़ियों पर शांति और दिव्यता के बीच 2 हेक्टेयर में बने इस मंदिर को अति प्राचीन बताया जाता है। कहा जाता है, इसका निर्माण दूसरी शताब्दी में ही हो गया था। हैदराबाद से 214 किलोमीटर आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में बने इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको कोई स्टेट बस या टैक्सी लेनी पड़ेगी जो तकरीबन 4-5 घंटे में आपको गंतव्य तक पहुंचाएगी। लेकिन श्रीसैलम हाईवे राज्य के सबसे अच्छे मार्गों में एक है। घाट रोड तक पहुंचते ही ये रास्ता इतनी प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ है कि ईश्वर के प्रकृति स्वरूप का एहसास आपको श्रीसैलम पहुंचने से पहले ही होने लगेगा। हाँ, रास्ते के लिए पर्याप्त पानी और खाने-पीने का सामान रखना न भूलें क्योंकि बीच में रेस्टॉरेंटों का सर्वथा अभाव है। साथ ही, यदि टैक्सी से जा रहे हैं तो तेलंगाना से आंध्र प्रदेश में प्रवेश के लिए महंगे टैक्सी परमिट और टोल टैक्स के लिए तैयार रहें। रास्ते में अपेक्षा से अधिक वक़्त लग जाना भी कोई बड़ी बात नहीं क्योंकि दक्षिण के सबसे बड़े अबाधित इस नल्लामल्ला जंगल से गुजरते हुए आपको बहुत कुछ ऐसा मिलेगा जहां समय देना किसी भी घुमक्कड़ प्रकृति प्रेमी की मजबूरी होती है। टैक्सी ड्राइवर के चयन पर विशेष ध्यान दें क्योंकि उसकी स्थानीय जानकारी और विश्लेषण क्षमता का आपकी यात्रा पर बहुत प्रभाव पड़ता है। सौभाग्य से हमारे टैक्सी ड्राइवर धर्मेंद्र ने हमारे लिए एक बहुत अच्छे और खुशमिज़ाज़ गाइड का काम किया।
नल्लामल्ला वन्य क्षेत्र-
नल्लमल्ला के बड़े हिस्से में राजीव गाँधी टाइगर रिज़र्व भी है । तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की सीमा पर भारत का सबसे ऊंचा और लम्बा बांध नागार्जुन सागर देखने के लिए अवश्य रुकें। यहां से मल्लिकार्जुन तक 3.5 हज़ार एकड़ लंबा जंगल बहुत वैविध्यपूर्ण है जो लंबे सफर को छोटा और दिलचस्प बना देता है। रास्ते में पड़ने वाले साक्षीगणेश और शिखरेश्वर मंदिर में भी अलग अलग विशेषताएं हैं। साक्षीगणेश में गणेश की अद्भुत प्रतिमा है और श्रीशैलम से 8 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी के सर्वोच्च शिखर पर स्थित शिखरेश्वर मंदिर के नंदी के सींगों के मध्य से देखने पर यदि आपको श्रीशैलम मंदिर के कलश, त्रिशूल या ध्वजा का दर्शन होता है तो माना जाता है कि आपको मोक्ष की प्राप्ति होगी। ( श्रीशैल शिखरम दृष्ट्वा,पुनर्जन्म न विद्यते)हालाँकि मोक्ष की प्राप्ति की राह इस मंदिर मे असंख्य रूप से पाए जाने वाले बन्दर थोड़ी कठिन कर देते हैं और आप प्रसाद उन्हें दिए बिना घर ले जाएं, ये नामुमकिन है। इस मंदिर के आसपास हमने नोटापदी(110 रुपये) का 1 लीटर बिल्कुल शुद्ध शहद खरीदा और बहुत ही छोटे आकार का अनोखा दिखने वाला गरीगोला और आंवला भी लिया। इसी हाईवे पर मल्लातीर्थम झरना और श्रीशैलम बांध भी पड़ता है जो दर्शनीय है।
श्रीशैलम; प्रकृति, अध्यात्म और वैभव-
बेहतर यही है कि श्रीशैलम में प्रवास के लिए होटल या धर्मशाला पहले ही बुक करा लें क्योंकि श्रद्धालुओं की संख्या बहुत और जगह की उपलब्धता कम हो सकती है। फिर भी आश्चर्य है कि इस स्थान पर कहीं भी अव्यवस्था और अशांति नहीं दिखती। श्रीशैलम का प्रवेशद्वार ही बहुत भव्य है, मंदिर का तो कहना ही क्या पर मोबाइल कैमरा भी प्रतिबंधित होने के कारण मंदिर और इसके क्षेत्र की फ़ोटो नहीं ली जा सकती। मंदिर क्षेत्र में एक सकारात्मक ऊर्जा है और मंदिर प्रशासन का प्रबंधन और व्यवस्थापन काबिले तारीफ है। मंदिर में वैसे तो प्रवेश निःशुल्क है पर समय बचाने के लिए सशुल्क प्रवेश लेने वालों की तादाद कम नहीं है। 150 रुपये देकर शीघ्र दर्शन लेने में भी 30 मिनट तो लग ही जाते हैं। यदि आपको अभिषेक भी करना है तो उसके लिए कम से कम 1500 और अधिक से अधिक 5000 रुपये शुल्क लेकर आपको पहले ही टाइम दे दिया जाता है। ये पहला ऐसा मंदिर है जहां आप न सिर्फ मुख्य शिवलिंग को छू सकते हैं बल्कि विधिविधान और पूजा के बाद अभिषेक का जल शिवलिंग पर स्वयं चढ़ा सकते हैं। हाँ, मंदिर में दर्शन के लिए पुरुषों को सिर्फ कमर के नीचे ही वस्त्र पहनना होता है और महिलाएं साड़ी या दुपट्टे सहित सलवार सूट में ही जा सकती हैं। अभिषेक के बाद मंदिर भ्रमण में भी हमें काफी समय लगा क्योंकि इस मंदिर के अंदर बहुत से अन्य मंदिर भी हैं। पूरा मंदिर विजयनगर स्थापत्य का बहुत ही सुंदर नमूना है और सफाई, अनुशासन और समृद्धि देखते ही बनती है। मंदिर में प्रवेश के लिए सुरक्षा मानक है और पूरा मंदिर 20 फ़ीट ऊंची और 6 फ़ीट चौड़ी मज़बूत दीवार से घिरा हुआ है जिस पर हिन्दू देवी देवताओं की असंख्य मूर्तियां हैं। इस दीवार में चार मुख्य दिशाओं से प्रवेश के लिए चार द्वार हैं। मंदिर में थोड़ा समय गुज़ारें तो अच्छा लगेगा। श्रीसैलम आने वाले लोग यहाँ अपनी गाड़ियों को मल्लिकार्जुन स्वामी के चित्र के साथ कलात्मक रूप से पेंट कराते हैं जो इस बात का प्रतीक है कि वे धर्मस्थान होकर आए हैं।
श्रीशैलम यात्रा में रोमान्च भी चाहने वाले यहां से 18 किलोमीटर दूर अक्कामहादेवी गुफाओं में रोपवे से और पातालगंगा में बोट की सुहावनी यात्रा के बाद अमरनाथ गुफा की तरह स्वाभाविक रूप से बना हुआ शिवलिंग देखने के लिए भी जा सकते हैं जिसके लिए केवल सरकारी पैकेज लें क्योंकि अंधेरी,सँकरी,गर्म और चमगादड़ों से भरी हुई गुफा के अंदर का माहौल चुनौतीपूर्ण रहता है जिसके लिए प्रामाणिक सुरक्षा ज़रूरी है।
तेलंगाना के अन्य आकर्षण---यद्यपि हम लोगों की यात्रा समय के अभाव के कारण श्रीसैलम के बाद ही समाप्त हो गयी थी पर कुछ दिन और हैदराबाद में रहते तो निश्चित रूप से वहां से 245 किलोमीटर दूर आदिलाबाद में राज्य का सबसे बड़ा कुन्तला वॉटरफॉल और वारंगल का हज़ार खंभों वाला मंदिर और वह किला देखने अवश्य जाते जिसके चारों सुंदर स्तंभ तेलंगाना के आधिकारिक प्रतीक चिन्ह में बने हुए हैं।
तेलंगाना से लौटने के बाद आज भी अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध लेखक जॉन कीट्स की कविता "ऑन रिसीविंग ए क्यूरियस शेल" की पंक्तियाँ याद आती रहती हैं जिनका हिंदी अनुवाद है-
"क्या तुम्हारे पास गोलकुंडा की गुफाओं से निकले रत्न जैसा कुछ है/ जो उस बर्फ की बूंद जितना निष्कलुष हो जो पर्वत पर जम गई है?"
रोली मिश्रा
C/O श्री भरत नारायण(एड.)
91,घुरामऊ बंगला,आई हॉस्पिटल रोड
सीतापुर(उ. प्र.)--261001
email------roli.misra.pandey@gmail.com
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