राजेश माहेश्वरी की कविताएँ

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माँ माँ की ममता और त्याग का मूल्य मानव तो क्या परमात्मा भी नहीं चुका सकता। वह स्नेह व प्यार वे आदर्श की शिक्षाएँ जो उसने दीं और कौ...

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माँ

माँ की ममता और त्याग का मूल्य
मानव तो क्या
परमात्मा भी नहीं चुका सकता।
वह स्नेह व प्यार
वे आदर्श की शिक्षाएँ
जो उसने दीं
और कौन दे सकता है ?
जननी की शिक्षा में ही छिपी है
हमारे जीवन की सफलता।
हमारी कितनी नादानियों को
वह करती है माफ।
हमारी चंचलता, हठ और शरारतें
वह करती है स्वीकार।
वह है सहनशीलता की प्रतिमूर्ति
उसकी अंतर आत्मा के ममत्व में
प्रकाशित होती है अंतर ज्योति।
जीवन के हर दुख में
वह रही है सहभागी
लेकिन जब सुख के दिन आए तो
वह चलने लगी
प्रभु की तलाश में
एकान्त प्रवास में।
हम उसे नहीं रोक सके
लेकिन उसके पोते-पोतियों ने
कर दिया कमाल
जाग उठी उसकी ममता
और दादी रूक गई।
संसार का नियम है
एक दिन तो उसे भी जाना है
अनन्त में
पर वह जाएगी
हमें अपने पैरों पर खड़ा करके
हमें स्वावलम्बी बनाकर
होगी वह अलविदा।


माँ

जब तक साँस है
तब तक आस है।
आस है जब तक,
साँस है तब तक।
चिंता नहीं है उपाय
यह देती है परेशानी
और करती है दिग्भ्रमित।
कर्मों का प्रतिफल
भोगना ही होगा
इससे मुक्त नहीं हो सकते।
कर्तव्यों को पूरा करो
जो हार गया
उसका अस्तित्व समाप्त हो गया।
पराक्रमी बनो,
संघर्षशील बनो,
सफलता अवश्य मिलेगी।
ये शब्द वह कह रही थी
हमें याद है उसका जीवन संघर्ष
अंतिम समय तक थी उसमें
जीने की चाह
समय पूरा हुआ
उसे मालूम था
फिर भी वह कर रही थी संघर्ष
उसने हमें आदेश दिया-
अब खिड़की खोल दो
मुझे जाना है प्रभु की शरण में
ये चिकित्सक,ये दवाएँ हटा दो
मुझे शांति दो, मुक्त करो
हिम्मत रखो, विचार मत करो।
उसका अंतिम संदेश
कहते-कहते वह विदा हो गई
हमें बतला गई
जीवन के सूत्र।

                     माँ

माँ का स्नेह
देता था स्वर्ग की अनुभूति।
उसका आशीष
भरता था जीवन में स्फूर्ति।

मुझे याद है
जब मैं रोता था
वह परेशान हो जाती थी।
जब मैं हँसता था
वह खुशी से फूल जाती थी।
वह हमेशा
सदाचार, सद्व्यवहार, सद्कर्म,
पीड़ित मानवता की सेवा,
राष्ट्र के प्रति समर्पण,
सेवा और त्याग की
देती थी शिक्षा।

शिक्षा देते-देते ही
आशीष लुटाते-लुटाते ही
ममता बरसाते-बरसाते ही
हमारे देखते-देखते ही
एक दिन वह
हो गई पंच तत्वों में विलीन।

आज भी
जब कभी होता हूँ
होता हूँ परेशान
बंद करता हूँ आंखें
वह सामने आ जाती है।
जब कभी होता हूँ व्यथित
बदल रहा होता हूँ करवटें
वह आती है
लोरी सुनाती है
और सुला जाती है।
समझ नहीं पाता हूँ
यह प्रारम्भ से अन्त है
या अन्त से प्रारम्भ।

कोरा कागज

कोरा कागज साफ, सुंदर, स्वच्छ
पर उसका मूल्य नगण्य
वह सार्थक शब्दों से
जब होता है लिपिबद्ध
तब अमूल्य होकर बनता है
इतिहास का एक अंग
हमारा जीवन भी है
कोरे कागज के समान
जो व्यक्ति अपने बुद्धि चातुर्य एवं
परिश्रम से नहीं कर पाता सृजन
वह वक्त के साथ विलुप्त होकर
अपनी पहचान खोकर
समाज में स्मृति विहीन बनकर
तिरस्कृत होकर,
करता है जीवन यापन
पर जो मानव अपनी कुशाग्र बुद्धि
मेहनत, लगन और परिश्रम से 
देता है समाज को मार्गदर्शन
सृजनात्मक होते हुये करता है
सफल नेतृत्व का प्रदर्शन
ऐसे युगपुरूष का जीवन
सफलता, मान-सम्मान एवं
वैभव से होता है परिपूर्ण
इसलिये हमारा जीवन
uk हो कोरे कागज के समान
युग पुरूष बनकर दिखाओ
और देश को विश्व में
गौरवपूर्ण स्थान दिलाओ 




बुजुर्गों के सपने

वह वृद्ध व्यक्ति
अपने अनुभवों को समेटे हुए
जिसके चेहरे पर झुर्रियाँ जैसे
कैनवास पर किसी चित्रकार ने
आढी तिरछी रेखाओं को खींचकर
एक स्वरूप दे दिया हो
वह टिमटिमाते हुए दिये की लौ में भी
गर्मी का अहसास कर रहा था
अपनी अवस्था से नहीं व्यवस्था से
वह दुखी व परेशान था
और चिंतन, मनन में खोया हुआ
वह भयमुक्त, ईमानदारी की राह,
नैतिकता से आच्छादित, सहृदयता, समरसता
एवं सद्चरित्र से परिपूर्ण
समाज का सपना उसका ध्येय था
यह उसके सपनों का देश नहीं था
परंतु विपरीत परिस्थितियाँ उसे
अपने में अपने आप को सोचने में मजबूर करती थी
उसके चेहरे पर फिर भी खुशी का भाव था
उसे नई पीढी से परिवर्तन की अपेक्षाएँ थी
एक दिन वह सूर्यास्त के समय
अनंत में विलीन हो गया,
उसके मन की आस मानो चीख चीख कर कह रही थी
कि एक दिन, देश में परिवर्तन आएगा
उसका सपना, साकार हो जाएगा।


वक्त और जीवन


कौन कहता है कि
वक्त बेरहम होता है,
यह तो जीवन में
जवानी की दास्ताँ के समान
मधुर और प्रेममय होता है
यह यौवन के आभास की तरह
कभी खट्टा कभी मीठा होता है
उन मोहब्बत के मारों का सोचो
जिन्हें वक्त और जवानी
दोनो ने दगा दे दिया हो
उनकी भावनायें तो
आँसुओं का दरिया बन जाती है
इसी में मजबूर होकर
उन्हें जीवन जीना पडता है
वक्त उनके लिए
गमों का अहसास है
जीवन पाकर भी
वे आहें भरते रहते हैं
वक्त होता है मेहरबान उनपर
जो वक्त को वक्त पर समझ लेते है
ऐसे व्यक्तित्व शहंशाह की तरह जीते है
पर ऐसे खुशनसीब
दुनिया में बहुत कम हेते है
जो वक्त को नहीं समझ पाते
वे इसकी मार से
भटकते रहते है
और जीवन में दूसरों को
मुकद्दर के सिंकदर
के रूप में देखते है
जीवन में वह सुखी रहता है
जो वक्त का दोस्त बनकर रहता है
उसे ही जीवन का फलसफा
समझकर जीता है
वक्त को समझो तो भी जीना है
uk समझ सको तो भी जीना है
एक जीवन का जीना है और
दूसरा, जीवन है सिर्फ इसलिये जीना है

गधे का बोझ

मेरे घर के सामने एक नेताजी का था निवास
एक दिन अचानक टूट पडा भीड का सैलाब
मैं अचंभित होकर सोचने लगा
कि क्या हो गया वहाँ
मैं भी वहाँ पहुँच कर शामिल हो गया
नेताजी को सब बधाई देकर
मिठाईयों पर हाथ साफ कर रहे थे
मैंने जब दी नेताजी को बधाई
तो वे बडे खुश हुये और बोले
सुनो मेरे भाई
लडका सप्लीमेंट्री में पास हो गया है
मुझे भी सप्लीमेंट्री आया करती थी परंतु
मैं उसमें भी पास नहीं हो पाता था
तब मुश्किल से मैं विधायक बन सका
इसने तो सप्लीमेंट्री पास कर ली है
भविष्य इसका मुझसे ज्यादा उज्जवल है
यह मंत्री पद अवश्य पा जायेगा
यह सुनकर मैं अपने ही ख्यालों में खो गया
पहले जनता का बोझ ढोता था गधा
अब गधे का बोझ ढोयगी जनता
लोकतंत्र का नया रूप नजर आयेगा
लोक अब इस गधा तंत्र का बोझा उठायेगा।



काश! ऐसा हो।

मानव का जीवन हो 
अमृत के समान
मनसा-वाचा-कर्मणा
सत्यमेव जयते और
सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् का
समन्वय हो
जीवन में लय व ताल हो
यही मानव की
परमपिता से आस हो।

हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाएं
मन को शान्ति
हृदय को संतुष्टि
आत्मा को तृप्ति देती हैं।
हमने सृजन के स्थान पर
प्रारम्भ कर दिया
विध्वंस।
कुछ क्षण पहले तक
आनन्द बिखरा रहा था
यह अद्भुत और अलौकिक सौन्दर्य।
कुछ क्षण बाद
आयी गोलियों की बौछार
कर गई काम-तमाम
और जीवन का हो गया पूर्ण विराम।

हमें विनाश नहीं
सृजन चाहिए
कोई नहीं समझ रहा
माँ का बेटा
पत्नी का पति
और अनाथ हो रहे
बच्चों का रूदन
किसी को सुनाई नहीं देता
राजनीतिज्ञ
कुर्सी पर बैठकर
चल रहे हैं
शतरंज की चालें
राष्ट्र प्रथम की भावना का संदेश देकर
हमें सरहद पर भेजकर
त्याग व समर्पण का पाठ पढ़ाकर
सेंक रहे हैं
राजनैतिक रोटियां।

अब हम हों जागरुक
नये जीवन का दें वे संदेश,
आर्थिक व सामाजिक तरक्की से
सम्पन्न हो हमारा देश।  

मानवीयता हो हमारा धर्म
सदाचार और सद्कर्म
हो हमारा कर्म
तभी जागृत होगी
एक नयी चेतना।
सत्यमेव जयते
शुभम् करोति
अहिन्सा परमो धर्मः
की कल्पना
हकीकत में साकार हो
भारत हमारा प्यारा देश
ऐसा महान हो।



दो बूंद

दो बूंद स्याही की
धरती पर टपकीं।
उन पर पड़ी
चित्रकार की दृष्टि
उसने अपनी तूलिका से
बना दिया उन्हें
एक चित्र।
अब वे बूंदें
हो गई थीं मूल्यवान।

दो-दो बूंदों से
भर जाता है घड़ा
बुझाता है हमारी प्यास।

रोको!
पानी की दो-दो बूंदों का
व्यर्थ बहना रोको।
करो इनका संरक्षण
यह देंगी
किसी प्यासे को
नया जीवन।

दो बूंदें
करती हैं पोलियो से रक्षा,
विकलांगता से सुरक्षा,
नवागत के स्वागत में
आँखों में छलकती
दो बूंदें
बिखराती हैं
हर्ष और उल्लास।
मृत्यु पर यही दो बूंदें
अर्पित करती हैं
श्रृद्धा-सुमन।
जीवन में दो बूंदों के महत्व को
करो स्वीकार
इनमें छुपी है
जीवन की अभिव्यक्ति
जीवन की संतुष्टि
और जीवन का आधार।

--

RAJESH MAHESHWARI

106, NAYAGAON CO-OPERATIVE
HOUSING SOCIETY, RAMPUR,
JABALPUR, 482008 [ M.P.]   
Email-authorrajeshmaheshwari@gmail.com

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नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ 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रचनाकार: राजेश माहेश्वरी की कविताएँ
राजेश माहेश्वरी की कविताएँ
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